Wednesday, 1 January 2020

कुण्डलिया छंद....अविरल, सागर

[01/01 6:02 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 01/01/2020

कुण्डलिया (27) 
विषय- अविरल
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आबादी   अविरल   हुई, संसाधन   कमज़ोर I
परेशानियाँ   नित   बढ़ें, अपराधों   का  शोर ll
अपराधों  का  शोर, किसी  की  सुने  न कोई l
अपनी  ढपली राग, अलग जनता सब खोई ll
कह 'माधव कविराय', प्रगति बाधक, बर्बादी l
भरसक  करो  प्रयास, नियंत्रित  हो आबादी ll

कुण्डलिया (28) 
विषय- सागर
============

सागर  अतुलित  सम्पदा, हिय  में  भरे समेट I
निश्छल मन फिर भी सदा, करता सबसे भेंट ll
करता  सबसे  भेंट, मिलन  की महिमा न्यारी l
एक    रंग    मनमीत, नसीहत   देता   प्यारी ll
'माधव'  मत मदचूर, भले धन कोटिक गागर l
बनो    धीर,  गम्भीर, जगत  में  जैसे  सागर ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[01/01 6:04 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 01.01.2020 (बुधवार)

(29) अविरल
अविरल धारा जिंदगी, रुके न अपनी हाथ।
बहती रहती उम्र भर,सुख-दुख दोनों साथ।।
सुख-दुख दोनों साथ,सँजोये तुम भी रखना।
जीवन में हर बार,मजा इसकी भी चखना।।
कहे विनायक राज,कभी मत होना हलचल।
जीवन है इक धार,निरन्तर बहती अविरल।।

(30) सागर
खारे सागर की तरह,होना कभी न यार।
मीठी सदा जुबान हो,सादा हो व्यवहार।।
सादा हो व्यवहार,सभी के मन को भाए।
जग में होवे नाम, देख  तुझको हर्षाए।।
कहे विनायक राज,दोष को छोड़ो सारे।
होवे हृदय विशाल,बनो मत सागर खारे।।
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[01/01 6:08 PM] सरला सिंह: +++++++++++++++++++++++++++
 *01/01/2020*

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - बुधवार* 
*दिनांक-01/01/2020*
*विषय: अविरल*
*विधा कुण्डलियाँ*

*29-अविरल* 

  धरती पर अविरल बही, जीवन की ये धार,
  सदियां बीती युग गये,कभी न मानी हार।
  कभी न मानी हार,रही आगे ही बढ़ती।
  धरती को कर पार,चांद सूरज पर चढ़ती।
  कहती सरला आज,लगे‌ झरना हो झरती।
  मनहर सा है रूप, लिए जीवनमय धरती।।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*


*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - बुधवार* 
*दिनांक-01/01/2020*
*विषय: सागर*
*विधा कुण्डलियाँ*

*30-सागर*

 मानव मन सागर सदृश,सके न कोई जान,
 कंकड़ पत्थर ही चुने, करते बस अनुमान।
 करते बस अनुमान, नहीं सच पूरा जाने।
 छिपा कहीं अज्ञान, कहीं ज्ञानी सब माने।
 कहती सरला आज,लगे कोई है दानव।
 लगता बड़ा अथाह, अरे यह मन है मानव।।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*


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[01/01 6:11 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला। 1-1-2020
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए। 🙏🏻
कुंडलियाँ क्र.29
1) अविरल🌹
आती अमरतरंगिनी,अवनी अंबर पार।  बहती अविरल हो धरा,देती सबको तार।। 
देती सबको तार,मांग भगिरथ  है लाया। 
सगर पुत्र को तार, एक आदर्श बनाया।। 
कमल समझ तू देख,स्थान शिव के सर पाती। 
करती जग उद्धार,गंग अंबर से आती।। 
कुंडलियाँ क्र.30
2) सागर🌹
कहना संभव है कहाँ,सागर है या नैन। 
कोयल की यह कूक है,या गोरी के बैन। 
या गोरी के बैन,शहद सी मीठी बोली। 
उबर न पाऊँ देख,डूब जाऊँ हमजोली।
कहे कमल तू सोच,बहुत पड़ता है सहना। 
सागर है संसार,तैर जा फिर तू कहना। 
रचना कार डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[01/01 6:21 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

  कुण्डलिया छंद शतकवीर सम्मान , 2019 हेतु 

  *कुण्डलिया छंद*
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27 ) विनती 
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विनती है माँ शारदे , रखना मेरा ध्यान ।
सूझे मुझको कुछ नहीं , दे दो मुझको ज्ञान ।।
दे दो मुझको ज्ञान , नहीं मन धीर धरेगा ।
माथा टेकूँ आज , हृदय ही नमन करेगा ।।
करना अब तो मातु , अभी भक्तों में  गिनती ।
नहीं भुलाना आज  , सुनो माता यह  विनती ।।
              <<<<<<<>>>>>>>

28 ) भावुक 
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होना भावुक तू नहीं , सुन ले हृदय अधीर ।
पड़ती कितनी भीर हो , खोना मन तू धीर ।।
खोना मन तू धीर , साफ़ है मन दर्पण सा ।
भावुक मन की चाह , मिले वर्ष समर्पण का ।
लिपटे आलस नाहिं , नहीं सपने में सोना ।
मन न कहीं तू फाँस, नहीं तू भावुक होना ।।
           %%%%%%%%%%


29 ) अविरल 
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बढ़ता अविरल मन रहे , उन्नति बढ़िया होय ।
रुकते कदम न हों कहीं , सकता बाँध न कोय ।। 
सकता बाँध न कोय , नित्य चलते ही रहना ।
अपनी गाथा पाँव , स्वयं सबसे ही कहना ।।
सदा करो तुम काम , आस को अब भी   गढ़ता ।
जला आस के दीप , रहे मन अविरल बढ़ता ।।
               ¤¤¤¤¤¤¤¤


