[22/01 6:07 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
दिनाँक 22.1.2020
कुंडलिया (63) *थाली*
थाली छप्पन भोग की, ग्रहण करें धनवान।
रहा निवाला पेट भर, निर्धन को पकवान।।
निर्धन को पकवान, चाँद भी लगता रोटी।
दुर्लभ है घी- दूध, काटती छाछ चिकोटी।।
हो दीवाली रात, हृदय ही जलते खाली।
तन है आधा नग्न, भरी आशा की थाली।।
कुंडलिया (64) *बाती*
बाती जलती रात भर, लगा दीप से नेह।
प्रेम सिंधु है तेल का, डूबी उसकी देह।।
डूबी उसकी देह, आँच है हरपल सहती।
देकर जीवन दान, साथ दीपक के रहती।।
प्रांजलि पिय से प्रेम, पीर भी मन को भाती।
लेता दीपक श्रेय, रात भर जलती बाती।।
पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[22/01 6:07 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 22.01.2020 (बुधवार)
*******************
63- थाली
*********
थाली परसी रखी हो, छोड़ कभी न जायँ।
जो भी उसमें रखा हो, प्रेमपूर्वक खायँ।
प्रेमपूर्वक खायँ, न इसमें नखरा अच्छा।
समझें प्रभु प्रसाद, पका हो या अधकच्चा।
"अटल" अन्न का मान, करो तो मुँह पर लाली।
कभी न करना क्रोध, सामने हो जब थाली।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
64- बाती
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बाती बन जलिए सदा, अंधकार मिट जाय।
जीवन का यह सार है, काम सभी के आय।
काम सभी के आय, दाँव पर जीवन अपना।
कभी न अनुचित होय, रहे यह सुन्दर सपना।
"अटल" नहीं यह खेल, अड़े सबको ही छाती।
जलता दिखता तेल, नहीं बनते सब बाती।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[22/01 6:08 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - २२.०१.२०२०
. °°°°°°°°°
कुण्डलिया(1)
विषय- *थाली*
थाली जिसमें खा रहे, करे उसी में छेद।
करे परिश्रम बावरे, वृथा बहाए स्वेद।
वृथा बहाए स्वेद, ताकते राम भरोसे।
घर की मुर्गी दाल, पराये भात परोसे।
शर्मा, बाबू लाल, चाल चलते मतवाली।
घी, बूरे की मौज, लगे औरों की थाली।
. °°°°°°°°°°
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *बाती*
बाती घी या तेल से, रखती मानस मेल।
पहले जलती है स्वयं, पीछे घृत या तेल।
पीछे घृत या तेल, निभाती प्रीत मिताई।
दूध नीर सा मेल, प्रीत की रीति दुहाई।
शर्मा, बाबू लाल, जले तब रात सुहाती।
रहे दीप का नाम, तेल घी जलती बाती।
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[22/01 6:09 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
22/01/2020
दिन - बुधवार
विषय - थाली,बाती
विधा-कुंडलियां
*63-थाली*
थाली कंचन की लिए, व्यंजन उसमें साज।
रूठी बेटी सामने, चली मनाने आज।
चली मनाने आज,करें सब उसके मनका ।
करती जतन अनेक,होश कब अपने तनका।
कहती सरला बात ,मात की रीत निराली।
खिलते मुख की चाह,चली लेकर वह थाली।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*64-बाती*
बाती के मन में उठी, इक दिन ऐसी बात।
जलती तो मैं हूं सदा,चाहे दिन या रात।
चाहे दिन या रात, जली मैं तिल तिल करके।
करती सदा प्रकाश, यहां पर मैं जी भरके।
कहती सरला आज,नाम बस दीया पाती।
होता कब है नाम,नाम की केवल बाती।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[22/01 6:11 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 22.01.2020 (बुधवार)
(63)
विषय - थाली
थाली पर रख खीर को,देना सभी परोस।
इनसे सबको हैं मिले,भक्ति शक्ति अरु जोश।।
भक्ति शक्ति अरु जोश,देशहित सेवा करना।
दीन-हीन को दान,नयी दुनिया पग धरना।।
कहे विनायक राज, रक्ष करना बन माली।
करे आरती आज, सजाकर अपनी थाली।।
(64)
विषय - बाती
बाती दीपक में जले, करे तिमिर को दूर।
जीवन करे प्रकाशमय, रंग भरे भरपूर।।
