[29/01 6:04 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुंगध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 29.01.2020 (बुधवार)
(73)
विषय - पाना
सुख पाना है जिंदगी,करते हैं सब चाह।
इसकी सबको लालसा,करे नहीं परवाह।।
करे नहीं परवाह, मेहनत सब हैं करते।
मिलते कष्ट अपार,आदमी फिर भी सहते।।
कहे विनायक राज,यूँ हि तुम भूल न जाना।
रखना दृढ़ संकल्प,उम्र भर फिर सुख पाना।।
(74)
विषय - खोना
मत खोना सम्मान को,ये तो है अनमोल।
इसे बचाना साथियों,मीठा-मीठा बोल।।
मीठा-मीठा बोल,मिलेगा स्नेह सभी से।
हो जा तू तैयार,सँजोने मान अभी से।।
कहे विनायक राज,निराशा तुम मत होना।
अपना ये सम्मान,कभी भी तुम मत खोना।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
[29/01 6:11 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*29/01/2020*
*दिन - बुधवार*
*विषय - पाना,खोना*
*विधा-कुंडलियां*
*73-पाना*
पाना है तो पा उसे,जो जीवन आधार,
हो जाये जीवन सफल, नैया उतरे पार ।
नैया उतरे पार, बहुत भवसागर गहरा।
सांसों की ये डोर, लगा इसपर भी पहरा।
कहती सरला आज, यहां बस आना जाना।
होना नहीं उदास, सोच मत खोना पाना।।
*74-खोना*
खोना पाना कुछ नहीं, ईश्वर का बस खेल।
जीवन मेला लगा है, चार दिनों का खेल।
चार दिनों का खेल,रहो मिलजुलकर सारे।
नीयत रखना ठीक,झूठ से रहो किनारे।
कहती सरला बात,सभी का एक ही रोना।
पाना चाहें आज, नहीं चाहें कुछ खोना।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[29/01 6:19 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु
65) आशा
आशा जीवन ज्योति है , करता हृदय उजास ।
होती आशा ईश सम , रख मन में विश्चास ।।
रख मन में विश्वास , खिलेगा भास्कर स्वर्णिम ।
देता नव संदेश , बनेगा जीवन मधुरिम ।।
सुनो 'धरा' की बात , पूर्ण होगी अभिलाषा ।
कसकर डोरी बाँध , टूट मत जाये आशा ।।
66). उड़ना
नीले - नीले व्योम पर ,उड़ना पाखी रीत ।
लंबी खुली उड़ान से ,लेता जग को जीत ।।
लेता जग को जीत , पखेरू पर फैलाकर ।
देता हमको सीख , उड़ो नव आस सजाकर ।।
सुनो 'धरा' की बात , स्वप्न मन में रख जी ले ।
संबल मिले अनंत , गगन में नीले - नीले ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[29/01 6:23 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु
67) खिलना
खिलना फूलों का सही , निर्धारित है काल ।
ज्यों ऋतु छटा बसंत में , सज जाती है डाल ।।
सज जाती है *डाल* , *डाल* बागों पर नैना ।
लगता सुन्दर रूप , नैन को आये चैना ।।
सुनो 'धरा' की बात , अजब मौसम का मिलना।
मन हो जाय निहाल , देख फूलों का खिलना ।।
डाल = डाली/ डालना
68). होली
आया उत्सव फाग का , होली मस्त बहार ।
मौसम छाया फागुनी , रंगों की बौछार ।।
रंगों की बौछार , हुआ मन भी रंगीला ।
बाजे ताशे चंग , चेहरा नीला पीला ।।
सुनो 'धरा' की बात , सजीला उत्सव भाया ।
मिटे हृदय का मैल , रंग लो होली आया ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[29/01 6:24 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
29/01/2020:: बुधवार
पाना
पाना हो ग़र प्यार तो, बाँटो पहले प्यार।
दुनिया मे सबसे बड़ा, होता ये उपहार।।
होता ये उपहार, न लगता पैसा धेला।
रखता है विश्वास, टूटने का न झमेला।।
बाँटे थे जो प्यार, हमारे दादा नाना।
कलयुग में वो प्यार,हुआ अब मुश्किल पाना।।
खोना--
मर्यादा खोना नहीं, है सोने की तार।
इसकी कीमत आँकता,रिश्तों का बाजार।।
रिश्तों का बाजार ,सदा इससे ही फलता।
पकड़ प्रेम की रास, सारथी बनकर चलता।।
पहुँचाता गंतव्य, जहाँ का करता वादा।।
मानो ए!! इंसान ,जरूरी है मर्यादा।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[29/01 6:24 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -73