30 ) सागर
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धारे गागर में भरे , सागर होय  विशाल । 
आशा को तू थाम ले , नहीं डराये  काल ।।
नहीं डराये काल , चले तू मन से साँचे ।
मुश्किल पाती रूप , उसे तो सुधि ही  बाँचे ।।
सुधी जनों का संग , मिले ज्ञानी जो सारे ।
बेड़ा होगा पार , मिले जो अमरित धारे ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
31.12.2019 , 5: 58 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏संशोधित 🌹🌹
[01/01 6:27 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु 
1/1/2020

              *(27)अविरल

झरना झर झर झर बहे,अविरल है जलधार ।
फेनिल जल का बुदबुदा,कहता जीवन सार।
कहता जीवन सार,जीव की गति हैं  पानी।
जैसा है परिवेश, रखे वैसी ही बानी।
रखो मधुर विचार, मान संतो का करना।
निर्मल मति से बसो, बहे जैसे है झरना ।

              *(28) सागर* 

सागर  के तुम  रत्न बनो,खारापन है गात।
अंतर मथते ही मिले, मूल्यवान सौगात ।
मूल्यवान सौगात, मोल गुण सब ही जाने।
देते है सम्मान, पदारथ को पहचाने।
कहती मधुर विचार, गुणो से भर लो गागर।
होय समागम मान,नदी मिल जाये सागर ।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[01/01 6:30 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुण्डलियाँ*
विषय ----  *अविरल , सागर*
दिनांक  ----  1.1.2020.........

(29)           *अविरल*

धारा अविरल प्रेम की , मत तोड़ो चटकाय‌ ।
टूटे से फिर नहीं जुड़े , जुड़े गांठ पड़ जाय‌ ।
जुड़े गांठ पड़ जाय , प्रेम के हो तुम साधक ।
सीखो चलो विधान , नहीं होगा कोई बाधक ।
कह कुमकुम करजोरि , अमृत हो तुम ही सारा ।
आएगा ही काम , प्रेम की अविरल धारा ।।


(30)             *सागर*

गागर में सागर भरा , पावन प्रीत प्रतीत ।
पुण्य प्रसून पिया मिले , देखो मन की जीत ।
देखो मन की जीत , पवन हो जब ही पावन‌ ।
नेह भरा हो भाव , बरसता जैसे सावन‌ ।
कह कुमकुम करजोरि , राज करेगा उजागर ।
मतलब को यूँ छोड़ , प्रेम से भर लो  गागर ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  1.1.2020........
        


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[01/01 6:33 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 01.01.2020
************
27-     अविरल
************
धारा अविरल बहें तो,
नदियों का उद्धार।
कमी न जल की रहे फिर,
बात करें स्वीकार।

बात करें स्वीकार,
बंध नदियों के खोलें।
कल-कल नदियाँ करें,
पाप हम उनमें धोलें।

"अटल" रुके जो नीर,
गंदगी बने नजारा।
रूप बिगड़ता जाय,
न मिलती अविरल धारा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏


28-      सागर 
*************
सागर जैसा दिल अगर,
सबका ही हो जाय।
सच मानो इस धरा से,
झगड़ा सब मिट जाय।

झगड़ा सब मिट जाय,
प्रेम से सब हँस-बोलें।
सुख-दुख में सँग रहें,
भेद सब मन के खोलें।

"अटल" हुए सब आज,
छलकता जैसे गागर।
प्रभुता से मद पायँ,
नहीं सबके दिल सागर।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[01/01 6:35 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -28
दिनांक -1-1-2020

विषय -अविरल 

गंगा अविरल बह रही, महिमा करूँ बखान l
पावन जल से जग हुआ, गंगा नदी महान  
गंगा नदी महान, सभी  पापों को धोती l
करती है उपकार,सदा पूजा है होती l
कहती सुनो सरोज,कभी मत लेना  पंगा l
कचरा मत यूँ डाल,
उफन जायेगी  गंगा l

 कुंडलियाँ -29
दिनांक -1-1-20

विषय -सागर 
सागर जैसा मन रखो, गहरा रखो विचारl 
नदियाँ जैसा जा  मिलो, ऐसा हो आचार 
ऐसा हो आचार, सघन तरु जैसा बनना l
मिले पथिक को छाँव, 
पीर सबकी तुम सुनना 
कहती सुनो सरोज, वारि बन रहना गागरl
करना ठंड प्रदान, बनो ऐसे तुम सागर l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[01/01 6:36 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 01/01/2020
दिन - बुधवार
27 - कुण्डलिया (1)
विषय - अविरल
**************
कलकल करती बह रही ,
                 अविरल नदिया धार ।
जीवन रक्षक नीर है ,
                  जीव जगत का सार ।
जीव जगत का सार ,
              सभी की प्यास बुझाती ।
रखना मुझे सँभाल ,
               बात सबको समझाती ।
रहूँ प्रदूषण मुक्त ,
            बहूँ फिर हरपल छलछल ।
निर्मल पावन धार ,
              बहाती सरिता कलकल ।
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28 - कुण्डलिया (2)
विषय - सागर
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बहती अल्हड़ सी नदी ,
                     तोड़ किनारे बंध ।
प्रियतम सागर से मिली ,
                       मुस्काती है मंद ।
मुस्काती है मंद ,
                 समाई उसमें जाकर ।
फूली नहीं समाय ,
              प्रेम साजन का पाकर ।
आज बुझी है प्यास ,
             खुशी से सबको कहती ।
सागर के मन भाय ,
             नदी अल्हड़ सी बहती ।।


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✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[01/01 6:38 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक 01/01/2010
%%%%%%%%%%%%%%
*अंबर*(30/12/2019की शेष)

धरती अंबर का मिलन,सदा क्षितिज पर देख ।
होती दोनों के मध्य ,एक क्षणिक सी रेख।
एक क्षणिक सी रेख,चांदनी पत्तो झरती 
नीला है आकाश,बात तारों से करती
पाखी गाती गीत ,रागिनी स्वर हिय भरती
दूर गगन की छाँव,प्रिय से मिलती धरती ।
¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶

*अंबर*
अंबर काँपे ठंड से ठिठुर रहा हर जीव ।
धरती विचलित है बड़ी,देख आकुल सजीव ।
देख आकुल सजीव ,पड़ी विपदा है भारी।
जीवन है बेहाल,बढ़ीं हैं सब बीमारी ।
मिले  क्षितिज पर भूमि ,लग रही कितनी सुंदर।
दिनकर है नाराज,दिखे जब ठिठुरा अंबर ।
( *अंबर पर दो भाव हैं कौनसा सही है ? समझ न पा रही तो दोनों भाव यहाँ प्रस्तुत हैं*)
♂♀♂♀♂♀♂♀
01/01/2020
*अविरल*
धारा अविरल बह रही,प्रेमरस सराबोर ।
पुण्य सलिला है गंगा,कहते भाव विभोर ।
कहते भाव विभोर,छिपाये सीपी मोती।
गहरे जाते डूब ,न आस्था अंधी होती।
पाखी बहती धार, गरल समेट वह सारा।
अखंड है वह राम ,बहती अविछिन्न धारा ।
♂♀♂♀♂♀♂♀
मनोरमा जैन पाखी
01/01/2020
[01/01 6:40 PM] डॉ मीना कौशल: अविरल धारा बह चली,सरिता भरी उमंग।
चट्टानों को तोड़कर,होती सागर संग।।
होती सागर संग,रंग जीवन में भरती।
हरती है दुख दैन्य,हरा करती ये धरती।।
शस्य श्यामला धरा,करे ये बहती कल कल।
कल्लोलिनी उमंग भरे,बहती है अविरल।।

सागर

सागर रत्नों से भरा,चन्द्र करे कल्लोल।
फैल रही जब ज्योत्स्ना,लहरें गोल मटोल।।
लहरें गोल मटोल,मचलता देख चन्द्रमा।
रहते जन्तु विशाल,अमिट है भाव भंगिमा।।
अमृत विष के तात ,सभी गुण के हैं आगर।
नदियाँ सभी समाय, रहीं जा करके सागर।।
डा.मीना कौशल
[01/01 6:47 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 01.01.2020

कुण्डलियाँ (27) 
विषय-अविरल
बहती अविरल धार सी,गंगा शिव के भाल।
शोभित बालों मध्य है, जटाजूटधर  जाल।
जटाजूटधर जाल,कि भोले हैं  त्रिपुरारी।
मन से कर लो ध्यान,रमा के संग मुरारी।
अनु  मन में रख भाव ,सुनासा जिह्वा रहती।
गंगाधर गिरिजा गौर,धरा पे गंगा बहती।।




कुण्डलियाँ (28)
विषय-सागर
सागर की सी नीलिमा,राधे जैसी गौर।
चमचम चमके चंचला,पाये न कहीं ठौर।
पाये न कहीं ठौर,धराधर पीछे चमके।
बादल बिजली वारि,धरा भी दमदम दमके।
सुन अनु हिय के भाव,सखी ये नटवर नागर।
जोड़ी राथेश्याम,लगे गागर में सागर।।




रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[01/01 6:49 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला 
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -01/01/2020

अविरल (27)
अविरल गंगा बह रही, ले देवी का रूप।
 मत इसको गंदा करो, माँ के है अनुरूप।।
  माँ के है अनुरूप, करो सब इसका आदर।
 कूड़ा इसमें डाल, करो मत गंदा सादर।
 कह राधेगोपाल, मनुज सब पूजे पल-पल।
 देवी का है रूप, बह रही गंगा अविरल।।

सागर (28)
 सागर की लहरें सदा, करती रहती शोर।
 पर मन को चुभती नहीं, करती सदा विभोर।।
 करती सदा विभोर, लहर है आती-जाती।
 बैठ किनारे देख, सदा ये मन को भाती।
कह राधेगोपाल, क्षणों में भरदे गागर।
 चलो किनारे आज, अरे हम देखें सागर।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[01/01 6:51 PM] +91 94241 55585: कुण्डलियां छंद
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अविरल 
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अविरल हो ये लेखनी 
            रूके ना कभी हाथ ।।

हरदम देती साथ
                हिंदी है सगी माता ।।

शारदे करे दया 
            मिले हैं बुद्धि प्रदाता ।।

दोहा छंद लिखते  
          लिखते रहते जब काव्य ।।

गद्य पद्य सभी है लिखते 
            अलंकार लिखते भव्य ।।

कहती गुल कलम तुझसे
     है अविरल ये लेखनी। ।।
🖋🖋🖋🖋🖋🖋🖋🖋कुण्डलियां छंद
  सागर

नदिया सागर से मिले ,
              लहरें हिले अपार ।।

गंगा मर्यादा रखें ,
              सागर करता प्यार ।।

सागर करता प्यार ,
               छवि देखे चांद रोता ।।

तट भी मौन देखते ,
               करें नदि से है नाता ।।

खारा पानी लिए ,
            चाहे मीठे की आशा। ।।

कहती गुल जग तुझे,  
          मतलबो  की परिभाषा

 धनेश्वरी सोनी "गुल"बिलासपुर
[01/01 6:54 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक  1 जनवरी 2020 
कलम की सुगंध सुंदर शाला 
कुंडलियां शतकवीर प्रतियोगिता हेतु

विषय (1)  *अविरल*
*अविरल*   मेरे   देश में , बहे  प्रेम  की  गंग  ।
सुख  वैभव  सौहार्द  की , जिसमें  उठे तरंग ।।
जिसमें उठे तरंग ,  जाति- मत -पथ सब भूलें।
 चढ़ें   प्रगति   सोपान, ज्ञान का अम्बर छू लें  ।। 
कहे "निगम" कविराज , रहें सतपथ पर अविचल ।
करे जगत  गुणगान , हमारा अथक व  *अविरल* ।।

विषय --  *सागर*
 *सागर* सा गंभीर बन , भर निज में  गुणरत्न ।
मिल जाएगा मान-यश , बिना किए कुछ यत्न ।।
बिना  किये  कुछ यत्न  , सिंधु से मिलती नदियाँ ।
अभिनंदन   गंभीर-  गुणों का   करती   दुनिया ।।
कहे  "निगम"  कविराज , ग्राम नर हो या नागर ।
अनुशासन का पाठ ,  पढ़ाता सबको  *सागर* ।।

कलम से 
कृष्ण मोहन निगम 
(सीतापुर) सरगुजा , छत्तीसगढ़।।
[01/01 7:00 PM] कुसुम कोठारी: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक-१/१/२०

