[19/01 6:04 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगंध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 19.01.2020 (रविवार )
(57)
विषय - आगे
आगे पीछे देख कर, चलना सबको यार।
कहीं धूप छाया मिले, मत होना लाचार।।
मत होना लाचार, जिंदगी है बेगाना।
हिम्मत से हो काम, कर्म पथ बढ़ते जाना।।
कहे विनायक राज, लगन से किस्मत जागे।
लगे उन्नति हाथ, बढ़ोगे सबसे आगे।।
(58)
विषय - मौसम
आया मौसम प्यार का, करले बातें चार।
लगे झूमने फूल भी, छाये आज बहार।।
छाये आज बहार, मधुप भी गुन-गुन गाते।
मिलने को बेचैन, तितलियाँ भी मुस्काते।।
कहे विनायक राज, देख मेरा मन भाया।
सुखद सुहाना आज,देखलो मौसम आया।।
बोधन राम निषादराज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[19/01 6:05 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम कुंडलियां शतकवीर हेतु
अनंत पुरोहित अनंत
55) मेरा
मेरा मैं मुझको कहे, स्वार्थी की पहचान।
छोड़ो अब निज स्वार्थ को, सबको अपना मान।
सबको अपना मान, कि सबमें प्रभु हैं बसते।
सत्य गये यह भूल, मनुज ही मानव डसते।।
कह अनंत कविराय, स्वार्थ का मनमें डेरा।
भूला जन कल्याण, लगाता रट मैं मेरा।।
56) सबका
सबका यह कर्तव्य है, मानना संविधान।
यही देश की आन है, यही मान सम्मान।।
यही मान सम्मान, सभी को नियम सिखाता।
लोकतंत्र आधार, न्याय लोगों को दिलाता।।
कह अनंत कविराय, कि माने जब सब तबका।
तभी राष्ट्र उत्थान, तभी हो उन्नति सबका।।
रचनाकार-
अनंत पुरोहित अनंत
[19/01 6:05 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 19 जनवरी 2020
कलम की सुगंध छंद शाला
*कुंडलियाँ शतक वीर* हेतु
विषय -------- *आगे*
आगे बढ़कर कीजिए , उनको अब स्वीकार।
दलित मलिन पीड़ित दुखी,सहते जो अतिचार।।
सहते जो अतिचार, प्यार उन पर बरसाओ ।
समतावादी राज्य, बनाने आगे आओ ।।
कहे "निगम कविराज" , देश निद्रा से जागे ।
नवयुग का आह्वान , बढ़ें सब मिलकर आगे।।
विषय ---- *मौसम*
मौसम सम रहता नहीं , समय-समय की बात।
कभी धूप वर्षा बहुत, कभी शीत संघात ।।
कभी शीत संघात, नियम यह जीवन का भी।
सुख-दुख मिलन-वियोग, क्रमिक ऋतु सा मिलता भी।।
"निगम" रहो सानंद, लघुत्तम जीवन जौ-सम ।
किसको क्या मालूम, बदल जाए कब मौसम।।
कृष्ण मोहन निगम
सीतापुर,सरगुजा(छ.ग.)
[19/01 6:05 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *19.01.2020 (रविवार )*
57- आगे
***********
आगे-आगे वो चलें, जिनके मन में आग।
करें राष्ट्र निर्माण जो, लगा न जिन पर दाग।
लगा न जिन पर दाग, देश पर मर-मिट जायें।
जहाँ खड़े हों वहाँ, राष्ट्र सम्मान बढ़ायें।
"अटल" करें बलिदान, पीठ दे कभी न भागें।
हर लालच दें त्याग, चलें बस वो ही आगे।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
58- मौसम
***********
मौसम के हर रंग का, करिए स्वागत आप।
सच मानें इस बात को, अलग दिखेगी छाप।
अलग दिखेगी छाप, इसी में घुलिए मिलिए।
धोखा कभी न होय, साथ मौसम के चलिए।
"अटल" पहन परिधान, बनायें अनुपम संगम।
वर्षा, गरमी, शीत, सुहाना है हर मौसम।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[19/01 6:14 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
55. आगे
आगे बढ़कर कीजिये, अब उनका संहार।
बैठे हैं जो देश मे, छिपे हुए गद्दार।।
छिपे हुए गद्दार, उन्हें चुन चुनकर मारो।
उनपर तुम लवलेश, नहीं अब दया विचारो।।
कह अंकित कविराय, नहीं अब बचें अभागे।
उर में भरकर आग, बढो तुम थोड़ा आगे।।
56. मौसम
मौसम को देखो जरा, बदल रहा है रंग।
हमको अब इसके नहीं, अच्छे दिखते ढंग।।
अच्छे दिखते ढंग, जंग इसने है ठानी।
मर्यादाएं तोड़, सभी करता मनमानी।।
कह अंकित कविराय,घेरता जाता है तम।
बदल रहा है नित्य, रंग अपना ये मौसम।।