दिनांक -29-1-20
विषय -पाना
पाना चाहो तुम अगर, सबका आशीर्वाद l
मधुर वचन ही बोलना, करना नहीं विवाद l
करना नहीं विवाद, मात की सेवा करना l
रहना उनके साथ, क्रोध से उनके डरना l
कहती सुनो सरोज, चरण चिह्नों पर जाना
करना उनका मान, प्यार उनका तुम पानाl
कुंडलियाँ -74
दिनांक -29-1-20
विषय -खोना
खोना तुम अपना नहीं, मान सम्मान आन l
इनके बिन मानव लगे,
जीते जी बेजान l
जीते जी बेजान,सदा गरिमा में रहना l
रखना नेक विचार, लाज का पहनों गहना l
कहती सुनों सरोज,नहीं आक्रोशित होना l
रखना मुख मुस्कान,मिला उसको
मत खोना l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[29/01 6:24 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
शतकवीर छंदशाला हेतु कुंडलियां
29/01/2020
पाना(73)
पाना जीवन में सदा, सबका ही तुम प्यार।
बच्चों को तो चाहिए , जीने का आधार।।
जीने का आधार, बनो आँखों का तारा।
करना अच्छे काम, बनो मत आसूँ खारा।
कह राधेगोपाल, जिंदगी कम है माना।
सबका ही तुम प्यार, सदा जीवन में पाना।।
खोना (74)
खोना मत तन को कभी, करके गंदे काम।
मात-पिता के नाम को, करना मत बदनाम।
करना मत बदनाम, नशे से दूर ही रहना।
खुश रहना हर बार, दुखों को हर दम सहना।
कह राधेगोपाल, कभी भी तुम मत रोना।
करके गंदे काम, अरे तन को मत खोना।।
राधा तिवारी' राधेगोपाल'
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[29/01 6:25 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध शाला प्रणाम
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए रचना।
डॉक्टर श्रीमती कमल वर्मा
कुंडलियाँ क्रमांक७९
विषय_पाना
पाना चाहें तू खुशी,औरों में दे बाँट।
अजब नियम कानून है,अजीब सा यह हाट।
अजीब सा यह हाट,गेंद वापस फिर आये,,
देते हीना हाथ,रंग तो खुद भी जाये।
कमल कहे सुन बात,कभी मत तुम पछताना।
रखना दानी हाथ,अगर चाहें कुछ पाना।
कुंडलियाँ क्रमांक 80
विषय_ खोना।
खोना जो तुझको पड़ें,दुख मानता शरीर।
राह कठिन तो है जरा,फिर भी कर ले धीर।
फिर भी कर ले धीर,सोच ऐ पंडित ज्ञानी।
दुनियाँ एक सराय,संग तेरे क्या जानी।
कमल कहे कर जोड़,देख काहे का रोना,
खोना मत बस धीर,पडे जो कुछ भी खोना।
कृपया समीक्षा करें।
[29/01 6:28 PM] धनेश्वरी सोनी: शतकवीर सम्मान
कलम की सुगंध
बुधवार,29/1/2020
कुण्डलिनी याँ
खोना
रोना खोना मत करें करना जानो काम ।
जीवन खुशियों से भरो, करो कहीं आराम ।
करो कहीं आराम ,लेना मत पंगा दंगा ।
सुखद क्षणों को थाम ,रहो तुम ऐसा चंगा ।
सागर मोती खोज ,मिले जब पत्थर लाना ।
चलकर सच्ची राह,थाम प्रभु हाथों रोना ।
पाना
पाना लिखा भाग्य अभी, कर्म करे सब जान ।
झूठा वादा जो करें ,मिलता फल इंसान।
मिलता फल इंसान ,सही गलत को जानता ।
चुनता हटकर राह ,कठिन पग है वह धरता ।
कमियां लाखों मान ,समझकर करते जाना ।
मंजिल मिलता जान लक्ष्य पर चलकर पाना ।
धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[29/01 6:30 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *पाना, खोना*
दिनांक --- 29.1.2020....
(73) *पाना*
पाना ही चाहा सदा , मात तात का प्यार ।
पढ़ाई इसलिए किया , कभी न मानी हार ।
कभी न मानी हार , हमेशा मंजिल पाया ।
माँ ने किया दुलार , खूब खाना मैं खाया ।
जब हो तेरा नाम , तभी तुम्हें है आना ।
करना है इक काम , सदा मंजिल है पाना ।।
(74) *खोना*
खोना था सो खो गया , आया मन को चैन ।
राम नाम भजते हुए , प्रभू मिले दिन रैन ।
प्रभू मिले दिन रैन , सदा भजना है दिल में ।
राम नाम है सत्य , कभी घुसना मत बिल में ।
कह कुमकुम करजोरि , खरा होता है सोना ।
मन में हो विश्वास , सदा भगवन में खोना ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 29.1.2020........
