Sunday, 1 September 2019

"किसान" विधाता छंद गीत ...तामेश्वर शुक्ल 'तारक'


                    "किसान"
विधाता छंद गीत 

दिवाकर की तपन सहते अथक दिन भर लगे रहते|
मिले दो   चार   ही दाने   कृषक पथ पर डटे रहते ||

सताता   है कभी  सूखा   कभी  पाला कभी  ओला |
नजर फिर भी फसल पर है मिले दो - चार ही तोला ||
बना  तरु  को  सुखद आलय विहसते पीर को सहते|
मिले  दो  चार  ही  दाना  कृषक  पथ  पर डटे  रहते ||

बरसती    धूप या   बूँदे   कृषक  सब  झेल  जाते हैं|
उपज  की   हार  को भी वे   जुआ -सा खेल जाते है||
गरीबी   की   व्यथा अपनी   किसी से हैं नही कहते|
मिले  दो  - चार ही दाने  कृषक   पथ  पर डटे रहते ||

कृषक  की  लालसा  केवल  धरा  उगले  हरा सोना |
मिले   रोटी   सभी जन  को नहीं हो भूख का रोना||
मगर   कुछ    कर्ज में डूबे स्वयं को   भी यहाँ दहते|
मिले दो -चार ही दाने  कृषक   पथ   पर डटे रहते |

स्वरचित एवं मौलिक
तामेश्वर शुक्ल 'तारक'
सतना (म.प्र.)

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