57. पनघट
पनघट सूने हो गए, कुएं गए सब सूख।
मानव ने निज स्वार्थ में, काटे जब से रूख।।
काटे जब से रूख, सूखता जाता पानी।
किन्तु नहीं वो छोड़, सका अबतक नादानी।।
कह अंकित कविराय,मनुज खोले अन्तर पट।
तो वापस फिर लौट, सभी आ सकते पनघट।।
58. सैनिक
सैनिक अपने देश का, सच्चा पहरेदार।
करता है वो देश की, सीमाओं से प्यार।।
सीमाओ से प्यार, रातदिन जगता रहता।
वर्षा, सर्दी, धूप, सभी वह सहता रहता।।
कह अंकित कविराय, कार्य ये उसका दैनिक।
सीमा पर दिनरात, खड़ा रहता है सैनिक।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[19/01 6:18 PM] राधा तिवारी खटीमा: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - रविवार*
*दिनांक-19/01/20*
*विषय:आगे,मौसम
*विधा कुण्डलियाँ*
राधा तिवारी 'राधेगोपाल
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
आगे(59)
आगे चलते राम है, पीछे सीता मात।
तन आभूषण है नहीं, ढके फूल से गात।
ढके फूल से गात, पहन वो भगवा चलते।
छोड़ महल के ठाठ, घने जंगल में पलते।।
कह राधेगोपाल, अरे लक्ष्मण भी भागे।
पीछे सीता मात, राम जी चलते आगे।।
मौसम(60)
मौसम अब तो ले रहा, है कितने ही रूप ।
कपड़े हरदम ही पहन, मौसम के अनुरूप।।
मौसम के अनुरूप, कभी तो होती गरमी।
होती है बरसात ,कभी मौसम में नरमी।
कह राधेगोपाल, सभी का होता संगम।
रखना अपना ध्यान, बदलता हर पल मौसम।।
#राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[19/01 6:20 PM] धनेश्वरी सोनी: कुण्डलिनीयां
शतकवीर कलम की सुगंध
आगे
आगे बढ़ते जो सदा, करे श्रम वही खास ।
चलते बढ़ते ही रहो ,सफलता आस पास ।
सफलता आस पास ,मेहनत से ही जीना ।
गढे वही इतिहास ,बहे है जहाँ पसीना ।
रहो उसी के साथ, वक्त से आगे जागे ।
कहती गुल यह बात ,सीख तुम रहना आगे ।
मौसम
मौसम सावन का खास ,खुशी से नाचे मोर
बच्चे रहते हो पास ,करते हरदम शोर
करते हरदम शोर, नाच गा घुमते फिरते
खेलते सोते साथ, गीत को गाते फिरते
खाते पीते देख, दूध पनीर ले हरदम
कहती गुल यह बात,यही है प्यारा मौसम
✒ धनेश्वरी सोनी 'गुल'
बिलासपुर
[19/01 6:22 PM] सरला सिंह: *19.01.2020 (रविवार )*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - रविवार*
*दिनांक-19/01/20*
*विषय:आगे,मौसम*
*विधा कुण्डलियाँ*
*57-आगे*
आगे आगे चल रहा, देख सखी री भाग्य।
कितना भी करते जतन,रुके नहीं दुर्भाग्य।
रुके नहीं दुर्भाग्य , हाथ मलते रह जाते।
करते लाख उपाय, नहीं कुछ भी कर पाते।
कहती सरला आज,लोग कितना ही भागे।
समय-चक्र बलवान, चले यह आगे आगे।।
*58-मौसम*
मानव भी मौसम बना, बदले हरदम रूप।
सुन्दर सा लगता कभी, बनता कभी कुरूप।
बनता कभी कुरूप, देख राक्षस शरमाये।
मिलता कभी सुरूप,सभी के मन को भाये।
कहती सरला बात,बने कुछ मानो दानव।
सुंदर धरती आज,रहा बिगाड़ खुद मानव।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[19/01 6:33 PM] केवरा यदु मीरा: [1/19, 7:50 AM] केवरा: जय श्री कृष्ण 🙏🏼🙏🏼🌹
सादर नमन 🙏🏼🙏🏼🌹
[1/19, 7:51 AM] केवरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
18-1-2020
मेरा
मेरा साँई श्याम है, सब कुछ उनके हाथ ।
जैसा भी राखे सदा, चरण झुकाऊँ माथ ।।
चरण झुकाऊँ माथ, सुनो मेरे गिरधारी।
सिसके कभी न मात, जगत में बन दुखियारी ।।
हो न कभी लाचार, तनय का स्नेह घनेरा ।
मिले सहारा श्याम, साथ बस तुमसे मेरा ।।
सबका
सबका का दाता एक है, रख उन पर विस्वास ।
रहता तेरे साथ है, होना नहीं निराश ।।
होना नहीं निराश, वही तेरा रखवाला ।
थामे रखना हाथ, जपन कर नाम की माला ।।
झूठा यह संसार, छूट ते नाता कबका ।
नैया करते पार, राम जी मालिक सबका ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[19/01 6:37 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -57
