[02/01 5:55 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 02.01.2020 (गुरूवार)
29- अनुपम
**********
दुल्हन सजधज कर चली, कर अनुपम श्रृंगार।
जैसे-जैसे पग बढ़े, उस पर बढ़ा निखार।
उस पर बढ़ा निखार, सौम्यता दिखती भारी।
आँखों में है लाज, लगे सूरत अति न्यारी।
"अटल" देख कर शील, हुआ पुलकित अन्तर्मन।
मर्यादा भरपूर, सजी है ऐसी दुल्हन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
30- धड़कन
**********
धड़कन दिल की कह रही, होगी विजय जरूर।
सँभल-सँभल आगे बढ़ें, छोड़ें आप गुरूर।
छोड़ें आप गुरूर, बात बस इतनी जानें।
अपनों को रख साथ, छिपे दुश्मन पहचानें।
"अटल" करें पुरुषार्थ, छोड़कर सारी उलझन।
जो चाहें मिल जाय, कहे यह दिल की धड़कन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[02/01 5:58 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध*
*कुण्डलिया शतकवीर*
*02.01.2020 (गुरूवार)*
*29-अनुपम*
राधे की शोभा लगे,अनुपम अद्भुत आज।
चरणों में उनके झुका,सारा देव समाज।
सारा देव समाज, करें सब मां की पूजा।
कोई नाहीं आज, लगे मां के सम दूजा।
कहती सरला आज,सभी का मन ये साधे।
सबकी ही ये आस, करें पूरी मां राधे।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*30-धड़कन*
धड़कन दिल की है बढ़ी,चली पिया के देश,
रोको अब कोई नहीं,सजी पिया के वेश।
सजी पिया के वेश, नहीं बाबुल घर सोहे,
भाता उसे न साज, नहीं माया ही मोहे।
कहती सरला बात,बढ़ी है मन की तड़पन।
चलती बेढब आज,रही बढ़ उसकी धड़कन।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[02/01 6:01 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध छंदशाला
दिनाँक--2/1/20
विधा--कुण्डलियाँ छंद
(29)
अनुपम
सुंदर शिव का रूप है,जोगी भोला नाम।
डमरू त्रिशूल हाथ में,अनुपम इनका धाम,
अनुपम इनका धाम,सती के संग बिराजे।
गौरी नंदन साथ,ढड़म ढम डमरू बाजे।
कहती अनु शिव नाम,भाव से भरा समुंदर।
शिव है आदि अनंत,सदाशिव सबसे सुंदर।
(30)
धड़कन
धड़के धड़कन जोर से,धड़धड़ की आवाज।
जीवन जीता जीव जो,दिल का बजता साज।
दिल का बजता साज,बजे जीवन में सरगम।
धड़कन देती साथ,सुखों का रहता संगम।
कहती अनु सुन बात,उठो सब जागो तड़के।
करो सबेरे सैर,खुशी से दिल भी धड़के।
अनुराधा चौहान
[02/01 6:02 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 02/01/2020
दिन - गुरुवार
29 - कुण्डलिया (1)
विषय - अनुपम
**************
स्वर्णिम आभा सूर्य की ,
आच्छादित आकाश ।
अंधकार का कर शमन ,
हो प्रस्फूट प्रकाश ।
हो प्रस्फूट प्रकाश ,
भोर की बेला आई ।
अद्भुत अनुपम रूप ,
हृदयतल को हरषाई ।
दिनकर दिखते दिव्य ,
हुआ है अम्बर अरुणिम ।
लाए नवल प्रभात ,
सूर्य की आभा स्वर्णिम ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
30 - कुण्डलिया (2)
विषय - धड़कन
****************
सजनी सुंदर सी सजी ,
पाने पिय का प्यार ।
व्याकुल नैनों से रही ,
प्रियतम पंथ निहार ।
प्रियतम पंथ निहार ,
विरह अब सही न जाती ।
धड़कन होती तेज ,
नहीं धीरज रख पाती ।
पिया मिलन की आस ,
बढ़ाती बैरन रजनी ।
साजन रही पुकार ,
तड़पती विरहन सजनी ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[02/01 6:10 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 02/01/2020
कुण्डलिया (29)
विषय- अनुपम
===========
गाथा हिन्दुस्तान की, अनुपम बड़ी महान I
सोने की चिड़िया यही, जगत करे गुणगान ll
जगत करे गुणगान, मनोहर छटा निराली l
शैलराज, कश्मीर, व कुल्लू संग मनाली ll
कह 'माधव कविराय', वतन का ऊँचा माथा l
जग जाहिर इतिहास, अनूठी इसकी गाथा ll
कुण्डलिया (30)
विषय- धड़कन
===========
जब तक धड़कन वक्ष में, करलो अच्छे काम I
कब हो जाये बन्द गति, मिटे तुम्हारा नाम ll
मिटे तुम्हारा नाम, निशानी कुछ तो छोड़ो l
याद करें जन बाद, भलाई रिश्ता जोड़ो ll
कह 'माधव कविराय',बदन,धन चलता कब तक l
कर जाओ कुछ खास, रहोगे दुनिया जब तक ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[02/01 6:11 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ-शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 02.01.2020 (गुरुवार)
(31)विषय - अनुपम
पायल की झंकार से,दिल मेरा भर आय।
अनुपम रूप सुहावनी,मन मेरा है भाय।।
मन मेरा है भाय, देख कर उनको यारा।
क्या बतलाऊँ जान,वही है सबसे प्यारा।।
कहे विनायक राज,नैन से करती घायल।
होता हूँ बेचैन, तभी जब बजती पायल।।
(32)विषय - धड़कन
मन मेरा माने नहीं, कैसे रखूँ सहेज।
जब जब आती याद है,धड़कन होती तेज।।
धड़कन होती तेज,करूँ क्या तुम बतलाओ।
मेरे प्यारे दोस्त,तुम्हीं अब तो समझाओ।।
कहे विनायक राज, आसरा अब है तेरा।
मिले उसी का प्यार, चाहता है मन मेरा।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[02/01 6:16 PM] कुसुम कोठारी: कुसुम कोठारी
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
कुण्डलियाँ -(२९)
विषय-अनुपम
महकी मँजरी बाग में , रूप, अनूप रूपम ,
किल्लोल करे सूर्य से , छटा मोहक अनुपम ,
छटा मोहक अनुपम , डाल बूंटो से निखरी ,
डोली नाची साथ , पवन सुरभित हो बिखरी ,
कहे कुसुम ये बात , गूंज मधुकर की चहकी
मँजरी हुयी निहाल , रीझ के सौरभ महकी ।
कुण्ड़लियाँ (३०)
विषय-धड़कन
पावन ये शृंगार है , धड़कन का संगीत
बूझे कोई प्यार से , माँ ही ऐसा गीत ,
माँ ही ऐसा गीत , कंठ में मधुर समाई ,
जीवन का आधार , पूर्व भव पुण्य कमाई ,
कहे कुसुम सँग प्रीत , झूम कर नाचे सावन ,
धात्री सम है कौन , पूर्ण पवित्र औ पावन ।
कुसुम कोठारी।
[02/01 6:19 PM] वंदना सोलंकी: कलम की सुगंधशाला
कुंडलियां शतकवीर हेतु
दिनांक-02-01-2020
29)अनुपम
जगती की शोभा बढ़े,हरियाली चहुँ ओर।
अनुपम सृष्टि संरचना,कुंजित कोकिल कोर ।
कुंजित कोकिल कोर,प्रकृति है इक फुलवारी।
आभा अतुल अनूप,सूर्य की चली सवारी।
वन्दू के मन-मीत,मही मनभावन लगती।
सब मिल करें प्रयास,बने स्वर्गिक जग जगती।।
30)धड़कन
आओ सखियो मैं कहूँ, एक राज की बात।
धड़कन दिल की बढ़ रही,थर थर काँपे गात।
थर थर काँपे गात,घड़ी थी वो सुखदाई।
प्रथम मिलन की रात,कभी मैं भूल न पाई।
सुन मम हिय की बात,सखी तुम नहीं लजाओ।
तुम भी खोलो भेद,तनिक समीप तो आओ।
रचनाकार-वंदना सोलंकी
[02/01 6:19 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
2/1/2020
*(29)अनुपम*
अनुपम ये संसार है, भाँति भाँति आकार ।
चक्र अनवरत ही चला, जड़ चेतन साकार।
जड़ चेतन साकार, सृष्टि गति मे ही चलती।
अग्नि वायु आकाश,तले ही साँसे पलती।
कहती मधुर विचार, पाँच है तत्व निरूपम।
प्रकृति का व्यापार,जगत है इनसे अनुपम ।
*(30)धड़कन*
बचपन भोला मनचला,यौवन है मधुमास ।
बासंती हो धड़कने, यौवन होता खास।
यौवन होता खास,तरुण मन भरे उमंगें ।
सपन सलोने देख,उठे है हिया तरंगे।
करे मधुर मनुहार, देखते सोलह सावन।
इधर उधर की बात,बीत जाता है बचपन।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[02/01 6:20 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु मेरी रचना*
*२७---अविरल*-- *01/01/2020*
*बुधवार*
अविरल धारा प्रेम की, प्राणों का संगीत |
मानव की है तिश्नगी, मनभावन-सा गीत |
मनभावन-सा गीत, हृदय मेरा है पावन |
जाता इसमें डूब, तपोवन आया सावन |
कह विदेह नवनीत, न पाया मन को संबल |
रखूँ हमेशा प्रीत, प्रेम की धारा अविरल ||
*२९--सागर*
बदली ने जब-जब किया, सागर से अभिसार |
घनीभूत पीड़ा उठी, लहरों में हर बार |
लहरों में हर बार, सुधाकर की तरुणाई |
अकुलाए प्रतिबिंब, सजन दिखता हरजाई |
