Monday, 28 October 2019

एक अनोखी दीपावली....बंदना पंचाल

*एक अनोखी दीपावली*
दीपों की सुंदर अवली से  दीया  एक उठाएं,
किसी अंधियारे घर में उसे  चुपके से रख आएं।
अश्रु पूर्ण नयनों में हम हर्ष आंसू लाएं,
एक अनोखी दीपावली मिलकर चलो मनाएं।

पटाखों से  गूंज रहा हो जब नीला आकाश,
 बैठा हो जब कोई नन्हा होकर  बहुत उदास।
फुलझडी की चंद रोशनी चलो उसे दे आएं,
एक अनोखी दीपावली मिलकर चलो  मनाएं।

तरह तरह के पकवानों से महक उठे  घर - आंगन,
क्षुधा तृप्ति की खातिर जब कोई फैलाए दामन।
अपने हिस्से के भोजन से उनकी भूख मिटाएं,
एक अनोखी दीपावली मिलकर चलो   मनाएं।

धर्म और जाति के नाम पर फैले  न द्वेष का  भाव ,
दुख की तपती धूप हो अगर,तो  बन जाएं हम छांव।
खुशियों का फैले उजियारा ऐसा दीप जलाएं,
एक अनोखी दीपावली  मिलकर चलो मनाएं।
                      बंदना पंचाल
                      अहमदाबाद

कुछ ऐसे दिये जले...मीनाक्षी पारीक

खुशहाली हर द्वार द्वार ओ अँगना में खिले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

            नाश हो तिमिर का
            लोभ मोह दंश का
           अन्त हो विकार का
            दुर्बलों की हार का

माथे पर  महकता पसीना कर्म का फले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे  दियें जले।।

         हरियाली युक्त खेत हो
          प्रदूषण  मुक्त  रेत  हो
         ना कोई मन निराश हो
        पूरी वे अधूरी आस हो

फिर मनुजता भटकी हुई,विश्वास में ढले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

       दिल की मिटायें रंजिशे
       हो अपनत्व की ख्वाहिशें
       हटे नारी की सब बंदिशें
        रोजाना रचती साजिशें

छोड़ भेद भाव गिले सब साथ मिल चले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

         अब शुद्ध खान पान हो
          लहराते  खेत धान हो
         निराशायें  आसमान हो
          राष्ट्र विश्व मे महान हो

हर भारतीय मन में अपना देश हित पले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

          सौहार्द भाव मन में हो
          सुसभ्य वस्त्र तन पे हो
          विचार उच्च पावन हो
          न धर्म जात बन्धन हो

सीमा पे भूल दुश्मनी सब दोस्त से मिलें।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दियें जले।।

मीनाक्षी पारीक
जयपुर (राज)

आई दीवाली....सुशीला साहू "शीला"

*आई दीवाली*

आई दीवाली मिल कर दीप जलाएँ,
घर आँगन का कोना कोना महकाएँ।

प्रथम पुज्य श्रीगणेश जी को करें वदंन,
अक्षय फल प्राप्त अर्जित करें जन जन।
खोया बुद्धि विवेक मिले पूजें हंसवाहिनी,
माता लक्ष्मी विराजे सदा वैभव प्रदायिनी।
अविनाशी फल दें घर धन धान्य भराएँ,
आई दीवाली मिल कर दीप जलाएँ....

जात पात भेद न हो करें हंसी व ठिठोली,
घर आँगन सजे सुन्दर-सुन्दर रंग रंगोली।
खिल बतासे बाँट-बाँट खायें पेड़ा मिठाई,
नूतनवस्त्र धारण करें फूलझड़ी लेअंगड़ाई।
सपरिवार मिल कर दीपावली संग मनाएँ।
आई दीवाली मिल कर दीप जलाएँ.....

