Tuesday 31 December 2019

हे बीत रहे साल ... डॉ.सरला सिंह "स्निग्धा"

हे बीत रहे साल!
      ----------------------
 हे बीत रहे साल मेरे !
कई एहसान भी हैं तेरे ।
नयी दिशा भी मिली है,
तेरे ही समय में तो मुझे ।
याद रहेगा वर्ष बीत रहे,
हमेशा और हमेशा मुझे।
लिख रखा तुझे सजाकर,
डायरी के पन्नों पर मैंने ।
जीवन के कितने बीते साल,
तू रहा सबमें सबसे सुन्दर।
मैने अपना नवपथ पाया है ,
तेरे ही समय, बीतते साल।
तेरे प्रति है प्यार बस प्यार,
हे मेरे प्यारे बीतते हुए साल ।
मेरे जीवन का साल हुआ है,
एक कम पर अफसोस नहीं।
तूने जो रास्ता दिया है मुझको,
खुशी मुझको उसकी बड़ी  है ।
आने वाले साल से जरा करना,
सिफारिश मेरी, निवेदन है मेरी।
सुख चैन दे सभी को, सभी के,
कष्ट को वो कर दे दूर आकर।
नववर्ष सबके लिए हो जग में ,
मंगलमय व खुशियो से भरपूर ।

    डॉ.सरला सिंह "स्निग्धा"
     दिल्ली

Sunday 29 December 2019

कुण्डलिया छंद ....पनघट , सैनिक


[29/12 6:17 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु
दिनाँक - 29.12.19

(23)पनघट

पनघट को गोरी चली,पानी की ले आस।
सखियाँ भी हैं साथ में,बातें करती खास।।
बातें करती खास,सभी हैं मस्त मगन में।
सज-धज कजरा देख,लगे इनके नैनन में।।
कहे विनायक राज, करे बातें हैं जमघट।
नारी का व्यवहार,यही जाती जब पनघट।।

(24)सैनिक

बनकर सैनिक देश का,रक्षा करना आज।
ऐ मेरे  बेटों  सुनों, करना  ये शुभ  काज।।
करना ये शुभ काज,आज है धर्म निभाना।
दुश्मन करते वार,उन्हें अब है समझाना।।
कहे विनायक राज,खड़े सीमा पर तनकर।
जो भी हो गद्दार, भगाना सैनिक बनकर।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

[29/12 6:20 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच   कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
29/12
पनघट

पनघट पर घट ले खड़ी,मृग तृष्णा की प्यास।
रिक्त घड़ा कैसे भरे ,जीवन में ये आस ।।
जीवन में ये आस,तप्त मन कर दें शीतल ।
एक बूँद की चाह ,तृप्त अब करें हृदयतल  ।।
खोज रही हूँ राह, तृषा का लगता जमघट।
भरिये घट में ज्ञान,सिक्त कर दें इस पनघट।।

सैनिक
सैनिक सरहद पर खड़े,नहीँ जान से मोह।
सोयें हम सब चैन से ,उन्हें कुटुम्ब बिछोह।।
उन्हें कुटुम्ब बिछोह,कठिन स्थितियों में रहते
लेते नहि वो नींद ,व्यथा कभी न वो कहते ।।
रहते सजग सुजान....करें सब वो वैधानिक।
करे अरि का विनाश ...खड़े रक्षा को  सैनिक।

अनिता सुधीर

[29/12 6:21 PM] सरला सिंह: *************************************
29.12.19

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - रविवार*
*दिनांक-29/12/19*
*विषय: पनघट*
*विधा कुण्डलियाँ*

 *23- पनघट*

राधा जी पनघट चलीं,लेकर गोपी साथ।
कान्हा भी पीछे चले, लिए बांसुरी हाथ।
लिए बांसुरी हाथ, करें सबकी चितचोरी।
मटकी फोड़त जात, करें सबसे बरजोरी।
कहती सरला आज,हरो मेरी भवबाधा।
कान्हा के ही साथ,कृपा बरसावें  राधा।।

*डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'*
*दिल्ली*

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - रविवार*
*दिनांक-29/12/19*
*विषय: सैनिक*
*विधा कुण्डलियाँ*

    *24-सैनिक*

रहते सरहद पर डटे, सैनिक मेरे वीर।
देकर अपने प्राण भी,हरें देश की पीर।
हरें देश की पीर , करे नित देश की रक्षा।
बारिश गरमी शीत, रहे निरत देश सुरक्षा।
सरला कहती बात,सभी मौसम वे सहते।
भारत की ये शान,डटे हरदम ये रहते।।

*डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'*
*दिल्ली*
************************************

[29/12 6:27 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
*दिनांक ----28/12/19*

 (21). *कुनबा*

दादा दादी माँ पिता , बहना भाई प्यार ।
कुनबा कुंदन सा खिला ,सुंदर सा संसार ।।
सुंदर सा संसार , द्वार में रिश्ते चहके‌ ।
खुशहाली का बाग , चित्त में खुशियाँ महके।।
जोडें रिश्ते तार ,  चलो कर लें ये वादा ।
मिले ढेर आशीष , ईश तुल दादी दादा ।।

(22 )   *पीहर*

पुष्पित पीहर अंगना , शोभित सारा गाँव ।
छूटा बाबुल पालना , माँ का आँचल छाँव ।।
माँ का आँचल छाँव , छूटता  बचपन उपवन
निकली बिटिया आज , सजाने अब नव जीवन ।।
पीहर का संस्कार  , रखे जो हरपल सुरभित ।
खिले ससुराल डाल, सदा हो आँगन पुष्पित ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*छत्तीसगढ़, रायगढ़*
[29/12 6:29 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
*दिनांक----29/12/19*

(23)    *पनघट*

पनघट पर सखियाँ मिलीं , मीठी बतरस घोल।
सुख दुख की बातें करें,  करती हुई कलोल।।
करती हुई कलोल , गाँठ मन की वो खोलें।
मुख में मृदु मुस्कान , संग सखियों के डोलें ।।
गूँजे मधुरिम गीत ,नित्य दिन लगता जमघट।
मोहक मेला मेल ,सजा हो प्यारा पनघट।।

(24). *सैनिक*

सैनिक संबल राष्ट्र के, रखते हरदम‌‌ धीर ।
संयम जज्बा हौसला , भरा हृदय में पीर ।।
भरा हृदय में पीर , गरम हो चाहे सर्दी ।
चौकस खड़े जवान , पहन कर अपनी वर्दी।।
कहे धरा कर जोड़, फर्ज हो सबका दैनिक ।
चलो निभाऐं धर्म , वतन के हम सब सैनिक ।।


*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[29/12 6:29 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 29.12.19

23-   पनघट
***********
पनघट सूने हो गए,
सूने दिखते घाट।
घर-घर नल का जल हुआ,
यही आज के ठाट।

