Friday, 28 May 2021

विज्ञ सवैया छंद और विदुषी सवैया छंद का अविष्कार






 

 

*सादर नमन, कलम की सुगंध, छंदशाला,एवं संचालन मंडल व समस्त साथियों*
सहित ही
.    *पंच परमेश्वराय:नम:*
*आदरणीय गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी को सादर वंदन,आदरणीया इन्द्राणी साहू साँची जी, आदरणीय साखी गोपाल पंडा जी की विवेचना,समीक्षा व सहमति के आधार पर एवं पटल के सुधि छंदकारों,आ.अनिता मंदिलवार सपना जी,आ.परमजीतसिंह कोविद जी,आ.अभिलाषा चौहान जी,आ.अर्चना पाठक निरंतर जी, आ. डाँ. एन.के. सेठी जी, आ.इन्दु साहू जी, आ. श्रद्धांजली शुक्ला जी,आ. धनेश्वरी सोनी गुल जी, आ. चमेली कुर्रे सुवासिता जी,आ. राधा तिवारी,राधेगोपाल जी एवं आ. गीता विश्वकर्मा नेह जी, डाँ. मंजुला हर्ष जी* ...
*आपकी की इन छंदों पर रचनाओं के आधार पर आज हिन्दी साहित्य हेतु दो नवीन छंद  "विज्ञ सवैया" और "विदुषी सवैया"  को सहर्ष मान्यता प्रदान करने पर आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ*

१. छंद--  🦢 *विज्ञ सवैया* 🦢
छंद आविष्कारक- *बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ"*
आज दिनांक २८.०५.२०२१
*विज्ञ सवैया विधान:--*
२१  वर्ण
सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२  ११,२   ११२  ११२  ११२
.               👀👀👀👀👀👀
२.   छंद       *विदुषी सवैया*
छंद आविषकारक - *नीतू ठाकुर विदुषी*
वर्णिक सवैया.....22 वर्ण
रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
🦚 *आ. विदुषी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई* 🦚
*आ.अनिता मंदिलवार सपना जी एवं राधा तिवारी जी को साधुवाद*

सादर, आभारी
बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
सिकंदरा, जिला-दौसा
राजस्थान
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*विज्ञ सवैया छंद*

          *विधा - सवैया - प्रथम*
विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
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अचला नभ से कह आज रही अब प्यास बुझा मन की ।
कर वृष्टि धरा पर रक्षण तो कर सूख रहे वन की ।
तन सूख रहा न दरार मिटे विपदा हर लो तन की ।
मत देर करो अब तो सुन लो विनती शुभ वंदन की ।।

         *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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*विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण ४चरण चारों, समतुकांत हो।*
  *सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण*
*११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२*

         *भारत मात वंदना*
 
जय भारत मात करें  गुणगान सदा खुशियाँ भरती।
जननी कहलाय सहाय करे यह ध्यान सभी करती।।
उपजाय सदा धन अन्न सभी यह जन्नत  है धरती।
इतिहास  पुरातन  भारत उन्नत भाल सदा करती।।

ऋतुएँ  मन  भावन  भू  यह  पावन  गौरव गान करें।
वसुधा धरणी बहती तरणी  इसका  हम ध्यान धरें।।
धरती हमको लगती हिय को इसकोअति प्यार करें।
हम  बालक हैं इसके यह भाव सदा हिय में विचरें।।

             *©डॉ एन के सेठी*

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विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
*अनुरक्ति*

सरकी सिर से सर से सरकी झट छूट गई गगरी ।
कर घूँघट चाल चले तिरछी सखि भूल गई डगरी ।
पनिहारिन से तब पूछ रही कह राम कथा सगरी ।
जब भीतर राम बसे उर में कब हैं मिलते नगरी।

*अर्चना पाठक 'निरंतर'*

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.             ........ सवैया

विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
*जीने की कला*
  **********
बल से मन को रख दूर कहीं हर पंख उड़ान भरे।
भर नीरस से हिय को रस से फिर वादक तान भरे।
यह पावक है चलती छलती तब दीमक कान भरे।
जब जीवन भी चलके ढ़लता नव वैभव गान भरे।

