Wednesday, 18 December 2019

कुण्डलिया छंद ....वेणी, कुमकुम


[16/12 6:19 PM] पाखी जैन: वेणी ..(चोटी)
बालों वेणी गूंथ के ,चल दी दुल्हन आज
साजन से वादा किया ,करती माता नाज
करती माता नाज,सिखाती धीरज धरना
करके सारे काम ,बताती गौरव करना ।
करती वह श्रृँगार ,लगे है कितनी सोणी
सजा रही माँ  मांग ,लगाती कुंतल वेणी ।
पाखी
कुंतल -बाल
वेणी -गजरा
[16/12 6:20 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: वेणी
****
वेणी सिर पर सजे तो,
अद्भुत हो सिंगार।
बाल कटाने की भला,
धुन क्यों आज सवार ?

धुन क्यों आज सवार,
भ्रमित हम नर या नारी।
घर-घर की यह बात,
बहुत दिखती लाचारी।

नया कलेवर "अटल",
कामकाजी या गृहणी।
कटे दीखते बाल,
कम दिखें सिर पर वेणी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
********************
कुमकुम
*****
कुमकुम मस्तक पर सजा,
मुख पर चमक अपार।
सधवा नारी का रहा,
सदा प्रमुख सिंगार।

सदा प्रमुख सिंगार,
चढ़ा ये फैशन की बलि।
सूनी रहती माँग,
दिखे बिंदी भर केवल।

"अटल" सुहाता नहीं,
लगा रहता जो गुमसुम।
सजे सुहागन तभी,
माँग भर जब हो कुमकुम।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[16/12 6:25 PM] सरला सिंह:
मां शारदे को नमन करते हुए
विषय पर एक लघु प्रयास----

दिनांक-16.12.19
दिन-सोमवार
विधा- कुण्डलिया
विषय-वेणी

वेणी बालों में सजी, सजी महावर पांव,
आंखों में कजरा लगा,चली पिया के गांव।
चली पिया के गांव,बजी मन में शहनाई।
बड़ी शुभघड़ी आज, मिलन की वेला आई।
कहती सरला बात , लगी घबराने गृहिणी।
लाल लाज से गाल, लगी खुलने जी वेणी।

डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली

दिनांक-16.12.19
दिन-सोमवार
विधा- कुण्डलिया
विषय-कुमकुम

 कुमकुम है माथे सजी, गाल पर है लाली,
 अंखियन में कजरा सजे, लगे भागों वाली।
 लगे भागों वाली,सजी द्वार पे रंगोली ।
 आंखों से हो बात ,करें सब हंसी ठिठोली।
कहती सरला आज, लगे कुछ गोरी गुमसुम।
पायल करे अवाज,दिखे मनभावन कुमकुम।।

डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
[16/12 6:25 PM] सरोज दुबे: कुमकुम --16-12-19

टीका कुमकुम की प्रथा, सदियों से ये रीत
कन्या को देवी समझ ,
रखें सदा ही प्रीत l
रखें सदा ही प्रीत, सभी के माथे सजता l
कहें शुभ का प्रतीक,
ईश ललाट में लगताl
कहती सुनो सरोज,
नहीं ये पड़ता फीका l
पूजा थाली संग, दिखे ही कुमकुम टीका ll

सरोज दुबे
🙏🙏
[16/12 6:26 PM] सरोज दुबे: वेणी --16-12-19

सजती वेणी से सदा
दुल्हन की है शान  ,
 बालों की शोभा बढ़े,
नारी की पहचान ll
नारी की पहचान,
खड़ी बालम को ताके
बनके सुन्दर नार,
केश में फूल  लगाकेll
कहती सुनो सरोज, सदा मंजुल सी लगतीl
नारी का श्रृंगार, 
 यही वेणी जब  सजती l

सरोज दुबे
🙏🙏
[16/12 6:27 PM] प्रतिभा प्रसाद: --- *कुंडलियाँ*
दिनांक ---- 16.12.19.....
विषय -----  *कुमकुम*

कुमकुम चिन्ह सुहाग है , यूँ शोभित लीलार ।
नारी भी सुंदर दिखे , आवे रुप ‌पे प्यार ‌।
आवे रुप पे प्यार , है सजना को रिझाना ।
छिड़कते नेह धार , कभी मन को समझाना ।
कह कुमकुम कविराय , रहना पड़ता न गुमसुम ।
दुलार की हो बात , पकड़ा देत हैं कुमकुम ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक   16.12.19.....