दिनांक -19-1-20
विषय आगे
रहना आगे तुम सदा, जैसी भी हो राह l
तेरे कहने पर चलूँ, ऐसी मेरी चाह
ऐसी मेरी चाह, जगत के तुम रखवाले l
तुमसे है ये आस,खोल किस्मत के ताले l
कहती सुनो सरोज, भक्ति में मुझको बहना
विनती प्रभु ये एक , सदा तुम आगे रहना l
कुंडलियाँ -58
दिनांक -19-120
विषय -मौसम
बदला मौसम तुम नहीं, बदले मेरे मीतl
जनम जनम का साथ है,सच्ची मेरी प्रीतl
सच्ची मेरी प्रीत, कहे बिन मैं सब जानूl
तेरे मन की बात, कहे जो वो मैं मानू l
कहती सुनो सरोज, नैन सरिता से सजलाl
बहे प्रेम की धार, नहीं कुछ भी है बदला l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[19/01 6:39 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 19/01/2020
कुण्डलिया- ( *55*)
विषय - *मेरा*
मेरा कैसा भाग्य है , सब कुछ आधा देख ।
कर्म फलित फल अर्ध हैं , कैसा विधना लेख ।।
कैसा विधना लेख , पूर्ण मुझको कब मिलता ।
मुरझाता हैं पुष्प , चमन में देखा खिलता ।।
सुवासिता ले मान , भाग्य का है ये फेरा ।
तेरा है जो पुष्प, बना लेगा वो मेरा।।
कुण्डलिया -( *56*)
विषय - *सबका*
सबका प्रिय कान्हा रहे , कान्हा का प्रिय कौन।
बैजंती माला दिखे , सखा रहे सब मौन ।।
सखा रहे सब मौन , साथ में मिलकर रहते।
बिन धागे के आज , प्रेम में बंधे कहते।।
सुवासिता तो फूल, बनी बैजंती कबका।
माला बनकर कंठ , लगा कान्हा प्रिय सबका।।
कुण्डलिया - ( *57*)
विषय - *आगे*
आगे बढ़ना नर सदा , सच्चाई की राह।
नज़र लक्ष्य को भेद ली , मंजिल थामे वाह।।
मंजिल थामे वाह , बात मन की ही सुनना।
बहकावे में आज , गलत रास्ते मत चुनना।।
सुवासिता तो रोज , मिले ठोकर तब जागे।
पल में पल पहचान, नही कुछ पल से आगे।।
कुण्डलिया -( *58*)
विषय - *मौसम*
कहता हर मौसम सदा , रूप रहे जन संग।
कैसा होता अंत है , जाने कटी पतंग।।
जाने कटी पतंग , डोर से बंधी उड़ती।
दिये गले मिल काट , संग किस्मत जब जुड़ती।।
सुवासिता दे ध्यान , पास अपने कब रहते।
वक्त देख इंसान , बदलते मौसम कहते।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[19/01 6:41 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - १९.०१.२०२०
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *आगे*
आगे उड़े पतंग तो, पीछे रहती डोर!
कठपुतली सी नाचती, मन के वश दृग कोर!
मन के वश दृग कोर , रहे मन वश तृष्णा के!
इच्छा तृष्णा मोह, कृष्ण वश में कृष्णा के!
शर्मा बाबू लाल, बँधे सब प्रभु के धागे!
लगते सब असहाय, मनुज विधना के आगे!
•. ••••••••••
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *मौसम*
आते मौसम की तरह,सुख दुख जीवन संग!
गर्मी या बरसात हो, शीत कपाएँ अंग!
शीत कपाएँ अंग, पवन पुरवाई चलती!
कभी बसंत बयार, आश जन मन में पलती!
शर्मा बाबू लाल, विपद मिट हर्ष सुहाते!
बदले जीवन राग, रंग सम मौसम आते!
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
[19/01 6:44 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *आगे , मौसम*
दिनांक --- 19.1.2020....
(57) *आगे*
आगे आगे राम जी , पीछे से लक्षमण ।
चली सवारी राम की , सीता का समर्पण ।
सीता का समर्पण , राम वन में हैं जातें ।
सुना अवध का हाल , देख आँसूं है आते ।
सुन सब हैं बेहाल , साथ जाते भागे भागे ।
नहीं राज्याभिषेक , भाग्य सब से ही आगे ।।
(58) *मौसम*
पावन मौसम छा गया , हिय में उठे हिलोर ।
मन मयूर तब नाचता , नाचें तन तब जोर ।
नाचें तन तब जोर , सुहाना मौसम छाया ।
साजन आना भोर , प्रभू की दिखती माया ।
तुम मेरे चितचोर , मिले जीवन में सावन ।
मौसम का है गीत , प्रीत मिलता है पावन ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 19.1.2020.....