यही आज के ठाट,
मगर यह दिखी बुराई।
सुख-दुख वाली बात,
न पड़ती सहज सुनाई।

"अटल" गया वह दौर,
लगा करता था जमघट।
सबके बंद किवाड़,
कौन अब जाये पनघट ?
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

24-   सैनिक
***********
कोई भी सैनिक दिखे,
उसको दें सम्मान।
एक वही तो शख्स है,
जिसका काम महान।

जिसका काम महान,
न मौसम उसे सताता।
जाड़ा-गर्मी घोर,
न दिखता वह घबराता।

"अटल" जगे दिन-रात,
सुरक्षित जनता सोई।
सीमा पर दे जान,
न इसकी तुलना कोई।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

[29/12 6:29 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.          *कलम की सुगंध छंदशाला*
.         कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
.          दिनांक - 29.12.19
.                     🦚🦚
कुण्डलियाँ (1)
विषय-   *पनघट*
झीलें  बापी  कूप  सर, सरिताओं  के  घाट!
आतुर  नयन  निहारते, पनिहारी  की  बाट!
पनिहारी  की बाट, मिलें  कुछ  बातें  करते!
रीत प्रीत  मनुहार, शिकायत  मन की धरते!
कहे लाल कविराय, स्रोत जल बचे न गीले!
कचरा  पटके  लोग, भरे  पनघट सब झीलें!
.                    🦚🦚🦚
कुण्डलियाँ (2)
विषय-    *सैनिक*
सैनिक  रक्षक  देश  के,  हैं  जैसे   भगवान!
रखें  तिरंगा  मान  को,  मरे  शहादत   शान!
मरे शहादत शान, चाह  बस  कफन  तिरंगा!
भारत रहे  अखण्ड, बहे  जल  यमुना  गंगा!
कहे लाल कविराय, प्राण दे जनहित दैनिक!
मात  भारती  पूत, नमन  है  तुमको  सैनिक!
.                      🦚🤷🏻‍♀🦚
रचनाकार - ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀

[29/12 6:37 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 29/12/2019

कुण्डलिया (24)
विषय- पनघट
===========

गागर   गोरी  शीश  धर, जातीं  पनघट  पास I
श्रमकर जल लातीं भवन, दिनचर्या थी खास ll
दिनचर्या  थी खास, सहेली  हिल - मिल लेतीं l
हो  आदान - प्रदान, विचारों  को  दिल   देतीं ll
कह  'माधव कविराय', बचा  ग्रामीण न नागर l
सदन सलिल का स्रोत, कहाँ पनघट में गागर ll

कुण्डलिया (25)
विषय- सैनिक
===========

सैनिक   सीमा   में  डटे, घर  की  बिन  परवाह I
शीत, ग्रीष्म, बरसात ऋतु, सिर्फ वतन की चाह ll
सिर्फ  वतन  की  चाह, उन्हें  चिन्ता हम सबकी l
धन्य - धन्य  जाँबाज, यही  सत  सेवा  रब  की ll
कह  'माधव कविराय', उमर   पाते   ये   दैनिक l
कफन   तिरंगा  ओढ़, अमर  हो  जाते  सैनिक ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)

[29/12 6:44 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*विषय-(२३)पनघट*

पनघट सूखे हैं पड़े,सूखे नदियाँ ताल।
कुएँ बावड़ी का हुआ,बहुत बुरा अब हाल।
बहुत बुरा अब हाल,कहाँ अब दिखता पानी।
बीते कल की बात,बची बस एक कहानी।
मीलों चलते लोग,शीश पे रखकर घट-घट।
रहता बड़ा उदास,गाँव का मेरा पनघट।

*विषय-(२४)सैनिक*

सीमा पे सैनिक सदा,रखें देश की आन।
उसकी रक्षा के लिए,वारें अपनी जान।
वारें अपनी जान,बड़े ही धुन के पक्के।
रहते सीना तान,शत्रु के छूटे छक्के।
कहती 'अभि' निज बात,देख शत्रु पड़े धीमा।
भारत की है शान,सुरक्षित रहती सीमा।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*

[29/12 6:46 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*

28.12.19 शनिवार

21)*कुनबा*

कुनबा सारा जब जुड़े,तब कहलाए परिवार।
सुख दुख हैं सब बाँटते,अटूट होता प्यार।
अटूट होता प्यार,,नेह के धागे ऐसे।
सुख दुख में हैं साथ,न चाहें रुपये पैसे।
सुन वन्दू के भाव,जगत में अपना रुतबा।
भ्रात भगिनि पित मात,यही तो होता कुनबा।।

22)
*पीहर*

*पीहर प्यारा प्राण से,कहती है हर नार*।
*नार* वहीं पर है गड़ा,बहे भाव की धार।
बहे भाव की धार,पिता की राजदुलारी।
जाना है ससुराल,रीत दुनिया की न्यारी।
सुन वन्दू हिय बात,करे रोदन दिल भीतर।
रखती सबका मान,सासरा हो या पीहर।।

29.12.19 रविवार

23)*पनघट*

पनघट सूने हो चले,चिंतित हुआ समाज।
धरती बंजर हो रही,कैसे उगे अनाज।
कैसे उगे अनाज,पड़ा संकट है भारी।
न्यून हुआ जल स्तर,न दिखें कूप पे नारी।
कहती वन्दू बात,समय ने बदली करवट।
हो अभी से संचय,जल पूरित होंगे पनघट।

24)*सैनिक*

गाथा सैनिक वीर की,हमसे सुन लो आज।
निज प्राण की बलि देते,रखते भारत की लाज।
रखते भारत की लाज,आन है उनको प्यारी।
त्याग समर्पण भाव,खूबियां उनमें सारी।
कहती वन्दू बात,गर्व से उन्नत माथा।
देशहित देते शीश,यही सैनिक की गाथा।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*

[29/12 6:56 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला।🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर सन्मान के लिए।🙏🏻
दिनाँक 29-12-19
 कुंडलियाँ क्र 23
  1)पनघट🌹
कोई महत्व है कहाँ,इस पनघट का आज।
बाला आजादी गई,सखियों का वह राज।।
सखियों का वह राज,प्यार संग छेडखानी।
केवल होते श्राद्ध,मृतों को देतें पानी।।
कमल कहे अब घाट,बने पनघट सब सोई।
जल भरने कब जाय,वहाँ मृगनयनी कोई।।

 कुंडलियाँ क्र 24
  2)सैनिक🌹
 सीमा पर तैनात है,राह तके आदेश।
सैनिक भारत मात के,रक्षित मेरा देश।।
रक्षित मेरा देश,करे आतंक सफाया।
खुद की क्या परवाह,मिटें दुष्टों का साया।।
                   देख कमल बलिदान,करा लो इनका बीमा।                     
अर्पण करते प्राण,डटें भारत की सीमा।।

रचना कार डॉ श्रीमती कमल वर्मा🙏🏻

[29/12 7:00 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---  *पनघट , सैनिक*
दिनांक ----  29.12.19...

