[28/01 6:03 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 28.01.2020 (मंगलवार )
(71)
विषय - डोरी
टूटे कभी न डोर ये, बनते ये संजोग।
रिश्तें बन्धन प्रेम का, बँधे सभी हैं लोग।
बँधे सभी हैं लोग, जहां में देखो प्यारे।
कहलातें परिवार, सभी मिल रहते सारे।।
कहे विनायक राज, यहाँ कोई मत छूँटे।
प्रेम-भाव निःस्वार्थ, कभी मत डोरी टूटे।।
(72)
विषय - बोली
ऐसी बोली बोलिए,लेकर शुद्ध विचार।
मानवता मन में बसे,पूजे सब संसार।।
पूजे सब संसार, नाम अपना सब जाने।
सादा उच्च विचार,बोलना धर्म निभाने।।
कहे विनायक राज,बोल कोयल की जैसी।
वाणी मधुरस घोल,तुम्हारी बोली ऐसी।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[28/01 6:04 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*28/01/2020*
*दिन - मंगलवार*
*विषय - डोरी, बोली*
*विधा-कुंडलियां*
71-डोरी
डोरी बांधे प्रेम की,देखे पिय की राह,
दुनिया सारी छोड़ दी, साजन की बस चाह।
साजन की बस चाह, करे सांसों की गिनती।
भवसागर से पार, करो सुन लो ये विनती।
सरला कहती आज,चली साजन घर गोरी।
माया तृष्णा छोड़,प्रेम की बांधे डोरी।।
72-बोली
बोली है सबसे बड़ी ,बोलो इसको तोल।
सबका मन जीते यही, जानों इसका मोल।
जानो इसका मोल,बोल बस मीठे बोलों।
नफ़रत सारे छोड़़,सभी कड़वाहट धोलो।
कहती सरला आज, भरें प्रभु तेरी झोली।
मिलकर रहना साथ,सदा बोलो मृदु बोली।।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
[28/01 6:11 PM] धनेश्वरी सोनी: शतकवीर कुण्डलिनी याँ
कलम की सुगंध
सोमवार। 27/1/2020
डोरी
रेशम डोरी बांधकर, राखी लेकर हाथ।
उपहार देता रहता ,बहना पाता साथ ।
बहना पाता साथ ,माता बढ़कर मानता ।
धागे रिश्तों डोर,कच्ची कटती जानता ।
पावन मौली हाथ, देकर दाता बांधता
कहती गुल यह सार , निकलती धागा कोसम
खिलते सभी उपवन ,डोर है प्यारी रेशम
बोली
बोली मीठी है लगे ,बोलो मीठा बात ।
कड़वा बोली क्यों कहें, लगती सबको लात ।
लगती सबको लात ,शब्दों से होत घायल
सभी बोलते लोग ,बजती छनन छन पायल ।
बोली करे घमंड ,अकड़ते बनते टोली ।
भाषा कोमल जान ,देखकर बोलो बोली ।
धनेश्वरी सोनी गूल बिलासपुर
[28/01 6:11 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
रविवार-19-1-2020
*57)आगे*
आगे पीछे क्यों चलूँ, पिया चलूंगी साथ।
मैं तो हूँ सहभागिनी,जन्म जन्म का साथ।
जन्म जन्म का साथ,लिए हैं सातों फेरे।
रहूँ सदा सुहागन,हिय उद्गार हैं मेरे।
सुन वन्दू की बात,प्रीत के दृढ़ हैं धागे।
यम से भी लड़ जाय,रहूँ तब पिय के आगे।।
*58)सावन*
सावन बरसा जोर से, प्रमुदित हुआ किसान।
लगा रोपने खेत में,बड़ी खुशी से धान।
बड़ी खुशी से धान,दूर होगी निर्धनता।
लगे देवसम मेघ,फलित होवे कर्मठता।जागी मन मे आस,बरस होगा मनभावन।
हरियाली चहुँओर, सुहाना आया सावन।।
सोमवार-20-1-2020
*59)करना*
करना धरना कुछ नहीं, सिर्फ बजाते गाल।
बड़बोले मनुष्यों से,करता कौन सवाल।
करता कौन सवाल,पड़े प्रमाद में रहते।
छल से लेते काम,सत्कर्म कभी न करते।
बड़े आलसी लोग,खाट पर देते धरना।
क्या इस तन का मोल,जब सदुपयोग न करना।।
*60)जाना*
आना जाना है लगा,जग परिवर्तन शील।
आज जन्म कल मरण है,काल न होवे कील।
काल न होवे कील,जगत की रीत निराली।
माटी का ये गात,अमर प्रेम की पियाली।
सुन वन्दू हिय भाव,जगत का ताना बाना।
है सोचनीय बात,अजब सा आना जाना।।
*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[28/01 6:12 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
शतकवीर कुण्डलियाँ
दिनाँक--28/1/20
71
डोरी
डोरी हाथों में बँधे,बन जाती है खास।
बहना की इसमें छुपी,प्यारी-सी है आस।
