[24/12 6:01 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -16
दिनांक -24-12-19
विषय -कविता
कविता में अनुभव कहो, भावों का है मेल
ह्रदय बोझ हल्का करो, सब कष्टों को झेल l
सब कष्टों को झेल, शब्द भावों को देताl
गूँगे के हैं बोल, नाव विचार की खेता l
कहती सुनो सरोज, सृजन की बहती सविताl
बीता समय समेट, बने रचना कवि कविताl
कुंडलियाँ -17
विषय -ममता
ममता की इस छाँव में, मिले सदा आराम l
ममता ऐसी है दवा, मिटते रोग तमाम l
मिटते रोग तमाम, मिटा दे पशुता दानव l
इसमें शक्ति अपार, बना दे सबको मानव l
कहती सुनो सरोज, दिखा के अपनी क्षमता l
रखती सबको बाँध, लुटा के अपनी ममताl
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[24/12 6:02 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*शतकवीर सम्मान हेतु कुंडलिया*
*दिनांक:-२४/१२/२०१९*
*दिवस:-मंगलवार*
*आज की कुंडलिया*
*विषय :-कविता*
*१५*
कविता पुष्पों से सजा , हरा-भरा उद्यान |
श्रोता, पाठक भ्रमर-से , नित करते रसपान |
नित करते रसपान , शब्द छेनी-से चलते |
मीठे-मीठे बोल, स्वप्न नयनों में पलते |
कह विदेह कविराय, भव्य भावों की सरिता |
श्रवण करो हे तात! , अमिय-हाला है कविता ||
*विषय:- ममता*
*१६*
ममता की छाया घनी, देती हमें सुकून |
माँ लिखती है मित्रवर, किस्मत का मजमून |
किस्मत का मजमून, प्यार की लिखे इबारत |
करता हूँ मैं मित्र, मातु की सदा इबादत |
कह विदेह कविराय, गज़ब की उसकी समता |
हर बालक से प्रीत, नमन माता की ममता ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[24/12 6:03 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 24.12.2019
15- कविता
************
कविता अन्तर्मन बसे,
सहज रूप बन जाय।
सुख-दुख को साझा करे,
सबके मन को भाय।
सबके मन को भाय,
मंच पर चढ़ कवि गाता।
कोई लिख कर भाव,
अमरता इससे पाता।
"अटल" लिख रहे रोज,
बह रही निर्मल सरिता।
सदा काव्य रस पान,
कराती सबको कविता।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
16- ममता
************
ममता जिसके मन बसी,
दूर हुए सब पाप।
पर सारे संसार को,
लगा हुआ है शाप।
लगा हुआ है शाप,
लोभ में सब हैं अंधे।
काम, क्रोध, मद, मोह,
कराते खोटे धंधे।
"अटल" सभी कमजोर,
स्वार्थ में खोते क्षमता।
विरले मन में शेष,
आज दिखती है ममता।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[24/12 6:07 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
24/12/19
15 कविता
रूठी रूठी शल्यकी ,गीत लिखे अब कौन ,
कैसे मैं कविता रचूं , भाव हुए हैं मौन ,
भाव हुए हैं मौन , नही अवली में मोती
नंदन वन की गंध , उड़ी उजड़ी सी रोती ,
कहे कुसुम ये बात , नहीं काव्य रही काठी ,
सुनो सहचरी मूक , नहीं रहना तुम रूठी ।।
16 ममता
ममता माया छोड़ दी, छोड़ दिया संसार ,
राग अक्ष से बँध गया, नहीं मोक्ष आसार,
नही मोक्ष आसार , रही अन्तर बस आशा ,
भरा है सिंधु वारि , फिरे शफरी सा प्यासा ,
कहे कुसुम ये बात हृदय में पालो समता
रहो सदा निर्लिप्त ,रखो निर्धन से ममता।।
कुसुम कोठारी।
[24/12 6:17 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*******************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*(१५)विषय-कविता*
कविता कवि की कल्पना,हृदय भाव उद्गार।
रस की निर्झरणी बने,तेज धार तलवार।
तेज धार तलवार,समय की बदले धारा।
सूर्य किरण से तेज, कलुष तम हरती सारा।
कहती 'अभि' निज बात,क्रांति की बहती सरिता।
लेकर तीर-कमान,हाथ में चलती कविता।
*(१६) विषय-ममता*
ममता की समता नहीं,सब कुछ देती वार।
बस इसकी ही छाँव में,खुशियाँ मिलें अपार।
खुशियाँ मिले अपार,खिले बचपन फूलों सा।
अपना सब कुछ हार,चुने वह पथ शूलों का।
करे नहीं छल-छंद,दिखाती है वह समता।
