Saturday, 28 December 2019

कुण्डलिया छंद... कुनबा ,पीहर

[28/12 6:05 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 28.12.19

21-   कुनबा
**********
ताकत कुनबा जोड़ता,
तन्हा है कमजोर।
कौन बात को पूछता,
जैसे तूती शोर।

जैसे तूती शोर,
दबा जो नक्कारों से।
एक वीर की हार,
दिखी दस मक्कारों से।

कुनबा वह बेजोड़,
न दिखती जहाँ बगावत।
सब मिलजुल कर एक,
"अटल" कुनबे की ताकत।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏


22-    पीहर 
***********
बेटी पीहर में गयी,
करने को आराम।
पर किस्मत का खेल है,
दिखा वहाँ भी काम।

दिखा वहाँ भी काम,
पड़ी कोने में गुड़िया।
जो थी उसकी जान,
आज वह लगती बुढ़िया।

"अटल" उठा पुचकार,
नयी पोशाक लपेटी।
बचपन की थी याद,
देख कर रोई बेटी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[28/12 6:05 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया कलम वीर हेतु*
*दिनांक -----25/12/19*
(17)  *बाबुल*

बाबुल की ये देहरी , जाती बिटिया छोड़ ।
स्नेह  प्रीत की डोर से ,  रिश्ते नाते जोड़ ।।
रिश्ते नाते जोड़ , पहन के लज्जा गहना ।
असिस पिता ये देय  , सदा मुस्काती रहना।
करे धरा ये प्रश्न ,पिंजरे की ये बुलबुल ।
जाती क्यों सब छोड़, देहरी मैया बाबुल‌।।

(18) *भैया* 

बंधन न्यारा नेह का ,भैया बहना प्रीत ।
पावन धागे से बँधा, कितना मोहक रीत ।।
कितना मोहक रीत , बचा कर इसको रखना।
भैया बहना धर्म , सदा ही रक्षा करना ।।   
करती बहना मान , लगा कर रोली चंदन ।
रखना हर क्षण लाज , निराला है ये बंधन ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[28/12 6:08 PM] सरला सिंह: ----------------------------------------------------------
28.12.19

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-28/12/19*
*विषय: कुनबा*
*विधा कुण्डलियाँ*
*21-कुनबा*

जोड़े कुनबा मैं रही,रखे सभी पर प्रीत।
 पाई पाई जोड़ के,पूरी की सब रीत।
 पूरी की सब रीत, भये सब दौलत वाले।
 कोठी गाड़ी साथ, हुए कुछ मन के काले।
 सरला कहती आज,खड़े वह मुख को मोड़े।
 देते कब हैं साथ , नहीं अब नाता जोड़े।

  *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
  *दिल्ली*

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-28/12/19*
*विषय: पीहर*
*विधा कुण्डलियाँ*

 *22-पीहर* 


  गोरी पीहर से चली,गली पिया घर आज,
  माथे डाले चूनरी, हार गले में साज।
  हार गले में साज,अरे ये बिंदी चमके।
  चमके यह सिंन्दूर,साथ गजरा भी महके।
  कहती सरला आज,लगे बंधी हो डोरी। 
  बहके दोनों पैर, चली पिय‌ के घर गोरी।।

  *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
  *दिल्ली*

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[28/12 6:09 PM] सुशीला साहू रायगढ़: *शतकवीर हेतु मेरी रचना*
*विधा-----कुंडलियाँ*
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*विषय-------कुनबा* 28/12/2019*
तिनका तिनका उठा के,पक्षी सपना सजाय।
एक एक तिनके कहे ,चलो कुनबा बनाय।
चलो कुनबा बनाय,हमें परिवार बचाना।
ठंड और बरसात, सीख घरौंदा बनाना।
कह शीला निज बात,बुने अब ताना सबका।
सीखे इनसे आज,उठा ले तिनका-तिनका
*विषय-------पीहर*
राखी में  पीहर गयी,खुशी पिया के साथ।
चूड़ी बिंदी से सजे, मेंहदी लगी  हाथ।।
मेंहदी लगी हाथ,मिले सब तो क्या कहना।
कर बचपन की बात,साथ में भाई बहना।।
कह शीला ये सार, रंग बिरंगियाँ पाखी।
झूमें सब परिवार,मना पीहर में राखी।।
*सुशीला साहू शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*
[28/12 6:09 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 28.12.19

(21)कुनबा = कुटुंब,परिवार

मेरा कुनबा है  सुखी, हम सब है मजदूर।
जीवन यापन कर रहें,कभी नहीं मजबूर।।
कभी नहीं  मजबूर, मेहनत  करते हैं हम।
रहते हैं खुशहाल, नहीं  चिंता कोई गम।।
कहे विनायक राज, देख लो  छोटा डेरा।
रहता है  परिवार, वही  है  कुनबा मेरा।।

(22)पीहर 

मेरा पीहर है वहाँ,जहाँ नीम की छाँव।
नदी किनारे  गेह है, सुन्दर मेरा गाँव।।
सुन्दर मेरा गाँव, लगे हैं  सबसे प्यारा।
मातु पिता का द्वार,स्वर्ग से भी है न्यारा।।
कहे विनायक राज,मायका होय बसेरा।
सुख दुख में ये आस,दिलाती पीहर मेरा।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[28/12 6:10 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--28/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
(21)
*कुनबा*
जोड़ा कुनबा प्रीत से,खिलते देखे फूल।
देखी अकूट संपदा,सब कुछ बैठे भूल।
सब कुछ बैठे भूल,भूले  पिता अरु माता।
छोड़ा सबका साथ,रखा बस छल से नाता।
कहती अनु यह देख,बैर को जिसने तोड़ा।
अपनों को रख साथ,खुशी से नाता जोड़ा।
(22)
*पीहर*
प्यारा पीहर छोड़ के,गोरी चली विदेश।
आँखों में सपने सजे,मन में भारी क्लेश
मन में भारी क्लेश,चली वो डरती डरती।
पीहर छूटा आज,मना वो कैसे करती
कहती अनु यह देख,सभी को लगता न्यारा।
भूलें कैसे प्यार,पिता का घर है प्यारा।
*अनुराधा चौहान*
[28/12 6:30 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
28/12/2019::शनिवार

