[19/12 6:00 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 19 दिसम्बर
😊😊😊😊
7- बिंदी
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बिन्दी तेरे नाम की,
जीवन तेरे नाम।
सुबह नाम तेरे रहे,
तुझसे ही हो शाम।
तुझसे ही ही शाम,
सदा मैं तुझे निहारूँ।
तेरी रखकर आन,
जान मैं तुझ पर वारूँ।
"अटल" तुम्हारा नाम,
लिखूँ मैं चिन्दी-चिन्दी।
जब तक तन में प्राण,
नाम तेरे हो बिन्दी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
8- डोली
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डोली बेटी की चली,
बाबुल करे प्रलाप।
आँगन की चिड़िया उड़ी,
मन में है संताप।
मन में है संताप,
यही है विधि का लेखा।
हुई सयानी आज,
बालपन जिसका देखा।
"अटल" न जाना भूल,
तोतली उसकी बोली।
धूमधाम से जाय,
देख बेटी की डोली।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[19/12 6:02 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ-शतकवीर सम्मान हेतु
दिनाँक - 19.12.19.
(7) बिंदी
बिंदी सोहे माथ पर, नारी लगे सुभाय।
लाली जोड़ा में सजी,सबके मन को भाय।।
सबके मन को भाय, खूबसूरत वो गोरी।
देखो उनकी चाल, लजाती चाँद चकोरी।।
कहे विनायक राज, बोलती है वो हिंदी।
सुन्दर मुखड़ा देख,शोभती कुमकुम बिंदी।।
(8) डोली
दूल्हा ले के है चला, डोली दुल्हन साथ।
सँग बाराती भी चले, बाजा भी है हाथ।।
बाजा भी है हाथ, बजाते सब बाराती।
चले नाचते लोग, खुशी से आज घराती।।
कहे विनायक राज, घरों में जलते चूल्हा।
बनते हैं पकवान, साथ खाते सँग दूल्हा।।
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बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[19/12 6:10 PM] रामजस त्रिपाठी 'नारायण': नमन 🙏*कलम की सुगंध छंद शाला मंच*
कुंडलिया शतक वीर के लिए प्रेषित
16/12/19
वेणी
वेणी लहराती हुई, आई मुन्नी पास।
निर्मल वेणी देखकर,कह दी मन की आस।।
कह दी मन की आस, नदी में चाहूँ बहना।
सुंदर वेणी मध्य, सदा मैं चाहूँ रहना।।
इस उपवन के बीच, दिलादो मुझको एणी।
सब जीवों के साथ, बने यह सुंदर वेणी।।
कुमकुम
कुमकुम केसर का तिलक , शोभित सैनिक माथ।
आए वे रण जीत कर, फूल बिछाओ पाथ।।
फूल बिछाओ पाथ, सजाओ अपनी थाली।
गाओ रे! सब गीत,बजाओ मिलकर ताली।।
नारायण कविराय, नहीं बैठो रे गुमसुम।
भारत सैनिक वीर, लगाओ उनको कुमकुम।।
19/12/19
बिंदी
बिंदी माथे पर लगा, माँग भरा सिंदूर।
रक्त पिछौड़ी ओढ़कर, लगती है वह हूर।।
लगती है वह हूर, जगाती मेरे मन को ।
शीतल सा है छाँव, तपेदिक पीड़ित तन को।।
नारायण का नूर, नहीं बन जाए चिंदी।
डर डर कर मैं आज, निहारूँ उसकी बिंदी।।
डोली
डोली आने को हुई, पूर्ण नहीं श्रृंगार।
मैके में अनुरक्त मैं, नहीं करी मनुहार ।।
नहीं करी मनुहार , चली साजन के घर में।
कभी नहीं की बात, यही सकुचाती उर में।।
नारायण कविराय, मिले कोई हमजोली।
जाना है ससुराल, सजन की आई डोली।।
पं०रामजस त्रिपाठी नारायण
[19/12 6:16 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक -
कुण्डलिया(7)
विषय- बिन्दी
=========
बिन्दी छोटी या बड़ी, करती काम अनेक l
दर्शाती अहिवात तिय, भाल सजाती नेक ll
भाल सजाती नेक, बढ़ाती शोभा तन की l
परिकल्पित त्रय चक्षु, नियंत्रित गति हो मन की ll
कह 'माधव कविराय', गणित सह भाषा हिन्दी l
नारी का श्रृंगार, सभी में गुरुता बिन्दी ll
कुण्डलिया (8)
विषय- डोली
==========
डोली में होती विदा, बात पुरानी यार I
अब नव दम्पति चाहते, नई बुलेरो कार ll
नई बुलेरो कार, सड़क जो सरपट चलतीं l
घर कुछ अरसे बाद, विपिन बाधाएँ टलतीं ll
कह 'माधव कविराय', समय ने मारी गोली l
हुई विलोपित आज, न कोई जाने डोली ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[19/12 6:18 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*19/12/2019*
*दिन - वीरवार*
*विषय - बिंदी*
*विधा-कुंडलियां*
*7- बिंदी*