_______________________________________
[19/01 6:45 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(57)
विषय-आगे
आगे को तुम बढ़ चलो ,तज पीछे की बात।
बीती बात अतीत है ,रच लो नया प्रभात।
रच लो नया प्रभात ,स्फूर्ति नई जगाओ।
भरकर नई उमंग प्रगति- पथ बढ़ते जाओ।
इस दुनिया के लोग, उदित के पीछे भागे ।
सफल उसी का काम, चले जो सबसे आगे।
(58)
विषय-मौसम
पलपल बदले जिंदगी ,ज्यों मौसम का रूप।
अभी अभी वर्षा हुई, खिली चटक अब धूप।
खिली चटक अब धूप,यही जीवन की माया।
कभी हर्ष की बात,कभी दुख -वारिद छाया।
ये परिवर्तन देख, भरे आशा से आँचल।
मौसम से नर सीख, बदलता जीवन पल पल।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[19/01 6:57 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक--19/1/20
57
आगे
आगे आगे हम चले,पीछे चलता काल,
मानव सच से भागता, होता फिर बेहाल,
होता फिर बेहाल,समय जाता है बीते।
रोता फिर बेताल,लिए हाथों को रीते।
कहती अनु यह देख,सत्य से कब तक भागे।
करले अच्छे काम,चलो सब सबसे आगे।
58
सावन
सावन में पानी नहीं, सरदी में बरसात।
जाने कैसा हो रहा,मौसम अब दिन रात।
मौसम अब दिन रात,कभी भी रूप बदलता।
गर्मी हो विकराल,लगे फिर जीवन जलता।
कहती अनु सुन बात,कभी था ये मनभावन।
भादों की क्या बात,नहीं बरसे अब सावन।
अनुराधा चौहान
[19/01 6:58 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर
दिनांक १९/०१/२०
(५७) आगे
आगे आगे कृष्ण हैं, पीछे पीछे ग्वाल।
गोकुल गलियों में सखी, होती बडी धमाल॥
होगी बडी धमाल, नहीं इसमें है शंका।
नटखट जसुमति लाल, बजे दश दिश में डंका॥
गागर तोड़े कान्ह, दही माखन चख भागे।
बछडे खोले खूँट, चले कर उनको आगे॥
(५८) मौसम
आया मौसम पौष का, सब दिश हिम का पात।
ऋष्यमूक गिरि श्वेत है, पम्पा सर भी, तात॥
पम्पा सर भी तात, जमी है जल की धारा।
किरण भानु की मंद, हुआ दिवस अंधियारा॥
थर थर काम्पें गात, गुफा में कुहरा छाया।
मुझ हित क्यूँ तू भ्रात, ऐश्वर्य तज वन आया॥
गीतांजलि
[19/01 7:11 PM] रजनी रामदेव: आगे
आगे आगे राम हैं, पीछे सीता मात।
राजमहल को छोड़कर, हैं जंगल को जात।।
हैं जंगल को जात, हो गए वो वनवासी।
लखन चल दिये साथ, उर्मिला भईं उदासी।।
दशरथ देकर प्राण, निभाये प्रण के धागे।
मन में पितृ सम्मान, राम भी सबसे आगे।।
मौसम
डाली डाली खिल रही, आने लगा बसन्त
मौसम भी लहराएगा,झूम झूम बेअन्त
झूम झूम बेअन्त, नाचती हैं अब कलियाँ
नारी कर श्रृंगार, लगें फूलों की डलियाँ
झूम रहा हो मस्त, आज कुदरत का माली
आया देख बसन्त,खिली अब डाली डाली
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[19/01 7:15 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 19/01/2020
दिन - रविवार
57 - कुण्डलिया (1)
विषय - आगे
**************
आगे बढ़ते जाइए , रुके नहीं थक हार ।
राहों में कण्टक मिले , कर लो उनसे प्यार ।
कर लो उनसे प्यार , यही है सार सफलता ।
पुरुषार्थी के साथ , जमाना भी तो चलता ।
सुदृढ़ बने जंजीर , नहीं टूटे फिर धागे ।
सब को लेकर साथ , निरंतर चलिए आगे ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
58 - कुण्डलिया (2)
विषय - मौसम
****************
आया मौसम शीत का , ठिठुरन करती पस्त ।
व्याकुल होते लोग सब ,जन जीवन है त्रस्त ।
जन जीवन है त्रस्त , घड़ी ये कैसी आई ।
है अलाव का साथ , काम आए न रजाई ।
जाड़े ने फिर आज ,क्रूर सा रूप बनाया ।
घर में दुबके लोग , डरावन मौसम आया ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[19/01 7:19 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक- 19/01/2020
57 *आगे*
आगे आगे रामजी,पीछे लक्ष्मण भ्रात।
जनक दुलारी बीच में,गौर वर्ण है गात।।
गौर वर्ण है गात,अनुसरण पति का करती।
दुर्गम पथ कंक्रीट,नहीं फिर भी है थकती।।
कहती रुचि करजोड़,प्रीत के अनुपम धागे।
