Monday, 14 October 2019

रावण का अंत .....पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"

जला *दशहरे* में रावण हमने,
   कर दिया बुराई का अंत।
अगले साल फिर बन आया,
  क्या ये रावण हुआ अनंत।।

वर्षों से हम रावण वध की,
  यही प्रक्रिया दोहराते हैं।
 मरे हुए को मारते हैं फिर,
जीवित रावण बच जाते है।।

जीत के मिथ्या मद में आकर,
हम कब तक जश्न मनाएँगे।
  बुराई को पलता देखेंगे।
और पुतला मात्र जलाएँगे।।

 नित नए रावण पैदा होते,
  हरी जा रही हैं सीताएँ।
दस शीश हुए हैं अहंकार के,
 दुराचार की बीस भुजाएँ।।

नाम में अपने राम जोड़कर,
  स्वयं को ब्रह्म बताते हैं।
 आशाराम कभी रामपाल,
कभी राम रहीम बन जाते हैं ।।

धर्म नाम का शिविर लगा के,
  जनता को मूर्ख बनाते।
आश्रम इनके सोने की लंका,
  स्वयं को साधु बतलाते।।

चमत्कार की दीवानी दुनिया,
  झाँसे में है आ जाती।
बाबा खेलें आँख मिचौली,
  यह देखती रह जाती।।

पढ़ लिख कर न अनपढ़ बनें,
   ये युग है ज्ञान-विज्ञान का।
इंसान को इंसान ही रहने दें,
   मत दर्जा दें भगवान का।।

    टूट जाने दो नींद भरम की,
अब सेतू समुद्र में बँधना होगा।
  पुतले बहुत जलाए हमने,
अब रावण को जलना होगा।।

पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
   कटनी (म.प्र.)

2 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना 👌👌👌 ढेर सारी शुभकामनाएं 💐💐💐

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  2. हार्दिक आभार आदरणीया

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