Thursday 26 January 2023

कलम की सुगंध बसंत पंचमी साहित्यिक उपनामकरण समारोह 2023

 


26 जनवरी 2023 को बसंत पंचमी के पावन अवसर पर कलम की सुगंध परिवार द्वारा साहित्यिक उपनामकरण समारोह का आयोजन सुनिश्चित किया गया था जो सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा साहित्यिक उपनाम प्राप्त करने वाले सभी कवि एवं कवयित्रियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ 💐💐💐💐💐

कलम की सुगंध बसंत पंचमी साहित्यिक उपनामकरण समारोह 2023

1 नीरज शास्त्री "विश्वास"

2 प्रीति सोनकर "वल्लकी"

3 सरिता सिंह "वर्णिका"

4 मंजू भारद्वाज "विधि"

5 नीलम पेड़ीवाल "विहाँगी"

6 मुकेश बिस्सा "विवान"

7 बेलीराम कंसवाल "विप्लव"

8 कवि जसवंत लाल खटीक "वंशील"

9 कल्पना गौतम "विभावना"

10 डा. रजनी रंजन "वियति"

11 निर्मला राव "निर्मल"

12 शकुंतला शर्मा  "निपुण"

13 डॉ मीना कुमारी परिहार "विहर्ष"

14 छाया प्रसाद "विश्रुत"

15 डॉ.जबरा राम कंडारा "वैदेश"

16 चंचल हरेंद्र वशिष्ट "वागीशा"

















इस अवसर पर सभी को शुभाशीर्वाद देते हुए गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने कहा -

स्वतंत्र राष्ट्र के महापर्व गणतंत्र दिवस की तथा पावनता का पीताम्बर वर्ण धारे द्वितीय पर्व बसंत पंचमी की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएँ माँ वीणापाणि आपकी लेखनी को समस्त सामर्थ्य तथा शक्ति प्रदान करें जिससे आप नूतन साहित्य सारगर्भित साहित्य तथा सार्थक साहित्य के सशक्त सृजनकार तथा लेखक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करें इन्ही शुभकामनाओं के साथ 

आप सभी को नमन वंदन तथा अभिनंदन करता हूँ 💐💐💐

आपको आपके साहित्यिक उपनामकरण की अनंत बधाई एवं शुभकामनाएँ माँ वीणापाणि आपकी सशक्त लेखनी को आपके साहित्यिक उपनाम सहित साहित्य क्षितिज पर अटल ध्रुव के समान प्रतिष्ठित करें। आप सतत अभ्यास से अपने लेखन से अपनी योग्यता तथा अपने साहित्यिक नाम की सार्थकता सिद्ध करके प्रमाणित कर नित हो जाएं इस मंच की यही अपेक्षा है ... विश्वास है आप अपनी योग्यता के अनुसार अपने निर्धारित लक्ष्य को सफलता प्राप्त कर लेंगे ...


इस पावन पर्व पर अपनी उपस्थिति देने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏



Thursday 1 December 2022

चाक पूजन का महत्त्व : संजय कौशिक 'विज्ञात'


 चाक पूजन का महत्त्व : 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

आज एक सामाजिक परम्पराओं की मान्यताओं के सम्बंध में एक शिष्य ने प्रश्न किया उनकी जिज्ञासा थी कि लोग कह रहे हैं आपके पास पैसा बहुत है ... धनी हैं आप तो ... ऐसे में स्टील नहीं, सोने-चाँदी के बर्तन घर में लगा सकते हैं। तो आप अपने बेटे की शादी के अवसर पर कुम्हार के घर जाकर चाक पूजन का वाह्यात सा कार्य मत करें ....
वैसे भी अब तो स्टील का युग है ये तो उस समय का ढर्रा है जिस समय के रिवाज हैं जब लोगों के पास पानी संचित करने के साधन नहीं हुआ करते थे। आप तो साधन संपन्न हैं ऐसे में आपको क्या आवश्यकता है चाक पूजन जैसे निम्न वर्गीय कार्य करने की ... अब मार्गदर्शन की अपेक्षा से जिज्ञासु आया तो कुछ बातें मैंने उन्हें बताई प्रस्तुत है उसका सारांश ....