कुनबा
ऐसी कर लो एकता, कुनबा हो कुल देश।
घबराकर देखा करे, दुश्मन भर आवेश।।
दुश्मन भर आवेश, चैन से बैठ न पावे।
सोचे वो सौ बार, कि कैसे आग लगावे।।
चले न उसकी एक, करो अब ऐसी तैसी।।
दिखे हिन्द अनुराग, एकता कर लो ऐसी

पीहर

बचपन बीता है जहाँ, मचा मचाकर शोर।
पीहर की नादनियाँ, अंतस भरें हिलोर।।
अंतस भरें हिलोर, याद आती सब सखियाँ।
गाँव गली घर द्वार, सोच कर रोती अँखियाँ।।
बीते कितने साल, हो गई मैं तो पचपन।
आँगन अब भी खास, जहाँ बीता था बचपन।।
                    रजनी रामदेव
                      न्यू दिल्ली
[28/12 6:33 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 28/12/2019

कुण्डलिया (21) 
विषय- कुनबा
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छोटा   कुनबा   हो  गया, घटा   आपसी   नेह I
लुप्त हुए  मुखिया सखे, पति, पत्नी, सुत गेह lI
पति,  पत्नी,  सुत  गेह, नहीं  कौड़ा  रजनी में l
बन्धु,मात, पितु छोड़, सजन सिमटे सजनी में ll
कह  'माधव कविराय', हुआ  रिश्तों  में  कोटा l
स्वजन   पड़ोसी  रूप, बचा  है  कुनबा  छोटा ll 

कुण्डलिया (22) 
विषय- पीहर
===========

रुकना मत पीहर सखी, ज्यादा दिन तक आप I
गली,  मुहल्ला,  नारि, नर, सब   देते   सन्ताप ll
सब    देते   सन्ताप, वही  जिनको  निज  माने l
तरह - तरह  की   बात, अरोचक  मिलते  ताने ll
कह  'माधव कविराय', पड़े  नाहक  में  झुकना l
स्वर्ग  सदृश  ससुराल, नहीं अति पीहर रुकना ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)

[28/12 6:35 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 28 दिसंबर 2019
 कलम की सुगंध छंद शाला
शतक वीर कुंडलियां प्रतियोगिता
विषय   *कुनबा*  (21)

माना  जाता श्रेष्ठ   वो , कुनबा जो   संयुक्त।
हर सदस्य का आचरण ,  अनुशासन से युक्त।।
अनुशासन  से  युक्त, जेष्ठ- जन  होते  स्वामी ।
 हो सम्यक उत्थान , पिता के सब अनुगामी ।।
कहे "निगम" कविराज,  एक सँग रहना खाना।
कुनबा रचे  समाज , सभी  ने  इसको  माना ।।

विषय  *पीहर*   (22)
पीहर   पथ  प्यारा  लगे  , जाए  पिय  के   संग ।
क्या अनुपम अनुभूति है,  कण-कण प्रणय प्रसंग ।।
कण-कण प्रणय प्रसंग, जहाँ पर बीता बचपन।
गुड्डा गुड्डी खेल, खेलते पाया यौवन ।।
कहे "निगम" कविराज, रहे वह अपने पिय-घर।
 स्वर्ग लोक से श्रेष्ठ., लगे पर उसको पीहर ।।

कलम से 
कृष्ण मोहन निगम 
(सीतापुर)छ.ग.

[28/12 6:42 PM] गीता द्विवेदी: 🌷कलम की सुंगध छंदशाला🌷
कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु


दिनांक-26-12-019

(19)
विषय-बहना

बहना मुझको डाँटती, ममता भी अगाध।
हम दोनों के नेह की, सरिता बहे अबाध।।
सरिता बहे अबाध, रहे भाई हरषाये।
हम भी तो हैं साथ, हमें काहे बिसराये।।
हम हैं डोरी एक, लगे है छोटी गहना।
क्षण में जाए रूठ, पहेली लगती बहना।।

(20)
विषय-सखियाँ

ऐसे धूप गंध हवा,प्यारी सखियाँ संग।
रहतीं हिलमिल सदा, देख रहूँ मैं दंग।।
देख रहूँ मैं दंग,तीनों भागती रहतीं।
शक्ति की नहीं थाह, धरा पर खेला करतीं।।
हम लें इनसे सीख, रहेंगें इनके जैसे।
जीवन नदिया पार, चलेंगे मिलके ऐसे।।

 (21)
विषय-पीहर
चंदन सा महका रही, बेटी निज ससुराल।
पीहर आन बढ़ा रही, देखत सभी निहाल।।
देखत सभी निहाल,निभाती सारे नाते।
करते सभी बखान, नगर में उसकी बातें।।
माता पितु हैं धन्य, करें सब उनको वंदन।
समझो अब मत बोझ,बनाती जीवन चंदन।।

(22)
विषय-कुनबा

होते थे पहले कभी, कुनबे सारे गावँ।
अब एकल परिवार हैं जर्जर होती छावँ।।
जर्जर होती छावँ, बँटी है माया ममता।
बस निभ रहे रिवाज, दिखे न अब तो समता।।
मानो तो अपने हाथ, सदा से काँटे बोते।
अब भी करें प्रयास, जतन खुशियों के होते।।


सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[28/12 6:47 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच   कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
28/12
कुनबा 
रहती मीठी याद बन,लाड़ प्यार मनुहार।
बात पुरानी हो गयी ,कुनबे का संसार ।।
कुनबे का संसार,जहाँ सब अपने रहते ।
प्रेम भरी तकरार ,सभी के सपने सजते।।
होती पल में रार,बुआ  समझौता करती।
बाबा की मुस्कान, सदा यादों में रहती ।।