     *परमजीत सिंह कोविद*

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सवैया
११२×७

मन धीरज भी मुख मोड़ रहा,
अब तो हिय डोल रहा ।
धरती सहती न कहे कुछ भी,
मनु क्यों विष घोल रहा ।
सपना करती विनती सुन लो,
मन भी कुछ बोल रहा ।
सबने अपनी मन की कह दी,
बतियाँ अनमोल रहा ।

अनिता मंदिलवार "सपना"

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*इस नये सवैया पर मेरी भी कोशिश*

११२  ११२  ११२ ११२ 
११२  ११२  ११२
सलिला कहती वन प्रांतर से,
जल से जड़ सिंचित है ।
पतझार हिया दुख टार सखे,
नदिया रहते चिंतित है ।।
मन मोद मना सब ही ऋतुएँ,
शुभ सा अनुकूलित है ।
सब रंग सुगंध धरे तुमसे,
जगती अनुप्राणित है ।।

मुझसे बनते वह बादल हैं,
बरखा खरमास झरे ।
अवनी दिखती निखरी सँवरी,
तृण पात समेत हरे ।।
नदिया उमगे लहरा लहरे,
छनके बूँदिया उभरे ।
वन से नद का,नद से वन का
मन बंधन है गहरे ।

गीता विश्वकर्मा नेह

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जय माँ शारदे
सवैया छंद
प्रथम प्रयास
112 112 112 112 112 112 112 22

मन धीर धरो नित काम करों फलदायक हो धरती धीरा।
धरती पर  बीज जगाय तभी
फल बेल बढ़े फलता खीरा।
वरदान बनें  श्रम की महिमा
मन जीत जगात सदा नीरा।
श्रम ही नित लाय निखार बनें
मन ही मन मान लगे हीरा।

मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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नमन मंच
सवैया छंद
एक प्रयास

११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ २२

पितु मातु सदा सुख दायक हैं
   हम मान करें उनका साथी।

गुरु ज्ञान सदा फलदायक  है
हम ध्यान धरें उनका साथी।

धरती फल फूल अनाज भरे
हम गान करें उसका साथी।

मुरली मनमोहन आज बजा
रस पान करें उसका साथी।

डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव "मंजुल"

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112  112 112 112 112 112 112 22
अपने सपने लगते हमको कबसे सबसे कहते है वो।
चलते सबसे मिलके सजना सुनते ठहरे रहते है वो।।
कितना मनमोहक आज लगे नदिया बनके बहते है वो।
लगते मुझको मुझसे पहले सबके तड़पन सहते है वो ।।
     
चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

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जय माँ शारदे
सवैया छंद
प्रथम प्रयास
112 112 112 112 112 112 112 22

नदियाँ नित बहती रहती है,
तब निर्मल जल उसमें रहताl
ज्ञान तभी तक बढ़ता जानों ,
जितना ज्ञानी उसको कहताl
पोखर जल पोखर में  सड़ता,
पोखर से वो कब है बहताl
विद्या अपने तक जो रखता,
बन पाता कब वो फिर महताl

*सरोज दुबे 'विधा'*
*रायपुर छत्तीसगढ़*

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*सवैया*
कलम की सौगंध
सादर नमन मंच🙏

112 112 112 112 112 112 112

चितचोर कहां तुम हो अब देर करें मन जो झुलसे,
गिरिधर अब कौन मुझे कहते दिल की बतियां हुलसे।।
यमुना तट से जल पीकर कृष्ण यहां तुम आप फिर से,
मुरली सुनके तड़पी नित मैं अब तो मिल जा हमसे।।

बिंदु प्रसाद रिद्धिमा
स्वरचित✍️ रांची, झारखंड

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.             ........ सवैया
*1*
विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
उसके सपने हम को दिखते
दिखते रहते।
भंँवरे तितली रस को चखते
चखके कहते।
हम भी तुम को सुनते रहते दुख भी सहते।
कलियाँ रहती सहमी सहमी
दृग भी बहते
               
राधा तिवारी
"राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
खटीमा,उधम सिंह नगर, उत्तराखंड

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नमन मंच
सवैया छंद
एक प्रयास

११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ २२

मन मोहन माधव श्याम सखी,सुख जीवन का बस वे ही हैं।
उनसे कहती उनसे सुनती,रस रास रचे सब वे ही हैं।
मुरली बजती मन नाच उठे,अधरों पर बास करे ही हैं।
हिय में झलकी झलके उनकी,जग में कण में बस वे ही हैं।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
सादर समीक्षार्थ 🙏🙏