सबके मन में उपजे ज्ञान और प्रकाश,
माँ की गुण गायें मिले हर्ष और उल्लास।
ऊँच नीच का भेद भाव हम सब भुलाएँ,
जीवन की बगिया में रोशनी हम फैलाएँ।
हर्षित मन होआरती की थाल सजाएँ।
आई दीवाली मिल कर दीप जलाएँ....

मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू से तन-मन,
रिझ उठे हैं दीपों की ललकती लौ मगन।
दीपों की मालाओं से दुल्हन सी सजी धरा,
सर में ताज पहने अम्बर दिखे तारों से भरा।
आशाओं की ज्योति से नव प्रकाश फैलाएँ,
आई दीवाली मिल कर दीप जलाएँ......

सर्वहित के लिए हम आज एक संकल्प लें,
वादा खुद करें क्रोधअनल लालच छोड़ दें।
सदा रहे महान दीपावली पर्व इस जहान में,
फूलों सी बगिया सजी रहे सदा जीवन में।
निष्ठा पूर्वक गृह रोशनी की अवली सजाएँ
आई दीवाली मिल कर दीप जलाएँ.....
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*सुशीला साहू* *शीला*
*रायगढ़* *(छत्तीसगढ़)*

Monday, 21 October 2019

षोडषाक्षरावृत्ति चामर छंद....धनेश्वरी देवांगन " धरा "

 
*विध------षोडषाक्षरावृत्ति  चामर छंद*
*विषय---- ---शरद पूर्णिमा*


 121  212 121 212 121 2

बयार मंद शुभ्र चाँद चाँदनी धुली धुली ।
सुहावनी छटा बिखेरती निशा खिली खिली ।।

खिले उमंग दूधिया धरा तले पड़े सुधा ।
चकोर ताकता अधीर हो चला बुझे क्षुधा ।।

कहीं नदी कगार जो प्रिया पिया निहारती ।
उजास रेशमी भरी विभावरी पुकारती ।।

प्रभास चंद्र की सुदूर अभ्र में बिछी हुई ।
मही खिली अभी पराग पुंज सी सजी हुई ।।

कहे सखी मनोहरा समीर शीत मोहता ।
पवित्र ताल आरसी बने मृगांक सोहता ।।

अनंत लाभ हो प्रसाद खीर से बने सुधी  ।
खुशी प्रदान चंचला करें "धरा" रहे सुखी ।।
  

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़ ,छत्तीसगढ़*
@kalam ki sugandh

शरद पूर्णिमा.... सुशीला साहू " शीला "

🌫️🌙🌨️ *शरद पूर्णिमा* 🌨️🌙🌫️
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पूनम की चाँद दिवस अति सोहे,
   शरद पूर्णिमा शुभ मंगलकारी।
     रात चाँदनी मधु सुधा पयोद ,
        सोम-सोम सुधा बरसाती न्यारी।
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श्वेत-श्वेत रंग शशी चंद्र प्रभा,
  भू धरातल भ्रमण की शुभ बेला।
     चंद्र किरण की अनोखी छटा,
       पावन सखी संग शरद पूर्णिमा मेला।
🌙🌨️🌙🌨️🌙🌨️🌙🌨️🌙
आसमान में अगणित सितारे,
   दिख रही थी अम्बर में लाली।
     शीतल सी बहत पवन हलचल,
       पड़त शीत तरु ओस की बाली।
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मचल रही है नव पराग कण,
   कुमुद सी कली खिलखिला कर।
     असंख्य तारों के मध्य चंद्र किरण,
       शरद पूर्णिमा में झिलमिला कर।
🌙🌨️🌙🌨️🌙🌨️🌙🌨️🌙
शरद पूर्णिमा की  रजनी में,
   चमचमाती मोती सी ओस की बूँदें।
     श्वेत धवल दूग्ध से बनी खीर में,
        छलछलाती हुई पड़ी नीर की बूँदे।
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सुशीला साहू "शीला"
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
@kalam ki sugandh

शरद पूर्णिमा चौपाई ...इन्द्राणी साहू " साँची "