कह विदेह नवनीत, विरह में कातर पगली |
निष्ठुर तेरे नाम, बरसती सागर बदली ||
*०२/०१/२०२०* *गुरुवार*
*विषय:-अनुपम*
*२९*
अनुपम अद्भुत रूप है, श्याम सलोना गात |
मोहन तेरे सामने, मेरी क्या औकात |
मेरी क्या औकात, साँवरा सबसे न्यारा |
मीरा का विश्वास," कन्हैया "कब है हारा |
कह विदेह नवनीत, बजे कानों में सरगम |
जीवन का आधार,रूप है अद्भुत अनुपम ||
*विषय:-धड़कन*
*३०*
धड़कन मेरी बढ़ गई, जब आया मनमीत |
पाँव कुलाँचे भर रहे, पाकर अपनी प्रीत |
पाकर अपनी प्रीत, दिवस ऐसा है आया |
बदली का अभिसार, अरे सागर टकराया |
कह विदेह नवनीत, न उजड़े मेरा मधुबन |
रहे सदा आबाद, बढ़ी मेरी भी धड़कन ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[02/01 6:22 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
1. अविरल
अविरल बहती है नदी, सागर तट की ओर।
कल कल का करती हुई, जीवन पथ पर शोर।।
जीवन पथ पर शोर, नहीं वो कहीं ठहरती।
पथ के सब अवरोध, तोड़कर आगे बढ़ती।।
कह अंकित कविराय, रही वो गतिमय हरपल।
बहती है दिनरात, नदी निज पथ पर अविरल।।
2. सागर
सागर जैसे तुम बनो, धीर, वीर, गम्भीर।
आंखों में अपनी रखो, लाज, शर्म का नीर।।
लाज, शर्म का नीर, मनुज का धर्म निभाओ।
अपने अन्दर देश, भक्त का भाव जगाओ।।
कह अंकित कविराय,रखो सद्भाव जगाकर।
कहलाओगे आप, तभी इस जग में सागर।।
3. अनुपम
अनुपम उसका रूप है, अद्भुत उसके काम।
कहता है जग इसलिए, उसको शोभाधाम।।
उसको शोभाधाम,नाम हैं उसके अनगिन।
रह सकता है कौन, बताओ जग में उस बिन।।
कह अंकित कविराय,मिटाता वो जीवन का तम।
उसके जैसा और, नहीं इस कारण अनुपम।।
4. धङकन
धङकन भी बढ़ने लगी, और खो गया चैन।
बरसाने को अश्रुजल, हुए नयन बेचैन।।
हुए नयन बेचैन, नहीं लेकिन वो आया।
जिसके कारण विरह, व्यथित ने रूप सजाया।।
कह अंकित कविराय, नहीं है वश में तनमन।
बिन तेरे मनमीत, बढा करती है धङकन।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[02/01 6:33 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -29
दिनांक -2-1-20
विषय -अनुपम
फैली है अनुपम छटा, खुशियाँ आई हाथ l
प्रकृति सभी को दे रही, नये साल का साथ l
नये साल का साथ, कहे मिलजुल के रहना l
आपस में हो प्रेम, कभी अनीति मत सहना l
कहती सुनो सरोज, दान दो भर भर थैलीl
करो गरीबी दूर, मिटा कुरीति जो फैली l
कुंडलियाँ -30
दिनांक -2-1-20
विषय -धड़कन
तेरी धड़कन मैं बनूँ, रहना तेरे साथ l
प्रियतम मेरे तुम सदा, पकड़े रहना हाथl
पकड़े रहना हाथ, रूप
कुछ पल का होताl
स्वभाव देता साथ, बीज ममता का बोता l
कहती सुनो सरोज, प्रेरणा बनकर मेरी l
रचो नया इतिहास, बनूँ मैं धड़कन तेरी l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏
[02/01 6:34 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक-02 /01 /2020
(29)
विषय-अनुपम
अपना प्यारा देश है,अनुपम और महान।
विविध रंग में शोभता, चमके इसकी शान।
चमके इसके शान,नदी की कल-कल धारा।
कानन है खग- शोर,हँसे हर मौसम प्यारा।
शीश हिमालय -ताज,धवल जैसे हो सपना।
लोटे चरण नदीश,समेटे गौरव अपना।
(30)
विषय-धड़कन
राधा सुन मेरी प्रिया, कुसुम कली की डाल।
धड़कन मेरी बाँसुरी, मुझको दे तत्काल।
मुझको दे तत्काल, यहाँ मधुबन है सूना।
विकल हुए पिक मोर , हुआ दारुण दुख दूना।
मना रहे हैं श्याम, बिना तेरे मैं आधा।
मैं शरीर तू प्राण, सता मत मुझको राधा।
रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[02/01 6:40 PM] अनिता सुधीर: कुण्डलिया शतकवीर
02.01.2020 (गुरूवार)
अनुपम
अनुपम सुंदर लेखनी ,शब्दों का संसार ।
भाव,शिल्प लय छन्द से ,कविता ले आकार।।
कविता ले आकार,कभी सूरज सी तपती।
तारों की कर बात,चाँद की बातें कहती ।।
कहती उर के भाव,धरा का वर्णन निरुपम।
प्रभु का हो आशीष,लेखनी रहती उत्तम ।।
**
धड़कन
बसिये प्रभु उर में सदा,ध्यान करूँ दिन रात।
हर धड़कन में प्रीत की ,सदा रहे बरसात ।।
सदा रहे बरसात ,प्यास नैनों की बुझती ।
जिह्वा पर हो नाम,हृदय में मूरत सजती ।।
जीवन के आधार ,डोर बंधन की रखिये ।
दें अपना आशीष ,सदा धड़कन में बसिये ।।
अनिता सुधीर
[02/01 6:40 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
*अविरल*
बहती नित अविरल सदा , नदिया कलकल धार ।
मात स्वरूपा वाहिनी , बने प्रकृति आधार ।।
बने प्रकृति आधार , नदी से ही जल जंगल ।
प्रण लें रखना स्वच्छ , सरित से जग मंगल ।।
सहे स्वयं हर कष्ट , दूसरों के दुख हरती ।
बाधा सारी तोड़ ,चपल नद निशदिन बहती ।।
*सागर*
सागर वृहत अनंत है , भरती लहर उमंग।
छुपे रत्न अनमोल उर , खुशियों भरी तरंग।
खुशियों भरी तरंग , प्रेम हो जैसे गहरा।
बहकर नदिया नीर , समन्दर जाकर ठहरा ।।
सुनो धरा की बात , बूँद से भरता गागर।
बूँद बूँद रख धीर , संयमित चित सम सागर ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[02/01 6:50 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
--------------------
दिनाँक 02/01/2020
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
--------------------------------
27-अविरल
--------------
गंगा अविरल धार है,मटमैली अब रंग।
पापी के सब पाप धो,पावन करती संग।।
पावन करती संग,संग बहती ये माता।
जीवन का ये ढंग,ढंग सीखो जब आता।।
पहन निरंतर हार, हार कहती ये दंगा।
उपजाऊ हो तीर,बहे जब अविरल गंगा।।
-----------------------------------------------------
28-सागर
------------
सागर की लहरें बड़ी, सिलवट है पुरजोर।
तट पे मारे चौकड़ी, खूब मचाए शोर ।।
खूब मचाए शोर, गीत नदियों के गाता ।
धूप पड़ी जब बूँद ,बहुत खारा हो जाता।।
कहे निरंतर रीत, रीत भर जाये गागर।
लहर मिले जब और, और बन जाए सागर।।
---------------------------------------------------
(29) अनुपम
--------
अनुपम करती प्रेम मैं,दूर बसे तुम हाय।
खोजूँ अब दिन रात तो,गये लिए बिन राय।।
गये लिए बिन राय,मुझे कुछ नहीं सुहाता।
फिर हो जायें एक, काश तू मुझे बुलाता।।
बन जाये कुछ बात,पुन: रिश्ते हों मधुरम।
गहरा जाये नेह,मेह जब बरसे अनुपम।।
------------------------------------------------
(30) धड़कन
--------------
धड़कन बढ़ जाती कभी,आते जब तुम पास।
प्यार भरे सुन आज भी, हो तुम उतने खास।।
हो तुम उतने खास,कभी जब आकर बैठो।
सुन लो दिल की बात,हृदय में गहरी पैठो।।
करे निरंतर आज,बहुत तुम बिन है तड़पन।
सुनके तेरा नाम,यहाँ बढ़ जाती धड़कन।।
--------------------------------------------------
अर्चना पाठक 'निरंतर'
[02/01 6:53 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 2 जनवरी 2020
कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलियाँ शतक वीर प्रतियोगिता
( 29 ) विषय -- *अनुपम*
अनुपम जीवन राम का , अनुपम मानस ग्रंथ ।
अनुपम गीता सूत्र हैं , अनुपम हैं सतपंथ ।।
अनुपम है सतपंथ , संत हैं जिन पर चलते ।
करते पर -उपकार, दीप ज्यों प्रतिपल जलते।
कहे 'निगम कविराज' , त्याग मर्यादा संगम।
है जीवन आधार, हमारी संस्कृति अनुपम ।।
(30) विषय ---- *धड़कन*
वाणी जब असमर्थ हो , कह सकने में बात ।
धड़कन उर की बोलती , खुशी मिली या घात।।
खुशी मिली या घात, रात दिन है यह जगती ।
छोटी सी भी बात , इसे जोरों से लगती ।।
"निगम" दिखे सब साफ , काम जो करते पाणी।
ज्ञानी पाते जान, हृदय की धड़कन - वाणी ।।
कलम से --
कृष्ण मोहन निगम
(सीतापुर) सरगुजा।
[02/01 6:54 PM] प्रतिभा प्रसाद: *शतकवीर सम्मान हेतु*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ प्रतियोगिता*
विषय *वेणी*
दिनांक 16.12.19......
