Sunday, 29 September 2019

उम्मीद....धनेश्वरी देवांगन "धरा "

*विधा---------गज़ल*
*बिषय------उम्मीद*
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वफ़ा खातिर मैंने उम्मीद का लौ जलाये रखा ।
आशियाना तोड़ कर तुमने गुलशन सजाये रखा ।

एक ही पल में क्यूँ आखिर ढहा दिया तुमने उसे  ?
वो ऐतबार का महल जो था हमने बनाये रखा ।

हमको नाज़ था तुमपर ,और शायद था खुद पर भी, 
दिले गुलशन में जाने कितने फूल‌ महकाये रखा ।

तेरी ही आरजू चाहत उम्मीद जिक्र फ़क्र है ,
बड़ी मुद्दत से ही दिले तमन्ना को दबाये रखा ।

तुझे कद्र नहीं वफा की, वफादारी की ,सितमगर ,
वफ़ा की उम्मीद हमने बेव़फा से लगाये रखा । 

टूटता है दिल तो सदाऐं दूर तलक जाती है, 
बिखर गये हैं टूकड़े जो बरसों से बचाये रखा ।

दीवानगी ,बेकरारी ये क्या कम नहीं है "धरा" ,
अक्सो ख्वाब शिद्दत से पलकों में जो बिठाये रखा ।

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*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़,छत्तीसगढ़*

उम्मीद ... बंदना पंचाल


विषय - उम्मीद
विधा - काव्य
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विपदाओं  से लडने दो
उपवन में आंधी चलने दो,
मंज़िल भी मिल जाएगी,
उम्मीद के सुमन खिलने दो।

यह जीवन है संघर्ष भरा
मुस्कान लिए बस बढ़ना है।
फूलों के जैसा खिलना है
नदियों के जैसा बहना है।

डगमग करते कदमों को
धीरे धीरे  अब संभलने दो,
मंज़िल भी मिल जाएगी,
उम्मीद के सुमन खिलने दो।

कंटक -पथ कलियों की
चाह कभी भी मत करना।
चोट अगर लग जाए भी
तो आह कभी भी मत भरना ।

अलसायी सी  इन आंखों में
फिर से ख्वाब संवरने  दो।
मंज़िल भी मिल जाएगी,
उम्मीद के सुमन खिलने दो।

चल छोड़ निराशा बढ़ आगे,
मजबूत कर कच्चे धागे।
दिन रात पसीना बहाए जो
भाग्य उसी के ही जागे।

दीप जलाओ आशाओं के
सांझ अंधेरी ढलने  दो,
मंज़िल भी मिल जाएगी।
उम्मीद के सुमन खिलने दो।

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     बंदना पंचाल
     अहमदाबाद
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उम्मीद ...इन्द्राणी साहू "साँची"


विषय - उम्मीद
विधा - गीत 
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मात्रा भार 14 - 14
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"मन उम्मीद जगाता चल ,
मंजिल मिलती जाएगी ।।"
***
बोध ज्ञान का हो जाए ,
मत रहो माया में लिप्त ।
प्रखर प्रज्ञा जगा रखना ,
चेतना को रखो प्रदीप्त  ।
आगे कदम बढ़ाता चल ,
राहें चलती जाएगी ।
मन उम्मीद जगाता चल ,
मंजिल मिलती जाएगी ।।
***
ज्ञान यज्ञ की ज्योति जला ,
पथ आलोकित कर देना ।
उपवन हो वीरान भले ,
उसमें सुमन खिला लेना ।
पथ से कण्टक चुनता चल ,
बगिया खिलती जाएगी ।
मन उम्मीद जगाता चल ,
मंजिल मिलती जाएगी ।।
***
आँधी में भी बुझे नही ,
ऐसा दीपक बन जाना ।
छोड़ निराशा का दामन ,
आशा को ही अपनाना ।
सच का दीप जलाता चल ,
ज्वाला जलती जाएगी ।
मन उम्मीद जगाता चल ,
मंजिल मिलती जाएगी ।।
***
जीवन हो संघर्ष भरा ,
मुख मुस्कान सजा रखना ।
बुलन्दियों को छू लोगे ,
हिम्मत सदा बड़ा रखना ।
दृढ़ संकल्प उठाता चल ।,
विपदा गलती जाएगी ।
मन उम्मीद जगाता चल ,
मंजिल मिलती जाएगी ।।
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✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
    भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★

