[22/12 6:03 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: कलम की सुगंध छंदशाला
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~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 22.12.19
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *चूड़ी*
नारी पर हँसते कहे, चूड़ी वाले हाथ।
जाने क्यों जन भूलते,विपदा में तिय साथ।
विपदा में तिय साथ, लड़ी थी वह मर्दानी।
लक्ष्मी पद्मा मान, गुमानी हाड़ी रानी।
शर्मा बाबू लाल, नारियाँ बने दुधारी।
कर्तव्यों के बंध, पहनती चूड़ी नारी।
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *झुमका*
झुमका लटके कान में, बौर आम ज्यों डाल।
गहनों के परिवेश में, झुमके रहे कमाल।
झुमके रहे कमाल,गीत कवि जिन पर गाता।
कभी बीच बाजार, कहीं झुमका गिर जाता।
कहे लाल कविराय, नृत्य में जैसे ठुमका।
नारी के शृंगार, अजब है गहना झुमका।
रचनाकार ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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[22/12 6:04 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 22:12:19कुंडलियाँ
1:झुमका:
सोहे झुमका कान में,
पायल शोभित पाँव।
गोरी छन छन जब चले
निरखे पूरा गाँव।।
निरखे पूरा गाँव, है जिसके चंदन गात।
रूप सलोना देख,मनोज रति जलि जलि जात।।
खेलत कुंतल संग ,लगावे पल पल ठुमका
हौले चूम कपोल ,कान में शोभे झुमका।।
2:चूड़ी:
चूड़ी पहने राधिका,
केशव रही रिझाय ।
देख मनोहर कांति को,
श्रीराधे शरमाय।।
श्रीराधे शरमाय,कभी जल में छवि निरखे
कृष्ण की बंसी सुन,राधिका का हिय हरखे।।
संग बांसुरी कृष्ण,लगे सब रूप निरखने । प्रेम मूरत रम्या , रिझाती चूड़ी पहने।।
21:12:19 कुंडलियाँ
कजरा:
आँखों में कजरा लगा,
पिया मिलन को जात।।
प्रीत मगन अभिसारिका,
मन ही मन मुसकात।
पिया मिलन को जात,महावर पाँव लगाए।
बिंदी चूड़ी पहन,नवेले स्वप्न सजाए।।
सखे सुधा खुश आज,सजन तेरा लाखों में
सदा रहे सम्पन्न , खुशी चमके आँखों में।।
2:आँचल
माँ के आँचल सा सखी
जग में वसन न कोय।
ममता ऐसे है बहे,
बहता जैसे तोय।
बहता जैसे तोय, शिशु की वेदना हरती।
बालक रहे प्रसन्न,सदैव प्रार्थना करती।।
कहे सुधा रख ध्यान,समीप पीड़ा न झाँके।
सुखी रहे सदा माँ,पास रहना तुम माँ के।।
समीक्षार्थ
सुधा सिंह
[22/12 6:04 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच कलम की सुगंधशाला
22/12/19
कुंडलिया शतकवीर हेतु
***
चूड़ी
खनखन करती शोर जो,लगती सरगम राग।
प्रेम मिलन की साक्ष्य ये ,चूड़ी चिन्ह सुहाग।।
चूड़ी चिन्ह सुहाग,सदा हाथों में सजती ।
हैं रँग बिरँगी लाल, खुशी जीवन में भरती।।
प्रीतम हैं जब साथ ,बजे पायल भी छनछन ।
बाहों का है हार ,सुने साजन जी खनखन ।।
झुमका
रूठी रूठी वो रहीं ,पिया करें मनुहार ।
आँसू सजनी आँख में,झुमके की है रार ।।
झुमके की है रार,कहो तुम मन की बातें ।
देख तुम्हारा हाल ,कटे नहि मेरी रातें ।।
तुमको क्या है पीर ,करो नहि बातें झूठी।
झुमका दो उपहार,रहूँ मैं तब क्यों रूठी।।
अनिता सुधीर
लखनऊ
[22/12 6:09 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 22.12.19.
(11) चूड़ी
रंग-बिरंगी चूड़ियाँ,नीला-पीला लाल।
चूड़ी हाथों सोहती, बिन्दी सोहे भाल।।
बिन्दी सोहे भाल,जताती प्रेम कहानी।
अमर सुहागिन हाथ,लिए हैं यही निशानी।।
कहे विनायक राज,चमकती है सतरंगी।
दुल्हन का श्रृंगार,चूड़ियाँ रंग-बिरंगी।।
(12) झुमका
नारी का श्रृंगार ये, झुमका सोहे कान।
सुन्दर बदन गुलाब सी,होठों पर मुस्कान।।
होठों पर मुस्कान,लिए झुमका झनकाती।
पायल की झंकार, सुरीली मन को भाती।
कहे विनायक राज, सुनो बातें हितकारी।
पहनादो इक बार,साथियों झुमका नारी।।
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[22/12 6:12 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंदशाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
22/12/19
*(1)*चूड़ी **
गोरी पहने चूड़ियाँ, हाथो का श्रृंगार ।
लाल हरी भाए सभी,खनके जब घर द्वार ।
खनके जब घर द्वार,सामने आए सजना।
जिया चैन सब खोय,वारती सबकुछ अपना।
कहे मधुर दो बोल,करे नाही बरजोरी।
चूड़ी बिन्दी आन,साँवरे की है गोरी।
*(2)झुमका*
नैना लड़ते चार जब,भाय साज श्रृंगार ।
सजधज मिलने आय हे,खनके चूड़ी चार।
खनके चूड़ी चार,खनन खन कानो झुमका।
झुमका हिया डुलाय,लगाये गोरी ठुमका ।