रंग भरे भरपूर, प्रकाशित ये जग सारा।
जले तेल के साथ,करे तन मन उजियारा।।
कहे विनायक राज,जले दीपक दिन राती।
सदा रहे ये साथ, हमारे दीया - बाती।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[22/01 6:16 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -63
दिनांक -22-1-20
विषय -थाली
भोजन रईस को मिले, भर भर थाली रोज l
दीन रहा दिन भर भटक, करता भोजन खोज l
करता भोजन खोज,
भूख पीड़ा वो जाने l
रहे सदा वो मौन,
कष्ट को किस्मत मानेl
कहती सुनों सरोज,पार करता है योजन l
रोटी की ले चाह, तभी मिलता है भोजन l
कुंडलियाँ -64
दिनांक -22-1-20
विषय -बाती
बाती तो जलती सदा,करती ज्योति प्रदान l
दिया जले सबको दिखे , बाती से अंजानll
बाती से अंजान, राख जल के बन जाती l
तम को तले समेट, पथिक को राह दिखातीl
कहती सुनो सरोज, तेल में डूब नहाती ll
रहे दीप के संग, युगों से जलती बातीll
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[22/01 6:20 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक- 16/01/20*
कुण्डलिया(53)
विषय-दुनिया
कंटक के संसार में, करते मौज बबूल।
सुस्त पड़े हैं क्यारियाँ, सिसक रहे हैं फूल।।
सिसक रहे हैं फूल, दुखों से ये बेचारी।
इस पर देखो आज, तनी है दुनिया सारी है।।
सहमी सहमी फूल, रहेगी आखिर कब तक।
कहता हूँ कर जोड़, बने मत कोई कंटक।।
कुण्डलिया(54)
विषय- तपती
तपती सदा वसुंधरा, फिर भी करे न आह।
पेड़ों को हैं काटते, मानव बेपरवाह।।
मानव बेपरवाह, बना क्यों इतना दुर्जन।
कल क्या हो परिणाम, न हीं सोचे इसका मन।।
समझो कोई दर्द, दुखी अनहद है धरती।
गला न जाये सूख, धरा की तपती तपती।।
*दिनाँक- 18/01/20*
कुण्डलिया(55)
विषय-मेरा
मेरा मन यह सोचता, कैसा है संसार।
निर्धन को सब लूटते, करते अत्याचार।।
करते अत्याचार, मौज सब बड़े उड़ाते।
लाठी जिसके हाथ, वही है राज चलाते।।
उजड़ कभी मत पाय, किसी का रैन बसेरा।
बिना फिराये सोच, नहीं माने मन मेरा।।
कुण्डलिया(56)
विषय-दुनिया
सबका ही कल्याण हो, कर लो ऐसा काम।
सबके हित की बात हो, गढ़ो वही आयाम।।
गढ़ो वही आयाम, सभी पे प्यार लुटाओ।
किसी शीश पर भार, पड़े मत हाथ बटाओ।।
पिछड़ न जाये आज, देश का कोई तबका।
करो भलाई रोज, यहाँ हँसते ही सबका।।
रचनाकार-उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)
[22/01 6:26 PM] डॉ मीना कौशल: थाली
थाली भर भोजन मिले,जल हो विमल समीर।
हो परिवेश विशुद्ध शुचि,निर्मल रहे शरीर।।
निर्मल रहे शरीर,स्वस्थ हों तन मन सारे।
चमके भारत भाग्य,बनें सौभाग्य हमारे।।
सिंचित करना हर फुलवारी,जग के माली।
अन्न धान्य से भरी रहे,सबकी ही थाली।।
बाती
बाती तिल-तिल जल रही,ले करके अरमान।
ज्योति शिखा बुझती नहीं,चलते हैं तूफान।।
चलते है तूफान,आश का पलड़ा भारी।
ज्वलित वर्तिका से फैली,अभिनव उजियारी।।
स्वर्णिम दीप्तालोक,सुमण्डित गर्वित थाती।
तूफां में भी अडिग,जल रही अनुपम बाती।।
डा.मीना कौशल
[22/01 6:32 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *थाली , बाती*
दिनांक --- 22.1.2020....
(63) *थाली*
थाली भर भोजन मिले , इसीलिए है श्रम ।
जीवन भर की लालसा ,सुखी रहेंगे भ्रम ।
सुखी रहेंगे भ्रम , सोच चिंतन है करना ।
मन से ही तो जीत , सुखी जीवन को मरना ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी हो चिंतन खाली ।
बनती तब ही बात , मिले भोजन भर थाली ।।
(64) *बाती*
बाती औ दीया सदा , देता यह आदेश ।
जलकर दो यूँ रौशनी , लो जीवन संदेश ।
लो जीवन संदेश , मधुर मीठा ही बोलो ।
हो सुंदर परिवेश , सदा रिश्ते मत तोलो ।
दीया बाती संग , रौशनी लगती गाती ।
मिलकर जलते साथ , सदा दीया में बाती ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 22.1.2020.....