______________________________________
[29/01 6:33 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
मंगलवार-21.01.2020
*61)दीपक*
जलती है बाती सदा,दीपक लेता श्रेय।
ख्याति नाम सब छोड़ दो,मनुज धर्म हो ध्येय।
मनुज धर्म हो ध्येय,कर्म शुभ करते रहना।
कहते हैं सब लोग,काम है उनका कहना।
सुन वन्दू के बोल,भरम की गठरी पलती।
दिखे कि जलता दीप,किंतु बाती है जलती।।
*62)पूजा*
पूजा जप तप ध्यान से,जीवन लो संवार।
अल्प अवधि सबको मिली,मनुज बांट ले प्यार।
मनुज बांट ले प्यार,तभी तो नर तन पाया।
कर ले प्रभु का ध्यान,भरम क्यों मन में लाया।
मात पिता को मान,नहीं भगवन है दूजा।
उनको दो सम्मान,करो तुम उनकी पूजा।।
***
बुधवार-22.01.2020
*63)थाली*
थाली में रोली सजी,तिलक लगाए भाल।
मंदिर में नारी चली,रहे कुशल मम लाल।
रहे कुशल मम लाल,यही प्रार्थना करती।
बनती उसकी ढाल,धाम चारों वो फिरती।
सुन वन्दू निज भाव,बाल बजा रहे ताली।।
खुश हो जाती मातु,चली मंदिर ले थाली।।
*64)बाती*
सजना जी दीपक बनें,बाती बनती नार।
जीवन भर जलती रहे,तिमिर भगाए द्वार।
तिमिर भगाए द्वार,स्वयं का नाम भुलाती।
रह जाती गुमनाम,सभी को आगे लाती।
सुन वन्दू की बात,सदा ही पिय को भजना।
पति बिन मैं बेकार,कहे नारी सुन सजना।।
*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[29/01 6:33 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
75.पाना
पाना यदि तू चाहता, सचमुच सच्चा ज्ञान।
तो सद गुरु की शरण जा, रे मूरख नादान।।
रे मूरख नादान, मार्ग वो ही दिखलाता।
जाने को उस पार, रास्ता सुगम बनाता।।
कह अंकित कविराय,नहीं ये तथ्य भुलाना।
करना यह शुभ कार्य, ज्ञान यदि सच्चा पाना।।
76. खोना
खोना मत तुम समय को, होता समय अमूल्य।
दोबारा मिलता नहीं, दो कितना भी मूल्य।।
दो कितना भी मूल्य, लौटकर वो कब आता।
रहता वो गतिमान, अनवरत बढ़ता जाता।।
कह अंकित कविराय,मनुज मत पथ पर सोना।
करना सद उपयोग, समय को कभी न खोना।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[29/01 6:38 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - २९.०१.२०२०
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *पाना*
पाना है निर्वाण मन, कर जीवन निर्वाह।
सत्य शुभ्र कर्तव्य कर, छोड़ व्यर्थ परवाह।
छोड़ व्यर्थ परवाह, सँभालें जो मिल पाया।
और और कर टेर, कर्म का मर्म गँवाया।
शर्मा बाबू लाल, रिक्त कर सबको जाना।
दैव दुर्लभम् देह, बचा अब क्या है पाना।
•. ••••••••••
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *खोना*
खोना मत जीवन वृथा, संगी सच्चे मीत।
माँ, भाषा भू भाग के, वतन गुमानी गीत।
वतन गुमानी गीत, प्राक इतिहासी महिमा।
आन बान अरु शान,हिन्द हिन्दी की गरिमा।
शर्मा बाबू लाल, दाग मन मानस धोना।
मान धरोहर देश, नहीं आजादी खोना।
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
[29/01 6:38 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
शतकवीर कुण्डलियाँ
दिनाँक--29/1/20
73
पाना
पाना जीवन में अगर,थोड़ा सा सम्मान।
बदले में देना पड़े,छोटो को भी मान।
छोटो को भी मान,तभी खुशियाँ है मिलती।
बंजर सा हो हृदय,कहाँ फिर कलियाँ खिलती।
कहती अनु सुन बात,बड़ों से यह गुण जाना।
जिसका मधुर स्वभाव,उसी को है सुख पाना।
74
खोना
खोना पड़ता है कभी,प्यारा कोई साथ।
आँखों में आँसू भरे,मलते रहते हाथ।