हँसी मधुर सी फूल,चुरा ले झुमका चैना।
कजरा लागे बाण,झूलता झुमका नैना ।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[22/12 6:14 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
22/12/19
11 चूड़ी
चूड़ी पहनू कांच की , हरी लाल सतरंग ,
फागुन आया ओ सखी,ढ़ेर बजे है चंग,
ढ़ेर बजे है चंग , नशा सा देखो छाया,
फाल्गुन का ये मास ,नया पराग ले आया
साजन आना आज , खिलाउं हलवा पूड़ी
छनकी पायल पैर , हाथ में छनके चूड़ी।।
12 झुमका
डाली पत्र विहीन है , पलास सजे पादप ,
लगे सुगढ़ स्वर्ण झुमका, विपिन के ये पुष्पद
विपिन के ये पुष्पद , बिछे धरणी पर ऐसे ,
गूँथें तारे चाँद ,परी के आँचल जैसे ,
मोहक सुंदर रूप , सजी बगिया बिन माली,
बिछे धरा पर पूंज ,सुनहरी चादर डाली।
कुसुम कोठारी
[22/12 6:23 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 22/12/2019
कुण्डलिया (11)
विषय- चूड़ी
===========
चूड़ी तेरे नाम की, पहनूँ भर - भर बाँह I
तुमसे ही श्रृंगार सब, दिल में प्यार अथाँह ll
दिल में प्यार अथाँह, सदा अनुकूल रहे रब l
गह लेना मम हाथ, कदम डगमग हों जब- जब ll
कह 'माधव कविराय', पकाऊँ भोजन पूड़ी l
तेरी करें पुकार, छनन छन बजकर चूड़ी ll
कुण्डलियाँ (12)
विषय- झुमका
===========
झुमका तेरे साख की, कहते कथा कपोल I
दोलन गति करता हुआ, चुम्बन ले अनमोल ll
चुम्बन ले अनमोल, प्रथम अधिकार जमाये l
जिसने किया विवाह, नहीं वह मौका पाये ll
कह 'माधव कविराय', लगाये गोरी ठुमका l
पौ बारह तत्काल, लहरियाँ लेता झुमका ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[22/12 6:25 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*22/12/2019*
*दिन - रविवार*
*विषय -चूड़ी*
*11-चूड़ी*
पहने हाथों में सखी,देखो चूड़ी आज ।
लाल हरी अरु बैंगनी, रही हाथ में बाज।
रही हाथ में बाज, सभी के मन को भाता।
भाती कंगन बीच, करे धुन मधुर सुहाता।
कहती सरला बात, चली वह पहने गहने।
लगती सुंदर आज, बड़ी वह जेवर पहने।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*22/12/2019*
*दिन -रविवार*
*विषय -झुमका*
*12-झुमका*
कानों का झुमका बना, सवा लाख के मोल,
रत्नों से लटकन बनी,सके न कोई तोल।
सके न कोई तोल, बढ़ी राधे की शोभा।
चमके तड़ित समान,हटे मन का क्षोभा।
सरला कहती बात,बड़ा मधु पल ये जानों।
लगता मनहर आज,झूम राधा के कानों।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[22/12 6:28 PM] कृष्ण मोहन निगम: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर प्रतियोगिता
दिनाँक22/12/2019
11 *चूड़ी*
चूड़ी सुंदर काँच की , बोले अनुपम बोल ।
स्वर खन -खन का कान में, दे मिश्री सा घोल।
दे मिश्री सा घोल, नारियों का शुभ गहना ।
पाए पति आयुष्य , यही बस इनका कहना ।
'निगम' बनाए नारि , पराठा पू आ पूड़ी ।
छेड़े तब संगीत , हाथ की चंचल चूड़ी ।।
12 *झुमका*
झुमका झूमें कान पर , अनुपमेय द्युति - कांति ।
भावों में शुभ सौम्यता , मुख मंडल में शांति ।।
मुख मंडल में शांति , कर्ण आभूषण प्यारे ।
मोहे बारम्बार , झूलते लगते न्यारे ।
कहे "निगम" कविराज , लगाए गोरी ठुमका।
लगे नाचने तुरत , कान पर लटका झुमका ।
कलम से
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर)
[22/12 6:37 PM] मीना भट्ट जबलपुर: चूडी़
पहनी चूड़ी हाथ में,किया देख शृंगार।
चली पिया से मिलन को,पहने नौलखा हार।।
पहने नौलखा हार ,बडी मुस्काती प्यारी।
बैंदी चमके माथ,सजी सजनी तो न्यारी।।
मीना कहती आज,मिली चंदा से रजनी।
पता नह़ीं क्या राज,हाथ में चूड़ी पहनी।।
मीना भट्ट
[22/12 6:41 PM] डॉ मीना कौशल: चूड़ी चंचल हाथ में,शुभमय सुन्दर कान्ति।
खनन खनन खन बाजती,रहे कहाँ वो शान्ति।
रहे कहाँ वो शान्ति,झूमकी कंगन के सँग।
भाँति-भाँति कचनार,सुहाते चूड़ी के रँग।।
सुबह खनकते शाम ,बनाते हलुआ पूड़ी।
बनी रहे सौभाग्य,सुहागन की ये चूड़ी।।
झुमका
झुमका झूमे कर्ण में,मुखमण्डल हर्षाय।
है सौभाग्य प्रतीक ये,लोचन सुखद सुहाय।।
लोचन सुखद सुहाय,बढ़े नारी की शोभा।
मधुप सुमन मकरन्द,भ्रमर इव मानस लोभा।।
करें नृत्य सुखपाय,कर्णप्रिय चंचल ठुमका।
आभा बरनि न जाय,नाचते हैं जब झुमका।।
डा.मीना कौशल
[22/12 6:41 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
22/12?2019::रविवार
चूड़ी
ललिता राधा से कहें, मानो बात हमार।
