[25/12 6:01 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~बाबूलाल शर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 25.12.19
. 🦚🦚
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *बाबुल*
बेटी घर में जन्म ले, मान भाग्य वरदान।
माँ को गर्व गुमान हो, बाबुल के कुल शान।
बाबुल के कुल शान, बनेगी बेटी पढ़ कर।
उभय वंश अरमान, पालती बेटी बढ़ कर।
कहे लाल कविराय, मरे खेटी आखेटी।
बाबुल कुल की शान, बने चाहे हर बेटी।
खेटी ~ चरित्रहीन
. 👨🏻⚕🤷🏻♀🤷🏻♀👨🚀
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *भैया*
भैया बलदाऊ बड़े, छोटे कृष्ण कुमार।
हँसते खेले चौक में, करते नंद दुलार।
करते नंद दुलार, अंक में वे भर लेते।
ले कंधे बैठाय, कभी वे ताली देते।
शर्मा बाबू लाल, मंद मुस्काए मैया।
हो सबके सौभाग्य, रहें मिल ऐसे भैया।
. 🤴🤴🏿
रचनाकार ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[25/12 6:04 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
25/12
बाबुल
छूटे बाबुल देहरी ,छूटा आँचल छाँव।
लाड़ो से पाला जिसे,चली पिया के गाँव।।
चली पिया के गाँव,नये रिश्तों में बंधने।।
भीगे नयनन कोर,सजे आँखो में सपने ।।
सूना है संसार , चैन अब मेरा लूटे ।
बाबुल की आशीष ,सपन नहि तेरा छूटे ।।
भैया
ममता मिलती मातु से,अनुशासन दें तात ।
पग पग पर जो साथ दे ,वो है प्यारा भ्रात ।।
वो है प्यारा भ्रात ,राम अरु लक्ष्मण भैया।
बचपन मीठी याद ,रहा वो सदा खिवैया ।।
अब तक वो शैतान, नहीं मन मेरा रमता।
कितना वो अब दूर,मिले कैसे अब ममता।।
अनिता सुधीर
लखनऊ
[25/12 6:05 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन बुधवार 25.12.2019*
*17) बाबुल*
बाबुल बलिहारी बहुत, बेटी बन्नो वेश
अरुणांबर में आत्मजा, अविरल अश्रु अशेष
अविरल अश्रु अशेष, हेतु है हिय हर्षाया
भगिनी भूषण भेष, भद्र भ्राता को भाया
कह अनंत कविराय, किंतु वह वनिता व्याकुल
छूटे निज छत छाँव, गाँव की गलियाँ बाबुल
*18) भैया*
भैया दल्दी तेद तल, तुतलाते ये बोल
सुनकर फिर बाँछें खिलीं, अल्हड़ भ्राता डोल
अल्हड़ भ्राता डोल, बोल ने बड़ा बनाया
दायित्वों का बोझ, समझ पग तेज बढ़ाया
कह अनंत कविराय, मातु ने लिया बलैया
छुटकी को ले संग, साँझ घर लौटा भैया
*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
[25/12 6:10 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 25.12.19
(17)बाबुल
बिटियाँ बाबुल की परी,आँगन की है फूल।
सदा स्नेह देना इसे, कभी न जाना भूल।।
कभी न जाना भूल,मान सम्मान दिलाना।
कुल की होती शान,इसे दुनिया ने माना।।
कहे विनायक राज,पढ़े बाबुल की चिठियाँ।
परम सनेही होय,सभी की प्यारी बिटियाँ।।
(18)भैया
भैया मेरा साँवला,किशन कन्हैया जान।
बहना की रक्षा करे,बनके वो भगवान।।
बनके वो भगवान, दुखो में बने सहारा।
राखी की है लाज, बचाते भैया प्यारा।।
कहे विनायक राज,बहन की बात रखैया।
ऐसा है दिलदार, सखी रे प्यारा भैया।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[25/12 6:39 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
******************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*(१७)विषय-बाबुल*
बिटिया बाबुल से कहे,मत भेजो ससुराल।
तेरी तो मैं लाड़ली,क्रूर कठिन है काल।
क्रूर कठिन है काल,कहे क्यों मुझे पराई।
कैसे लगती भार,तुझे अपनी ही जाई।
दो-दो हैं परिवार,कहाँ है मेरी कुटिया।
बदलो अब ये रीति,तभी मैं तेरी बिटिया।
*(१८)विषय-भैया*
भैया तेरी याद में, मुझे न आए चैन।
आँखों में छवि घूमती,दिन हो चाहे रैन।
दिन हो चाहे रैन,बहे आँसू की धारा।
जैसे टूटे बाँध,टूटता नदी किनारा।
कैसे धर ले धीर,दूर जो हुआ खिवैया।
मात-पिता का चैन,बहन का प्यारा भैया।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[25/12 6:41 PM] डॉ मीना कौशल: कलम की सुगन्ध छन्दशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
ममता
ममता माता की बड़ी,देती शीतल छाँव।
माँ की गोदी छूटती,छूटे बाबुल गाँव।।
छूटे बाबुल गाँव,चली बेटी साजन घर।
चले साथ ससुराल,सभी के भाग्य शुभंकर।।
करती है सब काज ,रहे जितनी भी क्षमता।
ये तो है ससुराल,कहाँ माता की ममता।।
कविता
कविता शुभ शुचिकर भली,देती रुचिकर सीख।
सान्त्वना मिलते बहुत,सरस्वती की भीख।।
सरस्वती की भीख,कृपा जापर ह्वै जाई।
माँ की दया अपार,करे सुन्दर कविताई।।
नभमण्डल में चमक रहे, हों जैसे सविता।
भाग्योदय पहचान सदा ,बनती है कविता।।
रचनाकार डा.मीना कौशल
[25/12 6:41 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
25/12/2019::बुधवार
बाबुल
गुड़िया हूँ मै काँच की, रख ली बहुत सम्हाल।।
बाबुल तेरी लाडली, आज चली ससुराल।।
आज चली ससुराल, भीगतें मेरे नैना।
सभी खड़े चुपचाप, न सुनता कोई बैना।
मैं भी तेरी सीख, बाँध ले जाती पुड़िया।
तुम रहना खुशहाल, रहे खुश तेरी गुड़िया।।
भैया
भैया तुझको भेजती, स्नेह सिक्त ये डोर।
बैठी आज विदेश में, याद करूँ पुरजोर।।
याद करूँ पुरजोर, अनोखा बंधन अपना।
रहे सदा मजबूत, ध्यान हरपल ये रखना।।
मुझको तेरा प्यार, लगे है सरस सवैया।
छन्दों का संसार, रहे घर तेरा भैया।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[25/12 6:45 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 23:12:19
जीवन ::
