[23/12 6:00 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 23.12.19
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कुण्डलियाँ (1)
विषय- *जीवन*
मानव दुर्लभ देह है, वृथा न जीवन जान।
लख चौरासी योनियाँ, जीवन मनुज समान।
जीवन मनुज समान, देव स्वर्गों के तरसे।
रमी अप्सरा भूमि, कई थी लम्बे अरसे।
शर्मा बाबू लाल, धर्म जीवन का आनव।
कर उपकारी कर्म, मनुज बन जाओ मानव।
आनव~मानवोचित
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कुण्डलियाँ (2)
विषय- *उपवन*
सीता जग माता बनी, जन्मी हल की नोक।
घर से वन उपवन गई, विपदा संग अशोक।
विपदा संग अशोक, वाटिका सिया वियोगी।
भटके वन वन राम, किया छल रावण जोगी।
शर्मा बाबू लाल, बया बिन उपवन रीता।
वन उपवन मय राम, पंचवट रमती सीता।
. 👀🙏👀
रचनाकार✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[23/12 6:02 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ------ बिंदी , डोली
(07) *बिंदी*
माथे पे बिंदी सजी , सुंदर लगती नार ।
साजन के मन में बसी , ले साजन का प्यार ।
ले साजन का प्यार , कहे सजना से गोरी ।
होना नहीं उदास , सुना दूंगी मैं लोरी ।
कह कुमकुम करजोरि , स्नेह देना तुम हिन्दी ।
रखना मेरा मान , सजे माथे की बिंदी ।।
(08) *डोली*
डोली पर दुल्हन चली , संग लिए अरमान ।
साजन मेरे साथ हैं , प्रभू दिये वरदान ।
प्रभू दिये वरदान , सजनी प्रितम से बोलीे ।
रहता घर आनन्द , बने रहना हमजोली ।
कह कुमकुम करजोरि , देखो पिया मैं भोली ।
सदा रखो सम्मान , चली हूँ चढ़कर डोली ।
दिनांक 21.12.19..
विषय ----- आँचल , कजरा ।
(09) *आँचल*
आँचल से बालक ढ़का , पीता है वह दुग्ध ।
किलक किलक है खेलता, हो जाता मन मुग्ध।
हो जाता मन मुग्ध , सदा दिल मोहे ममता ।
गोदी मिले जहान, बात आँखों को जमता ।
कह कुमकुम कविराय , हो जाता मन चंचल ।
राम कहो या श्याम , प्यार ही माँ का आँचल ।।
(10) *कजरा*
कजरा लगाके सजनी , देखो कैसी चाल ।
साजन से मिलने चलीं , हो करके बेहाल ।
होकर के बेहाल , शर्म से गोरी बोली ।
करने दो सिंगार , वचन में मिश्री घोली ।
कह कुमकुम करजोरि , लगा के बेणी गजरा ।
सजन देख मुस्काय , सजनी लगाके कजरा ।।
विषय --- चूड़ी , झुमका ।
दिनांक ---- 22.12.19...........
आदरणीय मुझे थोड़ा समय दें मेरा अस्पताल में चेकअप का डेट था फिर थोड़ी मानसिक बेचैनी । धीरे धीरे लिख पा रही हूं ।
[23/12 6:03 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन सोमवार 23.12.2019*
*13) जीवन*
दुनियाँ एक सराय है, आना जाना रीत
आता जो जाता वही, जीवन से क्यों प्रीत
जीवन से क्यों प्रीत, नहीं है सदा ठिकाना
विधि का यही विधान, पड़ेगा सब को जाना
कह अनंत कविराय, सूखती ही है कलियाँ
मिथ्या है व्यापार, भरम ही है यह दुनियाँ
*14) उपवन*
सींचे माली रक्त से, उपवन के हर अंश
जैसे बाबा स्वेद से, सींचे है निज वंश
सींचे है निज वंश, लड़े वह तूफानों से
सब कष्टों को झेल, चढ़े वह चट्टानों पे
कह अनंत कविराय, गृहस्थी गाड़ी खींचे
बगिया के सब फूल, लहू से बाबा सींचे
*रचनाकारः*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
[23/12 6:05 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 16:12:19
1:वेणी ::
बालों की वेणी बना,कर सोलह श्रृंगार ।
डोली बैठी गोरिया ,चली पिया के द्वार।।
चली पिया के द्वार, नयन में स्वप्न सजाए।
बाबुल दे आशीष ,लेत हैं सखी बलाएँ।।
आँगन सूना छोड़,उड़ी चिड़िया डालों की।
चलत घूँघटा ओढ़ ,बना वेणी बालों की।।
2:कुमकुम ::
महता कुमकुम की बड़ी, कुमकुम करता राज ।
शुभ कारज न हो कोई ,होय न मंगल काज।।
होय न मंगल काज, यही सौभाग्य बुलाता।
नारी के भी माथ,माँग कुमकुम ही सुहाता
विजय तिलक की बात,वेद पुराण भी कहता।
सजा ईश के भाल ,सुनो कुमकुम की महता।।
17:12:19
3:काजल::
काजल आँखों में लगा , बिंदी चमके माथ
माँग में सिंदूर भरा , मिला पिया का साथ
मिला पिया का साथ ,सखी री ढोल बजाओ।
आई द्वार बरात ,सुनो सब मंगल गाओ।।
कहे सुधा सुन आलि,आँख से बरसे बादल
सखी दुआ दें आज , आँख का झरे न
काजल।।
4:गजरा::
अलकों में महकन लगा,देखो गजरा आज।
पहनी धानी चूनरी, ओढ़ शरम औ(व) लाज।।
ओढ़ शरम औ(व) लाज, इत्र है छिड़का चंदन।
लाल हुए हैं गाल, हाथ में बाजे कंगन ।।
लगा महावर पाँव, स्वप्न पाले पलकों में
बनी वधू वह आज,लगा गजरा अलकों में।।
सादर समीक्षार्थ,
सुधा सिंह
[23/12 6:06 PM] कुसुम कोठारी: कुणड़लियाँ
