Wednesday, 10 February 2021

मन की वीणा कुण्डलियाँ संग्रह : कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


शुभकामना .... 

कवयित्री कुसुम कोठारी प्रज्ञा द्वारा रचित मन की वीणा कुण्डलियाँ एकल संकलन जिसमें कवयित्री द्वारा100 रचनाएं ली गई हैं लेखन कौशल, शब्द चयन, छंद शिल्प, भाव पक्ष सहित समीक्षक के दृष्टिकोण से देखें तो यह एक अनुपम संग्रह निर्मित हुआ है। अतुकांत कविता से छंद की और पग बढ़ाना तथा इतने कम समय में छंद विधा को आत्मीयता तथा गहनता से अपना लेना  किसी चमत्कार से कम नहीं है प्रज्ञा ने अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध कर दिखाया है।  साधारण पाठक के दृष्टिकोण से देखें तो पाठक रचनाओं को पढ़ते समय रचना प्रति रचना एक लेखन कौशल के मोहिनी मंत्र से सम्मोहित हुआ दिखता है जैसे मैं अपने ही बारे में बताऊँ तो मैंने जब इस संकलन को पढ़ना शुरू किया तो आकर्षण पाश इतना सशक्त आभास देता प्रतीत हो रहा था कि अनायास ही अग्रिम रचना की और बढ़ने का मन करता रहा और यह संग्रह पढ़ने में पूर्ण हो गया फिर भी पढ़ने की पिपासा शांत न हो सकी ऐसे में कवियित्री से प्रज्ञा से विशेष आग्रह है कि कुण्डलियाँ का एक और संग्रह अवश्य निकालें।  कलम की सुगंध छंदशाला मंच का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय रहा जिसमें क्लिष्ट विधा को सरलता से सिखाया और लिखवाया गया जिसमें कवयित्री वर्ग एक नूतन इतिहास लिख कर दिखाया। कहते हैं कि कवयित्रियों ने कुण्डलियाँ छंद अभी तक इतना नहीं लिखा था परन्तु कलम की सुगंध मंच को देखें तो यह तथ्य मिथक सा प्रतीत होता है यहाँ पर छंदशाला में कवयित्रियाँ न केवल छंद लिखती हैं बल्कि छंद लिखवाती भी हैं मंच के प्रयास सराहनीय हैं मुख्य संचालिका अनिता मंदिलवार सपना तथा समीक्षक समूह के विशेष प्रमुख बाबूलाल शर्मा बौहरा, इंद्राणी साहू साँची, अर्चना पाठक निरन्तर के सहयोग से शतकवीर कार्यक्रम वीणापाणि, हंसवाहिनी, सस्वती समीक्षक परिवार में 10- 10 समीक्षक स्थापित करते हुए एक अद्भुत आयोजन कर दिखाया जिसकी अन्य मंचों पर भी जम कर प्रशंसा हुई। 

कुसुम कोठारी प्रज्ञा की पुस्तक मन की वीणा छंद विधा के पाठकों को तृप्ति प्रदान अवश्य करेगी। पाठकों को यह संग्रह खरीदकर अवश्य पढ़ना भी चाहिए। इस संग्रह पर लगाए गए पैसे पूर्णतः एक उत्तम दिशा में लगेंगे। यह संग्रह मन को प्रफुल्लित कर आनंद प्रदान करने में सफल कहाँ तक रहा अवश्य बताएं .... ? 

 पाठक की प्रोत्साहना ही लेखनी को एक नई दिशा प्रदान करती है मुझे विश्वास है यह सशक्त लेखनी एक दिन बड़े नाम के रूप में अवश्य स्थापित होगी इन्हीं शुभ कामनाओं के साथ ।

संजय कैशिक 'विज्ञात'

27 comments:

  1. मैं अचंभित हूं ! मेरे लिए यह एक अभूतपूर्व पल है ।
    आदरणीय गुरुदेव ने स्वयं मेरी "कुण्लियाँ छंद" पर प्रकाशित प्रथम पुस्तक "मन की वीणा कुण्ड़लियाँ" पर समीक्षा दी है और वो भी मुग्ध भाव से ।
    मेरे पास शब्द नही है एक अभूतपूर्व अहसास है जिन्हें आज कलम भी नहीं लिख पा रही।
    गुरुदेव का हर विधा को इतने धैर्य से सिखाना और हमेशा लेखन पर सटीक मार्गदर्शन ही मुझे और अन्य साथियों को छंद लेखन और हिन्दी साहित्य के उत्थान को अग्रसर करता रहेगा।
    सादर आभार आदरणीय।