छोटी सी बिंदी सजी,गले पड़ी वनमाल।
हाथों में कंगन सखी,लगे सुनहरे बाल।
लगे सुनहरे बाल,सभी के मन को हरती।
खुशियों की सौगात, लिए संग में वो फिरती।
कहती सरला बात,लगे नजर नहीं खोटी।
डोले इत उत आज,अभी है वय की छोटी।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
----------------------------------
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*19/12/2019*
*दिन - वीरवार*
*विषय - डोली*
*विधा-कुंडलियां*
*8-डोली*
डोली गोरी की चली,अरे पिया घर आज।
छूटी माता की गली,गया हाथ से राज।
गया हाथ से राज, सभी पीछे रह जाता।
बीत गया जो आज, कहां वापस मिल पाता।
कहती सरला बात , करो न हंसी ठिठोली।
पड़े नहीं है जान,चले कब तेरी डोली।।
*डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"*
*दिल्ली*
[19/12 6:34 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 16.12.19
, 👀🙏👀
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *बिन्दी*
नारी भारत की भली, जब हो बिन्दी भाल।
विविध रंग की ये बने, सुंदर सजती लाल।
सुन्दर सजती लाल, शान सम्मान सिखाए।
शान भारती मात, शहादत पंथ दिखाए।
शर्मा बाबू लाल, अंक की छवि विस्तारी।
बढ़ता मान अकूत, लगाए बिन्दी नारी।
, 👀👀👀
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *डोली*
डोली तेरे भाग्य से, चिढ़े साज शृंगार।
दुल्हन ही बैठे सदा, उत्तम रखे विचार।
उत्तम रखे विचार, संत जैसे बड़भागी।
डोली दुल्हन संग, रहो तुम सदा सुहागी।
शर्मा बाबू लाल , सुता की भरना झोली।
उत्तम वर के साथ, विदा बेटी की डोली।
, 👀👀👀
रचनाकार का नाम-
✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[19/12 6:41 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -19/12/19
बिंदी(7)
बिंदी से शोभा बढे, नारी की भरपूर।
नथनी कहती झूम के, मत जाओ तुम दूर।।
मत जाओ तुम दूर, सजन से कहती सजनी।
रहना हरदम पास ,दिवस हो चाहे रजनी।
कह राधे गोपाल, पहाड़ी हो या सिंधी।
मुख आभा में चमक, रही है सबके बिंदी।
डोली (8)
डोली में वो बैठके, जाती जब ससुराल।
सोचो बेटी के बिना, मात-पिता का हाल।।
मात पिता का हाल, समझ जाओ जग वालों।
भेज रहे परदेस, जिसे पाला है सालों।
कह राधे गोपाल, चमकती चुनर चोली।
जाती है ससुराल, सुता चढ़ करके डोली ।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[19/12 6:55 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 19.12.19
कुण्डलियाँ (7)
विषय- *बिंदी*
बिंदी भारत मात की, हिंदी है अनमोल।
कानों मिसरी घोलती, मीठे इसके बोल।।
मीठे इसके बोल, स्वाद भाषा का चखिए।
करें नहीं संकोच, निडर हो बातें करिए।।
प्रांजलि का अभिमान, बोलती हरदम हिंदी।
मस्तक का श्रृंगार, चमकती जैसे बिंदी ।।
कुण्डलियाँ (8)
विषय- *डोली*
डोली चढ़कर आ गई, अपने पिय के द्वार।
संग बिताऊँ साथिया, जीवन के दिन चार।।
जीवन के दिन चार, चलो हम प्यार लुटाएँ।
ले हाथों में हाथ, नया संसार बसाएँ।।
प्रांजलि है बलिहार, सुनो मेरे हमजोली।
स्वयं निभाने साथ, आ गई चढ़कर डोली।।
रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[19/12 6:57 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर*
*दिनाँक--19/12/19*
(7)
*बिंदी*
*बिंदी*
पायल बिंदी पहन के,चली नवेली नार।
आँखों में सपने सजा,ढूँढें राजकुमार।
ढूँढें राजकुमार, मिला न राम के जैसा।
जो भी पकड़े साथ,लगे वो रावण जैसा।
कहती अनु सुन बात,नहीं कर मन तू घायल।
अपनों के चल साथ,तभी बजती है पायल।
(8)
*डोली*
डोली बैठी नववधू,चली आज ससुराल।
आँखों में कजरा सजा,बेंदा चमके भाल।
बेंदा चमके भाल,कमर में गुच्छा पेटी।
सर पे चूनर लाल,सजी दुलहन सी बेटी।
कहती अनु यह देख,कभी थी चंचल भोली।
चलदी साजन द्वार,सँवरकर बैठी डोली।
*अनुराधा चौहान*
[19/12 6:57 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन गुरूवार 19.12.2019*
*7) बिंदी*