23/12/19
13 जीवन
जीवन जल की बूंद है,क्षण में जाए छूट,
यहां काया पड़ी रहे,प्राण तार की टूट ,
प्राण तार की टूट, धरा सबकुछ रह जाता,
जाए खाली हाथ ,बँधी मुठ्ठी तू आता,
ऋतु बदली है सदा ,नही रहता है सावन ,
सफल बने हर काल, बने उत्साही जीवन ।।
14 उपवन
महका उपवन आज है, निर्मेघ नभ अतूल्य
द्रुम पर पसरी चाँदनी ,दिखती चाँदी तूल्य
दिखती चाँदी तूल्य ,हिया में प्रीत जगाती,
भूली बिसरी याद, चाह के दीप जलाती
पहने तारक वस्त्र , निशा का आँगन चमका ,
आये साजन द्वार , आज सुरभित मन महका ।
कुसुम कोठारी।
[23/12 6:07 PM] सरला सिंह: 23/12/2019
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
दिन - सोमवार
दिनांक-23/12/19
विषय: जीवन
विधा कुण्डलियाँ
13-जीवन
जीवन यह अनमोल है,करले इसका मोल,
शायद ये फिर ना मिले,लगे तुझे बेमोल।
लगे तुझे बेमोल ,लगा तू इसे गंवाने।
अपने को ही आज,नहीं तू है पहचाने।
कहती सरला बात, करो तुम इसे सजीवन।
मिले हमें दिन चार,करो तुम मनहर जीवन।।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - सोमवार*
*दिनांक-23/12/19*
*विषय: उपवन*
*विधा कुण्डलियाँ*
*14-उपवन*
ऐसा यह संसार है, उपवन जैसा मान।
तरह तरह के लोग हैं,लगते पुष्प समान।
लगते पुष्प समान, रहो मिलजुलकर भाई।
गाये कोयल गीत, बजे मन में शहनाई।
कहती सरला आज,करो जग को ही वैसा।
आयें दौड़े देव, कहें जग हो बस ऐसा।
*डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'*
*दिल्ली*
[23/12 6:08 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
23/12/19
//
**जीवन **
ख़ुशियाँ जीवन में मिले ,हो फूलों की रात ।
सतरंगी सपने सजे ,सदा मिले सौगात।।
सदा मिले सौगात ,बन के चाँद सी चमको।
पूरी सब अभिलाष,यहाँ सूरज बन दमको।।
ऊँचा तेरा नाम ,बधाई गाती सखियां ।
मिले ईश आशीष,सदा जीवन में खुशियां।।
///
**उपवन **
उपवन में सजते रहें ,भाँति भाँति के फूल।
माली बन रक्षा करें ,समझें इसका मूल ।।
समझें इसका मूल,भेद क्यों मन में रखते ।
सबके अलग विचार,संग नहि मिल कर रहते।।
करिये ऐसी प्रीति ,सदा सजता हो मधुबन ।
बहती मंद बयार ,सुगंधित हो अब उपवन ।।
////
अनिता सुधीर
लखनऊ
[23/12 6:17 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 23.12.19
(13) जीवन
दोबारा मिलता नहीं,जीवन है अनमोल।
सबसे मिलना प्रेम से, देना मीठा बोल।।
देना मीठा बोल, जगत में हँसना गाना।
जीवन के दिन चार,सभी से प्रीत निभाना।।
कहे विनायक राज,बिताना जीवन सारा।
धर्म करो उपकार,नहीं मिलता दोबारा।।
(14)उपवन
वन-उपवन खिलता रहे,छाये सदा बहार।
पर्यावरणी सोच हो, वृक्ष करे उपकार।।
वृक्ष करे उपकार, लगाओ घर आँगन में।
शुद्ध हवा भंडार, बहे फिर तो बागन में।।
कहे विनायक राज,काटना मत ये कानन।
रक्षा करना आप,सजाना है वन-उपवन।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[23/12 6:21 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगन्ध छन्दशाला
कुुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 23/12/2019
शीर्षक - जीवन
कुण्डलिया - 13
======================
जीवन में सुख - दुख सभी, कर्मों के अनुरूप I
बिन भोगे छूटे नहीं, योगी, निर्धन, भूप ll
योगी, निर्धन, भूप, बुरा - अच्छा जो करता l
अलग- अलग परिणाम, भटकता या वह तरता ll
कह 'माधव कविराय', बदन की उखड़े सीवन l
कृत्य बने इतिहास, सँवारो अपना जीवन ll
कुण्डलिया -14
शीर्षक - उपवन
============
जंगल का उपवन अनुज, स्वच्छ रखे परिवेश I
तरु, औषधियाँ, फूल, फल, सुन्दर देश-प्रदेश ll
सुन्दर देश - प्रदेश, प्रदूषण भी कम होता l
मौसम हो सामान्य, न मानव धीरज खोता ll
'माधव' हो सुख चैन, हृदय गर चाहत मंगल l
हरियाली घर रोप, बनाओ छोटा उपवन ll
रचनाकार का नाम -
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[23/12 6:42 PM] कृष्ण मोहन निगम: कलम की.सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर प्रतियोगिता
*दिनाँक 23/12/2019*
13- *जीवन*
जीवन के संग्राम में , लड़ना तेरा धर्म ।
फल की चिंता छोड़कर,करता चल बस कर्म ।।
करता चल बस कर्म , ज्ञान गीता से ले तू ।
जाना है उस पार , बना पौरुष का सेतू ।।
कहे निगम कविराज, कर्म पहले फिर सुमिरन।
पायेगा सुख शांति , बनेगा उत्सव जीवन ।।
14 - *उपवन*
उपवन यह परिवार का, माली जिसका तात ।
सबका हित चिन्तन करे, निशदिन साँझ प्रभात ।।
निशिदिन साँझ प्रभात , सतत संवर्धन पोषण ।