(01) *वेणी*
वेणी नागिन सी लगे , भुइयां लोटे केश ।
कान्हा का मन बावरा , धर राधा का भेश ।
धर राधा का भेश , मिलेंगी राधा रानी ।
चतुराई व दर्शन , कान्हा भरेंगे पानी ।
कह कुमकुम करजोरि , नेह राधा से लेनी ।
माधव की है प्रीत , खिचे राधा की वेणी ।।
(02) *कुमकुम*
कुमकुम चिन्ह सुहाग है , ज्यों शोभित लीलार ।
नारी भी सुंदर दिखे , सीरत पावै प्यार ।
सीरत पावै प्यार , है सजना को रिझाना ।
छिड़कते नेह स्नेह , कभी मन को समझाना ।
कह कुमकुम कविराय , खड़े रहना हाँ गुमसुम ।
हो पावन पुण्य प्रीत , सदा पकड़ाते कुमकुम ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 16.12.19.....
___________________________________
विषय *काजल*
दिनांक 17.12.19....
(3) *काजल*
आँखों में काजल लगा , सुंदर लगती नार ।
कौतुहल से झांक रही , लिय यौवन का भार ।
लिय यौवन का भार , दुलारी जिम्मेदारी ।
कभी न फिसले पाँव , हाँ देते होशियारी ।
कह कुमकुम करजोरि , रहेगी निज बाँतों में ।
घर की है सम्मान , दिखे काजल आँखों में ।।
(04) *गजरा*
बाँलों में गजरा लगा , झाँक रही है गेह ।
साजन से है माँगती , पावन सावन नेह ।
हाँ अपने लिय नेह , सदा तुम्हीं से पाना ।
है दिल का अरमान , प्यार देने तुम आना ।
कम कुमकुम करजोरि , स्नेह गुलाबी गालों में ।
केश कला यूँ तोल , लगा गजरा बालों में ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 17.12.19....
___________________________________________
दिनांक 18.12.19.....
विषय *पायल*
(05) *पायल*
चंचल चितवन देखना , मुस्काय अंग अंग ।
है यह बंधन प्यार का , नेह मिलेगा संग ।
नेह मिलेगा संग , पहन पायल छमछम छम ।
है पायल उपहार , समझना यह तुम मत कम ।
कह कुमकुम करजोरि , प्यार दिखता जब अंचल ।
मत सहना फिर बात , नयन बोलेगा चंचल ।।
(06) *कंगन*
कर कंगन व कमरधनी , ले लो बाजूबंद ।
अधर गुलाब केश सजी , नयन हो गए छंद ।
नयन हो गए छंद , बोल तुम मीठे बोलो ।
सुंदर हो श्रृंगार , प्रेम रस मन में घोलो ।
कह कुमकुम कविराय , नहीं छूटे यह आंगन ।
रखना मन तुम बाँध , मिले यूँ जब कर कंगन ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 18.12.19.......
____________________________________________
*कुंडलियाँ*
विषय ------ बिंदी , डोली
(07) *बिंदी*
माथे पे बिंदी सजी , सुंदर लगती नार ।
साजन के मन में बसी , ले साजन का प्यार ।
ले साजन का प्यार , कहे सजना से गोरी ।
होना नहीं उदास , सुना दूंगी मैं लोरी ।
कह कुमकुम करजोरि , स्नेह देना तुम हिन्दी ।
रखना मेरा मान , सजे माथे की बिंदी ।।
(08) *डोली*
डोली पर दुल्हन चली , संग लिए अरमान ।
साजन मेरे साथ हैं , प्रभू दिये वरदान ।
प्रभू दिये वरदान , सजनी प्रितम से बोलीे ।
रहता घर आनन्द , बने रहना हमजोली ।
कह कुमकुम करजोरि , देखो पिया मैं भोली ।
सदा रखो सम्मान , चली हूँ चढ़कर डोली ।
(09)दिनांक 21.12.19..
विषय ----- आँचल , कजरा ।
(09) *आँचल*
आँचल से बालक ढ़का , पीता है वह दुग्ध ।
किलक किलक है खेलता, हो जाता मन मुग्ध।
हो जाता मन मुग्ध , सदा दिल मोहे ममता ।
गोदी मिले जहान, बात आँखों को जमता ।
कह कुमकुम कविराय , हो जाता मन चंचल ।
राम कहो या श्याम , प्यार ही माँ का आँचल ।।
(10) *कजरा*
कजरा लगाके सजनी , देखो कैसी चाल ।
साजन से मिलने चलीं , हो करके बेहाल ।
होकर के बेहाल , शर्म से गोरी बोली ।
करने दो सिंगार , वचन में मिश्री घोली ।
कह कुमकुम करजोरि , लगा के बेणी गजरा ।
सजन देख मुस्काय , सजनी लगाके कजरा ।।
विषय --- चूड़ी , झुमका ।
दिनांक ---- 22.12.19...........
(011) *चूड़ी*
चूड़ी हाथों में सजी , यह नारी श्रृंगार ।
खनखन खनखन बजेगी , हाथ सुता भिनसार ।
हाथ सुता भिनसार , बेटी कहती माँ से ।
चूड़ी देगा प्रेम , यदि दिलाओगी जाँ से ।
होगा ये श्रृंगार , दिखेगा साजन घोड़ी ।
मात तात का प्यार , हाथों सजेगी चूड़ी ।।
(012) *झुमका*
झुमका पाने के लिए , जिया गई मैं हार ।
प्रितम कहीं भी नहि मिले , ढ़ूढ़ चुकी संसार ।
ढ़ूढ़ चुकी संसार , है आस नहि अब दिखता ।
बिरह आग में राख , चूर हो यूँ दिल लिखता ।
कह कुमकुम करजोरि , चली जाऊँ अब दुमका ।
स्वप्न बन गया प्यार , पिया देना तुम झुमका ।।
दिनांक --- 23.12..19...
विषय ----- *जीवन , उपवन*
(13) *जीवन*
जीवन को सपना कहो , कह दो या तुम काम ।
काम चिंतन युक्त बनें , धाम वही सुख धाम ।
धाम वही सुख धाम , भावना होगी सुरभित।
सुरभित होगा देश , जनता होगी सुरक्षित ।
सुरक्षित जनता भाव , सदैव मनावें सावन ।
सावन खिलता फूल , सदैव खिलेगा जीवन ।।
(14) *उपवन*
उपवन फूलों संग ही , खिलता है दिन रात ।
रात तमस व ओस दिया , नमी चराचर गात ।
नमी चराचर गात , उपवन होता सुरक्षित ।
सुरक्षित रहे गेह , होगा परिवार विकसित ।
विकसित हो परिवार , समय माँगे तब जीवन ।
जीवन जीना खास , खिले आँगन में उपवन ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 24.12.19....
कुंडलियाँ 24.12.19....
विषय --- *कविता , ममता*
(15) *कविता*
कविता लिखने के लिए , करना है इक काम ।
काम विषय गत भावना , रचता छंद विराम ।
रचना छंद विराम , पुष्प सा होता विकसित ।
विकसित होत विचार , रचना रचो परिभाषित ।
परिभाषित कवि भाव , होने लगे मन सविता ।
सविता सा मन भाव , समझ लेती है कविता ।।
(16) *ममता*
ममता देना है सदा , पूरा हो मातृत्व ।
मातृत्व व परिवार ही , देता है भातृत्व ।
भातृत्व गुण कि खान , करें परिवार पल्लवित ।
पल्लवित रहे मान , परिवार रहे सुवासित ।
सुवासित रहे संग , साथ हमेशा समता ।
समता ही बरसाय , सदा देता है ममता ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 24.12.19....
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*कुण्डलियाँ*
विषय ----- *बाबुल* *भैया*
दिनांक ----- 25.12.19.......
