🍏♨ *सृष्टि-सर्जक* ♨🍏
**********
[ गीत ]
शत-शत नमन करें स्वीकार।
हे प्रभु! बड़ा बहुत आभार।
तुमने मानव हमें बनाया।
यह अनन्त संसार दिखाया।
विविध अंग-प्रत्यंग भरा तन,
पता नहीं क्या-क्या है पाया।
तुम हो निराकार - साकार।
हे प्रभु!
कई अंग दो - दो दे डाले।
कई एक हैं किए हवाले।
अनगिन भू पर जीव-जन्तु हैं,
तुम ही सारी सृष्टि सँभाले।
शिल्पकार हो अति-विस्तार।
हे प्रभु!
चक्षु दिए दो, कला दिखाते।
कर्ण दिए दो, सब सुन पाते।
मुख तन का स्वामी प्रधान है,
गढ़ गढ़ तन को आप बनाते।
जीवन के हो तुम आधार।
हे प्रभु!
अधिक नहीं मैं मुँह खोलूँगा।
एकमुखी हूँ, कम बोलूँगा।
दो हैं कान सुनूँगा दूना,
कर-पग-चक्षु श्रमी हो लूँगा।
दिया हुआ है शिष्टाचार।
हे प्रभु!
सोचें, अधिक बोलने वाले।
बुद्धि - विवेक तोलने वाले।
चिंतन करें अधिक,कम बोलें,
प्रभुवर राज खोलने वाले।
है अनन्त स्रष्टा - आकार।
हे प्रभु!
●●>><<●●
*● डाॅ शेषपालसिंह 'शेष'*
'वाग्धाम'-11डी/ई-36डी,
बालाजीनगर कालोनी,
टुण्डला रोड,आगरा-282006
मोबाइल नं0 --9411839862
🍏♨🍀🌺💚🌺🍀♨🍏
No comments:
Post a Comment