Friday, 4 June 2021

गुरु गोरखनाथ आल्हा छंद आधारित चालीसा

*रचनाकार:-* 
 *परमजीत सिंह कोविद* 
          *कहलूरी* 

*गुरु गोरखनाथ कथा सार* 

*विज्ञात छंद:-* 

गोरख नाथ हैं भोले,
यूॅं मुख वे नहीं खोले।
वो  चिमटा  गढ़ाएंगे,
वे दुख भी मिटाएंगे।।

*दोहा:-* 

जप-तप से योगी बना,वह भोला अवतार,
जिसके सिर पर हाथ हो, नाव लगाए पार।। 

*दोहा:-* 

जन-मन के उत्थान को, जोड़ खड़े सब हाथ।
शिव शंकर अवतार में, आए गोरखनाथ।।

*आधार आल्हा छंद:-* 

धरती पर गुरु गोरख आए,
विश्व धरा करने उद्धार।
योगी जैसा वेश बनाकर,
जन्म लिया हो शिव अवतार।।

देते योगी भस्म पुड़ी में,
बांझ सुता को गुरु मच्छेंद्र।
विश्वास नहीं करती अबला,
फेंक दिया कूड़ा भू केन्द्र।।

बारह साल रहा भूतल में,
पाकर गर्भ हुई भू धन्य।
बारह वर्षों बाद निकल कर,
कहलाए वह धरती जन्य।।

नाथ निरंजन का गुण गाने,
गुरु शिक्षा को हैं तैयार।
गुरु मच्छेंद्र पुकारे गोरख,
गोरख महिमा अपरंपार।।

मच्छेंद्र परीक्षा लेते अब,
गोरख की जो मांगे दान।
प्रण गुरु का पूरा करते वो,
ऑंख निकाले दे बलिदान।।

देख तपस्या करते गोरख,
इंद्र डरे सिंहासन डोल।
भंग तपस्या करने को फिर,
बोल रहे थे भरकम बोल।।

राज्य त्रिया में पहुॅंचे गोरख,
धार लिया नारी का रूप।
ज्ञान दिया अपने ही गुरु को,
आभा फैली विश्व अनूप।।

शिष्य पिपासा भी पूरी की,
मनाकनी रानी का मान।
अपने गुरु को राह दिखाई,
और वचन पूरा हनुमान।।

नाथ पंथ की रक्षा करके,
दीन दुखी का देते साथ।
धैर्य धरे मर्यादित योगी,
मान बचाते गोरखनाथ।।

गुरु आज्ञा से चिमटा गाढ़ा,
बैठ लगा धूॅंणा नेपाल।
अब वर्षा बूंद नहीं होगी,
नाथ प्रतिज्ञा घोर अकाल।।

धूर्त महेंद्र सबक सीखे फिर,
काल रहा था चीख-पुकार।
नेपाल नरेश बुरा त्यागे,
वर्षा होती मेघ अपार।।

फिर से क्रूर हुआ वो दानव,
कौन लगाए बेड़ा पार।
मिट्टी घोल बनाए सैनिक,
जान भरी सेना तैयार।।
 
बलवंत बना बंदी लाया,
हार करे पापी स्वीकार।
फिर से तोड़ घमंड दिया था,
खत्म हुआ अब अत्याचार।।

त्री विक्रम राजा को जीवन,
देने की ली मन में ठान।
सोच विचार बिना प्रण लेकर,
करते गुरु नेक समाधान।।

काली से गोरख युद्ध करे,
क्रोध मिटाया करके ध्यान।
तीन वचन लेकर छोड़ा फिर,
तोड़ा चण्डी का अभिमान।।

वीरभद्र की आई शामत,
योगी आज सुनाते दण्ड।
नाथ बचा तन अपने गुरु का,
लौटे उसका तोड़ घमंड।।

गोरखनाथ प्रतापी योगी,
नेत्र बुझा सब लेते जान।
नाथ अलख के बोल जगाते,
शिव अवतार बना आख्यान।।

देखो महिमा योगी जी की,
गोरख हरते सब के त्राण।
ढूंढ लिए टुकड़े गुरु तन के,
वापिस आए उनके प्राण।।

देख पवित्र धरा होती अब,
करते सब जन का उत्थान।
दैत्य धरातल पर काटे सब,
योगी साधु मिले सम्मान।।

नरभक्षी राक्षस ऐसा वो,
दैत्य बड़ा था नाम सुबाहु।
योगी जन को ऐसे खाता,
जैसे काल घटाए राहु।।

गुरु महिमा है वारी न्यारी,
निर्धन को करती धनवान।
जिनके हाॅंड नहीं दाने हों,
उनके घर पकते पकवान।।

बीज बिना पौधे उग जाते,
खेतों में उग जाते धान।
ऐसे थे गुरु गोरख बाबा,
दीन दुखी का करते मान।