मानव योनि जन्म मिला,
कर इसका उपयोग।
जीवन व्यर्थ न कीजिये,
कर लीजे कुछ योग।।
कर लीजे कुछ योग,
आज मानवता रोती।
हिंसा करती राज,
बीज नफरत के बोती।।
सुधा विचारे आज,
बना मनुष्य क्यों दानव।
जिंदगी हो न व्यर्थ,
तुष्ट हो मन से मानव।।
उपवन:
माता जैसे पालती,
खून से प्यारे लाल।
माली उपवन सींचता ,
नियमित रखता ख्याल।।
नियमित रखता ख्याल,
फूल डाली पर खिलते।
चुनता खर पतवार,
हस्त कंटक से छिलते।।
कहे सुधा सुन आज,
बाग माली का नाता
माली उपवन संग,
यथा बालक अरु माता
सुधा सिंह 🦋
[25/12 6:47 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--25/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
*(17)*
*बाबुल*
बेटी को करके विदा,बाबुल रोए आज।
आँखों से आँसू बहें, कैसे रीति-रिवाज।
कैसे रीति-रिवाज,हुआ सूना घर अँगना।
बेटी साजन साथ,पहन के चलदी कँगना।
कहती अनु दुख देख,दुखी हो दादी लेटी।
बाबा पोंछे नैन,चली जो घर से बेटी।
*(18)*
*भैया*
भैया की है लाडली,बाबुल की है जान।
बेटी रखती है सदा, दो-दो कुल की मान।
दो-दो कुल की मान,सदा सम्मान बढ़ाया।
ऊँचा करके नाम,जहाँ में नाम कमाया।
कहती अनु यह देख, झूमते बाबुल मैया।
बेटी है अनमोल, खुशी से कहते भैया।
*अनुराधा चौहान*
[25/12 6:48 PM] सरला सिंह: 25/12/19
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - बुधवार*
*दिनांक-25/12/19*
*विषय: बाबुल*
*विधा कुण्डलियाँ*
*17-बाबुल *
बाबुल की भूली गली,पिया मिलन की चाह,
माया तृष्णा रोककर,खड़ी आज हैं राह।
खड़ी आज हैं राह,उसे हैं लोभ दिखाती ।
दौलत का भंडार , नहीं उसको भरमाती।
कहती सरला आज,पिया बिन मन है आकुल।
छोड़ा सब घर-बार,नहीं भाये अब बाबुल।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - बुधवार*
*दिनांक-25/12/19*
*विषय: भैया*
*विधा कुण्डलियाँ*
*18-भैया*
भैया की प्यारी परी , कहे भरे मन आज।
मैया की मैं लाडली, पिता की सरताज।
पिता की सरताज, हमें दूर नहीं जाना।
जीना तेरे साथ, यही दिल ने है ठाना।
कहती सरला आज,कहे रोकर के मैया।
जीवन की यह रीत,सके न बदल हैं भैया।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
**************************
[25/12 6:52 PM] डॉ मीना कौशल: कलम की सुगन्ध छन्दशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
बाबुल
बाबुल का आँगन बड़ा,सपनों का संसार।
गुड्डे गुड़ियों संग में,खुशियाँ मिले अपार।।
खुशियाँ मिले अपार,जहाँ हो माँ का अम्बर।
मिले पिता का प्यार,साथ भाई का सुखकर।।
दादी का संसार, कहानी कहते दादुल।
छूट गया सब स्नेह नवल,अपना वह बाबुल।।
भैया
भैया बहना खेलते,किलकारी कर द्वार।
मात पिता हैं देखते,लोचन में भर प्यार।।
लोचन में भर प्यार,खिले पीहर का आँगन।
दादी लेत बलाय,सदा फैलाये आँचल।।
राखी का त्यौहार,करें सब ता ता थैया।
कर में रक्षासूत्र,माथ पे रोली भैया।।
रचनाकार डा.मीना कौशल
[25/12 6:54 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि ' 'अनुभूति '
🙏🙏
*कुण्डलिया छंद शतक वीर सम्मान , 2019 हेतु*
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15 ) कविता
*************
कविता भावों से भरी , बच्चे जैसी भाय ।
जैसे ही पीड़ा उठे , अंकित होती जाय ।।
अंकित होती जाय , हृदय होता तब अधीर ।
सपने में कवि सुनो , सहता असहनीय पीर ।।
भावों का भंडार , सागर गागर समाये ।
विह्वल मन की पीर , ज्ञान का मोती जाये ।।
देती बहुत उजास , बहे भावों की सरिता ।
सुगंधित दे सुवास , फूल सी महके कविता ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
24.12.2019 , 9:34 पी.एम. पर रचित ।
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16 ) ममता
***********
माँ के आँचल ने दिया , ममता का उपहार ।
माँ की ममता से परे , मिलता कहीँ न प्यार ।।
मिलता कहीँ न प्यार , बीज समता के बोता ।
खुश होता है शिशु , प्यार व ममता पा के ।
संकट सारे मिटे , छुपे आँचल में माँ के ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
24.12.2019 , 11:45 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[25/12 7:08 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया छेद शतकवीर सम्मान , 2019 हेतु*
🙏🙏
17 ) बाबुल
=======
खेले वह बाबुल संग , बेटी छोड़े नहीं ।
आँगन में खेली वही , उसको रहना यहीं ।।
उसको रहना यहीं , बाबुल का प्यार पाना ।
देता बाबुल छाँव , वहीं सुख बेटी झेले ।
बाबुल भूले नहीं , बेटी संग वह खेले ।।
£££££££££££££££££££££££££
18 ) भैया
***********
भैया भेज संदेशा , वह आयेगा आज ।
स्वागत करें सजे साज , वह घर का सरताज ।।
वह घर का सरताज , भैया ही जिंदगी है ।
भैया प्यारा चाँद , बहन करे बंदगी है ।
भाई का सम्मान , कहीं कह अंदेशा है ।
कहीं रुके तो नहीं , संदेशा भेज भैया ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
25.12.2019. 5:44 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[25/12 7:08 PM] सुशीला साहू रायगढ़: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुडंलियाँ शतकवीर हेतु*
*विषय------बाबुल* *25/12/2019*
बाबुल से विदा ले चली,बहे अँखियन धार।
बचपन का वो घर छुटा,और छुटा लाड़ प्यार।
और छुटा लाड़ प्यार,संग खेलती सखीयाँ ।
गुड़िया सब बेकार,बहे अश्रु अब अँखियाँ।
कह शीला अब आज,देख माता हो व्याकुल।