सोहे साध्वी रूप,अवधपति चलते आगे।।
58 *मौसम*
मौसम पल पल बदलता,छिन में बादल धूप।
गर्मी ,सर्दी या कभी,मेह अनेकों रूप।।
मेह अनेको रूप,बिखरती छटा निराली।
काले काले मेघ, करे मन को मतवाली।।
कहती रुचि करजोड़,प्रकृति की आँखें हैं नम।
आँख मिचौली खेल,खेलता पल पल मौसम।।
✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[19/01 7:25 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतक वीर हेतु*
दिनाँक -19.1.2020
कुंडलिया (57) *आगे*
आगे बढ़ते जाइए, चढ़ते नव सोपान।
पीछे मु़ड़ मत देखिए, होता है व्यवधान।।
होता है व्यवधान, समय मत व्यर्थ गँवाओ।
रहे लक्ष्य पर ध्यान, नयी नित राह बनाओ।।
आती मुश्किल देख, भीरु तो डरकर भागे।
करके दृढ़ संकल्प, सदा तुम बढ़ना आगे।।
कुंडलिया (58) *मौसम*
बदले मौसम की तरह, नहीं चाहिए मीत।
इनकी प्रेम कहानियाँ, होती रोज अतीत।।
होती रोज अतीत, प्रीत ये पल में तोड़ें।
थाम एक का हाथ, साथ दूजे का छोड़ें।।
प्रांजलि उससे प्रेम, पात्र जो सच्चा निकले।
सदा निभाए साथ, नहीं मौसम सा बदले।।
पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[19/01 7:37 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंधशालाप्रणाम।
डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
कुंडलिया शतक वीर के लिए रचना।
कुंडलिया क्रमांक59
विषय मेरा
मेरा महत्व मात में,मिला मुझे मनमीत।
सत,स्निग्ध संवर्धनसे,गाया गोचर गीत।।
गाया गोचर गीत,रहा राहें रखवाला,
ममता मूरत मात,मुझे उसने ही ढाला।
कमल कहे कर जोड़,मात गुण अब है तेरा,
कहाँ उऋण तू होय,यही मन पूछे मेरा।
कुंडलिया क्र.60
विषय_ सबका
पाया अपनी उम्र में,तुमने जो भी लक्ष्य।
सबका ही कर भार है,इसमें सुन प्रत्यक्ष।।
इस में सुन प्रत्यक्ष,सभी ने साथ दिया है,
थोड़ा-थोड़ा भार, उठा कर बड़ा किया है।
कमल कहे कर जोड़,सभी ने हाथ बढ़ाया।
करतें उन्हें प्रणाम,ध्येय सबका ही पाया।।
[19/01 7:45 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
----------------------
कुंडलियाँ शतक वीर हेतु
दिनांक 15/ 01/ 2020
गलती
--------
गलती मेरी माफ हो,करती हूँ मनुहार।
दिल जब दुख जाये कभी, रच डाले अनुहार ।।
रच डाले अनुहार,नया सा कुछ कर पाते।
छोटी सारी बात,कहीं टूटे ये नाते।।
कहे निरंतर बात ,सपन सिंदूरी पलती।
तिल बन जाये ताड़ ,करो मत ऐसी गलती।।
बदला
-------
बदला सारा रूप है, बदला लेगी आज।
बहुत किया विध्वंस तो, बिगड़ा सारा काज।।
बिगड़ा सारा काज ,पवन धूमिल है सारा।
धुआँ भरा आकाश, रहा है बढ़ता पारा।।
कहे निरंतर बात ,धरा को जैसे अदला ।
अब क्या देगी साथ, ठीक वैसे ले बदला।।
दिनाँक 19/ 01/ 2020
कुंडलियाँ
--------------
आगे
-------
आगे भी रहते कभी, सबको दिया पछाड़।
मन में भर के हौसला ,चढ़ती रही पहाड़।।
चढ़ती रही पहाड़, फूल सा जीवन भाये।
करती परिश्रम आज, गीत सुख के कल गाये।।
कहती 'निरंतर' बात, नींद से फिर अब जागे।
थक के रोक मत चाल, बढ़ो सदैव ही आगे ।।
मौसम
---------
आया मौसम खास ये, दहके टेसू लाल।
कोयल छेड़ी तान है, पुरवइया दे ताल।।
पुरवइया दे ताल, प्रकृति भी हुई सुहानी ।
गाये वियोग गीत, याद दिलाये पुरानी।।
कहे निरंतर आज, सभी के मन को भाया ।
अनुपम यह मधुमास, हर्ष बरसाने आया।।
अर्चना पाठक 'निरंतर'
[19/01 7:49 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
१९/१/२०
कुसुम कोठारी।
कुण्डलियाँ (५७)
विषय-आगे
कविता क्या है जान लो , है भावों का गीत ,
पढ़ो और आगे बढ़ो, मत कर ऐसी प्रीत ,
मत कर ऐसी प्रीत ,भोर की लाली इसमें
सागर की है थाह , मग्न डूबे जो उसमें
कहे कुसुम ये ओस ,शीत में जैसे सविता ,
शीतल जैसे चाँद , राग है मन का कविता।
कुण्डलियाँ (५८)
विषय-मौसम
सूरज का मृदु हास है , उठी सुरंगी भोर ,
मौसम है पथ पर खड़ा , नाच रहे मन मोर ,
