कलम की सुगंध उल्लाला शतकवीर 2021 कार्यक्रम हुआ सम्पन्न
आज कलम की सुगंध छंदशाला मंच पर लगभग 50 कवियों ने शतकवीर कार्यक्रम के प्रारम्भ में अपना नाम देने के पश्चात 47 कवियों ने अपना उल्लाला शतक पूर्ण कर लिया है। गुरुवर आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात ने मंच पर उपस्थित कवियों के नाम बधाई संदेश प्रेषित करते हुए कहा कि एक ही विधा पर सतत साधना के बिना पकड़ बन पाना सम्भव कार्य नहीं होता। यह साधना उल्लाला छंद पर शतकवीर कार्यक्रम में सम्मिलित सभी कवि एव कवयित्रियों को प्रथम दिवस से आज अंतिम क्षणों तक प्रोत्साहित करती रही है। यह साधना ऊर्जावान बनाती हुई शिल्प कथन और भाव सहित अनेक हिन्दी भाषा के प्रति सजगता लाने में पूर्णतया सफल सिद्ध हुई है। इस सिद्धि का नियमित प्रयोग भविष्य में सभी की सशक्त लेखनी से देखने को मिलता रहेगा। और भविष्य में बिना किसी आयोजन के भी यह छंद निरन्तर सभी की लेखनी से लिखा हुआ नित्य देखा जा सकेगा। ऐसा कलम की सुगंध छंदशाला परिवार को पूर्ण विश्वास है । इसी विश्वास के चलते आप सभी उल्लाला छंद शतकवीरों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। मंच संचालिका अनिता मंदिलवार सपना, सह संचालिका राधा तिवारी राधेगोपाल, मीडिया प्रभारी नीतू ठाकुर विदुषी, सरस्वती, वीणापाणि और हंसवाहिनी समीक्षक समूह के प्रमुख समीक्षक बाबूलाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ', इंद्राणी साहू साँची और अनिता सुधीर आख्या सहित सभी सह समीक्षकों के मुख्य योगदान से यह कार्यक्रम अपने चरमोत्कर्ष पर आकर आज सम्पन्न हुआ है इतने सुंदर आयोजन की हार्दिक बधाई । कार्यक्रम में सम्मिलित कवि इस प्रकार से हैं .....
1कुसुम कोठारी प्रज्ञा
2परमजीत सिंह कोविद
3डॉक्टर एनके सेठी
4गुलशन कुमार साहसी
5नीतू ठाकुर विदुषी
6बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ
7उमाकांत टैगोर
8शरद अग्रवाल नव्या
9डॉ ओमकार साहू मृदुल
10प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
11डॉक्टर सरला सिंह स्निग्धा
12आरती श्रीवास्तव विपुला
13 प्रवीण कुमार ठाकुर
14 धनेश्वरी देवांगन धरा
15 गीता विश्वकर्मा नेह
16कृष्ण मोहन निगम
17 इंदु साहू
18इन्द्राणी साहू सांँची
19डॉक्टर दीक्षा चौबे
20सुधा शर्मा
21पुष्पा गुप्ता प्रांजली
22श्रद्धान्जलि शुक्ला अंजन
23डॉक्टर मीता अग्रवाल मधुर
24भावना शिवहरे तरंगिणी
25अनीता सुधीर आख्या
26चमेली कुर्रे सुवासिता
27शिशुपाल गुप्ता विद्यांश
28राधा तिवारी "राधेगोपाल"
29बिंदु प्रसाद रिद्धिमा
30सुधा देवांगन शुचि
31ममता तिवारी
32श्रीमती कृष्णा पटेल
33धनेश्वरी सोनी गुल
34अर्चना पाठक निरंतर
35हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी
36संतोष कुमार प्रजापति माधव
37मधु गुप्ता महक
38सविता सिंह हर्षिता
39डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल
40अनीता मंदिलवार सपना
41सरोज दुबे विधा
42गीतांजलि
43गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न
44केवरा यदु मीरा
45रीना गुप्ता
46 संगीता राजपूत श्यामा
47 पूनम दुबे 'वीणा'
48 अजय पटनायक
उल्लाला शतकवीर कार्यक्रम में समीक्षक समूह द्वारा किस गलती से अंक काटे जा सकते हैं इस ओर सभी अपना ध्यान दें और इसे कंठस्थ करलें तथा कहीं सुरक्षित भी अवश्य करलें।