______________________________________
[22/01 6:35 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(63)
थाली
थाली पूजा की सजी, जगमग दीप अनूप।
अगरु फूल चंदन सहित, भव्य दिव्य है रूप।
भव्य दिव्य है रूप,भक्ति का भाव जगाती।
ले पूजा का थाल, सुहागिन मंगल गाती।
भेज रही निज लाल,बड़ी माँ गौरवशाली।
तिलक लगाती भाल, लिए पूजा की थाली।
(64)
बाती
बाती जलकर कर रही,त्यागमयी अति कर्म।
ऐसी ही नारी बनी ,निभा रही निज धर्म।
निभा रही निज धर्म,बनी बाती है जलती।
मिटा स्वयं अस्तित्व, सभी सपनों में ढलती।
बाती सा तन फूँक, ज्योति नारी दे पाती।
बड़े त्याग का काम,करे नारी अरु बाती।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[22/01 6:44 PM] अनिता सुधीर: 22.01.2020 (बुधवार)*
शतकवीर
थाली
थाली चमचे कर रहे ,आपस में तकरार।
श्रेष्ठ कौन की रार को ,थाली देती धार।
थाली देती धार ,दिखा तू अपने जलवे ।
तुम तो हो बदनाम ,सदा तुम चाटो तलवे।
चमचा बोले बोल ,बिना मेरे तू खाली ।
तेरी यदि औकात,भरे निर्धन घर थाली ।
बाती
बाती तिल तिल कर जले, होता दीपक नाम।
रीति जगत की जानिये, कहिये अपना काम ।
कहिये अपना काम, यहाँ तू तिल तिल मरता।
गया समय वो बीत,काम ही बोला करता ।
खोले अनु ये राज ,नहीं अपनी कह पाती ।
तिल तिल जलती रोज,जले जैसे ये बाती ।
अनिता सुधीर
लखनऊ
[22/01 6:47 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 22/01/2020
दिन - बुधवार
63 - कुण्डलिया (1)
विषय - थाली
**************
थाली सुंदर सज गई , हुआ भोग तैयार ।
व्यंजन विविध बनाय के , मना रहे त्यौहार ।
मना रहे त्यौहार , भोज्य भंडार भरा है ।
दूजी ओर गरीब , भूख से रोज मरा है ।
क्षुधा ग्रस्त जो लोग , उदर है जिनका खाली ।
लगे उन्हें जो भोग , पुण्य है वह ही थाली ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
64 - कुण्डलिया (2)
विषय - बाती
****************
बाती जैसी जल रही , टूट रही है साँस ।
धीरज धर बैठी हुई , पिया मिलन की आस ।
पिया मिलन की आस , दूर परदेशी साजन ।
विरह अग्नि में तप्त , व्यर्थ सा लगता जीवन ।
जल बिन जैसे मीन , तड़प मैं नीर बहाती ।
अब तो आओ मीत , बूझ मत जाए बाती ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[22/01 7:03 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर
दिनांक २२/०१/२०
६३) थाली
थाली अर्चन की लिए, आई तेरे द्वार।
पाऊँ दर्शन मैं करूँ, तेरी जय जय कार।।
तेरी जय जय कार, कहे शब्दों की माला।
बाबा परम दयाल, जटा धर डमरू वाला।।
स्वर सुर का मृदु मेल, बजे लय पर कर ताली।
भक्ति का भरे भाव, सजी सुंदर स्तुति थाली।।
(६४) बाती
बाती बिन कैसे जले, भरा तेल से दीप।
कैसे तम से जा भिड़े, साथी जब न समीप।।
साथी जब न समीप, धरे कैसे मन धीरज।
बिन रवि रश्मि प्रकाश, खिले कैसे सर नीरज।।
सीता बिन हे भ्रात, घड़ी इक चित्त न भाती।
श्वास रहित ज्यूँ देह, दीप ज्यूँ बिन निज बाती।।
गीतांजलि
[22/01 7:13 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक 18 /01/ 2020
कुण्डलियाँ
मेरा
------
मेरा कुछ अब है कहाँ,कहने की बस बात ।
कहते थे अपना जिसे, बिछुड़े आई रात।।
बिछुड़े आई रात ,बोल कहते हैं तीखा।
डरने की क्या बात ,कठिन राहों से सीखा ।।
कहे निरंतर बात ,साथ मिलता कब तेरा ।
फिर भी दिल में आस ,रहे बस बन के मेरा।।
सबका
----------
सबका साथ मिले सदा, कहती हूँ यह बात।
