Sunday, 28 March 2021

संजय कौशिक विज्ञात जी का जन्मोत्सव...


 

कलम की सुगंध साहित्यिक समूह के संस्थापक संजय कौशिक 'विज्ञात' जी का जन्मदिवस 28 मार्च 2021को कलम की सुगंध के सभी मंचों पर मनाया गया। होली के पावन दिन गुरुदेव का जन्म दिवस होना यह ऐसा सुखद संयोग है जिसके कारण प्रतिवर्ष सभी कलमकार दोहरी खुशी का अनुभव करते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा जहाँ बधाई संदेशों की बरसात हो रही थी वहीं गुरुदेव को समर्पित अनेक रचनाएँ प्रेषित की गई जो किसी बहुमूल्य उपहार से कम नही हैं। हर्षोल्लास के सहभागी बने सभी सदस्यों के लिए यह दिवस अविस्मरणीय बन गया। इस विशेष अवसर पर "पुष्पमाला ई बुक" के माध्यम से रचनाकरों के सृजन को प्रकाशित किया गया। पूनम दुबे वीणा, सरोज दुबे विधा, शरद अग्रवाल, कुसुम कोठारी प्रज्ञा इन सभी की सस्वर प्रदतुती ने इस पर्व को बहुत ही सुरीला और आकर्षक बना दिया।उन यादगार क्षणों से कुछ रचनाएँ आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं।

जन्मदिवस के अवसर पर गुरुदेव को सपर्पित शब्द सुमन 🙏

मिलेगी ज्ञान में जिनके,  तपस्या इक समंदर की
झुकाकर शीश उस पग में, ऊँचाई छू लें अम्बर की
बड़े ही भाग्य से मिलते है सच्चे साथ गुरुवर के
बहे नित काव्य की नौका फिकर कब है बवंडर की

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

जन्म दिन की आपको
बहुत बधाई आज
रंग अबीर गुलाल से
माला माल हो साज i
सकल रंग रंग से भरे
दामन रंग चमकाय
यश गौरव विज्ञात जी
पल पल बढ़ता जाया !
happy bday 🎂🎂🍓🍓

ड़ा यथार्थ

*जन्मदिन के अवसर पर गुरुदेव को समर्पित* ---

1.जनमदिन आज गुरुवर का
चलो मिलकर मनाते हैं
खुशी के फूल पग उनके   सभी मिलकर चढ़ाते हैं
गगन में चाँद तारों सा चमक उनकी सदा  बिखरे
सफलता नित मिले उनको  यही हम गीत गाते हैं ll

2.चले कब ज्ञान की नैया लहर में डूब वो जाती
बने पतवार जब गुरुवर
तभी आगे निकल पाती
बिना गुरुवर नहीं मिलता जगत में ज्ञान तुम जानो
मिले आशीष गुरुवर का किनारे नाव तब आती

*सरोज दुबे 'विधा'*

आ0 गुरुवर विज्ञात जी के जन्मदिवस पर
जन्मदिवसस्य अनेकशः शुभकामना:
सुयश: भवतु, विजय:भवतु

उल्लाला छन्द

जन्मदिवस शुभकामना,करें आप स्वीकार ये।
आलोकित हो पथ सदा,रहे सफलता सार ये।।

सौम्य सहज व्यक्तित्व अरु,मुखड़े पर मुस्कान है।
संजय गुरु विज्ञात की,यही श्रेस्ठ पहचान है।।

हिंदी के उत्थान में,करते सतत प्रयास हैं।
भाषा सेवा लक्ष्य रख,सदा किया अभ्यास हैं ।।

मुखिया हैं परिवार के,पूरी करते आस ये।।
मार्ग प्रदर्शक आप बन,लिखें नया इतिहास ये।।

सुखमय भविष्य हो सदा,सुखी रहे परिवार सब।
सदा ईश आशीष से,खुशियाँ मिले अपार सब।।

मन भावुक सा हो रहा,मिला आप का स्नेह जो।
परम सौभाग्य से मिला,श्रेस्ठ साहित्य गेह जो।।