ये जो चूड़ी बेचता, लगे नहीं मनिहार।।
लगे नहीं मनिहार, लगे ये श्याम सलोना।
जिसकी आमद जान, महकता है हर कोना।।
प्रकृति रही मुस्काय,सुनाती वो भी कविता।
रूप बदल कर श्याम, आ गया कहतीं ललिता।।
(2)--झुमका-
झुमका सजा दुकान में, गोरी रही निहार।
मचल-मचल करने लगी, मीठा सा मनुहार।।
मीठा सा मनुहार, दिला दो मुझको सजना।
कर सोलह श्रृंगार,चाहती रोज़ सँवरना।।
पग में नूपुर बाँध,लगाऊँगी मैं ठुमका।
सजे कण्ठ में हार, कर्ण में प्यारा झुमका।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[22/12 6:44 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच कलम की सुगंधशाला
22/12/19
कुंडलिया शतकवीर हेतु
***
चूड़ी
खनखन करती शोर जो,लगती सरगम राग।
प्रेम मिलन की साक्ष्य ये ,चूड़ी चिन्ह सुहाग।।
चूड़ी चिन्ह सुहाग,सदा हाथों में सजती ।
हैं रँग बिरँगी लाल, खुशी जीवन में भरती।।
प्रीतम हैं जब साथ ,बजे पायल भी छनछन ।
बाहों का है हार ,सुने साजन जी खनखन ।।
झुमका
रूठी रूठी वो रहीं ,पिया करें मनुहार ।
आँसू सजनी आँख में,झुमके की है रार ।।
झुमके की है रार,कहो तुम मन की बातें ।
देख तुम्हारा हाल ,कटे नहि मेरी रातें ।।
तुमको क्या है पीर ,करो नहि बातें झूठी।
झुमका दो उपहार,रहूँ मैं तब क्यों रूठी।।
पायल
पायल की झंकार तुम,करती दिल पर राज ।
बेटी तुमसे ही सजें ,....सबके मन के साज ।।
सबके मन के साज,तुम्हीं शोभा आंगन की ।
दो कुल की है लाज,बहे नदिया पावन सी ।।
इन्हें मिले अधिकार ,नहीं हो अब ये घायल।
पल पल ये मुस्काय ,सदा बजती हो पायल।।
अनिता सुधीर
लखनऊ
[22/12 6:45 PM] मीना भट्ट जबलपुर: चूडी़
पहनी चूड़ी हाथ में,किया देख शृंगार।
चली पिया से मिलन को,पहने नौलखा हार।।
पहने नौलखा हार ,बडी मुस्काती प्यारी।
बैंदी चमके माथ,सजी सजनी तो न्यारी।।
मीना कहती आज,मिली चंदा से रजनी।
पता नह़ीं क्या राज,हाथ में चूड़ी पहनी।।
मीना भट्ट
झुमका पहने कान में,कंगन सोहे हाथ।
सज धज कर गोरी चली,देख पिया के साथ।।
देख पिया के साथ,संग सौगातें लाई।
सखियाँ छूटी आज,बाबुल की याद आई।।
कहती गोरी आज,लगाकर देखो ठुमका।
चली पिया के देश ,पहन कानों में झुमका।।
मीना भट्ट
[22/12 6:53 PM] गीतांजलि जी: *कुण्डलिया शतकवीर - सादर समीक्षार्थ*
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*(१) वेणी*
सागर के तट रुक्मिणी, तकती प्रभु की बाट।
स्वर्ण कली की खोज में, जोहें नगरी हाट॥
जोहें नगरी हाट, द्वारिकापति नटवर।
रानी का शृंगार, आज है करना निज कर॥
वेणी कलियाँ गूँथ, करें प्रभु नेह उजागर।
रुक न सके ‘अनकही’, प्रीत प्रबल का सागर॥
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*(२) कुमकुम*
कुमकुम भर कर माँग में, चली सुहागन नार।
साजन का मन मोहने, कर सोलह शृंगार॥
कर सोलह शृंगार, वसन आभूषण नव चुन।
अंग अंग में प्रीत, नयन सुंदर स्वप्न बुन॥
धर कर मन में धीर, चलो कहतीं सखियन सुन।
कहता सब ‘अनकही’, माँग तेरी का कुमकुम॥
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*(३) काजल*
नयनन में काजल भरा, सिर घुंघराले केश।
रूप सलोना सज रहा, श्यामल सुंदर वेष।।
श्यामल सुंदर वेष, पहिर कर पीताम्बर तन।
जमुना जल के तीर, रहे कर कान्हा भ्रमण।
मुरली का मृदु गीत, मोह रहा गोपियन मन।
भक्ति पावनी ‘अनकही’, बरस रही सखी, नयनन।
==================
*(४) गजरा*
चुन चुन कलियाँ अधखिली, सुषमित सुरभित वास।
आई है अंजुलि भरे, राधा कान्हा पास।
राधा कान्हा पास, कहे दो गजरा इक बुन।
जिन जिन वर्ण श्वेत, परख पिरोइये उन उन।
पाकर मादक गंध, रहा गा मधुकर गुन गुन।
मीठे मधु का पान, रहा कर बैरी चुन चुन।
==================
*(५) पायल*
रुनझुन पायल बज रही, माँ सीता के पाँव।
पुष्प वाटिका में, सखी, अमलतास की छांव।
अमलतास की छांव, कहें रघुवर, लक्ष्मण सुन।
जाती मन के पार, झाँझरी की अनुपम धुन।
कामदेव ने तीर, चलाया है विशेष चुन।
बजती रह रह कान, वही पायल की रुनझुन।
==================
*(६) कंगन*
माखन मटकी छलकता, कंगन खनके हाथ।
गाती मीठा गीत माँ, सुनते जग के नाथ।
सुनते जग के नाथ, मधुर लिए स्मित मुख पर।
तुतली बोलें बात, यशोदा मन को सुखकर।
लटपट डगमग चाल, चलें इत उत वर आँगन।
आँचल माँ का खींच, रहे हरि खा मधु माखन।
==================
*(७) बिंदी*
माथे बिंदी शोभती, जैसे दिनकर बाल।
मुख मंडल है दमकता, छाप तिलक जब भाल।