हिल -मिल के सबसे रहें, कष्टों को दें मात ।।
कष्टों को दें मात, जुड़े सब अपना कहते ।
बना रहे यह साथ,सदा दिल में ही रहते।।
कहे 'निरंतर' आज,मिले हैं बिछुड़े तब का।
रिश्ते बड़े कमाल,रहे जब दुलार सबका।।
दिनाँक-२२/०१/२०२०
थाली
-------
थाली कई प्रकार की,भोजन करते लोग।
तृप्त क्षुधा अब हो रही,फिर -फिर माँगे भोग।।
फिर -फिर माँगे भोग,देख मन अति हरषाया।
गिरकर करता शोर, बहुत तब सुख बरसाया।।
कहे 'निरंतर' बात,प्रेम उपजाये माली।
कुमकुम हल्दी दीप,आरती की यह थाली।।
बाती
------
बाती बन जलती रही,जब तक रहता तेल।
रोशन जग करता रहे,सबका सबसे मेल।।
सबका सबसे मेल,पूर्ण निष्ठा से रहती।
कहे 'निरंतर' खास,बात हरदम ये कहती।।
जीवन का यह सार,देख तिल -तिल मर जाती।
देती है ये साथ,रहे चिर दीया बाती।।
अर्चना पाठक 'निरंतर'
[22/01 7:14 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
शतक वीर हेतु कुंडलिया
22/01/2020
थाली(63)
थाली दीपक से सजी, लेकर बैठी द्वार।
सैनिक घर को आ रहा, खुश होती है नार।
खुश होती है नार,नैन भी उसके डोले।
आया प्रियतम द्वार, सखी से वह तो बोले।
कह राधेगोपाल, पुष्प ले आई आली।
जगमग है घर बार, सजी दीपक से थाली।।
बाती(64)
बाती जलती है सदा, कर दीपक से मेल।
साथ इन्हें भी चाहिए, हरदम घी या तेल।
हरदम घी या तेल, करे ये तब उजियारा।
जलती बाती देख, चमकता घर है सारा।
कह राधेगोपाल, जली है दिन अरु राती।
दीपक से कर मेल, सदा ही जलती बाती।।
राधातिवारी
"राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[22/01 7:15 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 22/01/2020
कुण्डलिया (63)
विषय- थाली
==========
थाली भोजन, आरती, तिलक कराती खूब I
सामग्री पूजन सजे, हल्दी, चावल, दूब ll
हल्दी, चावल, दूब, कनक भी गूँथों इसमें l
ग्रहण देख भर नीर, निभाती शादी रस्में ll
कह 'माधव कविराय', बताए हालत माली l
पीतल, ताँबा, स्वर्ण, रजत की होती थाली ll
कुण्डलिया (64)
विषय- बाती
===========
बाती ही जलती सदा, बूँद - बूँद ले तेल I
नाम दीप का हो रहा, अजब जगत में खेल ll
अजब जगत में खेल,श्रमिक श्रम कर मर जाते l
लम्बोदर धनवान, हमेशा रौब जमाते ll
कह 'माधव कविराय', भलाई में वय जाती l
मिले नहीं सुख स्वप्न, जला करते ज्यों बाती ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[22/01 7:15 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 22 दिसंबर 2020
कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
विषय ------- *थाली*
थाली बहु व्यंजन सजी, तब तक लगे अनून ।
जब तक माँ की छुअन का, पड़े न चटपट नून ।।
पड़े न चटपट नून, अरे जब भूख सताती ।
सुबह दोपहर शाम , थालियाँ हमें बुलाती ।।
कहे "निगम कविराज", न हो ये गोरी -काली ।
जाति धर्म निरपेक्ष, सदा ही होती थाली ।।
विषय----- *बाती*
बाती जलती, तिमिर से, करती रहती युद्ध ।
दीपक निज घृत कोष का, देता दान विशुद्ध ।।
देता दान विशुद्ध ,. रीत जाने तक अविरल ।
लौ' को मिलती जीत , मीत का ऐसा सम्बल ।।
"निगम" तिमिर की फौज , सदा ही मुँह की खाती।
जब कर लेती संधि , दिया -घृत- लौ से बाती ।।
कलम से
कृष्णमोहन निगम
सीतापुर, जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[22/01 7:24 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला
शतकवीर हेतु कुंडलिया
21/01/2020
61दीपक
दीपक बन कर जल रही,सदियों से यह प्रीत।