नारी हिंदुस्तान की, छोड़ दिया संस्कार
पीतल पीछे भागती, परदेशी आचार
परदेशी आचार, कि नारी भूली साड़ी
भूली निज संस्कार, फिरी वो देह उघाड़ी
कह अनंत कविराय, नयेपन को स्वीकारी
बिंदी कंगन छोड़, बनी अधुनातन नारी
*8) डोली*
बेटी डोली बैठके, चली पिया के पास
मन में हैं सजने लगे, नित नित नूतन आस
नित नित नूतन आस, प्रीत से साझा करती
मीठी बातें बोल, पिया का सुख-दुख हरती
कह अनंत कविराय, चढ़े प्रिय ऊँची चोटी
तब पिय मन को भाय, पिता की प्यारी बेटी
*रचनाकारः*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
[19/12 7:09 PM] कृष्ण मोहन निगम: कलम की सुगंध छन्दशाला
कुंडलियाँ शतकवीर प्रतियोगिता हेतु ।
दिनाँक 19/12/2019
(1)
कुंडलियाँ (7) विषय ... *बिन्दी*
जैसे अम्बर पटल पर , शरद पूर्णिमा इंदु ।
बिंदी शुभ्र ललाट पर ,द्युतिकारी सा बिंदु ।।
द्यतिकारी सा बिंदु , लगाती माथे दुलहन।
बिखराती आलोक , मंत्र जैसे सम्मोहन ।
"निगम" न भाता भाल , बिना बिंदी के कैसे ।
पर्ण बिना तरु उच्च , रात्रि चंदा बिन जैसे ।।
(2)
कुंडलियाँ(8) *डोली*
डोली चढ घर पिया के , जाने को तैयार।
बचपन का सपना मृदुल, होगा अब साकार ।।
होगा अब साकार , नई पीढ़ी है जागृत ।
देंगे नहीं दहेज , लिए बैठी ऐसा व्रत ।
"निगम" न हों नीलाम, पुत्र की लगे न बोली ।
ले संस्कार दहेज , चढ़े अब बेटी डोली ।।
रचनाकार
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर)
[19/12 7:18 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर*
दिनांक- 19/12/19
कुण्डलियाँ- (7)
विषय- *बिंदी*
बिंदी तेरे नाम की , देख लगाई माथ
हमराही हम आज तुम , हर पल चलते साथ।।
हर पल चलते साथ , जिंदगी की हर राहें ।
धूप छाँव को देख , थाम लेते तुम बाहें।।
सुवासिता कर जोर , बनो तुम पादालिंदी ।
भव सागर हो पार , प्रीत की देदे बिंदी ।।
कुण्डलिया-(8)
विषय- *डोली*
डोली आती देख कर , मुख पर छाया नूर।
बाबुल माँ को छोड़ कर , जाना होगा दूर।।
जाना होगा दूर , हृदय में दुल्हन कहती।
सिसक सिसक कर आज,नेह की धारा बहती।।
सुवासिता का हाथ , थाम लेगा हमजोली ।
गले लगा कर मात, विदा कर देगी डोली।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[19/12 7:37 PM] उमाकांत टैगोर: विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ 🙏🏻
16/12/19
कुंडलिया शतकवीर
(1)वेणी
नारी में वेणी सदा, लगती है मनुहार।
इस पर साजे फूल भी, लगे गजब श्रृंगार।।
लगे गजब श्रृंगार, मनः बाँछे खिल आती।
दर्पण देखत रूप, मुखर पुलकित हो जाती।।
नारी तन श्रृंगार, बड़ी लगती है प्यारी।
मन में शुद्ध विचार, लिए रहती है नारी।।1।।
(2)कुमकुम
मन में इक मुस्कान को,लिए सभी मुख होय।
सब कोई हँसते रहे, कोई कभी न रोय।
कोई कभी न रोय, सदा सुख मिलते जाये।
रहे सदा खुशहाल, सभी ही नाचे गाये।
कुमकुम जैसा रंग, चढ़ा लें इस जीवन में।
इक सुन्दर सी बाग, बसा लो अपने मन में।।
उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)
[19/12 7:46 PM] विद्या भूषण मिश्र "ज़फ़र": *कुंडलिया शतक वीर प्रतियोगिता।*
*दिनांक--१९/१२/१९, वृहस्पतिवार।*
~~~~~~~~~~~~~~
*7--बिंदी--*
~~~~~~~~~
चमके मुखड़ा चाँद सा, नागिन जैसे बाल।
आंखों में काजल भरे , बिंदी सोहे भाल।
बिंदी सोहे भाल, माल मोती का भारी।
अनुपम रूप अनूप, लगे रति जैसी नारी।
अति मनमोहक चाल, दामिनी जैसी दमके।
मुग्ध हुए सब लोग, चाँद सा मुखड़ा चमके।।
~~~~~~~~~
*८--डोली--*
~~~~~~~~~~~~~~
डोली में चढ़ कर चली, बेटी साजन द्वार।
बाबुल का घर छोड़ कर, पाने पति का प्यार।
पाने पति का प्यार, नया संसार बसाने।
आंखों में सज उठे, सुनहरे स्वप्न सुहाने।
भूल गई माँ-बाप,बहन,भाई, हमजोली।
छूटा अपना गाँव, चढ़ी कन्या जब डोली।।
~~~~~~~~
*-- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"-- बलिया, उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~
