*विध------षोडषाक्षरावृत्ति चामर छंद*
*विषय---- ---शरद पूर्णिमा*
121 212 121 212 121 2
बयार मंद शुभ्र चाँद चाँदनी धुली धुली ।
सुहावनी छटा बिखेरती निशा खिली खिली ।।
खिले उमंग दूधिया धरा तले पड़े सुधा ।
चकोर ताकता अधीर हो चला बुझे क्षुधा ।।
कहीं नदी कगार जो प्रिया पिया निहारती ।
उजास रेशमी भरी विभावरी पुकारती ।।
प्रभास चंद्र की सुदूर अभ्र में बिछी हुई ।
मही खिली अभी पराग पुंज सी सजी हुई ।।
कहे सखी मनोहरा समीर शीत मोहता ।
पवित्र ताल आरसी बने मृगांक सोहता ।।
अनंत लाभ हो प्रसाद खीर से बने सुधी ।
खुशी प्रदान चंचला करें "धरा" रहे सुखी ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़ ,छत्तीसगढ़*
@kalam ki sugandh
सुंदर रचना ....बधाई 💐💐💐
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