मलते रहते हाथ,जरा भी जोर न चलता।
किस्मत है बलवान,ठगा हाथों को मलता।
कहती अनु सुन बात,कभी खोकर मत रोना।
जीवन इसका नाम,कभी पाना औ खोना।
अनुराधा चौहान
[29/01 6:39 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 29/01/2020
दिन - बुधवार
73 - कुण्डलिया (1)
विषय - पाना
**************
पाना सहज न जान लो , मात पिता का प्यार ।
होते ईश्वर रूप ये , जीवन के आधार ।
जीवन के आधार ,नहीं छल करना जाने ।
पाकर एक सपूत , धन्य खुद को ही माने ।
समझो इनका मोल , इन्हें मत दुख पहुँचाना ।
तुमसे केवल प्यार , चाहते हैं ये पाना ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
74 - कुण्डलिया (2)
विषय - खोना
****************
खोना मत सम्मान को , करके कलुषित कर्म ।
वस्तु बड़ी अनमोल है , समझो इसका मर्म ।
समझो इसका मर्म , व्यर्थ मत इसे गँवाना ।
खोया जो इक बार , कठिन है फिर से पाना ।
उलझी उलझी राह , पड़े मत पग पग रोना ।
मिले भले ही कष्ट , मान मत अपना खोना ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[29/01 6:43 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(73)
विषय-पाना
पाना है संसार में, अगर मान सम्मान।
करना होगा त्याग भी, इतना लीजे जान।
इतना लीजे जान ,भाग्य कर्म से खिलता।
गहरे सागर पैठ, गुणी को मोती मिलता।
कर लो अर्जित मान, परोपकार कर जाना।
बड़ा कठिन है काम, पुण्य कार्य कर पाना ।
(74)
विषय-खोना
खोना क्या आकर यहाँ, क्या लाये थे साथ।
रोते हो क्यों व्यर्थ में ,क्यों मलते हो हाथ।।
क्यों मलते हो हाथ,, कभी यह भी हो जाता ।
कुछ भावों को छोड़, सुखी मानव हो जाता।
निरख किसी की शान, तृषित ,कुंठित हो रोना।
काम क्रोध अरु लोभ, कपट का अच्छा खोना।
रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[29/01 6:45 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *29.01.2020 (बुधवार)*
73- पाना
*********
पाना तो सब चाहते, देने से इंकार।
सबके जीवन में कहाँ, बरसे सुख की धार ?
बरसे सुख की धार, क्षणिक जीवन में आता।
देता कष्ट अपार, कोई सुख जब छिन जाता।
कभी न रहता "अटल", सुनिश्चित इसका जाना।
फिर भी सबकी चाह, सदा सुख को ही पाना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
74- खोना
**********
खोना अपनों को बुरा, सदा रहे अवसाद।
छप्पन व्यंजन सामने, मगर सभी बेस्वाद।
मगर सभी बेस्वाद, याद जब भी है आती।
कोशिश करें अपार, सभी को बहुत रुलाती।
"अटल" न रखिए प्रीत, पड़ेगा क्यों फिर रोना ?
आया है सो जाय, सभी को पड़ता खोना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[29/01 6:56 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: उड़ना
Date: 29 Jan 2020
Note:
उड़ना
पंख बिना उड़ता फिरे, धरती से आकाश।
स्थिर मन रहता नही,, रहे न तन के पास
रहे न तन के पास ,हमेशा उड़ता फिरता।
उड़ना उसका काम ,सदा मनमानी करता।
शब्द मारते तीर, जा मन मे लगते डंख।
धरती से आकाश,मन उड़ता हैे बिन पंख।
शिवकुमारी शिवहरे
Title: बाती
Date: 27 Jan 2020
Note:
बाती
बाती जलकर राख थी , साध लिया हो मौन।
अपनी दुख कैसे कहे, दुख सुनता है कौन।
दुख सुनता है कौन ,हमेशा दिल ही जलता।
दीपक का हो मान, सदा मन ही मन खलता
रखे भावना नेक, किसी से कह ना पाती।
करे हमेशा त्याग, सदा से जले है बाती।
शिवकुमारी शिवहरे
Title: थाली
Date: 28 Jan 2020
Note:
थाली