छाप तिलक जब भाल, भृकुटि के बीच विराजे।
रंग रंग का रूप, झलक दर्पण में साजे।
साजन का मन मोह, अश्व परिणय का नाथे।
जगमग कर दे राह, बिंदिया सज कर माथे।
==================
*(८) डोली*
डोली शुभ कुसुमित सजी, चले उठाय कहार।
पट भीतर से झाँकती, नववधु युवती नार।
नववधु युवती नार, बालिका अल्हड़ भोली।
करती मन में याद, मात पिता सखी-टोली।
नम है दृग की कोर, नहीं मुख आवे बोली।
सब जन हैं अनजान, जहाँ ले जाती डोली।
==================
*(९) आँचल*
नम है आँचल भोर का, पोंछ निशा के नैन।
आ छत पर रोती रही, विरहन काली रैन।
विरहन काली रैन, तड़पती डसती क्षण क्षण।
पिया बसे परदेस, हुआ बैरी तन कण कण।
जब जब ढलती साँझ, क्षितिज पर छाता जब तम।
तब तब भरती आँख, सिसकता आँचल फिर नम।
==================
*(१०) कजरा*
कजरा नैनों से बहे, जान विरह की बात।
थरथर मुख है कांपता, पड़ते ठंडे गात।
पड़ते ठंडे गात, पिया का सुन कर जाना।
दूर बहुत परदेस, कठिन होगा फिर आना।
किस विध फिर सिंगार, कौन ला देगा गजरा।
सूने होंगे नैन, रूठ जाएगा कजरा।
==================
*(११) चूड़ी*
सजना तेरे नाम की, चूड़ी करती शोर।
करती तुझको याद है, नित संध्या निश भोर।
नित संध्या निश भोर, खनक खनक यह कंगना।
ढूँढे मन का मीत, बसा जो हृदय-अंगना।
थाम हाथ में हाथ, न मोहे फिर तजना।
आवोगे जब लौट, प्राणपति मोरे सजना।
==================
*(१२) झुमका*
लट लहराती कान पर, झुमका उसके बीच।
जगमग नग नव चमकते, लेते मन को खींच।
लेते मन को खींच, चपल चंचल दौ नटखट।
जब मिलें रश्मि संग, पड़ें लिश्कारे घट घट।
रख लें हिय को बाँध, बना कर बंदी झटपट।
लुक छुप करते खेल, कान के झुमके औ लट।
==================
*गीतांजलि ‘अनकही’*
[22/12 6:58 PM] शिवकुमारी शिवहरे: झुमका
कानो झुमका डाल के,पहिन गले मे हार
आँखों मे कजरा लगा, कर सोलह श्रृंगार।
कर सोलह श्रृंगार,पाँव मे पहिनी पायल।
पायल की झंकार,पिया को करती घायल।
झुमका ला दो आज, मेरा कहा तुम मानों।
चूड़ी की खनकार, पिया के पड़ती कानों।
शिवकुमारी शिवहरे
[22/12 6:59 PM] शिवकुमारी शिवहरे: चूड़ी
पहने हरदम चूडियाँ,पीली नीली लाल।
माथे मे बिंदिया लगी,टीका लगता भाल।
टीका लगता भाल,सुंदर लागे कंगना।
चली सखी ससुराल, देखो छूटा अंगना।
कर सोलह श्रृंगार,सभी पहिने है गहने।
पायल की झंकार,चूड़ियाँ हरदम पहिने।
शिवकुमारी शिवहरे
[22/12 7:12 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 22/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - चूड़ी
**************
प्यारी प्यारी चूड़ियाँ ,
खनके गोरी हाथ ।
नाम पुकारे साजना ,
रहे उम्र भर साथ ।
रहे उम्र भर साथ ,
पिया के मन को भाती ।
कच्ची कोमल काँच ,
प्रेम पक्का कर जाती ।
चूड़ी वाले हाथ ,
सभी संकट पर भारी ।
तन कोमल मन पुष्ट ,
लगे वह अनुपम प्यारी ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - झुमका
****************
लाली बिंदी चूड़ियाँ ,
कजरा गजरा हार ।
झुमका सोने का सजा ,
कर सोलह श्रृंगार ।
कर सोलह श्रृंगार ,
चली प्रियतम के द्वारे ।
बाबुल अँगना छोड़ ,
पिया का घर स्वीकारे ।
मन में ले विश्वास ,
सजाने निकली डाली ।
दुल्हन तो शरमाय ,
ओढ़ के चुनरी लाली ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[22/12 7:18 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--22/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
*(11)*
*चूड़ी*
चटकी चूड़ी देख के,झुमका भूला साज।
माथे की बेंदी मिटी,बिछुआ रोया आज।
बिछुआ रोया आज,नहीं अब सजन मिलेंगे।
भूली पायल गीत,किसे अब मीत कहेंगे।
कहती अनु यह देख,अधर में साँसे अटकी।
साजन हुए शहीद,विरह में चूड़ी चटकी।
*(12)*
*झुमका*
झुमका झूमें कान में,बेंदा चमके भाल।
पायल छनके पैर में,कहती दिल का हाल।
कहती दिल का हाल,चलो बागों में झूले।
सावन बरसे आज,नमी गालों को चूमे।
कहती अनु यह देख,लगाए गोरी ठुमका।
इतराती है नार,सजा कानों में झुमका।
*अनुराधा चौहान*
[22/12 7:25 PM] डा कमल वर्मा: कुंडलियाँ शतक वीर के लिए🌹
दिनांक 22-12-19
कुंडलियाँ क्र.11
1) चूड़ी, 🌹
बाहें चूडी से भरी, नारी का श्रृंगार।
गहना इसको मत कहो, यह साजन का प्यार। ।
यह साजन का प्यार,सखी डालूं गल बाहें।
करते तब मनुहार, लडे जब चार निगाहें। ।
कमल कहे हर नार,पती अनुरागी चाहें।
झूम उठे संसार, नाथ जब पकडें बाहें। ।
कुंडलियाँ क्र.12 .