रचनात्मक अभिव्यक्ति और सीखने सिखाने की परंपरा का निर्वहन करते  हुए आपने अपने कुशल नेतृत्व से कितनों को ही गढ़ा है।
मेरा सौभाग्य है कि मैं इस संस्थान और परिवार का हिस्सा हूँ ।
ईश्वर आपको अपार यश ,सुख समृद्धि और स्वास्थ्य
प्रदान करें।

अनिता सुधीर आख्या

आदरणीय गुरु जी के जन्मदिन पर गुरु जी को समर्पित।
***********
उल्लाला छंद
***********
गुरु महिमा
*********
जिसे गुरु की शरण मिले,
वो  भवसागर  पार  है।
जहां गुरु का मान नहीं,
वो  हिय पृथ्वी भार है।

ज्ञान  पुंज  विज्ञात हैं,
जो सीखे वो तर रहा।
सिद्ध हो रही मापनी,
छंद कटोरा भर रहा।

आंख बंद थी चल पड़े,
कौन बिठाए  नाव में।
हाथ दिया गुरु आपने,
सीखा सब ठहराव में।

चुन-चुन  मोती  डालकर,
सब  रचनाएं  लिख रहा।
गुरु की औषधि का असर,
हर  रचना में  दिख  रहा।

आज धरा कल डाल पर,
जिनको है संतोष कम।
जिससे सीखो गुरु वही,
खुद में दिखते दोष कम।

      *परमजीत सिंह "कोविद"*
                *कहलूरी*
           *हिमाचल प्रदेश*

कलम की सुगंध छंदशाला की मुख्य मंच संचालिका अनिता मंदिलवार सपना जी ने इस विशेष अवसर पर 'उल्लाला छंद शतक वीर' कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह का  सुंदर संचालन किया । कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ अनिता भारद्वाज अर्णव जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण के बाद अपने शब्द सुमन प्रेषित किये...

लबों पर हो सदा मुस्कान पल- पल तू निखर जाए ।
सुगंधी पुष्प सी बनकर यहां पर अब सँवर जाए।
मिले हर रंग का गौरव तुझे जगमग ज़माने में ,
मगर इक रंग स्वर्णिम सा दिवाना बन ठहर जाए।🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌺🌹🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

इस आयोजन के विशेष अतिथि वरिष्ठ कवि और महफ़िल-ए-ग़ज़ल के संचालक धर्मराज देशराज जी ने कहा---

सन 1975 में उलाला छंद
को
हायर सेकेंडरी में गाईड और कुंजियों के माध्यम से पढ़ा था।
अगर विज्ञात जी जैसे गुरु उस समय मिल जाते तो शायद इस काव्य-गंगा में स्नान कर लेता।
मगर उस समय कुछ शायर मिल गए
और
शायरी का रोग लगा बैठा।
बहुत आनन्दित करने वाली विधा है छंद।

हाइकु विश्वविद्यालय के मुख्य संचालक नरेश कुमार जगत 'प्रज्ञ' जी ने बधाई देते हुए कहा--

वाह्ह... बहुत ही शुभ तिथि में कलम के वीर आ. गुरुदेव संजय कौशिक "विज्ञात" साहब का अवतरण हुआ है। हमें आप पर नाज है, आप सदैव स्वस्थ्य रहें और चीर काल तक सूरज की तरह दमकते रहें, जिससे हम सभी पोषित हों । सादर नमन् व अनेकानेक हृदयतल से मंगल बधाई🌷🌹💐🌺🥀🌸🌷🌹💐🌺🥀🌸👏👏👏👏👏👏👏👏👏आज हमारे लिए विशेष तिथि है, पार्टी तो बनती है 😀😃😄😁🙏🌷🙏🌸🙏🥀🙏🌺🙏💐🙏🌹

हाइकु विश्वविद्यालय की व्यवस्थापक अनुपमा अग्रवाल जी ने आयोजन के विषय में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा--