Sunday, 22 September 2019

मेहंदी महावर...मधुमिता घोष"प्रिणा"



मेहंदी महावर देखो
गोरी के हाथों रची है
गोरी साजन की दुल्हन बनी है
गोरी साजन की दुल्हन बनी है

अंग में सजे तेरे लाल सा जोड़ा
लाल से जोड़े में गोटे का फेरा
गोटे के फेरे में गोरी की भृकुटी तनी है
गोरी साजन की दुल्हन बनी है-2
मेहंदी महावर....................

हाथों में सजे तेरे लाल-लाल चूड़ी
लाल-लाल चूड़ी बीच चूड़ा सुनहरा
सुनहरे चूड़े की चूड़ी से देखो ठनी है
गोरी साजन की दुल्हन बनी है-2
मेहंदी महावर.....................

पावों में तेरे महावर की लाली
महावर की लाली में नूपुर की जाली
नूपुर की जाली में साजन की धड़कन थमी है
गोरी साजन की दुल्हन बनी है-2
मेहंदी महावर...................

      मधुमिता घोष"प्रिणा"
      राजपुर,बलरामपुर

साजन के संग...सुशीला साहू "शीला"

मेंहदी हाथों में लगवाऊं,
      खुशी के हर पल खिलखिलाऊं।
महावर लागे पांव में हरदम,
       पायल छमके छम छम।
रचे मेंहदी सुन्दर हाथों में लाली,
        जैसे दिखे सुन्दर सी प्याली ।
मन निर्मल रखूं मै प्रतिपल,
       साथ निभाऊं जीवन के हर पल।
मेंहदी लगी है खुशियां अपार,
       तन मन रिझ उठा नयन सुखार।
सखियों के साथ मौज मनाऊं,
        साजन के संग मैं इठलाऊं।
सबके दुख सुख का है ऐहसास,
        पिया के नाम की मेंहदी है मेरे पास।
मेंहदी हाथों की लाली होती,
         महावर पैरों की शोभा बढ़ाती।
माथे पे सजे सुहाग की निशानी,
         सुहाग सिन्दुर चमके बिंदिया रानी।
सुंदर मेंहदी पति को लगे प्यारी,
        लाली चुनरी प्रित मन लागे न्यारी ।

स्वरचित रचना✍️
सुशीला साहू "शीला"
शिक्षिका..
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

ओढ़े घूँघट लाज का...पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"



ओढ़े  घूँघट  लाज  का, कर  सोलह  श्रंगार।
पिया मिलन को है चली, एक सुहागन नार।।

खूब निखारा रूप को, और सँवारे केश।
सेंदुर भरके माँग मे, धरे दुल्हन का वेश।।

नैन नशीले दो सखी, है कजरे की धार।
पिया मिलन........

रचा *मेंहदी* हाथ में, लिख प्रियतम का नाम।
खनकें कंगन चूड़ियाँ, सजनी आठों याम।।

पाँव *महावर* है लगा, पायल की झनकार।
पिया मिलन को.......

कटि में करधन बाँध के, चले निराली चाल।
जूड़ा, गजरा, नौलखा, नाक नथनियाँ, डाल।।

होठों में लाली लगी, बिंदिया पे बलिहार।
पिया मिलन को......

नाम- पुष्पा गुप्ता *प्रांजलि*
पता- कटनी (म.प्र.)