कुण्डलियाँ (२७)

विषय-अविरल
अविरल घन काले घिरे  ,  छाये छोर दिगंत ,
भ्रम है या जंजाल है  ,  दिखे न कोई अंत ,
दिखे न कोई अंत ,  गूढ़ गहराती मिहिका ,
बची न कोई आस , त्रास में घिरी  सारिका ,
कहे कुसुम ये बात ,  राह कब होगी अविचल ,
सुनें आम की कौन ,  हुआ जग जीवन अविरल ।

कुण्डलियाँ (२८ )
विषय-  सागर
सागर में उद्वेग है , सूर्य मिलन की चाह ,
उड़ता बन कर वाष्प वो , चले धूप की राह ,
चले धूप की राह , उड़े जब मारा मारा ,
मृदु होता है फिर , झेल प्रहार बेचारा ,
कहे कसुम ये बात ,सिंधु है जल का आगर ,
कुछ पल गर्वित मेघ , फिर जा मिलता सागर ।।

कुसुम कोठारी।
[01/01 7:00 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
1/01/2020

अविरल

कविता बहती छन्द में, बन अविरल जल-धार।
अलंकार सँग भाव का, उसमें बहे खुमार।।
उसमें बहे ख़ुमार, तैरते हैं सब श्रोता।
कवियों के उद्गार, लगाते सँग सँग गोता।
शब्द-शब्द का तेज, वेग ज्यूँ होता सरिता।
बनकर अविरल धार, छन्द में बहती कविता।।

सागर--

मानव मन ऐसे लगे, जैसे सागर थाह।
जल ही जल चहुँओर है, रहते जंतु अताह।।
रहते जंतु अताह, यहीं हों सुच्चे मोती।
छिपकर बैठें सीप,चाह तो सबको होती।।
बनो स्वाति की बूँद, कभी बनना मत दानव।
जल में रहकर प्यास, सीप की देखो मानव।।
                     रजनी रामदेव
                         न्यू दिल्ली
[01/01 7:10 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*कुण्डलियाँ(२७)*
*विषय-अविरल*

गंगा गोमुख से बही,अविरल निर्मल धार।
पाप नाशिनी पावनी ,भारत का गलहार।
भारत का गलहार,बनी पहचान हमारी।
मोक्षदायिनी नदी,मनुज करनी से हारी।
कहती 'अभि' निज बात,रहे जन मन तब चंगा।
बहती कल-कल रहे,हमारी पावन गंगा।

*कुण्डलियाँ(२८)*
*विषय-सागर*

सागर सम संसार में,मानव बूँद समान।
नश्वर जीवन पे भला ,क्यों करता अभिमान।
क्यों करता अभिमान,मोह में रहता अटका।
माया में मन हार,स्वार्थ में रहता भटका।
कहती 'अभि' निज बात,बूँद से भरती गागर।
करले अच्छे कर्म,बूँद बनती है सागर।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[01/01 7:12 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर के लिए

दिनाँक- 01/01/2020

 *अविरल*

गंगा माता पावनी ,बहती अविरल धार।
भक्त लगाते डुबकियाँ, निशदिन कई हजार।
निशदिन कई हजार,भीड़ लगती है भारी।
पर्व मकर संक्रांति,नहाने की तैयारी।
कहती रुचि करजोड़,न हो अब कोई दंगा।
पूरण हो शुभ काम,बहे नित माता गंगा।



*सागर*

सागर साहिल पर सजे,सीपी शंख दुकान।
सुबह सूर्य की लालिमा,लगती रजत समान।
लगती रजत समान, झिलमिलाती हैं लहरें।
मछुआरों की नाव ,किनारे आकर ठहरें।
कहती रुचि करजोड़,ज्ञान का भरना गागर।
बूँद बूँद भंडार,बना अद्भुत यह सागर।

✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[01/01 7:26 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलिया शतकवीर हेतु* 

*दिनांक -29/12/19*

कुण्डलिया (23) 
विषय- पनघट

पनघट पर ग्वालिन गये, जब भरने को नीर।
बिना उपद्रव के सखे, मोहन धरै न धीर।।
मोहन धरै न धीर, देय मटकी सब फोड़ी।
यही उधम सब देख, सभी ग्वालिन कर जोड़ी।।
कहे प्रभो हे श्याम, करो मत इतनी खटपट।
भर लेने दो नीर, सभी आये हैं पनघट।।

कुण्डलिया (24) 
विषय- सैनिक

सोते सैनिक कब भला, है सीमा तैनात।
ठंडी बर्फानी जो रहे, सह लेते हैं घात।।
सह लेते हैं घात, बचाने खातिर हमको।
अद्भुत उनके खेल, खेलते गोली बम को।।
रखते जीवन दाँव, वीर ऐसे हैं होते।
जगते है दिन रात, बताओ कब वे सोते।।


*दिनांक -30/12/19*

कुण्डलिया (25) 
विषय- कोयल

गाती कोयल गीत जब, मन जाता है झूम।
सूने मन के देहरी, लगता एक हजूम।।
लगता एक हजूम, प्रिया की याद सताये।
कैसे धर लूँ धीर, आप भी मुझे बताये।।
बे-मौसम बरसात, कभी भी जब है आती।
कोयल भरती तान, मगन होकर के गाती।।

कुण्डलिया (26) 
विषय- अम्बर

छू लो अम्बर आप भी,ऐसा भरो उड़ान।
सबको तुम पर नाज हो, ऐसा बन इंसान।
ऐसा बन इंसान, आग है तेरे अंदर।
मत रहना अंजान, बता क्या तू है बंदर।।
मिल जाएगी जीत, नहीं डर से हाराकर।
जीतो तुम ब्रम्हांड, बताओ क्या है अम्बर।।


रचनाकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)
[01/01 7:34 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध............  कुण्डलियाँ    शतकवीर   हेतु
★★★★★★★★★★★★★★★★
विषय.............सागर
विधा .............कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★
सागर जैसा दिल हो,
                         रखो आप सम्मान।
करें करूणा दीन पर,
                         होगा तब कल्याण।
होगा तब कल्याण,
                         रखें लाज सब अकिंचन।
मानुष हित हो काज,
                              करें मत कोई क्रंदन।
पूर्ण करो सब आस,
                            बनो शील मनुज ऐसा।
होगा  जग  में  नाम,
                           दिल  हो  सागर  जैसा।
★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[01/01 7:56 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु




(27)
विषय-अविरल


ऐसी दुनिया में रहूँ ,झनक उठें मन -तार।
अविरल बहती ही रहे,सुर सरिता की धार।
 सुर-सरिता की धार,रहे मन प्यासा प्यासा।
हर पल हो रस- पान, कहे मन "और जरा सा।
कह आशा निज बात,नहीं कुछ ऐसी वैसी।
बहे अविरल रस-धार,रचूँ मैं कविता ऐसी।




(28)
विषय-सागर

सागर के तल में छिपी,अतुल संपदा खान।
ऐसा ही है मनुज मन,ज्ञानी चतुर सुजान।
 ज्ञानी चतुर सुजान, भरी मन में गहराई।
लहरें मारें ठाठ, कभी जो विपदा आई।
कह आशा निज बात,भरी रतनों से गागर।
ऊपर से सब शांत,भरा छलके मन सागर।



रचनाकार-
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[01/01 8:04 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला* 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

*दिन बुधवार 01.01.2020*

*27) अविरल*

धारा अविरल ज्ञान की, गुरु के मुख से  धार
ज्ञानामृत रसपान कर, कटे मोह के तार
कटे मोह के *तार* , *तार* लेता है जग से
गुरु ब्रह्मा साक्षात, बड़ा देवों में सब से
कह अनंत कविराय, चोट कुलाल ने मारा
वैसा ही गुरु चोट, ज्ञान की शिष पे धारा 

तार = धागा, जगत से तारना

*28) सागर*

सरिता सागर से मिली, निजकी निजता वार
आत्मा परमात्मा मिले, मिटे अहम का द्वार
मिटे अहम का द्वार, तभी हरि नर को मिलता 
ज्ञान कमल का फूल, मनुज मन में तब खिलता
कह अनंत कविराय, रखो तुम मन की शुचिता
बन जा जैसे बूँद, मिले सामर में सरिता

*रचनाकारः* 
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[01/01 8:04 PM] मीना भट्ट जबलपुर: अविरल
धारा अविरल बह रही ,लेती देख उछाल।
नदिया भी घबरा गयी,बहुत बुरा है हाल।।
बहुत बुरा है हाल,बरसता रिमझिम पानी।
टूटी मेरी नाव,नह़ी मुश्किल है जानी।।
प्रभु दे दो कुछ ध्यान,बुला मैं तुझको हारा।
 आके रोको आज,  बहे अविरल है धारा।।

                   मीना भट्ट

सागर

सागर हृदय विशाल है, है रत्नों की खान।
उपयोगी देखो बड़ा ,कर लो तुम गुणगान।।
कर लो तुम गुणगान,करो उसकी त़ो पूजा।
देता सबका साथ ,नह़ीं कोई उस सम दूजा।।
खारा पानी जान,करो कुछ नटवर नागर।
बुझे जन्म की प्यास ,बडा है सुंदर सागर।।

          मीना भट्ट
[01/01 8:07 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

.        *कलम की सुगंध छंदशाला*

.         कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.       दिनांक - 01.01.2020
.                      👀👀
कुण्डलियाँ (1) 
विषय- *अविरल*
अविरल  गंगा धार है, अविचल हिमगिरि शान!
अविकल बहती नर्मदा, कल कल नद पहचान!
कल कल नद पहचान, बहे अविरल  सरिताएँ!
चली  पिया  के  पंथ,  बनी  नदियाँ   बनिताएँ!
शर्मा  बाबू  लाल, देख  सागर   जल  हलचल!
अब  तो  यातायात, बहे  सडकों पर  अविरल!
.                    👀👀👀
कुण्डलियाँ (2) 
विषय- *सागर*
जलनिधि ही वारिधि जलधि, जलागार वारीश!
क्षीरसिंधु  अर्णव  उदधि, अंबुधि  सिंधु  नदीश!
अंबुधि  सिंधु   नदीश, समन्दर   यह  रत्नाकर!
नीरागार      समुद्र  ,   अकूपाद      महासागर!
कंपति    रत्नागार, नीरनिधि  सागर  बननिधि!
पारावार  पयोधि, नमन  तुमको  हे  जलनिधि!
👆 *सागर के 25 पर्यायवाची*
.                     👀👀👀
रचनाकार:- ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[01/01 8:08 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 27:12:19
1कुनबा
छोटा कुनबा है सही, खुश रहते सब लोग।
हृदय में न कटुता रहे,बढ़े प्रेम का योग।।

बढ़े प्रेम का योग, नहीं छल बल से नाता।
इक दूजे का साथ ,सदा हर एक निभाता।।
कहे सुधा ललकार,कथन न बिलकुल खोटा।
रखो याद यह बात,रहे नित कुनबा छोटा।।



 2:पीहर
बेटी तेरी बावरी,  डूबी पीहर याद।
भुला सकूँ नहीं तुमको ,बाबुल प्रेम अगाध।।
बाबुल प्रेम अगाध,नहीं सजना घर जाना।
आती सखियाँ याद,अँगन में धूम मचाना।।
कहे सुधा सुन आलि, मायका सुख  की पेटी।
समझो हिय के भाव, विदा तुम करो न बेटी।।

28:12:19
 1:पनघट 
पनघट  हुआ उदास है, पनिहारिन  किस देश।
नीरवता है छा गई,मन को पहुँचे ठेस।।

मन को पहुँचे ठेस, भाव ये किसे सुनाऊँ।
मैं उजड़ा वीरान,किसी के काम न आऊँ।।
दुखी सुधा है आज, हुए सोते अब मरघट।
संस्कृति है शोकार्त्त,अद्य निराश है पनघट।।


2:सैनिक
सैनिक सीमा पर खड़ा ,सजग रहे दिन रात।
देश प्रेम सब कुछ अहो ,मात पिता अरु भ्रात।।