उल्लाला 15/13 मात्रा भार के साथ लेकर लिखना है
मापनी की दृष्टि से समझें
22 22 2 212, 22 22 212
22 22 2 212, 22 22 212
*कुछ अन्य सावधानी*
1 जगण का प्रयोग चारों चरणों के प्रारम्भ, मध्य और अंत में वर्जित रहेगा
2 चौकल से प्रारम्भ करना अनिवार्य है। और लय आल्हा छंद की तरह गुँथी हुई होनी अनिवार्य है।
3 विषम जो 15 मात्रा के चरण हैं। चरण 1 और 3 में 13 वीं मात्रा लघु रखनी अनिवार्य है। संक्षेप में समझें 10 मात्रा के पश्चात (212) अनिवार्य है।
4 सम चरण 2 और 4 में 11वीं मात्रा लघु रखनी अनिवार्य है ये चरण शिल्प की दृष्टि से दोहे के विषम चरण 1,3 की तरह ही लिखे जाएंगे। संक्षेप में समझें तो 8 मात्रा के पश्चात (212) अनिवार्य है।
5 त्रिकल का प्रयोग त्रिकल के साथ अनिवार्य है और विशेष ध्यान रखें कि त्रिकल 21,12 ✅ ये ही प्रयोग कर सकते हो 2121❌ 12 12❌ 1221❌ *तो ध्यान रहे इस कार्यक्रम में लिखी जाने वाली रचनाओं में त्रिकल के साथ त्रिकल का मात्र एक ही रूप स्वीकार्य है वो है 21,12 इसके पृथक त्रिकल के पश्चात त्रिकल का कोई भी रूप मान्य नहीं रहेगा*
👇
6 *वैसे प्रयास ये करें कि पूरी रचना में किसी भी त्रिकल से बचा जा सके अंतिम 3 मात्रा को छोड़ कर।* 👈
7 यदि 111 तीन एक मात्रा भार वाले त्रिकल का प्रयोग करना पड़े तो यह किसी भी चरण के अंत में ही करना होगा इससे पृथक कहीं भी वर्जित है।
8 कलन के माध्यम से समझते है
*शतकवीर कार्यक्रम में 4 अप्रैल को विशेष संशोधन ध्यान से अवश्य देखें* 👇👇👇
चौकल से प्रारम्भ
जैसे आपने अंतिम रचना
उड़ना (4 मात्रा के शब्द समूह का चयन किया है)
इसी चरण की अंतिम 5 मात्रा 212 👈 ऐसे लिखनी हैं
15 मात्रा में से 4 और अंत की 5 मात्रा निर्धारित है कुल मात्रा 9 हो गई
अब इन 9 मात्रा के मध्य बची 6 मात्रा इनमें यदि 3+3 के जोड़े गाल+लगा अर्थात 21+12 अर्थात गुरुलघु और गुरु लघु लिखेंगे तो भाव अवश्य बिखर जाएंगे । कई बार शिल्प में वो सब कथन छूट जाता जो हम अतुकांत में कह देते हैं
ऐसे में बची हुई इन मात्राओं को भी चौकल और द्विकल के अर्थात 4+2 या 2+4 के माध्यम से सरलता से कह सकते हैं।
ये एक चरण हुआ।
सभी चरणों की अंत की 5 मात्रा पहले ही निर्धारित है 212 अर्थात गुरु लघु गुरु ( इसमें गुरु को 2 लघु के माध्यम से लिख सकते हैं जबकि लघु को लघु लिखना अनिवार्य है।
उपर शिल्प प्रेषित किये जा चुके हैं। फिर भी कुछ न समझ आये तो आप बिना किसी संकोच के पूछ सकते हैं 🙏🙏🙏
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मंच को नमन , गुरुदेव को नमन,सभी प्रबुद्ध सह रचनाकारों और पाठक वर्ग को नमन।
मंच नियम वाले उल्लाला छंद पर मेरे विचार।
मेरे *दृष्टिकोण से*
छंद लेखन गुरुदेव से ही सीखा है जितना भी सीखा है , और जब गुरुदेव किसी शिल्प पर विशेष ध्यान चाहते हैं, तब यही लगता है कि उन्होंने इस पर काफी अन्वेषण किया होगा तभी पुरे मंच पर अनुशासन के साथ उसे मानने की प्रतिबद्धता का आदेश होता हैं।
और मुझे यह सदा स्वीकृति होता है , *है* ।
*शिल्प* :- चौकल से शुरूआत हर चरण की। हर चरण का अंत २१२ से।
*सावधानी* :-