Wednesday, 4 September 2019

मैं जोकर बन जाऊँगा....सरोज दुबे

मुझको मां एक टोपी ला दे
आड़े तिरछे वस्त्र सिला दे
नाक के ऊपर नाक लगा दे

मैं जोकर बन जाऊँगा।

सजा-धजा जोकर बनवा दे
तरह-तरह के पोज सिखा दे
रोतों को हंसना सिखला दे।
अब पैरोडी गाऊँगा,

मैँ जोकर बन जाऊँगा.......

तेरा-मेरा भेद मिटाकर
कुछ रोकर या मुस्काकर
जीवन का कुछ अर्थ बताकर
दुनियाँ को सिखलाऊंगा,

मैं जोकर बन जाऊँगाl

सरोज दुबे 
🙏🙏🙏🙏🙏

लुट रही है द्रौपदी....आशीष पाण्डेय "ज़िद्दी"

लुट रही है द्रौपदी अब आपके संसार में।
घर गली चौराहे देखो देख लो बाजार में।
अस्मिता है लुट रही मासूमियत मरती यहाँ।
वासना का खेल गन्दा इस धरा दरबार में।
लूट रही है द्रौपदी........

मौन क्यूँ बैठे हो कान्हा धर्म रथ फिर हाँक दो।
पाप से दुनिया भरी है , हे कन्हैया झाँक दो।।
शकुनियों की चाल में फिर से फँसा यह सत्य है।
बढ़ गए कितने दुशासन हाथ इनके काट दो।
मौन क्यूँ बैठे...........

कंस को मारा तुम्हीं ने मारा है शिशुपाल को।
पूतना का वध किया जीता तुम्हीं ने काल को।
फिर तुम्हारी इस धरा पर हर गली में कंस हैं।
मार दो प्रभु आप हर हैवानियत के लाल को।
कंस को मारा........

बेबसों का हो रहा शोषण यहाँ पर देखिए।
क्रूर क्रोधी मदभरे इंसानों के घर देखिए।
चूसते हैं खून जो मजबूर अरु मजदूर का।
उड़ रहे जो पाप करके आसमाँ पर देखिए।
बेबसों का हो रहा......

धर्म सिखलाने मनुज को आज गीता सार से।
कलियुगी यह कर्म बोझिल मन हुआ व्यभिचार से।
जन्म ले आओ कन्हैया रो रही है देवकी।
बेड़ियाँ खोलो सभी की मुक्त हों संसार से।।
धर्म सिखलाने........

प्रेम का फिर पाठ कोई अब पढा संसार को।
खत्म कर दे हे गोविंदा पाप के व्यापार को।
गाय काटी जा रही हैं खो गया माखन तेरा।
हे कन्हैया रोक ले गौ-मात के संहार को।
प्रेम का फिर पाठ........

          आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।

Sunday, 1 September 2019

"किसान" विधाता छंद गीत ...तामेश्वर शुक्ल 'तारक'


                    "किसान"
विधाता छंद गीत 

दिवाकर की तपन सहते अथक दिन भर लगे रहते|
मिले दो   चार   ही दाने   कृषक पथ पर डटे रहते ||

सताता   है कभी  सूखा   कभी  पाला कभी  ओला |
नजर फिर भी फसल पर है मिले दो - चार ही तोला ||
बना  तरु  को  सुखद आलय विहसते पीर को सहते|
मिले  दो  चार  ही  दाना  कृषक  पथ  पर डटे  रहते ||

बरसती    धूप या   बूँदे   कृषक  सब  झेल  जाते हैं|
उपज  की   हार  को भी वे   जुआ -सा खेल जाते है||
गरीबी   की   व्यथा अपनी   किसी से हैं नही कहते|
मिले  दो  - चार ही दाने  कृषक   पथ  पर डटे रहते ||

कृषक  की  लालसा  केवल  धरा  उगले  हरा सोना |
मिले   रोटी   सभी जन  को नहीं हो भूख का रोना||
मगर   कुछ    कर्ज में डूबे स्वयं को   भी यहाँ दहते|
मिले दो -चार ही दाने  कृषक   पथ   पर डटे रहते |

स्वरचित एवं मौलिक
तामेश्वर शुक्ल 'तारक'
सतना (म.प्र.)