बनी चांदनी तुल्य,चंद्र सी शीतल ममता।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[24/12 6:23 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--24/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
(15)
*कविता*
कविता कहती कलम से,कैसा कलियुग आज।
कोयल से कागा भला,कहती कड़वे राज।
कहती कड़वे राज,कर्म सब कलुषित करते।
कलियुग रचे विधान,तभी दुख से सब डरते।
कहती अनु यह देख,क्लेश की बहती सरिता।
कलियुग छीने प्रेम,यही कहती है कविता।
(16)
*ममता*
सोया आँचल के तले,मिलती ममता छाँव।
पैरों के बल क्या चले,भूले अपना गाँव।
भूले अपना गाँव,कभी थे आँचल झूले।
शहरी आभा देख,बची ममता भी भूले।
कहती अनु सुन बात,बचाले सुख जो खोया।
ममता देती छाँव,जगाले मन जो सोया।
*अनुराधा चौहान*
[24/12 6:28 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
24/12/19
कविता
रचती भावों की मोतियां ,कविता सृजन महान।
शब्द ,छन्द श्रृंगार से,कविगण करें बखान।।
कविगण करें बखान,लिखें वीरों की गाथा ।
भरते तन में जोश, झुके श्रद्धा से माथा ।।
सच्चाई की राह ,कलम जब इनकी चलती।
लाती है बदलाव,विधा अंतस से रचती।।
///
ममता
ममता की अनुभूति को ,कैसे करूँ बखान ।
शब्द असीमित लघु लगे,ममता रही महान।।
ममता रही महान,त्याग की कहे कहानी
माँ का आँचल छाँव ,याद हैं बड़ी सुहानी ।।
लहु से अपने सींच ,भाव वो राखे समता ।
माँ जीवन आधार ,गोद है उसकी ममता ।।
अनिता सुधीर
[24/12 6:32 PM] अनिता मंदिलवार सपना: कलम की सुगंध
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
कुण्डलिया
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दिनाँक-24/12/2019
15-कविता
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मेरी कविता सो रही, चली उठाने आज ।
विचलित हुई समाज से,देख घिनौने काज।।
देख घिनौने काज,सहम जाये अब बेटी।
कैसे फैले पंख ,तीव्र ज्वाला पे लेटी।।
कर उसका सम्मान,नहीं बेटी क्या तेरी।
भरती एक हुँकार,नई बन कविता मेरी।।
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16-ममता
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जागी है ममता अभी,मन विचलित है आज।
मचल कहीं तनया रही,करती मन पे राज।।
करती मन पे राज,छोड़ कर मन है भारी।
अच्छा बने भविष्य,सदा तुम पे मैं वारी।।
कहे 'निरंतर' आज,तुझे मिलने अब भागी।
सो मेरी संतान,रात सारी क्यों जागी।।
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अर्चना पाठक 'निरंतर'
[24/12 6:35 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ प्रतियोगिता*
दिनांक --- 23.12..19...
विषय ----- *जीवन , उपवन*
(13) *जीवन*
जीवन को सपना कहो , कह दो या तुम काम ।
काम चिंतन युक्त बनें , धाम वही सुख धाम ।
धाम वही सुख धाम , भावना होगी सुरभित।
सुरभित होगा देश , जनता होगी सुरक्षित ।
सुरक्षित जनता भाव , सदैव मनावें सावन ।
सावन खिलता फूल , सदैव खिलेगा जीवन ।।
(1) *उपवन*
उपवन फूलों संग ही , खिलता है दिन रात ।
रात तमस व ओस दिया , नमी चराचर गात ।
नमी चराचर गात , उपवन होता सुरक्षित ।
सुरक्षित रहे गेह , होगा परिवार विकसित ।
विकसित हो परिवार , समय माँगे तब जीवन ।
जीवन जीना खास , खिले आँगन में उपवन ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 24.12.19......
कुंडलियाँ
24.12.19....
विषय ---
(15) *कविता*
कविता लिखने के लिए , करना है इक काम ।
काम विषय गत भावना , रचता छंद विराम ।
रचना छंद विराम , पुष्प सा होता विकसित ।
विकसित होत विचार , रचना रचो परिभाषित ।
परिभाषित कवि भाव , होने लगे मन सविता ।
सविता सा मन भाव , समझ लेती है कविता ।।
(16) *ममता*
ममता देना है सदा , पूरा हो मातृत्व ।
मातृत्व व परिवार ही , देता है भातृत्व ।
भातृत्व गुण कि खान , करें परिवार पल्लवित ।
पल्लवित रहे मान , परिवार रहे सुवासित ।
सुवासित रहे संग , साथ हमेशा समता ।
समता ही बरसाय , सदा देता है ममता ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 24.12.19....
