Saturday, 18 January 2020

टूटे सपनों की नगरी...नीतू ठाकुर 'विदुषी'

टूटे सपनों की नगरी में 
आशाएं भी टूटी टूटी 
ढूँढ रहा है मन का पंछी 
जिनमे खुशियाँ छोटी छोटी 

व्यथा ज़िन्दगी बन कुंठित
जब पीर हृदय की गाएं 
दिशा गूँजती हैं चारों
भ्रांत अंत करती आहें 
एकाकी तन्हा यह जीवन 
मन की वीणा रूठी रूठी 

यादों से धुंध हटा कर 
मन मीत ढूंढता बिछड़ा
चाल समय की ये कैसी
नात बात से है पिछड़ा 
कितनी गाँठे हैं रिश्तों की 
फिर भी सारी छूटी छूटी 

लक्ष्य साधना है मन की
हाथ शेष क्यों हैं खाली
भरी आंसुओं से आँखें
रिक्त सुखों की ये प्याली
जीवन तृष्णा हरने वाली 
हर मटकी है फूटी फूटी 

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

4 comments:

  1. सुंदर नवगीत,
    निखरते बिम्ब,
    चमकते शब्द,
    नवीन कहन
    सुंदर भावाभिव्यक्ति
    विदुषी जी बधाई स्वीकार करें

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय ...स्नेहाशीष बनाये रखिये 🙏🙏🙏

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  2. अरे वाह बहुत सुंदर लिखा नीतू..उपनाम जँच रहा है।
    यादों से धुंध हटा कर
    मन मीत ढूंढता बिछड़ा
    चाल समय की ये कैसी
    नात बात से है पिछड़ा
    कितनी गाँठे हैं रिश्तों की
    फिर भी सारी छूटी छूटी

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ।

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    1. शुक्रिया सखी श्वेता 🙏🙏🙏

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