लावणी छन्द आधारित गीत....तेजराम नायक

गीत
(लावणी छन्द आधारित)

तुझसे मेरी प्रीत जुड़ी है, किस्सा ये मशहूर प्रिये,
तू इस दिल की धड़कन बन जा, मैं तेरा सिंदूर प्रिये।

राम जानकी राधे कृष्णा, जैसी अपनी प्रीत धवल, 
चोट कभी लग जाय तुझे तो, दर्द मुझे हो नैन तरल।
संग रहे तू मेरे हमदम, कभी न जाना दूर प्रिये, 
तू इस दिल की धड़कन बन जा, मैं तेरा सिंदूर प्रिये।।

तू मेरी पहचान बनी है, तुझसे मेरा नाम हुआ,
हाथ थामकर साथ चले जब, पूर्ण तभी हर काम हुआ।
प्यार हमेशा करना मुझसे, होना मत मगरूर प्रिये, 
तू इस दिल की धड़कन बन जा, मैं तेरा सिंदूर प्रिये।।

✍🏻तेजराम नायक

सृष्टि-सर्जक....डाॅ शेषपालसिंह 'शेष'

🍏♨  *सृष्टि-सर्जक*  ♨🍏
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                 [ गीत ]

 शत-शत  नमन  करें  स्वीकार।
 हे  प्रभु!  बड़ा  बहुत  आभार।

 तुमने   मानव    हमें    बनाया।
 यह  अनन्त   संसार  दिखाया।
 विविध  अंग-प्रत्यंग  भरा  तन,
 पता नहीं  क्या-क्या  है  पाया।

 तुम   हो   निराकार - साकार।
 हे प्रभु!

 कई  अंग   दो - दो  दे   डाले।
 कई   एक   हैं   किए  हवाले।
 अनगिन भू  पर जीव-जन्तु हैं,
 तुम  ही  सारी  सृष्टि  सँभाले।

 शिल्पकार  हो अति-विस्तार।
 हे प्रभु!

 चक्षु दिए  दो, कला  दिखाते।
 कर्ण दिए  दो, सब सुन पाते।
 मुख तन का स्वामी प्रधान है,
 गढ़ गढ़ तन को आप बनाते।

 जीवन  के  हो  तुम  आधार।
 हे प्रभु!

 अधिक नहीं मैं मुँह  खोलूँगा।
 एकमुखी   हूँ, कम   बोलूँगा।
 दो   हैं   कान   सुनूँगा    दूना,
 कर-पग-चक्षु  श्रमी  हो लूँगा।

 दिया   हुआ   है    शिष्टाचार।
 हे प्रभु!

 सोचें, अधिक   बोलने  वाले।
 बुद्धि - विवेक  तोलने   वाले।
 चिंतन करें अधिक,कम बोलें,
 प्रभुवर  राज   खोलने   वाले।

 है   अनन्त    स्रष्टा -  आकार।
 हे प्रभु!

             ●●>><<●●

 *● डाॅ शेषपालसिंह 'शेष'*
      'वाग्धाम'-11डी/ई-36डी,
      बालाजीनगर कालोनी,
      टुण्डला रोड,आगरा-282006
      मोबाइल नं0 --9411839862

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भले हो उजाला भले हो अँधेरा....इति शिवहरे

तर्ज- मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए

भले हो उजाला भले हो अँधेरा
जहां साथ तेरा वहीं  हो बसेरा।

सभी राज दिल के अभी जान लें हम
बँधी  डोर  तुमसे  यही मान लें हम
करो  आज  वादा न तुम छोड़ दोगे
लगाकर कभी दिल न तुम तोड़ दोगे

जनम  तक  रहे  संग  तेरा  व  मेरा
जहां  साथ  तेरा  वहीं  हो बसेरा।

लिखे  गीत मैंने सुनो आज तुम भी
हमारे मिलन के बुनो ख्वाब तुम भी
अलग  एक  गाथा  हमारी तुम्हारी
तुम्हीं  आज पूजा तुम्हीं हो ख़ुमारी