आज का जन्मोत्सव बहुत ही शानदार रहा👏👏👏👏👏सभी कलमकारों की लेखनी से निकले एक से बढ़कर एक सुंदर शुभकामना संदेश वाकई मन को हर्षित करने वाले थे।और गायन में पटल पर सभी एक से बढ़कर एक हैं ही तो उन सभी ऑडियो शुभकामनाओं को सुनकर मन पुलकित है, हर्षित है।
आदरणीय सर का आभार गीत अद्भुत है।
ई- पुष्प और सभी बैनर्स की जितनी भी प्रशंसा करूँ कम ही लगती है।
नीतूजी अपने अथक प्रयासों से हर विशेष दिन को एक महोत्सव बना देतीं हैं।
आज होली के इस पावन उत्सव के दिन आदरणीय के जन्मदिवस ने उत्सव को महोत्सव बना दिया।
ई- पुष्प में भी सर ने अपने अनोखे अंदाज़ में हम सभी को कृतार्थ किया।🙏🙏
आज त्योहार का दिन होने से अति व्यस्तता के चलते इस सुंदर कार्यक्रम में अनुपस्थित रहने का बेहद अफसोस है।
एक बार फिर सभी को इस सुंदर कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए बहुत बहुत बधाई! आदरणीय  सर को पुनः एक बार जन्मदिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!।सभी को होली के पावन पर्व की अशेष बधाइयाँ।

सभी का आभार व्यक्त करते हुए गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी ने कहा--

आप सभी का आत्मीय आभार ज्ञापित करता हूँ
आप सभी ने जन्म दिवस के छोटे से हर्ष के विषय को न केवल उत्सव बल्कि मेरे जीवन के सबसे बड़े महोत्सव में परिवर्तित कर दिया जिससे हर्ष पुलकित हो कर अम्बर को छू रहा है 🙏🙏🙏
आप सभी को नमन 🙏🙏🙏

गीत
पूर्ण महोत्सव योग कहें
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 16/14

साधारण से हर्ष विषय को
उत्सव सा उद्योग कहें
उत्सव तो ये सबने देखा
पूर्ण महोत्सव योग कहें।।

देख कलम की सुगंध हर्षित
गीत अचानक कुछ महके
नूतन सा फिर ओढ़ दुशाला
बिम्ब कथन उत्तम चहके
गज़लों की महफ़िल भी गुंजित
वाह वाह सब लोग कहें।।

हाइकु मर्यादित सागर सा
श्रेष्ठ विश्वविद्यालय है
सपनों ने हो शायद देखा
विस्तृत तेज हिमालय है
सबने ढेर बधाई भेजी
खण्ड काव्य संजोग कहें।।

काव्य विधा सुन श्रेष्ठ युक्ति है
माला भाव पिरोने की
नित्य सृजक बन छंद रचाएं
खड़ी लेखनी सोने की
सब कवियों ने मंगल गाया
मिटता सारा रोग कहें।।

हृदय सदा आभार कहेगा
कंठ भरा अवरुद्ध पड़ा
शीशे का इक खोल बनाकर
हीरा कुनबा मध्य जड़ा
नेह भाव को दिन ये अर्पित
निर्मित छप्पन भोग कहें।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

इस सफल आयोजन की सभी को अनंत शुभकामनाएं 💐💐💐




Thursday, 25 March 2021

उल्लाला छंद विधान उदाहरण सहित


 उल्लाला छंद - उल्लाला छंद के प्रायः दो भेद होते हैं 2 पंक्ति 4 चरणों में दोहे की तरह दूह कर लिखा जाने वाला यह छंद अपने आकर्षण के चलते सर्वत्र विख्यात है इस छंद का प्रथम भेद 

दोहे के विषम चरण की 13 मात्राओं के मात्रा भार और शिल्प का अनुकरण करते हुए इसी एक चरण के शिल्प को लगातार 4 चरणों में लिखने से उल्लाला छंद का प्रथम भेद निर्मित होता है जो कवियों द्वारा लेखन में अत्याधिक प्रचलित रहा है।