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[16/12 6:46 PM] अनंत पुरोहित: दिन - सोमवार 16.12.2019
विषय: वेणी, कुमकुम
विधा कुण्डलियाँ

1)
वेणी से नारी सजे, यह उसका श्रृंगार
सिर वेणी के बिन रहे, आधी ही हर नार
आधी ही हर नार, यही उसकी है शोभा
प्रेमी को ले खींच, माथ से निकली
आभा
कह अनंत कविराय, केश धर रूप सर्पिणी
प्रेमी का हिय मोह, सर्प सी लहरे वेणी

2)
कुमकुम से है शोभता, नारी तेरा माथ
बिनु कुमकुम टीका बिना, तेरी दशा अनाथ
तेरी दशा अनाथ, चिह्न सौभाग्य तिलक का
पति के मन को भाय, हेतु प्राणेश पुलक का
कह अनंत कविराय, चिह्न यह मत छोड़ो तुम
देशी यह संस्कार, माथ की शोभा कुमकुम

अनंत पुरोहित
सादर समीक्षार्थ
[16/12 6:48 PM] बोधन राम विनायक: कुण्डलियाँ लेखन-
दिनाँक - 16.12.19
दिन - सोमवार

*विषय - वेणी*

नारी  वेणी  से  सजे, पावन  है  श्रृंगार।
बाल कटाने की प्रथा, बंद करे संसार।।
बंद करे संसार,धर्म नहिँ  बाल कटाना।
नारी शोभित केश,रूप को सब है जाना।।
कहे विनायक राज,आज मत हो लाचारी।
गूँथे  वेणी  रोज, दिखे  सुंदरता  नारी।।

*विषय - कुमकुम*

कुमकुम रोली साथ में,सुन्दर लागे भाल।
नारी की है साज ये, छम्मक छल्लो चाल।।
छम्मक छल्लो चाल,देखते मन को भाती।
कुमकुम लाली माथ,नाज नखरा छलकाती।।
कहे विनायक राज,सजाना नारी को तुम।
स्वर्ग परी सी मान,लगे जब माथे कुमकुम।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[16/12 6:48 PM] रजनी रामदेव: (1)-वेणी
सखियाँ वेणी गूँथकर, करने लगीं शृंगार।
साजन अब बारात ले, आवो मेरे द्वार।।
आवो मेरे द्वार, मिलन की बेला आई।
द्वार चार की रीत, निभावें बाबुल भाई।।शहनाई की गूँज, सुनत भइ व्याकुल अखियाँ।
व्याकुलता को देख,छेड़ती मुझको सखियाँ।।

(2)-कुमकुम
चंदन कुमकुम आरती, बहन सजाती थाल।
भाई चिरायु हो सदा, टीका करती भाल।।
टीका करती भाल, विदा करती है सरहद।
भारत माँ के लाल , हिया करते हैं गदगद।।
प्रभु देना आशीष, जोड़ 'कर' करती वंदन।
अरि को देना मात, लगाती कुमकुम चंदन।।
                रजनी रामदेव
                   न्यू दिल्ली
[16/12 6:49 PM] केवरा यदु मीरा: कुंडलिया छंद

वेणी में गजरा सजा, गोरी सज धज आय ।
देख रहे हैं साजना, मंद मंद मुस्काय ।
मंद मंद मुस्काय, गोरिया है इतराती ।
चूड़ी कंगना हाथ, सजनिया है खनकाती ।
कहती मीरा आज, बड़ी प्यारी सी गृहणी ।
लगती परी समान, सजा कर गजरा वेणी ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[16/12 6:55 PM] घनेश्वरी देवांगन 'धरा': *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 16.12.19*

*कुण्डलियाँ (1)*

*विषय----------वेणी*

काली वेणी कामिनी,  चलती नागिन चाल ।
अपलक रूप निहारते , मोहन हुये निहाल ।।
मोहन हुये निहाल  ,  नैन देख के कजरिया ।
प्रभा मयी मुख ओज , लचकती जाय कमरिया ।।
मटक-मटक बल खाय ,झूमती जैसे डाली ।
भीनी सुरभित पुष्प ,सुसज्जित वेणी काली ।।


*कुण्डलियाँ (2)*

*विषय-----------कुमकुम*

बिटिया कुमकुम माथ की,दमके विश्व विशाल ।
धीरज धर के धारिणी ,करे जगत खुशहाल ।।
करे जगत खुशहाल ,  रहे नर पर वह भारी ।
ईश्वर का वरदान , सभ्य सौम्या संस्कारी  ।।
चहके आँगन द्वार , निराली माँ की चिङ़िया ।
करे धरा ये प्रश्न , परायी क्यूँ हैं बिटिया ?।


*रचनाकार का नाम--*

*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[16/12 7:03 PM] केवरा यदु मीरा: कुंडलिया छंद

कुमकुम माथे पर लगा,रचा महावर लाल ।
चलती है गजगामिनी,है मतवाली चाल ।
है मतवाली चाल, पिया के मन को भाती
करती नखरा नाज, जरा भी नहिं शरमाती।
कहते साजन आज, सजनिया प्यारी हो तुम ।
मेरे नाम की तुम, लगाती हो जी कुमकुम ।।

केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[16/12 7:06 PM] आदेश कुमार गुप्ता पंकज: कुण्डलियाँ शतक वीर कलम की सुगंध सम्मान -2019
दिनाँक *** 16/12/2019
आज की कुण्डलियाँ * वेणी
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वेणी गूँथी जतन से ,और लगाया फूल ।
मदमाती है झूमती ,बोले ऊल जलूल ।।
बोले ऊल जलूल ,शर्म नहिं आती उसको ।
नहीं रही है लाज ,बोलती उल्टा सबको ।।
करके गड़बड़ कृत्य ,गिराये अपनी श्रेणी ।
करती फिरती नाज ,बना के वो है वेणी ।।
***********************************
कुम कुम
**********************************
कुमकुम माथे पे सजा ,करे सुशोभित भाल ।
लगे प्रफुल्लित नार अब ,चमक रहें हैं गाल ।।
चमक रहेंं हैं गाल ,खुशी से नित्य झूमती ।
फूली नहीं समाय ,इधर से उधर घूमती ।।
कह पंकज कविराज ,पिया हर्षाय हर दम ।
महिला बारम्बार ,लगाती अपने कुम कुम ।।
***********************************
डाँ. आदेश कुमार पंकज
[16/12 7:06 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 16.12.19

कुण्डलियाँ (1)
विषय-वेणी
_________________________
महकी वेणी मोगरा,जूड़े सजती आज।
शरमाती गोरी चली,पायल देती साज।
पायल देती साज,पहन के कँगना हाथों।
भाँवर पड़ती आज,रही ले फेरे सातों।
कहती अनु सुन आज,खुशी से दुल्हन चहकी  ।
लाली मुख पे  लाल,लटों में वेणी महकी।

कुण्डलियाँ (2)
विषय-कुमकुम

गोरी बैठी पालकी,चली पिया के देस।
आँखों में कजरा लगा,पहने चूनर वेस।
पहने चूनर वेस,चमका माँग का टीका,
गजरा महका बाल,लगाए कुमकुम टीका।
छोटी थी कल देख,लली थी सुनती लोरी
चलदी वो ससुराल,विदा होकर के गोरी।

रचनाकार का नाम-अनुराधा चौहान
[16/12 7:16 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
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कुण्डलियां शतकवीर हेतु
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दिनांक-१६/१२/२०१९

कुण्डलियाँ    (1)
विषय - वेणी
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वेणी गजरे से सजी, चंचल सी मुस्कान।

कान्हा के उर में बसी,गोकुल की है शान।

गोकुल की है शान,सभी के मन को मोहे।

जैसे हीरक हार,रूप राधा का सोहे।

कहती 'अभि' निज बात,प्रेम की बहे त्रिवेणी।

दीप शिखा सी देह ,सजा के सुंदर वेणी।

कुण्डलियाँ (2)
विषय - कुमकुम

कुमकुम जैसी लालिमा,बिखरी है चहुं ओर।

जग जीवन चंचल हुआ,हुई सुनहरी भोर।

हुई सुनहरी भोर,सजे हैं बाग बगीचे।

जाग उठे खग वृंद,कौन अब आंखें मीचे।

कहती 'अभि' निज बात,रहो मत अब तुम गुमसुम।

सुखद नवेली भोर ,धरा पर बिखरा कुमकुम।

अभिलाषा चौहान
सादर समीक्षार्थ 🙏🌷
[16/12 7:25 PM] तोषन: ●●●●●कलम की सुगंध छंदशाला●●●●●
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            कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
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              दिनांक - 16.12.19
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              कुण्डलियाँ (1)
                विषय-वेणी

लाती मन मुस्कान ये,देख अजब श्रृंगार।।
वेणी है अभिन्न अंग,शोभित होती नार।
शोभित होती नार,खिले गजरा इठलाती।
मन को भाती साज,रूप यौवन मधुमाती।।
कह तोषन कविराज,शाम या पवन प्रभाती।
वेणी कैसी साज,सोच है हिय मे लाती ।।
★★★★★★★★★★★★★★★★
              कुण्डलियाँ (2)
              विषय-कुमकुम

