एक प्रतिष्ठित गीतकार की
कलम लिखे हर गीत सुहाना
कौशल गुण परिलक्षित होता
भले साधते शिल्प पुराना।। *गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात'*
उनके शब्दों से महकी है
गीतों की बगिया इक प्यारी
अर्थपूर्ण हैं भाव मनोरम
लाखों में भी दिखती न्यारी
कोयल की तानों सा मीठा
लगता है उनका हर गाना।। *नीतू ठाकुर 'विदुषी'*
तलवार चलाते शब्द नए,
सब सीख रहे हो अभिलाषी।
तान मधुर छेड़े मन चंचल,
मुख बोल ठगे हिय मृदुभाषी।
कर्मठ हाथ सजाए लेखन,
सीखे भावों को सहलाना।। *परमजीत सिंह 'कोविद'*
प्रज्ञ कुशल वो शिल्प विवेकी,
रचते नित ही गीत अनोखे।
स्वर माधुर्य समाया इनमें,
छंद बुने निशदिन ही चोखे।
अवलेखा के जादूगर ये,
बहुत कठिन इनको छू पाना।। *सौरभ प्रभात*
भाव रचे मुखरित मंजुल से
जैसे कल कल झरना बहता
श्रृंग मेखला से बह आता
राह पथिक की बातें कहता
और ठहर के ऐसे चलता
छेड़े कोई राग गुहाना।।'प्रज्ञा'
छंद सीख भावों में ढाला
कल्पक भाव शिल्प के ज्ञाता
एकलव्य हो या गुडाकेश
गुरु बिन ज्ञान न कोई पाता
काव्य राह में चलकर भैया
बड़ा कठिन है नाम कमाना।। *कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'*
छंद शिल्प के माणिक चुनकर
तारापति सम कला दिखाएं।
लगे दिवाकर नीलगगन से
पटल सुशोभित करने आए।
विज्ञ अंश है खान गुणों की
बुनें भाव का ताना बाना।। *पूजा शर्मा "सुगन्ध"*
डाली -डाली है मतवाली
छेड़ रही कुछ गीत पुराने
अनजानी सी राहें पकड़ी
याद आते है वो जमाने
बिन पंखो के उड़ता है मन
खुश रहने का हुआ बहाना।। *पूनम दुबे "वीणा"*
हृद नभ पट से लय ताल बजे
भू पन्नें पर शब्द विराजे
अंकुर होते भाव सुहाने
मेघ पुष्प से घन मन साजे
रिमझिम रिमझिम भाव लेखनी
पंछी पाठक चुगते दाना।। *दीपिका पाण्डेय "क्षिर्जा"*
भाव सजीले झरने बहते,
चंचल मन चलती पुरवाई।
रात कहे दिन में बदलूँगी,
प्रेमी सूरज है हरजाई।
कवित्त नए अब रंग बिखेरे,
सुंदर शब्दों युक्त ख़ज़ाना। *कंचन वर्मा ‘’विज्ञांशी’’*
शब्द-शब्द चमके मोती से,
अर्थ प्राण में रस बरसाते।
कल्पित कानन से चुनकर वे
भाव पुष्प को रहे सजाते।
साधक बनकर करे साधना,
आशा के नित दीप जलाना। *अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'*
आशाओं के पंख लगाकर
उड़े व्योम में मस्त पवन सा ।
बनी तूलिका शुभ पथ गामी
कर्म सुवासित शुभ चंदन सा ।
रस छन्दों का दीप जलाकर
नित्य ढूँढते नया ठिकाना ।। *इन्द्राणी साहू"साँची"*
आनन्दित हो जीवन आगे,
रहो सदा ही खुश होकर के ।
साथ रहे ये कलम आपकी,
शब्दों में ही तो खोकर के।।
लिखते रहना नित कुछ नूतन,
इस जीवन का खोना पाना।। *राधा तिवारी "राधेगोपाल"*
छंद ज्ञान भावों का अर्पण ,
बनी लेखनी है नित सावन।
चमक रहा ज्यों आभा मंडल,
सूर्य किरण ज्यों पड़ते पावन।
इतिहास रचे गीत सुहावन ,
छंद विज्ञ बनकर समझाना।। *धनेश्वरी सोनी गुल*
द्रवित ह्रदय से कल कल बहती
काव्य सरित की निर्मल धारा
लेखन का लालित्य अनोखा
कौशल सा है एक सितारा
नित्य सृजन के सुमन खिलाकर
भाव जगत उपवन महकाना ।। *अमिता श्रीवास्तव 'दीक्षा'*
मन के कोरे कागज में ही
भाव हृदय के लिख लेते है।
अंतर्मन का मंथन करके
अक्षर में सब कह देते है ।
सच राह दिखा कर भटके को
लेखन से ही पथ दिखलाना।। *चमेली कुर्रे 'सुवासिता'*
दिन उत्सव का होवे मंगल
सब देवों का वरदान मिले
तन मन से सब कारज हों शुभ
नित जीवन को उत्थान मिले
हो सुख का उर उल्लास सदा
दुख से चित्त रहे अनजाना ।। *गीतांजलि 'विधायनी'*
निर्मल है वाणी ओजस्वी
प्रखर शब्द सूर्य की भांति
नित रागिणी हैं बिम्ब गाते
गीतों की गरिमामयी पांति
जिनके लेखन के कौशल का
आज हुआ है मंच दिवाना l *श्वेता विद्यांसी*
आशाओं के दामन में कुछ,
फूल खिलाये हैं वर्णों के।
बगिया का माली आया है,
नित श्रृंगार करे पर्णों के ।।
तराशता हर डाली डाली ,
रूप सँवार हर्ष को पाना ।। *सरला झा 'संस्कृति'*
भावों की अठखेली क्षण क्षण
अंतस में करती हंगामा
शब्दों का संदूक लिए फिर
कौशलता पहनाया जामा
शुभ अवसर यह बार बार हो
ताक धिना धिन करते जाना।। *अनिता सुधीर 'आख्या'*
पुलकित भावों के मोती से,
गूँथें सुरभित सुन्दर माला ।
पटल सुशोभित होता रहता,
कौशलजी का सृजन निराला।
देते हम आपको बधाई,
जग में बन दीप जगमगाना।। *धनेश्वरी देवांगन 'धरा'*
वाह! बहुत सुंदर विदुषी जी ।
ReplyDeleteएक सार्थक पहल ।
सभी ने बहुत सुंदर सृजन किया है सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।