(17) *बाबुल*
बाबुल उपवन की कली , बिटिया है अरमान ।
अरमान तभी पुर्ण कहो , दो बिटिया को मान।
दो बिटिया को मान , बाबुल से सुता बोली ।
बोली मीठे बोल , मधुरिम सी मिश्री घोली ।
घोली प्यार बहार , कहीं ना जाना काबुल ।
काबुल में ही प्यार , मैं आ रही घर बाबुल ।।
(18) *भैया*
भैया की बोली सदा , छेड़े मधुरिम राग ।
घर भर में जो प्रेम था , फिर जाए वह जाग ।
फिर जाए वह जाग , प्रीत जो है मनभावन ।
मिटे सभी मनभेद , समय हो सदा सुहागन ।
कह कुमकुम करजोरि , घर ही चलूंगी सैंया ।
मधुर सुनाओ तान , बजाकर फिर भैया ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 25.12.19......
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*कुंडलियाँ*
विषय ---- *बहना , सखियाँ*
दिनांक ---- 26.12.19..
(019) *बहना*
भाई बहन साथ रहें , रहता घर गुलजार ।
शरारत कर बड़े हुए , कर सुंदर व्यवहार ।
कर सुंदर व्यवहार , बहन ने राखी बाँधी ।
बाँधी धागा नेह , सुता आबादी आधी ।
कह कुमकुम करजोरि , रखना ध्यान माई ।
परिवार रहे सुंदर , कहेगी बहना भाई ।।
(020) *सखियाँ*
सखियाँ जीवन में कहें , आँख मिचौली खेल ।
खिलखिलात आंगन लगे , नहीं कभी गम मेल ।
नहीं कभी गम मेल , कहती रहेगी गोरी ।
करो नहीं आघात , सुनाना है बरजोरी ।
कह कुमकुम कविराय , प्रेम भर देती अखियाँ ।
लो जीवन का ज्ञान , दे जाती सदा सखियाँ ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 26.12.19.....
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*कुंडलियाँ*
दिनांक --- 28.12.2019
विषय ---- *कुनबा , पीहर*
(021) *कुनबा*
छोटा कुनबा ही रखो , हो सुंदर परिवार ।
खुशियों घर में ही रहे , अच्छा हो व्यवहार ।
अच्छा हो व्यवहार , खानदान फले फूलें ।
हो पढने की बात , जाए व्यवधान चूल्हे ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी न होना मोटा ।
घर रहे खुशहाल , रखेंगे कुनबा छोटा ।।
(22) *पीहर*
पीहर पीहर मन सदा , बचपन में ही खोय ।
माता पिता कहे सदा , गम मन राखें जाय ।
गम मन राखें जाय , ससुराल में खुश रहना ।
बाँध लिया जब नेह , साजन हो गए गहना ।
प्रीत रीत की डोर , रहे घर जाएं शिवहर ।
सदा रहेगी प्रीत , हाँ जाना पुण्य पीहर ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 28.12.2019.....
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*कुंडलियाँ*
विषय --- *पनघट , सैनिक*
दिनांक ---- 29.12.19...
(23) *पनघट*
पनघट पर गोरी खड़ी , भर हाथों से नीर ।
पानी पीकर तृप्ति हों , मिट जाएगी पीर ।
मिट जाएगी पीर , सदा हो मन का पानी ।
होगा नवल प्रभात , गोरी ने गीत सुनाया ।
पा सूरज का प्यार , पुष्प भी है हरषाया ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी न लगाना जमघट ।
हो सुंदर व्यवहार , पानी भरेगी पनघट ।।
(24) *सैनिक*
सैनिक के उपकार को , मत समझो तुम खेल ।
लाख पुण्य के बाद में , होता है यह मेल ।
होता है यह मेल , कर्म को सदा जगाओ ।
पर इतना लो जान , धर्म को मत बिसराओ ।
कह कुमकुम करजोरि , कर्म करना न अनैतिक ।
रहे सुरक्षित देश , सरहद तैनात सैनिक ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 29.12.2019....
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*कुंडलियाँ*
विषय --- *कोयल , अम्बर*
दिनांक --- 30.12.2019.....
(25) *कोयल*
कोयल देती है खुशी , गाकर सुंदर गान ।
तन मन सब पुलकित करे , होता है अभिमान ।
होता है अभिमान , नहीं हो कोई छलिया ।
सुंदर हो मन भाव , देख गेहूं की बलिया ।
कह कुमकुम करजोरि , नहीं रहना तुम सोयल ।
आंगन बरसे नेह , सदा बोलेगी कोयल ।।
(26) *अम्बर*
अम्बर यूँ कहने लगा , सुन लो मेरी बात ।
मिल जुल कर रहना सदा , कभी न करना घात ।
कभी न करना घात , नहीं हो कोई बाधा ।
सतत करो तुम पूर्ण , काम का हिस्सा आधा ।
कह कुमकुम करजोरि , नहीं करना आडम्बर ।
सत्य सनातन नेह , सदा करती है अम्बर ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 30.12.2019...
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*कुंडलियाँ*
विषय ---- *विनती , भावुक*
दिनांक ---- 30.12.2019.....
(27) *विनती*
विनती हमारी इतनी , तुम्हीं लेना मान ।
मेरे दिल में प्रभु सदा , बसना तुम्हीं आन ।
बसना तुम्हीं आन , ध्यान रखना है बोलो ।
इतना लेना जान , ध्यान तुम जब भी खोलो ।
बोलो मधुरिम बोल , जगत सदैव है सुनती ।
देंगे आशीर्वाद , ईश्वर से है विनती ।।
(28) *भावुक*
भावुक मन की भावना , रखना मेरा ध्यान ।
धरा आंगन फूल खिले , प्रभू रखेंगे मान ।
प्रभू रखेंगे मान , फूल खिलेगा बगीचा ।
लगा देना तुम बाग , बिछा दिया है गलीचा ।
कह कुमकुम करजोरि , नहीं चलाना चाबुक ।
खिल जायेगा भाग्य , मगन रहना यूँ भावुक ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 30.12.2019...
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*कुण्डलियाँ*
विषय ---- *अविरल , सागर*
दिनांक ---- 1.1.2020.........
(29) *अविरल*
धारा अविरल प्रेम की , मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर नहीं जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाय ।
जुड़े गाँठ पड़ जाय , प्रेम के हो तुम साधक ।
सीखो चलो विधान , नहीं होगा कोई बाधक ।
कह कुमकुम करजोरि , अमृत तुम ही हो सारा ।
आएगा ही काम , प्रेम की अविरल धारा ।।
(30) *सागर*
गागर में सागर भरा , पावन प्रीत प्रतीत ।
पुण्य प्रसून पिया मिले , देखो मन की जीत ।
देखो मन की जीत , पवन हो जब ही पावन ।
नेह भरा हो भाव , बरसता जैसे सावन ।
कह कुमकुम करजोरि , करेगा राज उजागर ।
मतलब को यूँ छोड़ , प्रेम से भर लो गागर ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 1.1.2020........