बेटी डोली साज,खुशी विदा करे बाबुल।
*विषय-------भैया*
भैया राजा अब सुनो,कहे बहन ये बात।
तेरी यादों में अभी,बहे अश्क दिन रात।
बहे अश्क दिन रात,नीर जैसे जल धारा।
कब आओगे भ्रात,मिले कब नदी किनारा।
राह देखे अब नैन,दूर जाते ये नैया।
मात-पितु बेचैन,अभी आ जाओ भैया।
*सुशीला साहू* *शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*
[25/12 7:11 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक 25/12/2019
कलम सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर प्रतियोगिता
17--- *बाबुल*
बाबुल बेटी का यहाँ , है ऐसा सम्बन्ध ।
जैसे उपवन बीच में , सुमन और शुभ-गंध।।
सुमन और शुभ-गंध , प्रथक ये कभी न होते।
देते प्रिय अनुभूति, पास इनके जो होते ।।
"निगम" जाय पति संग, सुता लंदन या काबुल।
उर से उसके दूर , कभी नहिं होते बाबुल।।
18--- *भैया*
भैया बहनों को सदा , देता प्रीति पुनीत ।
इनके जीवन में बजे , त्याग प्रेम का गीत।।
त्याग प्रेम का गीत , सदा निर्मल मन निश्चल।
आड़े समय सुबन्धु , बना करता है सम्बल ।।
कहे निगम कविराज ,वंश-कुल की जो नैया ।
बड़ा कुशल मल्लाह, पिता का साथी भैया ।।
कलम से
कृष्णमोहन निगम
(सीतापुर)
[25/12 7:26 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 25/12/2019
कुण्डलिया (17)
विषय- बाबुल
===========
बाबुल तेरा प्यार मैं, सदा रखूँगी याद I
मुझे भुलाना मत कभी, छोटी सी फ़रियाद ll
छोटी सी फ़रियाद, बहिन, भाई सँग झूली l
सखियाँ, गुड़ियाँ, नीम, न आँगन अब तक भूली ll
कह 'माधव कविराय', रहूँ दिल्ली या काबुल l
जैसे बचपन नेह, वही रखना हे बाबुल ll
कुण्डलिया (18)
विषय- भैया
===========
भइया को दुत्कार मत, बाँध नेह की डोर I
बन्धु साथ जिसके रहे, मिले जीत चहुँ ओर ll
मिले जीत चहुँ ओर, नहीं बाधाएँ आतीं l
बड़ी - बड़ी चट्टान, सहज कंकड़ बन जातीं ll
कह 'माधव कविराय', सदन हर्षित पितु मैया l
बारम्बार प्रयास, अलग भुज मत कर भैया lI
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[25/12 7:28 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला।
सब को प्रणाम। 🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए।
दिनांक 25-12-19.
कुंडलियाँ क्र 17
1) बाबुल, 🌹
कैसे बाबुल भेज दे, बेटी को परदेश।
प्यार भरे दिल को मिला, पथ्थर सा आदेश।
पथ्थर सा आदेश,सुता को समझ पराई।
हे रे बाबुल सोच,घडी कठिन है आई।
देता कमल दहेज,लगे है कितने पैसे,
कर के कन्या दान,बिदा वह कर दे कैसे।
कुंडलियाँ क्र18.
2) भैया 🌹
मेरे भैया चांँद हैं,देते दिली उजास।
खेल कूद में संग है,करें न कभी उदास।
करें न कभी उदास,ध्यान मेरा रख पायें।
रहते मेरे पास,पढ़े खुद मुझे पढायें।
कमल दिये प्रभु हाथ,सदा सिर भैया तेरे।
मात,पिता तुम साथ,रहें जीवन भर मेरे।
रचनाकार डॉ श्रीमती कमल वर्मा। 🙏🏻
[25/12 7:32 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *शतकवीर सम्मान हेतु कुंडलिया*
*दिनांक:-२४/१२/२०१९*
*दिवस:-मंगलवार*
*आज की कुंडलिया*
*विषय :-कविता*
*१५*
कविता पुष्पों से सजा , हरा-भरा उद्यान |
श्रोता-पाठक ज्यों भ्रमर , नित करते रसपान |
नित करते रसपान , शब्द छेनी-से चलते |
मीठे-मीठे बोल, स्वप्न नयनों में पलते |
कह विदेह नवनीत , भव्य भावों की सरिता |
श्रवण करो हे तात! , अमिय-हाला है कविता ||
*विषय:-ममता*
*१६*
ममता की छाया घनी, देती हमको त्राण |
माँ देती है मित्रवर, हमको जीवन प्राण |
हमको जीवन प्राण, वही है नेक विधाता |
जीने का उत्साह, सदा उससे ही आता |
कह विदेह नवनीत , निराली उसकी समता |
हर बालक से प्रीत, नमन माता की ममता ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
( संशोधन उपरांत समीक्षार्थ प्रेषित) 🙏🙏🙏
[25/12 7:32 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
25/12/19
17 बाबुल
बाबुल तेरा अंगना ,छोड़ चली हूं आज ,
हाथ में मेंहदी रची , आंखों में है लाज
आंखों में है लाज , सजा सपने मतवाली ,
आज चली परदेश ,लाड़ से पलने वाली
कहे कुसुम ये बात , ब्याह कर भेजा काबुल ,
पूछे बेटी आज ,दूर क्यों भेजा बाबुल।
18 भैया
राखी नेह भिजा रही ,प्रेम भरा उपहार।
भैया यादों में रखो ,गूंथ पुष्प ज्यों हार।
गूंथ पुष्प ज्यों हार , सहेजे बहना तेरी
रखना मन में प्यार , यही विनती है मेरी,
कहे कुसुम ये बात , एक उपवन के पाखी
बहता है अनुराग ,भाव है सुंदर राखी।
कुसुम कोठारी।
16/12/19
की कुण्डलियाँ
1 वेणी
वेणी बांधे केश की , सिर पर चुनरी धार ,
गागर ले घर से चली , चपल चंचला नार ,
चपल चंचला नार , शीश पर गागर भारी ,
है हिरणी सी चाल , चाल है कितनी प्यारी ,
आंखों में है लाज, चली मंद गति वारुणी ,
देखे दर्पण साफ , फूल से रचती वेणी ।।
कुसुम कोठारी।
2 कुमकुम
चंदन कुमकुम थाल में , गणपति पूजूं आज ,
मंगल कर विपदा हरे, पुरे सकल ही काज ,
पुरे सकल ही काज , कि शुभ्र भाव हो दाता ,
रखें शीश पर हस्त , साथ हो लक्ष्मी माता ,
कहे कुसुम कर जोड़ , सदा मैं करती वंदन
तुझ को अर्पण नाथ ,खीर शहद और चंदन।
कुसुम कोठारी।
[25/12 7:33 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 25.12.2019
17- बाबुल
***********
बेटी बाबुल के यहाँ,
बन रहती मेहमान।
फिर भी जितने दिन रहे,
करती घर के काम।
करती घर के काम,
न समझे कभी पराया।
जायेगी घर छोड़,
चलन ये कौन चलाया ?