प्यारी-सी है आस,कभी हमको न भुलाना।
राखी आए पास,बहन से मिलने आना।
अनु आँसू अब पोंछ,बची बस यादें कोरी।
छूटा ऐसा साथ,गिरी हाथों से डोरी।
72
बोली
बोली बोलो प्रेम की,बनते बिगड़े काम।
कड़वी बोली से सदा,होते हैं बदनाम।
होते हैं बदनाम,बढ़े रिश्तों में दूरी।
कोमल सदा स्वभाव,करे अभिलाषा पूरी।
कहती अनु सुन बात,ज्ञान से भर लो झोली।
मधुर सदा व्यवहार,अगर हो मीठी बोली
अनुराधा चौहान
[28/01 6:13 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - २८.०१.२०२०
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *डोरी*
डोरी रेशम सूत की, बनती रही सदैव।
जैसी जिसकी भावना, हो उपयोग तथैव।
हो उपयोग तथैव, प्रीत के बंध सुहावन।
बुनते फंदा जाल, करे कुछ काज अपावन।
शर्मा बाबू लाल, अन्न हित बनती बोरी।
भले भलाई बंध, नेह मय राखी डोरी।
•. ••••••••••
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *बोली*
बोली मीठी बोलना, कहते संत सुजान।
यही करे अंतर मनुज, कोयल कागा मान।
कोयल कागा मान, मनुज सच मीठा बोले।
झूठ बोल परिवेश, हलाहल मत तू घोले।
शर्मा बाबू लाल, दवा की बनकर गोली।
करती भव उपचार, घाव भी देती बोली।
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[28/01 6:14 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *28.01.2020 (मंगलवार )*
71- डोरी
********
डोरी बाँधी प्यार की, फिर कैसा इंकार ?
जब दो दिल मिल रहे हों, सहज करें स्वीकार।
सहज करें स्वीकार, जनम का बंधन बाँधो।
हो जिनसे टकराव, न हित कुछ ऐसे साधो।
"अटल" न रखिए आप, कभी आपस में चोरी।
साथ रखें यह याद, प्यार की नाजुक डोरी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
72- बोली
*********
बोली में रस घोलिए, बोल प्यार के बोल।
जिससे जो भी कह रहे, बातों में रस घोल।
बातों में रस घोल, न करिए कोई झगड़ा।
हो चाहे कमजोर, या रहे कोई तगड़ा।
"अटल" भरे वह घाव, जिसे दे कोई गोली।
देती दिल पर चोट, हमेशा कड़वी बोली।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[28/01 6:14 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -71
दिनांक -28-1-20
विषय -डोरी
डोरी से जकड़ा हुआ, सारा ही संसार
जिसको पकड़े नाथ हैं, डरना है बेकार l
डरना है बेकार,चरण में उनके रहना l
जपना उनका नाम, भक्ति में उनके बहनाl
पूछे यही सरोज,भक्ति
कब होती चोरी l
भक्त प्रभो जब एक, भाव हिय बांधे डोरी l
कुंडलियाँ -72
दिनांक -28-1-20
विषय -बोली
बोली मीठी बोलिये,बोली से ही प्रीत l
बोली ही तो घाव है, बोली मलहम मीत l
बोली मलहम मीत,जीत सबका मन लेती l
कोयल सी आवाज ,स्नेह हिरदे भर देतीl
कहती सुनो सरोज,लगे जैसे मधु घोली l
मिटते सब संताप,सुनें जब मीठी बोली l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[28/01 6:14 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 28/01/2020
कुण्डलिया (69)
विषय- साजन
==========
साजन तेरे प्यार में, बहिन, बन्धु, माँ, बाप I
सबको तज मैं आ गई, करूँ तुम्हारा जाप ll
करूँ तुम्हारा जाप, सकल दुनिया हो मेरी I
तुमसे ही श्रृंगार, परम पावन पग चेरी ll
कह 'माधव कविराय', नहीं अर्धांग विभाजन l
उन्नति की गति तेज, पकड़ मेरा कर साजन ll
कुण्डलिया (70)
विषय- सजना
==========
सजना सजना के लिए, दिल को भाए खूब I
मधु मधुरम मुस्कान में, नख शिख जाती डूब ll
नख शिख जाती डूब, मुझे जब पास बुलाते l
आलिंगन मुख चूम, बदन मेरा सहलाते ll
कह 'माधव कविराय', अजब साँसों का बजना l
कामदेव उत्कर्ष, अलौकिक सुख दे सजना ll
कुण्डलिया (71)
विषय - डोरी
=========
डोरी सा मुखिया भला, बाँधे वंश समेट I