उगें न खरपतवार, सभी का सम्यक तोषण ।
"निगम" खिले मुस्कान, रहे बस इसका चिन्तन।
माली का उपकार, सदा ही माने उपवन ।।
कलम से
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर)
[23/12 6:44 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ
दिनांक -23-12-19
कुंडलियाँ -14/
विषय -उपवन
उपवन कोयल कूकती, बैठ आम की डाल l
तरू पवन से झूमते,
कहते अपना हाल l
कहते अपना हाल,
दृश्य आकर्षित करताl
रंग बिरंगे फूल,कली पे भौंरा मरता l
कहती सुनो सरोज,
रखो सब सुन्दर चितवन l
खिलना बनके फूल,
बना लो मन को उपवनl
दिनांक -23-12-19
कुंडलियाँ -15
विषय -जीवन
चलते जीवन में रहो, चलना इसका कामl
डगर डगर काँटे बिछे, नहीं मिले आराम l
नहीं मिले आराम,चलो निज पथ पर आगे l
बढ़ने में ही शान, भाग्य तब ही ये जागे l
कहती सुनो सरोज, धूप में तन हैं जलते, मिलती जीत जरूर, कर्म करने के चलते l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[23/12 6:46 PM] डॉ मीना कौशल: कलम की सुगन्ध छन्दशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु
जीवन
जीवन ईश्वर की कृपा, जापर रहें कृपालु।
शुचि चिन्तन जीवन जियो,बरसे कृपा दयालु।।
बरसे कृपा दयालु,हानि दूजे मत दीजै।
मिट जाये परिताप,दुआयें सबकी लीजै।
चिन्तन मनन महान,सदा ही कर्म रहे धन।
सेवा का संचार,करे मानवता जीवन।।
उपवन
उपवन की शोभा निरखि,सबका मन हरषाय।
विविध भाँति फल फूल हों,विविध रंग बरसाय।।
विविध रंग बरसाय,चहकते डाली पर खग।
कूद रहे सुन्दर डालों,पर छवि शाखामृग।।
अनुपम शोभा छाय, रहा हरता सबका मन।
सबको खूब लुभाय रहा, है प्यारा उपवन।।
रचनाकार
डा.मीना कौशल
[23/12 6:47 PM] शिवकुमारी शिवहरे: जीवन
जितना रह लो साथ मे ,जीवन एक सराय ।
ये आये नही हाथ मे, जीवन चलता जाय।
जीवन चलता जाय, जिंदगी बहुत ही
प्यारी।
अच्छे कर ले काम,देखती दुनिया सारी।
कहे शिवा ये आन, करो काम चाहे कितना।
अच्छे करलो काम,मिला तुम्हें जीवन जितना।
शिवकुमारी शिवहरे
[23/12 6:48 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*शतकवीर सम्मान हेतु कुंडलिया*
*दिनांक:-२३/१२/२०१९*
*दिवस:-सोमवार*
*आज की कुंडलिया*
*विषय :-जीवन*
*१३*
जीवन ने जब-जब किया, मुझसे कठिन सवाल |
मैंने अपनी जेब का, सिक्का लिया उछाल |
सिक्का लिया उछाल, किया सौदा सपनों का |
मन में नहीं मलाल, कभी गैरों अपनों का |
जग की ऐसी रीति, खुली घावों की सीवन |
यूँ ही जाए बीत, सुलक्षण मेरा जीवन ||
*विषय:- उपवन*
*१४*
उपवन की उपमा सुमन , धरा करे शृंगार |
पावन इनकी देह है , विधना के उपहार |
विधना के उपहार, करें वो अक्सर नर्तन |
तोड़े गए जरूर, करें कब रोकर अर्तन |
कह विदेह कविराय, सदा ही खिलता चितवन |
देवों के गलहार , सुमन से हर्षित उपवन ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[23/12 6:48 PM] शिवकुमारी शिवहरे: उपवन
उपवन फूलों से भरा,छाने लगी बहार।
बेला ,चंपा मोंगरा, फूलों की बौछार।
फूलों की बौछार, भरी फूलो से डाली।
देते है उपहार, तोड़ता हमको माली।
है रंग बिरंगे फूल,लगा फूलों का मधुवन।
लगते कितने कूल, भरो फूलों से उपवन।
शिवकुमारी शिवहरे
[23/12 6:49 PM] शिवकुमारी शिवहरे: चूड़ी
हाथ चूड़ियों से भरा,पीली नीली लाल।
माथे मे बिंदिया लगी,टीका लगता भाल।
टीका लगता भाल, हाथ कंगना
साजे।
चली सखी ससुराल ,बाजा अंगना बाजे।
कर सोलह श्रृंगार ,पिया का मिला है साथ
पायल की झंकार ,भरा चूड़ियों से हाथ।
[23/12 6:57 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
23/122019::सोमवार
जीवन
ताने बाने बुन रहा, जीवन के पुरजोर।
सुलझाने की चाह में, गई उलझती डोर।।
गई उलझती डोर, कशमकश काम न आई।
ढूँढा जब भी छोर, दूर वो पड़ा दिखाई।।
रिश्ते रेशम गाँठ,कह गए लोग सयाने।
खूब लगा ले जोर, न सुलझें ताने बाने।।
उपवन
उपवन सा महका करे, विद्या सँग सँसार
सुच्चे मोती पोइए, अर्जित कर सँस्कार
अर्जित कर सँस्कार, सुफल कर जीवन अपना
चलें इसी के साथ, समझ मत विद्या सपना
कलम पकड़ दें मान, करे नित इसे संचयन
दो विद्या का दान,महकता है ये उपवन
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[23/12 7:01 PM] शिवकुमारी शिवहरे: डोली
डोली बैठी है सखी ,चली पिया के द्वार।
मातपिता सब छूटते,छूटा घर परिवार।
छूटा घर परिवार, है छूटी ये हवेली
मिलेगा प्रेम अपार,बन गई नई नवेली।
देख रही वह द्वार, सभी छूटी हमजोली।
धीमी होती चाल, बैठ गई सखी ड़ोली।