_________________________________
[24/12 6:42 PM] सरला सिंह: *24.12.19*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - मंगलवार*
*दिनांक-24/12/19*
*विषय: कविता *
*विधा कुण्डलियाँ*
*15-कविता*
कविता ऐसी रच सदा,करे कलुषता दूर।
ज्ञानी सम आंखें खुलें,भरे ज्ञान भरपूर।
भरे ज्ञान भरपूर, बढ़े सब में चतुराई ।
आपस में हो प्यार, करें न कोई लड़ाई।
कहती सरला आज,करो रचना सम सविता ।
बहती पावन धार, कहें ऐसी हो कविता।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - मंगलवार*
*दिनांक-24/12/19*
*विषय: ममता *
*विधा कुण्डलियाँ*
*16-ममता*
ममता धन सबसे बड़ा ,वहीं रत्न की खान।
दौलत है सबसे बड़ी, बात यही ले जान।
बात यही ले जान,करें सब लोग बड़ाई।
दुनिया में सब लोग,नहीं इसपर है लड़ाई।
कहती सरला बात, नहीं इसकी है समता।
पावन जग में नाम, कहें सब उसको ममता।।
*डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"*
*दिल्ली*
[24/12 6:42 PM] कृष्ण मोहन निगम: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलियां शतकवीर प्रतियोगिता
दिनांक 24 दिसंबर 2019
15- *कविता*
कविता कवि की कलम से , निकली गंगा- धार ।
शांत बहे सुखदायिनी, उफने हाहाकार ।
उफने हाहाकार, बदल दे दुनिया सारी ।
बहे अमिय श्रृंगार , लगे सब जग को प्यारी ।
"निगम" लहर बिन सिंधु, दिवस जैसे बिन सविता।
हो न नेह संचार , जगत में बिन कवि कविता ।।
16-- *ममता*
ममता अंतःकरण का , सबसे निर्मल भाव ।
अरि-मन पर भी डालता , यह अनुकूल प्रभाव।।
यह अनुकूल प्रभाव , विहग पशु तरु भी सारे ।
अपनेपन की डोर, बँधे शशि रवि सब तारे ।।
कहे 'निगम' कविराज , जगत में आए समता।
छोटे दें सम्मान , बड़े दें सबको ममता ।।
कलम से
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर)
[24/12 6:55 PM] सुशीला साहू रायगढ़: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु मेरी रचना*
*ममता*----24/12/2019*
ममता मयी जनी सुनो,मिले अब यही प्यार।
माँ बेटी पुकारे तुझे , स्नेह भरा संसार।।
स्नेह भरा संसार,करूण पुकार सुन माता।
दे आशीष अपार,कभी न होती कुमाता।।
कहे कवि सुनो आज, स्वर्ग सुख सच में मिलता।
मिले सम्मान व ताज, रखो सर पर माँ ममता।।
*कविता*---–---
कविता बने इतिहास तो,हो साहित्य विकास।
लिखिए हर एक सार यूँ ,होत सफल प्रयास।।
होत सफल प्रयास , सही शब्दों चयन करना।
मिलते अनंत आस,सरस मनो भाव रखना।।
कह शीला ये बात ,बहे नीर धार सरिता।।
गहराई हो ज्ञात, उत्तम सृजन हो कविता।।
*सुशीला साहू शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*
[24/12 7:00 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ-शतकवीर सम्मान हेतु+
दिनाँक - 24.12.19
(15) कविता
कविता कहना है कला,शब्दों का यह खेल।
अलंकार रस छन्द से, सिमटे हैं तुक मेल।।
सिमटे हैं तुक मेल,भावना दिल से नाता।
गाओ लय औ ताल,ह्रदय आनन्द समाता।।
कहे विनायक राज,लिखो रे सूरज सविता।
सुन्दर प्यारा गीत,बनेंगे कवि की कविता।।
(16) ममता
मूरत सुन्दर मातु की, ममता की भंडार।
दिल से नहीं बिसारना, इनसे ही संसार।।
इनसे ही संसार, सुरक्षा माँ की करना।
पाओगे रे मान, किसी से फिर क्या डरना।
कहे विनायक राज, बड़ी भोली सी सूरत।
ममता की है खान,बसाना दिल में मूरत।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
[24/12 7:05 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन मंगलवार 24.12.2019*
*15) कविता*
कविता कवि की कल्पना, कहे कथामृत कथ्य
सर्जन सर्जनहार से, सदा सुघोषित सत्य
सदा सुघोषित सत्य, सकल संसार सजाता
साधक सम सब साध, अश्व सा शब्द सधाता
कह अनंत कविराय, सुधा सुख साजे सरिता
काटे काल कराल, कामना कवि की कविता
*16) ममता*
ममता माँ की मोहिनी, पाले पितु का प्यार
अग्रज का अनुराग अति, स्नेह स्वसा संसार
स्नेह स्वसा संसार, सहोदर साथ सरसता
टीका टाँके भाल, तनुज तो इसे तरसता
कह अनंत कविराय, स्वर्ग सुख सच में जमता
मान मान मनुहार, मातु मन मोहे ममता
*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
[24/12 7:07 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध कुंडलिनी छंद प्रतियोगिता
दिन-मंगलवार
24-12-19
विषय-कविता/ममता
(1)कविता
कविता में लालित्य हो, पूर्ण छंद लय ज्ञान।
मधुरिम स्वर रस कंठ हो, सदा मिले सम्मान।
सदा मिले सम्मान, शारदा होय सहाई
हो प्रसन्न सब लोग, सुनें दोहा ,चौपाई।
मन में उठे हिलोर, बहे भावों की सरिता
गढ़ जाती है पीर, शब्द अवगुंठन कविता।।
(2)ममता
ममता की मूरत नही , मां सचमुच भगवान।