वैवाहिक जैसे मांगलिक कार्यों में चाक पूजने के कारण ... 
परंपरागत - भारत देश रीति-रिवाजों का देश है विशेषकर हिन्दू समाज रीति-रिवाज प्रधान समाज है ये रीति रिवाज तथा परम्पराएँ ही असली पुरातन पद्धति तथा आर्यव्रत कहो या विश्वगुरु भारत का परिचय विश्व पटल पर देते हैं।
इन परंपराओं को मात्र ढर्रा कहने वालों को अपनी शिक्षा के मद में अपनी पहचान, अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति तथा संस्कारों की बलि देते प्रतीत हो रहे समाज के लिए मुझे आज उनकी नूतन धारणाओं के खंडन हेतु बोलना पड़ रहा है इसीलिए आज बहुमूल्य समय में से अतिबहुमूल्य समय निकाल कर तूलिका चलानी पड़ी शिक्षित समाज जो परंपराओं को ढर्रा बताते हैं और इनमें लाभ तथा हानि ढूँढ़ते हुए समय की बर्बादी बताते हैं उन्हें इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि स्वयं की पहचान न बना सको तो पूर्वजों की पहचान पर धूल मत फेरो। 
आस्थागत:- जहाँ एक कच्ची मिट्टी की (डळी) कंकर को गणेश मानकर पूजा जाता है यह वही भारत है जहाँ की आस्था गंगा जल जैसी पवित्र तथा वज्र जैसी अभेद्य रही हैं जो सतयुग द्वापर तथा त्रेता सहित 27 कलियुगों से खंडित नहीं हो पाई। पर पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव आज इन सभी सशक्त परम्पराओं को खोखला, निराधार तथा ढर्रा बता रहा है।
प्रजापति ब्रह्म स्वरूप पूजन :- चाक प्रजापति ब्रह्मस्वरूप माने जाते हैं उनकी पूजा करके उनके आशीर्वाद से वैवाहिक कार्य सम्पन्न हो तथा नव युग्ल भी ब्रह्मा के सृष्टि क्रम को गति देने में अपना सहयोग दे इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रजापति ब्रह्मा तथा उनके प्रतीक चाक कुम्हार के घर रक्खे चाक को पूजा जाता है ताकि उनके आशीर्वाद से वैवाहिक कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो। तथा नव दंपत्ति भी सृष्टि के विकास में सहयोग दे सके।  जिस प्रकार कुम्हार का चाक लोक कल्याण हेतु चलता है नव दंपत्ति भी अपने कल्याण भाव से हटकर समाज कल्याण को ही सर्वप्रथम अग्रणी रक्खें।

घट का महत्त्व:- प्रजापति ब्रह्मा स्वरूप चाक से निर्मित कलश जो कुबेर का प्रतीक है कुबेर माता लक्ष्मी की तरह सर्वजन को प्रिय होते हैं। जिनकी कृपा दृष्टि से धन कोश, सुख समृद्धि में वृद्धि होती है उनके आशीर्वाद तथा कुबेर के प्रतीक नूतन अथवा कोरे कलश को वैवाहिक जैसे मांगलिक कार्यों में सुहागिन महिलाओं द्वारा परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास के साथ गीत गाते हुए वैवाहिक मांगलिक स्थल पर लाया जाता है। ताकि उनकी कृपा दृष्टि बनी रहे। 

जल संचय का साधन:- कलश मात्र जल संचय का साधन नहीं है। यह तो पहले भी किसी युग में नहीं रहा है। आधुनिक काल में स्टील तथा प्लास्टिक के टैंकों ने जल संचय के साधन बना दिये हैं इसलिए कलश का महत्त्व नहीं घट सकता प्राचीन काल में भी धातुओं के बड़े बड़े बर्तन हुआ करते थे पीतल के तांबे के लोहे के जैसे कड़ाहे देखे भी होंगे किसी न किसी ने और यदि नहीं देखे तो बुजुर्गों की संगत करो अल्प बुद्धि में ज्ञान की ज्योति अवश्य प्रकाशित हो सकेगी। 