थाली परसी है रखी , कभी न उसको छोड़।
भाव भरी ये भावना कभी न उसको तोड़।
कभी न उसको तोड़,तिरस्कार होता है अन्न।
दुख होता अपार, सदा मन हो जाता खिन्न।
कहे शिवा ये आज, न छोड़ो थाली खाली।
लगे हमेशा भोग, रखी परसी हो थाली।
शिवकुमारी। शिवहरे
Title: विजय
Date: 29 Jan 2020
Note:
विजय
विजय कामना के लिये, लड़ने जाते वीर।
देश,समर्पण भावना,त्याग दिया है शरीर।
त्याग दिया है शरीर,वीरगति वीरो ने पाई।
देश के लिये शहीद ,देश मे आजादी आई।
जीवन हुआ कुर्बान,होता नाम सदा अजय।
लड़ते सैनिक वीर,सदा पाता देश विजय।
शिवकुमारी शिवहरे
[29/01 7:00 PM] अनिता सुधीर: *29.01.2020 (बुधवार)*
शतकवीर
73)
पाना
पाना है मंजिल मुझे ,लक्ष्य यही अब ठान।
निष्ठा अरु समर्पण से,हो मंजिल आसान ।
हो मंजिल आसान,निडर हो कदम बढ़ाना।
बाधा होगी पार ,कभी मत तुम घबराना ।
शूल बिछे हों राह ,सदा चलते ही जाना ।
लक्ष्य यही अब एक ,मुझे मंजिल है पाना ।
74)
खोना
'खोना पाना' जाल में,उलझा है इंसान।
'जीत हार' के खेल का,रखें नया अभियान।
रखें नया अभियान,खुशी जीवन में भरना।
सुख दुख में समभाव,सदा हँसते ही रहना ।
कहती अनु यह बात ,लिखा जो!वो ही होना ।
मूल तत्व को जान ,चैन क्यों अपना खोना ।
अनिता सुधीर
[29/01 7:00 PM] डॉ मीना कौशल: पाना
पाना जग में चाहते,बहुत बड़ा ऐश्वर्य।
मन मन्थन मुरझा रहे,तनिक नहीं है धैर्य।।
तनिक नहीं है धैर्य,चाहते सम्पत्ति नाना।
रही ललाट लकीर,यही सबको समझाना।।
रहते सबके कर्म,भाग्य का दाना-दाना।
विधि हों गर अनुकूल,सफल फिर सब कुछ पाना।।
खोना
खोना जग में कुछ नहीं,मिलता यहीं प्रसाद।
पा करके सम्पन्नता,करना नहीं प्रमाद।।
करना नहीं प्रमाद,दिया सब दाता का है।
कर मन मत अवसाद,आशीष माता का है।।
रहकर भाग्य विधान,कभी मत दिन में सोना।
कर्म फलित अधिकार,नहीं जीवन में खोना।।
डा.मीना कौशल
[29/01 7:02 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२९/१/२०२०
कुसुम कोठारी।
कुण्डलियाँ (७३)
विषय-पाना
पाना अपने आप को , करना गूढ़ विचार
मन मंथन से ढ़ूढ़ना आत्म रूप आचार
आत्म रूप आचार ,झांक भीतर तक गहरा
कर निज की पहचान ,रखो प्रज्ञा का पहरा
कुसुम ज्ञान की बात ,सदा सतपथ ही जाना ।
मिटे जन्म का फेर , निर्वाण गति को पाना।
कुण्डलियाँ (७४)
विषय-खोना
सोना तो खोना सदा , सजग रहो श्रीमान ।
निज को उत्तम मानकर ,मत फूलो अभिमान ।
मत फूलो अभिमान , दृष्टि समदर्शी धरना ।
हो जग में कल्याण ,कार्य परहित में करना ।
कुसुम उच्च हो भाव , द्रव्य का मत कर रोना ।
असीम शांति के साथ , परमानंद का सोना ।।
कुसुम कोठारी।
[29/01 7:03 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक... 29/01/2020
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
विषय.. *पाना*
पाना है निज लक्ष्य तो, कर पथ सही चुनाव।
वरना व्यर्थ प्रयास ज्यों, शुष्क नदी की नाव ।।
शुष्क नदी की नाव , कहाँ वो लेकर जाए ।
कोटिक करें उपाय , लाख पतवार चलाए।।
कहे 'निगम कविराज' , वही उपलब्धि बताना।
जिस पर जग दे 'वाह', वही है सार्थक पाना ।।
विषय *खोना*
खोना हो खो जाय प्रभु, दम्भ,पिसुनता , क्रोध ।
पुण्य और यश मार्ग में, ये ही है अवरोध ।।
ये ही हैं अवरोध , बोध जिसको हो जाए ।
रूप -शक्ति -धन दंभ, हृदय से दूर भगाए।।
कहे "निगम कविराज", 'अहम् का भार न ढोना।
वैभव रूप विलास , एक दिन सब है खोना ।।
*(पिसुनता अर्थात चुकली करना)*
कलम से ..