अन्तर्मन की जानती, करेंगे सदा कल्यान।।
करे सदा कल्यान, मांगती प्रभु से कहती।
सुखी रहे परिवार, सदा दुःख खुद वो सहती।।
कह प्रमिला कविराय, सुखी जो मां को रखता।
मां देती आशीष, लुटाकर सारी ममता।।
प्रमिला पाण्डेय
कानपुर
[24/12 7:21 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - /12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - कविता
**************
कविता मन के भाव का ,
आनंदित उद्गार ।
ओत प्रोत लालित्य से ,
संरचना साकार ।
संरचना साकार ,
कर्णप्रिय दुख हर लेती ।
मन की गाँठें खोल ,
हृदय में रस भर देती ।
करती ज्ञान प्रसार ,
गगन में जैसे सविता ।
सत्य राह दिखलाय ,
बने जब उत्तम कविता ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - ममता
****************
माँ की ममता का नहीं ,
कोई पारावार ।
निश्छल मन अति पावनी ,
देती है संस्कार ।
देती है संस्कार ,
मनुज को देव बनाती ।
साहस संबल और ,
शौर्य का पाठ पढ़ाती ।
ईश्वर खेले गोद ,
नहीं है उसकी समता ।
वंदन बारम्बार ,
दिव्य है माँ की ममता ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★★
[24/12 7:25 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
दिनांक-20-12-019
(9)
विषय-आँचल
धरती का आँचल हरा, हरियाली चहुँ ओर।
नभ से मोती झड़ रहे, चमके चूनर कोर।।
चमके चूनर कोर, ऋतु बरसात की आयी।
दादुर करते शोर, कोयल बोली लुभायी।।
होते पर्व अनेक, नारियाँ हर्षित करतीं।
सुखमय वायु सुगंध, मह मह सर्व दिश धरती।।
(10)
विषय-कजरा
कजरा नैनों में लगा, गोरी चली बाजार।
झूमका डोले कान में, देखत मचा बवाल।।
देखत मचा बवाल, समझो न अबला नारी।
बदला सर्व समाज, नहीं है अब बेचारी।।
सक्षम है वो आज, हटाने में दुख बदरा।
निश्छल है मुस्कान, लगाकर चलती कजरा।।
दिनांक-21-12-019
(11)
विषय- चूड़ी
झूला झूलें श्याम तो, मुझको भी है चाह।
शरमाऊँ कैसे कहूँ, सूझे कोई राह।।
सूझे कोई राह, उसी की मैं हो जाऊँ।
पीली चूनर ओढ़, हरी चूड़ी खनकाऊँ।।
है इतना विश्वास, नहीं वो मुझको भूला।
झूलेंगे हम साथ, वहीं उपवन में झूला।।
(12
विषय-झूमका
हीरे मोती के झूमके, ले आना जी आज।
वर्ना मैं बोलूँ नहीं, हो जाऊँ नाराज।।
हो जाऊँ नाराज, फिरोगे बादल जैसे।
चूहे कूदें पेट, भरोगे जैसे तैसे।
महँगाई की मार, फटी साजन की धोती।
सपने में जो बोल, खरीदे हीरे मोती।।
सादर प्रस्तुत👏👏
गीता द्विवेदी
[24/12 7:28 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
24/12/2019::मंगलवार
ममता
ममता होती सिंधु सी, जिसका ओर न छोर।
बच्चों के सुख देखकर, होती रहे विभोर।।
होती रहे विभोर, बिना बदली के बरसे।
बिन खाये दो कौर, न जाने देती घर से।।
दुनियाँ में बेजोड़, कहाँ है माँ सी समता।
जिसकी थाह अथाह, सिंधु सम होती ममता।।
कविता--
कविता बोली छन्द से, पाकर तेरा साथ।
मैं तो गदगद यूँ हुई, मिले भक्त को नाथ।।
मिले भक्त को नाथ, नहीं सुख मानो क्षणिका।
भाव बने है मुकुट, शब्द बन जाते मणिका।।
कलकल का संगीत, सुनाती सी ये सरिता।
मधुरिम रहे प्रवाह, छन्द बन बहती कविता।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[24/12 7:40 PM] शिवकुमारी शिवहरे: कविता
कविता जब लिखने लगी, भाव करें गुंजार
शब्दों को जोड़ दिया, बन गई रचनाकार।
बन गई रचनाकार ,बही भावों की धारा।
लिखा बहुत अपार, हो गई मै कलम कारा।
कहे शिवा ये आज,बही भावो की सविता।
बनते भाव अपार, लिखती गई मै कविता।
शिवकुमारी शिवहरे
,
[24/12 7:40 PM] शिवकुमारी शिवहरे: ममता
ममता आँचल मे भरी, करे प्यार बौछार ।
माँ ने जीवन मे दिया, ममता का उपहार।
ममता का उपहार , बने बचपन की माली।
माँ ममता की खान,न होती झोली खाली।
देती सबको प्यार,बराबर होती समता।
होता नहीं गुमान,भरी आँचल मे ममता।
शिवकुमारी शिवहरे
[24/12 7:46 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 24/12/2019
कुण्डलिया (15)
विषय- कविता
===========
कविता में जन जागरण, छिपी नीति की बात I
दर्शाए दिग् देश को, सरस सार्थक गात ll
सरस सार्थक गात, असर हो औषधि जैसा l
शब्द - शब्द में धार, शिलीमुख अर्जुन ऐसा ll
कह 'माधव कविराय', तमस ज्यों हरता सविता l
शोषण मुक्त समाज, बनाए कल्पक कविता ll
कुण्डलिया (16)
विषय- ममता
==========
ममता की जब बात हो, प्रथम मातु का नाम I
कूट - कूट यह गुण भरा, सदा शरद सम घाम ll
सदा शरद सम घाम, तनय हित चिन्तन हरदम l
अनुपमेय सौगात, बनाया जीवन सरगम ll
कह 'माधव कविराय', करे क्या कोई समता l
बन प्रभु दत्तात्रेय, बताई क्षमता ममता ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ. प्र.)