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[02/01 6:56 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
2/01/2020:: वीरवार
अनुपम
रचना ईश्वर ने रची , है मानव आकार।
भर विवेक उसमें दिया, इक अनुपम उपहार।।
इक अनुपम उपहार, रहो इसके अनुरागी।
करना नहीं प्रमाद, न बनना सुख के आदी।।
रसना करे कमाल, धार से इसकी बचना।
रखना पलपल मान, रची जो ईश्वर रचना।।
धड़कन
प्रियतम आता देखकर, आती मुझको लाज।
धड़क- धड़क दिल धड़कता, अजब गजब अंदाज।।
अजब गजब अंदाज,इशारों में हों बातें।
चूड़ी खोले राज़, प्यार की जो सौगातें।।
मस्तानी मदमस्त, भूल जाती सारे ग़म।
रस बरसाते नैन ,सामने देखूँ प्रियतम।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[02/01 6:58 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 02.01.2020
कुण्डलियाँ (29)
विषय-अनुपम
अनुपम रचना आपकी,ऐसे श्री भगवान।
गुण गाऊँ क्या आज मैं,पाऊँ नव वरदान।
पाऊँ नव वरदान,यही बस चाहत मेरी।
प्रकृति लुटाये खूब,कृपा है सिर पर तेरी।
सुन लो अनु की बात,चलो सत के पथ हरदम।
खेले कैसे खेल,छटा है जिसकी अनुपम।।
कुण्डलियाँ (30)
विषय-धड़कन
धड़कन में मेरी बसे, मेरे तारणहार।
संध्या करती आज मैं,वर दो पालनहार।
वर दो पालनहार,करूँ मैं तेरी पूजा।
अर्पण मन के भाव,सुहाये काम न दूजा।
कहती अनु ये बात,मिलें जब प्रभु के दर्शन।
भूलें सुधबुध साज,बढ़े फिर दिल की धड़कन।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
[02/01 6:59 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक- 02.01.2020
*अनुपम*
धरती में बिखरे पड़े,सुंदर अनुपम क्षेत्र।
जिनकी सुषमा देखकर,धन्य हमारे नेत्र।
धन्य हमारे नेत्र,झील की छटा निराली।
कल कल सुनकर नाद,झूमती डाली डाली।
कहती रुचि करजोड़,प्रकृति पीड़ाएँ हरती।
बड़ी सुखद अनुभूति,लगे अनुपम ये धरती।
*धड़कन*
धक धक धड़कन की धड़क,सुने चिकित्सक रोज।
इसके नियमित चाल से,करे रोग की खोज।
करे रोग की खोज,दवा करता फिर निश्चित।
धड़कन हो अवरुद्ध,बैद्य तब होता विस्मित।
कहती रुचि करजोड़,जीव जिंदा है तब तक।
बिना किये आराम,धड़कने चलती धक धक।
✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[02/01 7:20 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: 2-1-2020
29-- *अनुपम*
अनुपम तेरा रूप है ,अनुपम तेरा हास
अनुकम्पा अनुपम बड़ी , अनुपम रहा प्रभास
अनुपम रहा प्रभास , कृपा तेरी कल्याणी
अनुपम आशीर्वाद, मधुर अनुपम है वाणी
अनुपम है दरबार , धूप है तेरी अनुपम
महिमा अनुपम खूब, रूप माँ तेरा अनुपम।।
30-- *धड़कन*
खतरा दिखता सामने , धड़कन बढ़ती जाय
साँस साँस उखड़ी रहे ,उर आतंक समाय
उर आतंक समाय , मौत दीखे मुस्काती
अधर भी पीले होय , गात की काँपे थाती
जड़ भी जीवित होय , डरावे कतरा कतरा
धड़कन होवे तेज , दीखता सामने खतरा ।।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
[02/01 7:23 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
कुंडलियाॅ शतकवीर हेतु।
02.02.2020
31-
अनुपम
उपवन अनुपम देखकर,आँख चले अविराम।
मानस से ठहराव की,चाह रखे विधिधाम।
चाह रखे विधिधाम,देखना हरियाली है।
फूले कमल गुलाब,फूलती फुलवारी है।
कहे कमल कविराज,कली का मधुरिम चितवन।
क्यारी -क्यारी खिल गई,देखकर अनुपम उपवन।
32-
धड़कन
धड़कन -धड़कन बोलती,पिया प्रेयसी प्यार।
देख -देख कर जी रहे,मिलने से इनकार।
मिलने से इनकार,लाज -मर्यादा न्यारी।
छवि अनुपम रतिराज,रात भर करवट जारी।
कहे कमल कविराज,जिया में तक- तक तड़कन।
रहें दूर पर पास, धड़कती धक- धक धड़कन।।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[02/01 7:29 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध -छंदशाला
*शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*
01/01/2020
*अविरल*
धारा अविरल बह रही, प्रीति बहे चहुँ ओर।
पुण्य दायिनी गंग है, करती भाव विभोर ।
करती भाव विभोर,छिपाये सीपी मोती।
गहरे जाते डूब, भक्ति की शक्ति न होती।
पाखी बहती धार, समेटे विष वह सारा।
करवाती भव पार , बहे जब पावन धारा
मनोरमा जैन पाखी
01/01/2020
÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷
*सागर*
सागर से नदिया मिले, सौंपे निज सर्वस्व।
खुशी खुशी से सिंधु का, स्वीकारे वर्चस्व।
स्वीकारे वर्चस्व, समाहित खुद को करती।
खारापन हो दूर, मधुर जल प्रतिदिन भरती।
पाखी करती यत्न, भले है छोटी गागर।
सलिला होती मग्न, उसे जब मिलता सागर।।
मनोरमा जैन पाखी
02/01/2020
*अनुपम*
अनुपम मूरत श्याम की, लेती मन को खींच।
हुई बावरी नाम की, बैठीं अँखियाँ मींच।
बैठी अँखियाँ मींच, हृदय मनमोहन बसते।
उनको माना मीत, हमारे दिल मे रहते।
पाखी मुरली तान, जिसे करती हृदयंगम।
करूँ श्याम का ध्यान, बसी छवि उनकी अनुपम।
मनोरमा जैन पाखी
*धड़कन*
धड़कन बढ़ती है सदा, लूँ जब तेरा नाम।
राह निहारूँ मैं सदा, छोड़छाड़ सब काम।
छोड़छाड़ सब काम, तुझी में चित्त लगाऊँ।
मिले तभी आराम, दरश जब तेरा पाऊँ।
पाखी थमती साँस, कभी हो जाये अनबन।
फँसे गले में फाँस, और रुक जाती धड़कन।।
मनोरमा जैन पाखी
02/01/2020
[02/01 7:30 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 1.1.20
कुण्डलियाँ (27)
विषय- *अविरल*
गंगा यमुना से मिले, बहती अविरल धार।
सरस्वती सरिता सभी, महिमा अमित अपार।।
महिमा अमित अपार, त्रिवेणी लोग नहाएँ।
धुल जाते सब पाप, देह पावन हो जाएँ।।
मलो रेणुका माथ, पुण्य मिलता है दुगुना।
पड़ता संगम नाम, मिले जब गंगा यमुना।।
कुण्डलियाँ (28)
विषय- *सागर*
मैं सागर साहित्य का, छोटा सा किरदार।
थामी जबसे लेखनी, हुआ काव्य से प्यार।।
हुआ काव्य से प्यार, लिखूँ अब मन की बातें।
छंदों में आनंद, जागकर काटूँ रातें।।
प्रांजलि कहती आज, रिक्त है मेरी गागर।
माँ तुम भरदो आन, नहीं माँगूँ मैं सागर।।
दिनाँक -2.1.20
कुण्डलिया (29)
विषय - *अनुपम*
अनुपम उर उल्लास है, घर लौटेंगे कंत।
विरह वेदना जा रही, मौसम आज वसंत।।
मौसम आज वसंत, सजल हैं फिर भी नैना।
अभी तलक है याद, कटे कैसे दिन रैना।।
प्रांजलि नहीं उदास, पास जब आए प्रियतम।
झुके शर्म से नैन, छुअन वह लगती अनुपम ।।
कुंडलिया (30)
विषय- *धड़कन*
धड़कन सुनके साजना, समझो तो हालात।
होंठों से क्या बोलना, नैनों से कर बात।।
नैनों से कर बात, जिया का हाल बताओ।
कैसे कटती रैन, दिवस की बात सुनाओ।।
लो नैंनों में झाँक, समझ लो मेरी तड़पन।
कितनी तुमसे प्रीत, सुनो तो दिल की धड़कन।।
रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[02/01 7:34 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय --- *अनुपम , धड़कन*
दिनांक --- 2.1.2020..
(031) *अनुपम*
जोड़ी राधा कृष्ण की , अनुपम है सौंदर्य ।
अद्भुत दृश्य अवलोकिए , चमके जैसे सूर्य ।
चमके जैसे सूर्य , छटा अनुपम है आली ।
मन उठता है भाव , लगेगी कैसी साली ।
कह कुमकुम करजोरि , चढ़ों जैसे भी गाड़ी ।
साली जाओ भूल , देख लो अनुपम जोड़ी ।।
(32) *धड़कन*
धड़कन दिल की जब सुनी , कैसा मन हो जाय ।
लम्बी गहरी सांस लें , दिल थाम लिया हाय ।
दिल थाम लिया हाय , बढ़ी कैसे है धड़कन ।
बच्चों की है बात , कभी समझाऊं लड़कन ।
सुनो मेरी भी बात , दिला कानों में लटकन ।
नहीं करो यूं घात , बढ़ेगा दिल का धड़कन ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 2.1.2020
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[02/01 7:36 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलियाँ शतक सन्मान के लिए। 🙏🏻
दिनांक 2-1-2020.
कुंडलियाँ क्र.29
1) अनुपम 🌹
अनुपम कान्हा है सखी,सुंदर प्यारे नैन,।
मनभावन इसकी हँसी,मधुर तोतले बैन।
मधुर तोतले बैन,जिया मेरा हुलसाये।
वारी जाऊँ देख,कहीं नजर न लग जाये।।
कमल सजालें नैन,हदय में बजती सरगम।
लेती मन को मोह,कृष्ण की छवि है अनुपम।।
कुंडलियाँ क्र30🌹
2) धड़कन
आने की मैने सुनी,खबर पिया की आज।
धडकन तेजी बढ गई,कोई न सूझे काज।
कोई न सूझे काज, पांव ये जम ही जाये।
शरम की मारी हाय,पिया कैसे मिल पाये।
कमल कहे पिय साथ,रहे कबसे है तडपन।
आये पिय जब आज,बढे क्यों तेरी धड़कन।
रचना कार।डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
[02/01 7:49 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*कुण्डलियाँ(२९)*
*विषय-धड़कन*
माटी से ये तन बना,साँसों की है डोर।
प्राण-पतंगा मन बसा,धड़कन करती शोर।
धड़कन करती शोर,करें तू क्यों मनमानी।
तेरा किस पर जोर,समझ पर फेरा पानी।
कहती 'अभि' निज बात,घड़ी मस्ती में काटी।
धड़कन होगी बंद,मिले माटी में माटी।
*कुण्डलियाँ(३०)*
*विषय-अनुपम*
अनुपम भावों से भरा, कविता का संसार।
हर युग में उड़ती रही, अपने पंख पसार।
अपने पंख पसार, बहाती रस की धारा।
कालखंड को चीर, मिटाती तम ये सारा।
कहती 'अभि' निज बात, भाव कविता के निरूपम।
वीर भक्ति श्रृंगार,प्रेम की कविता अनुपम।।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[02/01 7:59 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: ~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक--02.01.2020
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *अनुपम*
अनुपम संस्कृति है यहाँ, अनुपम अपना देश!