वैज्ञानिक कारण :- किसी भी धातु में रक्खे जल से मिट्टी के कलश अथवा घट में रक्खे जल का टीडीएस 350 से ऊपर नहीं जाता जहाँ जल का टीडीएस 550 हो जो हानिकारक है 

अब यदि आरओ के फिल्टर पानी के टीडीएस की बात करें तो यह 100 के लगभग होता है जबकि इतने टीडीएस वाले पानी में प्लास्टिक के तथा स्टील के अंश घुल के आने लग जाते हैं । जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं।मिट्टी के कलश में जल का संतुलन बनता है। 
पोषक तत्व कम हैं तो बढ़ते है और अधिक हैं तो वह कलश सोख लेता है। मिट्टी के कलश स्वास्थ्य के लिए वरदान हैं।

जैसे मिट्टी के तवे पर रोटी बनाना ये रोटी शुगर को कंट्रोल करती है, लिवर को सुरक्षित रखती है और जल्दी पचती भी है इस प्रकार से पाचन तंत्र को भी सुरक्षा प्रदान करती है।

अंत में इतना ही कहूँगा कि प्रथा या परम्परा कोई गलत नहीं है। गलत तथा दूषित पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से उपजी मानसिकता ही है और मूर्खों के सींग नहीं होते .... 
आप या मैं भी सींग वाले प्राणी नहीं हैं 
अतः सावधान रहें और अपने विवेक से तर्क वितर्क स्वयं करें इसे मंथन कहेंगे और सीधे अपना मत देंगे या अब भी निराधार, खोखली प्रथा, मूर्खों के ढोंग या ढर्रा ही कहेंगे तो अदृश्य सींग के प्राणियों से निवेदन है कुतर्क से बचें ....
परम्परा स्थान विशेष की पृथक हो सकती है। जैसे कुछ स्थान पर चकरी पूजते हैं जिस पर आटा पीसते हैं। और कलसा पूजा जाता है जो कुम्हार के यहाँ से आता है।

वैसे शादी की परंपरा भी बहुत पुरानी हो चुकी है। लाभ न होता तो बुद्धिजीवी लोग ये भी न करते... 

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Monday 31 October 2022

कलम की सुगंध गीतिका शतकवीर सम्मान समारोह संपन्न


 कलम की सुगंध गीतिका शतकवीर के सफल आयोजन और सम्मान समारोह संपन्न होने की सभी साथियों को हार्दिक बधाई 💐💐💐

विज्ञात नवगीत माला मंच पर गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने सभी समीक्षक एवं प्रतिभागियों को सम्मानपत्र देकर उनका उत्साहवर्धन किया। इस अवसर पर वीणा कुमारी 'नंदिनी' जी, आरती श्रीवास्तव 'विपुला' जी, पूनम दुबे 'वीणा' जी, और सरोज दुबे 'विधा' जी ने अपनी सस्वर प्रस्तुति से चार चाँद लगा दिए। 

चार महीने के निरंतर प्रयास से इस कठिन लक्ष्य को प्राप्त कर रचनाकरों ने अपनी सशक्त लेखनी का परिचय दिया है। उनके प्रयासों को अनेकों नमन 🙏

कलम की सुगंध गीतिका शतकवीर सम्मान प्राप्त करने वाले साथियों को हार्दिक बधाई 💐💐💐💐




















कलम की सुगंध गीतिका शतकवीर समीक्षक सम्मान प्राप्त करने वाले साथियों को हार्दिक बधाई 💐💐💐💐







कलम की सुगंध गीतिका शतकवीर संचालक सम्मान प्राप्त करने वाले साथी को हार्दिक बधाई 💐💐💐💐


इस अवसर पर सभी रचनाकारों ने गुरुदेव का आभार व्यक्त किया और शतकवीरों को बधाई दी 💐💐💐💐


गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी के मार्गदर्शन में अनेक शतकवीर कार्यक्रमों का सफल आयोजन हुआ है। उनका मार्गदर्शन और स्नेहाशीष सदैव मंच को मिलता रहे इसी कामना के साथ आप सब का हार्दिक आभार इस अविस्मरणीय क्षण का साक्षी बनने के लिए 🙏

Friday 2 September 2022

विज्ञात मात्रिक सवैया छंद का नामकरण संपन्न हुआ।

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  *कलम की सुगंध, छंदशाला,संचालन मंडल*


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आ.अनिता भारद्वाज अर्णव जी की गरिमामयी उपस्थिति एवं आ. अनिता मंदिलवार 'सपना' जी के संचालन में...