शिवकुमारी शिवहरे
[23/12 7:12 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
कुँण्डलिया शतकवीर हेतु
दिनाँक-23/12/2019
कुण्डलिया
----------------
13-जीवन
-------------
कैसा जीवन हो गया ,दौड़ रहे सब लोग।
तन पापी के फेर मेंं, गलत किया उपभोग।।
गलत किया उपभोग,व्यर्थ है समय गँवाया।
करते रहते भोग,पिपासा घोर समाया।।
कहे 'निरंतर' आज,ईश बन बैठा पैसा।
कम आती है लाज,हाय अब रोना कैसा।।
-----------------------------------------------
14-उपवन
---------------
फूले सुन्दर पुष्प हैं,उपवन करे विहार।
खुशबू भीनी मिल रही,उनकी छटा निहार।।
उनकी छटा निहार,रंग बिखरे बहुतेरे।
नजर डाल भरपूर,करूँ हरदम मैं फेरे।।
कहे 'निरंतर' राज,गीत कजरी के भूले।
उपवन की कर सैर,लालिमा गुल हैं फूले।।
----------------------------------------------
अर्चना पाठक 'निरंतर'
अम्बिकापुर
[23/12 7:12 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर सम्मान*
*22/12/19*
*चूड़ी*
खनके खन - खन चूड़ियाँ ,पीली नीली लाल ।
नाचे छम- छम राधिका ,मोहन हुए निहाल ।।
मोहन हुए निहाल , सजनिया चूड़ी पहने ।
झूमे वो इठलाय , पहन के सारे गहने ।
बाजे पायल पाँव , कामिनी काया दमके ।
प्रियतम को तड़पाय ,कलाई चूड़ी खनके ।।
*झूमका*
नथनी झुमका बिंदिया , नारी का श्रृंगार ।
नार सुहागन हो सदा , प्रियतम का उपहार ।।
प्रियतम का उपहार , बिंदिया चूड़ी साजे।
मतवाली सी चाल ,पाँव में पायल बाजे ।।
सरगम बने नुपूर ,प्रीत नित पाये सजनी ।
दमके गोरा रूप , सजे जो आनन नथनी।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[23/12 7:14 PM] डा कमल वर्मा: कुंडलियाँ शतक वीर के लिए🙏🏻
दिनांक 23-12-19
कुंडलियाँ क्र13
1) जीवन, 🌹
चोला मानव का मिला,मुश्किल से इस बार।
इसका तो उपयोग हो,करने को उद्धार।
करने को उद्धार, जीव को यह समझायें,
भव को करना पार,नया जीवन क्यों पायें।
कमल समझ यह बात,जीव यह निश्चित भोला।
करले तू उद्धार,मिला है मानव चोला।
कुंडलियाँ क्र 14
2) उपवन,🌹
फैला रंग चरों दिशा,उपवन सजी बहार।
पहन हरी चुनरी धरा,अंबर रही पुकार।
अंबर रही पुकार, सजन अब तो आ जाओ।
बंधन करो स्विकार,प्यार से मांग सजाओ।
कहे कमल सुन धरा,देख अंबर है छैला।
उपवन रहा सजाय,रंग हरसूं अब फैला।
रचना कार, डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
[23/12 7:18 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 23/12/19
कुण्डलियाँ- (13)
विषय - *जीवन*
जीवन में बिन प्रेम के , बिगड़ चुके है खेल ।
चौमासे में मेघ ज्यों, भूले रवि भू मेल।।
भूले रवि भू मेल, किरण को भी पहुँचाना।
जीने का आनंद ,फिसल कर फिर उठ जाना ।।
सुवासिता मन झूम ,देख कर बरसा सावन।
इन्द्रधनुष हो रोज, सप्तरंगी हो जीवन ।।
कुण्डलिया-(14)
विषय- *उपवन*
उपवन तो मरघट दिखे, बिन पौधों के आज।
पछताएगा नर बहुत, पड़े भयंकर गाज ।।
पड़े भयंकर गाज, जीव का होगा रोना।
धरती पर हो नीर, बीज कुछ ऐसे बोना।।
सुवासिता दे ध्यान, लगे मनभावन सावन ।
खिले चमेली फूल, सुशोभित हो हर उपवन।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[23/12 7:43 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंदशाला*
कुंड़लिया शतकवीर हेतु
23/12/19
*(1)जीवन*
जीवन रक्षित हो सदा,ऐसा करिए काम।
नाता रक्षा जोड़िए,सौदा सच्चा दाम।
सौदा सच्चा दाम,हेलमेट पहन यारा।
होत सुरक्षा हाथ,सुहाना सफ़र हमारा।
कहे मधुर ये सोच,सफर होवे मनभावन।
आवागमन विचार,सुरक्षित रहता जीवन ।
*(2)उपवन*
डाली खिलता फूल है,फूलो से है बाग।
वृक्ष पात की हरितमा,कोयल कूके राग।
कोयल कूके राग,खिली है उपवन क्यारी।
भौरो का गुंजार,चहकती चिडियाँ सारी।
कहती मधुर विचार, बसंती वसन निराली।
उपवन लागे नार,ओढ़नी पहनी डाली।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[23/12 7:45 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *जीवन*
जीवन ईश्वर की कृति, हैअमोल उपहार ।
लोभ मोह माया फँसे,जीवन हो बेकार।
जीवन हो बेकार,जनम हीव्यर्थ जावै।
मानुष मानुष एक,जीव हित धरम निभावै।
कहे मधुर मति मंद,अहम मे भटके यौवन।
गढ़ो चरित्र विचार, देश हित मानुष जीवन।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[23/12 8:01 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--23/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
(13)
*जीवन*