"अटल" गयी ससुराल,
लगे सब खुशी समेटी।
बाबुल के घर मान,
अमानत सबकी बेटी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
18- भैया
**********
सम्बोधन भैया बड़ा,
रखिए इसका मान।
जो नर देता आपको,
उसको दें सम्मान।
उसको दें सम्मान,
बोलती है यदि नारी।
उसकी रक्षा करें,
इसी में शान हमारी।
"अटल" कृष्ण बन जायँ,
बनें क्यों हम दुर्योधन ?
रखी द्रोपदी लाज,
सुना भैया सम्बोधन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[25/12 7:35 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता कुंडलिनी छंद
दिन-बुधवार। 25/12/19
विषय -शब्द /बाबुल/भैया
(1)बाबुल
बाबुल का घर छोड़कर, चली पिया के देश।
ऑंखों से सरिता बहे, मन स्मृतियाँ शेष ।।
मन स्मृतियाँ शेष , याद पनघट की आती
कर सखियाँ मनुहार ,हिया की पीर बताती।
कह प्रमिला कविराय, बहन, भाई सब व्याकुल।
जब से बेटी व्याह, गयी घर छोड़ के बाबुल।।
(2)भैया
सीता जी ने जब कहा , लखन करो मत देर।
भैया पर संकट पड़ा , बार -बार रहे टेर।
बार-बार रहे टेर, शीघ्र धनु बाण उठाओ।
आती हो आवाज , वेग उस ओर सिधाओ।
कह प्रमिला कविराय , प्रभु हैं प्रेम पुनीता।
मायावी आवाज, सुनत घबरायी सीता।।
प्रमिला पाण्डेय
कानपुर
[25/12 7:35 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *शतकवीर सम्मान हेतु कुंडलिया*
*दिनांक:-२५/१२/२०१९*
*दिवस:-बुधवार*
*आज की कुंडलिया*
*विषय :-बाबुल*
*१६*
बाबुल के आते नहीं, अब पाती संदेश |
मेरे पीहर का सखी, बदल गया परिवेश |
बदल गया परिवेश, खबर ना कोई लेता |
बिखर गया मन टूट, कौन हिय की सुधि लेता |
कह विदेह नवनीत, हुआ है उर भी आकुल |
सिसक रही मैं हाय, पुकारूँ बाबुल-बाबुल ||
*विषय:-भैया*
*१७*
बहना - भैया का सखे, जनम-जनम का साथ |
चाहे जैसा हो समय, कभी न छोड़ें हाथ |
कभी न छोड़ें हाथ, बड़ा है प्यार निराला |
दोनों की तकदीर, लिखे है ऊपरवाला |
कह विदेह नवनीत, यही है मेरा कहना |
रहें सदा खुशहाल, जगत में भैया-बहना ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[25/12 7:40 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
25.12.2019
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
17-
बाबुल
बाबुल का घर सावना,हरा भरा वन बाग।
आँखों को अच्छा लगे, लिए हिया में राग।
लिए हिया में राग,प्रेम का सरगम बजता।
भ्रात बहन का प्यार,उरों में हरदम सजता।
कहे कमल कविराज, घूम लो जाकर काबुल।
बिना भ्रात के बहिन, नहीं होती है बाबुल।
18-भैया-
भैया बहना मिल करें,मातु -पिता का नाम।
काम -धाम ऐसा करो,करता जगत प्रणाम।
करता जगत प्रणाम,तरक्की घर की होती।
मिलकर बने महान,प्रगति की छाया हँसती।
कहे कमल कविराज,बड़ी है अपनी मैया।
करती लाड़ दुलार,बहिन का न्यारा भैया।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[25/12 7:47 PM] डॉ मीता अग्रवाल: 25/12/19
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - बुधवार*
*दिनांक-25/12/19*
*विषय: बाबुल*
*विधा कुण्डलियाँ*
*17-बाबुल *
बाबुल की भूली गली,पिया मिलन की चाह,
माया तृष्णा रोककर,खड़ी आज हैं राह।
खड़ी आज हैं राह,उसे हैं लोभ दिखाती ।
दौलत का भंडार , नहीं उसको भरमाती।
कहती सरला आज,पिया बिन मन है आकुल।
छोड़ा सब घर-बार,नहीं भाये अब बाबुल।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक-25/12/19*
*विषय: भैया*
*(17)बाबुल*
गलियाँ आती याद है,नेह गेह औ छाँव ।
छूटा बाबा साथ है छूटा बाबुल गाँव ।
छूटा बाबुल गाँव, साथ ही सख़्त हिदायत।
लिख -पढ़ बनो नवाब,पहुंचना तुम्हें विलायत।
कहती मधुर विचार,संस्कारों की ड़लिया ।
मात पिता का ध्येय,बिसुरती नाही गलियाँ ।
*18-भैया*
भैया की हूँ लाड़ली,नैहर की हूँ जान।
बाबुल तेरे हिय बात,लेती हूँ पहचान ।
लेती हूँ पहचान,जरा भी देर ना लागे।
सुनते लेवन आत,बनाती हलवा भागे।
आय मधुर मनुहार, कलेवा जोरे मैया।
सजधज नैहर द्वार, उतारे प्यारा भैया।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
**********************
[25/12 7:47 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
24/12/19
*(1)कविता*
कविता अंतस भावना,सुख दुख की है साख ।
सागर सम तरंग उठे,ओर- छोर दिश आँख।
ओर-छोर दिश आँख,मनोवेगो की धारा।
राजनीति भूगोल, विषयगत है विस्तारा।
काव्य मधुर संदेश, लावण्या लोहित सविता ।
सुमत विषम रसधार,अमिय सम बहती कविता ।
*(2)ममता*
ममता करुणा मूर्ती, धीर शील की खान।
मात होत ममता भरी,जगदम्बा सम जान।
जगदम्बा सम जान,होत है शक्ति प्रदाता।