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नमन मंच 28/05/2021
विधा-सवैया
शिव शंकर हे सुन लो अब तो जन जीवन पावन हो।
दुनिया भर के दुख ये सबके हर लो तुम तारन को।
विष पान करे प्रभु कौन सदा विष के तुम मारन हो।
तुमसे जग की हर एक बहार करो विष धारन हो।

✍️श्रद्धान्जलि शुक्ला अंजन

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विदुषी सवैया छंद

212 212 212 2 , 12 212 212 212 2

हौसलों में भरें दिव्य ऊर्जा , चलो आज संकल्प ऐसा उठाएँ ।
प्राणियों को करे तुष्ट ऐसी , सुधा प्रीति की श्रेष्ठ धारा बहाएँ ।
ज्योत्सना चंद्र की हम बनें फिर , अँधेरों भरी यामिनी को डराएँ ।।
जो दिखाए सही राह हमको , वही ज्योति आशा भरी हम जलाएँ ।।

         *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)

मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

*वेदना*
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आपसे प्यार था जान से भी, तुम्हें गोद में फूल सा ही सुलाती ।
बेड़ियाँ पाँव की रोकती थीं, सदा याद में खूब पीड़ा रुलाती ।
आस भी टूटती है न जाने, यही लेख हो भाग्य का जो झुलाती ।
छूटता है अभी साथ सारा, दुबारा पुनर्जन्म हो तो बुलाती।

*अर्चना पाठक 'निरंतर'*
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संशोधित
*सवैया छंद*

*माॅं*
212 212 2122, 12 212 212 212 2

रीझ कोई नयापन दिखाती, जली सोच वाचाल विष घोलती है।
कोयलें कूकती काग छेड़े, जले आज देखो निशा डोलती है।
भूलकर राग मन के धरा पग, सही राह पर चाल भी बोलती है।
कौन सुनता भरी आस मन में, तनुज पाल कर मात दुख तोलती है।।

    *परमजीत सिंह कोविद*

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मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

भारती के सदा गीत गाते, चलें भाव के पुष्प से प्रेम धारा ।
नेह में हार से जीत हो जो, तहाँ रागिनी है बजे आज प्यारा ।।
क्या मिला क्या नहीं छोड़िये भी, यहाँ जो मिला है वहाँ देख तारा ।
मानिये बात सीधी सही वो, कहाँ आप भी जीवनी मान हारा ।।

अनिता मंदिलवार सपना
.            
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मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
नैन को प्रेम का रंग देना, पिया चाहती भावनाएँ यही है ।
मीत साथी कहो मान दोगे, मुझे बात ये नेह के क्या सही है ।
बावरी चंचला मैं नदी सी, हुई देखिए प्रीत ये
जो बही है ।
गंध की धार में ले चला है,कहाँ मौन मुस्कान ने क्या कही है ।

गीता विश्वकर्मा नेह

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*सवैया*
कलम की सौगंध
सादर नमन मंच
28.05.21 शुक्रवार

212 212 212 2,12 212 212 212 2

जिंदगी से प्यारी लगे नित ,जहाँ सीखते सीखते जान पाया।
सैनिकों वीरता से जियो तुम, करो युद्ध सेना अभी जीत दिलाया।
शुभ तिरंगा उड़े नील नभ में, सदा साथ देना जिसे खुशियां दिलाया।
बात सच्ची यही है अभी तक, हमें सोचते सोचते स्वयं सोया।

बिंदु प्रसाद रिद्धिमा
स्वरचित✍️ रांची झारखंड

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द्वितीय सवैया

२१२ २१२ २१२ २,१२ २१२ २१२ २१२२
पालती पोषती मात कैसे,सदा देखती कष्ट कोई न आए।
भोगती पीर है धीर धारे, कभी बोल कड़वे न वो सुनाए।
जागती वो रहे डूब चिंता,खुशी बालकों पर सदा वो लुटाए।
पूजता जो उन्हें भाग्य जागे,तभी चाहते जो सदा लोग पाए।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
सादर समीक्षार्थ 🙏🙏