जगण:- वर्जित हर हाल में पर किसी विशेष कारण वश लेना ही पड़े तो उसके आगे और पीछे एक एक द्विकल से उसे संभालना है जैसे विषय में कलम की सुगंध में सुगंध को संवारना पड़ा।
*त्रिकल* :- पहले पहले के कुछ उल्लाला में मेरे सहित कई साथियों ने २१ १२ त्रिकल लिया है और कुछ समीक्षकों ने माना कुछ ने विरोध किया।
पर अब त्रिकल वर्जित है जिससे शुरू में कुछ परेशानी हुई थी पर अब लग रहा है ये ज्यादा सरल है मात्रा संयोजन में,गेयता में।
*चौकल* :-पहले हमने सिर्फ पहले चरण में चौकल लिया था ,पर फिर आदरणीय गुरुदेव और विज्ञ साहब ने इसे भी कड़ाई से चारों चरणों के लिए अवश्यमभावी कर दिया,जो सहज ही लेखन में आ गया क्योंकि कई प्रकार थे द्विकल चौकल और षठकल तो बहुत सरल रहा सबके लिए।
उल्लाला एक मोहक और सरल छंद है।
उल्लाला छंद का शिल्प सहज ही सरलता से मुझे समझ आ
गया,अब कोई चूक होती है तो अपनी ही असावधानी से।
क्योंकि चौकल से शुरूआत और अंत में २१२ तो फिर बीच का संयोजन काफी सरल हो जाता है। एक बार त्रिकल वर्जित होने पर लगा शब्दों की कमी हो रही है पर हिंदी जैसी समृद्ध भाषा जिसका शब्द कोष इतना विस्तृत है कि शब्द कम हो ही नहीं सकते हाँ
शब्दों पर अपनी पहुंच बढ़ानी हर रचनाकार के लिए आवश्यक है तभी वो सधा हुआ भावपूर्ण सृजन कर सकता है।
सादर धन्यवाद।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
उल्लाला छंद पर चर्चा करने से पहले मैं आ. गुरुवर विज्ञात सर के साथ-साथ सभी धैर्यवान समीक्षकों को नमन करती हूँ जो अपना विशेष समय दे रहे हैं ।
छंद लेखन की सबसे सरल विधि चौकल से लिखने की है । पहले त्रिकल 21-12 का मतलब 2112 मात्रा मान्य है सोचकर प्रयोग कर रही थी पर अब नहीं । अब यति पर ही 212 नियमानुसार प्रयोग कर रही हूँ ।
एक बात मुख्य रूप से समझ पायी कि उल्लाला छंद के शिल्प में मात्र चौकल का ही प्रयोग करना है । यह आ. गुरुदेव सरल लेखन को ध्यान में रखकर निर्देशित किए होंगे । जगण के साथ 1212, 1221, वाले शब्द वर्जित किए गए हैं । जबकि छंदों में मान्य है । मगर श्रम 22 22 2 212 -22 22 212 मात्राभार में भी है ।
मुझे इस बात की खुशी है कि हम एक नियम पर उल्लाला छंद रच रहे हैं । शिल्पगत सावधानी बरत रहे हैं । रचना के भाव पक्ष और कला पक्ष का सौंदर्य निखारने के लिए शतकवीर सहज स्वतंत्र हैं ।
आ. विज्ञात सर! आपका स्वर प्रभावशाली है । गायन तो बाद की बात है । वाचन उत्कृष्ट है तो बात अंतस में उतरना स्वाभाविक ही है ।
मैं उल्लाला छंद के शतकवीरों में जुड़कर गर्व की अनुभूति कर रही हूँ ।
गीता विश्वकर्मा नेह
*माँ शारदे को प्रणाम* 🙏
*गुरुदेव एवं पावन मंच को नमन* 🙏🙏
*उल्लाला छंद शिल्प पर* *चर्चा 15/13*
उल्लाला छंद चार चरणों
का छंद है
पहला विषम चरण 15 मात्राएँ
दूसरा सम चरण 13मात्राएँ
तीसरा विषम चरण 15मात्राएँ
चौथा सम चरण 13मात्राएँ
होनी चाहिए
22 22 2 212
22 22 212
22 22 2 212
22 22 212
इस छंद के चारो चरण की शुरुआत चौकल से होनी चाहिए
जगण वर्जित है चरणों के अंत में 212 अनिवार्य है
या 2111भी कर सकते हैं
यदि बहुत जरूरी है तो त्रिकल गाल और लगा के रूप में मान्य है अर्थात 21 12
इसके अलावा कोई त्रिकल मान्य नहीं है
अहिन्दी और देशज भाषा वर्जित है
लय को भी ध्यान रखते हुए लिखना है क्योंकि ये गेय छंद है हो सके तो गुनगुना कर लिखें लय अच्छी और सही बनेगी