विषय - शरद पूर्णिमा
विधा - चौपाई
*******************
वर्षा गई शरद ऋतु आई ,
शरद पूर्णिमा निशा सुहाई ।
निर्मल व्योम हुआ अति सुंदर ,
स्वच्छ चाँदनी बिखरी भू पर ।
***
निष्कलंक सा दिखता अम्बर ,
जलद छुप गया जाय कहीं पर ।
पंक रहित धरती सुख पाई ,
शीतल पवन चली पुरवाई ।
***
पूर्ण ज्योत्सना शशि बिखराए ,
सुमन सुगन्ध निशा महकाए ।
रजनी मोहक रूप बनाती ।
पंचम स्वर में तान सुनाती ।
***
शरद पूर्णिमा अति मन भावन ,
अमृत बरसे शीतल पावन ।
मंत्र मुग्ध करती यह रजनी ,
विरह वेदना व्याकुल सजनी ।
***
शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर ,
अद्भुत रास रचा धरती पर ।
राधा गोपी सब मिल आए ,
संग कृष्ण के रास रचाए ।
***
जीव आत्मा हो रहा संगम ,
दृश्य हुआ है बड़ा विहंगम ।
आलौकिक छवि धरती पाई ,
शरद पूर्णिमा रात सुहाई ।।
****************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
  भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★
@kalam ki sugandh

Monday, 14 October 2019

रावण दहन ....सुशीला साहू "शीला


आज है हिन्दू पर्व का पावन दशहरा,
 कितना भी हो द्वेश और संकट गहरा।
सहनशील धैर्य विवेक बल का ले सहारा,
आओ मनाये दशहरा का पावन पर्व प्यारा।

 बांस गत्ते घास का बना एक पुतला,
दिख रहा था लंबा चौड़ा पतला दुबला।
लंका नरेश रावण था एक राजा अभिमानी,
बीसों भुजा दशों शीश कटाये रावण महाज्ञानी।

दशहरा का पर्व मनाये सब मिल कर भाई,
मतभेद न रहे हिन्दू मुस्लिम सिख्ख ईसाई।
माँ दुर्गा से आशिर्वाद मिला ये दशहरा पर्व,
सहस्त्र समाज दशहरा मनायें हमें है गर्व।

बाली दुर्योधन दु:शासन रावणऔर कंश,
इनकी अंहकार से कुल विनाश हुआ वंश।
जीत सदा सत्य की रखिए मन में विस्वास,
सच्चाई के सामने हो अंतस बुराई का नाश।

रावण महाज्ञानी शिव का परम भक्त,
सीता हरण के लिए धरा वेश साधु संत।
दशानन के जब बढ़ गये भू अत्याचार,
दशहरा के दिन श्रीराम जी ने किया संहार।

दशहरा में राम जीत की परम्परा निभाऐंगे,
रावण के साथ साथ बुराई को भी जलाऐंगे।
दशहरा विजयादशमी की शुभकामनाएँ,
जीवन में सुख शांति की मंगल भावनाएँ।

सुशीला साहू "शीला"
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

आल्हा छंद "दशहरा'...इन्द्राणी साहू " साँची"

