[25/01 6:04 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: .°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - २५.०१.२०२०
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *खिलना*
खिलना चाहे हर कली, बनना सुंदर फूल।
तोड़ो मत उसको सखे, भ्रमर बनो अनुकूल।
भ्रमर बनो अनुकूल, सोच उद्धव सी रखना।
देना उत्तम ज्ञान, दर्द कुछ मन का चखना।
शर्मा बाबू लाल, चाह मन सबसे मिलना।
संपद विपद समान, फूल जैसे नित खिलना।
•. ••••••••••
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *होली*
होली होनी थी हुई, पर्व मने हर साल।
बेटी बनती होलिका, मरती मौत अकाल।
मरती मौत अकाल, कहे सब सुता बचाओ।
सच्चे कितने लोग, सत्यता जान बताओ।
शर्मा बाबू लाल, जले मत बेटी भोली।
खेल रंग संघर्ष, बचो बनने से होली।
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[25/01 6:12 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 25.01.2020 (शनिवार )
(67)
विषय - खिलना
खिलना फूलों सा यहाँ,महके सदा बहार।
होठों पर मुस्कान हो,मिले सभी का प्यार।।
मिले सभी का प्यार,लगे जन-जन को प्यारा।
सुन्दर हो व्यवहार, तुझे पूजे जग सारा।।
कहे विनायक राज,गले से सबसे मिलना।
रखना हँसी जुबान,खुशी से हरदम खिलना।।
(68)
विषय - होली
होली का त्यौहार यह, खेलो रंग गुलाल।
मौसम है यह प्रीत का,बहके बहके चाल।।
बहके बहके चाल, पिचकते हैं पिचकारी।
फागुन मस्त बहार, लिए हैं यौवन सारी।।
कहे विनायक राज, खेलते हैं हमजोली।
रंगों का त्यौहार, मनालो पावन होली।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[25/01 6:15 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला, प्रणाम।
डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए।
कुंडलियाँ क्र.६९
विषय आशा
आशा ही वह डोर है,दे जीवन में साथ।
सभी मुश्किलें तो हमें,करें मृत्यु के हाथ।
करें मृत्यु के हाथ,बहुत कठिन जिंदगी है। देता हिम्मत नाम,सही एक बंदगी है।
कहे कमल तू मान,लगे जग बड़ा तमाशा।
जीवन की बस राह,बांध प्रभु से तू आशा।
कुंडलियाँ क्र.७०
विषय _उडना।
सारे उडना चाहते,नभ के भी उस पार।
पंख सबको कहाँ मिले,जीवन का यह सार।।
जीवन का यह सार,पांव धरती पर रखना।
करें न ऐसा काम,पडे मुँह माटी चखना। ।
कहे कमल कर जोड,दंभ भरते जो प्यारे।
गिरते मुँह बल जाय,धरा को भूले सारे।
कृपया समिक्षा करें।
[25/01 6:16 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध शाला प्रणाम
कुंडलियाँ शतक वीर के लिये।
दिनांक 24 जनवरी 2020
डॉक्टर श्रीमती कमल वर्मा
कुंडलियाँ क्र ७१
विषय खिलना।
खिलना हरेक फूल का,होता है अधिकार।
मसल गये कुछ फूल तो,जीवन क्यों बेकार?