सम चरणों में उत्तम तुकांत का ही प्रयोग करें
विषम चरणों में 13वीं मात्रा लघु होनी अनिवार्य है
और सम चरण की 11वीं मात्रा लघु होनी अनिवार्य है l
इन सब बातों और नियमों को ध्यान में रखते हुए उल्लाला छंद का सृजन करेंगे तो उत्तम रचना सृजित होगीl
*सरोज दुबे 'विधा*
*रायपुर छत्तीसगढ़*
आदरणीय मंच के तत्वावधान में उल्लाला शतकवीर 2021
के इस शानदार अवसर में हम सम्मिलित हैं ,हमारे लिए गौरव व सौभाग्य की बात है।
परम आदरणीय गुरुदेव विज्ञात जी के मार्गदर्शन में उल्लाला छंद विधान 15/13 के मात्रा भार में बहुत ही उत्तम विधि से सिखाया जा रहा है । जैसा कि आदरणीय ने बताया कि उल्लाला चौकल से प्रारंभ करने पर गेयता अच्छी बनती है , हमने चौकल से आरंभ कर के लिखना आरंभ किया । आदरणीय गुरुदेव विज्ञ जी द्वारा एक अच्छी जानकारी दी गयी कि चारों चरण में चौकल से प्रारंभ करें ,हमने प्रारंभ में चारों चरण में चौकल से प्रारंभ नहीं किया परन्तु अब आदरणीय के निर्देशानुसार अब हम चारों चरण को चौकल से प्रारंभ कर रहे हैं ,जिससे हमारी रचना अत्यंत ही मनोहारी बन रही है।
उल्लाला में त्रिकल का संयोजन 2112 किया जा रहा है ,जिससे लय बाधित नहीं होती । जहाँ तक जगण(121) की बात है , छंद में इसका प्रयोग वर्जित माना जाता है , परन्तु उल्लाला में आवश्यकतानुसार 21 121 2 मापनी के अनुसार किया जा सकता है ।
पटल के आदरणीय गुरुदेव जी व सभी टीम के समीक्षक वृन्द बहुत श्रम साध्य व सराहनीय कार्य कर रहे हैं। पटल के लिए अपनी सेवा में तत्पर हैं। सादर वंदन 🙏🙏🙏🙏🙏
*धनेश्वरी देवाँगन धरा*
आज उल्लाला छंद सृजन के लिए 15/ 13 शिल्प पर कुछ चर्चा हो जानी चाहिए
जगण और त्रिकल को लेकर
सभी साथियों से निवेदन है कि
आप जितने साथी शतक पूरा करने के लिए वचन बद्ध हैं
आप सभी अपने लिए एक कड़ा अनुशासन निर्मित कर चुके हैं
तो इस अनुशासन में आपने शिल्प को किस तरह लिया है और त्रिकल कितने अनिवार्य हैं तथा जगण के विषय में मंच द्वारा हमें कुछ दिशा निर्देश मिले हैं ।
निवेदन कम से कम 150 शब्दों में अपना लेख अवश्य लिखें
*उल्लाला छंद का शिल्प मेरे दृष्टिकोण से ....*
*शिल्प* - दिए गए मात्रा भार में उल्लाला छ्न्द का शिल्प अत्युत्तम , सुगठित , कसा हुआ और सुमधुर लयात्मकता को लिए हुए है ।
*सावधानी* - प्रारंभ चौकल से करना है , यदि द्विकल से प्रारंभ करते हैं तो पुनः द्विकल लेकर चौकल कर सकते हैं । जगण का प्रयोग पूरी रचना में कहीं भी न करें । त्रिकल के प्रयोग से बचें , यदि बहुत आवश्यक हुआ तो 21 12 के रूप में त्रिकल लें जिससे लय बाधित न हो ।
*जगण* - बनाए गए अनुशासन के अनुसार पूरी रचना में जगण वर्जित है ।क्योंकि इससे लय बाधित होता है ।
*त्रिकल* - त्रिकल से प्रारंभ नहीं करना है , यदि कहीं पर त्रिकल आवश्यक हो तो पुनः त्रिकल लें वह भी 21 12 के रूप में ।यति के पूर्व ही त्रिकल का प्रयोग करना है ।
*चौकल* - रचना में लालित्य और लयात्मकता लाने के लिए प्रारंभ चौकल से ही करना है , यदि द्विकल से करते हैं तो पुनः द्विकल लेकर चौकल बना लेना है ।।
आदि की व्यवस्था सहित आपको उल्लाला छंद का शिल्प सहज और सरल कैसे लगा ??? कम से कम एक कारण अवश्य लिखें ....