कृष्ण मोहन निगम
सीतापुर , जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[29/01 7:17 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-29-01-020
73
विषय-पाना
पाना कुछ भी शेष नहीं,तुझको पाकर श्याम।
दर्शन देकर धन्य कर, भजती आठों याम।।
भजती आठों याम,हुई तेरी अब मीरा।
पाकर तेरी चाह, चमकती जैसे हीरा।
हो जीवन का अंत, तभी क्या तेरा आना।
तज दूँगी इहलोक, सभी विधि तुझको पाना।।
74
विषय-खोना
खोना पाना खेल है,जीतेगा सच मान।
दृढ़ निश्चय की ढ़ाल हो, हर मुश्किल आसान।।
हर मुश्किल आसान, रखे जो मन में धीरज।
निर्मलता को सोख, पंक में खिलता नीरज।।
गीता भरती ज्ञान, हृदय का कोना कोना।
देगा न फिर कष्ट, जगत में कुछ भी खोना।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[29/01 7:33 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020
29-01-2020
73--- *पाना*
पाना खोना कुछ नही , दोनो एक समान
जो खोता वह ढूंढता , पाना है सम्मान
पाना हैं सम्मान , सदा वे सोच विचारे
खो कर पाना होय , लगे सब मन को न्यारे
सतत लगाते ध्यान ,जगत में आना जाना
जीवन मरण समान , नही कुछ खोना पाना ।
74--- *खोना*...
जितना खोना भाग्य में , उतना खोते मान
मिले समय से पूर्व कब , जाने सब इंसान
जाने सब इंसान , भटकते फिर भी रहते
पाने को हर चीज , तड़पते मन की कहते
जो भी देता ईश ,ग्रहण कर लो बस उतना
कर लो बस सन्तोष, मिला तेरा था जितना ।
सुशीला जोशी।
मुजफ्फरनगर
[29/01 7:51 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 29.01.2020
कुण्डलियाँ (67)
विषय-खिलना
खिलना देखो फूल का,छाई खूब बहार।
देखो नभ भी स्वच्छ है,गूँथ बनाऊँ हार।
गूँथ बनाऊँ हार,करूँ माता को अर्पण।
छोड़ें सब दुर्भाव,भाव का करो समर्पण।
मानो अनु की बात,भुलाके सब तुम मिलना।
खुशियाँ बाँटो खूब,तभी होगा फिर खिलना।।
कुण्डलियाँ (68)
विषय-होली
होली का त्यौहार है,खूब मचाओ धूम।
बिखरा खूब गुलाल है,धरा रही है झूम।
धरा रही है झूम,सभी मिल नाचो गाओ।
उत्सव का पल आज,चलो पकवान बनाओ।
है अनु अब त्यौहार,भरें खुशियों से झोली।
ले रंगों का थाल,सखी खेलें अब होली।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
[29/01 7:59 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतक वीर कुंडलियां प्रतियोगिता
दिन-बुधवार/29--1-2020
खोना /पाना
(1) खोना
खोना सीता का हुआ, जैसे वज्रापात।
राम लखन खोजत फिरैं, खग कुल पूछत जात।
खग कुल पूछत जात, देखि व्याकुल नर नारी।
विकल भये रघुराज, पुकारत सीता प्यारी।
कह प्रमिला कविराय, खोजे प्रभु कोना -कोना।
हुआ हृदय संताप, सिया का वन में खोना।।
(2) पाना
पाना मानव देह का ,ईश्वर का वरदान।
पूजन सुमिरन भजन कर, कर लेना कल्यान।।
कर लेना कल्यान, सफल हो मानव होना।
चौरासी में भटक ,पड़े न फिर से रोना।।
कह प्रमिला कविराय, मिटे जग आना जाना।
फले यहीं झर जाय,अंत क्या खोना पाना।।
प्रमिला पान्डेय
[29/01 8:03 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंथ प्रतियोगिता शतक वीर कुंडलियां
मंगलवार/28-1-2020
(1) डोरी
डोरी बांधी नेह की, तन मन उन पर वार।
जीवन भर का मिल गया, जीने का आधार।
जीने का आधार, हो गया परिणय बंधन।
चुटकी भर सिन्दूर, बना जीवन का दर्पन
कह प्रमिला कविराय, खुशी से डोले गोरी।
झूले झूला डाल, मगन मन रेशम डोरी।।
(2)बोली
बोली ऐसी बोलिए, मन सबका ले जीत।
घुले कान मिशरी सदृश, जग बन जाये मीत।
जग बन जाये मीत, काम पल में बन जाते।
सदा मिले सम्मान,मान यश कीर्ति पाते।
कह प्रमिला कविराय , चले जब घर से डोली।
याद करे सब लोग, धिया की मीठी बोली।।
प्रमिला पान्डेय
[29/01 8:11 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 29/01/2020
कुण्डलिया (73)
विषय- पाना