जीवन क्यों बेकार,इसी भ्रांति को मिटायें।
जीने की दें राह, उन्हें जीना सिखलायें।।
कमल कहे कर जोड़,सजा यह क्यों कर मिलना।
सुधरे अब तकदीर,उसे फिर से है खिलना।।
कुंडलियाँक्र.७२
विषय_होली
होली कैसी है सखी, मुझको गई जलाय।
देखो कैसे कृष्ण है,सौतन से लिपटाय। सौतन से लिपटाय,देख भामा जल जाती।
कृष्ण रुक्मणी प्रीत,उसे क्यों कभी सुहाती।
कहे कमल कर जोड़, प्रेम तो है हमजोली।
कान्हा प्रेम स्वभाव,खेलतें सबसे होली।
कृपया समिक्षा करें।
[25/01 6:19 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *25.01.2020 (शनिवार )*
67- खिलना
***********
खिलना जो छोड़ें कली, बाग दिखें वीरान।
भँवरों पर यह सितम है, गायब हो मुस्कान।
गायब हो मुस्कान, निराशा हो मौसम में।
सावन, भादों जेठ, बनें कलियों के गम में।
"अटल" न छोड़ें आप, कभी अपनों से मिलना।
अपने दिखें निराश, छोड़ दें हँसना-खिलना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
68- होली
***********
होली की हलचल शुरू, रंगों का त्यौहार।
मिलिए जुलिए प्रेम से, सबसे रख व्यवहार।
सबसे रख व्यवहार, न दुश्मन जग में कोई।
यहाँ दिखाया स्वार्थ, प्रीत आपस की खोई।
"अटल" हमेशा बोल, प्रेम की सबसे बोली।
देती है संदेश, सदा से सबको होली।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[25/01 6:20 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक--25/1/20
65
आशा
आशा जो मन में जगी,हर मुश्किल आसान।
आशा के दम पे टिकी,मानव की पहचान।
मानव की पहचान,नहीं मर्यादा खोई।
जग में ऊँचा नाम,तभी जाने हर कोई।
कहती अनु यह देख,जगी हर मन जिज्ञासा।
करता वही कमाल, जिसकी बड़ी है आशा।
66
उड़ना
उड़ना चाहे मन कहीं,नील गगन के पार।
दूर क्षितिज में क्या छुपा,क्या है उसका सार।
क्या है उसका सार,नहीं जानी यह माया।
चाहे सभी जवाब,कहाँ यह शून्य समाया।
कहती अनु सुन बात, नहीं अब पीछे मुड़ना।
ढूँढो सही जवाब,तभी फिर सीखो उड़ना।
67
होली
होली देती सीख यह,मिलकर गाओ गीत।
भूलो कड़वाहट सभी, खेलो होली मीत।
खेलो होली मीत,खुशी के रंग में रंग।
खुशियों भरी उमंग,खिले सबके अंग अंग।
कहती अनु यह देख,लगे फिर माथे रोली।
होली भरती प्रीत, बड़ी मन भाती होली।
68
खिलना
खिलना फूलों की तरह,काँटें लेकर हाथ।
जीवन में मिलते सदा,सुख दुख दोनों साथ।
सुख दुख दोनों साथ,यही जीवन का सच है।
सुन यह कड़वे राज,मची मन में हलचल है।
कहती अनु यह देख,नहीं सुख सबको मिलना।
संघर्ष से सुख जीत,तभी फूलों सा खिलना।
अनुराधा चौहान
[25/01 6:22 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 25/01/2020
दिन - शनिवार
67 - कुण्डलिया (1)
विषय - खिलना
**************
खिलना सीखो पुष्प सा , अधर लिए मुस्कान ।
पीर हरे संसार का , वह सच्चा इंसान ।
वह सच्चा इंसान , फूल सा उसका जीवन ।
बिखरे कर्म सुगंध , महकता है तब तन मन ।
हृदय होय आह्लाद , सभी से ऐसे मिलना ।
देता खुशी अपार , सुमन सा मन का खिलना ।।
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68 - कुण्डलिया (2)
विषय - होली
****************
नश्वर मानव देह है , क्यों करता अभिमान ।
श्रावण में होली जले , मौन खड़ा इंसान ।
मौन खड़ा इंसान , नियति को बदल न पाता ।
आया मुट्ठी बाँध , हाथ फैलाये जाता ।
जग में शाश्वत सत्य , एक ही केवल ईश्वर ।
कर के सार्थक कर्म , सजा लो जीवन नश्वर ।।
*******************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[25/01 6:24 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक 25/01/2020
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
विषय *खिलना*
खिलना मन अभिराम है , चेहरा हो या फूल ।
भौंरों को भाते कहाँ, रूखे - तीखे शूल ।।
रूखे - तीखे शूल , फूल से कैसी समता ।
चुभता निष्ठुर एक , लुटाता दूजा ममता ।।
कहे "निगम कविराज", नेह तय उसको मिलना।
हो मनुष्य या बाग , सीख लेता जो खिलना ।।
विषय *होली*
होली समता का सुभग , देती है संदेश ।
भेद मिटा करती सदा , रंग पूर्ण परिवेश ।।
रंग पूर्ण परवेश , प्रेम के गूँजें गाने ।
मचल उठे मन देख , प्रिया को रंग लगाने।
कहे "निगम कविराज", बोलते सब मृदु बोली ।
करे तिरोहित वैर,पर्व यह उत्तम होली ।।
कलम से
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर)