लघु,मोटी,पतली, बड़ी, सब लकड़ी से भेंट ll
सब लकड़ी से भेंट, बड़ा सा गट्ठर बनता l
नहीं ढील, नुकसान, लपेटे खुद भी तनता ll
कह 'माधव कविराय', कल्पना मत यह कोरी l
कुछ तो मानव सीख, सिखाए तुमको डोरी ll
कुण्डलिया (72)
विषय - बोली
==========
बोली बोलो कोकिला, हरलो सबका ध्यान I
वर्ण,जाति खुद ही मिटे, तुमसे लें सब ज्ञान ll
तुमसे लें सब ज्ञान, भुला दें रट्टू तोता l
सुन्दरता क्या अर्थ, उमर पिंजरे में खोता ll
कह 'माधव कविराय', चलाओ क्यों मुख गोली l
मित्र - शत्रु निर्माण, कराए तेरी बोली ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[28/01 6:21 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
कुंडलियाँ शतक वीर हेतु
दिनाँक -28 /01 /2020
कुंडलियाँ
विषय -डोरी
डोरी मेरे प्रेम की,बाँध जरा मजबूत।
झटके से मत तोड़ना ,ये हैं कच्चे सूत।।
ये हैं कच्चे सूत ,जरा विश्वास दिखाओ।
पड़ जाए जब गाँठ,इसे धीरे सुलझाओ।।
कहे 'निरंतर' बात, निकट आ जाए गोरी।
प्रेम और सौहार्द ,कभी टूटे मत डोरी ।।
बोली
बोली मेरे देश में, बोले कई प्रकार ।
अपने -अपने रंग हैं,अपनी है झंकार।।
अपनी है झंकार ,मधुर सरगुजिहा भाये।
हैं मिट्टी के लोग, भाव मुखड़े पे लाये।।
कहे 'निरंतर' आज ,सुनो दुनिया है डोली।
हिंदी के ये पूत ,बड़ी मीठी है बोली।।
अर्चना पाठक 'निरंतर'
[28/01 6:24 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
73. डोरी
डोरी थामे हाथ में, जो बैठा है दूर।
वही नाचने को हमें, करता है मजबूर।।
करता है मजबूर, बहुत वो कुशल मदारी।
उसकी इच्छा मात्र, नाचती दुनिया सारी।।
कह अंकित कविराय, हमारी मति है भोरी।
समझे नहीं रहस्य, हाथ किसके है डोरी।।
74. बोली
बोली मीठी बोलकर, हरो जगत संताप।
जड़, चेतन सबके लिए, बन जाओ प्रिय आप।
बन जाओ प्रिय आप,लोग सुनकर सुख पाएं।
मुरझाये जो पुष्प, हृदय के वे खिल जाएं।।
कह अंकित कविराय,बनें हमसब हमजोली।
बालक, वृद्ध, जवान, बोलकर मीठी बोली।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[28/01 6:30 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 28/01/2020
दिन - मंगलवार
71 - कुण्डलिया (1)
विषय - डोरी
**************
डोरी बाँधो प्रीत की , लेकर इक विश्वास ।
नाजुक होती है बड़ी , लेकिन बंधन खास ।
लेकिन बंधन खास ,बाँधती है जग सारा ।
रहे न ईर्ष्या द्वेष , प्रेम की बहती धारा ।
प्यार बिना बेकार , लगे है दुनिया कोरी ।
मन से मन के बंध , बाँधती यह शुभ डोरी ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
72 - कुण्डलिया (2)
विषय - बोली
****************
बोली ऐसी बोलिए , बन जाएँ सब मीत ।
वशीकरण यह मंत्र है , लेता है मन जीत ।
लेता है मन जीत , द्वेष का भाव मिटाता ।
कोमल शब्द अनूप , हृदय को अति हरषाता ।
झूठा कर्कश बोल , लगे है जैसे गोली ।
भरिए सबके घाव , बोलिए मीठी बोली ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[28/01 6:36 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
*(71)डोरी*
सावन झूला पड गए,डोरी रेशम बाँध।
भैया झूला बाँधता, बहना बैठी काँध।
बहना बैठी काँध,पुकारे सखियाँ आजा।
झूला झूले आज,बाँधता भैया राजा।
मची मधुर मनुहार, ठिठोली है मनभावन।
छेड़े कजरी तान,लगा सोलहवां सावन।
*(72)बोली*
बोली मीठी बोलिए,कोयल की सी कूक।
कटुक वचन छलनी करें, जिया मचायें हूक।
जिया मचायें हूक, कटारी सी है लगती।
सभी बिगाड़े काज,चेतना जड हो जगती।
बोल मधुर तम बोल,चाशनी सी सम गोली।
खींचे सबका ध्यान,मान दे मीठी बोली।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[28/01 6:42 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: मेला