[19/12 7:54 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध छन्द शाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -7
दिनांक -19-12-19
विषय -बिन्दी
मस्तक पर बिंदी सजे,लगे भृकुटि के बीच,
माथे की शोभा बढ़े, बढ़े पिया से प्रीत l
बढ़े पिया से प्रीत,रहे सजना की कायलl
चमका दे हर रूप, करे ये दिल को घायलl
कहती सुनो सरोज, सदा देती ये दस्तक l
बिन्दी रंग बिरंग, लगे सुन्दर हर मस्तक ll
कुंडलियाँ -8
दिनांक -19-12-19
विषय - डोली
डोली बैठी बेटियाँ, कर सोलह श्रृंगार ll
बाबुल का घर छोड़ के, चले पिया के द्वारll
चले पिया के द्वार, प्रेम से साथ निभाती ll
रखती दिल में प्यार, सदा वे खुशी दिलातीl
कहती सुनो सरोज, शहद सी मीठी बोलीl चुभते दिल में शूल, उठे जब उनकी डोलीl
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[19/12 8:06 PM] मीना भट्ट जबलपुर: बिंदी
चमके देखो माथ पर ,साजन को है भाय।
रूप लगे अनुपम सदा ,गोरी तो मुस्काय।।
गोरी तो मुस्काय ,सजन की वो तो प्यारी।
अमर होवे सुहाग,कहे पिया की दुलारी।।
मीना कह हर्षाय ,देख मुखडा तो दमके।
साजन का है प्यार,माथ पर बिंदी चमके।।
मीना भट्ट
[19/12 8:12 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध
कुण्डलियां शतकवीर हेतु
19/12/19
*(1) बिंदी*
पायल कंगन चूड़ियाँ,बाला का श्रृंगार ।
भृकुटी मध्य बिंदी सजी,कंठ
नौलखा हार।
कंठ नौलखा हार,संग है मेंचिग बाली।
वेणी गजरा बाँध ,नैन है काजर काली।
नारी का श्रृंगार,पिया को कर दे घायल ।
बिसा देत है लाय,पिया जी कंगन पायल।
*(2)डोली*
डोली दुलहन बैठके ,अँसुवन धार लगाय।
आज भागती कार है ,मोटर गाड़ी आय।
मोटर गाड़ी आय,डगर पर सरपट भागे।
ब्याह साज सामान,सभी ही अधुना लागे।
कहती मधुर विचार,काल में बदली बोली।
बोलचाल के संग, बिदाई बदली ड़ोली ।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[19/12 8:19 PM] मीना भट्ट जबलपुर: बिंदी
चमके देखो माथ पर ,साजन को है भाय।
रूप लगे अनुपम सदा ,गोरी तो मुस्काय।।
गोरी तो मुस्काय ,सजन की वो तो प्यारी।
अमर होवे सुहाग,कहे पिया की दुलारी।।
मीना कह हर्षाय ,देख मुखडा तो दमके।
साजन का है प्यार,माथ पर बिंदी चमके।।
- मीना भट्ट
डोली
डोली में गौरी चली ,नैन भरा है नीर।
बचपन की सब याद तो,और बढाती पीर।।
और बढाती पीर ,बाबुल की याद आती।
छूटा भाई आज,बहन नित्य है बुलाती।।ं
कहती मीना मान,सजन की तू तू होली।
लाल चुनरिया ओढ़,चली बैठ सुनो डोली।।
- मीना भट्ट
[19/12 8:20 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतकवीर हेतु*
*दिनांक--------19/12/19*
*कुँडलिया(7)*
*विषय--------बिंदी*
बिंदी माथे जो सजे ,शोभे आनन रूप।
बिंदी बिंदु बूँद भी , मोहक छटा अनूप ।।
मोहक छटा अनूप , विविध है बिंदी महिमा ।
बने गणित आधार , बढ़ाये भारत गरिमा ।
होय तनिक जो चूक , बने अनर्थ तब हिन्दी ।।
नारी का अभिमान , सुहागन गहना बिन्दी ।।
*कुँडलिया (8)*
*विषय----------डोली*
डोली बिटिया की उठे , सजे नये अरमान ।
बिटिया माँ की नाज है , बाबुल का अभिमान ।।
बाबुल का अभिमान , करे जो चौड़ी छाती ।
रखती कुल का मान , जला खुशियों की बाती।
रिश्ते नाते जोड़ ,सदा हो मधुरिम बोली ।
बँधी प्रीत की डोर , उठी बंधन की डोली ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[19/12 8:30 PM] कमल किशोर कमल: नमन
19.12.2019
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
7-
डोली-
सजकर डोली चल पड़ी,नई बहू ले संग।
लाल चुनर साड़ी नई,लगा महावर रंग।
लगा महावर रंग,संग हैं सपने प्यारे।
दिल की धड़कन तेज,सोंचकर नखड़े सारे।
कहे कमल कविराज,चलेगी हँसी ठिठोली।
घर पहुँचेगी आज,बहू की न्यारी डोली।
8-
बिंदी-
माथे बिंदी लगाकर,बहू नवेली रूप।
कंगन झुमका बोलते,अद्भुत अजब स्वरूप।
अद्भुत अजब स्वरूप,गाल पर काला टीका।
दूर नजर की सोंच,देखिए गजब तरीका।
कहे कमल कविराज,नाम से है कालिंदी।