[25/01 6:26 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -67
दिनांक -25-1-20
विषय -खिलना
खिलना है मुझको सदा, बन बागों का फूल l
खुशबूं फैले हर दिशा, मौसम के अनुकूल l
मौसम के अनुकूल,उडूं तितली के जैसी l
बैठ सुमन की डाल, महक बन जाऊं वैसी ।
कहती सुनो सरोज, पवन बन सबसे मिलना l
खुशी खुशी मन झूम, पुष्प ही बनके खिलना
कुंडलियाँ -68
दिनांक -25-1-20
विषय -होली
जलती धूं धूं होलिका, सच्चाई की जीत l
खेले होली राख से, दुश्मन से कर मीत l
दुश्मन से कर मीत, खिलखिलाकर ही मिलनाl
मिल-जुल खेलो फाग, सभी रंगों से खिलनाl
कहती सुनो सरोज, शाम जब जब है ढलतीl
सबका लो आशीष, प्रेम से नफरत जलती
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[25/01 6:39 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
शतक वीर हेतु कुंडलिया
25/01/2020
होली(67)
होली में तो खेलते, राधा मोहन संग।
कभी खेलते नीर से, जैसे पी हो भंग।
जैसे पी हो भंग, मारते हैं पिचकारी।
राधा भीगी हाय, सखी भी भीगी सारी।
कह राधेगोपाल, नहीं वो अब कुछ बोली।
राधा मोहन संग,अरे जब खेलें होली।।
खिलना(68)
खिलना देखो फूल का, होता है दमदार ।
तितली आकर के करे, कलियों से मनुहार।।
कलियों से मनुहार, रही वो हरदम डोले।
आ जाओ तुम पास, सदा भवँरे से बोले।
कह राधेगोपाल, वहीं पर होगा मिलना।
होता है दमदार , अरे फूलों का खिलना।।
राधातिवारी
"राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[25/01 6:41 PM] डॉ मीना कौशल: खिलना
ः
खिलना बनकर फूल तुम,भारत माँ के लाल।
बनना दिनकर शत्रु से,सदा काल के काल।।
सदा काल के काल,बनो भारत के लालन।
करो धरा श्रृंगार,करे जो तेरा पालन।।
जो भी हो जिस भाव,उसी से वैसे मिलना।
चमन रहे गुलजार,सदा फूलों सा खिलना।।
होली
होली का त्यौहार ये,रंगो की सौगात।
सराबोर सब हो रहे,टेसू की बरसात।।
टेसू की बरसात,रँगी है धरती सारी।
खिले सुनहरे फूल,महकती है फुलवारी।।
धरती माँ की सजी हुई ,है जैसे डोली।
रंगों की बौछार ,लाया पावन होली।।
डा.मीना कौशल
[25/01 6:43 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*25/01/2020*
*दिन - शनिवार*
*विषय - खिलना,होली*
*विधा-कुंडलियां*
67-खिलना
खिलना तुम ऐसे सदा,जैसे फूल गुलाब।
कांटों में भी वो खिले,लेकर मनहर आब।
लेकर मनहर आब,इसी में मिले बड़ाई।
होता कब लाचार,कहो कब करे लड़ाई।
कहती सरला बात, किसीसे जबभी मिलना।
खुशियां देना दो चार,सदा फूलों सा खिलना।
68-होली
होली तो होली सखी,पिया बसे परदेश,
आये जाने क्यों नहीं, नहीं दिया सन्देश।
नहीं दिया सन्देश,जिया में पीड़ा भारी।
हाथों लिए गुलाल,राह तकती मैं हारी।
कहती सरला बात, नहीं सोहे रंगोली।
कहदो उनसे आज,चलो घर आई होली।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[25/01 6:53 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु
57). आगे
आगे आगे पग बढ़े , चलते चलें अबाध ।
नित्य निरंतर हो प्रगति , पूरी हो हर साध ।।
पूरी हो हर साध , सरल हो जाये जीवन ।
मन में हो मत पीर , महकता हो नित उपवन ।।
कहे "धरा" कर जोड़ , बाँध लो श्रम के धागे ।
आलस सारे छोड़, बढ़े हम आगे आगे ।।
58). मौसम
आया मौसम प्रीत का , चहक रहा है बाग ।
पपीहरा की धुन भली , भास्कर जाते जाग।।
नीले पीले पुष्प पर , डोलते मोहक मधुकर ।
कानन खिले पलाश, हृदय को लगते सुखकर।।
रंग भरा चहुँ ओर , प्रकृति ने मन हरषाया।
भरें चित्त में प्रेम , बसंती मौसम आया ।।
*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[25/01 6:54 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 25.01.2020
कुण्डलियाँ (57)
विषय-आगे
आगे आगे ही चलो,मुड़ने का क्या काम।
कर्मठ बन कर जो चले,होता उसका नाम।
होता उसका नाम,सदा वह बढ़ता जाता।
कर्मयोग ही मूल,न भूले जो सुख पाता।
अनु आलस को छोड़,कभी न कर्म से भागे।
साथी हो अब कर्म, रहे कर्मठ ही आगे।
'
कुण्डलियाँ (58)
विषय-मौसम
सावन आया झूमके,खिली खिली सी धूप।
मौसम आज लुभावना, नीर भरे सब कूप।
नीर भरे सब कूप,धुले हैं पौधे सारे।
फैले हैं सब रंग,नहीं हैं नभ में तारे।
अनु देख प्रकृति रूप,लगे सुन्दर मनभावन।
धरा करे श्रृंगार,सखी मन झूमे सावन।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 25.01.2020
कुण्डलियाँ (59)
विषय-जाना
जाना है जग छोड़ के,अमर यहाँ है कौन?