ढल के नवकृति में यही,बनती है नव गीत।
बनती है नवगीत,प्रीत नसों में उतरती।
माटी की यह देह,संग बाती के जलती ।
पाखी अद्भुत देश,न बदली रीत अभी तक।
गाते जाओ गीत ,मदिर जलता ये दीपक।
पाखी
62पूजा
मेरी पूजा तुम बने,तुम हो मेरे ईश।
तुमसे करती प्रीत मै,सुबह शाम जगदीश।
सुबह शाम जगदीश,गीत पूजा के लिखती ।
तुमसे है संसार,वही छवि हर क्षण दिखती ।
पाखी उसके गीत ,बने स्वर लहरी तेरी ।
कान्हा तेरी प्रीत,बनी पूजा है मेरी ।
मनोरमा जैन पाखी
[22/01 7:24 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 22/01/2020
कुण्डलिया- ( *61*)
विषय - *दीपक*
अपना दीपक जब जले , भरे सदा विश्वास।
जैसे सैनिक वीर से ,रहती सब को आस।।
रहती सब को आस , वतन का हो रखवाला।
तिमिर हरण बन दीप , देश में करे उजाला।।
सुवासिता कुछ लोग , देखते ऐसा सपना।
करे वतन से प्यार , बने वो सैनिक अपना।।
कुण्डलिया -( *62*)
विषय - *पूजा*
पूजा घोड़ी चड़ चली , लाने दूल्हा आज।
बांधे सर पे सेहरा , ले बाराती साज।।
ले बाराती साज , अनोखी है ये शादी।
नई प्रथा शुरुआत , दिखे कुछ आशावादी।।
सुवासिता संसार , नया कुछ चाहे दूजा।
ऐसा ही कुछ आज , करे ये बेटी पूजा।।
कुण्डलिया -( *63*)
विषय - *थाली*
थाली खाली हाथ में , भूखों की पहचान।
कैसा विधना लेख है , सोचे वे इंसान।।
सोचे वे इंसान , कहाँ से लाये रोटी।
रोजगार है बंद , मार किस्मत पे खोटी।।
सुवासिता कुछ सोच , लगे हिरदय पे गाली।
भोज चाहिए आज , सोचती ऐसे थाली।।
कुण्डलिया -( *64*)
विषय - *बाती*
बाती दीया बन चले , मिल कर दोनों संग ।
हर पल में हर तम मिटे , जीते जग में जंग।।
जीते जग में जंग , बने सहयोगी ऐसे।
मन में हो विश्वास , बने कुछ पूरक वैसे।।
सुवासिता ये सोच , गीत खुश हो कर गाती।
साजन थामे हाथ , कहें हम दीया बाती।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[22/01 7:27 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति ' 22.1.2020.
🙏🙏
61 ) थाली
***********
थाली पूजा की सजा , राखी बंधन आज ।
रोली चंदन फल रखो , पूरे कर लो काज ।।
पूरे कर लो काज , चलो तैयारी कर लो ।
राखी बाँधें आज , ज़रा धीरज भी धर लो ।।
भैया आये द्वार , सजी छवि भोली भाली ।
स्वागत उनका करें , चलो ले पूजा थाली ।।
#########
62 ) बाती
***********
बाती दीया जल रहे , शोभा सोहे आज ।
तम का नहीं नाम कहीं , लालिमा रही साज ।।
लालिमा रही साज , इत उत रहे इठलाती ।
तम तो रहे न कहीं , उजाला लेकर आती ।
नन्हा दीपक जले , लगे सूरज का नाती ।
उजला हो घर द्वार , रहे जल दीया बाती ।।
&&&&&&&&&
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
21.1.2020 , 11:21 पीएम पर रचित ।
%%%%%%%%
●●
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[22/01 7:37 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
22/01/2020::बुधवार
बाती
बाती बनकर मोम की, जलती मैं दिन रात।
थोड़ा थोड़ा ही सही, पिघल रहा है गात।।
पिघल रहा है गात, नियति ये मेरी मानो।
क्यूँ समझो बेजान,मुझे तुम नारी जानो।।
कतरा कतरा प्रेम,जिंदगी की है थाती।
जलती हूँ दिन रैन, मोम की बनकर बाती।।
थाली--
थाली भोजन की मिले, है गरीब की चाह।
लाख कोशिशों बाद भी, नहीं सूझती राह।।
नहीं सूझती राह, कर्म कर कर वो हारा ।
बुरी पेट की आग, करे क्या वो बेचारा ।।
होकर अब लाचार,खड़ा वो बना सवाली।