कर सोलह श्रृंगार,सुहागन की है बिंदी।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
🌹👏
[19/12 8:37 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 19/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - बिंदी
************************
पायल बिंदी चूड़ियाँ ,
नारी का श्रृंगार ।
सजती है मनभावनी ,
पाने पिय का प्यार ।
पाने पिय का प्यार ,
सदा ही करती अर्चन ।
साजन घर की धूल ,
समझती है वह चन्दन ।
रखना उसे सँभाल ,
नहीं करना मन घायल ।
सबको देती प्यार ,
छनकती है शुभ पायल ।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - डोली
************************
डोली फूलों से सजी ,
दुल्हन के मन भाय ।
कर सोलह श्रृंगार वह ,
बैठ रही सकुचाय ।
बैठ रही सकुचाय ,
सजाए कितने सपने ।
छूटा बाबुल द्वार ,
चली घर पिय के अपने ।
पाऊँ सबका प्यार ,
सोचती है वह भोली ।
अरमानों के साथ ,
चली दुल्हन की डोली ।।
***********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★★
[19/12 8:44 PM] डा कमल वर्मा: कुंडलियाँ शतक वीर के लिए रचना🙏🏻 दिनाँक19-12-19
कुंडलियाँ क्र.7
विषय1) बिंदी🌹
चंदा सा मुखड़ा सखी,कर सोलह सिंगार।
बिंदी तारा सी लगे, चली पिया के द्वार।
चली पिया के द्वार,सजन मनभावन आये।
रहें सुखी संसार,कभी मत हमें भुलायें।
कमल कहें कर जोड़,याद रखना यह बंदा,
हमें करायें याद,चमक नभ का यह चंदा।
कुंडलियाँ क्र 8
विषय 2) डोली🌹
डोली गोरी की चली,गई पिया के द्वार।
सजा रही थी नैन में, बाला स्वप्न हजार।
बाला स्वप्न हजार,नयें जीवन के देखें।
क्या जानें वह नार,विधी के लेख अनोखें।
कमल स्वप्न मत देख,सखी मेरी है भोली।
क्या समझायें मेख,सजी दुल्हन की डोली।
रचनाकार
डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
[19/12 8:51 PM] डॉ मीना कौशल: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक -
कुण्डलियाँ (1)
विषय-
बिन्दी
बिन्दी सोहै चन्द्रसम,सुन्दर सुखद ललाट।
अरुणिम दमके भाल तट,है सौभाग्य कपाट।।
है सौभाग्य कपाट,रेख सिन्दूर सुहावन।
नारी की शोभा ,दीप्तमय पूरण पावन।।
भारत भव्य ललाट,चमकती दीपित हिन्दी।
भारतीय परिवेष सुभामिनि,मस्तक बिन्दी।।
कुण्डलियाँ (2)
विषय-
डोली
डोली में बैठी सुता,चली सिसक ससुराल।
मात पिता आशीष दें,हो बेटी खुशहाल।।
हो बेटी खुशहाल,मिले दम्पति सुख पावन।
पूजित प्रेम अगाध,दृश्य दयनीय सुहावन।।
पुत्री के हर बोल,सुधा मिश्रित रस घोली।
हृदय द्रवित हो आज,चली बेटी की डोली।।
रचनाकार का नाम-डा.मीना कौशल
[19/12 8:53 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध
प्रतियोगिता कुंडलिनी
दिन-गुरुवार
19-12-19
विषय -शब्द -डोली/बिंदी
(1) डोली
डोली चढ़ बेटी चली,सजधज कर ससुराल।
खुशियों का संसार पा, मन में हुई निहाल।।
मन में हुई निहाल , पति विष्णु से पाकर।
घर मंदिर हो गया, प्रेम की ज्योति जलाकर।
कह प्रमिला कविराय, बेटियाँ होती भोली
बाबुल का घर छोड़, चली चढ़ पिय की डोली।।
(2) गोकुल को सखियाँ चलीं, कर सोलह श्रृंगार।
पटियन में सेन्दुर दिये,डाल गले में हार।
डाल गले में हार , नाक में पहन नथुनिया।
बिंदी माथ लगाय, पांव बाजै पैजनिया।।
कह प्रमिला कविराय, हँसे सब सखियाँ मिल जुल।
देखें नैनन कोर, आय नहि मोहन गोकुल।।
प्रमिला पाण्डेय
[19/12 9:08 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता
19/12/2019
(1)--डोली
डोली लिए कहार जब, पहुँचे साजन द्वार
थाल आरती हाथ ले, सास करें मनुहार
सास करें मनुहार, साथ ही ठाड़े साजन
कहतीं दे आशीष, पधारो हमारे आँगन
ये तेरा श्रृंगार, तुम्हारा है हमजोली।
लेकर आया साथ, प्यार से तेरी डोली
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
(2)--बिंदी
कुमकुम बिंदी आलता, कँगन बड़े कमाल।
मृगनयनी से नैन हैं, काले काले बाल।।
काले-काले बाल, चाल उसकी मतवारी।
दुल्हन जैसा रूप, पिया पर जाती वारी।।
बनकर पिय की खास,न रहती है वो गुमसुम।