Date: 28 Jan 2020
Note:
मेला
मेला देखन मै चली, सब सखियों के साथ।
सजी धजी सब है सखी, चूड़ियाँ पहनी हाथ
चूड़ियाँ पहनी हाथ, सभी मिल झूला झूले।
लगी सभी दुकान,देखकर मन मे फूले।
बहुत अधिक है भीड़, भरा नरनारी ठेला।
माँ गंगा के घाट, लगे हरवर्ष है मेला।
शिवकुमारी शिवहरे
Title: बिखरी
Date: 28 Jan 2020
Note:
बिखरी
बिखरी सतरंगी छटा, उदय हुआ दिनमान।
मधुवन फूलों से खिला,कोयल गाती गान।
कोयल गाती गान, निखरी सुबह की धूप
भौरो करे गुंजार, मनभावन लगता रूप ।
देख शिवा ये आन, धरा है सुंदर निखरी।
सतरंगी आकाश,छटा है सुंदर बिखरी।
शिवकुमारी शिवहरे।
Title: दीपक
Date: 27 Jan 2020
Note:
दीपक
जलता दीपक देख के, बाती रहे उदास।
रात भर जलती रही, दीपक होता खास।
दीपक होता खास, सदा से जलती आई।
दीपक है आधार, हमेशा सदा सहाई।
तम होये हो दूर, अँधेरा सब को खलता।
होती है जब शाम, दीपक सदा ही जलता।
शिवकुमारी शिवहरे
Title: पूजा
Date: 27 Jan 2020
Note:
पूजा
पूजा जब भी करो, मन मे रखो भाव।
प्रेम समर्पण भावना,पूजा मे हो चाव।
पूजा मे हो चाव, तुम करो प्रभु का बंदन।
चाँवल कुमकुम धूप, सदा लगा भाल चंदन।
संकट मोचन राम, कोई नही है दूजा।
मन मे हो विश्वास, सदा किया करो पूजा।
शिवकुमारी शिवहरे
[28/01 6:46 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
दिनाँक 25.1.2020
कुंडलिया(67) *खिलना*
खिलना कलियों का भरे, अंतर में अनुराग।
लगी खेलने तितलियाँ, संग सुमन के फाग।।
संग सुमन के फाग, महकता मधुमय चंदन।
उर में भरे उमंग, भ्रमर भी करते गुंजन।।
मिला ताल से ताल, सुखद पत्तों का हिलना।
दुर्लभ है ये दृश्य, दिव्य कलियों का खिलना।।
कुंडलिया (68) *होली*
बरसाने चलना सखी, देखें फागुन रंग।
लट्ठमार हैं खेलते, होली अद्भुत ढंग।।
होली अद्भुत ढंग, रंग मौसम में घुलते।
उड़े प्रेम गुलाल, ढाल ले ग्वाले जुड़ते।।
परंपरा प्राचीन, निभाते छोरे छलिए।
लेना है आनंद, चलो बरसाने चलिए।।
दिनाँक - 27.1.2020
कुंडलिया (69) *साजन*
जबसे अनबन हो गई, बैरी साजन संग।
उनके बिन सुन री सखी, जीवन है बेरंग।।
जीवन है बेरंग, सिसकियाँ कर दी अर्पण।
फीका हर श्रृंगार, नहीं भाता है दर्पण।।
रूठी प्रांजलि प्रीति, चुराते अँखियाँ हमसे।
बंद हुआ संवाद, पिया से अनबन जबसे।।
कुंडलिया (70) *सजना*
सजना -धजना छोड़ के, लिया जोगिया वेष।
श्याम भजन गाती फिरे, नहीं किसी से द्वेष।।
नहीं किसी से द्वेष, मगन हो मीरा रानी।
बैठी संतों पास, सुने वह हरि की बानी।।
प्रांजलि ऐसा प्रेम, नहीं अब मोहन तजना।
नहीं दूसरा मीत, तुम्ही मीरा के सजना।।
पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[28/01 6:47 PM] अनिता सुधीर: शतकवीर हेतु कुंडलिया
28.01.2020 मंगलवार
डोरी
डोरी नटिनी साधती, प्राण कष्ट में डाल।
दो रोटी की आस में ,जीवन है बदहाल।।
जीवन है बदहाल,.कहाँ अब इन्हें सहारा l
पापी पेट सवाल,नहीं ढकता तन सारा ll
ताली बजते हाथ,दिखाती करतब गोरी।
लिये भरण का भार,रखें बल्ली अरु डोरी ।।
बोली
बोली क्यों है विष भरी,तोल मोल के बोल।
बात करें अब नीति की,बिगड़ा है माहौल ।
बिगड़ा है माहौल ,सुधारें मिल कर नेता ।
अपनी ढपली राग ,बजा !ये बनें चहेता ।
पीछे छूटा देश ,बनाई अपनी टोली ।
अपने हित को साध ,बोलते कड़वी बोली।।
अनिता सुधीर
लखनऊ
[28/01 6:49 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध शाला प्रणाम
डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए
रचना।
कुंडलिया क्र.75
विषय डोरी
डोरी मीठे बोल है,देती जो दिल जोड़।
कोई रहता कष्ट में,जीवन के उस मोड।
जीवन के उस मोड़,पलट दे राहें मन की,