दुविधा जीवन में छुपी,छीन रही आराम।
कैसे चिंता से बचें,करते हैं सब काम।
करते हैैं सब काम,कभी आराम न पाते।
भूले दिन औ रात,रहे मन को भटकाते।
कहती अनु सुन बात,सभी को मिलती सुविधा।
खुशियाँ मिले अपार,फिर नहीं रहती दुविधा।
(14)
*उपवन*
उजड़ा उपवन देख के,मानव हुआ निराश।
अपने हाथों से किया,उसने आज विनाश।
उसने आज विनाश,कुछ वह समझ न पाया।
करता बंटाधार,मिटा तरुवर की छाया।
कहती अनु यह देख,धरा पर मौसम बिगड़ा।
सोचे अब क्यों आज,हरित जो उपवन उजड़ा।
*अनुराधा चौहान*
[23/12 8:04 PM] सुकमोती चौहान रुचि: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलिया शतकवीर के लिए*
दिनाँक - 23/12/19
13. *जीवन*
अच्छा जीवन के लिए,लक्ष्य चाहिए एक।
अमर तुम्हारा नाम हो,कर्म करो तुम नेक।
कर्म करो तुम नेक,सभी हों प्रेरित तुमसे।
अगर कभी हो हार,सबक लेना तू उनसे।
कहती रुचि करजोड़,हृदय से जो हो सच्चा।
करता परोपकार,बने जीवन भी अच्छा।
14. *उपवन*
घूमे आओ हम सखी,उपवन के चहुँ ओर।
रंग बिरंगे फूल ये,करते भाव विभोर।
करते भाव विभोर,फूल की सुंदर क्यारी।
गुन गुन की आवाज,भ्रमर करता है भारी।
कहती रुचि करजोड़, खुशी में बच्चे झूमे।
सुबह शाम अब देख,लोग उपवन में घूमे।
✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[23/12 8:05 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक-18-12-019
(5)
विषय-पायल
सुमधुर सुन्दर संगीत, पायल की झंकार।
हर्षित तीनों लोक है, देख मात श्रृंगार।।
देख मात श्रृंगार, मयूरा नृत्य दिखाए।
लाल चुनरिया ओढ़, देवी सबको मोह जाए।।
झिलमिल चमके लौंग, नयन सजे हैं काजल।
आओ अम्बे आज, बजाती छमछम पायल।।
(6)
विषय-कंगन
नारी नहीं सुना रही, पायल की झंकार।
शत्रु थर थर काँपते, सुन इसकी हुंकार।।
सुन इसकी हुंकार,पहने हाथ में कंगन।
ये उसका श्रृंगार, अब न समझो बंधन।।
ऊँची भरे उड़ान, दंग है दुनिया सारी।
रखना हरदम मान, सदैव पुजनीय नारी
दिनांक -19-12-019
(7)
विषय-बिंदी
रजनी के माथे सजी, शशि की बिन्दी आज।
शीतल पवन मोहित हुआ, छेड़ा सुन्दर साज।।
पवन छेड़ता साज, नदी की चंचल धारा।
देखे मुखड़ा नीर, नभ का हर एक तारा।।
आये न साजन तो, जागे है अभी सजनी।
भर भर आते नैन, सूनी हो गयी रजनी।।
(8)
विषय-डोली
डोली पहुँची गाँव में, गली हुई गुलजार।
घूंघट में दुल्हन छिपी, लज्जा नैन अपार।।
लज्जा नैन अपार, पहुँची पिया के द्वारे।
गूँजे मंगलगान, सास आरती उतारें।।
आयी लक्ष्मी रूप, बहू सुन्दर अति भोली।
सूना वो आवास, जहाँ से आयी डोली।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
विलंब के लिए क्षमा प्रार्थिनी👏👏👏👏
[23/12 8:06 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -23/12/19
जीवन (13)
जीवन जीने की कला, होगी जिसकी खास।
अपने जीवन में सदा, होगा वो ही पास।।
होगा वो ही पास, समय को यूँ मत खोना।
रखना हरदम धीर, अधीर कभी मत होना।
कह राधेगोपाल, बना तू जीव सँजीवन।
समय बड़ा अनमोल, बिताओ सुख से जीवन।
उपवन (14)
उपवन में मेरे खिले, रंग-बिरंगे फूल।
मैं तो उनकी राह से, सदा हटाती शूल।
सदा हटाती शूल, वही मेरी फुलवारी।
उनसे ही तो मिले, जगत की खुशियाँ सारी।
कह राधेगोपाल, युगल स्वाती से मधुवन।
खुशियों से भर जाय, सदा सबका ही उपवन।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[23/12 8:12 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
23-12-19
केवरा यदु "मीरा
जीवन
जीवन को समझा नहीं, लोग मचाते रार ।
चार दिनों की जिन्दगी, करले सबसे प्यार ।
करले सबसे प्यार, मान जा नाम रहेगा ।
जाने के भी बाद, जान ले काम रहेगा ।
मत कर तू अभिमान, समझ यह माटी का तन ।
करले कर्म महान, सफल हो तेरा जीवन ।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[23/12 8:12 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
23-12-19
मीरा
उपवन में खिलते सुमन, जूही अरु कचनार ।
महके गेंदा मोगरा, मधुप करे गुंजार ।।
मधुप करे गुंजार, चूम कर वह रस घोले ।
मैं हूँ तेरा मीत, प्रीत में गुन गुन बोले ।
हरपल चुभते शूल, घायलों सा मेरा तन ।
भूल न पाता प्यार, देख यह प्यारा उपवन ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[23/12 8:12 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': * कुंडलिया शतक वीर प्रतियोगिता!*
*दिन--सोमवार, 23/12/19*
~~~~~~~~~~~~~~~~
*१३-- जीवन--*
~~~~~~~~~~
जीवन के दिन चार हैं, मत करना अभिमान।
