विषय - उम्मीद
विधा - काव्य
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विपदाओं से लडने दो
उपवन में आंधी चलने दो,
मंज़िल भी मिल जाएगी,
उम्मीद के सुमन खिलने दो।
यह जीवन है संघर्ष भरा
मुस्कान लिए बस बढ़ना है।
फूलों के जैसा खिलना है
नदियों के जैसा बहना है।
डगमग करते कदमों को
धीरे धीरे अब संभलने दो,
मंज़िल भी मिल जाएगी,
उम्मीद के सुमन खिलने दो।
कंटक -पथ कलियों की
चाह कभी भी मत करना।
चोट अगर लग जाए भी
तो आह कभी भी मत भरना ।
अलसायी सी इन आंखों में
फिर से ख्वाब संवरने दो।
मंज़िल भी मिल जाएगी,
उम्मीद के सुमन खिलने दो।
चल छोड़ निराशा बढ़ आगे,
मजबूत कर कच्चे धागे।
दिन रात पसीना बहाए जो
भाग्य उसी के ही जागे।
दीप जलाओ आशाओं के
सांझ अंधेरी ढलने दो,
मंज़िल भी मिल जाएगी।
उम्मीद के सुमन खिलने दो।
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बंदना पंचाल
अहमदाबाद
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Very nice lines 👌👌
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