कर लो पूरी कामना,मुखरित हो फिर मौन।
मुखरित हो फिर मौन,करो पूरा हर सपना।
क्षणभंगुर संसार,नहीं है कोई अपना।
अनु जग नश्वर जान,यहाँ फिर पड़े न आना।
कर लो अच्छे कर्म,सभी को होगा जाना।।
कुण्डलियाँ (60)
विषय-करना
करना अपना कर्म है,पीछे मुँह मत मोड़।
उद्यम में ही सार है,श्रम का साथ न छोड़।
श्रम का साथ न छोड़,करो मत तुम मनमानी।
सारा जग श्रम लीन,बड़ा छोटा सब ज्ञानी।
अनु खोले श्रम भेद,बिना जीये क्यों मरना?
सब धर्मों में श्रेष्ठ,सदा श्रम तुम फिर करना।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
[25/01 7:03 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-25-01-020
67
विषय-खिलना
राहें पथरीली मिलें, या काँटों की ढ़ेर।
चलता रह राही सदा, हो जाएगी देर।
हो जाएगी देर, सफलता से भी दूरी।
उड़ना कर दे तेज, जगह नभ में हो तेरी।।
सुनें तेरी पुकार, पसारेंगे प्रभु बाँहें।
बैठाते हैं पास, तके क्यों दूजी राहें।।
68
विषय-होली
होली का हुड़दंग है, रंगों की बौछार।
बौराया मधुमास है, छायी है बहार।।
छायी है बहार, सभी आनंद मनाएँ।
भेदभाव सब भूल, गले मिलके हरषाएँ।।
भर पिचकारी रंग, चली बच्चों की टोली।
गूँजे घर घर फाग, मनी अलबेली होली।।
सादर प्रस्तुत 🙏🙏
गीता द्विवेदी
[25/01 7:09 PM] अनिता सुधीर: 23.01.2020 (गुरूवार)*
आशा
आशा बहनों को समर्पित रचना
आशा बहनें कर रहीं ,जन जन का कल्याण।
गाँव नगर में घूमती ,करें दूर ये त्राण ।
करें दूर ये त्राण ,स्वस्थ अब जीवन होता ।
रखें मातु का ध्यान ,तनय माँ आँचल सोता।
उन्नत हुआ समाज,भगातीं दूर निराशा ।
करें सभी सम्मान ,द्वार पर जब हो आशा ।
उड़ना
उड़ना जनता तुम नहीं ,सुन नेता की बात ।
सब्जबाग की आस दे,नेता दें आघात।
नेता दे आघात ,लुभावन वादे सारे ।
'मत' को रहे खरीद,दिखाते दिन में तारे।
गिरगिट जैसा रंग ,नहीं तुम इनसे जुड़ना।
मत करना विश्वास,स्वयं के बूते उड़ना ।
25.01.2020 (शनिवार )*
खिलना
खिलना काँटो मध्य ज्यों ,नागफनी का फूल।
बनें विषम अनुरूप जो ,जीवन हो अनुकूल ।।
जीवन हो अनुकूल, दुखों में निखरा करता ।
होना नहीं निराश ,सदा सोना ही तपता ।
कहती अनु ये बात,लिखा था दुख से मिलना ।
नागफनी का पेड़ ,सिखाता हँस हँस खिलना ।
होली
होली क्या खेलें सखी ,उठती हिय में पीर।
साजन सीमा पर खड़े,धरी न जाये धीर ।
धरी न जाये धीर,सुता मुखड़ा जब देखा ।
पूछ रही है प्रश्न ,तात क्यों सीमा रेखा ।
यहाँ बढ़े गद्दार ,वहाँ वो झेलें गोली ।
लगती अंदर आग,बहाते लहु वो होली।
अनिता सुधीर
[25/01 7:10 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *खिलना , होली*
दिनांक --- 25.1.2020....