भागे फिर अवसाद,टलें विपदा उस तन की। कहे कमल कर जोड़,करो मत जोरा जोरी।
लगा प्रेम से अंग, बांध दिल को बिन डोरी।।
कुंडलिया क्र.76
विषय_बोली
बोली ऐसी बोलिए,मीठे लगते बोल।
सहला देते कष्ट को गाँठें मन की खोल।।
गाँठें मन की खोल,आप संस्कार दिखाती,
दंभ दर्प के बोल,कहाँ है तेरी थाती।।
कहे कमल कर जोड़,शब्द लग जाते गोली।
बने सुलभ सब काम,बोल तू मीठी बोली।। कृपया समीक्षा करें ।
[28/01 6:51 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक 28/01/2020
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
विषय *डोरी*
डोरी' निज ग्रीवा कसे, लोटा उतरे कूप ।
भर लाए जल अमिय सा, पिये प्रजा या भूप ।।
पिये प्रजा या भूप, श्रेय कब डोरी चाहे ।
लोटा की वह मीत , न छोड़ें प्रीति सराहे।।
"निगम" न समझो मात्र, कि यह होती है कोरी।
जीवन की शुभ नीति , सिखाती हमको डोरी ।।
विषय *बोली*
बोली' होनी चाहिए, आकर्षक - मृदु- मंजु ।
बोली वह कैसी भला , हो न जो कि उर-रंजु।।
हो न जो कि उर-रंजु ,हृदय को चुभे निरंतर ।
कर दे सब से दूर , प्रदूषित हो अभ्यंतर ।।
"निगम" न बोलो बोल , तीक्ष्ण जैसे हो गोली ।
स्वत्व-भाव आपूर्ण , प्रभावित करती बोली।।
कलम से
*कृष्ण मोहन निगम*
सीतापुर, जिला सरगुजा छत्तीसगढ़
[28/01 7:05 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
28/01/2020::मंगलवार
बोली
बोली मन को मोहती, करती आत्म-विभोर।
चीं चीं करती आ रहे, गौरैया जब भोर।।
गौरैया जब भोर, फुदकती आकर आँगन।
आज हुई मजबूर, लगी है आश्रय माँगन।।
खत्म हुए सब विपिन,निराश्रय ये हमजोली।
खूब लगाओ वृक्ष, सुनाएगी फिर बोली।।
डोरी
डोरी तोड़ी नार ने, झटके से झझकोर।
कठपुतली बनती नहीं, समझ नहीं कमजोर।
समझ नहीं कमजोर, वक्त से कभी न हारी।
बँधी प्रेम की डोर, उसे मत मान बेचारी।।
भरती जब परवाज़,गगन को छूती गोरी।
जब वो बने पतंग, बनो तुम उसकी डोरी।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[28/01 7:07 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 28/01/2020
कुण्डलिया- ( *71*)
विषय - *डोरी*
डोरी में दी ढील जब , बिगडा़ खुद का लाल।
हालत देख किशोर की , बदली इनकी चाल।।
बदली इनकी चाल , नही ये माने कहना।
पीते नित्य शराब , कष्ट पड़ता है सहना।।
सुवासिता दे ध्यान , आँख की पकड़ी चोरी।
मात पिता बन मित्र , कसो ये ढीली डोरी।।
कुण्डलिया -( *72*)
विषय - *बोली*
बोली ऐसे बोलिए , मन को ले जो जीत।
दुख में जब जब पग पडे , साथ चले हर मीत।।
साथ चले हर मीत , काम संयम से लेते।
कटु वाणी तो आज , तोड़ रिश्ते को देते।।
सुवासिता जब झूठ , बोल देती जो भोली।
जीवन में सब कष्ट , खड़े करती है बोली।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[28/01 7:11 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-28-01-020
71
विषय-डोरी
डोरी टूटी साँस की, मुक्त हुआ तन जीव।
उड़ चला हरि धाम को, लेटा है निर्जीव।।
लेटा है निर्जीव, इसे है केवल जलना।
जलकर बनता राख, तभी माटी में मिलना।।
झोली भर सत्कर्म, नहीं अधर्म की बोरी।
पछताएगा मीत, समझ मत वश में डोरी।।
72
विषय-बोली
बोली में घुलती सुधा, हिय आनंद अपार।
पीते हैं हम कान से, शीतलता आधार।।
शीतलता आधार, सभी को वश में करती।
सर्व दिशा सम्मान, जहाँ ये विचरण करती।।
कड़वाहट भरपूर, वहाँ रुधिर की होली।
भाईचारा सींच, सदा रसमय हो बोली।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[28/01 7:20 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
70
डोरी
ड़ोरी कहती है सुनो, सब डोरी से खास।
भइया के हाथों बँधी, देखो सावन मास ।
देखो सावन मास, प्रीत तुम सदा निभाना।
राखी का त्योहार, सदा मेरे घर आना ।
