*विधा---------गज़ल*
*बिषय------उम्मीद*
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वफ़ा खातिर मैंने उम्मीद का लौ जलाये रखा ।
आशियाना तोड़ कर तुमने गुलशन सजाये रखा ।
एक ही पल में क्यूँ आखिर ढहा दिया तुमने उसे ?
वो ऐतबार का महल जो था हमने बनाये रखा ।
हमको नाज़ था तुमपर ,और शायद था खुद पर भी,
दिले गुलशन में जाने कितने फूल महकाये रखा ।
तेरी ही आरजू चाहत उम्मीद जिक्र फ़क्र है ,
बड़ी मुद्दत से ही दिले तमन्ना को दबाये रखा ।
तुझे कद्र नहीं वफा की, वफादारी की ,सितमगर ,
वफ़ा की उम्मीद हमने बेव़फा से लगाये रखा ।
टूटता है दिल तो सदाऐं दूर तलक जाती है,
बिखर गये हैं टूकड़े जो बरसों से बचाये रखा ।
दीवानगी ,बेकरारी ये क्या कम नहीं है "धरा" ,
अक्सो ख्वाब शिद्दत से पलकों में जो बिठाये रखा ।
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*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़,छत्तीसगढ़*