मात पिता अरु भ्रात, घाम अति सहता सरदी।
तन पर झेले घात, बदन पर पहने वरदी ।।
करती सुधा प्रणाम, कर्म उनका यह दैनिक।
साहस का प्रतिरूप,त्याग दे जीवन सैनिक।।

*सुधा  सिंह*
[01/01 8:09 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: 31-21-2019
*भावुक*

भावुक कभी न होइए , भावुक मन अभिशाप 
भावुक ही कर बैठते , घने घोर से पाप 
घने घोर से पाप , स्वयं दलदल में फंसते 
करके भला सबका ,आप पापों में धंसते 
दे दूजों को  दान, स्वयं अपनी सुध खोवे 
भावुक मन अभिशाप , कभी न भावुक होवे ।

*विनती*

विनती मेरी है यही , हे गिरधर करतार 
मंझधार में अटक रही ,कर दो बेड़ा पार 
कर दो बेड़ा पार , दीन दाता नट  नागर 
जर्जर मेरी नाव ,बड़ा दुस्तर है सागर 
ले कर तेरा नाम ,रटती  रहूँ मैं  गिनती 
हे गिरधर करतार , करूँ मैं तेरी विनती ।
*****************************

1-1-2020

*सागर*

सागर जैसी सोच हो , सागर जैसा रूप 
सागर सी हो चाहना , उर्मि जैसी अनूप  
उर्मि जैसी अनूप ,उमड़ सागर मन आवे 
उमड़ उमड़ कर ज्वार , हृदय सागर उर लावे  
नदियां नाले लेय , बने पानी का आगर 
बड़ी बड़ाई सोच , तभी कहलावे सागर 

*अविरल* ...

ज्ञानधार अविरल बहे , रहे आलोकित मन
परोपकार उर धार कर ,खिलते रहे सुमन 
खिलते रहे सुमन ,बीज सुरभि   उड़े  मग में 
वनस्पति हरियाली, हँसती बस  रहे  जग में 
अविरल हो उत्कर्ष , ऐश्वर्य रहे अविरल 
रहे प्रकाशित चित्त , चेतना शुद्ध हो अविरल ।

सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर
[01/01 8:10 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--1/1/20*
*विधा--कुण्डलियाँ छंद*

(27)
*अविरल*
अविरल आँखों से बहे,आँसू बनकर पीर।
बेटी को करके विदा,कैसे धरते धीर।
कैसे धरते धीर,चली प्राणो से प्यारी।
सूना होता द्वार,सजी है कितनी न्यारी।
कहती अनु यह देख,प्रथा यह कैसी अविचल।
छूटा बेटी साथ,नयन बहते हैं अविरल।

(28)
*सागर*
ममता सागर से भरी,माँ जीवन की आस।
रखती है संतान को,अपने आँचल पास।
अपने आँचल पास,नहीं दुख छूने पाए।
डरता माँ से काल,कभी जो छूने आए।
कहती अनु सुन आज,अद्भुत मात की छमता।
भागे संकट शीश,मिले है माँ की ममता।

*अनुराधा चौहान*
[01/01 8:13 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 31.12.19

कुण्डलियाँ (25)
विषय- *विनती*


विनती  बारम्बार  मैं,  करती कृपा निधान।
आने वाला वर्ष ये, हो खुशियों की खान।।

हो खुशियों की खान, रहे संताप न अबसे।
हिंसा  या लहुपात,  बढ़े ये पाप न अबसे।।

पल-पल घटती उम्र, बढ़े  वर्षों  की गिनती।
सुखी कटें दिन चार,करूँ ये हरि से विनती।।