[24/12 7:59 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
24-12-19
कविता
कविता मेरी रो रही, चली गई जब मात ।
नैनन से आँसू बहे,शिथिल हुये मन गात ।
शिथिल हुये मन गात, कलम भी रोती रहती ।
तड़पे क्यों दिन रात, लेखनी मुझसे कहती
छोड़ गये पितु मात,नयन से बहती सरिता ।
अब हो गयी अनाथ, लिखूँ मैं कैसे कविता ।।
ममता
ममता माँ ही बाँटती, माँ से ही घर बार।
माँ की सेवा जो करे, हो जाये उद्धार ।
हो जाये उद्धार, मात को देवी जानो ।
चरनन् चारो धाम,पूज लो कहना मानो ।
माँ गुरु माँ ही वैद, मातु में इतनी क्षमता ।
मृत में ड़ाले जान, देख लो माँ की ममता ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[24/12 8:03 PM] डा कमल वर्मा: कुंडलियाँ शतक वीर के लिए। 🙏🏻
दिनांक 24_12_19
कुंडलियाँक्र 15
1) कविता🌹
कविता अंतस से हुई,उतर कलम मेंआय।
शब्दों छंदों से गुथी,मन सुगंध भर जाय।
मन सुगंध भर जाय, लगे कृति अनु शाला की।
वह कविता कहलाय,बने नित मुदित विला की।
कमल हृदय से आय,चमक कवि की जब सविता,
छंद गंध सुख लाय, तभी हो पैदा कविता।
(मैंने इस रचना मे _कलम की सुगंध छंदशाला_ के सब शब्द लिये हैं) सविनय
कुंडलियाँ क्र 16
2)ममता🌹
कोई शब्द मिले कहाँ,सोच पहुँच न पाय।
कैसे ममता को लिखें,धार खत्म हो जाय।
धार खत्म हो जाय,कठिन परिभाषित होना,
जीव जगत आधार,रहे मानवता गहना।
कह कमल कई रूप,कहाँ सब तू लिख पाई।
ममता कई स्वरूप,छंद में लिख दें कोई।
रचना कार डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
[24/12 8:09 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 19:12:19
बिंदी::
जगमग भाल चमक रहा,
टीका बिंदी संग।
मीरा जोगन हो गई,
चढ़ा कृष्ण का रंग।।
चढ़ा कृष्ण का रंग ,
कृष्ण है सबसे प्यारा।
छान रही वनखंड,
लिए घूमे एकतारा ।।
छोड़ा है रनिवास ,
बसा कर कान्हा रग रग।
तुम्बी सोहे हस्त ,
भाल टीके से जगमग।।
डोली:
डोली बैठी नायिका,
पहन वधू का वेश।
कई स्वप्न मन में लिए,
चली पिया के देस।।
चली पिया के देस,
भटू अब नैहर छूटा।
माँ बाबा से दूर,
सखी से नाता टूटा।।
जाने कैसी रीत,
सुबक दुल्हनिया बोली।
लगी सजन से लगन,
स्वप्न बुन बैठी डोली।।
सुधा सिंह
सादर समीक्षार्थ
[24/12 8:13 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
दिनांक-20-12-019
(9)
विषय-आँचल
धरती का आँचल हरा, हरियाली चहुँ ओर।
नभ से मोती झड़ रहे, चमके चूनर कोर।।
चमके चूनर कोर, ऋतु बरसात की आयी।
दादुर करते शोर, कोयल बोली लुभायी।।
होते पर्व अनेक, नारियाँ हर्षित करतीं।
सुखमय वायु सुगंध, मह मह सर्व दिश धरती।।
(10)
विषय-कजरा
कजरा नैनों में लगा, गोरी चली बाजार।
झूमका डोले कान में, देखत मचा बवाल।।
देखत मचा बवाल, समझो न अबला नारी।
बदला सर्व समाज, नहीं है अब बेचारी।।
सक्षम है वो आज, हटाने में दुख बदरा।
निश्छल है मुस्कान, लगाकर चलती कजरा।।
दिनांक-21-12-019
(11)
विषय- चूड़ी
झूला झूलें श्याम तो, मुझको भी है चाह।
शरमाऊँ कैसे कहूँ, सूझे कोई राह।।
सूझे कोई राह, उसी की मैं हो जाऊँ।
पीली चूनर ओढ़, हरी चूड़ी खनकाऊँ।।
है इतना विश्वास, नहीं वो मुझको भूला।
झूलेंगे हम साथ, वहीं उपवन में झूला।।
(12
विषय-झूमका
हीरे मोती के झूमके, ले आना जी आज।
वर्ना मैं बोलूँ नहीं, हो जाऊँ नाराज।।
हो जाऊँ नाराज, फिरोगे बादल जैसे।
चूहे कूदें पेट, भरोगे जैसे तैसे।
महँगाई की मार, फटी साजन की धोती।
सपने में जो बोल, खरीदे हीरे मोती।।
सादर प्रस्तुत👏👏
गीता द्विवेदी
[24/12 8:32 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -24/12/19
कविता (15)
कविता गज़लें गीत सब, राधे की पहचान।
रात दिवस लिखती रहूँ, देती हूँ मैं मान ।।
देती हूँ मैं मान, पढे ये दुनिया सारी।
साथ रहे परिवार, निभाऊँ दुनियादारी।
कह राधेगोपाल, बहे भावों की सरिता।
लिखती जाऊँ रोज, नियम से मैं तो कविता।।