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत बधाई आदरणीया

    ReplyDelete
  3. बहुत ही शानदार समीक्षा👌👌👌👏👏👏👏इस सुंदर संकलन की खूबसूरत समीक्षा के लिया आपको हार्दिक बधाई आदरणीया!

    ReplyDelete
  4. बहुत-बहुत बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ आदरणीया दीदी.
    कुंडलियाँ छंद हमेशा लोकप्रिय विधा रही है.

    ReplyDelete
  5. बहुमुखी प्रतिभा की धनी कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' की कुंडलियों की बानगी मैं देख चुका हूँ.
    रीतिकालीन काव्य-सौष्ठव को पुनर्जीवित कर उन्होंने हिंदी साहित्य को यह अनुपम भेंट दी है.
    उनकी इस उपलब्धि के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ.

    ReplyDelete
  6. आदरणीया कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'जी की रचनाएँ वर्षों से पाठकों को आकर्षित करती आ रही है। छंदबद्ध होने के बाद तो कलम में और भी निखार आया है। शायद ही ऐसा कोई विषय हो जिसपर उनकी कलम न चली हो। वर्षों से साहित्य की साधना कर रही 'प्रज्ञा'जी की हर विधा पर मजबूत पकड़ है और उन्हें जब भी पढ़ते हैं इस का गर्व महसूस होता है कि इतनी गुणवान कवयित्री हमारी सखी है।

    ReplyDelete
  7. सधी समीक्षा आदरणीय गुरुदेव,कुसुम जी मन की वीणा यू ही झंकृत हो,बहुत बहुत बहुत बधाई ।

    ReplyDelete
  8. जी दी,
    सादर प्रणाम।
    हार्दिक बधाई आपको असंख्य शुभकामनाएं। माँ शारदा का आशीष तो है ही आपपर गुरु का पावन आशीष पाना सौभाग्य है कामना करती हूँ यह परम अनुभूति अक्षुण्ण रहें।
    लुप्त हो रही साहित्यिक विधाओं में आपकी रूचि और रचनात्मकता की सराहना के लिए शब्द नहीं है मेरे पास।
    आपकी साहित्यिक साधना आने वाली पीढियों के लिए पथप्रदर्शक बने।
    मेरा नमन,बधाईयां और शुभकामनाएं स्वीकार करें दी।
    सादर।
    सस्नेह।

    ReplyDelete
  9. हार्दिक बधाई सखी ...यूँही निखरती रहे और अजस्त्र बहती रहे मन की वीणा की गूंज ।💐💐💐

    ReplyDelete
  10. प्रिय दी,
    सबसे पहले कुंडलियां शतकवीर के लिए मेरी बधाई स्वीकारें। माँ सरस्वती की असीम अनुकम्पा आप पर सदैव बनी रहे।आपकी अतुलनीय और अद्वितीय लेखनी साहित्य जगत को यूं ही प्रशस्त करती रहे। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपके नवीन संग्रह हेतु।
    सराहनीय समीक्षा हेतु आदरणीय सर को बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ
    सादर

    ReplyDelete
  11. गुरुदेव को नमन 🙏 गुरुदेव के सानिध्य में आप ऐसे ही ऊँचाइयों को छुए सखी,कुण्डलियाँ शतकवीर एवं मन की वीणा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐💐💐

    ReplyDelete

  12. सादर अभिवादन गुरुदेव

    सखी आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
    गुरु का प्रसाद पा कर लेखनी धन्य हुई ।
    उत्कृष्ट समीक्षा गुरुदेव ने की है ।
    हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  13. अद़भुत , अप्रतिम , अकाट्य , लाजबाब , बेहतरीन कितने शब्द लिखूं आदरनीय क्या छोडूं.क्या लिख जाऊ प्रज्ञा सखी के लेखन से पहले आपको शीश नवाऊ .शब्दों का भण्डार आप हो भाव विभाव की सरिता गहरे पैठ
    लिखाते सब से श्रेष्ठ.छन्द और कविता ॥
    गुरु ज्ञानी का साथ मिला है नमन करे स्वीकार इतनी सटीक
    लिखा आपनें कैसे करू इजहार ॥
    शुभकामनाएं और बढ़ाई ...🙏 👌🎉

    डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

    ReplyDelete
  14. मीता मन चोबन्द है देखे तेरे छन्द एक एक रस व्याप्त है मधुर मधुर मकरंद ...लेखनी तेरी लिखे अनुपम से सब काव्य यथार्थ देखा कर मगन है सदा चलो सन्मार्ग
    शुभकामनाएं बढ़ाई

    डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

    ReplyDelete
  15. अपने चमत्कारिक छंद-विधान की अनुपम छटा बिखेरती कुसुम जी की साहित्यिक प्रज्ञा-चक्षु ने साहित्य की शास्त्रीयता के प्रति एक नयी आस जगाई है। साहित्य का यह आकाश कुसुम यूँ ही खिलता रहे। हार्दिक बधाई और विज्ञात जी की इस विलक्षण समीक्षा का आभार।

    ReplyDelete
  16. नाम तथा काम यह बात पूर्णता चरितार्थ करते हुए आपका कुंडलिया संग्रह निश्चित ही एक अद्भुत संग्रह है जिसे पढ़कर असीम सुख की अनुभूति होती है । हार्दिक बधाइयां

    ReplyDelete
  17. नाम तथा काम यह बात पूर्णता चरितार्थ करते हुए आपका कुंडलिया संग्रह निश्चित ही एक अद्भुत संग्रह है जिसे पढ़कर असीम सुख की अनुभूति होती है । हार्दिक बधाइयां

    ReplyDelete
  18. हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई कुसुम जी कुण्डलिया शतकवीर एवं मन की वीणा हेतु... समीक्षा स्वरूप आदरणीय गुरुदेव का आशीष एवं प्रोत्साहन सोने पे सुहागा!...समीक्षा इतनी उत्कृष्ट की पुस्तक पढ़ने की लालसा बलवती हो गयी....।
    सादर नमन🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  19. बहुत सुंदर समीक्षा...
    हार्दिक बधाई कुसुम जी ❗🙏❗

    ReplyDelete
  20. हार्द‍िक बधाई कुसुम जी, समीक्षा बहुत खूब ल‍िखी गई है ...

    ReplyDelete
  21. जब समीक्षा अनुपम आकर्षण उत्पन्न कर रही है तो निःसंदेह पुस्तक अत्यंत आकर्षक एवं मनमोहक होगा । झलकियां तो सबने देखा ही है । हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें ।

    ReplyDelete
  22. कुण्डलिया शतकवीर एवं मन की वीणा हेतु हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई कुसुम जी,माँ सरस्वती आपकी लेखनी पर यूँ ही विराजमान रहें ,
    आपका आशीष और सानिध्य पाकर हम सब भी धन्य होते रहें। सत-सत नमन आपको

    ReplyDelete
  23. आपकी कुंडलियां तो अद्वितीय होती हैं कुसुम जी । इस समीक्षा तथा प्रशंसा की आप सर्वथा अधिकारिणी हैं ।

    ReplyDelete
  24. हार्दिक बधाई स्वीकार करें कुसुम जी ,ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपकी लेखनी इसी तरह चलती रहे और हम सब लाभान्वित होते रहे।
    आपकी सभी रचनाएँ बहुत ही उम्दा होती है ।

    ReplyDelete
  25. कुसुम जी ये लिंक मुझे फेसबुक से मिला..बड़ी खुशी हुई आपकी पुस्तक की समीक्षा पढ़कर..मैने जब से आपको पढ़ना शुरू किया तभी से आपकी हर रचना में एक नवीनता एवम सुंदर शब्दो के चयन का सही संतुलन देखने को मिलता है.जो बड़ा ही प्रेरक है हम जैसों के लिए..ईश्वर से प्रार्थना है कि आप का सृजन बहुत लोकप्रिय हो और अप यश की प्राप्ति करें आपको, हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई..

    ReplyDelete