 आ. बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ, की अध्यक्षता में

आ. नीतू ठाकुर विदुषी की गहन समीक्षा में, विशिष्ट अतिथि आ. गोपाल साखी पंडा, एवं सुधि छंदकार आ. इन्द्राणी साहू 'सांची',आ.  बोधन राम निषाद राज जी, अर्चना पाठक जी के सानिध्य में

विज्ञात मात्रिक सवैया

का विवेचन कर प्रथम सृजनकर्ता रहे छंदकार-

आ. पूजा शर्मा 'सुगंध', नीतू ठाकुर'विदुषी', आ. आरती श्रीवास्तव 'विपुला', आ.गीतांजलि 'अनकही', आ. अनुराधा चौहान 'सुधि', आ.बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, .आ. कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा', आ. कृष्ण मोहन 'निगम', आ. सौरभ प्रभात जी, आ. रानू मिश्रा अजिर जी, आशा शुक्ला जी,

 की इस छंद पर रचनाओं के विवेचन के आधार पर आज हिन्दी साहित्य हेतु नवीन छंद  "विज्ञात मात्रिक सवैया" को सहर्ष मान्यता प्रदान की जाती है।


 विज्ञात मात्रिक सवैया

*छंदाविष्कारक... श्री संजय कौशिक विज्ञात*

विधा- *विज्ञात मात्रिक सवैया* 

विधान:-

पंक्तियों का लेखन आधार - मात्रा आधार

मात्रा की संख्या - 16,16 की यति के साथ

कुल मात्रा एक पंक्ति में -32

कुल पंक्ति - 4 

तुकांत - चारों पंक्ति में समान 

पंक्ति के अंत में - चौकल या यगण 

जगण - चारों पंक्तियों में प्रत्येक स्थान पर वर्जित

लगा द्विकल - (प्रत्येक पंक्ति में लगा के पश्चात द्विकल लिया जा सकता है केवल 16 वीं मात्रा है जहाँ, वहाँ यति से पूर्व ) 

त्रिकल - के पश्चात एक और त्रिकल अनिवार्य है।

।। *विज्ञात मात्रिक सवैया* ।।

जय जय जय गणराज कहो जय, और कहो गणपति हो मेरे।

भक्ति सहित हिय दीप जलाओ, युक्ति यही काटे अंधेरे।

भाव जगा यश गान करो फिर, नाम यही जिह्वा जब टेरे।

कष्ट मिटें सब काज सधेंगे, घर आएंगे गणपत तेरे।।

. ...   ©- *संजय कौशिक 'विज्ञात'* 

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*विज्ञात मात्रिक सवैया, छंद को आज दिनांक ०२.०९.२०२२ शुक्रवार को मान्यता प्रदान की जाती है।*


.........✍

*बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ*

वास्ते-

*कलम की सुगंध :  छंदशाला*

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कलम की सुगंध छंदशाला पटल पर 'विज्ञात मात्रिक सवैया छंद' को मान्यता प्राप्त होने के पश्चात सभी का आभार व्यक्त करते हुए गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने कहा ...

कलम की सुगंध छंदशाला मंच पर 

मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी जिन्होंने आज दिवस संचालक की भूमिका का भी निर्वहन किया है तथा आज के समीक्षकगण अनिता सुधीर आख्या जी और चमेली कुर्रे सुवासिता जी सहित सादर आमांत्रित समीक्षकगण आदरणीया नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी मीडिया प्रभारी कलम की सुगंध और प्रमुख समीक्षक छंदशाला मंच आदरणीय बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ' जी आप सभी का हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ । एक शतक से अधिक समय आप सभी को इसी प्रकार परेशान करने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ पर माँ वीणापाणि जब जब आदेशित करती हैं तब-तब मैं उपस्थित हो जाता हूँ आप सभी के समक्ष आज का प्रयास ऐसा सम्माननीय मंच के अति सम्माननीय कविगण इसे अनेकों बार लिख चुके हैं थोड़ा सा अंतर अवश्य रहा है यह नूतनता स्वीकार मंच पर उपस्थित बुद्धिजीवी वर्ग