पीहर

"पीहर" से "पीघर" चली ,लिये सुहानी याद ।
सुता बनी अब स्वामिनी,दो घर की बुनियाद ।।
दो घर की बुनियाद,नये रिश्तों का बंधन ।
आती पीहर याद ,हृदय में होता क्रंदन ।।
मिले श्वसुर घर मान,रहे फिर मन क्यों बीहर।
नारी जीवन सार ,छूट जाता है पीहर ।।

अनिता सुधीर 
लखनऊ

[28/12 6:50 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*विषय-(२१) कुनबा*

टूटा कुनबा देख के, मुखिया हुआ निराश।

तिनके जैसा उड़ गया,जीवन से विश्वास।

जीवन से विश्वास,प्रेम जब उसका हारा।

जीत गया है स्वार्थ,कहाँ अब रहा सहारा।

कहती 'अभि' निज बात,अहम का अंकुर फूटा।

उपजे मन में भेद,और फिर कुनबा टूटा।



*विषय-(२२)पीहर*

प्यारी पीहर की लगे ,मुझको सारी बात।

पक्षी जैसी मैं उड़ी, छूटे भगिनी-भ्रात।

छूटे भगिनी-भ्रात,तात तरुवर सी छाया।

छूटी आँचल-छाँव,दिवस ये कैसा आया।

कहती'अभि'निज बात,विरह में जाती मारी।

बसी दूसरे देश, पिता माता की प्यारी।



*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[28/12 6:51 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

.         *कलम की सुगंध छंदशाला*

.         कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 28.12.19
.                    🦚🦚
कुण्डलियाँ (1) 
विषय-. *कुनबा*
बातें  बीती  वक्त  भी, प्रेम  प्रीत  प्राचीन।
था कुनबा सब साथ थे, एकल अर्वाचीन।
एकल   अर्वाचीन,  हुए   परिवारी   सारे।
कुनबे अब इतिहास , पराये  पितर हमारे।
शर्मा  बाबू लाल , घात  प्रतिधात  चलाते।
रोते  बूढ़े  आज, सोच   कुनबे  की  बाते।
.                    🦚🦚
कुण्डलिया (2)
विषय:-  *पीहर*

पालन प्रीति  परम्परा, पीहर  प्रिय परिवार।
प्रेम पत्रिका  पा पगे, प्रियतम  पथ पतवार।
प्रियतम  पथ पतवार, प्राण  प्यारे  परदेशी।
परिपालन  परिवार, प्रथा   पालूँ   परिवेशी।
प्रकटे  परिजन प्यार, पालते  प्रण पंचानन।
परमेश्वर  प्रतिपाल, पृथा पीहर पथ पालन।
.                     🦚🤷🏻‍♀🦚
रचनाकार✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[28/12 6:57 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

*दिन शनिवार 28.12.2019* 

*कुनबा* 

तिनका-तिनका तान के, खग खरपत की छाँव
कुनबा-कुनबा जोड़ के, गढ़े ग्रामपति गाँव
गढ़े ग्रामपति गाँव, बूँद से सागर बनता
नगर-नगर से देश, देश में जन-जन जनता
कह अनंत कविराय, माल है मनका-मनका
कण-कण कीमत जान, जोड़ ले तिनका-तिनका

*पीहर* 

पीहर पथ पर पालकी, पालकी पर पुत्री
केवल बैठी देह है, मन हुआ अन्यत्री
मन हुआ अन्यत्री, उड़ा है पंछी बनकर
कभी पिता के पास, कभी है मात चरण पर
कह अनंत कविराय, सोच यह गयी वो सिहर
पुलकित है मन प्राण, प्राण बसते हैं पीहर

*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[28/12 6:59 PM] डॉ मीना कौशल: पीहर

पीहर शीतल छाँव है,बचपन की शुचि याद।
मात पिता भाई बहन ,का मधुरिम संवाद।।
का मधुरिम संवाद,मधुरमय रिश्ता नाता।
जहाँ नहीं अवसाद,प्रेम का पुंज समाता।।
घुटता दम ससुराल,लगे पूरा घर बीहर   ।
बचपन की हर याद,सुहाता अपना पीहर।।

कुनबा

कुनबा में मिलकर रहें,प्रेम सहित परिवार।
महके घर आंगन सदा,चहके बचपन द्वार।।
चहके बचपन द्वार,बने जीवन फुलवारी।
सब मिल रहें निहाल,खुशी आते हर बारी।।
आज सभी परिवार,एकला में ही चुनबा।
बना रहे परिवार,भला है अपना कुनबा।।

डा मीना कौशल
[28/12 7:07 PM] रवि रश्मि अनुभूति: *रवि रश्मि 'अनुभूति '


  🙏🙏

*कुण्डलिया शतकवीर सम्मान, 2019 हेतु*         28.12.2019.
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  21 ) कुनबा
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कुनबा रहते साथ में , गया समय वह बीत । 
प्यारी बातें सब कहें , रहे सभी मन प्रीत ।।
रहे सभी मन प्रीत , साथ - साथ उठें -  बैठें ।
ऐसा हो संस्कार , नहीं हो कोई ऐंठे ।।
अपने मन की बात , कहे सब भाई माँ बा ।
तिनका - तिनका जोड़ , बनाते मिलकर कुनबा।।
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22 ) पीहर 
************
बातें पीहर की सभी , आतीं हमको याद ।
पल भर भी करते नहीं , कभी समय बर्बाद ।।
कभी समय बर्बाद , सभी मिलजुल कर खेलें ।
पीहर की सौगात , प्यार भर - भरकर झेलें ।।
ऐसा पीहर देख , जहाँ कटती सब रातें ।
पीहर आये याद , सभी पीहर की बातें ।।
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(C)  रवि रश्मि 'अनुभूति '
27.12.2019 , 10:50 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[28/12 7:16 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंडलियां शतकवीर हेतु सादर 
28/12/19
              *(21)कुनबा*  