2) झुमका 🌹
कानों में झुमका सजा,पायल पहनें पांँव।
सजधज के रानी चली,मनभावन के गाँव।
मनभावन के गाँव,लगा माहुर है प्यारा। झुमका चूमे गाल,लौंग देती लश्कारा।
सुन लो कमल कमाल,सजी है प्यारी बानो,
टीका चमकें भाल, सजा है झुमका कानों।
रचना कार, डॉ श्रीमती कमल वर्मा🙏🏻
[22/12 7:30 PM] शिवकुमारी शिवहरे: कंगन
कंगन पहिने हाथ मे, सुंदर लगते हाथ।
माथे मे टीका लगा,चली पिया के साथ।
चली पिया के साथ,लगा के माथे बिंदी
मिला पिया का साथ, लगी है मेरी निंदी
कंगन की खनकार,पिया से बांधा बंधन।
कर सोलह श्रृंगार, पहना हाथ मे कंगन।
शिवकुमारी शिवहरे
[22/12 7:31 PM] शिवकुमारी शिवहरे: पायल
पायल बजती पाँव की,सुनके भाव विभोर
गौरी चली गाँव मे,पायल करती शोर।
पायल करती शोर, पिया को वह तरसाती
मन मे नाचे मोर,सभी को वो नचवाती।
सुंदरता की डोर,जिया को करती घायल।
करे बहुत है शोर ,छमा छम करती पायल।
शिवकुमारी शिवहरे
[22/12 7:44 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ ---11
दिनांक -22-12-19
विषय- -झुमका
झुमका कानों में सजे,
चूड़ी गोरी के हाथ l
गालों को लटकन छुये, चली पिया के साथl
चली पिया के साथ
सदा गोरी इठलाती,
काले काले बाल,
हवा में उड़ उड़ जातीl
कहती सुनो सरोज, लगे गोरी का ठुमका l
हृदय चलाती वाण
, पहन कानों में झुमकाl
दिनांक -22-12-19
कुंडलियाँ -12
विषय -चूड़ी
चूड़ी वाले हाथ में, पकड़ा दो तलवारl देवी रुप धर के करे, दुष्टों का संहार l
दुष्टों का संहार, नहीं है नारी अबला l
सबका रखे खयाल, दिखे कोमल है सबलाl
कहती सुनो सरोज, भले बेले घर पूड़ीl करती बाहर काज, पहन हाथों में चूड़ी ll
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[22/12 7:49 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिनांक - 22.12.19*
*कुण्डलियाँ (11)*
*विषय :- चूड़ी*
टूटी चूड़ी हाथ की, सूना हुआ लिलार।
त्याग सुहागन को चला,साजन सँग श्रृंगार।।
साजन सँग श्रृंगार, प्रथाओं से मिट जाता।
भाग्य दिया आघात , हृदय को खूब जलाता।।
सात जनम की प्रीत, अधूरे में जब छूटी।
खुशियों का संसार, मिटा जब चूड़ी टूटी।।
*कुण्डलियाँ (12)*
*विषय :- झुमका*
झुमका कोने में गिरा, टूटा मोती हार।
बिटिया जब जलने लगी, दुर्जन हँसे अपार।।
दुर्जन हँसे अपार, जरा भी लाज न आई।
मानव का यह रूप , देख पशुता शरमाई।।
कैसा कलयुग आज, मौत पर मारें ठुमका।
मौन हुआ संसार , साक्ष्य बनता है झुमका।।
*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*
[22/12 7:54 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ------ बिंदी , डोली
(07) *बिंदी*
माथे पे बिंदी सजी , सुंदर लगती नार ।
साजन के मन में बसी , ले साजन का प्यार ।
ले साजन का प्यार , कहे सजना से गोरी ।
होना नहीं उदास , सुना दूंगी मैं लोरी ।
कह कुमकुम करजोरि , स्नेह देना तुम हिन्दी ।
रखना मेरा मान , सजे माथे की बिंदी ।।
(08) *डोली*
डोली पर दुल्हन चली , संग लिए अरमान ।
साजन मेरे साथ हैं , प्रभू दिये वरदान ।
प्रभू दिये वरदान , सजनी प्रितम से बोलीे ।
रहता घर आनन्द , बने रहना हमजोली ।
कह कुमकुम करजोरि , देखो पिया मैं भोली ।
सदा रखो सम्मान , चली हूँ चढ़कर डोली ।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 22.12.19....
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[22/12 8:08 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -22/12/19
चूड़ी (11)
चूड़ी खनकी हाथ में, पायल छनके पाँव।
इठलाती अब आ रही, सजनी अपने गाँव।।
सजनी अपने गाँव, मिलेगी सखियाँ सारी।
हरियाली चहुँ ओर, यहाँ पर है मनुहारी।
कह राधेगोपाल, सभी खाते हैं पूड़ी।
नारी के तो हाथ, सजी है हरदम चूड़ी।
झुमका (12)
झुमका लेकर आ गए, मेरे तो गोपाल।
देते हैं उपहार वो, मुझको तो हर साल।।
मुझको तो हर साल, कभी वो देते साड़ी।
करती हूँ मनुहार, दिलादो हमको गाड़ी।
कह राधेगोपाल,लगाऊँ मैं तो ठुमका।
पहनूँ नथनी, हार,सजे कानों में झुमका ।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[22/12 8:14 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 22.12.19
कुण्डलियाँ (11)
विषय- *चूड़ी*
चूड़ी कंगन पैजनी, नारी का श्रृंगार।
बन जाए यदि बेड़ियाँ, कर देना इंकार।।
कर देना इंकार, पड़े यदि तेग उठानी।
रखना हरदम याद, तुम्ही झाँसी की रानी।।
प्रांजलि लो प्रतिकार, शत्रु का करके मर्दन।
लेना हाथ कृपाण, छोड़कर चूड़ी कंगन।।
कुण्डलियाँ (12)
विषय- *झुमका*
झुमका बोले झूमकर, साजन सुन लो बात।
साथ चलूँगी आपके, लेकर फेरे साथ।।
लेकर फेरे सात, बँधे जन्मों का बंधन।
कबतक ऐसे राह, तकेगी तेरी विरहन।।
आए जब भी याद, सजन ये मनवा डोले।
ले चल अपने साथ, झूमकर झुमका बोले।।
रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[22/12 8:21 PM] सुकमोती चौहान रुचि: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक- 22/12/19*
11. *चूड़ी*
पीली नीली बैंगनी,हरी गुलाबी रंग।
चुन चुन चूड़ी पहनती,पति जब तक है संग।
पति जब तक है संग,दिखे अति सुंदर नारी।