कुमकुम से ही शान है,माने नारी आज।
शोभित नारी जिंदगी,नारी का है ताज।।
नारी का है ताज,मान है जग में पाता।
रहे सदा जो साथ,बलम से निर्मल नाता।।
कह तोषन कविराज,रहो कभी नहीं गुमसुम।
हे भारत की नार,माँथ सिरजाओ कुमकुम।।
★★★★★★★★★★★★★★★★
             रचनाकार का नाम
      तोषण कुमार चुरेन्द्र धनगंइहा
    डौंडी लोहारा बालोद, छत्तीसगढ़
[16/12 7:28 PM] विद्या भूषण मिश्र "ज़फ़र": **कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*सोमवार-- १६/१२/१९*
*१--वेणी--*
~~~~~~~~~~~~~~
सिंदूरी आभा लिए,  रक्तिम-कमल-कपाल।
वेणी नागिन के सदृश, माथे बिंदी लाल।
माथे बिंदी लाल,आँख में काजल सोहे।
मादक अधर अनूप, देख मानव मन मोहे।
कंचन वर्ण शरीर, परी सी लगती पूरी।
नर नारी सब मुग्ध, देख आभा सिंदूरी।।
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*२--कुमकुम--*
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रोली, कुमकुम भाल पर, माँग भरे सिंदूर।
कंचन वर्ण शरीर पर, आभूषण भरपूर।
आभूषण भरपूर, पहन कर लेती फेरे।
पति गृह बेटी जाय , सभी परिजन हैं घेरे।
बाबुल का घर छोड़ ,उठी बेटी की डोली।
दम दम दमके रूप, भाल पर चमके रोली।।
~~~~~~~~~~~~~
*--- विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तरप्रदेश।*

*सादर समीक्षार्थ एवं चयन हेतु🙏🏻🙏🏻*
[16/12 7:29 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 16.12.19

कुण्डलियाँ (1)

विषय- *वेणी*

सुंदर वेणी बाँध के, लेती केश सँवार।
गोरी तेरे रूप पर, साजन हैं बलिहार।।
साजन हैं बलिहार, चाल चलती मदमाती।
यह रेशम सी डोर, कमर तक तब लहराती।।
लटके इक लट माथ, झूमती गालों ऊपर।
गोरी लगे कमाल, बाँध के वेणी सुंदर ।।


कुण्डलियाँ (2)

विषय- *कुमकुम*

कुमकुम लगती माथ जब, पूरा हो शृंगार।
बढ़ जाता सौन्दर्य है, जैसे गुणित हजार।।
जैसे गुणित हजार, रूप है और निखरता।
जैसे नभ पे चाँद, हृदय को शीतल करता।।
ले हाथों में हाथ, संग ज्यों चलते हमतुम।
देती प्यार मिठास, भाल पर सजती कुमकुम ।।



रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[16/12 7:32 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला

*कुण्डलिया शतकवीर हेतु*


दिनांक-  16/12/19

कुण्डलियाँ-: (1)
विषय -  *वेणी*
         
लचके जब बाली कमर, वेणी होय निहाल।
दिल पर करती वार है, चलती हिरनी चाल।।
चलती हिरनी चाल, अंग पर हल्के झटके ।
करे नयन से कैद, रहे क्षण भर हिय अटके ।।
सुवासिता तुम आज, नजर से रहना बचके ।
भँवरे हों बेचैन, कमर जब देती लचके।।

कुण्डलियाँ -: (२)
  विषय- *कुमकुम*

देखा कुमकुम का तिलक ,वीर सिपाही भाल।
शस्त्र उठा आगे बढा , वो कालो का काल।।
वो कालो का काल, बहुत ही चौडा सीना ।
हाथ लिए तलवार, शत्रु का छुटे  पसीना ।।
सुवासिता तुम आज, मिटा दो बंधन रेखा ।
शौर्य वंश का लाल, नही है इन सा देखा ।।

🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[16/12 7:38 PM] शिवकुमारी शिवहरे: वेणी
वेणी फूलों से सजी, करने लगी श्रृंगार।
लाल चुनरिया ओढ़ ली,चली पिया के द्वार।
चली पिया के द्वार,  उठी है घर से डोली।
छूट गया घर बार,  सभी छूटी  हमजोली।
कर सोलह श्रृंगार, लगे है कितनी सोणी।
 पहना गले मे हार, लगी है सुंदर वेणी।

   ..शिवकुमारी शिवहरे
[16/12 7:47 PM] डा. कमल वर्मा: कुंडलियाँ।
विषय_🌹वेणी🌹

काली वेणी साप सी,कमर बीच लटकाय।
झूले जैसे नाग हों,दिल में लिपटी जाय।
दिल में लिपटी जाय,मुझे करती दीवाना।
रुन झुन चलती नार,नैन में तूं बस जाना।
कहे कमल ये केश, नार  का सुख है आली।
सुंदर पहनी वेश,सजे है वेणी काली।
डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[16/12 7:52 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
*कलम की सुगंध छंदशाला*
(कुण्डलिया शतकवीर हेतु)
दिनांक..  16.12.2019


कुण्डलिया १
विषय.. वेणी

मिलती  संगम में  सरित, कहें  त्रिवेणी धाम!
तीन  भाग  कर  गूँथ लें, कुंतल  वेणी  बाम!
कुंतल   वेणी   बाम, सजाए   नारि  सयानी!
नागिन  सी  लहराय, देख  मन चले जवानी!
कहे लाल  कविराय, नारि  इठलाती  चलती!
कटि पर वेणी साज, धरा पर सरिता मिलती!