सबसे मिलजुल कर रहो, कहते चतुर सुजान।
कहते चतुर सुजान, ज्ञान सद्गुरु से पाओ।
औरों के प्रति द्वेष, कभी मत मन में लाओ।
धर्म कर्म में नित्य ,लगाओ अपना तन-मन।
करो सदा सत्कर्म , खुशी से बीते जीवन।।
~~~~~~~~~~~~~~~~
*१४-- उपवन*
~~~~~~~~~~~~~~~~
वन - उपवन सब कट गये, धरा हुई श्रीहीन।
पानी बिन सूखा पड़ा, उगे न वृक्ष नवीन।
उगे न वृक्ष नवीन, नहीं अब मिलती छाया।
हुई प्रदूषित वायु , बुरा है कलयुग आया।
सूखीं नदियाँ, कूप, हुआ अति दूभर जीवन।
आओ करें प्रयास, उगायें फिर वन उपवन।।
~~~~~~~~~~
*--- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--बलिया , उत्तरप्रदेश।"
[23/12 8:25 PM] शिवकुमारी शिवहरे: सुधार किया
उपवन
उपवन फूलों से भरा,छाने लगी बहार।
बेला ,चंपा मोंगरा, फूलों की बौछार।
फूलों की बौछार, भरी फूलो से डाली।
देते है उपहार, तोड़ फूलों को मालीे।
सखी करे श्रृंगार ,लगा फूलों का मधुवन।
लगते सुंदर फूल , भरो फूलों से उपवन।
शिवकुमारी शिवहरे
[23/12 8:31 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: 6....विषय..............चूड़ी
विधा...............कुंडली
★★★★★☆★★★★★★★★★★
खनखन बाजे चूड़ियाँ,
नव दुल्हन के हाथ।
हार गले को शोभती,
सोहे बिंदी माथ।
सोहे बिंदी माथ,
लगी दुल्हन सोणी सी।
नथनी झूले नाक,
फूल शोभित वेणी की।
रची महावर पाँव,
बजी फिर पायल छनछन।
दे मंगल परिवार,
चूड़ियाँ बाजे खनखन।
★★★★★★☆★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ. ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[23/12 8:32 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*****************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*(१३)विषय-जीवन*
बहती निर्मल नीर सी,जीवन की ये धार।
भाव तरंगित हो सदा,उठे प्रेम का ज्वार।
उठे प्रेम का ज्वार,घृणा का दानव हारा।
सुंदर बने विचार,मिले सुख सौरभ सारा।
कहती 'अभि' निज बात, हृदय जब करुणा बसती।
जीवन में रसधार, रहे फिर अविरल बहती।
*(१४) विषय-उपवन*
उपवन जैसा सोहता,मेरा भारत देश।
सुंदर सुमनों से सजा,बहुरंगी परिवेश।
बहुरंगी परिवेश,दिखे जन-जन में समता।
सत्य शांति संदेश,बसे मन करुणा-ममता।
रहे एकता मूल,प्रेम से पूरित जन-मन।
प्रकृति करे श्रृंगार,सजा ये सुंदर उपवन।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[23/12 8:33 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: दिनाँक 23.12.2019
13- जीवन
**********
जीवन यह अनमोल है,
इसको जियें सँभाल।
कदम-कदम पर दिख रहा,
यहाँ काल का गाल।
यहाँ काल का गाल,
मौत के कई बहाने।
नियत समय सँग रूप,
तरीके और ठिकाने।
"अटल" न कोई पाय,
अमरता की संजीवन।
प्रभु की है सौगात,
आप-हम सबका जीवन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
14- उपवन
**********
उपवन में तितली उड़े,
भँवरा पीछे जाय।
गुनगुन-गुनगुन कर रहा,
भेद न कोई पाय।
भेद न कोई पाय,
जाल वह बिछा न पाया।
कली देख हैरान,
हाय क्यों मुझे भुलाया ?
"अटल" प्रेम की रीत,
बाँधती अद्भुत बन्धन।
भँवरा मन भरमाय,
प्रेम रस डूबा उपवन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[23/12 8:37 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:-22/12/19 (कल का छुटा हुआ अभ्यास)
11) चूड़ी
चूड़ी की मोहक खनक,पायल की झंकार।
कुमकुम बिंदी माथ पर, ये नारी शृंगार।
ये नारी शृंगार, लगे सुंदर साजन को ।
करे प्रशंसा खूब, छुए जब अंतर मन को।
संचित करके शक्ति, बनो तुम जग आरोहक।
करो नेक व्यवहार, लगे सबको मनमोहक।।
12) झुमका
कानो में झुमका पहन, सजनी करती याद।
समदर्शी है यह सोच,भाव भरा संवाद।
भाव भरा संवाद, निभाती घरवालों से।
लेतीं सदा उबार, तिकड़मी हर चालों से।
उत्तम शिष्टाचार,कृत्य के सोपानों में।
यह अनुपम सौगात, डाल लो सब कानों में।।
~~~~~~~~~~~~~~
कुण्डलियाॅ :- 23/12/19
13. जीवन
जीवन के इस मोड़ में,काॅटे बिछे अनेक।
तब तो हमको चाहिए, साहस बुद्धि विवेक।
साहस बुद्धि विवेक,सभी को रखना होगा।
मिले कहीं कटु घूॅट,उसे भी चखना होगा।
चुनो सत्य का मार्ग,करो छिद्रों का सीवन।
करना है संघर्ष, यहां हमको आजीवन।।
14. उपवन
उपवन में गेंदें बहुत, खिले हुए हैं आज।
भीनी महक गुलाब का, एक छत्र है राज।
एक छत्र है राज, रातरानी छितराई।
हरे भरे सब पेड़, लाजवंती हर्षाई।
रंग बिरंगी फूल, देख कर झूमें चितवन।
यही प्रकृति सौंदर्य, सुहाना लागे उपवन।।