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पाना कोई चाहता, जब तुमसे कुछ मीत I
तब उसका व्यवहार लख, शब्द-शब्द में प्रीत ll
शब्द - शब्द में प्रीत, बने शुभचिन्तक तेरा l
स्वार्थ सिद्धि के बाद, सदा उसने मुँह फेरा ll
कह 'माधव कविराय', गरल सम इनका गाना l
बरसाती मण्डूक, निकलते जब कुछ पाना ll
कुण्डलिया (74)
विषय- खोना
===========
खोना सच्चे मित्र का, बहुत बड़ा आघात I
पत्नी अरु भाई बिछुड़, दुर्बल करते गात ll
दुर्बल करते गात, अगर ये हों अनुगामी l
नीरस हो संसार, युवा सुत मरे सुनामी ll
'माधव' न्यायी भूप, हटे आजीवन रोना l
पैदा हुआ अनाथ, बचा शिशु को क्या खोना ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[29/01 8:22 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
29-1-2020
पाना 73
पाना चाहो गर खुशी, बाँटो पहले प्यार ।
आये फिर खुसियाँ सदा,चल कर तेरे द्वार।
चल कर तेरे द्वार,बोल बस मीठे बोलो।
वाणी हो अनमोल, सदा मधुरस ही घोलो ।
दो दिन का महमान, एक दिन तुझको जाना ।
करें भजन श्री राम, मुक्ति है तुझको पाना ।।
खोना 74
खोना पाना जिन्दगी, है तू इतना मान ।
सब कुछ उसके हाथ में, मान और सम्मान ।
मान और सम्मान, लिखा जो भी है दाता।
भजले राधे श्याम,वही है भाग्य धाता ।
तेरी क्या पहचान, तुझे है फिर क्या रोना ।
रहे विधाता हाथ,सोच क्या पाना खोना ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[29/01 8:33 PM] पाखी जैन: *शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*
29/01/2020
*विगत दिवस की शेष*
28/01/2020
*डोरी*
बाँधी है हमने यहाँ, डोरी मन्नत मांग।
तेरी खुशियों के लिए, दी है मौली टांग।
दी है मौली टांग,बुरी नजर से बचाये ।
खुशियों को भी आज,,गेह तेरे ले आये।
मन्नत की ये डोर ,खुशी की जैसे आँधी।
बड़े जतन से देख ,यहाँ हमने है बाँधी।
मनोरमा जैनपाखी
*बोली*
बोली कोयल की सुनो,मन को है हर्षाय ।
वसंत ऋतु में देव भी ,रंग रहे बर्षाय ।
रंग रहे बर्षाय,पवन चलती है होले।
कागा की पहिचान,बोल कड़वे है बोले।
पाखी गाये गीत,सब करते हैं ठिठोली
सुनके सब वो मीत ,कहें मीठी है बोली।
मनोरमा जैन पाखी
[29/01 8:34 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
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कुण्डलिया(७३)
विषय-पाना
पाना अपने लक्ष्य को,होता है आसान।
दृढ़ संकल्प रखो सदा,मन में लेना ठान।
मन में लेना ठान, धैर्य मत डिगने देना।
करना प्रयत्न सदा,नाव अपनी खुद खेना।
कहती'अभि'निज बात,लक्ष्य से भटक न जाना।
अविचल पार्थ समान,सफलता जीवन पाना।
कुण्डलिया(७४)
विषय-खोना
खोना-पाना तो सदा, दुनिया की है रीत।
जीवन को पल-पल जियो,बनो सभी के मीत।
बनो सभी के मीत,साथ में क्या ले जाना।
छूटे तन से साँस,नहीं फिर कुछ भी पाना।
कहती'अभि'निज बात,छोड़ अब रोना-धोना।
अच्छे कर लो कर्म,समय ऐसे मत खोना।
रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[29/01 8:35 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर
७३) पाना
पाना है अब तो उन्हें, मन में बस यह आस।
चौदह बरस अरण्य से, आए धर सन्यास।।
आए धर सन्यास, हठी प्रण के अनुगामी।
अलि अद्वितीय त्याग, किया वर मेरे स्वामी।।
रूखी सूखी देह, वैराग हिय में ठाना।
करती उर्मि विचार, पिया को कैसे पाना।।
७४) खोना
खोना मत निज धैर्य को, देख अरिदल विशाल।
शौर्य चित्त धरना पते, लड़ना रण विकराल।।
लड़ना रण विकराल, मरें सब असुर अधर्मी।
कहे सिया, हे राम, बचे न कोई कुकर्मी।।
दानव-दल से मुक्त, दिखे वन का हर कोना।
यही कर्तव्य, वीर, नहीं साहस तुम खोना।।
गीतांजलि ‘अनकही’
[29/01 9:03 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
दिनाँक- 28.1.2020
कुंडलिया (71) *डोरी*
डोरी बाँधी प्रीति की, थाम लिया जो हाथ।