(23)           *पनघट*

पनघट पर गोरी खड़ी , भर हाथों से नीर ।
पानी पीकर तृप्ति हों , मिट जाएगी पीर ।
मिट जाएगी पीर , सदा हो मन का पानी ।
होगा नवल प्रभात , गोरी ने गीत सुनाया ।
पा सूरज का प्यार , पुष्प भी है हरषाया ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी न लगाना जमघट ।
हो सुंदर व्यवहार , पानी भरेगी पनघट ।।


(24)           *सैनिक*

सैनिक के उपकार को , मत समझो तुम खेल ।
लाख पुण्य के बाद में , होता है यह मेल ।
होता है यह मेल , कर्म  को सदा जगाओ ।
पर इतना लो जान , धर्म को मत बिसराओ ।
कह कुमकुम करजोरि , कर्म करना न अनैतिक ।
रहे सुरक्षित देश , सरहद तैनात सैनिक ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  29.12.2019....


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[29/12 7:07 PM] सुशीला साहू रायगढ़: ✍️ *कलम की सुगंध छंदशाला* ✍️
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु मेरी  रचना*
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*23--विषय--------पनघट* 29/12/2019*
पनघट के तीर यमुना ,चली घड़ा ले साथ।
गोरी अब पानी भरे, रखे कमर में हाथ।।
रखे कमर में हाथ, देख  छलकते गगरियाँ।
छलके मीठे नीर ,बोल उठते सांवरियाँ।।
कह शीला ये बात,कृष्ण की लीला अटपट।
राधा संग चले कृष्ण ,तीर यमुना के पनघट।
*24--विषय-------सैनिक*
सैनिक लौ पथगामिनी,चले पग पग कतार।
जवान रक्षा अब करें ,डटे सब लगातार।।
डटे सब लगातार, देशहित जन धन रक्षा।।
सैनिक पहरेदार, करें हमारी सुरक्षा।।
कह शीला कर जोड़,सपथ लें हम अब दैनिक।
बचाए हमारी जान ,करें सुरक्षा ये सैनिक।।

*सुशीला साहू शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*

[29/12 7:14 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिसंबर 29 दिसंबर 2019
कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलियां शतक वीर प्रतियोगिता
विषय       *पनघट*
पनघट   पथ   सूने  पड़े , कूएँ  खड़े   उदास ।
पनिहारिन सब खो गई , खोया सब उल्लास ।।
खोया    सब   उल्लास , नलों   से   कूएँ हारे ।
घर घर  टोंटी -धार ,  विजन  हैं  घाट   हमारे ।।
"निगम" हास परिहास ,  दृश्य था सुंदर जमघट।
अब  बन गया अतीत,  कहानी में बस पनघट ।।

विषय        *सैनिक*

 सीमा पर चौकस खड़ा , करे कड़ा संघर्ष ।
सहे वात वर्षा शरद   ,  सैनिक सदा सहर्ष ।।
सैनिक सदा सहर्ष , अटल हिमगिरि के जैसे ।
माँ  का वीर सपूत,  डिगें  डग मग से कैसे ।।
कहे "निगम" कविराय , शत्रु शोणित हो धीमा
 ललकारे  निर्भीक, वीर जय  हिंदी - सीमा ।।

कलम से
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर) छत्तीसगढ़

[29/12 7:20 PM] कमल किशोर कमल: नमन
२९.१२.२०१९
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु
२३-
पनघट
पनघट गायब हो गये,जैसे गायब शेर।
पनिहारिन दिखती नहीं,दूर -दूर हैं खेर।
दूर- दूर हैं खेर,जहाँ पर बसती दुनियाँ।
खेत किसानी खूब,मटककर चलती पुनिया।
कहे कमल कविराज,नलों में लगता जमघट।
पानी भरते लोग,जिसे कहते हैं पनघट।
२४-सैनिक
भारत सैनिक वीर हैं,करते सभी सलाम‌।
देश सलामत चाह में,पैदा हुए कलाम।
पैदा हुए कलाम,मिसाइल दागी हमने।
अमन चैन के मजे,दिये हैं सेना रब ने।
कहे कमल कविराज,रक्ष करते हैं दैनिक।
वर्षा गरमी शीत,अडिग हैं भारत सैनिक।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
        🌹👏
[29/12 7:22 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

*दिनाँक - 26/12/19*

19  *बहना*

बहना मेरी है परी,मधुरस की है घोल।
पीछे पीछे वह चली,भैया भैया बोल।
भैया भैया बोल,बहुत बातें करती है।
घूमे  वो बेखौफ,छिपकली से डरती है।
कहती रुचि करजोड़,गेह की होती  गहना।
नाजुक कली गुलाब,परी है मेरी बहना।

20 *सखियाँ*

सखियाँ होती सहचरी,मस्ती करतीं खूब।
करे नित्य अटखेलियाँ,नादानी में डूब।
नादानी में डूब,हँसी गूँजे घर द्वारे।
मनभावन है रूप,मोंगरा गजरा धारे।
कहती रुचि करजोड़,सँजोये सपने अखियाँ।
मन में है विश्वास,चली इठलाती सखियाँ।

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

*दिनाँक - 28/12/19*

21  *कुनबा*

मुखिया करता मेहनत,कुनबा हो खुशहाल।
सबकी इच्छा पूर्ण हो,विकसित हो हर डाल।
विकसित हो हर डाल,मिले सबको सम मौका।
प्रेमभाव पतवार,पार लगता है नौका।
कहती रुचि करजोड़,रहे परिजन बिन दुखिया।
जोड़ रखा परिवार,मेहनत करता मुखिया।

कुनबा- कुटुंब, परिवार

22  *पीहर*


आतुर रहती औरतें,काम करें सम्पन्न।
पीहर आनंदित करे,मन है बड़ा प्रसन्न।
मन है बड़ा प्रसन्न,मातु का आँचल पावन।
करता भाव विभोर,मेघमय हो ज्यों सावन।
कहती रुचि करजोड़,फुदकता है ज्यों दादुर।
पीहर जाने हेतु,सदा रहती हैं आतुर।


✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

[29/12 7:29 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
29/12/2019

              *(23) पनघट**

बीती बचपन लोरिया,बीत गई सब बात।
काल कहानी बन गई,मनुज आज बिसरात।
मनुज आज बिसरात,पुरातन सभी नज़ारे ।
गोरी पनघट गाँव, बासुरी नदी किनारे ।
पास पडोसी नात,घाट औ नदियाँ रीती।
हावी आधुनिकता,पुरानी बातें बीती। 