आदरणीय बोधन राम निषाद राज जी, आदरणीया इन्द्राणी साहू साँची जी, आदरणीय कृष्ण मोहन निगम जी, आदरणीया अर्चना पाठक निरन्तर जी, आदरणीया धनेश्वरी देवांगन धरा जी, आदरणीय कन्हैया लाल श्रीवास जी, आदरणीय परमजीत सिंह कोविद जी, आदरणीया गीताजलि जी, सहित 🌹मुख्य अतिथि सखी गोपाल पंडा जी 🌹 नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी तथा बाबूलाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ' जी  ने स्वीकार कर इसे पूर्व की तरह नूतन छंद में मान्यता प्रदान की इसके लिए मैं पुनः मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी का सादर सादर आमांत्रित समीक्षकगण आदरणीया नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी मीडिया प्रभारी कलम की सुगंध और प्रमुख समीक्षक छंदशाला मंच आदरणीय बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ' जी का आत्मीय आभार प्रकट करता हूँ और मंच पर उपस्थित रचनाकारों सृजनकारों के स्नेह का ऋणी हूँ जिन्होंने प्रथम बार प्रदत्त विषय पर अपनी सशक्त लेखनी बहुत सुंदर आकर्षक ढंग से चलाई है प्रथम सृजनकर्त्ता की सूची प्रेषित संलग्न कर आप सभी का भी आत्मीय आभार प्रकट करता हूँ जो आप सभी ने पूर्व की भांति मुझे प्रोत्साहित कर सम्बल प्रदान किया है।

*विज्ञात मात्रिक सवैया* / *विज्ञात चौपाई सवैया*

का विवेचन कर प्रथम सृजनकर्ता रहे छंदकार-

१. आ. पूजा शर्मा 'सुगंध'

२. आ. नीतू ठाकुर'विदुषी'

३. आ. आरती श्रीवास्तव 'विपुला'

४. आ.गीतांजलि 'अनकही'

५. आ. अनुराधा चौहान 'सुधी'

६. आ.बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

७.आ. कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

८. आ. कृष्ण मोहन निगम

९. आ. सौरभ प्रभात 

१०. आ. रानू मिश्रा 'अजिर'

११. आ. किरण कुमारी 'वर्तनी'

१२. आ. राधा तिवारी 'राधे गोपाल'

१३. आ. साखी गोपाल पण्डा

१४. आ. चमेली कुर्रे सुवासिता 

१५. आ. शिशुपाल गुप्ता 

१६. आ. अनिता मंदिलवार 'सपना'

१७. आ. रीना गुप्ता 'श्रुति'

१८. आ. परमजीत सिंह 'कोविद'

१९. आ. आशा शुक्ला

आप सभी का प्रथम सृजनकर्त्ता के रूप में आत्मीय आभार प्रकट कर करता हूँ।


इस अवसर पर मंच पर उल्हास का वातावरण था और अनेक रचनाकारों ने नवनिर्मित छंद पर अपनी लेखनी चलाकर अपने भाव व्यक्त किये। इस विशेष अवसर पर प्रथम सृजन कर्ता के रूप में सभी को सम्मानित किया गया। प्रेषित हैं कुछ रचनाएँ.....

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~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा,विज्ञ
 विज्ञात मात्रिक सवैया / विज्ञात चौपाई सवैया
विधान: - १६,१६ मात्रा
चार चरण चारो समतुकांत
जगण सदैव वर्जित, चरणांत २२
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.           *जय मानवता*
.   --+--
जय मानवता की बोल सखे,
 मिल कर भारत की जय कहना।
कर शत्रु पराजित सीमा पर, 
बस अनाचार को मत सहना।
हो जाति धर्म का भेद नहीं,
 समरस सबसे हिलमिल रहना।
तुम गंग यमुन जल धारा बन,
 दुख पाप सभी हरते बहना।
.   -----+---
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान
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विज्ञात मात्रिक सवैया छंद