सूना कुनबा बिन सदन,सूना है संसार।
मीत बन्धु औ नार से,होता है परिवार।
होता है परिवार, सभी सुख दुख सहभागी ।
भेदभाव से परे,एक दूजे अनुरागी।
होत मधुर आभास,संबंध बढ़ता दूना।
कण-कण बसता प्रेम,सदन नाही हो सूना।

           *(22)पीहर* 

पत्ता पीहर डोलता,हियँ मे उठत हिलोर।
बंधन अटूट होत हैं, नेह गेह की डोर ।
नेह गेह की डोर, लड़कपन की शैतानी ।
गुड्डे-गुड़िया खेल,याद आती नादानी।
कहे मधुर ये सोच, मिले पीघर में सत्ता।
गाँव गली घर द्वार, याद पर पीहर पत्ता।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

[28/12 7:20 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुण्डलिया - शतकवीर प्रतियोगिता*

*दिनांक- 21/12/19*

*आँचल*

माता आँचल में मिले, सच्चा प्यार दुलार।
बिन जननी आशीष के, नहीं बने उद्धार।
नहीं बने उद्धार, कह गये सत्य विधाता।
मन में दृढ़ विश्वास, जुड़ा है उनसे नाता।
'रीत' मधुर है बोल, सदा जो सबको भाता ।
करती प्यार दुलार, पास में रहती माता ।

*कजरा*

कजरा नयनों में लगा, माता चूमे लाल ।
भोला भाला लालना, सिर पे काले बाल ।
सिर पे काले बाल, लाल मुँख लगे सुहावन ।
देती नज़र उतार, लाल सबके मनभावन ।
'रीत' बलइया लेत, बाल में बाधे गजरा ।
सुंदर मुँख में दाँत, माथ पर टीका कजरा ।

*दिनांक- 28/12/2029*

*कुनबा*

ताकत कुनबा से मिले, रखे प्यार व्यवहार ।
अपनों को है जोड़ता, करो कभी ना मार ।
करो कभी ना मार, आप हो भाई भाई ।
आपस का व्यवहार, करो मत कभी लड़ाई ।
'रीत' रखे खुशहाल, दुसरा घर नहीं झांकत ।
अपनों को रख साथ, हमेशा देते ताकत ।

*पीहर*

अपना पीहर छोड़के, चली पिया के साथ ।
आँखों में सपना सजा, ले हाथों में हाथ ।
ले हाथों में हाथ, याद आयेगी बहना ।
सास ससुर की बात, हमेशा सहती रहना ।
'रीत' कहे निज बात, करो तुम पूरा  सपना ।
करना सबका मान, तुझे सब समझे अपना ।

*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍

[28/12 7:35 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-28/12/19*
*विषय: कुनबा*
*विधा कुण्डलियाँ*
*२१*

 कुनबा जोड़ा देखिए, भानुमती ने आज |
कंकड़-पत्थर जोड़कर, करती है वह राज |
करती है वह राज, सुहावै सबको भैया |
बनती है दिलदार ,सबों को बाँट रुपैया |
कह विदेह नवनीत, बढ़ा है उसका रुतबा |
कृपा करें करतार, देखिए जोड़ा कुनबा ||

*विषय: पीहर*
*22*

पीहर से वो लौटकर, जब पहुँची ससुराल |
लज्जा में ढ़लते हुए, सुर्ख हो गए गाल |
सुर्ख हो गए गाल, चबा अधरों की लाली |
घूँघट लेती डाल, नवोढ़ा बड़ी निराली |
कह विदेह नवनीत, सुलगता जैसें बीहर |
आई वो ससुराल, छोड़कर अपना पीहर ||


  *नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*

[28/12 7:35 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध  कुंडलिनी छंद प्रतियोगिता
दिन -शनिवार
28-12-19
 विषय-शब्द- कुनबा/पीहर
(1)कुनबा
  
   लोहे के बरतन बना, करते जो  व्यापार।
 रहते कुनबा बीच वो , कपड़े की दीवार। 
 कपड़े की दीवार, बना रहते हैं   सारे
 सर्दी ,गर्मी, झेल,  जिया करते हैं प्यारे।
     कह प्रमिला कविराय, स्त्रियाँ वधू सी सोहे।
  पीट हथौड़ा बना ,रही बरतन   जो लोहे ।।

(2)पीहर

     बेटी पीहर से चली , खुशियाँ लिए हजार।
 देते हैं आशीष  सब, सुखी रहे परिवार।।
सुखी रहे परिवार, फले फूले तू बहना
 सबका मन ले जीत,  सदा खुश ही तुम रहना।
 कह प्रमिला कविराय, याद करती मां लेटी।
 खुशी-खुशी कब आय , लौटकर पीहर बेटी।।

 प्रमिला पान्डेय

[28/12 7:38 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 28/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - कुनबा
**************
तिनका जोड़ा प्रेम का ,
                    युक्ति लगाई नेक ।
संघर्षों से ही बना ,
                    प्यारा कुनबा एक ।
प्यारा कुनबा एक ,
               रहे सब मिलकर सारे ।
सुख दुख सहते साथ ,
               सभी संकट फिर हारे ।
एक सूत्र में बाँध ,
                पिरोते हैं सब मनका ।
करने पक्की नींव ,
             जोड़ते तिनका तिनका ।           

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कुण्डलिया (2)
विषय - पीहर
****************
प्रियतम पथ अनुगामिनी ,
                 प्रीत पिया की धार ।
पीहर पंथ प्रणाम कर ,
                 चली सजन के द्वार ।
चली सजन के द्वार ,
            छोड़कर अपना बचपन ।
लेकर शुभ संस्कार ,
             सजाने पिय का उपवन ।
नई नवेली नार ,
              सजी सजनी सुंदरतम ।
प्रहसित पुष्प समान ,
             हृदय में बसती प्रियतम ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★