विधा - आल्हा छंद ,मात्रिक ,(16,15) ,
          पदांत - 2 1       
*****************************
*रचना*
.आज दशहरा पावन आया ,
      दंशहरन का है त्योहार ।
बैर भाव को दूर भगाएँ ,
    खुशियाँ तब ही मिले अपार ।।
***
सुनो दशहरा पावन गाथा ,
       समुद्र मंथन हुआ अपार ।
तभी गरल बाहर है आया ,
      शिव ने कण्ठ लिया है धार ।
दंशहरन(विष का हरण)कर धरा बचाया ,
         यही दशहरा का है सार ।
आज दशहरा पावन आया ,
            दंशहरन का है त्योहार ।।
***
अति बलशाली योद्धा रावण ,
        अहंकार वश सुध बिसराय ।
सीता माता हरकर लाया ,
        रावण कुल का नाश कराय ।
पतिव्रता को बंधक रखकर ,
        देता अतुलित कष्ट अपार ।
आज दशहरा पावन आया ,
          दंशहरन का है त्योहार ।।
***
नवदिन देवी सेवा करके ,
      शक्ति अतुलित पा रहे राम ।
माँ सीता को चले बचाने ,
        हुआ भयंकर तब संग्राम ।
अहंकार का अंत हुआ फिर ,
          जीता धर्म अधर्मी  हार ।
आज दशहरा पावन आया ,
         दंशहरन का है त्योहार ।।
***
सीता माता मुक्त हो गई ,
       खुशियाँ छाई धरा अपार ।
हम भी यह संकल्प उठाएँ ,
       बुरे कर्म को देंगे मार ।
वही दशहरा सच्चा होगा ,
       तभी मिटे धरती से भार ।
आज दशहरा पावन आया ,
        दंशहरन का है त्योहार ।।
*******************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★

रावण का अंत .....पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"

जला *दशहरे* में रावण हमने,
   कर दिया बुराई का अंत।
अगले साल फिर बन आया,
  क्या ये रावण हुआ अनंत।।

वर्षों से हम रावण वध की,
  यही प्रक्रिया दोहराते हैं।
 मरे हुए को मारते हैं फिर,
जीवित रावण बच जाते है।।

जीत के मिथ्या मद में आकर,
हम कब तक जश्न मनाएँगे।
  बुराई को पलता देखेंगे।
और पुतला मात्र जलाएँगे।।

 नित नए रावण पैदा होते,
  हरी जा रही हैं सीताएँ।
दस शीश हुए हैं अहंकार के,
 दुराचार की बीस भुजाएँ।।

नाम में अपने राम जोड़कर,
  स्वयं को ब्रह्म बताते हैं।
 आशाराम कभी रामपाल,
कभी राम रहीम बन जाते हैं ।।

धर्म नाम का शिविर लगा के,
  जनता को मूर्ख बनाते।
आश्रम इनके सोने की लंका,
  स्वयं को साधु बतलाते।।

चमत्कार की दीवानी दुनिया,
  झाँसे में है आ जाती।
बाबा खेलें आँख मिचौली,
  यह देखती रह जाती।।

पढ़ लिख कर न अनपढ़ बनें,
   ये युग है ज्ञान-विज्ञान का।
इंसान को इंसान ही रहने दें,
   मत दर्जा दें भगवान का।।

    टूट जाने दो नींद भरम की,
अब सेतू समुद्र में बँधना होगा।
  पुतले बहुत जलाए हमने,
अब रावण को जलना होगा।।

पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
   कटनी (म.प्र.)