करती है श्रृंगार, आलता बिंदी कुमकुम।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[19/12 9:17 PM] शिवकुमारी शिवहरे: कंगन
कंगन पहिने हाथ मे, सुंदर लगते हाथ।
माथे मे टीका लगा,चली पिया के साथ।
चली पिया के साथ,लगा के माथे बिंदी
मिला पिया का साथ, लगी है मेरी निंदी
कंगन की खनकार,पिया से बांधा बंधन।
कर सोलह श्रृंगार, पहना हाथ मे कंगन।
शिवकुमारी शिवहरे
[19/12 9:17 PM] वंदना शर्मा: शतकवीर हेतु
कुण्डलिया
19/12/19
7 *बिंदी*
हिंदी माँ भाषा सरस्,भरे भाव गम्भीर।
स्पंदन करती प्राण में,चेतन करे शरीर।
चेतन करे शरीर,विदेशी भाषा नीरस।
वैज्ञानिक परिवेश,सुकोमल जैसे नवरस।
भारत माँ के भाल,सजी हो कैसे बिंदी।
माँ संस्कृत लिपि देव,गर्व से बोलें हिंदी।
8 *डोली*
भोली भाली बेटियाँ, भरती खुशी अपार।
घर की क्यारी खिल रही, महके आँगन द्वार।
महके आँगन द्वार,प्रेम की नदियाँ बहती।
सबका रखती ध्यान,चाह कब अपनी कहती।
बाबुल ने दिल थाम, सजाई सुखमय डोली।
चली पिया के द्वार,बिछड़कर बेटी भोली।।
वन्दना शर्मा'वृन्दा
अजमेर
[19/12 9:18 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
16 दिसम्बर
विषय - वेणी
(1)
वेणी में गेंदा सजे, चाहे सजे गुलाब।
सुन्दरता बढ़ जाती है, पढ़ लेना किताब।।
पढ़ लेना किताब, बने हैं कितने किस्से।
लहराते जो केश, बने हैं प्रेम के हिस्से।।
सुन्दर ये सौगात,सदा उच्चतम श्रेणी।
करते हैं अभिभूत, लुभाती सबको वेणी।।
विषय- कुमकुम
(2)
आओ कुमकुम से करें, माता का श्रृंगार।
चूड़ी कंगन हाथ सजे, गले पुष्प का हार।।
गले पुष्प का हार, मुकुट भी सर पे साजे।
ढ़ोल मंजीरा आज, मात के द्वारे बाजे।।
उड़ते रंग गुलाल, झूम कर तुम भी गाओ।
पाना है आशीष , भक्त सब जल्दी आओ।।
17दिसम्बर
विषय-काजल
(3)
काली रात भयावनी, काजल को दे मात।
छप्पर भी जर्जर हुआ, उस पर ये बरसात।।
उस पर ये बरसात, कहाँ हो मोहन प्यारे।
दुखिया करे पुकार, बैठा तेरे सहारे।।
हे मुरलीधर देख, मेरे हाथ हैं खाली।
करुणा कर दे फेर, बीते रात ये काली।।
विषय-गजरा
(4)
राधा बैठी रूठ के, कारण हैं चितचोर।
व्यर्थ सारा श्रम हुआ, भीगा आँचल कोर।।
भीगा आँचल कोर, श्याम ने तोड़ा गजरा।
हृदय मनाए लाख, बहे है फिर भी कजरा।।
गूँथो आधा श्याम, और मैं गूँथूँ आधा।
माने मेरी बात, तभी खुश तेरी राधा।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[19/12 9:18 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कुण्डलिया शतकवीर हेतु
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कुण्डलिया
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दिनाँक-19/12/2019
7-बिंदी
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बिन्दी मुख चमका रही, झाँके लटके बाल।
मुख में दिखे प्रसन्नता, हो सिंदूरी गाल।।
हो सिंदूरी गाल ,तेज से पूरा माथा।
हो न जानकर भूल,कहे संस्कृति की गाथा।।
बोल 'निरंतर'आज,गर्व हम सबकी हिंदी।
भाल सदा है साथ, सुहाग कहे ये बिन्दी।।
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8--डोली
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डोली दुल्हन की उठी,ढोये चार कहार।
सज सँवरी सकुचा रही, सपने लिए हजार।।
सपने लिए हजार, प्यार बाबुल का छोड़े।
नव रिश्तों की आस ,डोर कोई मत तोड़े ।।
कहे निरंतर आज,ठीक पीहर की होली।
बाबुल पाये चैन, श्रेष्ठ घर जाये डोली।।
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अर्चना पाठक 'निरंतर'
[19/12 9:25 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
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*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
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*कुण्डलियाँ(१)*
*विषय-बिंदी*
१)सजना तेरे नाम की,बिंदी मेरे भाल।
सबको पीछे छोड़ के,साथ चली हर हाल।
साथ चली हर हाल,किया था मैंने वादा।