[28/12 7:58 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*दिनाँक--28/12/19, शनिवार।*
*विधा--कुण्डलियाँ*
~~~~~~~~~~~~~
*२१--कुनबा*
~~~~~~~~~
सारा कुनबा एक हो, रहे प्रेम के संग। 
सबकी चिंता सब करें, चढ़े प्रेम का रंग।
चढ़े प्रेम का रंग, न टूटे सुंदर नाता,
हो जावे जब बैर , आदमी तब पछताता।
आपस में हो मेल, तभी घर लगता प्यारा।
खान -पान हो साथ, रहे खुश कुनबा सारा।
~~~~~~~~~~~~~
*२२--पीहर*
~~~~~~~~~~~~
छूटा पीहर आ गयी, बेटी पति के द्वार।
मात पिता की आँख से, बहे अश्रु  की धार।
बहे अश्रु की धार, याद बेटी की आती।
उठती मन में पीर, नींद भी उड़ उड़ जाती।
होती प्रति दिन बात, नहीं है नाता टूटा।
बेटी घर की ज्योति, भला कब पीहर छूटा।।
~~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तर प्रदेश*
~~~~~~~~~~~~~~~~
[28/12 8:03 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *संशोधित*

*कुँडलिया कलम‌वीर हेतु*
*दिनांक ---- 26/12/19*
(19) *बहना*

प्यारी सबसे बहनिया, रिश्ता बड़ा अमूल्य ।
बहना भाई स्नेह है , पावन पुण्य अतुल्य ।।
पावन पुण्य अतुल्य , सजाये बहन कलाई ।
रहे बँधा ये डोर ,  युगों युग बंधन भाई ।।                      ‌‌‌‌    
होता भाई मित्र ,  सखी है बहना न्यारी ।
देती माँ सम प्यार , बहनिया जग से प्यारी ।।

(20 ) *सखियाँ*

होती सखियाँ खास ही , अनुपम‌ हैं उपहार ।
मिले कली से जब कली ,बनता सुरभित हार ।।
बनता  सुरभित हार , निराला ये गुलदस्ता ।              
बँधा प्रेम‌ का डोर  , बहुत ही प्यारा रिश्ता ।।
जाती जब वो दूर ,सखी बिन आँखें रोती।
जाने मन की बात , अनोखी सखियाँ होती ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़,छत्तीसगढ़*
[28/12 8:07 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
दिनांक ---  28.12.2019
विषय  ----  *कुनबा , पीहर*

(021)          *कुनबा*

छोटा कुनबा ही रखो , हो सुंदर परिवार ।
खुशियों घर में ही रहे , अच्छा हो व्यवहार ‌।
अच्छा हो व्यवहार , खानदान फले ‌फूलें ।
हो पढने की बात , जाए व्यवधान  चूल्हे ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी न होना मोटा ।
घर रहे खुशहाल , रखेंगे कुनबा छोटा ।।


(22)           *पीहर*

पीहर पीहर मन सदा , बचपन में ही खोय ।
माता पिता कहे सदा  , गम मन राखें जाय  ।
गम मन राखें जाय‌ , ससुराल में खुश रहना ।
बाँध लिया जब नेह , साजन हो गए गहना ।
प्रीत रीत की डोर , रहे घर जाएं शिवहर‌ ।
सदा रहेगी प्रीत , हाँ जाना पुण्य पीहर ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  28.12.2019.....


___________________________________________
[28/12 8:13 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
28/12/19

21/कुनबा
छोटा कुनबा हो चले , रहे प्रेम संचार ,
एक दूसरे के लिए ,हो मन में बस प्यार  ,
हो मन में बस प्यार ,  करें बातें हितकारी ,
सजता इससे धाम  ,सदा हो मंगलकारी ,
सुनो कुसुम की बात  , भाव न हो कभी खोटा ,
अन्तर तक हो प्रेम , सदन हो चाहे छोटा ।।

22/ पीहर

पारस पीपल पुष्प से , पंथ के हैं प्रमाण ,
पिता पितामह पूज्य है  ,पीहर प्रेम प्रणाम ,
पीहर प्रेम प्रणाम , पालते पालक पीड़ा ,
पलक पसारे प्राण ,प्रथम प्रधान का बीड़ा ,
पले कुसुम परिवार , प्रीत प्रबंध हो पावस ,
परस  प्रेम परिणाम  , प्रथम प्रतिपादित पारस ।।

               कुसुम कोठारी।

[28/12 8:21 PM] पाखी जैन: *कलम की सुगंध -छंदशाला*

*शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*
 24/12/2019
*कविता*
कविता लिखने बैठती,न छेड़ो घनश्याम।
लिखती पाती प्रेम की,आती ढ़लने शाम।
आती ढ़लने शाम,पिया क्यों खोये चैना ।
लाली छाई आज,मिलाते हैं वो नैना।
बादल काले देख,मुदित मन डोले सविता।
पीकर मदिरा साँझ,हुई मतवाली कविता।
*मनोरमा जैन पाखी*
÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷××÷
23/12/2019
*उपवन*
खिलते देखो अब नहीं,वन उपवन में फूल ।
होता नित आघात है,चुभे हृदय यह शूल ।
चुभे हृदय यह शूल,नित्यप्रति फूल तोड़ते 
कहते घर की शान,और मुख सहज मोड़ते।
कली खिले बन फूल,फूल पर भँवरे मिलते।
बिना कली के फूल,कहाँ हैं बोलो खिलते।
*मनोरमा जैन पाखी*
24/12/2019
*ममता*
धारा सी बहती यहाँ ,बहे नयन से नीर ।
माँ की ममता मानते,रखे हृदय में पीर ।
रखे हृदय में पीर,पीर सबकी हर लेती।
कितने भी हों क्लेश,सदा सुख उर भर देती ।
रख के निर्मल भाव,खेल देखे वो सारा।
है पावन सा रूप,बहाती निर्मल धारा।
*मनोरमा जैन पाखी*
25/12/2019
*बाबुल*
बाबुल गलियाँ छोड़ के ,चली सजन के गाँव।
मात पिता का आँगना,छोड़ नेह औ'छाँव 
छोड़ नेह औ'छाँव,चली वो वचन निभाने।
दूर किनारे गाँव,सजन का गेह बसाने।
कहती पाखी बात,अभी मत होना आकुल।
बेटी रखना लाज,कहे तेरा ये बाबुल।
*मनोरमा जैन पाखी*
÷×÷÷÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷
[28/12 8:22 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
*दिनाँक- 25/12/19*

कुण्डलिया (17)
बिषय- बाबुल

मेरी बिटिया लाडली, अपना रखना ख्याल।
बाबुल के घर छोड़ कर, जाना है ससुराल।।
जाना है ससुराल, परायी होती बेटी।
सह लेना चुपचाप, नहीं करना मजिस्ट्रेटी।।
बच्चे करे उदंड, न करना तुम हथफेरी।
घर का रखना मान, लाडली बेटी मेरी।।

कुण्डलिया (18) 
विषय- भैया

रोना कभी नहीं बहन, सुन लो मेरी बात।
जीवन के इस भोर में, कभी न आये रात।।
कभी न आये रात, मगर यह भी तो सुन लो।
साहस से हर काम, करोगे इतना गुन लो।।
अपने भीतर आप, प्रेम हरदम ही बोना।
भैया तो है साथ, नहीं बिलकुल भी रोना।।


*दिनाँक-26/12/19*
कुण्डलिया(19)
विषय - बहना

बहना तुमको देखकर, गुजरे शुभ दिन रात।
प्यारी लगती हो बड़ी, जब करती हो बात।।
जब करती हो बात, विकल मन मुस्काता है।
खुश तुमको ही देख, चैन मुझको आता है।।
चाहूँ क्या मैं और, मुझे है इतना कहना।
जियो हजारो साल, लाडली प्यारी बहना।।

कुण्डलिया(20)
विषय - सखियाँ

सखियाँ यदि होती नहीं, कैसे आता चैन।
दिन भी कटता ही नहीं, कैसे कटती रैन।।
कैसे कटती रैन, बताओ इस जीवन के।
लाये कोई ढूँढ, वही फिर दिन बचपन के।।
पढ़ना-लिखना साथ, वही चमकीली अखियाँ।
फिर से मुझको याद, आ गईं हैं सखियाँ।


*रचनाकार - उमाकान्त टैगोर कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)*
[28/12 8:31 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 28.12.19

कुण्डलियाँ (21) 
विषय- *कुनबा*

कुनबा बनता प्रेम से, होता मिलन-वियोग।
घर को नव आकार दे, आपस का सहयोग।।
आपस  का  सहयोग, एक  दूजे की ताकत।
सुख-दुख सहना साथ, सभी की होती आदत।।
छोटा  सा  संसार, जहाँ ये मन है रमता ।
पगता प्रेम प्रगाढ़, तभी ये कुनबा बनता।।



कुण्डलियाँ (22) 
विषय- *पीहर*

प्यारा पीहर छोड़कर, चली लली ससुराल।
मात-पिता आशीष दें, सदा रहे खुशहाल।।
सदा रहे खुशहाल, हँसी होठों पर हरदम।
आए मैका याद, नहीं करना आँखें नम।।
करना सबका मान, सम्मान  रहे  हमारा।
वही  तुम्हारा  गेह, पराया पीहर प्यारा।।


रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[28/12 8:34 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 28/12/19
कुण्डलियाँ- (21)
विषय - *कुनबा*
सपना कुनबा  देखता, हर अपना हो पास। 
मंदिर की घंटी बजे, यू बजती है श्वास।। 
यू बजती है *श्वास*, *श्वास* जब मुख से निकली । 
गुजरी कैसी *रात*, *रात* भर रोती तितली ।। 
सुवासिता सुन *राग*, *राग* में वोही अपना । 
भले एक हो *तार*, *तार* में बाधो सपना ।। 

सपना -गहरी नींद में देखते है
         भविष्य के लिए सोचना 
श्वास - साँस, आह
रात - निशा, निराशामयी 
तार - सोने चांदी के तार 
        तार भेजने का पता

कुण्डलिया-(22)
विषय- *पीहर*  

पीहर हो अपना सदा, ज्यों पीपल की छाँव। 
भैया मेरे बात सुन, खेलो मत धन दाँव।।
खेलों मत धन दाँव, प्रीत में रीत  समाई। 
क्यों शादी के बाद, हुई है सुता पराई।। 
सुवासिता मन हर्ष , झूम के गाती सोहर। 
फैलाकर मन पंख, सोच में उड़ती पीहर।।

           🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[28/12 8:37 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक- 24/12/19

15 *कविता*

कविता ही कविता दिखे,विषय वस्तु संसार।
चुन चुन कवि की लेखनी, लिखे हृदय उद्गार।
लिखे हृदय उद्गार, छंद रस करे समाहित।
अलंकार मय काव्य,लोक हित भाव प्रवाहित।
कहती रुचि करजोड़,रश्मि देती ज्यों सविता।
सर्व सुखद परमार्थ,सदा निश्रित हो कविता।

 16 *ममता*

मूरत है ममतामयी,माँ होती अनमोल।
माता के उपकार को ,कोई न सके तोल।
कोई न सके तोल,झेलती हर संकट को।
सबका रखती ध्यान,हटाती पथ कंटक को।
कहती रुचि करजोड़,बड़ी भोली है सूरत।
होती बड़ी महान, भलाई की यह मूरत।

कंटक- काँटा

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

*दिनाँक - 25/12/19*
कुण्डलिया

17  *बाबुल*

बाबुल मत मारो मुझे,तेरी हूँ संतान।
आने दो जग में मुझे,सदा करूँ सम्मान।
सदा करूँ सम्मान,शिकायत नहीं करूँगी।
सदा निभाऊँ फर्ज,तुम्हारा ध्यान रखूँगी।
कहती रुचि करजोड़,नहीं होना अब व्याकुल।
दो कुल चलूँ सँवार,नाज होगा सुन बाबुल।

18  *भैया*

आया श्रावण पूर्णिमा,रक्षाबंधन पर्व।
घर आवें बेटी बहन,भैया करते गर्व।
भैया करते गर्व,बाँधती राखी बहना।
प्रेम पगी ये डोर,कलाई की है गहना।
कहती रुचि करजोड़,मिठाई सबने खाया।
यह पावन त्यौहार,नेह बरसाने आया।

सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

[28/12 8:40 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:- 26/12/19 

19. बहना

बहना पीहर छोड़कर,जब जाती ससुराल।
जीवन भर रहती वहां,यादों को संभाल।
यादों को संभाल, सेतु का धर्म निभाती।
दोनों कुल का मान, समझ सबको अपनाती।
सबके प्रति समभाव,यही नारी का गहना।
चुनकर सच का मार्ग,बढ़ो तुम प्यारी बहना।।
~~~~~~~~~~~~~~~~
20) सखियाॅ