रूखी सूखी मगर, मिले भोजन की थाली।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[22/01 7:39 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुण्डलियां
65. थाली
थाली पूजा की सजा, चली सुहागिन नार।
मंथर गति से ईश के, पहुँच गई दरबार।।
पहुँच गई दरबार, हाथ दोनों वह जोड़े।
करके प्रभु का तिलक, पुष्प अक्षत भी छोड़े।।
कह अंकित कविराय,सम्पदा जग की पा ली।
पाकर प्रभु आशीष, चली घर को ले थाली।।
66. बाती
बाती बनकर दीप की, जलो आप सर तान।
बाँटो दिव्य प्रकाश पर, करो नहीं अभिमान।।
करो नहीं अभिमान, पथिक को पथ दिखलाओ।
उसके पथ से आप, अँधेरा दूर भगाओ।।
कह अंकित कविराय,देह वह स्वयं जलाती।
हरपल ही बलिदान, किया करती है बाती।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[22/01 7:40 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक--22/1/20
63
थाली
थाली में मेवा भरे,फिर भी खाली पेट।
बेटा अनदेखी करे,मात पिता को मेट।
मात पिता को मेट, बना फिरता वो राजा।
ममता सारी भूल,बजा के झूठा बाजा।
कहती अनु यह देख,दिया रिश्तों को गाली।
खाली करली आज,भरी मेवे की थाली।
64
बाती
बाती बनके दीप की,देना साजन संग।
बेटी से माता कहे,जीवन के यह रंग।
जीवन के यह रंग,बड़ों का आदर करना।
रखना सबसे प्यार,दुख से कभी मत डरना।
कहती अनु शुभ आज,लली ये शिक्षा पाती।
प्यारा घर परिवार,बनी दीपक की बाती।
अनुराधा चौहान
[22/01 7:53 PM] धनेश्वरी सोनी: . शतकवीर कलम की सुगंध
कुण्डलिनीयां
थाली
थाली सोने की रखें, चांदी चम्मच लाय
भगवन प्रसाद दल लिए,लालच दूर भगाय
लालच दूर भगाय,भजन कर माधव मिलते
दीप सजा हरि थाल ,पुजन कर दीपक झलते
रोली चंदन माथ,हार फूल दिया माली
सबसे अच्छी बात ,,मिले गरीब को थाली
बाती
बाती डालो तेल में, दीपक संग बिठाय
माचिस घिसने जब लगो, भगवन दीप दिखाय
भगवन दीप दिखाय, कला सजा थाल रखना
पावन कपास राख ,जुठे बाती ना चखना
थाली कुमकुम भाग्य ,माथ लगाय छू छाती
आरत मंगल गान ,सजा दीया में बाती
धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[22/01 8:11 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-21-01-020
61
विषय-दीपक
कुलदीपक वह पुत्र है, जो रखता है मान।
धन्य वही परिवार है, ज्ञानी जहाँ महान।।
ज्ञानी जहाँ महान, रहे सुख दुख में भागी।
चलता सत्य की राह, सदा संतोषी त्यागी।।
आनंदित हो मात, पिता का बनता खेवक।
घर बन जाता धाम, जहाँ पैदा कुलदीपक
62
विषय-पूजा
पूजा में अब मन लगा, श्रेष्ठ साधना एक।
थोड़ी देर की अर्चना,फल शुभ मिलें अनेक।।
फल शुभ मिलें अनेक, शुद्धता हृदय समाती।
वृद्धि बुद्धि विवेक, समाज में समता आती।।
हो मंगल की चाह, जतन नहीं कोई दूजा।
ले ले प्रभु का नाम, दो घड़ी कर ले पूजा।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[22/01 8:16 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया(६३)
विषय-थाली
थाली में खाते रहें, करें उसी में छेद।
बने हितैषी वे रहें,कैसे मिलता भेद।
कैसे मिलता भेद,सिक्का खरा या खोटा।
कैसे हो पहचान,पहन कर रखें मुखौटा।
कहती'अभि'निज बात,बैठ कर काटें डाली।
लेकर सारे भेद, छेद करते फिर थाली।
कुण्डलिया(६४)
विषय-बाती
बाती जलती दीप में,जैसे तन में प्राण।
जग जीवन रोशन करे,तम से होता त्राण।
तम से होता त्राण,जले जब निर्मल बाती।
दूर करे अज्ञान,सत्य का बोध कराती।
कहती'अभि'निज बात,समझ में किसके आती।
दीपक है निष्प्राण,नहीं जब जलती बाती।
रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[22/01 8:16 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२२/१/२०
कुसुम कोठारी।
कुण्डलियाँ (६३)
विषय-थाली
मेरे घर उतरी विभा , शशि किरणों के साथ ।
थाली में भर भर रखूं , चाँद उठा लूं हाथ ।
चाँद उठा लूं हाथ , धरा में भर दूं तारे ।
चांदी सा हो विश्व ,सुखी हो जग में सारे ।
कहे कुसुम सुन बात ,भाव उत्तम हो तेरे ।
सब के मन ये चाह ,सोम उतरे घर मेरे।।
कुण्डलियाँ (६३)
विषय-बाती
बाती घी मिल मिल जले , जला कहे सब दीप,
मोती होता कीमती , दर्द भोगती सीप ।
दर्द भोगती सीप , सत्य पर पर्दा झीना ।
शिव बनने की रीत , गरल पड़ता है पीना।
कुसुम जगत का भेद ,निशा अरुणोदय लाती ।
योग सभी ये देख ,जला दीपक घी बाती।।
कुसुम कोठारी।
[22/01 8:17 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
22-1-2020
थाली
63
थाली ले माता फिरे, देखो दर दर आज ।
बोझ लगे अब मात पित, कैसा हुआ समाज।
कैसा हुआ समाज, कौन इनको समझाये ।
आँख दिखाते आज, वचन कटु नित्य सुनाये
माता है भगवान , उसे तू देता गाली ।
धिक धिक रे संतान, मात की खाली थाली ।।
बाती
64
बाती बन कर मैं जलूँ, भगवन तेरे द्वार।
बुझने मत देना कभी, करती यही पुकार।
करती यही पुकार,जगत हित जलती जाऊँ ।
कुटिया हो घर द्वार,तिमिर को सदा मिटाऊँ ।
माटी का वह दीप, भारत भू की थाती ।
रह दीपक के संग, जलूँ मैं बनकर बाती ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[22/01 8:24 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
*_संशोधित_* 59 & 60 .
**************
कुण्डलिया शतकवीर सम्मान
59 ) दीपक
************
मेरे संग दीप धरो , हो जाये उजियार ।
पूजा की है यह घड़ी , खोलो सारे द्वार ।।
खोलो सारे द्वार , चले अब हवा सुहानी ।
पावन बेला आज , करे मौसम मनमानी ।।
रखना दीप मुँडेर , गीत साँझ अभी गालो ।
पथिक न भूले राह , दीप धरो संग मेरे ।।
60 ) पूजा
***********
पूजा कर लो अब सभी , मन पावन हो जाय ।
सिमरन प्रभु का तुम करो , पूजा अर्चन भाय ।।
पूजा अर्चन भाय , कभी चिन्ता क्यों घेरे ।
मंदिर जाओ आज , लगाओ पूरे फेरे ।।
कष्ट कटेंगे सोच , करो अब कारज दूजा ।
घर आये सुख शांति , अभी कर ली जो पूजा ।।
€€€€€€€€€€€
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
21.1.2020 , 7:20 पीएम पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[22/01 8:39 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*
*दिनांक २२/०१/२०२०*
*विषय *थाली*
*६३*
थाली में भोजन रखा, ग्रहण करो भगवान |
तुमको अर्पित कर रहा, मैं बालक नादान |
मैं बालक नादान , निराली है प्रभु माया |
तुझसे प्रेम अगाध , जान कोई कब पाया |
कह विदेह कविराय, बके है दुनिया गाली |
परसा प्रेम अपार,ग्रहण करते प्रभु थाली ||
*विषय:-बाती*
*६४*
बाती तू दहलीज की , तू मेरा अरमान |
लाड़ो तू जब से गई , मेरा तन निष्प्राण |
मेरा तन निष्प्राण, सुपावन रही न धरती |
आँखों में अंगार, सदा से रही उगलती |
कह विदेह कविराय, अवस्था कही न जाती |
जीवन है संग्राम, अरे दीपक की बाती ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[22/01 8:47 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 22.01.2020
कुण्डलियाँ (53)
विषय-दुनिया
दुनिया सारी गोल है,गहरे इसके भेद।
जान सके कोई नहीं ,चाहे पढ़ ले वेद।