*गुरुदेव जी द्वारा बनाई गई शानदार शिल्पीय व्यवस्था के कारण उल्लाला छ्न्द का शिल्प सहज और सरल लगा , क्योंकि जगण और त्रिकल जैसे लयावरोधक शब्दों से परहेज और सुंदर चौकल व्यवस्था से शिल्प शानदार हो गया ।*
*इन्द्राणी सही"साँची"*
*उल्लाला सृजन पर मेरा दृष्टिकोण,*
मंच को नमन,
आ. गुरुदेव को नमन,
पटल पर उपस्थिति देने वाले समस्त सृजनकार ,मर्मज्ञ को नमन।
किसी भी छंद का सृजन और गेयता उसकी उत्कृष्टता को सिद्ध करने में सहायक होती हैं। ऐसा ही विधान उल्लाला छंद का है। जब मैंने छंद लिखना शुरू किया कुछ त्रुटियांँ हुईं , पर दूसरे तीसरे दिन सृजन सार्थक नियमावली में आ गया ।
उल्लाला छंद सृजन में प्रथम और तृतीय चरण १५ मात्रा और द्वितीय और चतुर्थ चरण १३ मात्रा पर यति का विधान है।
(२२२२२२१२)
(२२२२२१२)
ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यह विषम मात्रा वाला सम मात्रा के शब्दों का भाव पूर्ण योग का सुंदर मेल है जिसकी यति २१२ पर ही होगी।
प्रारंभ हम चौकल से करते हैं। विराम या यति २१२ में।
बीच के ६ मात्राओं का योग २+२+२ या २+४ या ६ मात्रिक शब्द विधान अनिवार्य है।
त्रिकल का प्रयोग हमें एक ही बार एक जगह प्रत्येक पंक्ति में यति से पूर्व करना अनिवार्य है। अन्य जगहों पर यह आवश्यक नहीं यदि करना पड़े तो २+१+१+२ मान्य है ।✔️
१+२+१+२ सर्वथा अमान्य है।❎
यह विधान दोष की श्रेणी में आता है। लय बाधा भी बनाया है।
हिंदी शब्दावली का वृहद शब्दकोश है। एक शब्द के अनेक अर्थ निकलने वाले समानार्थी शब्द है जो हमें द्विकल चौकल के रूप में छंद को लिखने में सहायता पहुँचाते हैं।
हमें यह ध्यान रखना आवश्यक है शब्दों का आपस में मेल भावपूर्ण अर्थपूर्ण विधान सम्मत होना चाहिए। आदरणीय गुरुदेव के मार्गदर्शन और पटल के विशेषज्ञ रचनाकार ,समीक्षक ,संचालक के उचित, सरल नियमावली का पालन कठोरता और संयम से करते हुये आज सृजन शृंखला में जुड़कर थोड़ी सी जानकारी हो गयी है।इस छंद महासागर में सृजन की एक बूँद रूपी अपनी रचना को आप सभी की समीक्षा पर खरा उतारने का प्रयास निरंतर जारी है ।..🙏🙏
इस तरह मैंने उल्लाला छंद को समझा लिखा और स्वरबद्ध किया है।
*नोट .. *हम सभी को हिंदी की विस्तृत शब्दावली का ज्ञान होना अति आवश्यक है। छंद में बोलचाल की भाषा और अहिंदी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह भी अमान्य है।
इन सभी बातों का ध्यान रखकर हम सभी अपने शिल्प और भाव पक्ष में कसावट और मधुरता ला सकते हैं।
*डा. सीमा अवस्थी "मिनी"*
*भाठापारा*
मंच को नमन, गुरुदेव को नमन और सब साथियों को नमन करते हुए मैं अपने विचार उल्लाला छंद पर यही रखना चाहती हूं की
उल्लाला छंद १५/१३शिल्प पर लेखन काफी रोचक और सहजता से सीखने योग्य है। शुरुआत में कठिनाई तो हम जैसे नौसिखिया को होती ही है , लेकिन"करत करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान,वाली बात चरितार्थ होती है। अभ्यास करते अभी यह विद्या सहज लगने लगा है।इस मंच पर त्रिकल अमान्य होने से चौकल पर ध्यान केंद्रित करने से समय के बचत के साथ उल्लाला लिखना और आसान लग रहा है।