मिटे माँग सिन्दूर,लगे नारी बेचारी।
कहती रुचि करजोड़,नैन है बड़ी नशीली।
सजी चूड़ियाँ हाथ,बैंगनी नीली पीली।
12 *झुमका*
झुमका झूले कान में,नटी करे जब नृत्य।
हृदय लुभाना नाच से,अति सुंदर है वृत्य।
अति सुंदर है वृत्य,वार आँखों से करती।
भाव भंगिमा सार, लचक नागिन सी लगती।
कहती रुचि करजोड़,लगाती जब जब ठुमका।
निकले दिल से वाह,कान का झूले झुमका।
✍सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[22/12 8:28 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया
22-12-19 केवरा यदु "मीरा
कहती चूड़ी आज मैं, खनकूँ तेरे हाथ।
हाथों का श्रृंगार मै, जब तक प्रियतम साथ ।
जब तक प्रियतम साथ, सजाती रहना गोरी ।
आज रचाले हाथ, मेंहदी रहे न कोरी ।
तेरा यह उपहार, उमर भर साथ है रहती ।
साजन का है प्यार, चूडियाँ खन खन कहती ।।
झुमका
झुमका हमको चाहिए,गले नवलखा हार ।
होठों पर लाली लगा, कर सोलह श्रृंगार ।
कर सोलह श्रृंगार, पिया जी साथ है चलना ।
नहीं छोड़ना हाथ, सौ जनम संग है रहना ।
तुम जो आओ साथ, लगाऊँ जी भर ठुमका ।
रह रह झेले कान, साजना मेरा झुमका ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[22/12 8:30 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
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कुण्डलिया शतकवीर हेतु
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दिनाँक-21/12/2019
कुण्डलिया
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9- आँचल
--------------
माँ के आँचल के तले ,मिलता सुख दिन रैन।
हर दुख की भागी बने,पीड़ा हरे न चैन।।
पीड़ा हरे न चैन,छाँव लगती है मीठी।
पावन माँ की गोद,बिना इसके सब सीठी।।
निर्भयता को पाल,कई अबोध शिशु झाँके।
सब तनाव से दूर, तृप्त आँचल में माँ के।।
--------------------------------------------------
10-कजरा
----------
डालो कजरा आँख में,गहरा होवे रंग।
इन अँखियन की झील में,दुनियाँ नहीं बेरंग।।
दुनियाँ नहीं बेरंग,धुँधलका छँटकर फैले।
आँखें करती बात,दूर कलुषित मन मैले।।
मृग नयन कहे हूर,नूर साजन का पा लो।
कहती सदा सुहाग,नयन अंजन सब डालो।।
-------------------------------------------------
अर्चना पाठक 'निरंतर'
अम्बिकापुर
[22/12 8:30 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
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कुण्डलिया शतकवीर हेतु
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दिनाँक-22/12/2019
कुण्डलिया
-------------
11-चूड़ी
-----------
चूड़ी यूँ बजती रहे,गूँजे घर संसार।
उसकी धुन की गूँज से ,जीवन सुखी पसार।।
जीवन सुखी पसार,यही है प्रेम निशानी।
भंगुर चूड़ी काँच,कहे अनगिनत कहानी।।
झंकृत मधुरम गीत ,कभी जब बेले पूड़ी।
रहता अमर सुहाग,सजे हाथों में चूड़ी।।
--------------------------------------------
12-झुमका
----------------
कानों में झुमका रहे,चमचम कर दिल लूट।
सोने का न कभी रहा, देख गया गिर टूट।।
देख गया गिर टूट,बिखेरे सीप हजारों।
मेले में हूँ घूम,संग आओ न बहारों।
खुश थी कभी अपार, मिले कुछ पल दानों में।
देखो गूँथ बटोर ,दिया पहना कानों में।।
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अर्चना पाठक 'निरंतर'
अम्बिकापुर
[22/12 8:38 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक-22/12/2019 रविवार
11)*चूड़ी*
चटकी चूड़ी हाथ में, सिहर गई है नार।
दिल में धड़का सा हुआ,पिया बसे उस पार।
पिया बसे उस पार,पड़ी चिंता में भारी ।
रहे अमर बस प्यार,भजे भोले त्रिपुरारी।
सुन'वन्दू' हिय भाव,नज़र द्वारे पे अटकी।
रह रह दिल घबराय,कांच की चूड़ी चटकी।
12)*झुमका*
झुमका सोने का बना,टूट गया जो आज।
विनती करती आपसे,सुनो पति महाराज।
सुनो पति महाराज,करूँ मैं तेरी सेवा।
आज बनाऊं खीर,डाल के काजू मेवा।
सुन हँसते पतिदेव,दिखाया कटि का ठुमका।
मुदित हो गई नार,देख के अपना झुमका।
*वंदना सोलंकी*
[22/12 8:43 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतकवीर सम्मान हेतु*
*दिनांक:-२२/१२/२०१९*
*आज की कुंडलिया*
*विषय :-चूड़ी*
*११*
पहने चूड़ी हाथ में, लजा रही है नार |
मुझको लगती बेड़ियों, की मधुरिम झंकार |
की मधुरिम झंकार, मुझे है पास बुलाती |
बँधने का अहसास, मुझे वो रोज कराती |
कह विदेह कविराय, सुघड़ लगते हैं गहने |
आती मेरे पास, हाथ में चूड़ी पहने ||
*विषय:- झुमका*
*१२*
झुमका गोरी का लगे, कातिल हमको यार |
कानों में इसको पहन, करती वो शृंगार |
करती वो शृंगार, डोलता मेरा चितवन |
झूम-झूमकर हाय, सुहाता मुझको मधुवन |
कह विदेह कविराय, लगाती है वो ठुमका |
दुनिया में अफरोज,लगे गोरी का झुमका ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[22/12 8:43 PM] कमल किशोर कमल: नमन
22.12.2019
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।
11-
चूड़ी
चूड़ी कंगन हाथ में,पायल रुनझुन पैर।
माथे बिंदी सोहती,गोरी चल दी सैर।
गोरी चल दी सैर,साथ में संग सहेली।
चलती हँसी मजाक,फूल सी बहु नवेली।