नाच रहे मन मोर , हवा में सौरभ भीनी ,
विटप खड़े हैं शांत , ओढ के चूनर झीनी ,
खुशी कुसुम मन झूम ,ताल में सुंदर नीरज
अति मोहक ये काल, लाल प्राची में सूरज ।।
कुसुम कोठारी।
[19/01 7:50 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787***रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
कुण्डलिया छंद शतकवीर सम्मान हेतु
55 ) आगे
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आगे आगे सैनिको , बढ़ते चलना आज ।
पूरी सरहद पर सुनो , बस भारत का राज ।।
बस भारत का राज , बजा दो भेरी डंका ।
अड्डों पर कर वार , जला दो अरि की लंका ।।
देना दम तुम रोज़ , दबा दुम दुश्मन भागे ।
देते सब आशीष , रहो वीरो तुम आगे ।।
56 ) मौसम
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मौसम करवट ले रहा , सर्दी का है राज ।
ठिठुरे जाते हैं सभी , कैसे होंगे काज ।।
कैसे होंगे काज , अभी अँधियारा छाया ।
छायी है अब धुंध , सर्द मौसम इतराया ।।
सूरज निकले आज , ज़रा सर्दी भी हो कम ।
विनती करते सोच , अभी बदले यह मौसम ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
19.1.2020 , 6:58 पीएम पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[19/01 7:55 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
कुण्डलियाँ(५७)
विषय-आगे
आगे की पड़ सोच में,भूला अपना आज।
जीवन में तेरे सदा, चिंता का है राज।
चिंता का है राज,पिसे फिर घुन के जैसा।
कठपुतली सा नाच,चले फिर जीवन ऐसा।
कहती'अभि'निज बात,समय घोड़े सा भागे।
जीवन जी भरपूर,पता क्या होगा आगे।
कुण्डलियाँ-(५८)
विषय-मौसम
कैसे मौसम चक्र का,बिगड़ रहा है हाल।
धरती का पारा बढ़ा,करे हाल-बेहाल।
करे हाल-बेहाल,प्रदूषण पैर पसारे।
पड़ी वनों पर मार,स्त्रोत जल सूखे सारे।
कहती'अभि'निज बात,चलेगा कब तक ऐसे।
बंध्या होती धरा,बचेगा जीवन कैसे।
रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[19/01 8:04 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
19.01.2020
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।
57-आगे
आगें-आगें चल पड़े,लिए तिरंगा तान।
झंडा ऊंँचा बोलते,सुर लय में है गान।
सुर लय में है गान,हिया में जज्बा जागा।
देशप्रेम के नाम,बुना है सुंदर धागा।
कहे कमल कविराज,सूत का चरखा तागें।
चल गाँधी के मार्ग, रखें सच्चाई आगें।
58-मौसम
बेमौसम बरसात से,फसल हुई बरबाद।
कृषकों के चूल्हे बुझे,कौन करे संवाद।
कौन करे संवाद,तसल्ली दिल से दे दे।
बड़ी समस्या भाँप,जरूरत झोला भर दे।
कमल कविराज कहे,मदद कर इमदादों से।
हो नुकसानी भान,बेमौसम बरसात से।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[19/01 8:06 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
19-1-2020
रविवार
आगे
आगे की तू सोच चल, बीती ताहि बिसार ।
सोच समझ हम पग धरे, क्षण भंगुर संसार ।
क्षण भंगुर संसार, प्रेम की भाषा बोलें ।
करे ह्रदय में घाव, वचन कटु को हम तौलें ।
मन में भरे विकार, मनुज से सबही भागे ।
सद विचार मन पाल, चले हम सबसे आगे ।।
मौसम
पल पल बदले है मनुज, तुम न बदलना मीत ।
जनम जनम का साथ है, मिल कर गायें गीत ।
मिल कर गायें गीत, मीत तुम प्रीत निभाना ।
छोड़ न देना साथ, बात यह भूल न जाना ।
कहती मीरा श्याम, माँगती फैला आँचल ।
रखना अमर सुहाग, साथ हो साजन हर पल ।।
केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[19/01 8:06 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★
*विषय.......गजरा*
विधा........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★
गजरा सजती केश में,लगती सुंदर नार।
गोरी शोभा तब बढ़े,पहने नव लख हार।
पहने नव लख हार,बनी वह ऐसी सजनी।
पावन करती द्वार,लगें मनभावन रजनी।
कहता है श्रीवास, सजें है नैनन कजरा।
लेकर हिय में प्रीत, बाल में सोहे गजरा।
★★★★★★★★★★★☆★★★★★