            *(24)सैनिक*


सरहद पर तैनात है,सैनिक  वीर जवान ।
रक्षा करने  देश की,रहते सीना तान।
रहते सीना तान, देशहित जान गँवाते।
खुशियाँ गम भी बाँट ,पसीना लहू बहाते।
सोता सारा देश, चैन से अपने घरहद ।
पाला लू बरसात,खड़ा है  सैनिक सरहद। 

         *(25)*
सीमा पर अरि घात को, पहरा देत जवान ।
माता ममता छोड़ कर,भारत माँ की शान ।
भारत माँ की शान, देश हित तनमन वारे।
सरहद पहरेदार,होत है सैनिक न्यारे।
माटी से है नेह, लाल है रक्षक भीमा।
जान हथेली राख, सुरक्षा करते सीमा ।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[29/12 7:35 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
29/12/19
23 पनघट
पनघट आई गूजरी , चंदन महका आज ,
बहकी बहकी चाल है , आँखों में है लाज ,
आंँखों में है लाज , झूम मन नाचे गाए ,
द्रुम छेड़े नव राग  ,  श्याम ज्यों बँसी बजाए ,
कहे कुसुम ये राज , पवन सँवारे केश लट ,
निज उलझा है जाल,देख ललिता को पनघट।।

24 सैनिक
सैनिक मेरे देश का , सदा हमारी  आन ,
देश  सुरक्षा वारता ,अपना तन मन प्राण ,
अपना तन मन प्राण  , पहनकर रखता वर्दी ,
करता है कर्तव्य ,  कड़क हो चाहे सर्दी
कहे कुसुम हो धन्य  , कार्य उनका ये दैनिक ,
बनता पहरेदार , देश का रक्षक सैनिक।
कुसुम कोठारी।

[29/12 7:49 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 29/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - पनघट
**************
पनघट पे प्यासा पथिक ,
                   पहुँचा पानी आस ।
पनिहारिन पूछे पता ,
                    कहाँ तुम्हारा वास ।
कहाँ तुम्हारा वास ,
              किधर जाना है तुमको ।
अनजानी है राह ,
              साथ ले लो जी हमको ।
पथिक रहा सकुचाय ,
              ठिठोली करतीं नटखट ।
अनजानों से प्रीत ,
             सिखाता प्यारा पनघट ।।   
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - सैनिक
****************
रक्षक बनकर देश की ,
                     सीमा पर तैनात ।
निर्भय सैनिक हैं खड़े ,
                   सहते हर आघात ।
सहते हर आघात ,
             देश पर मर मिट जाते ।
पकड़ तिरंगा हाथ ,
                  गगन में ये लहराते ।
थर थर काँपे शत्रु ,
                   भागते सारे तक्षक ।
नमन करो स्वीकार ,
               देश के असली रक्षक ।।

*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★

[29/12 7:52 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
29/12/2019:: रविवार

पनघट

महकी महकी है सुबह  ,नव वधु कर श्रृंगार।
है पनघट पर जा रही, सिर पर गगरी धार।।
सिर पर गगरी धार, कमर खाती हिचकोले।
कंगन करते शोर , पाँव की पायल बोले।।
मृगनैनी सो नैन, चले कुछ बहकी बहकी।
मुख पर है मुस्कान, लगे वो महकी महकी।।

सैनिक

भोली भाली लाडली, दे सैनिक पोशाक।
आओगे कब पूछती, लाना सँग में फ़्राक।।
लाना सँग में फ़्राक, गुलाबी नीली पीली।।
फिर प्यारा उपहार, पहन नाचे नखरीली।।
गई दिवाली बीत, आज होली भी होली।
कब आओगे तात,सोचती है अब भोली।।
              रजनी रामदेव
                न्यू दिल्ली

[29/12 7:55 PM] अनुराधा चौहान  मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--29/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
(23)

*सैनिक*

सैनिक तपता धूप में,झेले बारिश मार।

बर्फीली चोटी खड़ा,माने कभी न हार।

माने कभी न हार,तभी हम सुख से रहते।

वीर सपूत महान,नहीं संकट से डरते।

कहती अनु यह देख, यही दिनचर्या दैनिक।

सहते दिल पे वार,डटे रहते हैं सैनिक।

(24)

*पनघट*

पनघट से राधा चली, कान्हा पकड़े हाथ।

झटके मटकी फोड़ दें,गोपी देते साथ,

गोपी देते साथ, करे फिर सीनाजोरी।

माखन मिश्री हाथ, यशोदा पकड़ी चोरी।

कहती अनु यह देख, लगाकर बैठा जमघट।

नटखट है चितचोर,बजाता मुरली पनघट।
*अनुराधा चौहान*

[29/12 7:56 PM] कमल किशोर कमल: नमन
२९.१२.२०१९
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु
२३-
पनघट
पनघट गायब हो गये,जैसे गायब शेर।
पनिहारिन दिखती नहीं,दूर -दूर हैं खेर।
दूर- दूर हैं खेर,जहाँ पर बसती दुनियाँ।
खेत किसानी खूब,मटककर चलती पुनिया।
कहे कमल कविराज,नलों में लगता जमघट।
पानी भरते लोग,जिसे कहते हैं पनघट।
२४-सैनिक
भारत सैनिक वीर हैं,करते सभी सलाम‌।
देश सलामत चाह में,पैदा हुए कलाम।
पैदा हुए कलाम,मिसाइल दागी हमने।
अमन चैन के गाल,दिये हैं सेना रब ने।
कहे कमल कविराज,रक्ष करते हैं दैनिक।
वर्षा गरमी शीत,अडिग हैं भारत सैनिक।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
        🌹👏

[29/12 7:56 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -29/12/19

पनघट (23)
पनघट पर गोरी गई, लेकर मटकी हाथ।
 जल भरने को जा रही, वो सखियों के साथ।।
 वो सखियों के साथ, हमेशा जाती रहती।
 सूख गए हैं ताल, कमी अब जल की कहती।
 कह राधे गोपाल, गगरिया बनकर नटखट। छनकाती है नीर, गई जब सखियाँ पनघट।

सैनिक (24)
 सैनिक मेरे देश के,नमन करूँ शत बार।
 अरि पे करते तुम सदा, चौकस हो कर वार।।
 चौकस हो कर वार, सदा सीमा पर रहते।
 मात-पिता परिवार, यही हैं सबसे कहते।।
 कह राधेगोपाल, धरें ये धीरज दैनिक।
 नमन करूँ शत बार,अरे ओ तुमको सैनिक।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