खिले कमल कविराज,देखकर गजरा जूड़ी।
चलें मोरनी चाल,पहनकर कंगन चूड़ी।।
12-
झुमका-
झुमका झन-झन कान में,बोले दिन अरु रात।
कंगन चूड़ी खनकती,कहती दिल की बात।
कहती दिल की बात,सुनो रे सुनो साँवरे।
बड़े- बड़े जज़्बात,बिछे हैं पलक पाँवड़े।
कहे कमल कविराज,सुनो जी तक-तक तुनका।
धक-धक धड़के जिया,कान के रुनझुन झुमका।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर -बुन्देलखण्ड।
[22/12 8:44 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
रविवार -22.12.2019
(11)
विषय- चूड़ी
चूड़ी बेचन को चले, नटखट नंदकिशोर
आकर राधा की गली ,खूब मचाया शोर।
खूब मचाया शोर, सुनी ललिता ने बोली।
सखियों को दी टेर, चलो बहनों अब भोली।
बैठ टोकरी खोल ,छली ने राधा ढूंढी़।
हुई नैन में बात,श्याम पहनाते चूड़ी।
(12)
विषय-झुमका
झुमका पहने कुलवधू,दर्पण रही निहार।
माथे पर बेंदा सजा,पहन लिया अब हार।
पहन लिया अब हार,जड़ाऊ कंगन पहने।
हाथों में हथफूल,अभी पेटी भर गहने।
नथ से करता होड़,देख लड़ियाँ मन हुमका।
झीने पट की ओट,हिलोर लहर ले झुमका।
रचनाकार का नाम-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[22/12 8:45 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: नेट बाधित है, 7.15 am पर संशोधित कर "आँचल" कुंडलियाँ भेज रहा हूँ , कृपया स्वीकार करें
*****
21.12.19
9- आँचल
********
गोरी का आँचल उड़ा,
हुई धूप में छाँव।
सँभल-सँभल कर चल रही,
देखे पूरा गाँव।
देखे पूरा गाँव,
कोई कुछ न कह पाता।
आँचल क्या लहराय,
सभी का मन लहराता।
"अटल" झलक तू देख,
बनी वह चन्द्र चकोरी।
हुए सभी बेहाल,
चली मतवाली गोरी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
10- कजरा
*********
कजरा आँख लगाइए,
इसके लाभ तमाम।
सुन्दरता बढ़ती दिखे,
मिलें सुखद परिणाम।
मिलें सुखद परिणाम,
रोग आँखों के काटे।
दूर करे सब मैल,
ध्यान यह सबका बाँटे।
"अटल" जँचे हर भेष,
हाल आँखों का सुधरा।
सबका मन ले मोह,
नुकीला हो जब कजरा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[22/12 8:47 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 22.12.19.
11- चूड़ी
**********
खनखन चूड़ी कर रहीं,
अब गोरी के हाथ।
मिलने वाला लग रहा,
अब साजन का साथ।
अब साजन का साथ,
चली गोरी इठलाती।
करना चाहो बात,
दिखे अब वह शरमाती।
"अटल" जहाँ से जाय,
मोह ले वह सबका मन।
सबको विचलित करें,
आज चूड़ी की खनखन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
12- झुमका
**********
झुमका झूमे कान में,
जैसे गाता गीत।
दूर देश में याद कर,
तड़फ उठे मनमीत।
तड़फ उठे मनमीत,
याद प्रियतम की आये।
जाने क्या-क्या सोच,
मुझे झुमके दिलवाये ?
"अटल" लगे सँग गीत,
जोर का जब भी ठुमका।
बरबस खींचे ध्यान,
कान में लटका झुमका।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[22/12 8:51 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन रविवार 22.12.2019*
*11) चूड़ी*
दिन चौथा सप्ताह का, मार्गशीर्ष है माह
मुँह अंधेरे जाग के, ध्वनि चूड़ी की वाह
ध्वनि चूड़ी की वाह, रसोई घर से आयी
सारे घर को आज, व्यंजनों से महकायी
कह अनंत कविराय, खुशी का ये है पलछिन
गोबर महका द्वार, अल्पना का है ये दिन
*12) झूमका*
झुमका पीले फूल का, पौधा है करवीर
छाया में बैठा पथिक, याद करे तसवीर
याद करे तसवीर, प्रिया के झुमकों वाला
कर्णफूल श्रृंगार, लगे यह रूप निराला
कह अनंत कविराय, सोच मन उसका ठुमका
जब शोभे करवीर, लगा कानों में झुमका
*रचनाकारः*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
[22/12 8:53 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक- 22/12/19
कुण्डलिया- (11)
विषय - *चूड़ी*
चूड़ी वाले हाथ को, भले कहो कमजोर ।
उपमा भी देते रहो , कामचोर का शोर ।।
कामचोर का शोर , पहन ले चूड़ी कहते।
खींच रहे खुद पाँव, काँच तब टुकडे़ रहते।।
सुवासिता तो रोज, बने है पग पग गूड़ी।
करे जगत की सृष्टि, खनक कर ही ये चूड़ी ।।
कुण्डलिया-(12)
विषय- *झुमका*
झुमका तू मुझको बना, रख ले अपने साथ ।
इठलाऊंगा भाग्य पर, तू जो दे दे हाथ।।
तू जो दे दे हाथ, मिटे हिय के खटके ।
आईना ले देख, कमर क्यों तेरी मटके।।
सुवासिता मत सोच, दिखे जो सुन्दर लड़का।
अपना ले तत्काल , बना ले उसको झुमका।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[22/12 9:03 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
*कुण्डलिया शतकवीर सम्मान , 2019 हेतु*
11 ) चूड़ी
**********
चूड़ी छनकी याद में , यादें लायी प्रीत ।
झोंका आया बाद में , आये मेरे मीत ।।
आये मेरे मीत , मिलेगा साथ ही प्यारा ।
साथ जगाये प्रीत , आये जब सजन प्यारा ।।
चूड़ी कर झंकार , बनाती जब है पूड़ी।
रंग - बिरंगी शान , दिखा कर उनकी चूड़ी ।।
&&&&&&&
12 ) झुमका
*************
झुमका कानों में सजे , झूमे चमक दिखाय ।
बिंदिया दमक सदा रहे , रूप झुमका सजाय ।।
रूप झुमका सजाय , झूम कर तो यही कहे ।
कंगन हाथों भाय , हार गले सजता रहे ।।