शिल्प-चौकल से ही शुरुआत हो और अंत में जगण हो।
२) सावधानी-छंद लिखकर पुनः पुनः पढ़ने से गलतियां दिख जाती है।
३)जगण-चारो चरणों में जणण का स्थान चरणान्त ही हो।
४) त्रिकल नहीं लेने से लय अच्छे से बनते हैं।
आरती श्रीवास्तव 'विपुला'
आदरणीय गुरुदेव को प्रणाम एवं रचनाकारों को नमस्कार।
मैं पहली बार उल्लाला छंद विधा में लिख रही हूं। मेरे लिए यह बहुत ही कठिन था, लेकिन मैंने प्रयास किया। इस मंच पर जो मापनी बताई गई है। बहुत ही सरल एवं जल्दी सीखने वाली है। इसमें भ्रम वाली कोई बात नहीं रहती ,इसलिए मैं इतनी जल्दी सीख गई मुझे भी आश्चर्य है। लेकिन अभी भी त्रुटियां निकल आती हैं मुझे लगता है मैं जल्दबाजी में ध्यान नहीं दे पाती मेरी ही गलती है।
कलम की सुगंध मंच का बहुत-बहुत धन्यवाद,
हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी
साईं खेड़ा नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश
उल्लाला छंद पर एक दृष्टिकोण:-
आदरणीय गुरुदेव संजय जी
इस मंच के सभी समीझक व रचनाकार मित्रों को प्रणाम ।🙏🏻
इस मंच पर उपस्थित सभी पाठकों को नमन।
उल्लाला छंद की विशेषता यह है कि इसमें चौकल से आरंभ करते हैं व जगण 1212 ,12 21 वाले शब्द वर्जित हैं। जो कि ध्यान रखने वाली बात है
वैसी तो किसी भी छंद का विधान एक बार समझ आ जाए तो परेशानी न के बराबर होती है ।
उल्लाला छंद में 15 तेरह का नियम जिसका मात्रा भार
222 222 12 ,22222 12 है।
विधान समझाने व बताने में गुरुदेव का कोई सानी नहीं है। हमने गीत व उल्लाला छंद का विधान इस मंच पर आकर ही सीखा और अच्छा अनुभव महसूस करते हैं। जो कि एक गर्व की बात है🙏🏻🙏🏻🌹🌹
अलका जैन आनंदी मुंबई
मंच को सादर नमन , 🙏🙏
सभी प्रबुद्ध रचनाकारों और
आदरणीय विज्ञात जी को सादर प्रणाम।🙏🙏
उल्लाला छंद पर मेरे विचार।
मेरे दृष्टि में
उल्लाला छंद लिखने का अनुभव बहुत ही सुंदर रहा है। यद्यपि शुरू में थोड़ा मुश्किल लग रहा था लेकिन कुछ चंद लिखने के बाद और गुरुदेव की इतना अच्छे से समझाने के बाद अभी यह छंद के सृजन करने में सक्षम हो पा रही हूं।
छंद लेखन वास्तव में छंदशाला में ही आ. संजय कौशिक विज्ञात गुरुदेव जी से ही सीखा है। आ. सर किसी भी बात को बहुत अच्छे ढंग से समझाते हैं जो सीधे दिल और दिमाग को स्पर्श कर जाती है, वास्तव मेंहम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें इतने विलक्षण एवं विद्वान गुरु की शरण प्राप्त है जिनके मार्ग निर्देशन में हम थोड़ा थोड़ा सीखने का प्रयास कर रहे हैं और करते रहेंगे। इस के लिए उनका , ३स छन्द शाला का, आदरणीय अनीता दी का , स्नेहिल सखी विदुषी जी का और जितने भी हमारे समीक्षक मंडल के सदस्य है ,उन सभी की मैं भूरि- भूरि प्रशंसा करती हूं और आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।
1- चौकल से शुरूआत हर चरण की।
2. हर चरण का अंत २१२ से।
3. जगण वर्जित
त्रिकल- चरणांत के लिए २१२ में, मान्य है, अन्यत्र वर्जित है।