[29/12 8:02 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - रविवार*
*दिनांक-29/12/19*
*विषय:-पनघट*
*23*
पनघट पहुँचा साँवरा, कंकड़ लेकर हाथ |
लगा मटकियाँ फोड़ने , ले ग्वालों को साथ |
ले ग्वालों को साथ, कंकड़ी मारें कसकर |
गोपन करतीं हाय, कन्हैया अब तो बस कर |
कह विदेह नवनीत, बड़ा है मोहन नटखट |
सरपट दौड़ा आय, साँवरा पहुँचा पनघट ||

*विषय:- सैनिक*
*24*

सीमा पर जो झेलता, गोली और तुषार |
उस सैनिक को है नमन, उसकी कृपा अपार |
उसकी कृपा अपार, रहे वो ताने सीना |
उसकी जय-जयकार ,अमन अरिदल का छीना |
कह विदेह नवनीत, बना दुश्मन का कीमा |
उसके हाथों मित्र,सुरक्षित अपनी सीमा ||


  *नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*

[29/12 8:04 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुंडलिया - शतकवीर प्रतियोगिता*

*दिनांक- 22/12/2019*

*चूड़ी*

चूड़ी चमके हाथ में, गोरी रही निहार ।
मधुर मधुर करने लगी, मुझसे ही मनुहार ।
मुझसे ही मनुहार, आज बतलाओ सजना ।
कह दो दिल की बात, पहनके आयी कंगना ।
'रीत' पुकारे मीत, खाइये मीठी पूड़ी ।
पायल करे पुकार, हाथ में खनके चूड़ी ।

*झुमका*

झुमका सोहे कान में, पहन गले में हार ।
हाथों में कंगना सजा, चली पिया के द्वार ।
चली पिया के द्वार, छोड़ बाबुल का अंगना ।
देखन आयी नारि, बहुत शरमीले सजना ।
'रीत' जगाये प्यार, लगाकरके जब ठुमका ।
दे दो यह उपहार, मंगाकर मुझको झुमका ।

*दिनांक - 29/12/2019*

*पनघट*

पनघट अब सूना लगे, सूना सूना घाट।
घर घर नल का राज है, यही ठाट औ बाट।
यही ठाट औ बाट, सभी में आज समाया ।
रहा न कूआँ आज, नलों की ऐसी माया ।
'रीत' प्रीत मनुहार, समय अब बदली करवट।
सखियाँ हुई उदास, नहीं आना अब पनघट ।

*सैनिक*

सैनिक रक्षक देश के, भारत के है शान ।
नमन देश के लाल को, जो दे देते जान ।
जो दे देते जान, पूत धरती के प्यारे।
खुद की नहि परवाह, दुश्मनों से ना हारे।
'रीत' देख बलिदान, अश्रु जल आये दैनिक ।
सच्चे माँ के पूत, अमर है वे ही सैनिक ।

*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍

[29/12 8:08 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 29.12.19

कुण्डलियाँ (23)
विषय- *पनघट*

पनघट  के  पथ  बावरी, जाती प्रात: शाम।
मन ही मन यह सोचती, मिले साँवरा श्याम।।
मिले  साँवरा  श्याम, दरष  की प्यासी अँखियाँ।
करलूँ  नैना  चार,  जलेगी  सारी सखियाँ।।
प्रांजलि का है मीत, हृदय में बसता नटखट।
उससे सच्ची प्रीत, प्रीत का साक्षी पनघट ।।



कुण्डलियाँ (24)
विषय- *सैनिक*


सैनिक सीमा पर डटा, शीत ग्रीष्म बरसात।
रक्षा भारत की करे, सहकर हर आघात।।
सहकर हर आघात, प्राण वह दांव लगाता।
माटी से है प्रेम, सिद्ध वह कर दिखलाता।।
प्रांजलि उनपर गर्व, कठिन है जीवन दैनिक।
जब तक अंतिम साँस, डटा सीमा पर सैनिक ।।


रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि

[29/12 8:29 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:-29/12/19

23. पनघट

पनघट में जल की कमी, भरलो गगरी एक।
बूंद बूंद है कीमती, सोचें हम प्रत्येक ।
सोचे हम प्रत्येक, बाद में तर्क लगाना।
बनके जिम्मेदार, दूसरों को बतलाना।
इसे करो स्वीकार,लगे मत कोई जमघट।
बुझे सभी का प्यास, एक है अपना पनघट।।

24. सैनिक

सैनिक सीना तान के, रखे देश का मान।
सीमा के प्रहरी सजग, तुमको है सम्मान।
तुमको है सम्मान, सदा आगे ही बढ़ना।
सब आतंकी मार, देश को फिर से गढ़ना।
दुष्कर हर वो काम ,आप करते हो दैनिक।
रखे देश का आन, वही कहलाते सैनिक।।

महेंद्र कुमार बघेल

[29/12 8:33 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
29-12-019

(23) पनघट

राधा पनघट पर खड़ी, करना चाहे बात।
आये हैं कृष्णा नहीं, देखे उनकी राह।।
देखे उनकी राह, करेंगे अभी बहाना।
सखियाँ हैं हैरान, सभी हैं देती ताना।।
बीती जाए शाम, धीर भी होता आधा।
अब आये चितचोर, खड़ी मुँह फेरे राधा।।

(24) सैनिक
करते रखवाली सदा, त्यागे तनमन मोह।
सैनिक सीमा पर खड़े, सहें कुटुंब विछोह।
सहें कुटुंब विछोह, हमें भी है कुछ करना।
उनको देना मान, नहीं वचनों से टरना।।
कीर्ति अमर महान, यशोगाथा वो रचते।
माटी रहे कृतज्ञ, उसे आलोकित करते ।।


सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी

[29/12 8:40 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 29/12/19
कुण्डलियाँ- (23)
विषय - *पनघट*

पनघट सब वीरान है ,कहे किसे मन पीर।
घर घर में नल लग गये, बहे गली में नीर।।
बहे गली में नीर, हृदय पंक्षी है प्यासा ।
गया प्रीत घट रीत, रहे हर जीव उदासा ।।
सुवासिता मन द्वार, लगे यादों का जमघट।
मिले कष्ट हर रोज, सिसकते दिखते पनघट।।

कुण्डलिया-(24)
विषय- *सैनिक*
सैनिक कहता दोस्त से, निकट बहन का ब्याह।
घर पर माँ पापा सभी, देखे मेरा राह।।
देखे मेरा राह,हुई है खारिज छुट्टी।
गया नही जो गाँव,बहन कर देगी कुट्टी ।।
सुवासिता को गर्व , सुना जब भैया नैतिक।
एसे ही है शूर , निभाते वादे सैनिक।।

       🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)

[29/12 8:41 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक-29/ 12/ 2019
दिन-रविवार

(23)
विषय-पनघट

आई ऊषा- सुंदरी,नभ -पनघट को ओर।
सप्त रंग की ओढ़नी,ओस बिंदु की कोर।
ओस बिंदु की कोर,लिए तारों की गागर।
डूबी अम्बर बीच,भरा घट में द्युति-सागर।
गूँज उठा खग-गान,कली अलि को रस लाई।
फैलेगा घट रात, हँसी  नागरी को आई।