महेंद्र कुमार बघेल
[23/12 8:48 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
23.12.19-सोमवार
13)
*जीवन*
जीवन सफल बनाइये,करके पर उपकार
बड़े भाग्य से है मिला,मानुष तन उपहार
मानुष तन उपहार,देवता नर तन चाहें
मानो भी आभार,खुली हैं अनगिन राहें
छोड़ो वाद विवाद,सियो तुम उधड़ी सीवन
करके अति सत्कर्म,सफलतम होगा जीवन।।
14)
*उपवन*
मन उपवन है क्यों खिला,पूछें सखियां राज।
अन्तरझाँकी मिल गई,झंकृत है दिल साज
झंकृत है दिल साज,मिलन की बेला आई
होती निज से भेंट,घड़ी है ये सुखदाई।।
कहती वंदू बात,मुदित मेरा अंतर्मन।।
यही परम श्रृंगार,खिले जब मन का उपवन।।
*वंदना सोलंकी*
[23/12 8:57 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 23.12.19
कुण्डलियाँ (13)
विषय- *जीवन*
जीवन जीना आजकल, जैसे लड़ना जंग।
ले आता हर रोज ये, एक मुसीबत संग।।
एक मुसीबत संग, झूझने की है ठानी।
कुछ भी हो अंजाम, हार कब हमने मानी।।
प्रांजलि है तैयार, सहेगी सारी उलझन।
करली है स्वीकार, चुनौती जीना जीवन।
कुण्डलियाँ (14)
विषय- *उपवन*
उपवन महके पुष्प से, लाए नयी बहार।
रंग-बिरंगी तितलियाँ, कलियों का श्रृंगार।।
कलियों का श्रृंगार, भ्रमर करते हैं गुंजन।
पक्षी करें किलोल, भोर का करते वंदन।।
प्रांजलि सुंदर दृश्य, झूमता है ये तन-मन।
शीतल बहे बयार, महकता मंजुल उपवन।।
रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[23/12 9:04 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक -23 /12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - जीवन
**************
ईश्वर का उपहार है ,
यह जीवन अनमोल ।
रखना इसे सँभाल कर ,
गरल न इसमें घोल ।
गरल न इसमें घोल ,
नहीं यह मिले दुबारा ।
होते जीव हजार ,
मनुज तन सबसे प्यारा ।
जाने कब मिट जाय ,
देह तो है यह नश्वर ।
सार्थक करना कर्म ,
मुक्ति दाता हैं ईश्वर ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - उपवन
****************
उपवन की शोभा बने ,
रंग बिरंगे फूल ।
उनकी रक्षा में खड़े ,
निर्भय होकर शूल ।
निर्भय होकर शूल ,
बचाते सुंदर कलियाँ ।
मधुप करे गुंजार ,
घूमते पुहुपन गलियाँ ।
सुंदर देख स्वरूप ,
प्रफुल्लित होता तन मन ।
माली श्रम से सींच ,
सजाते प्यारा उपवन ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[23/12 9:05 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*दिनांक - 16/12/19*
*वेणी*
वेणी में गजरा लगा, सुंदर लगती नार ।
मोहित होते साजना, देख गजब शृंगार।
देख गजब शृंगार, बजे मन में शहनाई ।
सुंदर अवसर आज, मिलन की बेला आई ।
'रीत' निभाये रस्म, नार की उत्तम श्रेणी।
शोभा निरख निहाल, सुसज्जित काली वेणी ।
*कुमकुम*
कुमकुम लगती मांग में, औरत की तकदीर ।
सदा सुहागन चाहती, बदले भाग्य लकीर ।
बदले भाग्य लकीर, यही औरत का गहना ।
फेरे लेकर सात, साथ है पति के रहना ।
'रीत' चाहती प्रीति, बजाकर पायल छुमछुम।
रहे सदा खुशहाल, मांग में दमके कुमकुम ।
*दिनांक - 23/12/19*
*जीवन*
जीवन जीयो प्यार से, मत करिये अभिमान ।
चार दिनों की जिंदगी, रखिये सबका मान ।
रखिये सबका मान, प्यार से मिल समझाये ।
बोल बचन उपहार, सभी को देते जाये ।
'रीत' करे सम्मान, जिंदगी हो मनभावन ।
मन में नहीं मलाल, खुशी से बीते जीवन।
*उपवन*
उपवन घर के सामने, खुशहाली चहु ओर ।
तरह तरह फूलेे फले, तितली करती शोर ।
तितली करती शोर, बैठ फूलों की डाली ।
चुन चुन तोड़े फूल, भर लिया डलिया माली ।
'रीत' करे शृंगार, लगा फूलों का मधुबन ।
सुंदर सुंदर फूल, खिला है देखो उपवन ।
*डॉ अर्चना दुबे 'रीत'*✍
[23/12 9:24 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 19/12/19
कुण्डलियाँ (7)
विषय- बिंदी
हिंदी भाषा ही नहीं, है भारत की शान।
इससे ही हमको मिला, इस जग में पहचान।।
इस जग में पहचान, हमें हिंदी दिलवायी।
सभी दिलों को सिर्फ, यहाँ हिंदी है भायी।।
यह भारत की आज, बनी हुई है बिंदी।
गूँजे चारो ओर, यहाँ बस हिंदी हिंदी।।
कुण्डलियाँ (8)
विषय- डोली
डोली पर जाती नहीं, दुल्हन अब ससुराल।
नया जमाना आ गया, इसमें नहीं मलाल।।
इसमें नहीं मलाल, समय बदला है भाई।
धीरे-धीरे वक्त, जमा चलता है काई।।
छोड़ पुराने रीत, कार में जाती भोली।
अब के दुल्हन आज, नही जाने हैं डोली।।
रचनाकार का नाम-
उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)
[23/12 9:33 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