गूंज रहा शिव नाद वहाँ पर, बोल रहे सब बम बम भोले।
रंगबिरंगी चमके कांवड़, हाथों में शिव डमरू डोले।
हर्षित हैं मुखमंडल सारे, बरसे सावन हिय को खोले।
जय हो जय हो नाथ हमारे, भक्तों के जयकारे बोले।।

2
पूजा उत्तम छंद लिखे नित, विपुला सुंदर भाव सजाये।
गीतांजलि के शब्द अनोखे, प्रज्ञा हर्षित हो नित गाये।
राधा के बिन सुर है आधा, विज्ञ मनोरम छंद सिखाये।
पंडा जी के राग सुरीले, देख सुवासित बोध बताये।।

3
स्वर्णिम एक प्रभात खिली है, हर्षित अनुपम छंद बुलाये।
देख किरण की आभा सुंदर, प्राण सुधी का झूमे गाये।
रानू जी के छंद अनोखे, विज्ञ कहें शिशु अद्भुत पाये।
सौरभ नित्य सजाये सपना, गुरुवर नूतन छंद बनाये।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी' 


विज्ञात मात्रिक सवैया
१- सच्चा मीत
**************

अंतस ले जब रूप मरुस्थल, आशा के अंकुर उपजाए।
टूटी तरणी पार लगेगी, हिय में यह विश्वास जगाए।
मूक अधर से प्रेम प्रदर्शन, नयनों से सम्मान जताए।
भाषा समझे मौन हृदय की, मीत वही सच्चा कहलाए।।


२- हे गिरिधारी
**************

*मधुसूदन यशुनंद सनातन, कृष्ण कन्हैया हे गिरधारी।*
*द्वारे बैठी आस लगाए, आ भी जाओ हे बनवारी।*
*मुरलीधर ले मोरपखा सिर, साथ लिए वृषभानु दुलारी।*
*दर्शन दे हिय प्यास बुझाओ, सुन लो प्रभु अरदास हमारी।।*

पूजा शर्मा "सुगन्ध"
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गुरुदेव के सादर चरणों में समर्पित 🙏🏻

लिख लो तुम विज्ञात सवैया, गुरुवर का आशीष मिलेगा।
निखर उठेगा कौशल तेरा, संशय मन का आप हटेगा।
प्रथम सृजन का अवसर आया, छंद नया यह कौन रचेगा।
जो भी इसका मान बढ़ाये, उसका ही सम्मान बढ़ेगा।।

2
जय गणपति जय विघ्न विनाशक,  घट घट के तुम अंतर्यामी।
करता हूँ नित वंदन तेरा, तू ही तो है जग का स्वामी।
मूषक पर चढ़ कर बैठे फिर, मार रहे नित सब खलकामी।
हे लंबोदर हे गज आनन, बने रहें तेरे अनुगामी।।

सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार


एक प्रयास विज्ञात मात्रिक छंद पर

केवट का हठ
आनंद घना छाया मन में, राम सिया संग संग आये।
मोद भरा लो केवट दौड़ा, भाग बड़े प्रभु दर्शन पाये।
झूठी कैसी रार मचाकर, एक घड़ा भरा अंभ लाये।
बात हठी माने न किसी की,  धोकर पद फिर नाव बिठाये।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


विज्ञात मात्रिक सवैया

मन की.मन मे न रखो बतियाँ, ब्रजनंदन से कह सब जाकर।।
व्यर्थ विरह.विषपान करो क्यों, जा लख मोहन रूप सुधाकर।।
कंकन की खन खन खन खनकर, नूपुर की नव ताल बजाकर ।
री! कर यसुदानंदन को निज, प्रीति भरे मृदु बोल सुनाकर।।

कलम से 
कृष्णमोहन निगम
सीतापुर


छंद - विज्ञात मात्रिक सवैया

शुभकामना छंद

मंच सुसज्जित है पावन यह, आएँ हम सब दीप जलाएँ ।
वागीशा के चरणों में नत, छंद पुष्प अर्पण कर आएँ ।।
नूतन रूप सवैया का यह, सरल सरल हम शब्द सजाएँ ।
सृजनकार कौशिक जी को सब, कोटि बधाई देते जाएँ ।।