चाहे पढ़ ले वेद,मर्म न कोई जाने।
अद्भुत प्रभु की सृष्टि,यहीं फल सबको पाने।
जानो अनु के बोल,भजे हरि को फिर मुनिया।
देखो मन में झाँक,वहीं है सारी दुनिया।।
कुण्डलियाँ (54)
विषय- तपती
तपती देखो ये धरा,बढ़ा पाप का बोझ।
सहे न वो फिर बोझ को,तारक की है खोज।
तारक की है खोज, असह्य बोझ है भारी।
आओ तारणहार,कहाँ हो प्रभु गिरधारी।
अनु पढ़ मन के भाव,सुता बस तुमको जपती।
दूर करो अब *ताप* , *ताप* से धरिणी तपती
रचनाकार का नाम -
अनुपमा अग्रवाल
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 22.01.2020
कुण्डलियाँ (55)
विषय-मेरा
मेरा मुझको मानता,मन में मिटता मान।
मन मिलने में मान मैं,मन मैला मत जान।
मन मैला मत जान,मातु ममता में मारी।
मैं में मायाजाल,माधव महेश मुरारी।
मानो मेरे मीत,मंदमति मैं, मन तेरा।
मुझसे मत मुँह मोड़,मीत मानो मन मेरा।।
कुण्डलियाँ (56)
विषय- सबका
सबका शुभ सोचो सदा,करेंगे प्रभु निहाल।
जो औरों की सोचता,होता मालामाल।
होता मालामाल,करे जो सबकी सेवा
नेकी रहती साथ,मिलेगा उसको मेवा।
कर लो अनु उपकार,नहीं मालूम फिर तबका।
दौलत जाये छूट,सदा शुभ सोचो सबका।।
रचनाकार का नाम-
अनुपमा अग्रवाल
[22/01 8:57 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक- 21/10/2020
61 *दीपक*
दीपक जलता रात भर,माता बड़ी अधीर।
इधर उधर वह घूमती,आँखों में है नीर।
आँखों में है नीर,नहीं लौटी है बिटिया।
द्वार खड़ी बेचैन,ताकती बेवा दुखिया।
कहती रुचि करजोड़, लगा ज्यों मन में दीमक।
अंतस तम घनघोर,गेह का जलता दीपक।
62 *पूजा*
मन की पूजा मानिए,होती बड़ी पवित्र।
सात्विक भावों से भरी ,जैसे महके इत्र।
जैसे महके इत्र,भाव श्रद्धा से पूरित।
रीत समर्पित प्रीत,बसा मन अंदर मूरित।
कहती रुचि करजोड़,शुद्ध पूजन जीवन की।
जपिए मुख से नाम,सुने प्रभु सच्चे मन की।
दिनाँक- 22/01/2020
63 *थाली*
राखी की थाली सजी,बहना भाव विभोर।
माथ लगा कुमकुम तिलक,बाँध रेशमी डोर।
बाँध रेशमी डोर,कई आशीषें देती।
रखो बहन को याद,वचन भ्राता से लेती।
कहती रुचि करजोड़,सूर्य इसका है साखी।
रक्षाबंधन पर्व,बहन पहनाती राखी।
64 *बाती*
आत्मा रूपी दीप का,बाती है सद्ज्ञान।
आत्मा की आवाज को,सुने सभी विद्वान।
सुने सभी विद्वान,बने वे सारे ज्ञानी।
गाते गौरव गान, बने वे योगी ध्यानी।
कहती रुचि करजोड़,हुए हैं कई महात्मा।
सदा दिखाये मार्ग,दीप रूपी ये आत्मा।
✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[22/01 9:22 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला। कुंडलिया शतकवीर।दिनांक २२/०१/२०२०,दिन बुधवार।*
ं~~~~~~~~
*६५--थाली*
~~~~~~~~
पूजा की थाली सजा, मन में हरि का नाम।
मंदिर को गृहिणी चली, छोड़ छाड़ सब काम।
छोड़ छाड़ सब काम, राम को शीश झुकाने।
कर के प्रभु का ध्यान, ईश को भोग लगाने।
पूजा हुई समाप्त, लौट घर आयी आली।
मन में ले विश्वास, हाथ पूजा की थाली।।
~~~~~~~~~
*६६--बाती*
~~~~~~~
आओ मिल पूजन करें, ले पूजा का थाल।
दीपक, बाती साथ में , रोली चन्दन भाल।।
रोली, चन्दन भाल, करें हम प्रभु कि पूजा।
इससे बढ़ कर काम, नहीं है कुछ भी दूजा।
कह "भूषण" कविराय, सभी मिल हरि-गुण गाओ।
मन में ले विश्वास, शरण में प्रभु की आओ।
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*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
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