जन्मों-जन्मों तक रहे, यूँ ही अपना साथ।।
यूँ ही अपना साथ, चलें हम कदम मिला के।
महके जीवन बाग, प्रेम के पुष्प खिला के।।
प्रांजलि के सुख चैन, नैन मत करना चोरी।
कभी न जाना दूर, तोड़ के पावन डोरी।।
कुंडलिया (72) *बोली*
बोली मीठी तोतली, श्रवण करें रसपान।
सबके मन को खींचते, ये नन्हे भगवान।।
ये नन्हे भगवान, बड़े ही चंचल नटखट।
करते कब आराम, रात-दिन करते खटपट।।
आता इनपर प्रेम, बड़ी है सूरत भोली।
बच्चे ये नादान, लुभाती मीठी बोली।।
दिनाँक- 29.1.2020
कुंडलिया (73) *पाना*
पाना सुख सुविधा सभी, सबका नहीं नसीब।
रोटी पा दो जून की, होता तृप्त गरीब।।
होता तृप्त गरीब, मिला जो आधा पौना।
सोता सुखकर नींद, धरा पर लगा बिछौना।।
ईश नवाए शीश, न माँगे कभी खजाना।
जीवन ही उपकार, उसे क्या खोना पाना।।
कुंडलिया (74) *खोना*
खोना मत अपना कभी, मानव तुम सम्मान।
धन वैभव या संपदा, होती मृदा समान।।
होती मृदा समान, मान यदि रहे न अपना।
जीवन जाता व्यर्थ, रहे मन ही मन कुढ़ना।।
प्रांजलि करो प्रयास, पड़े न कभी भी रोना।
रहता पश्चाताप, कीमती समय न खोना।।
पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[29/01 9:22 PM] +91 99810 21076: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
28/1/2020-
7-डोरी
चाहे कुछ भी बाँध ले,डोरी सबसे खास।
गाडी मोटर में करे,मानव रखते पास।।
मानव रखते पास,वस्तु को बाँधा करते।
ढ़ोते रहते माल,लाद कर जब भी भरते।।
रस्सी रखते साथ,चले अपनी ही राहे।
बढ़िया हो मजबूत,बाँधना जो हम चाहे।।
8-बोली
बोली शक्कर घोल के,वचन करे जन आप।
किसको क्या है बोलना,वाक्य रहे सब नाप।।
वाक्य रहे सब नाप,नहीं कुछ भी यूँ बोले।
मीठी हो हर बात,किसी से मुँह जो खोले।।
वाणी रहते दोस्त,बोल कहने में गोली।
शब्द रहे जब स्पष्ट,वाह कहते सुन बोली।।
राजकिशोर धिरही
[29/01 9:22 PM] +91 99810 21076: कुण्डलिया शतकवीर हेतु
9-पाना
पाना हमको चाहिए,मन में जो भी आस।
मंजिल चाहे दूर,लाना उसको पास।।
लाना उसको पास,मेहनत उतनी करना।
देख जमाना आज,किसी से क्या है डरना।।
भरना है जब पेट,रहे बढ़िया ही खाना।
दिन भर करना काम ,साम को घर में आना।।
10-खोना
खोना मत तुम मान को,जब तक चलती साँस।
इज्जत रखना देह की,वरना तन क्या माँस।।
वरना तन क्या माँस,सहे जो पल पल ताना।
जीवन भर है दुःख,नहीं अच्छा फिर खाना।।
पीकर सारा दर्द,नींद भर कैसे सोना।
निंदा वाले दोस्त,हमेसा उसको खोना।।
राजकिशोर धिरही
[29/01 10:16 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला। कुंडलिया शतकवीर सम्मान। दिन बुद्धवार, दिनांक २९/०१/२०२०*
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*७५--पाना--*
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*पाना* हो सम्मान तो, करें स्वयं सम्मान।
आप किसी का भी कभी, नहीं करें अपमान।
नहीं करें अपमान, प्रेम से सबसे बोलें।
निश्छल हो व्यवहार, गाँठ निज मन की खोलें।
ऊँच-नीच का भाव, कभी मत मन में लाना।
आप स्वयं भी प्यार, चाहते हैं यदि पाना।।
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*७६--खोना--*
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खो कर सब कुछ भी कभी, *खोना* नहीं चरित्र।
सब प्रयत्न कर के इसे ,रखना सदा पवित्र।
रखना सदा पवित्र,यही सम्मान दिलाता।
धन का नहीं महत्व, रहे वह आता जाता।
मिल सकता सम्मान, जगत में निर्धन हो कर।
मानव मृतक समान, वृत्त जीवन में खो कर।
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*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
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बहुत-बहुत धन्यवाद सुंदर समीक्षा एवं आयोजन हेतु।
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