इसी प्रकार इसका द्वितीय भेद प्रचलन में कम रहा है तदापि इसकी उत्तम लय आकर्षण का केंद्र रही है इसका शिल्प भी दोहे के विषम चरण की 13 मात्राओं के शिल्प में 2 मात्राएं और जोड़ देने के पश्चात विषम चरण 15 मात्राओं का तथा सम चरण दोहे के विषम चरण 13 मात्राओं में दोहे के विषम चरण के शिल्प का अनुकरण करना होता है। इस प्रकार से उल्लाला के द्वितीय भेद के शिल्प में  4 चरणों का मात्रा भार  15-13 और 15-13 रहता है।


उल्लाला छंद का द्वितीय भेद जिसका मात्रा भार 15,13 और 15,13 रहता इस छंद के शिल्प में विशेष ध्यान में रखने वाली बात ये है कि इसके प्रारम्भ में चौकल अनिवार्य है परन्तु जगण वर्जित है। इस छंद की लय गाल-लगा के प्रयोग सी गुथी हुई होती है। अपनी उत्तम लय के कारण इसकी गेयता का आनंद चरम पर होता है। श्रोता भी इसकी उत्तम लय के विशेष आकर्षण के चलते आनंद प्राप्त कर झूम उठते हैं। तुकबंदी सम चरण द्वितीय और चतुर्थ चरण की मिलाई जाती है। आइये उदाहरण के माध्यम से समझते हैं । 


उदाहरण


ये नदिया बहती पूछती, 

लहरों के क्या काम हैं।

कश्ती ये बहती बोलती, 

लहरें मेरे धाम हैं।।


निर्धनता है अभिशाप है, 

भोगें निर्धन लोग हैं। 

राजनीति की यह चाल या, 

विधना के संयोग हैं।।


ये नदिया बहती बोलती, 

लहरों ठहरो आप मत।

तिर पाएगी कश्ती तभी, 

करलो श्रम हो आज नत।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

*उल्लाला शतकवीर कार्यक्रम में समीक्षक समूह द्वारा किस गलती से अंक काटे जा सकते हैं इस ओर सभी अपना ध्यान दें और इसे कंठस्थ करलें तथा कहीं सुरक्षित भी अवश्य करलें।* (प्रारंभ - 30.04.2021)


*उल्लाला 15/13 मात्रा भार के साथ लेकर लिखना है* 


मापनी की दृष्टि से समझें 

22 22 2 212, 22 22 212

22 22 2 212, 22 22 212


*कुछ अन्य सावधानी*

1 जगण का प्रयोग चारों चरणों के प्रारम्भ, मध्य और अंत में वर्जित रहेगा

2 चौकल से प्रारम्भ करना अनिवार्य है। और लय आल्हा छंद की तरह गुँथी हुई होनी अनिवार्य है।

3 विषम जो 15 मात्रा के चरण हैं। चरण 1 और 3 में 13 वीं मात्रा लघु रखनी अनिवार्य है। संक्षेप में समझें 10 मात्रा के पश्चात (212) अनिवार्य है।

4 सम चरण 2 और 4 में 11वीं मात्रा लघु रखनी अनिवार्य है ये चरण शिल्प की दृष्टि से दोहे के विषम चरण 1,3 की तरह ही लिखे जाएंगे। संक्षेप में समझें तो 8 मात्रा के पश्चात (212) अनिवार्य है।

5 त्रिकल का प्रयोग त्रिकल के साथ अनिवार्य है और विशेष ध्यान रखें कि त्रिकल 21,12 ✅ ये ही प्रयोग कर सकते हो 2121❌ 12 12❌ 1221❌ *तो ध्यान रहे इस कार्यक्रम में लिखी जाने वाली रचनाओं में त्रिकल के साथ त्रिकल का मात्र एक ही रूप स्वीकार्य है वो है 21,12 इसके पृथक त्रिकल के पश्चात त्रिकल का कोई भी रूप मान्य नहीं रहेगा* 

6 वैसे प्रयास ये करें कि पूरी रचना में किसी भी त्रिकल से बचा जा सके अंतिम 3 मात्रा को छोड़ कर। 

7 यदि 111 तीन एक मात्रा भार वाले त्रिकल का प्रयोग करना पड़े तो यह किसी भी चरण के अंत में ही करना होगा इससे पृथक कहीं भी वर्जित है। 


त्रिकल प्रयोग मत करें

👉केवल द्विकल चौकल से ही पूर्ण करें 

त्रिकल या तगण अंतिम 5 मात्रा में (212) की लय साधते समय लगा सकते हैं बस .....