तुझसे मांगा प्रेम, नहीं कुछ मांगा ज्यादा।
मेरी सुन लो बात, सदा मेरे ही रहना।
जीवन के श्रृंगार,सुनो ऐ मेरे सजना।
*कुण्डलियाँ(२)*
*विषय-डोली*
डोली फूलों से सजी,लेकर चले कहार।
कैसी आई ये घड़ी,छूटा घर-संसार।
छूटा घर-संसार,बही आंसू की धारा।
टूटा मन का बांध,कौन दे किसे सहारा।
कहती 'अभि' निज बात,नहीं फिर निकली बोली।
देखें बस चुपचाप,चली जब घर से डोली।
अभिलाषा चौहान
सादर समीक्षार्थ 🙏🌷
🙏🌷
[19/12 9:26 PM] शिवकुमारी शिवहरे: बिंदी
बिंदी माथे पर लगा,सिंदूर भरा लाल
हाथ मे मेहदी लगी,घुँघराले है बाल।
घुँघराले है बाल, सिर पर बँधा है जूड़ा।
गोरे गोरे गाल, हाथ मे पहिना चूड़ा।
बिंदी बनी है ढ़ाल, सजन तो हो गया बन्दी।
सजती माथे भाल, लगा माथे मे बिंदी।
शिवकुमारी शिवहरे
[19/12 9:28 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
गुरुवार-19.12.2019
7)
*बिंदी*
बिंदी चमके भाल पे,शोभा लगे अनूप।
हाथों में कंगन सजे निखरे सुंदर रूप।।
निखरे सुंदर रूप,नवेली मन को भाए।
बजी बधाई गाँव, ढोलकी थाप लगाए।।
सुन वन्दू निज बात,चढ़ी वो आज बुलंदी।
शोभित होती नार,लगा के पी की बिंदी।।
8)
*डोली*
सजनी कहे कहार से,हो डोली में सवार
ओढ़ चुनरिया लाल,मैं चली पिया के द्वार
मैं चली पिया के द्वार,सजन जी लेने आए
मधुर मिलन की बात,सोच के दिल घबराए
कहती हूँ इक राज,डोलती मेरी नथनी
थर थर कांपे गात,लाज से सिमटी सजनी।
*वंदना सोलंकी*
[19/12 9:38 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
बृहस्पतिवार-19.12.2019
(7)कुण्डलिया
विषय-बिंदी
दमके बिंदी भाल पर,चमक रहा ज्यों भानु।
दीपशिखा सा रूप है, अंबर बीच कृसानु।
अंबर बीच कृसानु ,लगे रमणी अति प्यारी।
खींच मदन ने चाप, सजन सजनी पर मारी।
है सोलह श्रृंगार, बदन पर साड़ी चमके।
चली सजन के देश, कमल सा मुखड़ा दमके।
(8)कुण्डलिया
विषय-डोली
डोली बैठ बन्नी चली,प्रेम नगर को आज।
आँखों से आँसू बहें, रुँधी हुई आवाज।
रुँधी हुई आवाज, कहे बेटी से माता।
जा बेटी ससुराल , यहीं तक तुझसे नाता।
रोएं बहना, भ्रात ,करें रोदन हमजोली।
जगत की यही रीति,चली बेटी की डोली।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
[19/12 9:46 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *शतकवीर सम्मान हेतु कलम की सुगंध की सुगंध छंदशाला कुंडलिया प्रतियोगिता*
*१६ दिसंबर*
*०१ वेणी*
वेणी खींचे मातु की, शिशु करता मनुहार |
सहज प्रेम वात्सल्य का, विधना का उपहार |
विधना का उपहार, किशन-सा ललना लल्ला |
माता उसकी तात, यशोदा ढकती पल्ला |
कह *विदेह* कविराय, प्रेम की अद्भुत श्रेणी |
देखो अक्सर लाल, मातु की खींचे वेणी ||
*०२ कुमकुम*
कुमकुम माथे पर सजा, करती है श्रृंगार |
भारत की नारी सदा, प्रभु माने भरतार |
प्रभु माने भरतार, निराली उसकी छाया |
मंदिर जैसी तात, मानती अपनी काया |
कह *विदेह कविराय*, कभी वो होती है गुम |
भरे नित्य ही मांग, लगाकर सजनी कुमकुम ||
*१७दिसंबर*
*०३ काजल*
काजल नयनों में लगा, करती है श्रंगार |
कजरारे नयना बड़े, मतवाली है नार |
मतवाली है नार, कत्ल वो उनसे करती |
उर में प्रश्न हजार, कहाँ वो हम पर मरती |
कह *विदेह कविराय*, भरे वो गगरी से जल |
लजवंती है नारि, लगावे नयना काजल ||
*०४ गजरा*
गजरा गोरी का रुचे , महक उठे घर-बार |
गजबन जैसी चाल है, तीखे नयन कटार |
तीखे नयन कटार, भाव उसके हैं ऊँचे |
हमे न देती भाव, छानते गलियाँ -कूँचे |
कह *विदेह कविराय*, निराला उसका कजरा |
बड़ा कीमती तात, रुचे गोरी का गजरा ||
*१८ दिसंबर*
*विषय:-पायल*
पायल छनकाने लगी, क्यों गोरी तू आज |
क्या है पूरा माजरा, गिरा रही जो गाज |
गिरा रही जो गाज, चमक आँखों में जागी |
भूमंडल हैरान, ताकते हैं वैरागी |
कह विदेह कविराय, करे तू मन को घायल |
तू लजवंती नार, लगी छनकाने पायल ||
*विषय:- कंगन*
कंगन चमके हाथ में, लजा रही है नार |
तू गजबन-सी चल रही, करके खूब श्रंगार |