Sunday, 6 October 2019

चाहत बदलें -कलम से...अलका मधुसूदन पटेल

चाहत बदलें -कलम से 

हम लिखते हैं तो बस अपनी ,
चाहत में खुशियां ही लिखते हैं।
ढूंढते हैं तो बीच समंदर में भी ,
किनारे ही ढूंढा करते हैं।
अपनी पसंद में हम सर्वदा ,
सूरज चांद सितारे लिखते हैं।
होते हैं जमीं में पर ये ख्वाब,
औ आकाश प्यारे लगते हैं।
अपनी लेखनी से आसमान के,
इंद्रधनुषी रंगों की कल्पनाएं लिखते हैं।
प्रकति की रची बसी वसुधा के ,
फूलों की बहारों की वर्षा करते हैं।
बहती नदियां झरने कलकल ,
ऊंचे पर्वत नवीन नजारे लिखते हैं।
*अपनी चाहत बदलें* गहरे भंवर की,
डूबते तूफ़ानों के बारे में लिखें।
सांसे जब तक चलें  हां बस ,
इन्ही तूफ़ानी जंग का आव्हान लिखें।
देखें समझें इस धरणी पर बिखरी,
मानवता का प्यार अब लिखें।
आओ मानवता के बिंधे शूलों को,
हटाएं ,उलझनों को उमंगों में बदलें,
निःसहायों पर नेहा बरसे रिमझिम,
कुछ ऐसी प्यारी फुहार लिखें।
जीवन अनमोल मिला है समय थोड़ा है,
ममता सौहाद्र का इजहार ही लिखें।
स्नेह की पत्तियां,स्निग्धता की कलियां,
स्नेही श्रद्धा के कुछ फूल उगाएं।
न हो विषमता की आंधी घृणा की 
लहरें ,शीतल हवा आस्था की आये।
सब जन मन मिल बैठें स्नेह की,
एक नई सुखी दुनिया बनाएं।
लिखें हम कुछ ऐसा कुविचारों को ,
तोड़ें आपस में जोड़ें ,मन हर्शाएं।
गरीबों की पीड़ा ,वंचितों को नीड़ा,
बांटे उनके आंसू ,रोतों को हंसाये।
जितना बांट सकें प्यार ,निर्बलों को दें
पूरा अधिकार ,ये ही संकल्प बनाएं।
देकर का शिक्षा का दान,मिटा उनका 
अज्ञान ,मंजिल उनकी *कलम* बनाएं।
कलम को संवाद बनाएं करों में उनके ,
पकड़ाएं , पूर्ण स्वाभिमानी बनाएं।
कलम को यज्ञ बनाकर करें संकल्प,
हर मनु को पुष्पित फलित सम्मान दिलाएं।
आओ चाहत बदलेंमनभ्रम तोड़ें,
ऐसा करके हम सब अपनी कलम चलाएं।

*अलका मधुसूदन पटेल* 
*जबलपुर*

कलम की ताकत....सुशीला साहू ," शीला"

कलम की ताकत
कलम की ताकत चहुओर,
ओज का संचार करती है ।
कोरे कागज पर नित,
एक नया इतिहास रचती है।

जिन्दगी के हर मोड़ पर ,
कलम की ताकत साथ देती है।
छोटी छोटी कमियों को भी,
बड़ी उजागर करती है।

आग बन कर कलम ,
जन जन में क्रांति लाती है।
शोला बन कर सबके ,
सीने में दहक उठती है।

कलम की रफ्तार देखो,
बेजुवान की जुबान बन जाती है।
लाचार बेबस के आँखों से,
बहते आँसुओं का हक दिलाती है।

कलम की रफ्तार से मानस,
अभिव्यक्ति को झकझोरती है,
अंतस में छिपी चिन्गारी को
 कलम ही सुलगाती है।

हर मुल्क के कोने-कोने में,
जन-जन को हौसला देती है।
स्याही की एक-एक बूँद,
सच्चाई की सद्भभावना लाती है।


सुशीला साहू "शीला"
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

कलम की बगावत....पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"

कलम की बगावत

जब हृदय धधकती ज्वाला है,
 कैसे अमन और प्यार लिखूँ।
 ये कलम बगावत कर बैठी,
अब पुष्प नहीं अंगार लिखूँ।।

सड़कों पर लुटती अस्मत या,
लपटों में लिपटे तन लिख दूँ।
कोख में मिटती किलकारियाँ,
भीख माँगता बचपन लिख दूँ।

 धर्म नाम  से  दंगे  बलवे,
सने खून से अखबार लिखूँ।
ये कलम बगावत कर बैठी,
अब पुष्प नहीं अंगार लिखूँ।।

ठोकर खाता  लिखूँ बुढ़ापा,
 फुटपाथ पे सोयी जिंदगानी।
भीषण सूखा या बाढ़ कभी,
 मौसम की लिख दूँ मनमानी।

  जले  तेजाब  से  मुखड़े हों,
  कैसे मिलन व श्रंगार लिखूँ।
 ये कलम बगावत कर बैठी,
 अब पुष्प नहीं अंगार लिखूँ।।

पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
      कटनी