ममता (16)
ममता जब माँ की मिले, भगवन रहते पास।
माँ तो बच्चों के लिए, रख लेती उपवास।।
रख लेती उपवास, हरे वो संकट सारे।
माँ को लगते लाल, सदा आँखों के तारे।
कह राधे गोपाल, अधिक है माँ की क्षमता।
हो जाते हैं पार, मिले जब माँ की ममता।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[24/12 8:44 PM] डॉ अर्चना दुबे: *दिनांक - 18/12/19*
*पायल*
पायल पैरों में बजे, झुनझुन करे अवाज।
धीरे धीरे चल रही, नार मगन हो आज ।
नार मगन हो आज, बढ़ा आँगन सुंदरता ।
जाने क्या है बात, सवरने को मन करता ।
'रीत' पिया के साथ, कर रही सबको घायल।
छमछम शोर मचाय, पाँव में बाजे पायल ।
*कंगन*
बोले खन खन चूड़ियां, कंगन पीले लाल।
पिया निहारे ओट से, देख न मेरी चाल ।
देख न मेरी चाल, शरम से पानी पानी ।
सजे फूल सरताज, बनालो अपनी रानी ।
'रीत' उमड़ता प्यार, प्रेम रस हिरदे घोले ।
कँगना हाथ सजाय, आज साजन से बोले ।
*दिनांक - 19/12/19*
*बिन्दी*
बिंदी शोभा भाल की, और गले का हार।
कटि की शोभा करधनी, नारी करे श्रृंगार ।
नारी करे श्रृंगार, रूप मनमोहक लगता ।
सर पे चूनर लाल, लाल जोड़ा ही सजता ।
'रीत' बताये राज, सभी को भाये सिंधी ।
सुंदर मुखड़ा देख, निहारे लाली बिंदी ।
*डोली*
डोली बैठी सुंदरी, चली पिया के देश ।
बार बार है सोचती, करती सबसे द्वेष ।
करती सबसे द्वेष, नहीं मनभावन सजना ।
पायल छनक न भाय, बजे जब उनके अंगना ।
'रीत' रही समझाय, बोल मत टेढ़ी बोली।
समझे नहि पितु मातु, बिठाके भेजे डोली।
*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*
[24/12 8:56 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता
दिन-सोमवार
23-12-19
विषय -शबद
जीवन/उपवन
(1) जीवन
मानव जीवन जब मिले,कर लो पुण्य हजार।
भूले से भी हो नही, जड़ चेतन अपकार।।
जड़ चेतन अपकार, नही जब होगा भाई
खुश होगा भगवान्, देय सब फल सुखदायी।
कह प्रमिला कविराय, बनो मत तुम अब दानव।
कर लो परोपकार,सफल हो जीवन मानव।।
(2) उपवन
चुन-चुन कर लाते लखन, उपवन से जब मूल।
प्रेम पुलक परसे सिया, कंद मूल फल फूल।
क॔द मूल फल फूल, देख रघुवर हरषाने
सिया लखन भये मौन, राम को मरम न जाने।।
कह प्रमिला कविराय, जिया संन्यासी जीवन।
दर्शन पा हुए धन्य, बाग वन सुरभित उपवन।।
प्रमिला पान्डेय
[24/12 9:05 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
*दिन - मंगलवार। दिनांक-24/12/19*
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*15--- कविता*
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कवि के मन की भावना,और हृदय की पीर।
गागर में सागर भरे, मन को करे अधीर।
मन को करे अधीर, रसों की धार बहाती।
कभी अधर पर हास्य, कभी आँसू छलकाती।
मन विह्वल हो जात, नहीं रहती सुधि तन की।
जान सका है कौन, कल्पना कवि के मन की।।
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*16-ममता*
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माँ की ममता से बड़ा, क्या दूजा उपहार।
माता से बढ़ कर यहाँ, कौन करेगा प्यार।
कौन करेगा प्यार, ईश भी शीश झुकाते।
पाने माँ का प्यार, जन्म ले भू पर आते।
सुन "भूषण" सच बात, नहीं है माँ की समता।
सबसे है अनमोल, जगत में माँ की ममता।।
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*--विद्या भूषण मिश्र "भूषण"- बलिया, उत्तरप्रदेश।*
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[24/12 9:06 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
24.12.19-मंगलवार
15)
*कविता*
कविता कहती *कान* में,कान धरो कविराज।
भाव भरे भंडार से,सुंदर सजे समाज।
सुंदर सजे समाज,बहे भावों की गंगा।
नहीं गहन है राज,सुचारु चित्त हो चंगा।
कहती वंदू बात,गगन में शोभित सविता।
बहु विधि बात बताय,है मनमोहिनी कविता।।
16)
*ममता*