कुण्डलिया २
विषय... कुमकुम

माता   पूजित  भारती , अपना  हिन्दुस्तान!
समर क्षेत्र पूजित सभी, उनको तीरथ मान!
उनको तीरथ  मान, देश हित शीश चढ़ाया!
धरा रंग  कर लाल, मात  का  मान बढ़ाया!
शर्मा  बाबू लाल , भाल पर तिलक लगाता!
रजकण कुमकुम मान, पूजता भारत माता!

✍,©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[16/12 7:54 PM] सुकमोती चौहान: कुंडलियाँ
2)कुमकुम।
लाली कुमकुम की सदा,चमकें मेरे माथ।
दो मुझको आशीष माँ,सिर पर रखकर हाथ।       

सिर पर रख कर हाथ,साथ यह कभी न छूटें।
सत्य यही वरदान,बचे सब सपने खोटे।
 कहें कमल कर जोड़,बनूं मैं भाग्यों वाली।
भर दो झोली मात,रहें कुमकुम की लाली।
 डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[16/12 8:00 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कुण्डलियाँ


            1 .  *वेणी*

गंगे उतरी स्वर्ग से,पवन वेग की धार।
शिव वेणी से रोकते,धरे वृहद आकार।
धरे वृहद आकार,हलाहल पीये ऐसे।
छोटे छोटे बाल,दूध पीते हैं जैसे।
कहती रुचि करजोड़,भभूती जिनके अंगे।
नमन करूँ शत् बार,जटाधारी जय गंगे।


                2  *कुमकुम*

गौरी पूजन के लिए,चली जानकी माय।
चुनरी कुमकुम चूड़ियाँ,सीता मातु चढ़ाय।
सीता मातु चढ़ाय,बसाये मन में रामा।
माँग रही वरदान,होय पूरण मन कामा।
कहती रुचि करजोड़,शीश पर सोहै मौरी।
राम सीय का लग्न,पधारे गौरा गौरी।


✍सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[16/12 8:14 PM] डॉ मीना कौशल: वेणी सोहै शीश पर ,सुमुखि सुलोचनि नारि।
मुखमण्डल आभा सुखद,लालन वंदन निहारि।।
लालन वंदन निहारि, सदा सुख शोभित नारी।
सबके सुख में सुखी,रहे नारी बेचारी।।
गंगा यमुना सरस्वती,है अक्षि त्रिवेणी।
शोभा निरखि निहाल,सुखद कटि तट है वेणी।।



कुमकुम छवि मस्तक सजे,भाग्यवती पहचान।
पूजा में रोली परम,सुखदायक गुणगान।सुखदायक गुणगान ,ध्यान चन्दन शुभ वंदन।
खुश होते भगवान ,श्रीहरि यशुदानन्दन।।
अक्षत रोली बिन्दु सुखद,है सुखमय संगम।
माथे पर से सदा,सुवासित रोती कुमकुम।।
डा‌‌ मीना कौशल
[16/12 8:24 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 16.12.19

कुण्डलिया(1)
विषय- वेणी
==========

जैसे   वेणी  को   लखा, नाच  उठा   मन  मोर I
सुमन सुगन्धित भा रहे, अनुपम पिय चितचोर Il
अनुपम  पिय  चितचोर, निखारा  रूप सलोना l
लहराती   कटि   पास, लगे   मत   जादू  टोना ll
कह    'माधव   कविराय', बचेगा  कोई     कैसे l
दर्शक   सब   बेहाल, किया  हो   मोहित  जैसे Il

कुण्डलिया (2)
विषय- कुमकुम
============

कुमकुम मस्तक में लगा, सुन्दर सुभग निशान l
बाबा     बनकर     घूमते, माँगें  दाल  पिसान ll
माँगे    दाल   पिसान, नहीं   खाते  हैं  इसको l
बेंचें  किसी दुकान, भला मालुम मत किसको ll
कह 'माधव कविराय', रहोगे कब तक गुमसुम I
धूल  झोंकते  आँख, लगा मस्तक में कुमकुम Il

रचनाकार का नाम-
      सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                  महोबा (उ.प्र.)
[16/12 8:26 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कुंड़लिया शतकवीर हेतु सादर

 *कुंड़लिया छंद-(1)वेणी*

चुनरी सरकत शीश से,बिखरत सर के बाल।
वेणी को धर खींचता,नटखट चंचल  लाल।
नटखट  चंचल लाल,लाल की हँसी  ठिठोली ।
तुतले तुतले बोल,निहारें माता भोली।
कहती मधुर विचार,तोतरी वाणी सुनरी।
लेत बलैया मात,सवाँरी सरकत चुनरी।