कुण्डलियाँ (26)
विषय- *भावुक*

भावुक करती साँझ वह, बीत गया जो  वर्ष।
चलते-चलते  सत्र  ने, खूब  किया  संघर्ष।।

खूब  किया संघर्ष, लुटीं सड़कों पर अस्मत।
आगजनी लहुपात, दिलों में दबती दहशत।।

बड़ा  देश  से धर्म,  वक्त था सबसे नाजुक।
बदलें कब हालात,  सोचकर होती भावुक।।


रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[01/01 8:16 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कुंडलियां शतक वीर २०२०*
*दिनांक--०१/०१/२०२०, बुधवार*
~~~~~~~~~~~~~~
*२७--अविरल*
~~~~~~~~~~~~
धारा गंगा की बहे, नित अविरल अविराम।
माता गंगा स्वच्छ हों,अति पुनीत यह काम।
अति पुनीत यह काम, अमिय सम गंगाजल है। 
पतित पावनी नाम, बहे पतिपल कल-कल है।
हरती सारे पाप,जानता भारत सारा।
कभी न रुके प्रवाह, बहे गंगा की धारा।
~~~~~~~~~~~~~~

*२८--सागर* 
~~~~~~~~~~~
सागर जैसे होत है, विविध रत्न की खान।
जल खारा जब हो गया, पा न सका सम्मान ।
पा न सका सम्मान, लोग प्यासे रह जाते।
पीने मीठा नीर, कहाँ सागर-तट आते।
मीठा नीर सँभाल, बनीं नदियाँ गुण-आगर।
ले अथाह जल-राशि,किन्तु खारा है सागर।।
~~~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"- बलिया,उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~
[01/01 8:30 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

27-विनती (31/12/2018)
विनती है प्रभु आपसे, दें ऐसा वरदान।
विनयी होकर सर्वदा, रखूँ हृदय व्यवदान।।
रखूँ हृदय व्यवदान, बनूँ मैं विमद विधानी।
विनत विमल व्यवहार, विशारद अरु विज्ञानी।।
विद्या वैभववान, नाम से होवे गिनती।
विज्ञ अमित विज्ञात, यही है प्रभु जी विनती।


28-भावुक
भावन होती भावना, भावुकता के भाव।
भावुक होते जन वही, हिय जिनके विद्राव।।
हिय जिनके विद्राव, जन्य वो अति विद्रावक।
प्रेम भाव गंभीर, भावदर्शी मनभावक।।
कहे अमित कविराज, भावबंधन यह पावन।
भावसृष्टि भावाट, भावगति भासित भावन।


29-अविरल (01/01/2020)
अविचल अविषम बस चलो, केवल अपनी राह।
मिले सफलता जब कभी, तुरत कहेंगे वाह।।
तुरत कहेंगे वाह, अनवरत चलते जाना।
चलो पथिक अविराम, कभी तुम मत घबराना।।
अड़िग अटल अवधान, अबाधक बस चल अविरल।
कहे अमित यह सार, मार्ग से हो नहिँ अविचल।।


30-सागर
सागर साधित है सदा, पयोदधि यह साधार।
नदियाँ आकर जब मिलें, कहती हैं आभार।।
कहती हैं आभार, समुंदर वक्ष विशाला।
यात्रा अथक समाप्त, सुखद जल संचित  स्याला।
कहे अमित करजोड़, जलधि वंदित है सादर।
दिखे ओर नहिँ छोर, प्रमाणित करता सागर।।

कन्हैया साहू 'अमित'
[01/01 8:33 PM] अनिता सुधीर: कुण्डलिया शतकवीर
01.01.2020 (बुधवार)

अविरल
रुकिये मत थक हार के,करिये दुर्गम पार।
अविरल जैसे मैं चलूँ ,कहे नदी की धार ।।
कहे नदी की धार ,सदा चलते ही जाना ।
सदा करो उपकार,परमार्थ में तन लगाना।।
हो कष्ट यदि अपार ,कभी नहि ऐसे झुकिये।
कर बाधा को पार ,सदा मंजिल पर रुकिये ।।

सागर
मतवाली लहरें चलीं ,करती रहतीं शोर।
उठती गिरती जा मिलीं ,सागर तट के छोर।
सागर तट के छोर,दृश्य है बड़ा विहंगम ।
नाव चली मछुआर,रहा नहि जीवन दुर्गम ।।
लहरें चूमे व्योम ,क्षितिज पर फैली लाली ।
खड़ी रहूँ दिन रात, यहीं तट पर मतवाली ।।

अनिता सुधीर
[01/01 8:35 PM] मीना भट्ट जबलपुर: शतकवीर सम्मान हेतु
कुंडलिया
विनती
करते विनती मातु से, जीवन की आधार।
विपदा ऐसी आ गयी ,होता जीवन भार।।
होता जीवन भार,रात भर रहती रोती।
कटे कहाँ है रात,सुनो अपने  में खोती। ।
कहे मीना कविराय,चरण माँ के हैं गिरते।
सफल करो सब काज ,मातु विनती है करते।।

भावुक
       कुंडलिया

माता तेरी याद में ,भावुक हूँ मैं आज।
कमी तुम्हारी खल रही,आ के हृदय विराज।।
आ के हृदय विराज ,जगत तुम बिन है सूना।
 नित्य देखता राह ,पडा दुख देखो दूना।।
रखो मातु कुछ ध्यान ,जन्म से तुझसे नाता ।
व्याकुल दिन अरु रात,तेरी याद में माता

           मीना भट्ट

अविरल
धारा अविरल बह रही ,लेती देख उछाल।
नदिया भी घबरा गयी,बहुत बुरा है हाल।।
बहुत बुरा है हाल,बरसता रिमझिम पानी।
टूटी मेरी नाव,नह़ी मुश्किल है जानी।।
प्रभु दे दो कुछ ध्यान,बुला मैं तुझको हारा।
 आके रोको आज,  बहे अविरल है धारा।।

                   मीना भट्ट

सागर

सागर हृदय विशाल है, है रत्नों की खान।
उपयोगी देखो बड़ा ,कर लो तुम गुणगान।।
कर लो तुम गुणगान,करो उसकी त़ो पूजा।
देता सबका साथ ,नह़ीं कोई उस सम दूजा।।
खारा पानी जान,करो कुछ नटवर नागर।
बुझे जन्म की प्यास ,बडा है सुंदर सागर।।

          मीना भट्ट
[01/01 8:40 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 01.01.2020

कुण्डलियाँ (27) 
विषय-अविरल
बहती अविरल धार सी,गंगा शिव के भाल।
शोभित बालों मध्य है, जटाजूटधर  जाल।
जटाजूटधर जाल,कि भोले हैं  त्रिपुरारी।
मन से कर लो ध्यान,रमा के संग मुरारी।
अनु  मन में रख भाव ,सुनासा जिह्वा रहती।
गंगाधर गिरि गौर,धरा पे गंगा बहती।।




कुण्डलियाँ (28)
विषय-सागर
सागर की सी नीलिमा,राधे जैसी गौर।
चमचम चमके चंचला,पाये न कहीं ठौर।
पाये न कहीं ठौर,धराधर पीछे चमके।
बादल बिजली वारि,धरा भी दमदम दमके।
सुन अनु हिय के भाव,सखी ये नटवर नागर।
जोड़ी राथेश्याम,लगे गागर में सागर।।




रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[01/01 9:02 PM] कमल किशोर कमल: नमन
01.01.2020
कुँडलिया प्रतियोगिता हेतु
27-
विनती
नमता विनती कर रही,दो ईश्वर वरदान।
काम हमारे देश हित,जनहित का हो ध्यान।