ममता महती मात की ,महिमा कही न जाय
पलने बीच सुला दिया,निज सुत बिन घबराय
निज सुत बिन घबराय,धन्य थी वो महतारी
पन्ना नामक धाय,अमर पन्ने में नारी।
सुन वंदू की बात,असीमित माँ की क्षमता
है इतिहास गवाह,त्याग दी अपनी ममता।।
*वंदना सोलंकी*
[24/12 9:06 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता
दिन-शुक्रवार
20-12-19
विषय शब्द
ऑचल/कजरा
(1)आंचल
भीलन शबरी देखती, राम लखन की बाट।
ऑचल से नित झारती, घर आंगन को टाट।।
घर ऑगन को टाट, झार पथ पुष्प बिछाकर।
खड़ी लिए जल नैन , दर्श की आस लगाकर।।
कह प्रमिला कविराय, दर्श दे दो रघुनंदन
है अति दीन मलीन, भक्त तव शबरी भीलन।।
(2)कजरा
दशरथ के अंगना फिरें ,चारिउ राजकुमार।
कर तल ध्वनि करि- करि हँसें, भाजि करें मनुहार ।।
भाजि करें मनुहार, पहिर सब पीत झँगुलिया।
कजरा नैनन आँजि, पाँव पहिरै पैंजनिया।
कह प्रमिला कविराय, भये सब पूर्ण मनोरथ।
मन नहि मोद समाय, देखि सुत चारिउ दशरथ।।
प्रमिला पान्डेय
कानपुर
[24/12 9:11 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता
कुंडलिनी छंद
दिन-शनिवार
21-12-19
चूड़ी /झुमका
(1)चूड़ी
बेंदी टीका माथ पे, गल वैंजंती माल।
राधा बन मुस्का रहें, घूंघट में गोपाल।
घूंघट में गोपाल , लगें जस नार नवेली।
चूड़ी पहिनै हाथ , पांव पायल अलवेली।।
कह प्रमिला कविराय, बन गयीं ललिता भेदी।
राधा रहीं बताय, श्याम पहिरै हैं बेंदी।।
(2)झुमका
होरी में सखियाँ लिए, दोनों हाथ गुलाल।
सैनन करि-करि पूछती ,कहाँ छुपे गोपाल।
कहाँ छुपे गोपाल ,बनाऊँ आज गुजरिया।
झुमका डालूँ कान, शीश पे डाल चुनरिया।।
कह प्रमिला कविराय, लगें जस राधा गोरी।
सबके हिय रसधार ,होय फिर ब्रज मा होरी।।
प्रमिला पाण्डेय
कानपुर
[24/12 9:13 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 24.12.19
कुण्डलियाँ (15)
विषय- *कविता*
कविता कवि की कल्पना, बन जाती आलेख।
कोरे कागज पर खिचे, जब भावों की रेख।।
जब भावों की रेख, रूप यह सुंदर लेती।
शब्दों से संदेश, जगत को रचना देती।।
प्रांजलि भरती प्राण, बहे भावों की सरिता।
तरते हैं वागीश, बनी सुंदर सी कविता ।।
कुण्डलियाँ (16)
विषय- *ममता*
ममता ऐसी मात की, जैसे हो उपहार।
वापस कुछ लेती नहीं, देती प्यार दुलार।।
देती प्यार दुलार, छाँव ममता की शीतल।
होता जब स्पर्श, स्वर्ण सा होता पीतल।।
प्रांजलि कहती आज, नहीं है इसकी समता।
ईश्वर का उपकार, मिली जो माँ की ममता।।
रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[24/12 9:14 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 24/12/19
कुण्डलियाँ- (15)
विषय - *कविता*
लिखने कविता मैं लगी, हृदय बसा कर मीत।
मीत देख मन की तड़प, प्रीत यही है प्रीत।।
प्रीत यही है प्रीत , फूल कलियाँ मुस्काई।
मुस्काई जब मंद, देख ऊषा शरमाई।।
शरमाई मन मग्न, प्रीत तब लगती दिखने ।
दिखने लगते रंग, शब्द मैं भूली लिखने ।।
कुण्डलिया-(16)
विषय- *ममता*
ममता की मैं छाव में, पल पल पलती आज।
माँ का आँचल शीश पर, होता है सरताज।।
होता है सरताज, प्रेम का जैसे धागा।
माँ को करता दूर, बने वो स्वयं अभागा ।।
सुवासिता की ज्योति, हरे ये जग की तमता ।
पग पग मिलता हर्ष, मिले जब माँ की ममता।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[24/12 9:37 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
मंगलवार -24.12.2019
(15)
विषय-कविता
कविता कोमल कामिनी ,कानन करे किलोर।
कूके कवि की कल्पना, कोकिल का बन शोर।
कोकिल का बन शोर,बहे बनके सुर-सरिता।
गगन गूँजते गीत, मगन-मन नर्तन वरिता।
रहे रागिनी रंग,सदा सरसे सम सविता।
मन महके मनभाव ,मनो हारी ये कविता।
(16)
विषय-ममता
ममता मोहक मोहती ,जननी की अनमोल।
अनुपम कोमल पुष्प सी,त्वरित तुला तल तोल।
त्वरित तुला तल तोल ,धरा सा धीरज धरती।
स्वयं उठाकर कष्ट ,निछावर ममता करती ।