सहनशीलता त्याग, होत धरणी सी माता।
कहती मधुर विचार, सिद्ध संतो सी क्षमता ।
पत्थर को पिघलाय,महत्तम माँ की ममता ।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[25/12 7:48 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
25-12-19
बाबुल
बाबुल तेरा आँगना, कभी न भूली जाय ।
आकर के ससुराल में, तेरी याद सताय।।
तेरी याद सताय, बाँह का झूला पाया ।
सक्षम दिया बनाय, धैर्य धरना सिखलाया ।
आई आँगन छोड़, देख कर नैनों में जल।
हो मेरे भगवान,जनक हो प्यारे बाबुल ।।
भइया प्यारा राम सा,पूछे निश दिन हाल ।
बहना तेरे साथ हूँ, सुनकर हुयी निहाल ।
सुनकर हुयी निहाल, बहुत वह है इतराता ।
मेरे सामने रोज, ठुमकता गीत है गाता ।
राखी भाई दूज , आय वह लाज बचैया ।
रहे सदा खुसहाल,मनाती विधि से भइया ।।
केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[25/12 8:20 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 25.12.19
कुण्डलियाँ (17)
विषय- *बाबुल*
बाबुल का घर छोड़ के, जाती है ससुराल।
चुनती जीवन साथिया, पहना के वरमाल।।
पहना के वरमाल, निभाती सारी रस्में।
लेकर फेरे सात, वचन सह सातों कसमें।।
बेटी रखती लाज, नाज करते हैं दो कुल।
चलदी सबको छोड़, आशीष देते बाबुल।।
कुण्डलियाँ (18)
विषय- *भैया*
भैया तुमसे माँगती, इतना सा उपहार।
बना रहे ये उम्रभर, हम दोनों का प्यार।।
हम दोनों का प्यार, जहाँ में सबसे न्यारा।
रिश्ता रहे अटूट, एक दूजे का प्यारा।।
उनको हमपर गर्व, कहें ये बाबुल मैया।
रखता हरदम लाज, बहन का प्यारा भैया।।
रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[25/12 8:29 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता कुंडलिनी छंद
दिन-बुधवार। 25/12/19
विषय -शब्द /बाबुल/भैया
(1)बाबुल
बाबुल का घर छोड़कर, चली पिया के देश।
बदल रहा है गांव घर ,बदल रहा परिवेश।।
बदल रहा परिवेश , याद पनघट की आती
कर सखियाँ मनुहार ,हिया की पीर बताती।
कह प्रमिला कविराय, बहन, भाई सब व्याकुल।
जब से बेटी व्याह, गयी घर छोड़ के बाबुल।।
(2)भैया
सीता जी ने जब कहा , लखन करो मत देर।
भैया पर संकट पड़ा , बार -बार रहे टेर।
बार-बार रहे टेर, शीघ्र धनु बाण उठाओ।
आती हो आवाज , वेग उस ओर सिधाओ।
कह प्रमिला कविराय , प्रभु हैं प्रेम पुनीता।
मायावी आवाज, सुनत घबरायी सीता।।
प्रमिला पाण्डेय
कानपुर
[25/12 8:29 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:-24/12/19 (कल का शेष)
15.कविता
कविता वह उद्गार है, प्रकट करे जो भाव।
अंतर दशा विचार की, मापे सही बहाव।
मापे सही बहाव, दिशा का भान कराने।
अलंकार रस छंद, सभी को लिपि में लाने।
शब्द शिल्प का धर्म , जगत में फैले सविता।
मन में हो संवेग, तभी सार्थक है कविता।।
************************
16.ममता
ममता अति अनमोल है, रखलो इसका मान।
जीवन को करने सफल,शुरू करो अभियान।
शुरू करो अभियान, निभा कर भाई चारा।
रखो एकता भाव, लगे जो सबको प्यारा।
अपना नेक विचार,बाॅट कर लाओ समता।
मानव जाति समान, जगे अंतर में ममता।।
***********************
कुण्डलियाॅ:-25/12/19
17.नायक
नायक सा बाबुल यहां, सबसे करे दुलार।
सतत स्नेह समभाव का, बनके पहरेदार।
बनके पहरेदार, वही परिवार सॅवारे।
पालन पोषण सार,कष्ट से शीघ्र उबारे।
उनकी करुणा देख, सभी कहते सुख दायक।
यही उचित व्यवहार, बनाता उनको नायक।।
18. भैया
सावन में भैया बहन,करते मनन विचार।
इसी माह के अंत में,आता है त्यौहार।
आता है त्यौहार,मनातें रक्षाबंधन।
बहन सजाकर दीप,लगाती कुमकुम चंदन।
भैया का यह प्यार, बहन को लगे सुहावन।
स्वागत करता स्वयं, छटा बिखराकर सावन।।
महेंद्र कुमार बघेल
[25/12 8:32 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -18
दिनांक -25-12-19
विषय -बाबुल
मारो मत बाबुल मुझे, तेरा ही हूँ खून l
पलती माँ की कोख में, मांगे आज सुकूनl
मांगे आज सुकून, नहीं मांगती खिलौनेl
चाहे माँ की गोद, करो मत काम घिनौने l
कहती सुनो सरोज, डाँट सुना दो हजारोl
चाहे रखना दूर, सुनो
बाबुल मत मारो l
कुंडलियाँ -19
दिनांक -25-12-19
विषय -भैया
छोटा भैया बोलती, रखे खूब खयाल l
मुझको उदास देख के,
हो जाये बेहाल l
हो जाये बेहाल,
बात सदा वो मानता l
करता मेरा काम, कष्ट सदा वो जानता l
कहती सुनो सरोज, नहीं सिक्का वो खोटाl
सोने सा है भाव, रखे खुश भैया छोटा l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[25/12 8:41 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुण्डलियाँ*
विषय ----- *बाबुल* *भैया*
दिनांक ----- 25.12.19.......