अभी  जिंदगी   में  हुआ  है सवेरा
जहां  साथ  तेरा  वहीं  हो  बसेरा।

बनी  हीर   रांझा  हमारी  कहानी
लिखेंगे  नया   छोड़  बातें  पुरानी
सभी  अप्सरा को जमीं पर उतारे
हमारे  मिलन   की गवाही सितारे

हमेशा  बने  तू    प्रिये  साज मेरा
जहां   साथ   तेरा  वहीं हो बसेरा
भले  हो  उजाला  भले हो अँधेरा
जहां  साथ  तेरा  वहीं  हो  बसेरा

इति शिवहरे

जग से न्यारा देश हमारा....पुष्पा विकास गुप्ता "प्रांजलि "

जग  से न्यारा  देश हमारा।
हमको यह प्राणों से प्यारा।।

 राम कृष्ण की पावन धरती।
शोभा जिसकी मन को हरती।
 शस्य श्यामला भारत माता
 अन्न धन्न से घर को भरती।।

अविरल बहती सलिला धारा।
हमको यह........

हिमगिरि जिसका मुकुट सँवारे।
  रत्नाकर  है  चरण  पखारे।
निशदिन जिसकी करें आरती,
  सूरज  चंदा  और  सितारे।।

 वंदे  मातरम्  गाओ न्यारा।
हमको यह.....


ऋषि गण मुनि विद्वान यहाँ है।
 वेद ऋचा का गान यहाँ है।
भक्तों की इस भव्य धरा पर
कण-कण में भगवान यहाँ है।

अर्पण  करदें  जीवन  सारा।
हमको यह.....

पुष्पा विकास गुप्ता "प्रांजलि "

चौपाई छंद (भोलेनाथ )...वन्दना शर्मा"वृन्दा"

चौपाई छंद

*भोलेनाथ*

डम डम डमरू बजा नटेश्वर।
दिया जगत को सूत्र महेश्वर।।
वैद्यनाथ औषधि निर्माता।
शल्य चिकित्सा के शिव दाता।।

भोलेनाथ बड़े भण्डारी।
चन्द्र भाल धरते त्रिपुरारी।।
हे नटराज नृत्य के देवा।
सेवा से सब पाते मेवा।।

पालक सृजनहार संहर्ता।
सुखकारी भोले दुखहर्ता।।
शीश जटा में गंग विराजे।
काला नाग गले में साजे।।

आक धतूरा भंग चढ़ावें।
इच्छित मनवांछित वर पावें।।
ओइम नमः शिव अंतर्यामी।
भस्म होय खर दूषण कामी।

जय कैलाशपति बाघम्बर।
कुटिल भृकुटि काँपे भू अम्बर।
खुले तीसरा नेत्र भयंकर।
काँपे सृष्टि नमो प्रलयंकर।।

वन्दना शर्मा"वृन्दा"
अजमेर

तोंद झूठ की बढ़ी हुई है....डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गीत  "तोंद झूठ की बढ़ी हुई है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अब कैसे दो शब्द लिखूँ, कैसे उनमें अब भाव भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?

मौसम की विपरीत चाल है,
धरा रक्त से हुई लाल है,
दस्तक देता कुटिल काल है,
प्रजा तन्त्र का बुरा हाल है,
बौने गीतों में कैसे मैं, लाड़-प्यार और चाव भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?

पंछी को परवाज चाहिए,
बेकारों को काज चाहिए,
नेता जी को राज चाहिए,
कल को सुधरा आज चाहिए,
उलझे ताने और बाने में, कैसे सरल स्वभाव भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?

भाँग कूप में पड़ी हुई है,
लाज धूप में खड़ी हुई है,
आज सत्यता डरी हुई है,
तोंद झूठ की बढ़ी हुई है,
रेतीले रजकण में कैसे, शक्कर के अनुभाव भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?
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