सत्य सनातन बात ,करे क्या कोई समता।
जग में है सम्मान, बड़ी है माँ की ममता।
रचनाकार का नाम- आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
[24/12 9:39 PM] कमल किशोर कमल: नमन
25.12.2019
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु
15-कविता
कविता कवि जीवन अहे,लिखे नये नित छंद।
अनुभूतिक परिवेश की,होती सुखद सुगंध।
होती सुखद सुगंध,रक्त से सींचे रचना।
मिथक बिंब अरमान,रखे है जन के सपना।
कहे कमल कविराज,प्रवाहित है ज्यों सरिता।
अविरल उड़े फुहार,समझिए उरतल कविता।
16-
ममता
ममता मूरत मातु को,जो सुत करे प्रणाम।
बल बुध विद्या धन मिले,फैले जग में नाम।
फैले जग में नाम,सदा सुख नर्तन करता।
मन में हो संतोष,सदा मन निर्मल होता।
कहे कमल कविराज,समझिए उर की सरिता।
बहे नेह रसधार,मातु की मोहिल ममता।
कवि-कमल किशोर"कमल"
हमीरपुर बुंदेलखंड।
[24/12 9:45 PM] मीना भट्ट जबलपुर: कुण्डलियाँ
कविता दे आनंद है,खुशियाँ देत हजार।
दर्पण है समाज सुनो ,फूलों का है हार।।
फूलों का है हार ,ज्ञान की देखो ज्योती।
जीवन करज उजास,सीप में वह तो मोती।।
कह मीना कविराय, बहाती सुख की सरिता।
मोहे उसका रूप ,देती आनंद तो कविता।।
मीना भट्ट
[24/12 9:52 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: संशोधित🙏
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलिया शतकवीर हेतु सृजन
. 🦚🦚🦚
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *कविता*
कविता काव्य कवित्त के, करते कर्म कठोर।
कविजन केका कोकिला,कलित कलम की कोर।
कलित कलम की कोर, करे कंटकपथ कोमल।
कर्म करे कल्याण, कंठिनी काली कोयल।
कहता कवि करजोड़, करूँ कविताई कमिता।
काँपे काल कराल, कहो कम कैसे कविता।
कमिता ~कामना
. 🦚🦚🦚
कुण्डलिया (2)
विषय - *ममता*
ममता मूरत मानिये, मन्नत मन मनुहार।
महिमा मय मनभावना, मात मंगलाचार।
मात मंगलाचार, मायका मामा मामी।
प्यार प्रेम प्रतिरूप , पंथ पीहर प्रतिगामी।
कहता कवि करबद्ध, सिद्ध संतो सी समता।
जंगम जगती जान, महत्ता माँ की ममता।
. 🦚🙏🦚
रचनाकार✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[24/12 9:52 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलया शतकवीर
13-जीवन (23/12/2019)
मिलता जीवन है नहीं, इस जग में दो बार।
मनुज जन्म अनमोल है, हँसकर इसे गुजार।।
हँसकर इसे गुजार, कभी घमंड मत करना।
माल खजाना रूप, छोड़कर ही है मरना।।
परहित सेवाभाव, मनुजता अनुपम खिलता।
करलो लाख प्रयास, नहीं फिर जीवन मिलता।।
14- उपवन
तन-मन में पर पीर का, रखिए सतत निवास।
नित्य पले संवेदना, हृदय सुखद अहसास।।
हृदय सुखद अहसास, उपजता बन सहयोगी।
जीवन नहीं विलास, कभी मत बनिए भोगी।।
कहे अमित कविराज, खूब महके उर उपवन।
सेवा अरु सत्कार, रखें संवेदी तन-मन।।
कन्हैया साहू "अमित"
[24/12 9:59 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि ' 'अनुभूति '
🙏🙏
*कुण्डलिया छंद शतक वीर सम्मान , 2019 हेतु*
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15 ) कविता
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कविता भावों से भरी , बच्चे जैसी भाय ।
जैसे ही पीड़ा उठे , अंकित होती जाय ।।
अंकित होती जाय , हृदय होता तब अधीर ।
सपने में कवि सुनो , सहता असहनीय पीर ।।
भावों का भंडार , सागर गागर समाये ।
विह्वल मन की पीर , ज्ञान का मोती जाये ।।
देती बहुत उजास , बहे भावों की सरिता ।
सुगंधित दे सुवास , फूल सी महके कविता ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
24.12.2019 , 9:34 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏 समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ संग्रह। सभी आदरणीयों को हार्दिक बधाईयाँ
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