बहना माँगे आज, बैठ दोऊ कर जोरी ।
लिये सजा कर थाल,मिठाई रेशम ड़ोरी ।।
बोली 71
बोली में रस घोलिये,कटुक वचन मत बोल ।
वाणी देते घाव है, बोली पहले तौल ।
बोली पहले तौल, ठोस दिल पर न लगाना ।
अपने होते गैर, प्रीत की रीत निभाना ।
दो दिन जीवन मान, प्रेम की भरलो झोली ।
हर दिन है त्योहार, बोल हो मीठी बोली ।।
केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[28/01 7:21 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(71)
विषय-डोरी
डोरी कई प्रकार की, अलग-अलग हैं काम।
उनको लो जिस रूप में ,उसी रूप में नाम।
उसी रूप में नाम , कभी डोरी अनुशासन।
कभी प्रेम की डोर, छुड़ाए नृप सिंहासन।
बँधी डोर की पाश, बनी चातक सी गोरी।
रखती जग को बाँध, यही अनजानी डोरी।
(72)
विषय-बोली
बोली ऐसी बोलिए ,जैसे झरते फूल।
मीठी बोली फूल है, कड़वी बोली शूल।
कड़वी बोली शूल, घाव मन को दे जाती।
कितना करो उपाय ,नहीं मिठास रह पाती।
नहीं सके है लौट ,ज्यों बंदूक की गोली।
बोलें बहुत संँभाल ,बड़ी अमोल है बोली।
रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[28/01 7:26 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु
थाली 63)
थाली व्यंजन से सजे , विविध - विविध पकवान ।
थाली कई प्रकार के , बाँट दिये भगवान ।।
बाँट दिये भगवान , किसी की थाली श्रम की।
छीना झपटी जोर , कहीं रिश्वत से चमकी ।।
कहे "धरा" कर जोड़ , बात मत जाये टाली ।
निर्धन हो या दीन , भरी हो सबकी थाली ।।
बाती 64)
बाती दीपक में जले , मिला प्रेम का तेल ।
आधे दूजे के बिना , अनुपम जगमग मेल ।।
अनुपम जगमग मेल , चले कर जग उजियारा ।
रिश्ता सुखद अटूट , जन्म का बंधन न्यारा ।।
सुनो धरा की बात , दीप से ही द्युति आती ।
जीवन साथी साथ , रहें ज्यों दीपक बाती ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[28/01 8:05 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
शतकवीर हेतु कुंडलियां
28/01/2020
बोली(71)
बोली भाषा प्रेम की, समझो आे नादान।
जीवन जीना भी नहीं, है इतना आसान।।
है इतना आसान, रहो आपस में मिलकर ।
जैसे महके फूल, सदा बगिया में खिलकर।
कह राधेगोपाल, नहीं बन इतनी भोली।
समझो ओ नादान, प्रेम की भाषा बोली।।
डोरी (72)
डोरी बाँधू प्रीत की, मैं साजन के साथ।
साथ हमारा तो रहे, हरदम ही निस्वार्थ।
हरदम ही निस्वार्थ, रहे बंधन का जाला।
ईश्वर ने तो यहाँ, सभी का संकट टाला ।
कह राधेगोपाल, अरे मैं सीधी गोरी।
साजन जी के साथ, प्रीत कि बाँधू डोरी।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[28/01 8:12 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर
दिनांक २८/०१/२०
(७१) डोरी
डोरी बंधी है प्रीत की, साजन तोरे संग।
कितना भी हम दूर हों, कभी न होवे भंग।।
कभी न होवे भंग, रहे दृढ़ बंधन अपना।
अवध मैं तुम अरण्य, भाग्य दोनों के तपना।।
निस दिन ध्या कर ईश, कुशल मनायुँ में तोरी।
दें वर मुझको देव, रहे अटूट यह डोरी।
(७२) बोली
बोली हँस कर दानवी, हे वनवासी वीर।
छवि तव मोहे भा गयी, हृदय न पाता धीर।।
हृदय न पाता धीर, करो मत अब तुम देरी।
दक्षिण दिश में द्वीप, वहीँ लंका है मेरी।।
सुवर्णमयी अतुल्य, लूट लो निधि अनमोली।
पकड़ो मेरा हाथ, शठा शूर्पनखा बोली।।
गीतांजलि ‘अनकही’
[28/01 8:14 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
कुंडलिया(७१)
विषय-डोरी
डोरी बाँधो प्रेम की,रहो घृणा से दूर।
संबंधों की डोर से,अहम सदा हो चूर।
अहम सदा हो चूर,मिटे मतभेद हमारे।
डोरी प्रेम प्रतीक,पिरो दो मोती सारे।
कहती'अभि'निज बात,सूत की डोरी कोरी।
रक्षा सूत्र प्रतीक,बँधी दृढ़ता से डोरी।