(67) *खिलना*
खिलना था वह खिल गई , पुष्प कली थी आज ।
खग का वह चूज़ा सदा , बचता रहता बाज ।
बचता रहता बाज , मोह होता जीवन का ।
पुष्प कहत है आज , सुरभि मेरा उपवन का ।
सुंदर हो व्यवहार , सदा तुम मिलना जुलना ।
हो सुंदर परिवार , पुष्प सम जीवन खिलना ।।
(68) *होली*
कृष्णा की होली सदा , राधा रानी संग ।
गोपियाँ भी साथ कहें , भींगे कान्हा अंग ।
भींगे कान्हा अंग , मधुर मुरली के धुन पर ।
चित चोर मोर कृष्ण , चाल चलता है घर पर ।
बलिहारी है ज्ञान , सदा उपजे है तृष्णा ।
राधा रानी संग , रंग होली में कृष्णा ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 25.1.2020.........
_________________________________________
[25/01 7:17 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(67)
विषय-खिलना
खिलना प्रातः काल में, फूलों का है काम।
इनकी मधुर सुगंध से,महके चारों धाम ।
महके चारों धाम, मंद मलयज में डोलें।
झेले कंटक शूल,भ्रमर रस लोलुप बोलें।
सहें शीत हिम ताप,सभी कष्टों से मिलना ।
पुष्प दे रहे सीख ,मुदित काँटो में खिलना।
(68)
विषय-होली
होली सँग ऋतुराज है, उड़ने लगा पराग।
बिखरी छटा पलाश की, गूंँजे मदमय फाग।
गूंँजे मदमय फाग, ढोल मृदंग ध्वनि भारी।
उड़े अबीर गुलाल, चले रंँग की पिचकारी।
नयन -बाण से मार, सजनिया करे ठिठोली।
प्रेम रंग ले संग , रँगीली आई होली।
रचनाकार- आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[25/01 7:38 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 23/01/2020
65 *आशा*
आशा जीवन ज्योति है,हृदय जगाती आस।
जीने की दे प्रेरणा,थामे रखती श्वास।
थामे रखती श्वास,बने सब आशावादी।
घेरे नहीं विषाद,हास का जो है आदी।
कहती रुचि करजोड़,हृदय का मिटे निराशा।
आनंमय हो परिवेश,न टूटे मन की आशा।
66 *उड़ना*
बन पंछी उड़ना नहीं,मन की सुनकर बात।
बिना विचारे जो चला,होगी निश्चय मात।
होगी निश्चय मात,सँभल आ मानुष तू अब।
बना योजना एक,जीत निश्चित होगी तब।
कहती रुचि करजोड़,भटकता चंचल चितवन।
मन पर लगा लगाम,उड़े जब ये पंछी बन।
दिनाँक- 25/01/2020
67 *खिलना*
खिलना मेरा काम है ,मैं हू फूल गुलाब।
हूँ उपयोगी मैं बहुत,सदा बढ़ाता आब।
सदा बढ़ाता आब,प्रेम का बनता साधन।
बनूँ सुगंधित इत्र,करूँ सूरत भी पावन।
कहती रुचि करजोड़,खुशी दे मेरा मिलना।
करता हृदय मिलाप,लोकहित मेरा खिलना।
68 *होली*
होली अद्भुत श्याम की,रंग लगाये अंग।
पिचकारी ले हाथ में ,गोप गोपियाँ संग।
गोप गोपियाँ संग,रंग खेले मधुसूदन।
रंजित परमानंद,रँगी सारी वृन्दावन।
कहती रुचि करजोड़, भक्ति की मधुरस घोली।
होकर एकाकार,खेलते ऐसी होली।
✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[25/01 7:39 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
25-1-2020
खिलना चाहे बेटियाँ, मात पिता के द्वार।
बहना बन कर चाहती, मिले भ्रात का प्यार ।
मिले भ्रात का प्यार, सदा मैं नाचूँ गाऊँ ।
दोनों कुल की आन, बनूँ घर स्वर्ग बनाऊँ ।
बहना रहती दूर, करूँ मै उनसे मिलना ।
माँगू मैं कर जोड़, मात पित आँगन खिलना ।।
होली 68
होली खेले राधिका,संग गोप अरु ग्वाल ।
भर पिचकारी मारते, नटखट वो नँदलाल ।
नटखट वो नँदलाल, करे सबसे बरजोरी ।
आज न छोड़ूँ हाथ, सुनो हे राधा गोरी ।
रँग ली तेरे नाम, चुनरिया राधे बोली ।
जीवन धन घनश्याम,संग मैं खेलूँ होली ।।
केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[25/01 7:45 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु
59). जाना
जाना सबको एक दिन , इस दुनिया को छोड़ ।
राम नाम जपते चलो , डोर प्रेम के जोड़ ।।
डोर प्रेम के जोड़ , नेह से भर उर गगरी ।