विविध धर्म अरु जातियाँ, रहे संग परिवेश!
रहे संग परिवेश, भिन्न जलवायु प्रदेशी!
बोली विविध प्रकार, चाह बस हिन्द स्वदेशी!
कहे लाल कविराय, त्याग मय धरती निरुपम!
रीत प्रीत व्यवहार, तिरंगा भारत अनुपम!
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *धड़कन*
धड़कन भारतवर्ष की, दिल्ली कहें सुजान!
हृदय देश का है यही, संसद शासन शान!
संसद शासन शान, राजधानी यह दिल्ली!
राज तंत्र से अद्य, रही शासन की किल्ली!
शर्मा बाबू लाल , सदा सत्ता मय थिरकन!
दिल्ली अपनी शान, रहेगी दिल की धड़कन!
रचनाकार ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[02/01 8:02 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -02/01/2020
अनुपम( 29)
अनुपम नटखट राधिका, सुंदर राधे श्याम।
मंदिर दर मंदिर बने, चलता रहता काम।।
चलता रहता काम,रहे सरदी या गरमी।
कहते है जो बात, रखे वो उसमें नरमी।
कह राधेगोपाल, कन्हैया बनता हमदम।
सुंदर राधेश्याम ,सलोनी राधा अनुपम।।
धड़कन (30)
धड़कन गिनकर है मिली, मत करना बेकार।
जीवन के दिन चार हैं, कर लो सब से प्यार।।
कर लो सब से प्यार, सभी को अपना मानो।
रिश्ते नाते छोड़, सभी को अपना जानो।
कह राधेगोपाल, बिखरते झूठे बंधन।
मत करना बेकार, मिली है गिनकर धड़कन।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[02/01 8:17 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': **कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*१--वेणी--*
~~~~~~~~~~~~~~
सिंदूरी आभा लिए, रक्तिम-कमल-कपाल।
वेणी नागिन के सदृश, माथे बिंदी लाल।
माथे बिंदी लाल,आँख में काजल सोहे।
मादक अधर अनूप, देख मानव मन मोहे।
कंचन वर्ण शरीर, परी सी लगती पूरी।
नर नारी सब मुग्ध, देख आभा सिंदूरी।।
*२--कुमकुम--*
रोली, कुमकुम भाल पर, माँग भरे सिंदूर।
कंचन वर्ण शरीर पर, आभूषण भरपूर।
आभूषण भरपूर, पहन कर लेती फेरे।
पति गृह बेटी जाय , सभी परिजन हैं घेरे।
बाबुल का घर छोड़ ,उठी बेटी की डोली।
दम दम दमके रूप, भाल पर चमके रोली।।
*३.काजल!*
सुंदर मुख मंडल मुदित, नैनन काजल डारि।
प्रियतम से मिलने चली, मंंथर गति सुकुमारि।
मंथर गति सुकुमारि, अधर पर सोहे लाली।
बिंदी चमके भाल, कमर पर चोटी काली।
झुकी लाज से आंख, चाल हिरनी सी चंचल।
दमकें गौर कपाल, लाल, सुंदर मुख मंडल।।
*४ -गजरा--*
गजरा फूलों का लगा, चोटी ली लटकाय।
बिंदी चमकी भाल पर, कुमकुम दिया लगाय।
कुमकुम दिया लगाय, सुगंधित है घर सारा।
द्वारे बंदनवार, लगे मन को अति प्यारा।
राह तके सुकुमारि, सजा आंखों में कजरा।
मुख पर चमके प्यार, केश में सोहे गजरा।।
*५--पायल--*
पायल छम-छम-छम बजे, बिछिया सोहे पाँव।
राधा जोहे श्याम को, बैठ कदम की छाँव।
बैठ कदम की छाँव, श्याम की राह निहारे।
आयेंगे कब श्याम, मिलन को नदी किनारे।
सुन बंशी की तान, हो गई राधा घायल।
चली कृष्ण की ओर, बजी राधा की पायल।
*६--कंगन--*
प्यारे तुम मत दो मुझे, कंगन, चूड़ी, हार।
आभूषण चाहूँ नहीं, दे दो अपना प्यार।
दे दो अपना प्यार, हृदय में मुझे बसाओ।
कहीं न जाओ छोड़, गले से मुझे लगाओ।
तन मन तुम पर वार, रहूँगी साथ तुम्हारे।
बढ़े हमारा प्रेम, नित्य प्रति साजन प्यारे।।
*7--बिंदी--*
चमके मुखड़ा चाँद सा, नागिन जैसे बाल।
आंखों में काजल भरे , बिंदी सोहे भाल।
बिंदी सोहे भाल, माल मोती का भारी।
अनुपम रूप अनूप, लगे रति जैसी नारी।
अति मनमोहक चाल, दामिनी जैसी दमके।
मुग्ध हुए सब लोग, चाँद सा मुखड़ा चमके।
*८--डोली--*
डोली में चढ़ कर चली, बेटी साजन द्वार।
बाबुल का घर छोड़ कर, पाने पति का प्यार।
पाने पति का प्यार, नया संसार बसाने।
आंखों में सज उठे, सुनहरे स्वप्न सुहाने।
भूल गई माँ-बाप,बहन,भाई, हमजोली।
छूटा अपना गाँव, चढ़ी कन्या जब डोली।।
*९--आंचल-*
~~~~~~~~~
मिलता आँचल में हमें, माँ के निश्छल प्यार।
माता ही करती सदा, सबसे अधिक दुलार।
सबसे अधिक दुलार, जन्म दे दूध पिलाती।
लोरी गा कर नित्य, रात में हमे सुलाती।
माँ का पाकर नेह, सभी का मुखड़ा खिलता।
जब तक माँ है साथ, अलौकिक सुख है मिलता।
*१०--कजरा--*
कजरा नयनों में लगा, मांग भरे सिंदूर।
राह निहारे नित्य तिय, प्रियतम हैं अति दूर।
प्रियतम हैं अति दूर, विरह की जलती ज्वाला।
कर के पति को याद, हृदय होता मतवाला।
बेणी बाँधे रोज,लगा बालों में गजरा।
बिंदी सोहे भाल, पिघलता जाये कजरा।
*11- चूड़ी*
~~~~~~~~~~
नारी का श्रृंगार हैं, कंगन, चूड़ी, हार।
काजल, बिंदी भाल पर, साथ पिया का प्यार।
साथ पिया का प्यार, माँग में सेनुर डारे।
पाँव महावर लाल, नैन चंचल कजरारे।
करती सद्व्यवहार, बड़ों की बनती प्यारी।
पाती है सम्मान, सभी से शिक्षित नारी।।
*12-- झुमका*
झुमका कानों में पहन, कर सोलह सिंगार।
नाकों में नथनी सजा , मोहक मोती-हार।
मोहक मोती - हार, करधनी कटि में साजे।
बिछुवा अँगुली बीच, पाँव में पायल बाजे।
मुदित हुए सब लोग, देख गोरी का ठुमका।
करते करते नृत्य, गिरा गोरी का झुमका।
*१३-- जीवन--*
जीवन के दिन चार हैं, मत करना अभिमान।
सबसे मिलजुल कर रहो, कहते चतुर सुजान।
कहते चतुर सुजान, ज्ञान सद्गुरु से पाओ।
औरों के प्रति द्वेष, कभी मत मन में लाओ।
धर्म कर्म में नित्य ,लगाओ अपना तन-मन।
करो सदा सत्कर्म , खुशी से बीते जीवन।।
*१४-- उपवन*
वन - उपवन सब कट गये, धरा हुई श्रीहीन।
पानी बिन सूखा पड़ा, उगे न वृक्ष नवीन।
उगे न वृक्ष नवीन, नहीं अब मिलती छाया।
हुई प्रदूषित वायु , बुरा है कलयुग आया।
सूखीं नदियाँ, कूप, हुआ अति दूभर जीवन।
आओ करें प्रयास, उगायें फिर वन उपवन।।
*15--- कविता*
कवि के मन की भावना,और हृदय की पीर।
गागर में सागर भरे, मन को करे अधीर।
मन को करे अधीर, रसों की धार बहाती।
कभी अधर पर हास्य, कभी आँसू छलकाती।
मन विह्वल हो जात, नहीं रहती सुधि तन की।
जान सका है कौन, कल्पना कवि के मन की।।
*16-ममता*
माँ की ममता से बड़ा, क्या दूजा उपहार।
माता से बढ़ कर यहाँ, कौन करेगा प्यार।
कौन करेगा प्यार, ईश भी शीश झुकाते।
पाने माँ का प्यार, जन्म ले भू पर आते।
सुन "भूषण" सच बात, नहीं है माँ की समता।
सबसे है अनमोल, जगत में माँ की ममता।।
*17---बाबुल*
छूटा बाबुल का भवन, छूटा उनका प्यार।
बेटी को अब मिल गया,एक नया संसार।
एक नया संसार, मिला दूजा घर आंगन।
सास , ससुर, परिवार, साथ मन भावन साजन।
मात-पिता हैं दूर्, किन्तु कब नाता टूटा।
आजीवन का साथ , नहीं है रिश्ता छूटा।
*18---भैया*
भैया मेरे तुम कभी, मुझे न जाना भूल।
मैं हूँ सबकी लाडली , मैं बगिया का फूल।
मैं बगिया का फूल, रखूँगी मान तुम्हारा।
जो भी हैं कर्तव्य, निभाऊँगी मैं सारा।
तुमको प्रति दिन याद , करूँगी सुबह सवेरे।