कुंडलिया(७२)
विषय-बोली
बोली कड़वी तीर सी,देती ऐसा घाव।
रिश्ते-नाते टूटते,नीरस होते भाव।
नीरस होते भाव,घृणा घर करती मन में।
बोली मीठी सदा,प्रेम भरती जीवन में।
कहती'अभि'निज बात,बनो मत इतनी भोली।
कटुक वचन को त्याग,रखो मिश्री सी बोली।
रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[28/01 8:29 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला कुंडलिया शतकवीर आयोजन।दिन--मंगलवार, दिनांक--२८/०१/२०२०*~~~~~~~~
*७३--डोरी*
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बाँधी डोरी प्रीति की, थामा जिसका हाथ।
माना है प्रियतम जिसे, रहना उसके साथ।
रहना उसके साथ, सात जन्मों का नाता।
पति- पत्नी संबंध, बना ऊपर से आता।
तोड़ न पाए डोर, दुखों की भीषण आँधी।
ईश्वर ने मजबूत, प्रीति की डोरी बाँधी।।
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*७४--बोली*
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बोली मीठी बोलिये,
रखिये मृदु व्यवहार।
मन में नफरत हो नहीं, सबसे करिए प्यार।
सबसे करिए प्यार, चार दिन का है जीवन।
जाएगा जग छूट, बन्द होते ही धड़कन।
लगते हैं कटु बैन , नीम की जैसे गोली।
मन को लेती जीत, प्रेम की मीठी बोली।।
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*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
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[28/01 8:31 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 28.01.2020
कुण्डलियाँ (63)
विषय-थाली
थाली भावों से भरी,चाहे कम पकवान।
हो अर्पण बस भाव का,दो आगत को मान।
दो आगत को मान,परंपरा ये हमारी।
दो जितनी सामर्थ्य,भावना शुभ तुम्हारी।
अनु की मानो बात,न जाये आगत खाली।
आगत जानो देव,भरी भावों से थाली।।
कुण्डलियाँ (64)
विषय-बाती
बाती जलती दीप में,कहे दीप लो मान।
हूँ तेरा अस्तित्व मैं,तू मेरी पहचान।
तू मेरी पहचान,प्रीत में तेरी जलती।
चाहूँ मैं कब नाम,हृदय में तेरे पलती।
अनु सुन बाती बात,न दूरी मुझको भाती।
जब तक रहती साँस,संग दीपक के बाती।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 28.01.2020
कुण्डलियाँ (65)
विषय-आशा
आशा से संसार है,आशा जीवन सार।
आशा मत दो टूटने,आशा देती तार।
आशा देती तार, छँटें फिर दुख के बादल।
आशा रहे न साथ,निराशा कर दे पागल।
अनु का कहना मान,न छाये कभी निराशा।
जीवन है अनमोल,कभी मत तोड़ो आशा।।
कुण्डलियाँ (66)
विषय-उड़ना
उड़ना है आकाश में,बेटी कहती आज।
मेरे पर मत काटना,पहनूँगी फिर ताज।
पहनूँगी फिर ताज,करूँगी पूरा सपना।
कदम न मेरे रोक,यही है जीवन अपना।
कहती अनु ये बात,जड़ों से अपनी जुड़ने।
उनमुक्त गगन राह,चाह है मेरी उड़ना।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
[28/01 8:39 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२८/१/२०२०
कुसुम कोठारी।
कुण्डलियाँ (७१)
विषय-डोरी
डोरी गूँथों सूत की ,सूत-सूत मिल एक ।
एक एक मिलते तभी ,काज सभी हो नेक ।
काज सभी हो नेक , बढ़े आपस में नाता
बढ़ता सद्व्यहवार , मनुज सुख साधन पाता ।
कहे कुसुम सुन बात , काम की करों न चोरी ।
मिलजुल रहना साथ ,प्रीत की बाँधों डोरी ।।
कुण्डलियाँ (७२)
विषय-बोली
बोली मीठी बोलिये , नहीं लगेगा मूल्य ।
जो मृदु भाषा बोलते , लगे शहद के तुल्य ।
लगे शहद के तुल्य , सभी से पाते आदर ।
बोल बोलते मंजु , ओढ़ सत्संगी चादर ।
कहे कुसुम सुन भद्र, बांध शब्दों की मोली ।
बैण सुधारे काज , बोल बस मीठी बोली ।।
कुसुम कोठारी।
[28/01 8:43 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *डोरी, बोली*
दिनांक --- 28.1.2020....