पावन पटल पर नित नवीन छंदों के सृजनकर्ता एवं प्रेरक आदरणीय श्री संजय कौशिक विज्ञात सर को नवीन छंद विज्ञात मात्रिक सवैया के आविष्कार पर अनेक बधाईयां ।


साखी गोपाल पण्डा

विज्ञात मात्रिक सवैया

करती है 'राधे' अब वंदन, गुरुवर के सम्मुख सब आओ।
निखर उठा है सबका कौशल, मिलकर सब कुछ लिखते जाओ।
प्रथम सृजन हम तुम सब कर लें, घी के मोदक भी सब खाओ।
लिखने को सब दौड़ पड़े हैं, प्रथम सृजक भी सब कह लाओ।।
2

पति पूरन
अरि सेना तकरार करे जब, झलकारी तब अस्त्र चलाए।
साथ रहे घोड़ा भी उसका , वह भी उनको देख डराए।
उसके क़दमों की आहट ही, अंग्रेजों को धूल चटाए।
रानी बनकर वह लड़ती है, पति पूरन भी साथ निभाए।।

राधा तिवारी 'राधेगोपाल' 
अंग्रेजी एलटी अध्यापिका 
खटीमा, उधम सिंह नगर (उत्तराखंड)


1.
माथ झुका कर करते वंदन, सुन  लो अनुनय आज हमारा।
कष्ट विनाशक हे गणपति जी, तुम बिन दूजा कौन सहारा।। 
छोटी छोटी  हर खुशियाँ में, मिल जाये आशीष तुम्हारा ।
भीगी पलकें मत हो जग में, चमके सब का भाग्य सितारा ।।
2.
पालनहारी गजमुखधारी, नित गणनायक तुम कहलाये। 
तुम से करते सुख-दुख साझा , तू ही मन के टीस मिटाये।। 
 प्रतिपल के शुभचिंतक तुम हो, गणपति क्या हम भेद छुपाये।
शेष नही अब कुछ अभिलाषा, अंतर्मन में आप समाये।। 

चमेली कुर्रे 'सुवासिता'


आओ गजमुख गेह पधारो , भक्ति दरस की आस लगाई ।
विघ्न हरो अब मेरे देवा , दीप ज्योत को समक्ष जलाई ।
सुन भूल हुई जो भी मुझसे, क्षमा करो यह स्मरण दिलाई।
 तुमसे ही संसार चले ये, तुम ही जग की करो भलाई।

किरण कुमारी 'वर्तनी'


विज्ञात मात्रिक सवैया

माता आये तेरे द्वारे, शत बार नमन करते वंदन ।
तुम तो हो बागीशा देवी, सब को लय दो मधुरम मंदन।
छंदों का ज्ञान कराती हो, कोई निर्धन हो या नंदन।
सपना कहती है यह सबसे, अपनी वाणी कर लो चंदन।

2

*गुरुवर कौशिक* छंद सिखाते, हम करते हैं इनको वंदन ।
इनसे ही सब सीखा हमने, भाव सुगंधित बनते चंदन ।
मधुर *छंदशाला* आकर्षक, *सपना* लय हो मधुरम मंदन ।
छंदों का ज्ञान कराये यह, बिटिया हो या कोई नंदन ।

अनिता मंदिलवार 'सपना'



विधा - विज्ञात मात्रिक सवैया

शारद शीश धरूँ पग तेरे,दास बना रख लो चरणों में।
साधक साध रहे सुर सुंदर,आन पड़े अब तो शरणों में।
अक्षर ज्ञान भरो हिय मेरे,छँद रचूँ टूटे वर्णों में।
गान करूँ महिमा तव माता,गीत बसे जग के कर्णों में।

कौशिक एक गुरू तव साधक,आराधक साहित्य पुजारे।
नाव बिना पतवार बना मैं,गुरुवर हैं मल्लाह हमारे।
आन विराजो मातु हिया में,मेरा मन तुझको माँ पुकारे।
रोता जग शिशु तेरा बालक,तुझ बिन मैया कौन दुलारे।।