सोमवार -23.12.2019
(13)
विषय- जीवन
जीवन है अद्भुत बड़ा, हार जीत का खेल।
सुख दुख का संगम यहाँ,धूप -छाँव का मेल।
धूप -छाँव का मेल, तृषित सा मन -मृग मचले।
मृग मरीचिका -रेत ,मुट्ठी से जीवन फिसले ।
आए खाली हाथ ,रहा आखिर खाली मन ।
करुणा तप संतोष ,भरो इन से तुम जीवन।
(14)
विषय-उपवन
फूलों से उपवन भरा ,झूम उठा ऋतुराज ।
कली कली पर भृंग हैं ,कूके कोयल आज।
कूके कोयल आज ,मदिर पुरवाई डोले।
घूँघट का पट खोल,कली तितली से बोले।
हरी घास पर ओस ,हँसें खग द्रुम -झूलों से।
छन कर आती धूप, भरा उपवन फूलों से।
रचनाकार का नाम-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[23/12 9:36 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि ' 'अनुभूति '
🙏🙏
*_कुण्डलिया शतकवीर सम्मान , 2019 के लिए_*
13 ) जीवन
************
काँटे जीवन में बिछे , करना सार सँभाल ।
दुश्मन की सुन लो ज़रा , गलती यहाँ न दाल ।
गलती यहाँ न दाल , करे कोशिश बहुतेरी ।
खदेड़ देना जाग , करो ज़रा नहीं देरी ।।
देख साहस ले आज , सुनो रेवड़ियाँ बाँटे ।
पहनो माथे ताज , हटा जीवन से काँटे ।।
$$$$$$$$$$$$$
14 ) उपवन
************
सारा ही उपवन खिले , हँसता मेरा देश ।
सुरभित है वातावरण , महका है परिवेश ।।
महका है परिवेश , प्रगति होती ही जाये ।
बने भारत महान , उपवन सभी को भाये ।।
एकता शांति साज , बढ़े अब भाईचारा ।
श्रृंगार करे देश , खिले उपवन ही सारा ।।
€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
23.12.2019 , 8: 52 पी.एम. पर रचित ।
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●●
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[23/12 9:46 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 18:12:19
पायल ::
बाजे पायल शोर करे,राम लला के पाँव।
रीझत दशरथ कैकेयी,रीझत सारा गाँव।।
रीझत सारा गाँव,रूप प्रभु का है प्यारा।
कर कौशल्या लाड़,सबहि के राम दुलारा।
शोभित अतुलित कांति,कमर करधनिया साजे।
सोहे कुंडल कर्ण, पाँव पैजनिया बाजे।।
कंगन ::
पहने कंगन हाथ में,पायलिया है पाँव
नागिन जैसी वो चले, देखे पूरा गांव
देखे पूरे गाँव, नयन मोहक कजरारे
दिवस हो गई रात ,घेरि आये बदरा रे
हैं संदल से गात,सुखद सूरत क्या कहने
मलमल से हैं गाल, बदन पर सोहे गहने
सादर समीक्षार्थ,
सुधा सिंह
[23/12 9:56 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिनांक - 23.12.19*
*कुण्डलियाँ (13)*
*विषय :- जीवन*
*जीवन* के संघर्ष में, मानव ढूँढें *त्राण*।
*त्राण* ईश के दर मिले, *दांव लगे जब प्राण*।।
*दांव लगे जब प्राण*, कर्म ही सच्चा *साथी*।
*साथी* देता साथ, शीत में जैसे *गाती* ।।
*गाती* रखना स्वच्छ, रखे जो तन मन *पावन*।
*पावन* हो संस्कार, सफल हो जाता *जीवन*।।
*कुण्डलियाँ (14)*
*विषय :- उपवन*
*उपवन* जीवन एक सम, जहाँ मिले हर *रंग* ।
*रंग* बिरंगे फूल के , *कांटे भी हैं संग* ।।
*कांटे भी हैं संग*, बनें जो जीवन *रक्षक* ।
*रक्षक* हो असहाय, मिले बलशाली *भक्षक*।
*भक्षक* करते घात , कलंकित जिनकी *चितवन*।
*चितवन* खोले भेद, पढ़े हर लोचन *उपवन* ।।
*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*
[23/12 9:57 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक - 23.12.19
कुण्डलियाँ (13)
विषय-जीवन
*मानव जीवन* है अगम ,दुर्लभ इसका *पान* ।
*पान* सम फिर महक उठे, *मान* रहे फिर *मान* ।
*मान* रहे फिर *मान* ,बढ़ो आगे.. फिर *सोना*
*सोना* बस दिन चार,खुशी सच्ची तुम *दो ना* ।
*दोना* भर भर बाँट,न भाव रखो तुम *दानव* ।
*दानव* की हो मात,सफल तब *जीवन मानव* ।।
------अनुपमा अग्रवाल
पान-पीना,पत्ता
मान-सम्मान,बात माननाकक
सोना-नींद में सोना,स्वर्ण
दो ना-खुशी देना ,दोना-केले के पत्ते का बना दोना(कटोरी के समान)
दानव-राक्षसी भाव, राक्षस।
कुण्डलियाँ (14)
विषय-उपवन
उपवन की शोभा सखी, वर्णन करी न जाय।
दिल की कलियाँ खिल उठीं,जब देखूँ वनराय।
जब देखूँ वनराय,यही बस आये दिल में।
क्यों कर मानव काट,दिनों दिन वन घट जायें।
सुनो अनु कहे आज,सुनो इनकी तुम धड़कन।
लेने दो अब साँस,खिलेंगे फिर मन उपवन।।
रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल
बेहतरीन
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कुण्डलियाँ संग्रह सभी आदरणीयों को हार्दिक बधाईयाँ
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