Friday, 12 August 2022

रक्षाबंधन पर भद्रा के अँधकार पर विचार अवश्य करें


 

रक्षा बंधन पर भद्रा विचार उसी प्रकार से त्याज्य है जिस प्रकार से अनंत काल या लंबी अवधि से चले आ रहे यज्ञ समारोह आदि के आयोजन में अग्निविचार त्याग दिया जाता है। ( कारण किसी भी परंपरा रीति रिवाज से बड़ा कोई भी मुहूर्त नहीं होता) रक्षाबंधन भी एक निश्चित तिथि तथा नक्षत्र श्रवण के संयोग से मनाई जाने वाली परंपरा के समान है। एक रीति रिवाज की तरह है। 

रक्षा बंधन पर पूर्णिमा तिथि में श्रवण नक्षत्र के प्रवेश करने से यह पर्व श्रावणी भी कहा जाता है। ध्यान रहे श्रावणी पूर्णिमा का संबंध है यह (एकम तिथि) पड़वा का नहीं। भले ही उदय व्यापनी पूर्णिमा हो और पड़वा का स्पर्श हो तो पर्व वहीं समाप्त हो जाता है जहाँ पूर्णिमा समाप्त हुई है। अब पूर्णिमा तिथि दिन के मध्य में उदय हो या उदयव्यापिनी तिथि हो वह रक्षा बंधन के लिए न तो उत्तम है न मध्यम है न निम्न है ये साधारण तिथि तथा दिन रह गया है अब ऐसे में रक्षाबंधन मनाना ठीक वैसे ही हो गया है जैसे कोई कह रहा हो कि "मेरी मर्जी"... होली के दिन बम पटाखे छुटाऊँ या दिवाली के दिन रंग गुलाल लगाऊँ ..... अब .... 

निर्णय विवेक से करें ..... प्रस्तुत जानकारी निर्णयसिन्धु के आधार पर है । 

अब पढ़िए परिहार के संदर्भ को ....प्रस्तुत हैं कुछ दोहे

1

एकादश होते करण, एक कहा है विष्टि।

भद्रा भी इसको कहें, करे अशुभ सी शिष्टि।।

2

पांच अंग पञ्चाङ्ग के, करण रखें निज स्थान।

चर स्थिर कर ज्योतिष गिने, इनका कार्य महान।।

3

परम्परा में सोच मत, कैसा श्रेष्ठ मुहूर्त।

रक्षा बंधन रीति है, भूत काल की मूर्त।।

4

नया जोड़ मत जोड़ना, भद्रा मिले समक्ष।

और पुरातन तोड़ मत, यही धर्म का पक्ष।।

5

मृत्युलोक भद्रा कहे, सावधान हो आज।

शुभ की शुभता कर हरण, करूँ अशुभ सब काज।।

6

रक्षा के इस सूत्र की, कहती शक्ति पुकार।

दोष स्वयं भद्रा हरे, वास स्वर्ग उद्धार।।

7

भद्रा हो पाताल की, धन दे कहें पुराण।

भद्रा का ये अर्थ है, करे यहाँ कल्याण।।

8

दोष नहीं फिर व्यापता, रहती भद्रा शांत।

परम्परा को देख के, नत होते शशिकांत।।

9

शक्ति हीन भद्रा वहीं, नीति-रीति जिस स्थान।

रक्षा का फिर सूत्र यूँ, बाँधे हिंदुस्तान।।

10

स्पर्श पूर्णिमा को करे, श्रवण बढ़ा कर हाथ।

रक्षाबंधन पर्व तब, मिलता उस पल साथ।।

11

करती है यदि पूर्णिमा, पड़वा का सत्कार।

रक्षा बंधन वह नही, नहीं पर्व आधार।।

12

एक अधूरा ज्ञान भी, करता रहा विनाश।

पढ़ते निर्णय सिंधु तो, रहता एक प्रकाश।।

13

शूर्पणखा सी हो बहन, कुलटा और कुरूप।

उसका मरना ही भला, फेंको सूखे कूप।।

14

रावण जैसे भ्रात की, किस भगनी को चाह।

देख बहन ही मार दे, सुन पर नारी आह।।

15

उनका मरना तय सदा, करे अहम की बात।

अहम उन्हीं का वध करे, यही अहम की घात।।

16

समझे बिना प्रतीक को, मूर्ख कहे दूँ ज्ञान।

चंद्र प्रकाशित दे रहा, देख अमावस दान।।

17

परम्परा के यज्ञ में, कब हो अग्नि विचार।

ऐसा ही इसको समझ, भद्रा है अँधकार।।

18

रक्षा बंधन पर सदा, त्यागो भद्रा ज्ञान।

श्रवण अगर नक्षत्र हो, बने हर्ष पहचान।।

19

रक्षक रक्षा सूत्र जब, क्या भद्रा क्या काल।

रक्षाबंधन प्रेम से, मना चलो हर साल।।

20

सच्चा है ये सूत्र यूँ, अगर नहीं विश्वास।

तो रक्षा बंधन तजो, पालो मत फिर आस।।

21

भद्रा का परिहार ये, करे स्वयं ही आप।

स्वर्ग तथा पाताल की, करती शुभ आलाप।।

22

रक्षा का ये सूत्र जब, बाँधे गुरु निज शिष्य।

हर्षित होते देव सब, देख मनोहर दृश्य।।

23

कच्चा धागा नेह का, बाँधे हिंदुस्तान।

विश्व पटल पर पर्व ये, बना रहा निज स्थान।।

24

भद्रा भय तांडव मिटे, मिटे मूर्खता ज्ञान।

दोष परे शुभ श्रावणी, ज्योतिष का व्याख्यान।।

25

मृत्युलोक भद्रा सदा, करे अशुभ ही कार्य।

लिखे यहाँ परिहार हैं, पढ़ो सभी हे आर्य।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

9 comments:

  1. नमन गुरुदेव 🙏
    ज्ञानवर्धक जानकारी एवं आकर्षक दोहे 💐💐💐💐 हार्दिक आभार 🙏

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  2. शानदार सृजन आदरणीय गुरुदेव
    सादर नमन 🙏💐

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  3. सुंदर सटीक और अनुकरणीय रचना । सादर नमन

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  4. गजब मन रोमांचित हो गया गुरुदेव की लेखनी पड़ अश्रु निकल आए

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  5. बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक जानकारी गुरुदेव 🙏 बेहतरीन दोहे 👌👌👌👌

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  6. सार्थक सृजन 👌, संग्रहनिय दोहे,🙏।

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  7. सूंदर जानकारी उससे ज्यादा सुंदर दोहे अनुपम गुरुवर 🙏🌷

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  8. बहुत सुंदर जानकारी । नमन गुरुदेव।

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  9. अनुपम जानकारी आदरणीय गुरुदेव 🙏🏻

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