Monday, 28 October 2019

कुछ ऐसे दिये जले...मीनाक्षी पारीक

खुशहाली हर द्वार द्वार ओ अँगना में खिले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

            नाश हो तिमिर का
            लोभ मोह दंश का
           अन्त हो विकार का
            दुर्बलों की हार का

माथे पर  महकता पसीना कर्म का फले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे  दियें जले।।

         हरियाली युक्त खेत हो
          प्रदूषण  मुक्त  रेत  हो
         ना कोई मन निराश हो
        पूरी वे अधूरी आस हो

फिर मनुजता भटकी हुई,विश्वास में ढले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

       दिल की मिटायें रंजिशे
       हो अपनत्व की ख्वाहिशें
       हटे नारी की सब बंदिशें
        रोजाना रचती साजिशें

छोड़ भेद भाव गिले सब साथ मिल चले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

         अब शुद्ध खान पान हो
          लहराते  खेत धान हो
         निराशायें  आसमान हो
          राष्ट्र विश्व मे महान हो

हर भारतीय मन में अपना देश हित पले।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दिये जले।।

          सौहार्द भाव मन में हो
          सुसभ्य वस्त्र तन पे हो
          विचार उच्च पावन हो
          न धर्म जात बन्धन हो

सीमा पे भूल दुश्मनी सब दोस्त से मिलें।
अबके दिपावली पर कुछ ऐसे दियें जले।।

मीनाक्षी पारीक
जयपुर (राज)

1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत रचना....बहुत बहुत बधाई इस शानदार सृजन की 💐💐💐💐💐

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