         *(2)कुमकुम*

लाली कुमकुम है सदा,तिय माथे की साज।
रंगत बाढ़े सौ गुना,बाढ़े मुख पे लाज।
बाढ़े मुख पे लाज,पिया को लागे प्यारी।
नारी का श्रृंगार, लगाये बेंदी न्यारी।
कहे मधुर मति मंद,सुहागन भागों  वाली।
अटल रहे सौभाग्य, माँग की कुमकुम  लाली।

मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
सादर समीक्षार्थ
[16/12 8:43 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 16.12.19

कुण्डलियाँ (1)
विषय- वेणी



गेसू में वेणी सजे, हाथों में हथफूल।
गल बिच सोहे नौलखा,कोई चुभे न शूल।
कोई चुभे न शूल,कि लाडो तू खुश रहना।
देती ये आशीष,यही है मेरा कहना। 
कहती अनु ये आज,सजे सिर वेणी टेसू।
रूप सलोना खूब, सजे वेणी से गेसू।।


कुण्डलियाँ (2)
विषय- कुमकुम


कुमकुम टीका माँग में,गल बिच नौसर हार।
रुनझुन पायलिया बजे,भोली भाली नार।
भोली भाली नार, हमारे मन है भाई।
रखती सबका ध्यान,बहू जबसे घर आई। 
कहती अनु ये आज,लगे मुख कितना नीका 
कुलवधु गुण की खान,सजे ये कुमकुम टीका



रचनाकार का नाम- अनुपमा अग्रवाल
[16/12 8:45 PM] यशवंत यश सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 16.12.19

कुण्डलियाँ (1)
विषय- वेणी

बालों में वेणी सजी,दुल्हन कर श्रृंगार ।
चकवा चंदा ताकते,पिया मिलन दीदार ।।
पिया मिलन दीदार, फूल मत मुरझा जाए।
बिखरे खुश्बू पुष्प, चहुँओर फिर महका जाए।।
कहे सूर्य यशवंत, दमकते गुलाब गालों।
भौंरे भ्रमणे भोर,शीश पर वेणी बालों।।



कुण्डलियाँ (2)
विषय- कुमकुम

मस्तक कुमकुम है सजा,शादी की पहचान ।
सुना पड़ा है माथ जो,कन्या विधवा मान।।
कन्या विधवा मान,सदा अरमान सजाये ।
मिटने कुमकुम मांग ,नारी सदैव बचाये ।।
कहे सूर्य यशवंत, कलम में स्याही दस्तक ।।
ब्याही नारी भाल,सजी है कुमकुम मस्तक।।





रचनाकार का नाम-
[16/12 8:48 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक-16:12:19

कुण्डलिया (1)
विषय- वेणी



गूँथी वेणी नार ने, सेंदुर लिया लगाय। माथे पर बेंदी सजी, रूप निखर रह जाए।
रूप निखर रह जाए,  सजे हैं सुंदर गहने।
झिलमिल झिलमिल होय,नार साड़ी जो पहने।
रूप न बरनो जाय, सजी मुस्कान अनूठी।
जिया ले गई खींच,गजब की वेणी गूँथी।



कुण्डलिया (2)
विषय- कुमकुम


नारी का श्रृंगार है, ये कुमकुम अनमोल।
सब सज्जा फीकी पड़े,रूप तराजू  तोल।
रूप तराजू तोल, पिया की यही निशानी।
सजा लिया ये माथ, बनी राजा की रानी।
उड़ी अधर से हँसी ,करे क्या पायल  भारी।
लगे अधूरा रूप, बिना प्रियतम के नारी।



रचनाकार का नाम-आशा शुक्ला
[16/12 8:59 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*

विषय  *वेणी*
दिनांक  16.12.19......

(01)              *वेणी*

वेणी नागिन सी लगे , भुइयां लोटे केस ।
कान्हा का मन‌ बावरा , धरे राधा का भेस ।
धरे राधा का भेस , मिलेंगी राधा रानी ।
चतुराई व दर्शन ,  कान्हा भरेंगे पानी ।
कह कुमकुम करजोरि , राधा से नेह है लेनी ।
माधव की है प्रीत , खिचे राधा की ‌वेणी ।।



(02)             *कुमकुम*

कुमकुम चिन्ह सुहाग है , ज्यों शोभित लीलार ।
नारी भी सुंदर दिखे , रुप ‌पे आवै प्यार ‌।
रुप पे आवै प्यार , है सजना को रिझाना ।
छिड़कते नेह स्नेह , कभी मन को समझाना ।
कह कुमकुम कविराय , रहना पड़े हाँ गुमसुम ।
हो पावन पुण्य प्रीत  , पकड़ा देत हैं कुमकुम ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक   16.12.19.....