करधनी पहन आज , नाच मारे वह ठुमका ।
नथनी भी तो डोल , हिले कानों में झुमका ।।
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
22.12.2019 , 6:12 पी.एम. पर रचित ।
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●●
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[22/12 9:09 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता।*
*दिनांक 22/12/19, रविवार*
~~~~~~~~~~~~~~
*11- चूड़ी*
~~~~~~~~~~
नारी का श्रृंगार हैं, कंगन, चूड़ी, हार।
काजल, बिंदी भाल पर, साथ पिया का प्यार।
साथ पिया का प्यार, माँग में सेनुर डारे।
पाँव महावर लाल, नैन चंचल कजरारे।
मन मोहे पति का सदा, शांत, मृदुल व्यवहार।
सदाचार सबसे बड़ा, नारी का श्रृंगार।।
~~~~~~~~~~~~~
*12-- झुमका*
~~~~~~~~
झुमका कानों में पहन, कर सोलह सिंगार।
नाकों में नथनी सजा , मोहक मोती-हार।
मोहक मोती - हार, करधनी कटि में साजे।
बिछुवा अँगुली बीच, पाँव में पायल बाजे।
अतिशय सुंदर नृत्य, लगाती गोरी ठुमका।
महफ़िल में खो गया, कहीं गोरी का झुमका।।
~~~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण" -बलिया-उत्तरप्रदेश*
~~~~~~~~~~~~~~
[22/12 9:26 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 22.12.19
कुण्डलियाँ (9)
विषय-आँचल
गोरी की चूनर उड़े,पूछे बहुत सवाल।
तारतार आँचल हुआ,अब क्यों मचा बवाल।
अब क्यों मचा बवाल,हुआ है छलनी सीना।
इन सबका क्या लाभ,मुझे अब यूँ ही जीना।
न करो न्याय की बात,जुड़े क्या टूटी डोरी।
टूटे तारे टाँक,सिली जो चूनर गोरी।।
कुण्डलियाँ (10)
विषय-कजरा
बादल का कजरा लगा, इठलाये आकाश।
सूरज की लाली लगा,बैठा खेले ताश।
बैठा खेले ताश, लगी है देखो बाजी।
तारे करें श्रृंगार ,शया भी तो है राजी।
बढ़ा पाप का बोझ,बहा आँखों से काजल।
धरणी का दुख देख,दुखी हैं सारे बादल।।
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 22.12.19
कुण्डलियाँ (11)
विषय-चूड़ी
चूड़ी बोली लाज से,सुन लो दिल की बात
रंगबिरंगी मैं सजी, रूप अनोखा गात।
रूप अनोखा गात,कहाँ से खिल खिल आया।
ईश्वर का उपहार,सभी से थोड़ा पाया।
बेला सुन्दर आज,बनी है घर में पूड़ी।
पिय की देखूँ राह, कि टूटी बिखरी चूड़ी।।
कुण्डलियाँ (12)
विषय-झुमका
मकराकृत झुमका सजे,नैन नीर की धार।
पीतांबर की है छटा,शोभित मुक्ता हार।
शोभित मुक्ता हार,लुभाती मन छवि न्यारी।
वंशी की मधु तान, लगे कानों को प्यारी।
मंत्रमुग्ध अनु आज,भजे स्वरूप ये विस्तृत।
दर्शन की है आस,दिखे झुमका मकराकृत।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
[22/12 9:29 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम सुगंध छंदशाला*
******************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*कुण्डलियाँ-(९)*
*विषय-आँचल*
माता का आँचल मिले, सबकी होती चाह।
उसकी ममता के तले,रहे नहीं परवाह।
रहे नहीं परवाह,मगन मन बचपन डोले।
खिलते फूल समान,बड़े ये मन के भोले।
कहती 'अभि' निज बात,तभी बचपन मुरझाता।
आती घड़ी कठोर,बिछड़ जब जाती माता।
*कुण्डलियाँ(१०)*
*विषय-कजरा*
कजरा का टीका लगा,माता चूमे भाल।
कितना प्यारा लग रहा,मेरा नन्हा लाल।
मेरा नन्हा लाल,करे कैसी अठखेली।
प्यारी सी मुस्कान,दिखे सुंदर अलबेली।
कहती 'अभि' निज बात,करे जब लालन नखरा।
देती नजर उतार,लगा कर टीका कजरा।
*रचनाकारअभिलाषा चौहान*
इसमें मेरा नाम दो जगह आया है आदरणीय 🙏🌷
[22/12 9:29 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*****************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*(११)चूड़ी*
लुटता सब श्रृंगार है,पिया नहीं जो साथ।
माथे से बिंदी मिटे,टूटी चूड़ी हाथ।
टूटी चूड़ी हाथ,मांग सूनी हो जाती।
नयनों बहता नीर,याद जब उसकी आती।
कहती'अभि'निज बात,देख कर दिल है दुखता।
सधवा का श्रृंगार,सुखों का सागर लुटता।
*(१२)झुमका*
गोरी इठला कर चली,कर सोलह श्रृंगार।
कानों में झुमके सजे,गले नौलखा हार।
गले नौलखा हार,भाल पर बेंदा चमके।
नथनी डाले नाक,हाथ में कंगन खनके।
बजती पायल पांव,बदन पर साड़ी कोरी।
अपना रूप सँवार,चली बन-ठन कर गोरी।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[22/12 9:53 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर
11-चूड़ी (22/12/2019)
खनके खन-खन चूड़ियाँ, कंचन कंगन काँच।
भरी कलाई प्रेममय, सजी सुहागन साँच।।
सजी सुहागन साँच, सजन को सहज सुहाये।
कर सोलह श्रृंगार, सहचरी पिया लुभाये।।
मुख से मुदिता मौन, देखती बस बन ठन के।
प्रेषित उर प्रस्ताव, हाथ जब चूड़ी खनके।।
12-झुमका
बाली झुमका कान में, चूड़ी कंगन हाथ।
कुमकुम सिंदुर बिंदिया, दिव्य दिखे है माथ।
दिव्य दिखे है माथ, लगे आँखों में कजरा।
नारी रूप निखार, सजे जब वेणी गजरा।।
कहे अमित कविराज, अधर पर लगती लाली।
पहने पायल पाँव, कान में झुमका बाली।।
कन्हैया साहू 'अमित'
@Kalam ki Sugandh
वाह मैं भी शामिल हूँ
ReplyDeleteएक ही विषय पर अनेक भाव सभी की रचनाधर्मिता को नमन ।
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