नग्न कलेवर को पट देते,
भूखे को देते जलपान।
मूर्ख मिले तो वो मति पाता,
बाॅंझ सुता पाती संतान।।

दीन दुखी बनते जब सेवक,
हाथ बढ़ाकर हरते त्राण।
करते नाथ वचन पूरा फिर,
हर पापी के सूखें प्राण।

धूर्त निशाचर जो घूमे यूॅं,
वे राक्षस से लड़ते युद्ध।
अत्याचारी जो हो जाते,
उन दानव पर होते क्रूद्ध।।

हार नहीं होती उनकी फिर,
जिनके तारण होते नाथ।
शुभ आशीष मिले उनको फिर,
धरते सिर गुरु गोरख हाथ।।

भस्म रमा कर माथे योगी,
स्वाह पुड़ी में डाल भभूत।
खाकर भक्तों के दुख कटते,
भागें डर के मारे भूत।।

जन्म लिया योगी ने भू पर,
रत्न बचाने को अनमोल।
अड़ियल पूरे तप करते वो,
कड़वे बोल रहे वो बोल।।

खिचड़ी का इक थाल बनाकर,
पूरे जन का भरते पेट।
अब है वह नगरी गोरखपुर,
शीश नवाएं माथा टेक।।

चल के नाथ हिमाचल आए,
ज्वाला माॅं करती आह्वान।
आग उबाले काठ हॅंडी जल,
बैठी माता अंतर ध्यान।।

पानी उबले एक जगह पर,
काॅंगड़िया कस्वा था कोट।
दर्शन पाकर कष्ट मिटाओ,
लोप कराओ सारे खोट।।

क्रोधित होकर ज्वाला उखड़ी,
ढूंढन भेजा काल भूचाल।
बोले दैत्य धराछाई कर,
नीति बुने सब अपने जाल।।

अब तो लौटो नाथ भले तुम,
नीर बहाएं सारे संत।
भोग लगाओ पर्वत चड़के,
तब होगा कलयुग का अंत।।

वैष्णों माता अंत गुफा में,
बैठी होकर अंतरध्यान।
भैरवनाथ चला पीछे जब,
वीर अड़े आगे हनुमान।।

माता ने गर्दन काटी फिर,
गुस्से होकर मार त्रिशूल।
गोरख बीच बचाने आए,
कर दो माफ नहीं हो भूल।।

हे गुरु मुझको जीवन दे दो,
टूटा अब मेरा अभिमान।
माॅं के बाद हो भैरव पूजा,
दें गोरख एक समाधान।।

रानी काशल कपटी नारी,
धोखे से लेती वरदान।
चाल कपट से छलती सबको,
गुरु देखे हो अंतरध्यान।

राजा नाग जगाए जाकर,
बाशल की भरनी थी गोद।
नाग पदम को उनसे मांगा,
गोगा होगा पुत्र अमोद।।

काशल को फिर शाप दिया था,
पुत्र मरे तो धरना धीर।
दोनों बेटे शीघ्र मरेंगे,
आएगा जब जाहरवीर।।

बारह वर्षों बाद बना फिर,
चेला गुरु का जाहरवीर।
गोरख के तप शिक्षाओं से,
मिटती जन मानस की पीर।।

*दोहा* 
गुरु गोरख के नाम से, भागें भूत पिशाच।
घर में रखें भभूत को,रोगी जाएं नाच।।


   *परमजीत सिंह कोविद* 
            *कहलूरी*



 

22 comments:

  1. आदरणीय गुरुदेव जी को नमन 🙏
    आदरणीया नीतू ठाकुर विदुषी जी का हार्दिक आभार
    इस सुंदर लेखन के लिए हर्षित हूं और गौरवान्वित भी।
    🙏🙏🙏💐💐💐

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक लेख है ।
    बहुत-बहुत बधाइयां।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय, हार्दिक बधाई🌻🌻

    ReplyDelete
  4. अद्भुत सृजन 👌👌👌
    प्रशंसनीय 👌👌👌 सधा हुआ शिल्प
    उत्तम भाव
    आदरणीय कोविद साहेब अनंत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर नमन गुरु देव 🙏
      हार्दिक आभार
      आशीर्वाद बनाए रखें।

      Delete
  5. वाह! बहुत सुंदर सृजन कथा सार बहुत सरलता से सहज ही समझ आने जैसा सधा हुआ शिल्प सुंदर शब्दों का संयोजन।
    अप्रतिम।

    ReplyDelete
  6. बहुत शानदार

    ReplyDelete
  7. सुंदर सार्थक सृजन भैया परमजीत 🙏🏼💐

    -गीतांजलि

    ReplyDelete
  8. सुंदर और सार्थक सृजन बधाई आदरणीय

    ReplyDelete
  9. हार्दिक आभार आदरणीया 🙏💐

    ReplyDelete