मन में भरा विमोह , बना जग माया नगरी ।
कहे "धरा" कर जोड़, छोड़ अब खोना पाना ।
निश्छल रखें स्वभाव ,यहीं सब कुछ तज जाना ।।
60). कहना
कहना सबका मानना , यही नेक संस्कार ।
आदर पालक का करें , पावन बने विचार ।।
पावन बने विचार , मिले नित अच्छी संगति।
बुरे मित्र का संग , करे जीवन की दुर्गति ।।
सुनो "धरा" की बात , दुखों को भी है सहना ।
मत हो कम का त्रास , मान लो सबका कहना ।।
*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़ ,छत्तीसगढ़*
[25/01 7:46 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
कुण्डलिया(६७)
विषय-खिलना
खिलना फूलों सी सदा,मन में रखना आस।
कंटक पूरित मार्ग में,बना रहे विश्वास।
बना रहे विश्वास,कली मत कोमल बनना।
दुर्गा काली रूप,ध्यान तुम इनका करना।
कहती अभि निज बात,जन्म बेटी का मिलना।
मातु-पिता सौभाग्य,सुता का जीवन खिलना।
कुण्डलिया(६८)
विषय-होली
होली खेलें राधिका,कान्हाजी के संग।
अंग-अंग भीगा हुआ,मन में प्रेम तरंग।
मन में प्रेम तरंग,वदन चंदा सा चमके।
अधरों पर मुस्कान,बदन कंचन सा दमके।
कहती अभि निज बात,मधुर मिश्री सी बोली।
तन-मन भीगा आज,देख राधा की होली।
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वदन-मुख,
बदन-शरीर
रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[25/01 7:52 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 25/01/2020
कुण्डलिया (67)
विषय- खिलना
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खिलना चाहे हर कली, मिले उचित जल,ताप l
विश्व सुवासित हो सकल, मिट जाएँ सन्ताप ll
मिट जाएँ सन्ताप, खुशी सब गली घरौंदे l
मगर क्रूर, हैवान, चमन माली ही रौंदे ll
'माधव' उर में सोच, सुमन,मधु कैसे मिलना l
जग, जीवन बेजार, न रोको कलियाँ खिलना Il
कुण्डलिया (68)
विषय- होली
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होली विद्रूपित हुई, किया व्यसन से नेह l
मुँह काला अदभुत लगे, सकल नशे में देह ll
सकल नशे में देह, करें स्वागत गाली से l
आनन सूँघे श्वान, सने कीचड़ नाली से ll
'माधव' दिल में दर्द, सभी की बिगड़ी बोली l
कैसा यह उत्साह, मनाएँ कैसी होली ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[25/01 8:10 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतकवीर प्रतियोगिता कुंडलियां
दिन-शनिवार/25-1-2020
शब्द- होली/खिलना
(1)होली
होली के संग आ गयी, खुशियों भरी बहार।
मदमाती पुरवा चले, पतझड़ लिए खुमार।
पतझड़ लिए खुमार, झूमती डाली -डाली।
फूटी कोपल डाल, लिए नव पल्लव लाली ।
कह प्रमिला कविराय रसीली सबकी बोली।
लिए अनूठे रंग , खुशी के आई होली।।
(2) खिलना
खिलना सीखो पुष्प से सह कर वर्षा धूप
खिलते कांटों में सुमन ,लेकर अनुपम रुप।
लेकर अनुपम रूप, मोह लेते हैं मन को।
रखे नही मन भेद, लुटा देते तन मन को।
कह प्रमिला कविराय, पड़े सुख दुख यदि सहना।
सहकर भी संताप , सदा फूलों सा खिलना।।
प्रमिला पान्डेय
[25/01 8:17 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
कुण्डलिया शतकवीर सम्मान हेतु ।
65 ) खिलना
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खिलना सदैव फूल सा , मुस्काना दिन रात ।
मीठा हर पल बोलना , मीठी करना बात ।।
मीठी करना बात , यही है प्रेम निशानी ।
मृदु वाणी मत छोड़ , कभी मत बन अभिमानी ।।
खुशियाँ हर पल बाँट , खुशी से ही तुम मिलना ।
सब दुखों को छाँट , सदैव फूलों सा खिलना ।।
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66 ) होली
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होली प्यारा पर्व है , आता है हर साल ।