सखियाॅ सुख दुख बांटने, करती है संवाद।
विगत दिनों की बात को, साथ बैठ कर याद।
साथ बैठ कर याद, मिलन को ताजा करतीं।
साझा कर निज भाव ,खुशी से आहें भरतीं।
सारे सुख दुख भूल,खूब मटकाती अॅखियाॅ।
हर पल का आनंद ,उठाती हैं ये सखियाॅ।।
~~~~~~~~~~~~~~~~
कुंडलियां:- 28/12/19

21. कुनबा

रहकर कुनबा में सभी ,करते अपना काम।
इसके संग समाज का,जुड़ा हुआ है नाम।
जुड़ा हुआ  है नाम,यहीं सब मिलकर रहते।
भूख भगाने लोग,घोर विपदा भी सहते।
बढ़े देश का मान,काम हो सोच समझकर ।
सफल करो अभियान, एक कुनबा में रहकर।।
~~~~~~~~~~~~~~
~~~

22. पीहर

अपना पीहर देख कर, वह है बहुत उदास।
अब तक क्यों आये नहीं, सजना मेरे पास।
सजना मेरे पास, सोच में डूबी रहती। 
सीमा में तैनात, पिया को अब क्या कहती।
करती है मनुहार , देखकर हर दिन सपना।
भेजो पिय संदेश, मानकर हमको अपना।।

महेंद्र कुमार बघेल
[28/12 9:02 PM] सरोज दुबे: कलम की सुंगध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -22
दिनांक -28-12-19

,विषय -कुनबा 

रहना है जो हर्ष से,
कुनबा से हो प्यार l 
सुख दुख दोनों में रहे, संग संग हर बार 
संग संग हर बार, मिले बूढ़ों का साया 
और मिले फिर स्नेह, बढ़े आपस की माया 
कहे सरोज विचार, सभी बातों को सहना 
मोती बन कर संग, सभी धागे में रहना 

कुंडलियाँ -23
दिनांक -28-12-19

विषय -पीहर 

भैया पीहर है सदा, तेरे से गुलजार  l
मातु पिता के बाद में, तेरा है घर बारl
तेरा है घर बार,  
मान तुम देते रहना l
आऊँ हर त्यौहार, यही था माँ का कहना l
कहती सुनो सरोज, रही बन मैं तो गैया l
देखूँ तेरी राह, याद ये  रखना भैया l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏

[28/12 9:27 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छन्द शाला। 🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर सन्मान के लिए। 
दिनांक 28-12-19
कुंडलियाँ क्र21
1) कुनबा, 🌹
मेरा कुनबा है बड़ा, सारे रहते साथ। 
दो पीढी यह तीसरी,हाथ में लिए हाथ। 
हाथ में लिए हाथ,संग सुख दुःख सब सहते,
साझा है परिवार,रोज यह कृति से कहते। 
कहे कमल कर जोड़,एक है सबका डेरा। 
सब दुनियाँ को छोड, अलग है कुनबा मेरा। 

 कुंडलियाँ क्र22
2) पीहर🌹
पीहर से हर लाय पी,बना सुहागन आज। 
बहुत बडा दायित्व है,रखना दो घर लाज।। 
रखना दो घर लाज,कहीं न रहूँ अधिकारी। 
स्त्री इज्जत सामान,सजी गुड़ियाँ बेचारी। 
कमल कहे धर धीर,नार का जीना दूभर।     अधिकारों की पीर,नहीं है स्त्री का पीहर। 

रचना कार डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[28/12 9:42 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 28.12.19

कुण्डलियाँ (19) 

विषय-बहना

यमक का एक प्रयास......

*बहना* मेरी तारिका,है हम सबकी जान।
छेड़े जब वो रागिनी, घोले मिश्री  कान।
घोले मिश्री *कान,कान* न देती  बात पर।
हिरणी *जैसी* *चाल,चाल* नहीं चलती मगर।
करती दिल पर *राज,राज* न किसी से कहना।
फूटे न एक *बोल,बोल* तो कुछ तू *बहना* ।।


कुण्डलियाँ (20) 
विषय-सखियाँ

सखियाँ मिल बैठीं चार,कली ओस पिक घास।
मन व्यथा कहें दिल खोल,समय न मानव  पास।
समय न मानव पास,धैर्य का बाँध अब टूटा।
करता अत्याचार,सखियो! हाथ भी छूटा।
सुन ये अनु तू  आज,कहें ये भीगी अँखियाँ।
अब न  कर तिरस्कार,कह रही चारों  सखियाँ।।

रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल
[28/12 9:47 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर  हेतु
दिनाँक-28/12/2019
(19-)
विषय-बहना

बहना मेरी चाँदनी, चमके आँगन बीच।
जैसे उतरी अप्सरा,नभ से अँखियाँ मींच।
नभ से अँखियाँ मींच,डली मिश्री सी बोली
चले हंस की चाल ,कली ने अँखियाँ खोली।
जग की टेढ़ी चाल, सदा तू बच कर रहना।
मेरे घर का मान, बचा रखना तू बहना।


20
विषय-सखियाँ
सखियाँ तपती धूप में,ठंडी सी हैं छाँव।
चूड़ी खनके हाथ में,पायल छनके पाँव।
पायल छनके पाँव,सदा मन को हरसातीं।
 सुख दुख की कर बात, मगन मन को कर जातीं।
करके उनकी याद ,सदा भीगें ये अँखियाँ।
कनक कनी की कोर, कभी छूटे मत सखियाँ।


(21)
विषय-कुनबा
तिनका तिनका जोड़ के ,चिड़िया बैठी नीड़।
कुनबा आये काम ही ,कौन काम की भीड़।
कौन काम की भीड़,बुने मोह के ये धागे।
आगे आये काल, काल से तो सब भागे।