4- चौकल चारों चरणों के लिए अवश्यंभावी कर दिया, जो सहज ही लेखन में आ गया क्योंकि कई प्रकार थे - द्विकल चौकल और षटकल तो बहुत सरल रहा सबके लिए।
उल्लाला द्वन्द
क्योंकि चौकल से शुरूआत और अंत में २१२ तो फिर बीच का संयोजन काफी सरल हो जाता है।
सभी रचनाकार साथियों को शतक भी बनने के लिए मेरी भी हृदय से अनन्त शुभकामनाएं हैं।
शरद अग्रवाल 'नव्या'
मंच को सादर नमन 🙏
सभी प्रबुद्ध रचनाकारों और
आदरणीय गुरुदेव विज्ञात जी को सादर प्रणाम।🙏🙏
उल्लाला छंद पर मेरे विचार।
मेरे विचार में
छंद लेखन वास्तव में छंदशाला में ही आ. संजय कौशिक विज्ञात जी से ही सीखा है। उन्होंने बहुत ही आसान व सुंदर तरीके से छन्द रचना सिखाई है।
१.हर चरण की चौकल से शुरूआत
२. हर चरण का अंत २१२ से।
३.जगण का प्रयोग वर्जित
४.त्रिकल चरणांत के लिए २१२ में मान्य है, अन्यत्र वर्जित है।
५.चौकल चारों चरणों के लिए आवश्यक है जो सहज ही लेखन में आ गया ।
उल्लाला एक मोहक और सरस छंद है। इसमें रचना करने में आनन्दानुभूति होती है।
डॉ एन के सेठी
बाँदीकुई(दौसा)राज.
मंच को नमन व गुरुदेव जी को नमन 🙏
हमे अधिक ज्ञान नहीं है लेकिन फिर भी कुछ विचार रखने का प्रयास करते हैं 🙏
उल्लाला छंद १५/१३ बहुत ही सुन्दर है ।
शिल्प-चौकल से ही आरम्भ हो और अंत में 212 हो।
त्रिकल 21 ,12 मान्य हो
संगीता राजपूत
सच कहूॅं तो एक नये कलम कार के लिए यह विधा सबसे सरल और याद रखने योग्य है। बात द्विकल की हो चौकल की हो जितने छोटे शब्द हों। शब्द साधना और भी सरल हो जाती है।खास कर मेरे जैसे लोगों के लिए।
मै नमन करती हूॅं गुरूदेव विज्ञात जी को।🙏🙏🙏🙏कि उन्होंने इतना सरल और बढ़िया सरली करण किया है कि हमारे लिए उल्लाला छंद लिखना आसान हो गया है।
हालांकि दिमागी घोड़े बहुत दौड़ाने पड़ते हैं।
पर अनिता बहन आपका कहना सही है।गेयता भंग नही होती।
ये2112या 1221के त्रिकल पर एक दिन हमारी और गीता विश्वकर्मा बहन की भी चर्चा हुई थी।
कि इस तरह से त्रिकल का उपयोग कर सकते हैं।पर अंततः यह निर्णय हुआ कि त्रिकल व जगण सवर्था वर्जित है।
तो वैसे भी नित नवीन प्रयोग हो रहे हैं तो एक प्रयोग यह भी। लोगों को समझने में भी आसानी और लिखने में भी।
सो नमन हैआदरणीय गुरुदेव।🙏🙏🙏
हम तो धन्य हुए इस शतकवीर विधा से जुड़कर।कि हमने एक नई विधा सीख ली।🙏🙏🙏
सुधा देवांगन
आदरणीय गुरुदेव जी के चरणों में कोटिशः प्रणाम🙏🙏 तथा मंच के सभी विद्वान गुणीजनों का नमन वंदन अभिनंदन🙏🙏
आप के पटल पर मैं नवांगतुक बिंदु प्रसाद रिद्धिमा उल्लाला शतक वीर कार्यक्रम की प्रतिभागी हूं।
लगातार 12 दिनों से अपनी लेखनी के लय और शिल्प में सुधार महसूस कर रही हूं। समीक्षक गण मेरी छोटी-छोटी गलतियों का प्यार से समाधान किया है। पहले दो-तीन दिनों के बाद जगण और त्रिकल का प्रयोग नहीं के बराबर किया है,,,,, और चौकल से ही छंद की शुरुआत की हूं ।यह सब मैंने इस पटल पर सीखा है🙏🙏
कल संस्कृति संवर्धन समिति रांची झारखंड के हिंदू नव वर्ष की गोष्ठी में मैंने उल्लाला छंदआधारित एक स्तुति प्रस्तुत की थी। आप सभी को भी सुनाने को उत्सुक हूं स्वीकृति चाहती हूं।🙏