सराबोर हो रंग से , होते सभी निहाल ।।
होते सभी निहाल , सभी करते हैं मस्ती ।
खेलें जब भी साथ , बड़ी हो जाती हस्ती ।।
भाईचारे संग , सजे प्यारी रंगोली ।
गीत उमंगें साज , सजे वर्षों से होली ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
24.1.2020 , 8:01 पी.एम.पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹
[25/01 8:19 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
२५.०१.२०२०
69-आशा
आशा तन श्वाँसा लगी,चली खोजने कंत।
मन उड़ान तब तक भरी,जब तक हुआ न अंत।
जब तक हुआ न अंत,डोर प्रियतम की बाँधे।
समझ न आया भार,धरा है कितना काँधे।
कहे कमल कविराज,पराजित रही निराशा।
मिलती जाती जीत,रही जब तक मन आशा।
70-उड़ना
उड़ना मन पंछी सदा,जहाँ गगन की राह।
जब तक मंजिल दूर है,तब तक लेना थाह।
तब तक लेना थाह,नापना दूरी सधकर।
उड़ते रहना रोज,जोश से दामन भरकर।
कहे कमल कविराज,सभी बाधा से लड़ना।
संघर्षों में जीत,पंख फैलाकर उड़ना।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[25/01 8:21 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२५/१/२०
कुसुम कोठारी।
कुण्डलियाँ (६७)
विषय-खिलना
खिलना कैसा फूल का ,रहते हैं दिन चार ।
माली इनको तोड़ते , कभी काल की मार ।
कभी काल की मार , रूप शोभा है न्यारी ।
चढ़े देव के शीश ,गूँथ के माला प्यारी।
कुसुम उतारे भाल , धूल में पड़ता मिलना ।
फूलों को है ज्ञात , यहाँ दो दिन का खिलना ।
कुण्डलियाँ (६८)
विषय-होली
आया अब मधुमास है ,बीत गया है शीत ।
होली मनभावन लगे ,चंग बजाए मीत ।
चंग बजाए मीत , गीत मोहक से गाना ।
घर लौटे हैं कंत , सजा है सुंदर बाना ।
जगा कुसुम अनुराग , प्रीत का उत्सव लाया ।
नाचो गाओ आज , रंग ले मौसम आया ।।
कुसुम कोठारी।
[25/01 8:21 PM] रजनी रामदेव: खिलना
खिलना फूलों का हुआ, आने लगा बसंत।
प्रकृति मगन हो नाचती, झूम झूम बेअंत।।
झूम झूम बेअंत, कूकती कोयल काली।
लहक रही आकंठ, कनक की बाली-बाली।।
प्रकृति प्रेम प्रतिरूप, लगे ऋतुओं का मिलना।
भँवरे भी मदमस्त, हुआ फूलों का खिलना।।
होली--
होली फागुन मास में, लाती है अनुराग।
मची हुई है धूम अब, गोकुल छाया फाग।
गोकुल छाया फाग, भरी कान्हा पिचकारी।
चूनर दी सरकाय, भिगो दी सारी सारी।।
आये लेकर साथ, ग्वाल बालन की टोली।
आया फागुन मास ,खेलते हैं सब होली।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[25/01 8:29 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतक वीर आयोजन*
*दिन--शनिवार, दिनांक--२५/०१/२०२०*
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*६९-खिलना-*
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खिलना पंकज बन सदा, यह जग पंक समान।
सारे दुर्गुण त्याग कर, ग्रहण करो सद्ज्ञान।
ग्रहण करो सद्ज्ञान, देश समृद्ध बनाना।
मोहक, मंदिर सुवास, चतुर्दिक तुम फैलाना।
जाने मानव-जन्म, दुबारा कब हो मिलना।
जब भी होवे जन्म, कमल बन कर तुम खिलना।।
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*७०-होली-*
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पावन अति मस्ती भरा, होली का त्यौहार।
मिट जाता है वैर जब, फैल उठे बस प्यार।
फैल उठे बस प्यार, सभी खेलेंगे होली।
झूम उठेगी वृद्ध, युवा, बच्चों की टोली।
बजते ढोल, मृदंग, गीत गाते मनभावन।
रंगों का त्यौहार, आगया है अति पावन।।
~~~~~~~
*--विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
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[25/01 8:34 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला
शतक वीर हेतु कुण्डलिया
63--
थाली ..
