Monday, 25 November 2019

उड़ान .... धनेश्वरी देवांगन‌ "धरा

*विधा-------छंद मुक्त*
*विषय -------उड़ान*

सुनो मेरी  दिल की आवाज है ये 
भर  अब *उड़ान*
छू ले  आसमान 
आज कह रहा मेरा दिल 
मुझसे ये बार -बार
मत बंध बंधनों में
छोड़ दे जकड़न
तोड़ दे जमाने के सारे बंधन 
कर ले अपने ख्वाहिशों को साकार
बजा धडकनों के तार ...
कहता हर बार ....
कहता है चल उड़ चल 
स्वछन्द आसमान में...
अपनी ख्वाहिशों के पंख लगा के
तान फड़फडा़ने की मधुर साज सा लगे
साज की धुन में खोती जा ....
आज जी ले जिन्दगी..
ताजी - ताजी हवाओं के साथ बह चल
हवाओं की सरसराहट की सरगम में 
झूम ले मस्त मोरनी बन ...
भर ले चाँद तारों को अपने आँचल में
कर ले हर चाहत पूरी
अनसुलझे सवालों में और मत उलझ
अनकहे जवाबों में ना सिमट
तोड़ ना सही, कभी
रस्म रवायत हैं जो जहां के.
अपने हसरतों को ले के 
जिंदगी को मुस्कुरा के जी 
सब को हंसा के जी
दिल ये कहता है आज 
जो दिल से जुड़ा है...
वो दिल से जुदा ना होने पाये 
दिल से जुड़े हर रिश्ते को निभा के जी
टीस दी जिसने उसे भूला के जी
हर मीठी अहसास को जी..
दिल में उठते हर ज़ज्बात को जी
अपनी आकांक्षाओं को दुनिया के 
पैरों तले कुचलने ना दे
जी ले, खुल कर जी ले, ..
कहे मेरी दिल की आवाज़..
तोड़ दे सारे  बंधन.
सुनो मेरी दिल‌ की आवाज़ है ये 
भर अब *उड़ान*
छू ले आसमान  


*धनेश्वरी देवांगन‌ "धरा"
*रायगढ़ (छत्तीसगढ़)*
@Kalam Ki Sugandh

2 comments:

  1. सुंदर रचना ...बहुत बहुत बधाई 💐💐💐

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