___________________________________
[16/12 9:02 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: 🙏प्रथम प्रयास🙏
कुंडलीयाँ .............वेणी
★★★★★★★★★★★★★★★★★
वेणी सुंदर लग रही,नारी का श्रृंगार।
उसकी शोभा जब बढे,गूँथे फूलों हार।
गूँथे फूलो हार,लगती कितनी मनोहर।
लहराये कमर पर,बनती किसकी सहोदर।
नारी श्रृंगार कर,लगी मूरत की मंदर।
सोलह श्रृंगार कर,लग रही वेणी सुंदर।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
[16/12 9:07 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु एक प्रयास

दिनांक - 16.12.19

कुण्डलियाँ (1)
विषय- वेणी

वेणी प्यारी सी बने, यदि हो लंबे बाल।
 नागिन जैसी लग रही, गोरी की तो चाल।।
 गोरी की तो चाल, लगे हैं सबको प्यारी।
 रानी बनकर राज, करे हर घर में नारी ।
कह राधे गोपाल, प्रथम नारी की श्रेणी।
 नारी की है शान, बनी बालों की वेणी।


कुंडलीयाँ  (2)
विषय- कुमकुम

 कुमकुम भर के माँग में, नार करे श्रृंगार ।
फेरे लेकर सात वो, आती पिय के द्वार।
 आती पिय के द्वार, विदाई करती माता।
 वर जी आए द्वार, बदलता भाई छाता।।
 कह राधे गोपाल, पिता जी क्यों है गुमसुम।
 नारी का श्रृंगार, सदा से ही है कुमकुम।


रचनाकार का नाम-राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[16/12 9:07 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 16.12.19
कुण्डलिया (1)
विषय - वेणी
***************************
रानी माँ को भा रही ,
                अद्भुत मुक्ताहार ।
सुरभित फूलों से हुई ,
                 वेणी का श्रृंगार ।
वेणी का श्रृंगार ,
         सजे है लाली कुमकुम ।
कंगन बिंदी खूब ,
          बजे है पायल छुमछुम ।
भक्त करे मनुहार ,
                रीझती है वरदानी ।
देती है आशीष ,
                हमारी माता रानी ।।

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कुण्डलियाँ (2)
विषय - कुमकुम
***************************
कुमकुम हल्दी से सजी ,
             बनी सुहागन नार ।
भाग्य चिन्ह यह पाय के ,
         खुशियाँ मिली अपार ।
खुशियाँ मिली अपार ,
          यही है उसका गहना ।
सुख दुख जो भी आय ,
       साथ प्रियतम के सहना ।
जन्म मरण का संग ,
          कहे ये पायल छुमछुम ।
हर नारी की आस ,
       यही हल्दी अरु कुमकुम ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू"साँची"✍️
     भाटापारा( छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★
[16/12 9:17 PM] कमल: नमन
कुंडलियॉ
16.12.2019

1-वेणी

कजरारी वेणी गुॅथी,लगती नागिन काल।
नाग देवता खोजती,हो -हो हिया निहाल।
हो-हो हिया निहाल,मिलन को अँखियॉ तरसें।
ताल तलैया एक,नेह की नदियॉ बरसें।
कहे कमल कविराज,सजन की सजना प्यारी।
हर पल रहती साथ,लिए वेणी कजरारी।

2-कुमकुम

कुमकुम बिंदी माथ पर,सोहे गजरा बाल।
ओंठ गुलाबी खुल गये,साजन भये निहाल।
साजन भये निहाल,गोद में हाल उठाया।
लूट लिया श्रृंगार,सुहागन को है भाया।
कहे कमल कविराज,जगी मदहोशी निंदी।
सजनी का सौभाग्य,सजी जो कुमकुम बिंदी।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
        16.12.2019.
🌹👏🌹🌹👏🌹🌹




वेणी 53
[16/12 9:18 PM] आरती श्रीवास्तव: कुमकुम सजी है माथे पर,केशु लटके मुख नार
बाबुल के घर छोड़ चली,पिया मिलन की आस।
पिता मिलन की आस,देखो शुभ घड़ी आई।
माँ-बाप कहते यही,बेटी हुई पराई।
खुशहाल रहे सदा ये, दुःख में रहे न गुम।
सदा सुहागन ये रहे,रहे माथे कुमकुम।

सादर समीक्षार्थ-आरती श्रीवास्तव


[16/12 9:41 PM] रवि रश्मि अनुभूति:

  कुण्डलिया छंद
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1 ) वेणी ---
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वेणी बालों की सजी , बिंदिया सजती माथ ।
नथनी सजती नाक में , शोभित कुंडल साथ ।।
शोभित कुंडल साथ , रूप दिखता है प्यारा ।
रूप तो अब सुहाय , निखरे श्रृंगार न्यारा ।।
लगती देखो आज , दुल्हन की उच्च श्रेणी ।
उसकी है यह लाज , सजी बालों की वाणी ।।


कुण्डलिया छंद ---
*****************
2 ) कुमकुम ---
**************
नारी सुंदर ही दिखे , कुमकुम दिखे लगाय ।
रूप सुहाना ही सजे , नारी निरखत जाय ।।
नारी निरखत जाय , रूप सिंगार है भाता ।
कोरा लगता माथ , जब तक न यह लग जाता ।।
लगती खिलती नार , सुहाग की प्रीत  प्यारी ।
कुमकुम माथे धार , दिखे ही सुंदर नारी ।।