थाली रंगों से भरी ,बनी अल्पना द्वार ।
आया पिया शहीद हो,करे मौन मनुहार ।
करे मौन मनुहार,पीर कहीं मन दबी थी।
बहते आँसू आँख,कील सी कहीं चुभी थी।
है पाखी गमगीन,दर्द की चिट्ठी पाली।
मिटी अल्पना आज,बिखरी रंग की थाली ।
मनोरमा जैन पाखी
[25/01 8:45 PM] अर्चना पाठक निरंतर: दिनाँक -२१/०१/२०२०
कुण्डलियाँ
विषय
दीपक
--------
देता दीपक प्रकाश तो,सबको ऐसी सीख।
जलकर खुद ही राख हो,लेता कभी न भीख।।
लेता कभी न भीख,हमें सच पर है चलना।
रोशन कर दे राह,पड़े फिर हाथ न मलना।।
कहे 'निरंतर' बात,समर्पण पूरी लेता।
बाती का हो साथ,उजाला दीपक देता।।
पूजा
-------
पूजा मन से कीजिए,पूरी होगी आस।
पाने की चिंता नहीं,एक सुखद अहसास।।
एक सुखद अहसास,खुशी अद्भुत है मिलती।
चली मंदिर की ओर,सदा दर्शन पा हिलती।।
कहे निरंतर आज,मिले अनुपम सुख दूजा।
कुमकुम हल्दी फूल, ईश वंदन है पूजा।।
दिनाँक-२५/०१/२०२०
विषय
खिलना
------------
खिलना है तुमको अभी,गुड़िया सुन्दर फूल।
चुभती नजरों से बचा,झोंक आँख में धूल।।
झोंक आँख में धूल,नील अम्बर में उड़ना।
फैला पूरी पंख, लक्ष्य प्रयास से जुड़ना।।
कहे निरंतर आज, सफलता तय है मिलना।
डट काँटो के बीच ,उभर कर सुंदर खिलना।।
होली
-------
होली का त्योहार दे, रंगों भरी फुहार।
घर आँगन में झूमती ,लाई संग बहार ।।
लाई संग बहार ,देख मुखड़े की लाली।
खुशबू दे पकवान, सखी बरसाये गाली ।।
कहे निरंतर आज ,झेल सीने पे गोली ।
सीमा पर तैनात, चैन हम खेले होली।।
अर्चना पाठक 'निरंतर'
[25/01 8:55 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला
शतक वीर हेतु कुण्डलिया
63--
थाली ..
थाली रंगों से भरी ,बनी अल्पना द्वार ।
आया पिया शहीद हो,करे मौन मनुहार ।
करे मौन मनुहार,पीर कहीं मन दबी थी।
बहते आँसू आँख,कील सी कहीं चुभी थी।
है पाखी गमगीन,दर्द की चिट्ठी पाली।
मिटी अल्पना आज,बिखरी रंग की थाली ।
मनोरमा जैन पाखी
64--
बाती बन कर जल रही,देखो शापित आज।
नारी का जीवन यहाँ,जले सदा निष्काम ।
जले सदा निष्काम,रिवाज कैसा बनाया।
विधवा जीवन शाप,नयन में जल भर आया।
पाखी रोती मौन,वही खोई है थाती ।
शापित विधवा आज,जलरही बनके बाती।
मनोरमा जैन पाखी।
25/01/2020
[25/01 9:03 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
69. खिलना
खिलना फूलों की नियति, महकाना परिवेश।
देना दुनियाँ को सदा, सुन्दर सा संदेश।।
सुंदर सा संदेश, और मकरन्द लुटाना।
तीखे काँटों बीच, हमेशा ही मुस्काना।।
कह अंकित कविराय, फूल से जाकर मिलना।
कहना उससे आप, सिखा दो हमको खिलना।।
70. होली
होली हम सबके लिए, रंगों का त्योहार।
लेकिन इसमें होलिका, का होता उद्धार।।
का होता उद्धार, प्रभू ने उसे जलाया।
नंगे पैरों दौड़, भक्त प्रह्लाद बचाया।।
कह अंकित कविराय, सजा भक्तों की टोली।
तब से ही हम लोग, मनाते हैं ये होली।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[25/01 9:07 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
(67) खिलना
खिलना फूलों सी सदा, महक चहक हो रंग।
जीवन काँटो बीच भी, मुस्कानों के संग।
मुस्कानों के संग, फूल सा खिले चेहरा ।
मन मे हो विश्वास, भरोसा दूना गहरा।
कहे मधुर ये सोच, मध्य काँटो के मिलना।
सृष्टि का वरदान,कली बिटियाँ का खिलना।
(68)होली
लाता फागुन मास है,होली का त्यौहार ।
उत्सव माने देश है,रंग गुलाबी ड़ार।
रंग गुलाबी ड़ार,दिलो के भेद मिटाएं ।
चंग मंजीरा संग,नाच गा प्रेम जगाए।
कहे मधुर निज बात,रंग फागुन मनभाता।
मिटा दूरियाँ भेद,बाँटने उमंग लाता।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
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