करके खूब श्रंगार, सांवली चितवन छोरी |
उर पे चले कटार, अरे तू श्यामल गोरी |
कह विदेह कविराय, अरे इतराता अांगन |
रहता तुझे निहार , हाथ में चमके कंगन ||
*१९ दिसम्बर*
*विषय:-बिंदी*
बिंदी है माँ भारती, के माथे का ताज |
लिपि बनी देवनागरी, सकल देश पर राज |
सकल देश पर राज, निराली इसकी माया |
लेखक,कवि सिरमौर , सभी ने है अपनाया |
कह विदेह कविराय, निराली अपनी हिंदी |
दुनिया में सम्मान, बनी माथे की बिंदी ||
*विषय:-डोली*
डोली बिटिया की उठी, बहे अश्रु की धार |
बाबुल की क्या पूछिए, कृपा करें करतार |
कृपा करें करतार, हृदय विचलित अब होता |
बिटिया रानी हाय, तुम्हे अब मैं हूँ खोता |
कह विदेह कविराय, बंद है मेरी बोली |
चली गई ससुराल, तात बिटिया की डोली ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
किच्छा, ऊधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[19/12 9:48 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
19/12/19
7 बिंदी
मेरे भारत देश का , हिन्दी है श्रृंगार ,
भाषा के सर की बिँदी , देवनागरी सार ,
देवनागरी सार , बनी है मोहक भाषा ,
बढ़े सदा यश किर्ति , यही मन की अभिलाषा
अंलकार का वास, शब्द के अभिनव डेरे
गहना हिन्दी डाल, सजा तूं भारत मेरे ।।
8 डोली
डोली चढ़ दुल्हन चली,आज छोड़ घर द्वार
धुनक रही है ढोलकें, साथ मंगलाचार
साथ मंगलाचार ,सखी साथी सब छूटे
मुंह न निकले बोल ,दृगों से मोती टूटे
सबका आशीर्वाद , रचे है कुमकुम रोली ,
धीरे धीरे साथ ,चले पिया संग ड़ोली।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
[19/12 9:49 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
*कुण्डलिया शतकवीर सम्मान प्रतियोगिता, 2019*
*19.12.2019.*
कुण्डलिया छंद
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7) बिंदी
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सोहे माथ बिंदी सजी , चमकी माथे बीच ।
प्यारी दुल्हनिया सुनो , ले अभी ध्यान खींच ।।
ले अभी ध्यान खींच , सजन से प्रीत बढ़ाती ।
बिंदिया चमके माथ , पायल भी छनक जाती ।।
कहती गोरी आज , आती है लाज मोहे ।
साजन बना सुहाग , बिंदिया जो माथ सोहे ।।
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कुण्डलिया छंद
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8 ) डोली
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डोली में दुल्हन चली , आँखों में है लाज ।
बाबुल का छोड़ अँगना , रोती है वह आज ।।
रोती है वह आज , पर नैन में सपने हैं ।
दुख होता है त्याग , जो भी यहाँ अपने हैं ।।
कानों में तो आज , गूँगी सबकी बोली ।
ले चले अब कहार , सजी दुल्हन की डोली ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
मुंबई ।
19.12.2019 , 8:50 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏 समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[19/12 10:01 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर के लिये
19-12-19
कुंडलिया छंद
बिंदी
बिंदी गौरा मातु को, चढ़ा मनाऊँ आज ।
अमर सुहाग रहे सदा, बिँदिया के सरताज ।।
बिँदिया के सरताज,आज सँग मेरे डोले ।
बोले मीठे बोल, कान में वो रस घोले ।।
गीत मधुर पिय गाय,बोल हो जिनके हिन्दी ।
लाल चुनरिया ओढ़,फिरूँ मैं डाले बिंदी।।
डोली
डोली में बिटिया चली, अपने पिय के साथ ।
माँग मोतियों से भरी, रचा मेंहदी हाथ ।।
रचा मेंहदी हाथ,लाडली ससुरे जाती ।
माँ का आँगन छोड़, पिया घर स्वर्ग बनाती ।।
रखना माँ का ख्याल,पिता बेटी है बोली ।
भाई बहना छोड़, बैठती बिटिया डोली ।।
केवरा यदु"मीरा "
राजिम
@Kalam ki sugandh
@Kalam ki sugandh
शानदार कुण्डलिया ...सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई 💐💐💐💐💐
ReplyDeleteलाजवाब सभी की रचनाधर्मिता को नमन व बधाई
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