(17) *बाबुल*
बाबुल उपवन की कली , बिटिया है अरमान ।
अरमान तभी पुर्ण कहो , दो बिटिया को मान।
दो बिटिया को मान , बाबुल से सुता बोली ।
बोली मीठे बोल , मधुरिम सी मिश्री घोली ।
घोली प्यार बहार , कहीं ना जाना काबुल ।
काबुल में ही प्यार , मैं आ रही घर बाबुल ।।
(18) *भैया*
भैया की बोली सदा , छेड़े मधुरिम राग ।
घर भर में जो प्रेम था , फिर जाए वह जाग ।
फिर जाए वह जाग , प्रीत जो है मनभावन ।
मिटे सभी मनभेद , समय हो सदा सुहागन ।
कह कुमकुम करजोरि , घर ही चलूंगी सैंया ।
मधुर सुनाओ तान , बजाकर फिर भैया ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 25.12.19......
जमशेदपुर । झारखण्ड ।
___________________________________
[25/12 8:46 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिनांक - 25.12.19*
*कुण्डलियाँ (15)*
*विषय :- कविता*
कविता के हर कथ्य पे , शोर करे करताल।
काव्य कल्पना के कुसुम, करते खूब कमाल।।
करते खूब कमाल, कंट पथ कोमल करते।
करे कालिमा दूर, कोकिला के सुर भरते।।
कंचन कवि के भाव, कथन कुंदन की सरिता।
कहे कल्पनालोक, कड़ी कर्मठ की कविता।
*कुण्डलियाँ (16)*
*विषय :- ममता*
माता ममता से भरी, मन को लेती मोह।
मनमंदिर ममतामयी, माँगे मूल्य न छोह।।
मांगे मूल्य न छोह,मिले ममता मन भावन।
मगन हुए मतिमंद, मानते मदिरा पावन।।
माता की मुस्कान, माँगती माँ की जाता।
मिटता मन से मान, मलिन लगती जब माता।।
*कुण्डलियाँ (17)*
*विषय :- बाबुल*
बाबुल के संघर्ष का, मोल लगाते ढीठ।
स्वेद बूँद बहती रही , पुत्र दिखाते पीठ।।
पुत्र दिखाते *पीठ*, *पीठ* पर बैठा ललना।
भूला अपनी *जात* , *जात* छोड़े जब पलना।।
जीवन पथ है *ढाल* , *ढाल* है खुद ही व्याकुल।
सबका जीवन *साज* , *साज* सा बजता बाबुल।।
*कुण्डलियाँ (18)*
*विषय :- भैया*
बहना का अभिमान है, भाई का सम्मान।
भ्रात पिता के स्नेह से, नारी पाती मान।।
नारी पाती *मान*, *मान* अपनों की बातें।
मन से मिटते *भेद* , *भेद* सारे छुप जाते।।
लोभ बढ़ाता *खेद* , *खेद* को पड़ता सहना।
कायर भेदें *पीठ* , *पीठ* पर बैठी बहना।।
*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*
[25/12 8:49 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
25/12/2019-बुधवार
*17)*बाबुल*
बाबुल की बेटी कहे, मन है बड़ा उदास।
कैसे छोडूं मायका,दिल है पितु के पास।
दिल है पितु के पास,कि छूटीं सखी सहेली।
अजब अनोखी रीत,है कैसी ये पहेली।
कह वंदू निज भाव,बड़े हैं नैना व्याकुल ।
रोये छुप छुप भ्रात,रुदन रोके हैं बाबुल ।।
*18)*भैया*
भैया की है लाडली ,ओंठ खिली मुस्कान।
मन में छवि है प्रेम की, छल बल से अनजान।
छल बल से अनजान,भ्रात को बहन सताए।
क्रोधित हों जब तात,डांट से उसे बचाए।
कभी चिढ़ाकर जीभ,करे वो ता ता थैया।
खूब लड़ाए लाड़,कहे लाखो में भैया।।
*रचनाकार का नाम--वंदना सोलंकी*
[25/12 8:50 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -25/12/19
बाबुल (17)
बाबुल का घर छोड़के, जाती पिय के द्वार।
मात-पिता से बेटियाँ, करती हरदम प्यार।
करती हरदम प्यार, रहे बन राजकुमारी ।
देती सबको मान,पिता को लगती प्यारी।
कह राधेगोपाल,चलो काशी या काबुल।
बेटी को तो प्यार ,करे हरदम ही बाबुल।
भैया (18)
भैया रेशम डोर की, रखना हरदम लाज।
बनकर के रहना सदा, बहना का सरताज।।
बहना का सरताज, सभी संकट को हरना।
आँखों में हो नूर, कभी आँसू मत भरना।
कह राधेगोपाल,चली है सबकी नैया।
बहनों का तो साथ, सदा देते है भैया।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[25/12 8:53 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: 7....विषय..............जीवन
विधा ..............कुंडली
***********************************
जीवन मानव का मिला,
दिया ईश उपहार।
कर्म पथ पर बढ़े रहो,
करो जगत उपकार।
करो जगत उपकार,
मिले सम्मान हमेशा।
सबसे करना प्यार,
खुशी करेगा बसेरा।
रहना मिलकर हमें,
बने कोई न दानव।
पावन संगति रखें,
मिला मानव का जीवन।
**********************************
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ. ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[25/12 8:53 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: 8....विषय..............उपवन
विधा...............कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★
उपवन छाया पुष्प से,
धरती लगे सुहाय।
शीत धरा पर जब गिरे,
लगे पुष्प मनभाय।
लगे पुष्प मनभाय,
चढ़े सदैव प्रभु चरणन।
बना धन्य फिर पुष्प,
करे देवो को अरपण।
रंग बिरंगे फूल,