(24)
विषय-सैनिक
सोती जनता चैन से,मिलता रिपु से त्राण।
सैनिक सीमा पर डटा,लगा दाँव पर प्राण।
लगा दाँव पर प्राण, नहीं चिंता मौसम की।
रिपु पर करता वार,मिली अरि से जो धमकी।
घर पर अटके प्राण,प्रिया बिन उसके रोती।
जगती सारी रात,सुखी हो दुनिया सोती।

रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

[29/12 8:45 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन रविवार 29.12.2019*

*23) पनघट*

पनघट बैठी *नार* की, अति न्यारी है *नार*
सिर पर *घट* को है *धरा* , *धरा* धरे *घट* भार
धरा धरे घट भार,  सहनशीला है भारी
जीवन का आधार, मनुज होता आभारी
कह अनंत कविराय, जीव भी आया भव तट
*पानी* भर घट पार, रुका खाली घट पनघट

*नोट:*
*नार*= नारी, ग्रीवा; *घट*= घड़ा, शरीर; *धरा*= धरना, धरती, गर्भिणी स्त्री; *पानी*= पानी, ज्ञान

*24) सैनिक*

हलधर घर भीतर सहे, सैनिक सीमा पार
एक धरे हल हाथ में, दूजा के तलवार
दूजा के तलवार, यही *फल* *हल* है उसका
*हल* हलधर के पास, भूख का *हल* जन-जन का
कह अनंत कविराय, देश के दोनों श्रीधर
सैनिक से सुरक्षित, अन्न देता है हलधर

*नोट:*
*हल* = हल(नाँगर), समाधान
*फल*= तलवार की धार, फल

*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ

[29/12 8:45 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
29-12-19

 कुनबा

कुनबा प्यारा वह लगे, मिल कर रहते साथ ।
भाई बहना साथ हो,हाथ में लिये हाथ ।
हाथ में लिये हाथ,मात पित सँग हो रहते ।
प्यारा सा परिवार, बैठ कर हिल मिल हँसते ।
कहती मीरा आज,चले दादी का रूतबा ।
गाते गीत मल्हार, वह लगे प्यारा कुनबा ।।

पीहर

पीहर प्यारा है लगे, मात पिता का प्यार ।
भाई बहन की एकता, अलग दिखे संसार ।
अलग दिखे संसार, मैं जहाँ राजदुलारी ।
नखरा करूँ हजार, थी सभी की मैं प्यारी ।
आयी मैं ससुराल, नयनवाँ बरसे झर झर ।
कैसी है ये रीत, छोड़ कर आई पीहर ।।

पनघट
पनघट पे मोहन खड़ा, लिये कमर में हाथ ।
कैसे मैं पनिया भरूँ, नहीं सखी है साथ ।
नहीं सखी है साथ, साँवरा  कर बरजोरी ।
बहियाँ थामे आय, सुन कहे राधे गोरी ।
बैठ जरा तू साथ, कान्हा लागे नटखट ।
मीरा कहती आज,मिल गया गिरधर पनघट ।।

सैनिक

सैनिक मेरे देश के, होत हैं  जांबाज ।
दुश्मन के छक्के छुड़ा, दिखा दिया है आज ।
दिखा दिया है आज, देश हित जान गँवाते ।
ग्रीष्म ठंड बरसात, हो नहीं वह घबराते ।
कह मीरा कर जोड़, गजब है इनका दैनिक ।
भारत माँ के लाल, नमन है तुमको सैनिक।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम

[29/12 8:54 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 🙏🏼

(१९) बहना

बहना, बोले उर्मिला, अखियन आँसू पूर।
संग पिया वन वास को, जाती हो तुम दूर।
जाती हो तुम दूर, कठिन व्रत का चयन कर।
चुनकर पति का साथ, सुधा स्वर्ग की नयन भर।
चौदह वर्ष वियोग, सिया, है मुझको सहना।
रही शरण तव सौंप, धरोहर निज मैं, बहना।

(२०) सखियाँ

सखियाँ बोलें, भो सिया, वंदो गौरी मात।
जब से देखा राम को, पुलकित हैं तव गात।
पुलकित हैं तव गात, कमल लाल खिले मुख पर।
मांगो मन का मीत, भवानी से तुम हठ कर।
सुनकर सुखकर सीख, झुकी लाज भरी अखियाँ।
कैसे सारे भेद, जान जातीं हैं सखियाँ?

(२१) कुनबा

आई घडी विवाह की, बाराती आलोक।
कुनबा कैलाशपति का, सोचे मैना रोक।
सोचे मैना रोक, उमा तो राजकुमारी।
हर भूतों के नाथ, भस्म विभूत के धारी।
इधर राजसी भोग, उधर श्मशान दुहाई।
कैसी यह हे देव, परीक्षा इस पल आई।

(२२) पीहर

माता पिता भैया सखी, जहाँ जहाँ ये लोग।
वहाँ वहाँ पीहर बसे, पति से जहाँ वियोग।
पति से जहाँ वियोग, सास न ससुर न, न देवर।
न गृहस्थी के काज, नहीं ननदी के तेवर।
पीहर पितु की प्रीत, भले भाव भरा भ्राता।
सखियाँ सींचें स्नेह, मधुर मोहमयी माता।

गीतांजलि ‘अनकही’ 🙏🏼

[29/12 8:55 PM] रवि रश्मि अनुभूति: ****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

*कुण्डलिया छंद शतकवीर सम्मान ,*  *2019 हेतु ।*
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  कुण्डलिया छंद
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23 ) पनघट
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गोरी पनघट पर खड़ी , रहती बाट निहार ।
मोहन अब तो आ रहे , माने वह क्यों हार ।।
माने वह क्यों हार , घट लिये खड़ी पुकारे ।
पनघट सूना अभी , खड़ी वह राह निहारें ।
बतियाँ सुनकर सखी , छोड़ धैर्य की डोरी ।
आओ श्याम अभी , खड़ी पनघट पर गोरी ।।
          ¤¤¤¤¤¤¤¤¤



24 ) सैनिक
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मेरे।।
सच्चे हैं वे रक्षक , देश के सैनिक मेरे ।।
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25 ) कोयल
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डोले कोयल डार पे , बोले मीठे बोल ।
काली है तो क्या हुआ , गाती है दिल खोल ।
गाती है दिल खोल , देख मन मयूर नाचे ।
मनवा हुआ उदास , प्यार की पाती बाँचे ।।
पिया की याद दिला , भेद तो सारे खोले ।
हूक जगाती हिया , डार पे कोयल बोले ।।
            卐卐卐卐卐卐卐