(71) *डोरी*
डोरी बाँधी प्रेम की , मैं कान्हा के संग ।
मीत सदा वो ही बने , प्रेम चढ़ेगा रंग ।
प्रेम चढ़ेगा रंग , नित्य कान्हा ही भजती ।
लगन लगी है कृष्ण , गोपियाँ सब हैं हँसती ।
कह कुमकुम करजोरि , प्रेम मतकर बरजोरी ।
हो जाता है प्रेम , नेह से बाँधो डोरी ।।
(72) *बोली*
मीठी बोली बोलना , दिल को लेना जीत ।
स्नेह सुधा मिलता रहे , मिल जाए मन मीत ।
मिल जाए मन मीत , सदा तुम सच ही बोलो ।
सुंदर होगा देश , वचन में मिश्री घोलो ।
खिले सदा मन प्रीत , वचन मत कहना झूठी ।
बोली से लो जीत , लगे दुनिया तब मीठी ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 28.1.2020......
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[28/01 8:43 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला
शतकवीर हेतु कुण्डलियाँ
25/01/2020
*होली*
आई फागुन ऋतु सजन,खेलें होली आज ।
गायें मिल कर फाग हम,और रचाये रास।
और रचायें रास,रंग सच्चा ही डालो।
झूठ कपट सब छोड़,प्रीत रंग,रंग डालो।
न्यारा यह त्यौहार,मिलाये सबको भाई ।
चमके मुखड़ा रंग,देख होली है आई।
पाखी
26/01/2020
*साजन*
करती साजन अनुकरण,रहे हाथ में हाथ।
शामिल खुशियों में रहूँ,और दुखों में साथ ।
और दुखों में साथ,साथ लगता ये प्यारा ।
साजन तेरा प्रेम,मुझे लगता है न्यारा।
मेरा यह संसार,ललाट बिन्दिया सजती।
अधरों धर मुस्कान, इंतजार सजन करती ।
पाखी
*सजना*
सजती सजना के लिये ,करके सोलह श्रृंगार ।
अधरों पर मुस्कान थी, कजरा पैनी धार।
कजरा पैनी धार,चले जिया पर कटारी।
देखो आधी रात,पिया चढ़े हैं अटारी।
धर मीठी मुस्कान,अधर है घायल करती।
अद्भुत है श्रृंगार,सजन पाखी है सजती।
मनोरमा जैन पाखी।
[28/01 8:47 PM] रवि रश्मि अनुभूति: ****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
कुण्डलिया शतकवीर
67 ) साजन
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सजना के लिए सजना , श्रृंगार मुझे भाय ।
नैनों में रहे कजरा , बिंदिया शीश लुभाय ।।
बिंदिया शीश लुभाय , मधुर हैं गान हमारे ।
सजना मिलन में आज , सुनो तो हृदय पुकारे ।।
आ रहे पिया आज , शुरू है ढोल बजना ।
खड़े हम सजा रूप , सुनो तो आये सजना ।।
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68 ) सजना
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सजना मेरे अब सुनो , सजना सुन्दर आज ।
करना अभी इंतज़ार , करके सारे काज ।।
करके सारे काज , बैठे हम अभी द्वारे ।
आओ वापस आज , बने रहो अब सहारे ।।
सजना बस तेरे संग , शुरू हुआ ढोल बजना ।
सजना साजन सोच , अभी है साजन सजना ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
27.1.2020 , 8:35 पीएम पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[28/01 9:15 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।
28.01.2020
75-डोरी-
डोरी भैया प्रेम की,सदा राखिए साथ।
बहना के ऊपर रहे,बड़े भाई का हाथ।
बड़े भाई का हाथ,सदा वरदानी रहता।
सुख का होता वास,दुखों का प्रस्तर ढहता।
कहे कमल कविराज,कि बंधन सच्चा जोरी।
निडर बढ़ी विरान,सुरक्षा करती डोरी।
75-बोली
बोली गोली से बढ़ी,जो दिल करती घाव।
सरल सहजता बोलिए,बिना दिखाये ताव।
बिना दिखाये ताव,बोलिए मीठा- मीठा।
झलके प्रेम दुलार,लिए जैसे सतरीठा।
कहे कमल कविराज,चल रही साथी टोली।
अपनापन का राग,गा रही प्यारी बोली।
कवि-कमल किशोर '"कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[28/01 9:43 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2030
27-01-2020
71--- *डोरी*
डोरी से बंधा हुआ , राधा माधव प्यार
वही डोर है बांधती , सारा जग संसार
सारा जग संसार , प्रेम हर दिशा समाया
बंधी डोर से डोर , सहज ये पर्व मनाया
साजन सजनी एक , प्रभावित करती गोरी
इक दूजे का प्यार , हृदय में बांधे डोरी ।।
72-- *बोली*
कोयल भाए कूकती , अपनी बोली बोल
कलियाँ भी बौरा रही , अपनी पाँखें खोल
अपनी पाँखें खोल , बनी सुंदर सी सुमना
मृदु भैरवी राग ,बनाये चंचल यमुना
पंचम स्वर में बोल , कर रही सबको घायल
बैठ आम्र की डाल , लुभाती कूकी कोयल ।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
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