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*.......  सवैया*
*2*

मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

रोग कैसा यहांँ आज आया, बना कौन साथी सहारा बता दो।
देख पीड़ा कभी भी किसी की,
बनो आज राधा सहारा दिखादो।
दोष देखो कभी भी किसी में, उसे प्यार धारा बनाना सिखा दो।
आज कोई सुखी तो नहीं है,बनो नेह डोरी जमाना बितादो।।

राधा तिवारी
"राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
खटीमा,उधम सिंह नगर, उत्तराखंड

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सादर समीक्षार्थ🙏

*द्वितीय सवैया*
*मापनी*
*२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २*

भारती पावनी भावनी ये, धरा धारती अन्न ये पालती है।
शस्य ये श्यामला साधना भू,धरा
ये सभी ही करे आरती है।।
मात सेवा करें भावना शुद्ध, हो कामना ये सदा धारती है।
मातृ भू से बड़ा है नहीं सृष्टि में आपदा कष्ट से वारती है।।

            *©डॉ एन के सेठी*

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सवैया छन्द

मापनी
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

राम का रूप प्यारा लगे है, सदा रामजी को सहारा बनाएं।
साथ देते सुखों में सदा ही, हमारे दुखों को किनारा लगाएं।।
राम सारे सभी दुःख तारें, स्वयं की कथा नित्य वासी सुनाएं।
ईश हैं साथ में मानते ये, धरा में सभी लोग माथा झुकाएं।।

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

सवैया
विषय-गुरु

मापनी
211 211 211 211, 211 211 211 22

ज्ञान प्रकाश भरें हममें नित, साथ रहें गुरु देव हमारे।
छंद विधान हमें सिखला सब, हैं हम तो बस आप सहारे।।
जीव धरा पर ज्ञानमयी बन, पाकर ही गुरु नाम पुकारे।
मान रखें गुरुदेव सदा हम, ज्ञान लिए निज धाम पधारे।।

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

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मातु सेवा सदा भाव से हो ,करो वंदना मातु की ज्यों पुजारी।
भावना साधना हो सदा से ,विधाता  बनाए कभी ना  बिचारी ।।
मातु गंगा लगे पावनी ज्यों मनोकामना पूर्ण होती हमारी।।
मातु ज्ञानी हमारी सदा से ,वही कष्ट को दूर टाले सुखारी।।

धनेश्वरी सोनी गुल

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4 comments:

  1. निःसन्देह बहुत ही हर्ष का विषय है आज वरिष्ठ कवि एबं छंद गुरु कलम की सुगंध छंदशाला परिवार से आदरणीय बाबुलाल शर्मा विज्ञ साहेब जी और और कवयित्री तथा छंद गुरु नीतू ठाकुर विदुषी द्वारा छठा छंद निर्माण अविष्कार किया गया जो विज्ञ सवैया तथा विदुषी सवैया के नाम स्व जाना जाएगा मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी तथा सामीक्षक आदरणीया इंद्राणी साहू साँची जी और आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे आदरणीय साखी गोपाल पंडा जी सहित मंच पर विराजमान पंचपरमेश्वर की उपास्थिति ने मात्र चार घंटे चले इस सृजन कार्यक्रम में 2 दर्जन से अधिक आये सवैया के छंदों के शिल्प की सधी हुई लय देख कर इन्हें छंदों में सम्मिलित करने की अनुमति प्रदान की मंच संचालिका अनिता मंदिलवार सपना जी ने प्रथम सृजक गौरव सम्मान मंच पर ससम्मान प्रेषित किये निःसन्देह सभी सृजकों में अपनी लेखनी के प्रति हर्ष और आनंद का वातावरण बनाते हुए प्रोत्साहित कर आत्म विश्वास चरम पर देखा गया .....
    सभी का आत्मीय आभार प्रेषित कर विज्ञ जी और विदुषी जी को अनंत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं ....... 💐💐💐💐💐

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  2. नवीन सवैया शोध हेतु आ.बाबूलाल शर्मा विज्ञ भैया जी और कवयित्री आ.नीतू ठाकुर विदुषी जी को अनंत शुभकामनाएँ

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  3. आ.विज्ञ भैया और सखी नीतू जी को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐

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  4. आ बाबूलाल शर्मा विज्ञ जी और विदुषी जी को अनंत शुभकामनाएँ 💐 💐 💐 💐

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