लगे खिलने अब बगियन।
सदा रहे भरपूर,
पुष्प से छाया उपवन।
★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[25/12 9:02 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *सादर समीक्षार्थ आदरणीय*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
*दिन --- बुधवार*
*दिनांक---25/12/19*
~~~~~~~~~~~~~~
*17---बाबुल*
~~~~~~~~~~~~
छूटा बाबुल का भवन, छूटा उनका प्यार।
बेटी को अब मिल गया,एक नया संसार।
एक नया संसार, मिला दूजा घर आंगन।
सास , ससुर, परिवार, साथ मन भावन साजन।
मात-पिता हैं दूर्, किन्तु कब नाता टूटा।
आजीवन का साथ , नहीं है रिश्ता छूटा।।
~~~~~~~~~~~~~~
*18---भैया*
~~~~~~~~~~~~
भैया मेरे तुम कभी, मुझे न जाना भूल।
मैं हूँ सबकी लाडली , मैं बगिया का फूल।
मैं बगिया का फूल, रखूँगी मान तुम्हारा।
जो भी हैं कर्तव्य, निभाऊँगी मैं सारा।
तुमको प्रति दिन याद , करूँगी सुबह सवेरे।
होना नहीं उदास, कभी भी भैया मेरे।।
~~~~~~~~~~~~~
*--- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--- बलिया, उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~~~
[25/12 9:05 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 25/12/19
कुण्डलियाँ- (17)
विषय - *बाबुल*
बाबुल की आँखे करे, हरदम एक सवाल।
घड़ी कष्ट की देख कर, पूछे सारा हाल।।
पूछे सारा हाल, चाल फिर मैं बतलाती।
दे कर मुख मुस्कान, हृदय में दर्द छुपाती। ।
सुवासिता कर स्नेह, कहे बाबू जी बुलबुल।
चूमे मेरा भाल, बलाये लेते बाबुल।।
कुण्डलिया-(18)
विषय- *भैया*
भैया क्या मैं बोझ हूँ ,बात करें दो भ्रूण।
जान सुता फिर गर्भ में , नष्ट हुई ये जूण।।
नष्ट हुई ये जूण, मुझे कुछ तो समझाओ।
बेटे से क्यों मोह, सुता का दोष बताओ ।।
सुवासिता मन सोच, भेद यह है क्यों मैया।
जीने का अधिकार, दिला दो अब तो भैया।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[25/12 9:09 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 25.12.19
कुण्डलियाँ (15)
विषय-कविता
कविता ऐसी तब बने,मिलें नवांकुर चार।
कालजयी रचना रचें,अद्भुत अपरंपार।
अद्भुत अपरंपार,नहीं फिर कोई तुलना।
रच दें मन के भाव,नहीं फिर दिल में घुलना।
कहे वचन अनु आज,कि चमकें जैसे सविता।
भावों में भर रंग,रचें फिर अनुपम कविता।।
कुण्डलियाँ (16)
विषय-ममता
ममता मेरी मात की, सुनो लगाकर कान।
दिन हो चाहे रात हो,रखती सबका ध्यान।
रखती सबका ध्यान,कि है ये मेरी मैया।
जागे रवि के संग,खेवनहारी खिवैया।
सुख दुख देती वार,नहीं है कोई समता।
बिन बोले ले बूझ,कि ऐसी माँ की ममता।।
रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 25.12.19
कुण्डलियाँ (17)
विषय-बाबुल
*बाबुल* तेरी लाडली, है कितनी असहाय।
फंसी ऐसे जाल में, निकल तभी यह पाय।।
निकल तभी यह *पाय, पाय* जब धूर्त्त कमीने।
मैं आँगन की *डाल, डाल* दी मर कर जीने।
दूँगी उनको *मात, मात* मत होना आकुल।
थी मेरी क्या *भूल, भूल* मत जाना *बाबुल* ।।
पाय- सकना,मिलना
डाल-शाखा,तोड़ डालना
मात-हार,माँ
भूल-गलती,विस्मृत
कुण्डलियाँ (18)
विषय-भैया
प्यारा भैया आपका,मुझे न पूछे कोय।
मेरा कहा न मानता,कह बहना फिर रोय।
कह बहना फिर रोय,सुनो अब बात हमारी।
नहीं करूँ मैं बात,सुनो मेरी महतारी।
खोले अनु ये राज,कहे बहना है न्यारा।
सारी दुनिया छोड़,मुझे भैया है प्यारा।।
रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल
[25/12 9:15 PM] शिवकुमारी शिवहरे: बाबुल
बाबुल की वह लाड़ली ,आज चली ससुराल।
बेटी नाजों से पली,धीमी पड़ गई चाल।
धीमी पड़ गई चाल,लौटी फिर चली आती
होता दुखित अपार ,पिया का धर वो जाती।
कहे शिवा ये आन ,बेटियाँ होती व्याकुल।
बाबुल की है मान, सदा को छोड़ी बाबुल।
शिवकुमारी शिवहरे
[25/12 9:37 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 25/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - बाबुल
**************
उपवन बाबुल के खिली ,
कली एक अनमोल ।
थाम ऊँगली खेलती ,
मुख में मीठे बोल ।
मुख में मीठे बोल ,
रिझाती घर को सारे ।
माँ का आँगन छोड़ ,
चलूँ क्यों सजना द्वारे ।
यह मेरी पहचान ,
यहीं पाया है जीवन ।
रहूँ महकती खूब ,
सदा ही बाबुल उपवन ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - भैया
****************
भैया की है लाडली ,
चहक रही घर द्वार ।
राखी की इक डोर से ,
बहना बाँधे प्यार ।
बहना बाँधे प्यार ,
भ्रात रक्षक बन जाता ।
बनता उसकी ढाल ,
सदा ही साथ निभाता ।
सूर्य चन्द्र सा रूप ,
निहारे प्यारी मैया ।
निश्छल मन की प्रीत ,
निभाते बहना भैया ।।
