बाबूलालशर्मा
. 🌍 *धरती वंदन* 🌍
. ( दोहा छंद)
(*तारांकित शब्द धरती के पर्यायवाची हैं)
. ..... 👀 १ 👀....
धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी जैसे पालती, *धरती* जीवन सार।।
. 👀 २ 👀
*भूमि* उर्वरा देश की, उपजे वीर सपूत।
भारत माँ सम्मान हित, हो कुर्बान अकूत।।
. 👀 ३ 👀
*पृथ्वी,* पर्यावरण की , रक्षा कर इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन, जीवन खतरे जान।।
. 👀 ४ 👀
*धरा* हमारी मातु सम, हम है इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की,चली पुरातन काल।।
. 👀 ५ 👀
*भू* पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है, आन बान अरमान।।
. 👀 ६ 👀
*रसा* रसातल से उठा,भू का कर उपकार।
धारे रूप वराह का, ईश्वर ले अवतार।।
. 👀 ७ 👀
चूनर हरित *वसुंधरा,* फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ पर पेड़ हो, हँसता मिले किसान।।
. 👀 ८ 👀
*वसुधा* के शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण विकास से, मानव जीवन धन्य।।
. 👀 ९ 👀
*अचला* चलती है सदा, घुर्णन से दिन रात।
रवि की करे परिक्रमा, लगे साल संज्ञात।।
. 👀 १० 👀
*क्षिति* जल पावक अरु गगन,
. संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,
. धारण, तजे शरीर।।
. 👀 ११ 👀
वारि *इला* पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए जीवन यहाँ, सुन्दर प्राकृत नूर।।
. 👀 १२ 👀
मानस मानुष *मेदिनी*, बचे , बचे संसार।
संरक्षण करले सखे, रखें कुशल आचार।।
. 👀 १३ 👀
रखें *विकेशी* मान को, निज माता सम मान।
जगत मातु रखिए सखे, लगा प्रदूषण आन।।
. 👀 १४ 👀
*क्षमा* क्षमा करती सदा, मानव के अपराध।
हम भी मिल रक्षण करें,सबके मन हो साध।।
. 👀 १५ 👀
पेड़ *अवनि* की शान है, शीतल देते छाँव।
प्राणवायु भरपूर दे, लगा नगर पथ गाँव।।
. 👀 १६ 👀
भरते निर्मल बाँध सर, हरे *अनंता* ताप।
नीर प्रदूषण है सखे, हम सब को अभिशाप।।
. 👀 १७ 👀
वारि अन्न जीवन वसन, दिए सर्व सुख शान।
रहें तभी *विश्वंभरा*, रक्षण मय सम्मान।।
. 👀 १८ 👀
रखे *स्थिरा* धारण सदा, मानव तेरे भार।
करती निज कर्तव्य वह, करले कर्म सुधार।।
. 👀 १९ 👀
वृक्ष *धरित्री* पर हरे, वर्षा जल की आस।
खूब लगाओ पेड़ फिर, भावि बने विश्वास।।
. 👀 २० 👀
*धरणी* पर जल है भरा,हिम सागर नद बंध।
खेती, पीने को नहीं, सोच मनुज मतिअंध।।
. 👀 २१ 👀
*उर्वी* पर है सिंधु सर, नदिया और पठार।
फसलें कानन पथ भवन,झेले गुरुतम भार।।
. 👀 २२ 👀
देश राज्य सीमा बना, ले हथियार नवीन।
क्यों लड़ते ,रहने यहीं, जेवर जोरु *जमीन*।।
. 👀 २३ 👀
धीरज से खोदें खनिज, करले भल पहचान।
रहे *रत्नगर्भा* अमर, अविरल रहें निसान।।
. 👀 २४ 👀
*महि* से रवि शशि दूर है,फिर भी नेह प्रकाश।
चाहे तन से दूर हों, मन में हो विश्वास।।
. 👀 २५ 👀
गंग *अदिति* पर ही बहे, भागीरथी प्रयास।
निर्मल रखनी है सदा, जैसे हरि आवास।।
. 👀 २६ 👀
*आद्या* सम हैं नारियाँ, धारक और महान।
सृष्टि चक्र इनसे चले, मत कर नर अपमान।।
. 👀 २७ 👀
*जगती* पर जीवन रहे, ईश्वर से अरदास।
जीवन भी साकार तब, होय प्रदूषण नाश।।
. 👀 २८ 👀
सहती *धात्री* देखिए, मानव के अतिचार।
मर्त्य जन्म शुभ कर्महित,करले खूब विचार।।
. 👀 २९ 👀
इसी *निश्चला* पर रहें, प्राकृत जीव अनंत।
सुर नर मुनि गंधर्व की, चाह बहार बसंत।।
. 👀 ३० 👀
खोद रहे *रत्नावती*, बजरी पत्थर खेत।
मोती माणिक रत्न भी, खोजे स्वर्ण समेत।।
. 👀 ३१ 👀
वासुदेव श्रीकृष्ण से, सभी ईश अवतार।
माने माँ सम *वसुमती*, वीर मिटाए भार।।
. 👀 ३२ 👀
*विपुला* बड़ी विचित्र है,विपुल भरे भण्डार।
सीमित दोहन कीजिए, मत भर घर आगार।।
. 👀 ३३ 👀
शस्य श्यामला चाहते, *श्यामा* को घनश्याम।
मीरा, राधा श्याम को, सीता चाहति राम।।
. 👀 ३४ 👀
सहे सदा माता *सहा*, पूत , दुष्ट के दंश।
'लाल' मात के जो कहे, मेटे खल कुल वंश।।
. 👀 ३५ 👀
धारे *सागरमेखला,* सागर सरिता सेतु।
पर्वत जंगल जीव ये, माता, सुत जन हेतु।।
. 👀 ३६ 👀
गौ, गौरैया, गिद्ध गुण, भूल रहा इंसान।
उपयोगी जनजीव ये, *गो* का हर अरमान।।
. 👀 ३७ 👀
धर्म,जातियाँ गोत्र से, मत कर जनअलगाव।
सूरज *गोत्रा* चंद्र के, रहे एक सम भाव।।
. 👀 ३८ 👀
क्यों *ज्या* को अपमानता, स्वारथ में इन्सान।
माता का सम्मान कर, जग है कर्म प्रधान।।
. 👀 ३९ 👀
*इरा* कभी देनी नहीं, जन्मत सीख सपूत।
रजपूतानी रीति थी, गर्वित जन रजपूत।।
. 👀 ४० 👀
जन्म *इड़ा* पर भाग्य से,करले खूब सुकर्म।
स्वर्ग नर्क व्यापे नहीं, समझ धर्म का मर्म।।
. 👀 ४१ 👀
लड़े *भोम* हित भोमिया,शीश विहीन कबंध।
शर्मा बाबू लाल के, कुल में पुरा प्रबंध।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
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