26 ) अम्बर
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तारे अम्बर पर जड़े , टिमटिम करते देख ।
टूटा तारा यूँ लगे , खिंची गगन पर रेख ।।
खिंची गगन पर रेख , सुनो अंबर है भाता ।
तारों व अंबर का ,  दिखे बहुत गूढ़  नाता ।।
एकता अभी सीख , बढ़े आगे ही सारे ।
देख पियें हम सुधा , जड़े अम्बर पर तारे ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
29.12.2019 , 7:29 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹

[29/12 8:56 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
*कुण्डलिया - शतकवीर सम्मान हेतु!*
*दिनाँक - 29.12.19, दिन -- रविवार।*
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*23--पनघट*
~~~~~~~~~~~~
पनघट  को गोरी चली, ले सखियों को साथ।
गागर पानी का लिये, अपने-अपने माथ।
अपने-अपने माथ, कमर बल खाती जाती।
मुख पर आँचल डाल, हाथ चूड़ी खनकाती।
भरें कुएँ से नीर, उठाये अपना घूँघट।
रहे सदा गुलजार, गाँव का सुंदर पनघट।।
~~~~~~~~~~~~~~

*24--सैनिक*
~~~~~~~~~~~
दुश्मन से डरते नहीं, रहें सदा तैयार।
सैनिक भारत देश के, कर दें सीमा पार।
कर दें सीमा पार, शत्रु की नींद उड़ाते।
पले जहाँ आतंक , वहीं गोले बरसाते।
जब जब करते वार, हजारों दुश्मन मरते।
भारत माँ के लाल, नहीं दुश्मन से डरते।।
~~~~~~~~~~~~
*--विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--बलिया, उत्तर प्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~

[29/12 8:58 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता
कुंडलिनी छंद
 दिन - रविवार /29-12-19
 बिषय- शब्द/पनघट/मटकी
(1)पनघट

 मटकी फोरत नित्य ये ,   घेरें पनघट राह।
  जब भींजे चूनर मेरी, सँग सखा कहें वाह।।
 सँग सखा कहें वाह, हँसे सब दै- दै तारी।
  मुरली मधुर बजाय, नचत बिच  बिच बनवारी।
 कह प्रमिला कविराय, रार मोहन पे अटकी।
 लिए  उलहना खड़ी,   श्याम नित फोरें मटकी।।
(2)
सैनिक

     सीमा पर डट कर खड़े, प्रहरी बनकर आज
 रक्षा करता देश की, वो  सैनिक जां बाज।
 वो सैनिक जांबाज, न झुकने देय तिरंगा।
 दुश्मन को  दे मौत, करें जो देश में दंगा।
 कह प्रमिला कविराय, यही है  इनकी गरिमा।
  होकर रहते खड़े , सजग  भारत की सीमा।।

प्रमिला पाण्डेय
कानपुर

[29/12 9:07 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*

28.12.19 शनिवार

21)*कुनबा*

कुनबा सारा जब जुड़े,तब कहलाए परिवार।
सुख दुख हैं सब बाँटते,अटूट होता प्यार।
अटूट होता प्यार,,नेह के धागे ऐसे।
सुख दुख में हैं साथ,न चाहें रुपये पैसे।
सुन वन्दू के भाव,जगत में अपना रुतबा।
भ्रात भगिनि पित मात,यही तो होता कुनबा।।

22)
*पीहर*

*पीहर प्यारा प्राण से,कहती है हर नार*।
*नार* वहीं पर है गड़ा,बहे भाव की धार।
बहे भाव की धार,पिता की राजदुलारी।
जाना है ससुराल,रीत दुनिया की न्यारी।
सुन वन्दू हिय बात,करे रोदन दिल भीतर।
रखती सबका मान,सासरा हो या पीहर।।

29.12.19 रविवार

23)*पनघट*

पनघट सूने हो चले,चिंतित हुआ समाज।
धरती बंजर हो रही,कैसे उगे अनाज।
कैसे उगे अनाज,पड़ा संकट है भारी।
होता जल स्तर न्यून, वेदना कूप निहारी।
कहती वन्दू बात,समय ने बदली करवट।
हो संचय तत्काल, भरे जब होंगे पनघट।

24)*सैनिक*

गाथा सैनिक वीर की,हमसे सुन लो आज।
देते बलि निज प्राण की,रखते भारत लाज।
रखते भारत लाज,आन है उनको प्यारी।
त्याग समर्पण भाव,खूबियां उनमें सारी।
कहती वन्दू बात,गर्व से उन्नत माथा।
बलि दे देते शीश,यही सैनिक की गाथा।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*

[29/12 9:07 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 28/12/19

कुण्डलियाँ (21)
विषय- कुनबा

आदर अग्रज को मिले, मिले भ्रात को प्यार।
कुनबा ऐसा ही रहे, सुखी रहे संसार।।
सुखी रहे संसार, विवेकी हो हर मानव।
बने न कोई क्रूर, बने मत कोई दानव।।
फैलाओ जी पैर, रहे जितनी ही चादर।
पाओगे सम्मान, बड़ों का हो जब आदर।।

कुण्डलियाँ (22)
विषय- पीहर

आती जब जब है मुझे, मेरे पीहर याद।
तब तब मन थिरके नहीं, गूँजे अनहद नाद।।
गूँजे अनहद नाद, सोचकर बीते पल को।
चंचल चितवन स्फूर्ति, न चिंता रहती कल को।।
सुधबुध खोकर रोज, ख्वाब में मैं खो जाती।
वही बचपना आज, काश मुड़कर फिर आती।।

रचनाकार-
उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)

[29/12 9:29 PM] अमित साहू: *कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर*

19-बहना (26/12/2019)
बहना मेरे हो तुम्हीँ, स्वयं सदन की शान।
मान बढ़ाना तू सदा, बनना गर्व गुमान।।
बनना गर्व गुमान, राह पर अपनी चलना।
बनकर दीपक ज्योति, अहंमय तम को दलना।।
रह निश्छल निर्भीक, पहनना लज्जा गहना।
मानवती सम मान, मिलेगा जग में बहना।।

20- सखियाँ
सखियाँ खेलें साथ सब, मिलजुलकर दिन रात।
अंतरंग अठखेलियाँ, नहीं छुपातीं बात।।
नहीं छुपातीं बात, हाल अंतर्मन कहतीं।
नोकझोंक अलगाव, पृथक कब उर से रहतीं।।
बलिहारी सौ बार, देखने तरसे अँखियाँ।
मीत 'अमित' उपहार, सुवासित सहृदय सखियाँ।।

21-कुनबा (28/12/2019)
रोड़ा पत्थर ईंट से, बनते दर दीवार।
अपनापन आत्मीयता, बसते घर संसार।।
बसते घर संसार, सहज सब भेद  मिटाते।
यदा सुमति व्यवहार, शत्रु भी मुँह की खाते।
कहे 'अमित' कविराज, भानुमति कुनबा जोड़ा।
प्रेम जगत में सार, शेष अटकाते रोड़ा।।