आप सभी की सुविधा के लिए नियम का सरलीकरण किया जा रहा है 


क्योंकि त्रिकल का एक ही रूप जो मान्य है उस पर कई बार भाव बिखर जाते हैं या ये कहें कि भाव के अनुरूप जो कहना चाहते वो नहीं कह पाते इसी लिए 

उल्लाला छंद सृजन करते समय विषम चरण की पहली 10 मात्रा और सम चरण की पहली 8 मात्रा में मात्र द्विकल और चौकल का ही प्रयोग करना है। 


संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, 10 March 2021

झारखंड कलम की सुगंध मंच का विश्व महिला दिवस के अवसर पर जमशेदपुर में काव्य गोष्ठी का आयोजन

 


आज झाड़खंड कलम की सुगंध ने विश्व महिला दिवस के अवसर पर जमशेदपुर में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।कलम की सुगंध झारखंड प्रांत की अध्यक्षा आरती श्रीवास्तव ने बताया कि आज की अध्यक्षता आ.प्रतिभा प्रसाद जी ने किया। विशिष्ट अतिथि आ.शैल जी एवं बसंत जमशेदपुरी जी एवं संतोष चौबे जी थे।मंच संचालन निवेदिता श्रीवास्तव ने किया।सभी विशिष्ट अतिथि को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। प्रतिभा प्रसाद जी ने गिनिज बुक में अपना नाम दर्ज करा पूरा झाड़खंड वासियो का सर गर्व से ऊंचा किया है।उनकी उपस्थिति सबको गौरवान्वित कर रही थी।आज की गोष्ठी में शहर की प्रतिष्ठित कवियित्री सोनी सुगंधा, उपाध्यक्ष निवेदिता श्रीवास्तव,नीता चौधरी, अनिता निधि, माधुरी मिश्रा, उपासना सिन्हा,उसकी सुपुत्री तोषी सिन्हा, सुष्मिता मिश्रा, शकुंतला शर्मा,सरोज सिंह, ममता सिंह, एवं निर्मला राव शामिल हुई। निवेदिता श्रीवास्तव ने मंच संचालन किया।सरोज सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया। सबसे पहले माँ सरस्वती के सामने दीपक प्रज्वलित कर उन्हें पुष्प माला अर्पित अध्यक्ष और विशिष्ट अतिथियों ने किया। फिर सभी ने माँ के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किया।।सभी सदस्यों की प्रस्तुति एक से बढ़ कर एक रही।

संतोष चौबे जी की कुछ पंक्तियां

कोई भजन कोई गीत शादी का सुनायेगें तुम्हें।

कुछ मंदिरों तो कुछ घरौंदो में सजायेगें तुम्हें।

सुन सभी श्रोता वाह वाह कह उठे।

वहीं सोनी सुगंधा जी का गजल लोगों को दिल को छू गई।

उन्हीं के शब्दों में

"उल्फत कुछ दास्तां है जरा गौर से सुनो।

हर दर्द ही जवां है जरा गौर से सुनो।

वहीं निवेदिता श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति कुछ इस प्रकार थी।

"शहर में गांव की लड़की तुम्हें याद आती तो होगी।

वहीं अमुया के झुले है वहीं कागज की कश्ती है" 

सुन लोगों को बरबस गांव की याद आ गई।

मेरी बेटी मेरा अभिमान



बेटी है तू मेरी

नहीं कहूँगी बेटा

बेटा जैसी बोलकर

नहीं करूँगी अपमान तेरा


तू गर्व है मेरा

मेरा अभिमान है तू

तू अंश है मेरा

मेरा वंश भी तू

  उपासना

आभार व्यक्त आरती श्रीवास्तव जी ने किया।

आज का गोष्ठी का उद्देश्य सफल सिद्ध हुआ।