चिड़िया भागे छोड़, किया पालन था इनका।
टूटा कुनबा और,बिखरा नीड़ का तिनका।



(22)
विषय-पीहर
डोली में गोरी चली,अपने पिय के देश।
देखे पीहर की गली,,बना अनोखा वेश।
बना अनोखा वेश,बड़ी मन में अभिलाषा।
कम था बड़ा दहेज, मिले दुख हुई निराशा।
 मिलता जहाँ दुलार, मिली जहरीली गोली।
अर्थी निकली हाय,अभी आई जो डोली।


रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[28/12 9:50 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला 
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -28/12/19

कुनबा (21)

कुनबा मिटता देखकर,माता पिता निराश ।
रहें सहोदर एक सँग,  उनके यही प्रयास ।
 उनके यही प्रयास , परस्पर होता विघटन।
 कहाँ बचा सहकार , द्वेष का बस आवंटन ।
कह राधे गोपाल, अरे यह जीवन लंबा ।
हमें चाहिए प्रेम ,समर्पण वाला कुनबा।।

पीहर (22)

पीहर जब भी छूटता, रोते हैं दो नैन।
 मात-पिता की लाडली, होती क्यों बेचैन।।
 होती क्यों बेचैन, कहें अब सखियाँ सारी।
 जाएगी ससुराल, हमारी गोरी प्यारी।
कह राधेगोपाल, अरे तू यूँ मत सीहर ।
रोते हैं दो नैन, सदा जब छूटे पीहर।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

[28/12 10:03 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 

सादर समीक्षार्थ 🙏🏼

(१४) उपवन 

उपवन कुसुमित हरा, फूलों से भरपूर। 
कलियाँ कोमल अनछई, ढूँढ रहे दो शूर॥
ढूंढ रहे दो शूर, गौर श्याम सुगठित तन। 
चौड़े वक्ष बलिष्ठ, छटा तेजस्वी कणकण॥
कमल सरीखे नैन, मनोहारी मृदु चितवन।
गुरु हित चुनते फूल, प्रात पावन आ उपवन॥

(१६) ममता 

ममता माँ की बह रही, गिरे नयन से नीर।
बहता स्तन से दुग्ध है, वय मर्यादा चीर॥
वय मर्यादा चीर, गोद बैठाती माता।
राम राम कह राम, नेह मुख घुलता जाता॥
ह्रदय न धरता धीर, वेग न हर्ष का थमता।
कितने बरसों गौण, रही होकर यह ममता॥

(१७) बाबुल 

बाबुल बोले थे, सखी, जा बिटिया उस देश। 
पीछे मुड़ मत देखना, करना मोह न लेश॥
करना मोह न लेश, रहे मन तव भक्ति खरी। 
आलस निद्रा त्याग, सदा तन में शक्ति भरी॥ 
पाल पिता की सीख, न होता मन यह आकुल।
राह कठिनतम लाँघ, चली रख हिय मैं बाबुल॥

(१८) भैया

भैया, सुनिए दूर से, बुला रहे श्री राम। 
हा लक्ष्मण, हा, हा सिया, बोल रहे अविराम॥
बोल रहे अविराम, विकट न विपदा छाई। 
करिये अब न विलम्ब, जाइये गति से, भाई॥
कैसे जाऊँ छोड़, अकेली, तुमको, मैया। 
है मुझको विश्वास, सर्व सक्षम मम भैया॥

गीतांजलि ‘अनकही’ 🙏🏼

[28/12 10:04 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 28.12.2019

*कुण्डलियाँ (19)*
*विषय :- सखियाँ*

चम चम चमके चंद्रमा, चाल चले चित चोर।
सखियाँ सजती साँझ सी, घिरे घटा घनघोर।।
घिरे घटा घनघोर, धरा का क्षण क्षण साजे।
कण कण महका आज, साज थम थम के बाजे।।
पल पल देखे राह, पयलिया बाजे छम छम।
मंद मंद मुस्काय , चमकते कान्हा चम चम।।

*कुण्डलियाँ (20)*
*विषय :- बहना*
बहना सखियों सी लगे, समझे मन का हाल।
संकट के क्षण मातु सी,बन जाती है ढाल।।
बन जाती है ढाल, ढाल में हो जब जीवन।
रिश्ता है अनमोल, रक्त का बंधन पावन।।
है वो घर का मान, मान उसका हर कहना।
बहना मात समान, मात पाए क्यों बहना।।


*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*

[28/12 10:11 PM] कमल किशोर कमल: नमन
28.12.2019
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।

21-कुनबा
छोटे कुनबे हो गये,पति पत्नी अरु लाल।
बड़ी मुसीबत आ पड़ी,छोड़ बड़े निज हाल।
छोड़ बड़े निज हाल,घरों में ताले पड़ते।
अच्छी बड़ी सलाह,मिलन में पाले पड़ते।
कहे कमल कविराज,देखिए रिश्ते खोटे।
भाई मीठ न बाप,हो गये कुनबे छोटे।
22-पीहर
पत्नी को अच्छा लगे,अपना पीहर गाँव।
मातु पिता रहते वहाँ,मिले पीपली छाँव।
मिले पीपली छाँव,गाँव की सोंधी माटी।
खेली लब्भो पाल,सखिन संग रातें काटी।
कहे कमल कविराज,वहाँ से नाता सच्चा।
बचपन वाली प्रीत,लगे पत्नी को अच्छा।
कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
🌹👏

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर संकलन

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  2. साभार , अप्रतिम संकलन।

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