होना नहीं उदास, कभी भी भैया मेरे।।
*१९--बहना*
भाई से बहना कहे, सुन लो मेरे बीर।
सुख - दुख में हम साथ हैं, होना नहीं अधीर।
होना नहीं अधीर, न छूटे साथ हमारा।
पावन परम पवित्र , सदा ये नाता प्यारा।
बढ़े हमेशा नेह, न होवे कभी लड़ाई।
खुशियाँ मिलें हजार, बहन के प्यारे भाई।।
*२०---सखियाँ--*
सखियाँ आतीं याद जब, होता चित्त उदास।
कब पूरी होगी भला, पुनर्मिलन की आस।
पुनर्मिलन की आस, लिए उनसे बतियाती।
काम धाम सब छोड़, हाथ में फोन उठाती।
करते करते बात, अश्रु से भरतीं अँखियाँ।
सब कुछ जाती भूल, याद जब आतीं सखियाँ।
*२१--कुनबा*
सारा कुनबा एक हो, रहे प्रेम के संग।
सबकी चिंता सब करें, चढ़े प्रेम का रंग।
चढ़े प्रेम का रंग, न टूटे सुंदर नाता,
हो जावे जब बैर , आदमी तब पछताता।
आपस में हो मेल, तभी घर लगता प्यारा।
खान -पान हो साथ, रहे खुश कुनबा सारा।
*२२--पीहर*
छूटा पीहर, आ गयी, बेटी पति के द्वार।
मात पिता की आँख से, बहे अश्रु की धार।
बहे अश्रु की धार, याद बेटी की आती।
उठती मन में पीर, नींद भी उड़ उड़ जाती।
होती प्रति दिन बात, नहीं है नाता टूटा।
बेटी घर की ज्योति, भला कब पीहर छूटा।
*23--पनघट*
~~~~~~~~~~~~
पनघट को गोरी चली, ले सखियों को साथ।
गागर पानी का लिये, अपने-अपने माथ।
अपने-अपने माथ, कमर बल खाती जाती।
मुख पर आँचल डाल, हाथ चूड़ी खनकाती।
भरें कुएँ से नीर, उठाये अपना घूँघट।
रहे सदा गुलजार, गाँव का सुंदर पनघट।।
*24--सैनिक*
दुश्मन से डरते नहीं, रहें सदा तैयार।
सैनिक भारत देश के, कर दें सीमा पार।
कर दें सीमा पार, शत्रु की नींद उड़ाते।
पले जहाँ आतंक , वहीं गोले बरसाते।
जब जब करते वार, हजारों दुश्मन मरते।
भारत माँ के लाल, नहीं दुश्मन से डरते।।
*२५--कोयल*
काली है, पर बोलती, कोयल मीठे बोल।
सब के मन को मोहती, कानों में रस घोल।
कानों में रस घोल, सभी के मन को भाती।
नीरव निशि में कूक, विरह के बोल सुनाती।
सुन कौआ की काँव, लोग देते हैं गाली।
सब करते हैं प्यार, भले कोयल भी काली।
*२६---अम्बर*
अम्बर ,धरती मिल रहे, जहाँ क्षितिज के पार।
साजन चलते हैं वहाँ, पलता निश्छल प्यार।
पलता निश्छल प्यार, नया संसार बसायें।
रहे न मन में वैर, कष्ट सारे मिट जाएं।
अपलक रहे निहार, देव गण बैठे ऊपर।
सूंदर दृश्य अनूप, धरा पर झुकता अम्बर।।
*२७--अविरल*
धारा गंगा की बहे, नित अविरल अविराम।
माता गंगा स्वच्छ हों,अति पुनीत यह काम।
अति पुनीत यह काम, अमिय सम गंगाजल है।
पतित पावनी नाम, बहे प्रतिपल कल-कल है।
हरती सारे पाप,जानता भारत सारा।
कभी न रुके प्रवाह, बहे गंगा की धारा।
*२८--सागर*
सागर ज्यों होते सभी, विविध रत्न की खान।
जल खारा जब हो गया, पा न सका सम्मान ।
पा न सका सम्मान, लोग प्यासे रह जाते।
पीने मीठा नीर, कहाँ सागर-तट आते।
मीठा नीर सँभाल, बनीं नदियाँ गुण-आगर।
ले अथाह जल-राशि,किन्तु खारा है सागर।।
~~~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"- बलिया,उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~
[02/01 8:26 PM] गीतांजलि जी: *सादर समीक्षार्थ - शतकवीर कुण्डलिया*
२७) विनती
विनती कर जोड़े करूँ, हे हरि मंगल मूल।
मानस मम से झड़ गिरे, जन्म जन्म की धूल।
जन्म जन्म की धूल, धुले *पा वन* शुचि *पावन*।
नगर ग्राम से दूर, बसूँ पा मन रुचि भावन।
न ऐश्वर्य का पूर, नहीं धन जन की गिनती।
ऐसा जीवन, देव, वरूँ मैं करके विनती।
(२८) भावुक
शबरी भोली भीलनी, मुनि मुख सुन कर बात।
भावुक भावों भर भजे, भव भय भंजन भ्रात।
भव भय भंजन भ्रात, राम लक्ष्मण धनुधारी।
श्यामल गौर शरीर, दुखी जन के अघहारी।
चुनचुन लाती बेर, पके फल पीले गठरी।
भोग लगाते राम, चखे पहले जिन शबरी।
गीतांजलि
[02/01 8:27 PM] डॉ अर्चना दुबे: *शतकवीर कुंडलिया*
*दिनांक - 02/01/2020*
*अनुपम*
प्यारा प्यारा रूप है, कर्मवान इंसान ।
अनुपम छवि देखन लगे, बढ़ता जिससे शान ।
बढ़ता जिससे शान, यही बस चाहत मेरा ।
ईश्वर का वरदान, कर्म का माला फेरा।
'रीत' कहे कर जोड़, प्रभु विनती ये हमारा ।
करवा दो भव पार, जपूँ माला प्रभु प्यारा ।
*धड़कन*
धड़कन दिल की बढ़ रही, थर थर काँपे हाथ ।
आँखों से आँसू गिरे, कोई ना दे साथ ।
कोई ना दे साथ, आज डर मुझे सताये ।
जब जब आये याद, किसे दिल हाल बतायें ।
'रीत' सदा दे ध्यान, हृदय में उठती तड़पन ।
नहीं करो अब घात, बढ़ रही दिल की धड़कन ।
*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍
[02/01 8:41 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध
कार्यक्रम शतकवीर कुण्डलियाँ
अनंत पुरोहित 'अनंत'
दिन गुरूवार 02.01.2020
29) अनुपम
आगर अनुपम आँवला, औषध सुधा समान
धात्री तेरा नाम है, गुण माता सम जान
गुण माता सम जान, कि तुम ही पूजा पाती
हरीतकी के संग, सुधा सम तुम बन जाती
कह अनंत कविराय, गुणों की तुम हो सागर
रस भले ही कषाय, रहो पर हर घर आगर
आगर = उत्तम, घर
30) धड़कन
धड़कन हर पल भक्त की, प्रभु की करे पुकार
सोते उठते बैठते, जपता नाम हजार
जपता नाम हजार, हमेशा ध्यान लगाता
ईश भक्ति में लीन, कि धूनी सदा जमाता
कह अनंत कविराय, भक्त की ऐसी तड़पन
जब देखे भगवान, बना लेते निज धड़कन
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[02/01 8:43 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 02/01/2020
कुण्डलियाँ- (29)
विषय- *अनुपम*
अनुपम ही मुझको दिखे, चित्र कोट की धार।
देख मनोहर दृश्य को , लगता हीरा हार।।
लगता हीरा हार ,मनोरम दिखता झरना।
चला बुझाने प्यास, तपन भू शीतल करना।।
सुवासिता सुन बात , राह पर बढ़ना हरदम।
जीवन का ये स्रोत, मिले संदेशा अनुपम।।
कुण्डलिया-(30)
विषय- *धड़कन*
धड़कन परअपनी मुझे, होता हरदम नाज।
जग के हर सुख दुख सभी, रखे छिपाये राज।।
रखे छिपाये राज, शिकायत न कभी करती।
करती सब महसूस, मधुर बोली पर मरती ।।
सुवासिता दे ध्यान, न हो सीने में जकड़न।
जिन्दा है इंसान, बताती है ये धड़कन।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[02/01 8:52 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक -01-01-020
(27)
विषय -अविरल
माता रोटी सेंकती, बालक शोर मचाय।
दे दो माँ रोटी मुझे, खाली पेट अघाय।।
खाली पेट अघाय, तुम्हारा लाल कहाँऊँ।
अविरल ममता नेह, बहे मैं नित्य नहाऊँ।।
निर्मल शीतल छाँव, तुम्हारा आँचल पाता।
सो जाता निर्भेद, गोद में तेरी माता।।
(28)
विषय-सागर
सागर मोती पालता, माना बहुत विशाल।
सरिता बिन सूना लगे, पर उसका तट भाल।।
पर उसका तट भाल,रहा तन से भी खारा।
सोये कंकड़ रेत,गगन तकता बेचारा।।
लहरें रहा उछाल, चकित है देख दिवाकर।