*विषय......डोली*
विधा....... कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★
डोली बैठी सांवली, चली पिया के द्वार।
लाल चुनर वह ओढ़ली,पहन गले में हार।
पहन गले में हार,देख ली साजन सपने।
रखती पावन नेह,मान दो कुल को अपने।
कहता है श्रीवास,बड़ी वो लगती भोली।
राखे सबकी लाज,सजी दुल्हन की डोली।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
*विषय.........झुमका*
विधा.........कुण्डलियाँ
पहनी झुमका कान में,और गले में हार।
सजती चूड़ी हाथ में,लगती सुंदर नार।
लगती सुंदर नार , माथ में सिंदूर सोहे।
बिंदी साजे भाल ,सभी का मन वह मोहे।
कहता है श्रीवास,नाक पर शोभित नथनी।
गाये मधुरिम गान ,लाल की साड़ी पहनी।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
*विषय......... आगे*
विधा.........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★
आगे आते देख कर,कांपे गोपी आप।
काया सहमी सी लगें,भांपे केशव ताप।
भांपे केशव ताप ,डरे वह फिर शरमाई।
कहती माधव नाथ,साथ पा कर हरषाई।
कहता है श्रीवास , बात ही मीठी लागे।
बनती गोरी खास, रही वह सबसे आगे।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
*विषय.......मौसम*
विधा........ कुण्डलियाँ
★★★★★★★★
आया मौसम झूम के,पायें प्रियतम प्यार।
बरखा बरसे बाग में,छायें छाजन द्वार।
छायें छाजन द्वार,भरे सब ताल तलैया।
पाये फल रसदार, करें है भ्रमण ततैया।
कहता है श्रीवास, धरा शीतलता भाया।
गोरी गाये गान, सखी अब सावन आया।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[19/01 8:16 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-18-01-020
55
विषय-मेरा
मेरा मेरा कह मरा, छोड़ा सबने साथ।
आया खाली हाथ था, जाता खाली हाथ।।
जाता खाली हाथ, तुझे सब अपने भूले।
करता परोपकार, झूलता यश के झूले।।
नौका लगती पार, हुआ है सुखद सबेरा।
जीवन नश्वर जान, कहो मत सब कुछ मेरा।।
56
विषय-सबका
आँखें लालच से ढँकीं, तब शत्रु बने आप।
स्वार्थ की प्रतिमा बना, नेकी को दे ताप।।
नेकी को दे ताप,बुराई को अपनाया।
सबका हित सहयोग, सदा के लिए भुलाया।।
गिरता दलदल दम्भ, गलाता अपनी पाँखें।
गीता देती सीख, खोल अब अपनी आँखें।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[19/01 8:50 PM] सुशीला साहू रायगढ़: ✍️*कलम की सुगंध छंदशाला*✍️
*कुण्डलिया शतकवीर के लिए मेरी रचना*
*59-----आगे-----19/01/2020*
दुनियाँ आगे घट रही, है नारी का मान।
आओ समाज में करें,बेटियों का सम्मान ।।
बेटियों का सम्मान,कभी व्यर्थ कहाँ जाते।
रोशन करती आज,देश विदेश घुम आते।
कह शीला कर जोड़,सीख देती ये खुशियाँ।
हँसती खिलती जान ,यही बेटी की दुनियाँ।
*60-------मौसम*
मौसम बदला आज तो,बिखरे निखरे रंग ।
आम बौर प्यारी लगे ,बसंत ऋतु के संग।।
बसंत ऋतु के संग,कोयल कुहुके काली।
तरू लता खग विहंग,प्रकृति के रूप निराली।
कह शीला ये बात,देखने को मन सीतम ।
मिजाज देखो खूब,आज निखरे हैं मौसम।।
सुशीला साहू "शीला"
रायगढ़ छ.ग.
[19/01 8:58 PM] नीतू ठाकुर 'विदुषी': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*
*दिनांक:- 19.1.2020*
*आगे*
आगे खड़ा भविष्य है, पीछे है इतिहास।
वर्तमान को साधले, कुछ पल रहता पास।।
कुछ पल रहता पास, नींव जीवन की रखता।
चले समय के साथ, हार कैसे वो सकता ।।
खोलें मन के द्वार, भाग्य सोये तब जागे।
बदलो हाथ लकीर,सुनहरा कल है आगे।।
*मौसम*
आया मौसम प्रेम का, बदले धरती रूप।
बागों में कलियाँ खिलीं ,सजी गुलाबी धूप।।
सजी गुलाबी धूप, पवन होता मस्ताना।
कोयल छेड़े तान,करे सबको दीवाना।।
नाचे मन का मोर, खुशी से हँसती छाया।
महके हैं दिन रात, सुहाना मौसम आया।
*नीतू ठाकुर 'विदुषी'
[19/01 8:58 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला
प्रणाम
कुंडलियाँ शतक वीर के लिएरचना कुंडलिया क्र.