बिंदु प्रसाद
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मंच को नमन ,
सभी प्रबुद्ध रचनाकारों और
आदरणीय विज्ञात जी को सादर वंदे।🙏🙏🙏🙏🙏
मंच नियम वाले उल्लाला छंद पर मेरे विचार।
मेरे *दृष्टिकोण से*
छंद लेखन में वास्तविक सीखना जिसे कहा जाए वह छंदशाला में ही आ. संजय कौशिक विज्ञात जी से ही सीखा है जब जब आ.विज्ञात जी किसी शिल्प पर विशेष ध्यान चाहते हैं, तब यही लगता है कि उन्होंने इस पर काफी अन्वेषण किया है।
और मुझे यह सदा मान्य होता है।
*शिल्प* :- १. चौकल से शुरूआत हर चरण की।
२. हर चरण का अंत २१२ से।
*सावधानी* :-
जगण:- वर्जित
*त्रिकल* :- चरणांत के लिए २१२ में, मान्य है, अन्यत्र वर्जित है।
*समकल या चौकल* :- चारों चरणों के लिए अवश्यंभावी कर दिया, जो सहज ही लेखन में आ गया क्योंकि कई प्रकार थे - द्विकल चौकल और षटकल तो बहुत सरल रहा सबके लिए।
उल्लाला एक मोहक और सरस छंद है।
उल्लाला छंद का शिल्प सहज ही
क्योंकि चौकल से शुरूआत और अंत में २१२ तो फिर बीच का संयोजन काफी सरल हो जाता है।
हिंदी जैसी समृद्ध भाषा जिसका शब्द कोष इतना विस्तृत है कि शब्द कम हो ही नहीं सकते हाँ
शब्दों पर अपनी पहुंच बढ़ानी हर रचनाकार के लिए आवश्यक है ।
छंद सृजन में एकरूपता और अनुशासन ही हम सबको शतकवीर की उपाधि तक पहुँचाएँ,
शुभकामनाएँ🙏👍🙏
सादर 🙏
बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान'
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कलम की सुगंध छंदशाला
गुरूदेव विज्ञात जी को प्रणाम साथ ही सभी गुरूजन, मार्गदर्शक, समीक्षक और रचनाकारों को प्रणाम करती हूँ ।
उल्लाला छंद का शिल्प मेरे दृष्टिकोण में
यदि शिल्प की बात करें तो किसी भी छंद में शिल्प का बहुत महत्व होता है । शिल्प छंद का आधार है । सबसे पहले शिल्प सही हो । उल्लाला छंद की बात करें तो गुरुदेव विज्ञात जी ने शिल्प को सरल किया, जिससे लिखने में आसानी हो ।
शतकवीर में *उल्लाला 15/13 मात्रा भार के साथ लेकर लिखवाया जा रहा है *
इसकी मापनी यह बताई गयी है --
22 22 2 212, 22 22 212
22 22 2 212, 22 22 212
इस शिल्प को ध्यान में रखने पर उल्लाला छंद एक गति में चलता हुआ प्रतीत होता है। उल्लाला छंद में छंदशाला के नियमानुसार जगण का प्रयोग वर्जित है । इसका लाभ यह हुआ कि लय बाधित नहीं हो रहा है । लय और गेयता अच्छी बन रही है ।
त्रिकल बस हर चरण के अंत में 212 के रूप में रखने पर गेयता अच्छी बन रही है ।
हर चरण के प्रारंभ में चौकल से शुरू होने से लय बाधित नहीं होती ।
उल्लाला के इस अनुशासन का पालन कर इस छंद पर कलम निर्बाध चल पड़ी है शतक का आयोजन का लक्ष्य भी यही है कि सभी की पकड़ इस छंद पर आसानी से बन जाए और एकसार रूप में लेखन चलता रहे । सभी की कलम इन सभी नियमों का पालन करती हुई चल पड़ी है जो शतकवीर पर जल्द ही पहुँचने वाली है ।
शतकवीर के साथ ही हम तो चाहते हैं कि लेखनी हजार उल्लाला तक पहुँचे ।
अग्रिम शुभकामनाओं सहित आप सबकी
मंच संचालिका
अनिता मंदिलवार "सपना"
कलम की सुगंध छंदशाला