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
मुंबई ( महाराष्ट्र )
16.12.2019 , 7:50 पीएम पर रचित ।
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[16/12 9:41 PM] गीतांजलि अनकही: सादर समीक्षार्थ
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आज की कुण्डलिया
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*वेणी*

सागर के तट रुक्मिणी, जोह रही प्रभु की बाट।
स्वर्ण कली की खोज में, गए द्वारिका हाट॥
गए द्वारिका हाट, गिरीधर नागर नटवर।
रानी का सिंगार, करना आज है निज कर॥
वेणी कलियाँ गूँथ, करेंगे नेह उजागर।
सके न कोई रोक, प्रेम प्रबल का सागर॥
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*कुमकुम*

कुमकुम भर कर माँग में, चली सुहागन नार।
साजन का मन मोहने, कर सोलह सिंगार॥
कर सोलह सिंगार, वसन आभूषण नव चुन।
अंग अंग में प्रीत, सपने सुंदर नयन बुन॥
धर कर मन में धीर, जाना कहती सखी सुन।
कहे अनकही बात, माँग तेरी का कुमकुम॥
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गीतांजलि ‘अनकही’
[16/12 9:44 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:-

*वेणी*

नदियों का संगम जहां, वह वेणी कहलाय।
वह निर्मल जल धार ही , सबकी प्यास बुझाय।
सबकी प्यास बुझाय, वही है आज प्रदूषित।
सब कुछ है प्रत्यक्ष, समस्या ये अनुसूचित।
रखना होगा स्वच्छ, सदा जल धार विहंगम।
प्रकृति रहे अक्षुण्ण, जहां होता है संगम।।

*कुमकुम*

कुमकुम है गहना तिलक, इसका गजब महत्व।
उर्जित करने माथ को,इसमें संचित तत्व।
इसमें संचित तत्व,तंतुकी पुष्ट बनाते।
भरने अपनी मांग, सुहागन सब अपनाते।
खिले रूप सौंदर्य, सुघड़ दिखतीं मां बहना।
सजती रहे कपाल,तिलक  कुमकुम है गहना।।
महेंद्र कुमार बघेल

[16/12 9:55 PM] अमित साहू: *कुण्डिलयाँ शतकवीर*
दिनाँक 16/12/2019
1- वेणी (चोटी)
बिखरे वेणी यूँ लगे, घिरे घटा घनघोर।
निहारता अपलक पिया, जैसे चंद चकोर।।
जैसे चंद चकोर, देख सजना बौराता।
हृदय समाकर रूप, प्रेम का दीप जलाता।।
सजन भरे जब बाँह, तभी तो सजनी निखरे।
नागिन सी बलखाय, वेणिका जब-जब बिखरे।।
2-कुमकुम
पूरी होती कामना, शुभ फल मिले हजार।
सदा सुहागन चाहती, सोलह मन श्रृंगार।।
सोलह मन श्रृंगार, बिंदिया कुमकुम गहनें।
चूड़ी कंगन हार, सुशोभित सबकुछ पहनें।।
कहे 'अमित' कविराज, प्रीति बिन नार अधूरी।
चुटकी भर सिंदूर, कामना करती पूरी।।
कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़

[16/12 9:56 PM] नीतू ठाकुर: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 16.12.19*

*कुण्डलियाँ (1)*
*विषय :- वेणी*

ओढ़े घूँघट लाज का , कर सोलह श्रृंगार।
बालों में वेणी सजा, चली ठुमकती नार।।
चली ठुमकती नार, लगे है सबसे हटके।
देख गजब की चाल, बाँवरा मन ये भटके।।
चंद्रमुखी सा रूप, बांध हिय का जब तोड़े।
ताकें नयन हजार, मौन की चादर ओढ़े।।

*कुण्डलियाँ (2)*
*विषय :- कुमकुम*

कुमकुम सजते मांग में,बदले भाग्य लकीर।
सावित्री की भूमिका, निभा रही है हीर।।
निभा रही है हीर, गली में रांझा भटके।
पकड़ा जाए रोज, पुलिस के खाये फटके।।
ऐसे फूटे भाग्य, न बाजे पायल छुमछुम।
बहे नयन से नीर, लगाया जब से कुमकुम।।

*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर संकलन सर जी

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  2. सुंदर रचनाएँ ...सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई 💐💐💐

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  3. सुंदर संकलन 👌👌

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  4. शानदार कुण्डलियाँ......
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।

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  5. बहुय सुंदर और सराहनीय प्रयास है साहित्य की इन विधाओं को जीवन दान देने का बहुत शुभकामनाएं मेरी स्वीकार करें।

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