गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की प्रेरणा से कलम की सुगंध विज्ञात नवगीत माला मंच पर मुहावरेदार लेखन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन में आदरणीय परमजीत सिंह 'कोविद' जी ने सभी का मार्गदर्शन किया। इस चर्चा का कुछ अंश आप सभी के सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं ताकि आप भी उसका लाभ उठा सकें।
संचालक : नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मुख्य वक्ता : परमजीत सिंह 'कोविद' कहलूरी
प्रश्न:-1मुहावरेदार कथन क्या है??
उत्तर:- आमतौर पर हमने देखा है कि मुहावरे जो भी बात कहते हैं उसका अर्थ कभी भी स्पष्ट रूप से नजर नहीं आता। मुहावरे की भाषा हमेशा संकेतिक होती है। मुहावरा कम शब्दों में किसी बड़ी बात की ओर संकेत करता है।
अर्थात संक्षेप में कहा जाए तो मुहावरेदार कथन का अभिप्राय यही है कि हम अपने वक्तव्य को कुछ इस तरह से प्रस्तुत करें कि उसका अर्थ सीधा और सपाट ना होकर किसी और अर्थ का संकेत करे।
प्रश्न -2 नवगीत संरचना में मुहावरेदार भाषा का चयन जरूरी क्यों?
उत्तर:- ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मुहावरा सुनने में अच्छा लगता है और समझने में हम उस आनंद लेते हैं उसी प्रकार एक नवगीत की संरचना में मुहावरेदार भाषा काम करती है कवि अपने शब्दों को कुछ इस तरह से व्यक्त करता है कि उसके वाक्य मुहावरों की तरह किसी अलग दिशा में संकेत करते जाते हैं और नवगीत का एक नया और स्पष्ट अर्थ दर्शाते जाते हैं। इसीलिए नवगीत में मुहावरेदार और लच्छेदार भाषा का प्रयोग करने के लिए कहा गया है।
प्रश्न:-3 क्या सीधे और स्पाट वाक्यों वाली रचना को नवगीत स्वीकारा जा सकता है?
उत्तर:- नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है।
नवगीत की विशेषता ही इसे स्वीकार आ गया है कि इसमें स्पाट कथन वर्जित हैं। कभी को अपनी बात सीधे-सीधे रखने पर मनाही है क्योंकि सीधे और सपाट कथन गीत का हिस्सा तो हो सकते हैं पर नवगीत का नहीं।
घुमावदार कथन के साथ-साथ मुहावरेदार और लच्छेदार भाषा से नवगीत में चार चांँद लग जाते हैं।
प्रश्न:-4 मुहावरेदार भाषा का प्रयोग किस तरह किया जाए?
मुहावरेदार भाषा के प्रयोग के लिए अपनी रचना से संबंधित कुछ मुहावरेदार शब्द समझ में रखिए और नए बिंब का प्रयोग करके उसके कथन पर मुहावरेदार भाषा को जोड़िए। साथ में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि आप अपने रचना के अर्थ को साथ लेकर आगे बढ़ते रहें।मुहावरेदार भाषा के प्रयोग के लिए यह आवश्यक नहीं है कि जो मुहावरे पहले से चलन में हैं आप उन्हीं का प्रयोग करें बल्कि आप अपने बनाए हुए नए कथन भी शामिल कर सकते हैं। अपनी बातों को घुमा फिरा कर मुहावरों की तरह पेश करते जाएंँ। ताकि आपकी रचना रहस्यमई लगे। रचना के अर्थ संकेतिक भाषा में और प्रतीकों के माध्यम से बताए जाएँ।
बिंब जो काम करता ना हो वह काम उससे करवाना है। जिससे रचना आकर्षित लगे और पाठकों को इसका आनंद आए।
प्रश्न:-5
निर्धारित मापदंडों पर यदि आपकी रचना सही ना उतरे तो विचलित होने की आवश्यकता है या नहीं??
आदरणीया हेमा जोशी जी का प्रश्न
उत्तर:- मेरे विचार से यदि आपकी रचना निर्धारित मापदंडों पर सही नहीं उतर रही है फिर भी आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। आपको अनवरत प्रयास करते रहना है क्योंकि प्रयास से ही रचना श्रेष्ठ होगी।यदि आपकी रचना नवगीत विधा में मान्य नहीं हो तो भी वह किसी न किसी विधा में मान्य जरूर होगी क्योंकि रचना तो रचना है उसमें आपने अपने भावों को सृजित किया है। शब्दों को पूरी मेहनत से उकेरा है और एक निश्चित शैली में माला के रूप में पिरोया है तो निश्चित रूप से घबराने की या विचलित होने की आवश्यकता नहीं है आपका लगातार लिखने का प्रयास ही आप को महान साबित करता है अपनी हर एक कमी को पूरा करते हुए धीरे धीरे रचना के निर्धारित मापदंडों पर एक ना एक दिन आपकी रचना उत्कृष्ट अवश्य बनेगी ऐसा मेरा मानना है।
नवगीत की विशेषताएं
1.जड़ाऊ शिल्प
2.श्रेष्ठ तुकांत
3.घुमावदार भाषा
4.मुहावरेदार कथन
5.बोलते बिंब
6. शब्दों का सटीक चयन
7. घनिष्ठ संबंधित प्रतीक
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी 💐💐💐
ReplyDeleteकठिन विषय को सरल तरीके से समझाया आपने
सफल आयोजन की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐
सादर आभार आदरणीया आदरणीय गुरु देव और आपकी प्रेरणा से बहुत कुछ सीखने को मिला है।
ReplyDeleteनमन गुरु देव 🙏💐
ज्ञानवर्धक जानकारी आदरणीय।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी देती सार्थक पोस्ट।
ReplyDeleteसाधुवाद।
आपने इतनी अच्छी तरह से समझाया है आदरणीय मैं अवश्य कोशिश करूंगी।आदरणीय गुरुवर व आप लोगों की जितनी प्रसंशा की जाय कम है,आपके स्नेह के लिए सहृदय आभार
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