***********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा( छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★★
[25/12 9:43 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
---------------------
दिनाँक-25/12/2019
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
-------------------------------
कुण्डलिया
-------------
17-बाबुल
--------
प्यारे बाबुल छोड़ के,पहुँची जब ससुराल।
मन अधर सोच में पड़ा,रहते हैं किस हाल।।
रहते हैं किस हाल,बैठ बाबुल नित सोचे।
रखे निरंतर लाज,कभी किस्मत को कोसे।।
खींचे आँगन द्वार,याद आते दिन न्यारे।
लगी मिलन की आस,गये दिन थे जो प्यारे।।
---------------------------------------------
18-भैया
----------
भैया राखी बाँधिए,सच्ची है ये डोर।
प्रेम बहना अटूट है,खींचे रखना जोर।।
खींचे रखना जोर,तुझे हमेशा पुकारे।
दुनियाँ से अब दूर,शीश है सदा झुका रे।।
कर 'निरंतर'तलाश,साथ छूटा जब छैया।
नित आती है याद,कहाँ हो गुम तुम भैया।।
----------------------------------------
अर्चना पाठक 'निरंतर'
[25/12 9:56 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध-कुण्डिलयाँ शतकवीर
दिनाँक~25/12/2019
17-बाबुल (25/12/2019)
बाबुल की प्रिय बेटियाँ, रहे जहाँ जिस हाल।
मैहर की ही याद से, होतीं खुश तत्काल।।
होतीं खुश तत्काल, पिता की राजदुलारी।
क्षणिक भूल ससुराल, मगन मन से सुकुमारी।।
होती नहीं निराश, भले सौ दुरियाँ काबुल।
पलकें जाती भीग, याद करतीं जब बाबुल।
18- भैया
भैया राजा आपसे, बहन करे मनुहार।
जीवन भर मिलता रहे, मुझे आपका प्यार।।
मुझे आपका प्यार, मधुर संबंध निभायें।
सुनकर करुण पुकार, दौड़कर झटपट आयें।।
कहे 'अमित' कविराज, आप ही लाज बचैया।
राखी की सौगंध, एक लाखों में भैया।।
कन्हैया साहू 'अमित'
[25/12 9:58 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक 22/12/2019
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
*चूड़ी..*
कहती प्यारी चूड़ियाँ, साजन मानो बात।
शोभा कंगन संग है,उभय एक ही जात।
उभय एक ही जात , भजन हैं मिलकर गाते
तुम लो सजना जोग , बने जोगन हम जाते ।
चूड़ी खनकी हाथ,पिया सूरज मैं धरती
सुनलो सजना बात, चूड़ियाँ तुमसे कहती
पाखी
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
*झुमका*
22/12/2019
बैरी झुमका बोलता ,गाये प्रीत पुकार।
कानों में रस घोलता,बोल झील के पार ।
बोल झील के पार,करे मन को मतवाला।
गाये प्रेमिल गीत, पिया पीकर के हाला
पुरवैया भी आज,उडाती चुनरी मेरी
पवन चले झकझोर,गया ले झुमका बैरी।
पाखी
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23/12/2019
*जीवन*
जीवन संध्याकाल में, नहीं छोड़ना हाथ।
तन्हा जीना आप बिन,दे जाए
संताप ।
दे जाए संताप ,बनेगा ये जलता वन ।
बिना पंखिनी साथ ,अकेला ये पाखी मन ।
रहते कैसे प्राण, अधूरा सा ये तनमन
पाकर तेरा साथ,,सफल हो जाता जीवन ।
पाखी
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[25/12 9:58 PM] गीता द्विवेदी: 🌷कलम की सुगंध छंदशाला🌷
कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक23-12-019
(13)
विषय-जीवन
बेटा नालायक हुआ,जीवन नर्क समान।
श्रद्धा अरु सम्मान हो,तब घर स्वर्ग महान।।
तब घर स्वर्ग महान, लगे है भव तट नैया।
सुखी रहें पितु मात, जतन अब कर लो भैया।।
चरणों में है शीश, वही सुख शय्या लेटा।
करते हैं उपकार, रहे समृद्ध तब बेटा।।
(14)
विषय-उपवन
छुट्टी का दिन आ गया,उपवन की हो सैर।
बच्चे बूढ़े सब चलें, नहीं किसी से बैर।।
नहीं किसी से बैर, नहीं है चिंता कोई।
चिड़ियों का है शोर, कहाँ बंदरिया खोई।।
रंग बिरंगे फूल, हुई है सुरभित मिट्टी।
हरियाली की गोद, बितायी हमने छुट्टी।।
सादर प्रस्तुत👏
गीता द्विवेदी
[25/12 10:00 PM] आशा शुक्ला: कुंडलिया शतकवीर
कलम की सुगंध - छंदशाला
दिनाँक - 25/12/2019
(17)
विषय-बाबुल
आकर बाबुल देख ले,मेरे रचनाकार।
तुझे पुकारे ये *धरा* , *धरा* ह्रदय पर भार।
धरा ह्रदय पर भार,सहा और नहिं जाए।
सकल मनुज पर *वार* , *वार* बदले में पाए।
गई पिता अब *हार* , *हार* दुख के लटकाकर।
टूटे मन के *तार* , *तार* मुझको तू आकर।
(18)
विषय-भैया
मेरे घर के बाग का ,भैया सुंदर फूल।
आँगन में घुटनों चले,लगी बदन पर धूल।
लगी बदन पर धूल, लगे अति सुंदर काया
खींचे माँ के बाल ,कभी पकड़े निज छाया।
कह आशा निज बात,जगे वह बड़े अँधेरे
रहे खेल में मगन, फिरे आँगन में मेरे।
रचनाकार,-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
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