*.....✒*
शिशुपाल गुप्ता "विद्यांश"
जिला बलरामपुर छत्तीसगढ़


विधा- विज्ञात मात्रिक सवैया / विज्ञात चौपाई सवैया

तन मन में तुम अधिनायक हो, सत्य वचन सुन लो यह मेरे।
कण-कण में बस सूरत तेरी, आज पड़ा चरणों में तेरे॥
मधु सम यह तेरी भक्ति रही, माँग रहा मन शाम सवेरे।
मनमोहन है अब तो आशा, सोच रहा हूँ कदम बसेरे॥

नूपुर ध्वनि सुनते ही कृष्णा, भूल रहा हूँ जग को प्रियतम।
साधन उर भक्ति सुहानी हो, अँखियाँ चाहें हो जायें नम॥
मानव का जन्म बना सार्थक, देह मिली मिटता सब है तम।
अतिशय ही मैं बड़भागी हूँ, राह बजे मीठी अति सरगम॥

गिरिधर श्यामल सूरत देखें, लोचन भर जीवन राहों में।
नटवर मधुवन अति शोभित है, प्रेम पिया है उर चाहों में॥
जड़ मति से अब क्या बोलें, देह रहे श्यामा बाहों में।
पुलकित मन की गति है विचलित, मत छोड़ अग्नि की दाहों में॥

स्वरचित रानू मिश्रा अजिर



विज्ञात मात्रिक सवैया छंद
माँ दुर्गा 

दुर्गा पूजन का दिन आया, सिंह चढ़ी है माता आई।
लाल चुनर फिर ओढो मइया, देदो दर्शन अंबे माई।
कृपा करो हे मइया मेरी, तेरा दर्शन है सुखदाई।
नमन करूँ मैं बारम्बारा,भेंट भरी ये थाली लाई।।

आरती श्रीवास्तव 'विपुला'


विधा - विज्ञात मात्रिक सवैया 

वक्रतुण्ड जय गजमुख जय जय, जय गौरीसुत जय गणपति जय।
ऋद्धि सिद्धि के स्वामी वर जय, परम उदार देव धनपति जय॥ 
मूषकवाहन चपल चतुर जय, विघ्नों के हर्ता अधिपति जय।
मोदकप्रिय जय वरदायक जय, प्रकाण्डप्रज्ञ कुशाग्रमति जय॥

#अनकही 


विज्ञात मात्रिक सवैया छंद 

जय गणपति हम आज पुकारे,देख खड़े हैं तेरे द्वारे।
अब दुख हर लो आज गजानन,देख दुखों से हम तो हारे।
करते प्रभु गुणगान तुम्हारा,आज भजन करते हैं सारे।
तुमसे सूरज चाँद सजे सब, और सजे तुमसे यह तारे॥

अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित



विज्ञात मात्रिक सवैया छंद

हे भोले शिव शंकर मेरे, बस तेरा ही मुझे सहारा।
मेरी सब बाधा को हर लो, आस लगाकर तुम्हें निहारा।
पार लगाओ मेरी नैया, दिखता कोई नहीं किनारा।
छोड़ दिया हर चिंता उलझन, शिव ही साथी पिता हमारा।

रीना गुप्ता श्रुति ✍️




विज्ञात मात्रिक सवैया छंद

गुरु को अर्पण छंद सभी हों, गुरु ही भवसागर से तारें।
मार्ग भले हो मुश्किल जितना, हिम्मत से नित पथ अभिसारें।
शिक्षा दीक्षा मिलती जाए, नेह सदा ही गुरु पर वारें।
मान सदा हो गुरु शिक्षा का, आदर दें उनको सत्कारें।।

     परमजीत सिंह 'कोविद'



विधा- विज्ञात मात्रिक सवैया

सुनो सुनो हे गणपति देवा, फंद कष्ट के काटो मेरे।
रात दिवस मन बन चातक सा, करे तुम्हारे ही नित फेरे।
कृपा दृष्टि को हेर रहा है ,मन पंछी तुझको ही टेरे।
ज्ञान भक्ति को भरो हिया में, मन अर्पित चरणों में तेरे।

आशा,शुक्ला,शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश


इन अविस्मरणीय क्षणों के साक्षी बनने के लिए एवं उत्कृष्ट सृजन हेतु कलम की सुगंध आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करता है। अपना स्नेहाशीष यूँ ही बनाये रखिये।