विषय आगे61
आगे छाया है धुआँ,पीछे सुधर न पाय।
पवन के संग में उड़े, समय निकलता जाय।
समय निकलता जाय,कहांँ कुछ तू कर पाता।
करले लाख उपाय,बनें करता जो दाता।
कहे कमल कविराय,समय के कच्चे धागे।
विधि का गजब विधान,रखे सब रचकेआगे।
कुंडलिया क्र62
विषय _मौसम
नखरे मौसम के बड़े,कहो नवेली नार।
तपती पल में धूप है, पल में हो बरसात।।
पल में हो बरसात,कभी समझ नहीं आये,
मौसम का यह खेल,सात रंग धनु बनाये।
कहे कमल कविराय,रंग जल से है बिखरे।
सावन रंग दिखाय,देख मौसम के नखरे।
कृपया समीक्षा करें
[19/01 9:03 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु सादर
*(57)आगे*
सबसे आगे है खड़े, सैनिक वीर जवान ।
करे देश रक्षा सभी,देकर अपनी जान।
देकर अपनी जान, निडरता से है जीते।
देत देश हित प्राण,देश हित ही है मरते।
कहती मधुर विचार, देश के प्रहरी मन से।
होते पहरेदार,जागते पहले सबसे।
*(58)मौसम*
पड़ती मौसम मार जब,मचता हाहाकार।
फसल होय चौपट सभी, श्रम होय बेकार।
श्रम होय बेकार,हाथ भी होवें खाली।
धन दौलत की मार,निराशा घेरे काली।
कहती मधुर विचार, फसल जब गलती सडती।
कारण होती खास,मार मौसम की पड़ती ।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[19/01 9:12 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 19/01/2020
कुण्डलिया (57)
विषय- आगे
=========
आगे आओ नवयुवक, रचो नया इतिहास l
जैसा भारत चाहते, वैसा करो विकास ll
वैसा करो विकास, किसी को दोष न देना l
मन इच्छित बो बीज, फसल जैसी हो लेना ll
कह 'माधव कविराय', तभी किस्मत ये जागे I
प्रथम बताया मंत्र, व्यवस्था करलो आगे ll
कुण्डलिया (58)
विषय- मौसम
==========
कितना हो मौसम भला, फिर भी वह बदनाम I
कोई छाया चाहता, कोई चाहे घाम ll
कोई चाहे घाम, कहीं पानी की चाहत l
पानी से निर्माण, कहीं पानी से आहत ll
कह 'माधव कविराय', भला जन चाहे जितना l
मौसम का ये हाल, मनुज का होगा कितना ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[19/01 9:35 PM] भावना शिवहरे: विनती
विनती है मां शारदे, होय चरण से नात
तुमसे कभी न दूर हो, सुनती मेरी बात!!
सुनती मेरी बात, भाव में मेरे आना
माँगू तुमसे साथ, पाथ दर्शन बन जाना!!
बारंबार विचार , वही है सुख दुख सुनती!
दासी तेरी जान, कृपा हित करती विनती!!
भावना शिवहरे
[19/01 9:38 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Date: 19 Jan 2020
Note:
सबका
दाता सबका एक है, रुप भये अनेक।
रूप अलग है पूजते,मन केवल है एक।
मन केवल है एक,सदा करते है पूजा
मंगल मूरत रूप, प्रभु बिन कोई न दूजा।
प्रभु हदय आगार, हमारा सबका नाता।
सबके दाता राम, सबका एक है दाता।
शिवकुमारी शिवहरे
Title: मेरा
Date: 19 Jan 2020
Note:
मेरा
मेरी हरि अरजी सुनो,सब जग सर्जनहार
तुम बिन कोई नही,स्वारथ का संसार।
स्वारथ का संसार, हे ईश्वर के अविनाशी
लीजे मोहे उबार,हे प्रभु विश्वेशर काशी।
रखलो मेरी लाज,सदा चरणों मे तेरी
सुमर सदा हरि नाम, हरिअर्ज सुनो अब मेरी
शिवकुमारी शिवहरे
Title: जीवन
Date: 17 Jan 2020
Note:
जीवन को रस से भरो,दो नूतन उपहार।
तन के इस बाग मे, मन मे छलकत प्यार।
मन मे छलकत प्यार,प्रेम की बगिया फूले।
रहे वसंत बहार,कोकिला मन मे झूले।
महके धर है द्वार, कहे आ जाये सावन।
भौरो का गुंजार, प्रेम से भरता जीवन।
शिवकुमारी शिवहरे
Title: विनती
Date: 19 Jan 2020
Note:
संशोधित
विनती
दीनबंधु दुख को हरो, तुम हो दीनानाथ।
हाथ जोड़ मै हूँ खड़ी,प्रभु होते है साथ।
प्रभु होते है साथ,खड़ी मै द्वार तुमारे।
सुनो मेरी पुकार , हरो दुख सदा हमारे।
दुखियारी मै आज,हूँ दीन दुखी मै हीन।
हे परमेश्वर नाथ,द्वार खड़ी हूँ मै दीन।
शिवकुमारी शिवहरे
[19/01 9:43 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक- 14/01/20*
कुण्डलिया(49)
विषय- धागा
धागा जग में प्रीति का, ऐसे रखना जोड़।
कोई रिश्ता स्वार्थ का, कभी सके मत तोड़।।
कभी सके मत तोड़, काम ऐसा ही करना।
बना रहे खुशहाल, सदा जीवन का झरना।।
प्रेम लुटाओ रोज, रहो मत आप अभागा।
सब रिश्तों में आप, पिरोये रखना धागा।।
कुण्डलिया(50)
विषय- बिखरी
तेरी सूरत देखकर, होता मेरा भोर।
बिखरी जुल्फे आपकी, लगे घटा घनघोर।।
लगे घटा घनघोर, नैन भी लगते प्यारे।
दिल में मेरे बाण, चलाये नैना कारे।।
मन मेरा दिन रात, तुम्हारे करते फेरी।
कुण्डलियाँ में रोज, उकेरूँ सूरत तेरी।।
रचनाकार-उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)
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