देता रश्मि पसार, हुआ स्वर्णिम अब सागर।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[02/01 8:53 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:- 01/01/20
27. अविरल
झंकृत कर इस शीत में, अविरल बहे समीर।
भेदे काया छिद्र को,सर्द पवन के तीर।
सर्द पवन के तीर,यहाॅ है अतिशय ठंडी।
भाये ऊनी वस्त्र, लोग पहने हैं बंडी।
सबको है स्वीकार,प्रकृति की छटा अलंकृत।
आये जब ऋतु शीत,देह हो जाता झंकृत।
28 सागर
सागर जैसे हो हृदय,जहाॅ भरा हो प्यार।
दीन हीन के स्वप्न भी,ले सचमुच आकार।
ले सचमुच आकार, राह कुछ ऐसे चुनना।
ऊॅच नीच का भेद, छोड़ दुखियों का सुनना।
लाकर नूतन सोच,श्रेष्ठ बन जाओ नागर।
सबके प्रति हो प्यार, हृदय हो जैसे सागर।।
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कुण्डलियाॅ:- 02/01/20
29.अनुपम
अनुपम कृति है यह धरा,जहाॅ अग्नि जल वायु।
कई तरह की जीव यहां, औसत सबकी आयु।
औसत सबकी आयु, सूर्य से उर्जा पाते।
पौधे देते अन्न, मनुज सब उसको खाते।
जंगल नदी पहाड़, गगन का रूप विहंगम।
सचमुच है अद्भूत,धरा की यह कृति अनुपम।।
30.धड़कन
अपने बस में है नहीं , धड़कन की आवाज।
निरा प्रकृति की गोद में,छुपा हुआ है राज।
छुपा हुआ है राज,जिसे ढूंढें वैज्ञानिक।
सत्य जानने विज्ञ, लगा रहे आनुमानिक।
करे कल्पना रोज, देखकर अविरत सपने।
पर धड़कन का राज,नहीं है बस में अपने।।
महेंद्र कुमार बघेल
[02/01 8:53 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर
31-अनुपम (02/01/2020)
अनुपम अद्भुत अनुपमा, जिसका कहीं न तोड़।
अजब निराला जो अलग, कहें उसे बेजोड़।।
कहें उसे बेजोड़, रहे जो स्वयं अनूठा।
अतुल अप्रतिम रूप, तनिक नहिँ दिखता झूठा।
होता सबसे श्रेष्ठ, कहें हम जिसे निरूपम।।
अद्वितीय पहचान, वही कहलाता अनुपम।।
32-धड़कन
धड़कन धड़के हर घड़ी, दर गति यह हिय चाल।
धक धक चलता रात दिन, सतत अथक हर हाल।
सतत अथक हर हाल, तीव्र मध्यम अरु धीमा।
बढ़े रक्त की चाप, अंत करता परिसीमा।
कहे अमित कविराज, वक्ष बायाँ जब तड़पन।
करें सदा ही गौर, हृदय की गति दर धड़कन।।
कन्हैया साहू 'अमित'
[02/01 8:59 PM] नीतू जी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक-02 /01 /2020
कुण्डलिया (27)
विषय:- अनुपम
धरती अनुपम रूपिणी , ईश्वर का उपहार।
हर मौसम में वो करे, अलग अलग श्रृंगार।।
अलग अलग श्रृंगार, सभी के मन को भाये।
कभी चाँदनी रात, कभी बादल घिर आये।।
सब की पालन हार, सभी की विपदा हरती।
लगती मातु समान, सजीली सुंदर धरती।।
कुण्डलिया (28)
विषय-धड़कन
धड़कन गाती है सदा ,जीवन का संगीत।
हर पल बजती साज सी, गर्मी हो या शीत।।
गर्मी हो या शीत , सदा चलना ही जाने।
जाने मन के भेद, भेद फिर भी कब माने।।
सच कहती है "नीत" , समझती है ये तड़पन।
रहे अंत तक साथ, हृदय के अंदर धड़कन।।
रचनाकार :- नीतू ठाकुर " नीत"
[02/01 9:15 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध......... कुण्डलियाँ शतकवीर
विषय ...........अनुपम
विधा.............कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
माता अनुपम रूप है,
मंदिर सोहे आज।
जन जन द्वारे आ खड़े,
दर्शन लेकर साज।
दर्शन लेकर साज,
करें माँ सिंह सवारी।
सुंदर नाहर केश,
लहर रही सिर भारी।
भाला रखती हाथ,
सजे ढाल हस्त भाता।
साजे बिंदी भाल,
अनुपम रूप है माता।
★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[02/01 9:31 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *दिनांक--०२/०१/२०२०.
वृहस्पतिवार*
*२९-अनुपम*
गोरी कंचन की छड़ी,अनुपम रूप अनूप।
अतिशय मनभावन लगे,ज्यों जाड़े की धूप।
ज्यों जाड़े की धूप, लगे जन जन को प्यारी।
कर दे सबको मुग्ध, लगे केसर की क्यारी।
अपलक देखें लोग, निहारें,चोरी-चोरी।
भला बचा है कौन , न मोहे जिसको गोरी।।
*३०--धड़कन*
दिल की धड़कन आप हैं, हे मेरे घनश्याम।
निशि दिन मैं जपता रहूँ, सदा आपका नाम ।
सदा आप का नाम, कृष्ण, मोहन, बनवारी।
मुरलीधर, कंसारि, कन्हैया, हे गिरिधारी।
जपता है संसार, आप को ही आजीवन।
मुरली की ये तान, बनी है सबकी धड़कन।।
~~~~~~
*--विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--
बलिया, उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~
[02/01 10:08 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
विषय - अनुपम
अनुपम तेरा रूप है, अनुपम तेरी प्रीत।
मीरा का तू साँवरा, राधा का मन मीत ।
राधा का मन मीत, नाम का माला जपती ।
हर पल आठों याम,कृष्ण मैं तुम पर मरती ।।
तेरी मुरली तान, संग सुन पायल छमछम ।
चरनन तेरी प्रीत, मोहना छवि है अनुपम ।।
विषय - धड़कन
धड़कन में तुम हो बसे, ओ मेरे मनमीत ।
बिँदिया तेरे नाम की, चूड़ियों की संगीत ।
चूड़ियों की संगीत, खनक कर तुझे पुकारे ।
पायल छमछम बोल, कहे आ प्रियतम प्यारे ।।
छूटे कभी न हाथ, नाम है तेरे जीवन ।
आकर थामो बाँह, रही कह मेरी धड़कन ।।
केवरा यदु "मीरा"
राजिम
[02/01 10:37 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
29 ) अनुपम
*************
भाती अनुपम है छटा , देती है सुख चैन ।
कितना इसे निहार लो , थकते अभी न नैन ।।
थकते अभी न नैन , बहें सुन्दर से सोते ।
मनोरम दृश्य दिखें, लगें जिसमें अब गोते ।।
मौसम अनुपम सोहे , प्रकृति है न्यारी थाती ।
खोये हम तो आज , दिखे शोभा है भाती ।।
30 ) धड़कन
*************
धड़के धड़कन आज तो , मोहन तेरे नाम ।
प्यासे नैना तो नहीं , झपकें दिन अरु शाम ।।
झपकें नहीं अरु शाम , कष्ट सदैव होता है ।
देखें राहें आज , आँख भी अब तो फड़के ।
मोहन तेरे नाम , सुनो यह धड़कन धड़के ।।
रवि रश्मि ' अनुभूति '
2.1.2020 , 6:20 पी.एम. पर रचित ।
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●●
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[02/01 10:38 PM] डॉ मीना कौशल: अनुपम ये उपहार है,ईश्वर का वरदान।
भू पर फलते फूलते,शिक्षा मिले महान।।
शिक्षा मिले महान,खिले जीवन फुलवारी।
सब कोई खुशहाल,धरा ये सबसे न्यारी।।
बढ़े सभी में प्यार ,रहे न कोई अनबन।
भारत भाग्य निहाल,व्यवस्था हो सब अनुपम।।
धड़कन
धड़कन भारत भूमि की,सैनिक हों खुशहाल।
वीर जवाँ इस देश के,सबसे रहें निहाल।।
सबसे रहें निहाल,कर रहे सेवा उत्तम।
करते अप्रतिम त्याग,भाव सेवा का संगम।।
भारत हित सर्वस्व,रहे इनका शुभ जीवन।
सैनिक ये बलवीर,देश की मेरे धड़कन।।
डा.मीना कौशल
अनुपम संग्रह ।सभी रचनाकारो को बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteवाह, सुन्दर संकलन तैयार हो रहा है।
ReplyDeleteभविष्य में इसके प्रकाशन की आशा की जानी चाहिए
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