जनहित का हो ध्यान,गरीबों की हो सेवा।
कदम बढ़े परमार्थ,खिलायें सबको मेवा।
कहे कमल कविराज,दृष्टि में हरदम समता।
जीते हर इंसान,जोर कर कहती नमता।
28-
भावुक
भावुक होकर रच रहे,कवि कविता के छंद।
निर्धन की चर्चा करें,शब्द सरस गुलकंद।
शब्द सरस गुलकंद,फातिमा उसमें बसती।
हो मानवता वास,पंक्तियाँ बरबस हँसती।
कहे कमल कविराज, बोलियाँ उठती नाजुक।
चली नेह ले द्वार,लेखनी कवि की भावुक।
29-
अविरल
सरल विरल अविरल पवन,चले मौजिली चाल।
रखे ध्यान हर शख्स का,वन उपवन के लाल।
वन उपवन के लाल,चमन में चहक रहे हैं।
मलय पवन हर घाट,पहुँचकर महक रहे हैं।
कहे कमल कविराज,जिंदगी झिलमिल झिलमिल।
बसते इसमें प्रान,पवन है अविचल अविरल।
30-
सागर
गहरा सागर बोलता,धीर बनो हमराह।
लक्ष्य भेद होगा सरल,रहे सहारा चाह।
रहे सहारा चाहह,समर्पण मन का होवे।
बीत गया जो समय,उसे क्या कोई रोवे।
कहे कमल कविराज,धैर्य का रखिए पहरा।
मिले सफलता सदा,बनो सागर- सा गहरा।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।🌹💐👏
[01/01 9:03 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: कलम की सुगंध 
शतकवीर कार्यक्रम की कुण्डलियाँ 

1-1-2020

*सागर*

सागर जैसी सोच हो , सागर जैसा रूप 
सागर सी हो चाहना , उर्मि जैसी अनूप  
उर्मि जैसी अनूप ,उमड़ सागर मन आवे 
उमड़ उमड़ कर ज्वार , हृदय सागर उर लावे  
नदियां नाले लेय , बने पानी का आगर 
बड़ी बड़ाई सोच , तभी कहलावे सागर 

*अविरल* ...

ज्ञानधार अविरल बहे , रहे आलोकित मन
परोपकार उर धार कर ,खिलते रहे सुमन 
खिलते रहे सुमन ,बीज सुरभि   उड़े  मग में 
वनस्पति हरियाली, हँसती बस  रहे  जग में 
अविरल हो उत्कर्ष , ऐश्वर्य रहे अविरल 
रहे प्रकाशित चित्त , चेतना शुद्ध हो अविरल ।

31-21-2019
*भावुक*

भावुक कभी न होइए , भावुक मन अभिशाप 
भावुक ही कर बैठते , घने घोर से पाप 
घने घोर से पाप , स्वयं दलदल में फंसते 
करके भला सबका ,आप पापों में धंसते 
दे दूजों को  दान, स्वयं अपनी सुध खोवे 
भावुक मन अभिशाप , कभी न भावुक होवे ।

*विनती*

विनती मेरी है यही , हे गिरधर करतार 
मंझधार में अटक रही ,कर दो बेड़ा पार 
कर दो बेड़ा पार , दीन दाता नट  नागर 
जर्जर मेरी नाव ,बड़ा दुस्तर है सागर 
ले कर तेरा नाम ,रटती  रहूँ मैं  गिनती 
हे गिरधर करतार , करूँ मैं तेरी विनती ।
****************************

*अंबर*
अम्बर सिंदूरी हुआ , हुआ दूधिया चांद 
हृदय पेखरू उड़ चला , रात कालिमा फांद 
रात कालिमा फांद , उड़ा फिरे  गगन में 
लीन हृदय है आज , किसी कृष्ण लगन में 
कृष्ण आत्मा एक , सामने खड़ा दिगम्बर 
आज सभी भरमाय , देख सिंदूरी अम्बर

*सैनिक*
सीमा पर सैनिक रहे , कफ़न शीश पर बाँध 
बर्फ रेत में घूमता , अस्त्र शस्त्र कर साँध
अस्त्र शस्त्र कर साँध , कमर कस करके रहता 
लिए हाथ बन्दूक ,चौकसी करता  रहता
सहे भूख अरु प्यास , काम सब करता दैनिक 
चौबिस घण्टे रहे , व्यस्त  सीमा पर सैनिक ।

*पनघट*
पनघट से घट ले चली , पनिहारिन जब नीर 
लचक लचक कर तब चले , कटि उघारे पीर 
कटि उघारे पीर ,चुनरिया सरकी जाए 
दामन घाघर घूम , पथिक का जिया जलाए 
झाँके घूँघट ओट , अप्सरा देखे जमघट
घट में भरने नीर, गुजरी जाती पनघट 

*पीहर*
पीहर साजन से छुटे ,छुटे सभी का साथ
मन ही मन को लीलता , मिले सजन का हाथ
मिले सजन का हाथ , पिहर हो गया  पराया 
छीने सब अधिकार , खूब  फर्ज निभाया 
सारे नाते तोड़ , किया अंजाना नैहर 
अनजानों में भेज , हुआ खुश सारा पीहर ।।

सुशीला जोशी
[01/01 9:07 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 01/01/2020
कुण्डलियाँ- (27)
विषय - *अविरल*
बस में अविरल बैठ कर, सोचे लड़का आज। 
ये लड़की तो पट गई, बना अचानक काज।।
बना अचानक काज, छेड़ता धीरे धीरे। 
मोबाइल को खोल, खींचता वो तस्वीरे।।
सुवासिता का क्रोध, दिखा था फिर नस नस में। 
उड़ा दिये सब होश, लगा थप्पड़ जब बस में।।

कुण्डलिया-(28)
विषय- *सागर*  

सागर के उर में उठे ,लहर सैकड़ों आज। 
 सदा व्यर्थ व्याकुल रहे, बजे लहर का साज।। 
बजे लहर का साज , दिलासा खुद को देता। 
रहकर हरदम मौन, समाहित हिय कर लेता ।।
सुवासिता दे ध्यान ,छलकती आधी गागर। 
इतना कौन विशाल, भला जितना है सागर।।

       🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[01/01 9:42 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*दिनांक - 01/01/2020*

*अविरल*

अविरल गंगा धार है, माता की है रूप ।
कलकल करती बह रही, उनका भव्य स्वरूप ।
उनका भव्य स्वरूप, कर रहे जन जन आदर ।
सब नदियों के साथ, मिल गयी जाकर सागर ।
'रीत' कहे ये बात, राह माता का अविचल ।
पूज किनारे आज, बह रही गंगा अविरल ।

*सागर*

सागर जल खारा लगे, प्यासा है इंसान ।
भरा पुरा रहते हुए, जल का है अपमान ।
जल का है अपमान, वारि की कमी  रुलाये ।
कैसा है जंजाल, नहीं सुख साधन पाये ।
'रीत' पियासी जाय, हाथ में लेकर गागर ।
दिखते बड़े  विशाल, किन्तु खारा है सागर ।

*डॉ अर्चना दुबे 'रीत'*✍

4 comments:

  1. अति सुन्दर कुंडलियों का संकलन सर जी। सभी आदरणीयों को हार्दिक बधाईयाँ

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. व्वाहहहह...
    सादर.

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  4. लाजवाब कुण्डलियाँ..
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

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