22-पीहर
सास सताती रात दिन, ससुर नहीं है वाग्य।
सिसक रही हूँ मैं यहाँ, सजन लिए वैराग्य।।
सजन लिए वैराग्य, भाग्य क्यों मेरा फूटे।
कैसी है यह रीति, सुता का पीहर छूटे।।
बात-बात में बात, तुच्छ को ताड़ बताती।
मुझको दासी मान, व्यर्थ ही सास सताती।।


23-पनघट (29/12/2019)
पानी पनघट माँगता, नदियाँ मरती प्यास।
प्रदुषित अति पर्यावरण, धरा करे अरदास।
धरा करे अरदास, सँभल जाओ हे मानव।
लोलुपता में लीन, बनो मत अब तुम दानव।।
प्रकृति 'अमित' वरदान, विपुल वैभव वरदानी।
तरुवर भू श्रृंगार, सहेजो मिट्टी पानी।।


24-सैनिक
सैनिक सक्षम हैं सदा, होते अति बलवीर।
राष्ट्रधर्म पालन करें, हो करके गंभीर।।
हो करके गंभीर, बनातें रिपु का कीमा।
समुदय सबल सचेत, सजग प्रहरी ये सीमा।
वर्षा जाड़ा ग्रीष्म, देशहित सेवा दैनिक।।
'अमित' नमन है नित्य, धीर भारत के सैनिक।

कन्हैया साहू 'अमित'

[29/12 9:33 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 29.12.19

कुण्डलियाँ (21)
विषय-कुनबा
सारे ढक्कन को ढके,कुनबा ऐसी ढाल।
 बातें बढ़ती हैं तभी,होते फिर बेहाल।
होते फिर बेहाल,अकेले जब रह जाते।
कुनबा हो जब साथ,तभी आगे बढ़ पाते।
अनु की सुन लो बात,लगें अब रिश्ते खारे।
एकल सब परिवार,आधुनिक बनते सारे।।




कुण्डलियाँ (22)
विषय-पीहर
डोली फूलों  से सजी,पीहर जाये छूट।
मात पिता की  लाडली,स्वप्न न जाये टूट।
स्वप्न न जाये टूट,पिया के मन तू भाये
कदम-कदम खुश रहे,कली मन की खिल जाये।
कहे अनु सुनो आज,सजे फिर माथे रोली।
फूलों का सिंगार,उठी लाडो की डोली।।




रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल

[29/12 9:39 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक -29/12/19

कुण्डलियाँ (23)
विषय- पनघट

पनघट पर ग्वालिन गये, जब भरने को नीर।
बिना उपद्रव के सखे, मोहन धरै न धीर।।
मोहन धरै न धीर, देय मटकी सब फोड़ी।
यही उधम सब देख, सभी ग्वालिन कर जोड़ी।।
कहे प्रभो हे श्याम, करो मत इतनी खटपट।
भर लेने दो नीर, सभी आये हैं पनघट।।

कुण्डलियाँ (24)
विषय- सैनिक

सोते सैनिक कब भला, है सीमा तैनात।
ठंडी बर्फानी जो रहे, सह लेते हैं घात।।
सह लेते हैं घात, बचाने खातिर हमको।
अद्भुत उनके खेल, खेलते गोली बम को।।
रखते जीवन दाँव, वीर ऐसे हैं होते।
जगते है दिन रात, बताओ कब वे सोते।।

रचनाकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)

[29/12 9:50 PM] पाखी जैन: *कलम की सुगंध-छंदशाला*
*शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*

*18- भैया*

भैया दोनों जब चले,गये महल को छोड़।
चली सिया भी साथ में  ,बेमन मुखड़ा मोड़।
 बेमन मुखड़ा मोड़, खड़ी  बिखराये मोती  ।
पथ के कंकड देख,सिया भयभीत  न होती
करते संकट दूर ,कहें वनचर हे मैया ।
देती सीता नेह,संग हैं दोनों भैया ।
पाखी


*19-कुनबा..*
कुनबा सब का  एक है ,करे कौन फिर घात।
परिहारक बनते तभी , जब न  बनाये बात।
जब न बनाये बात,करते निंदा स्वजन की
परिचायक है कौन,सभी बात करें घर की ।
करें कुठाराघात,घात से शान न निखरे।
डूबा सूरज गेह,बिन नेह बिखरे कुनबा ।
पाखी


*20-बहना*
बहना होती होलिका,जब हिरण्य है भ्रात ।
अनाचार में संग दे,करती अपना  घात ।
करती अपना घात,घात करे वो  कौन है ।
सिया जा रही देख,उर्मिला आज मौन है।
बहती आँसू धार,मुझे है वियोग सहना।
रख लूँगी सम्भाल ,अमानत तेरी बहना।

*मनोरमा जैनपाखी*

*21-सखियाँ*
सखियाँ.
 सखियाँ छेडे आज तो , देख सभी हैं दंग।
शरमाती कैसे सिया ,सब करती हैं तंग।
सब करती हैं तंग, बांध धैर्य का न टूटा ।
देख   राम समीप   ,घूंघट कर से न छूटा ।
सुन लो पाखी आज , सखी  वो तप है  धरती ।
मिलते जब दृग चार ,नेह उर से वो  करती ।
पाखी


*मनोरमा जैन पाखी*

[29/12 9:59 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 29.12.19*


21-पीहर

पापा की परियाँ सहें, पर कटने की पीर।
पिया पराया कर गए, पीहर छूटा तीर।।
पीहर छूटा तीर, नीर नैनों से बरसे।
बैठे जा परदेस, तोड़कर नाता घर से।।
विरह झेलता अंक, अंक अंतर का नापा।
छलक उठी तब आँख, आँख बिन तरसे पापा।।

22- कुनबा

बनता कुनबा नेह से, छोटा सा संसार।
त्याग,तपस्या,कर्म से, संकट होते पार।।
संकट होते पार, प्रेम से जुड़ते नाते।
दिन लगते त्योहार, मीत बिछड़े मिल जाते।।
एकाकी मन पीर, हृदय जा किसे सुनाता।
अपनों के बिन अंत, मनुज को दुखी बनाता।।

23- पनघट
सूना पनघट हो गया, सूखे नदिया ताल।
वृक्ष बिना छाया नही, तरसे फल को बाल।।
तरसे फल को बाल, धरा बंजर अब लागे।
छोड़ किसानी लोग, सभी परदेस जो भागे।।
छूटा घर का मोह, कमाते धन सब दूना।
रिक्त खेत खलिहान, हुआ घर आँगन सूना।।

24- सैनिक
सैनिक सीमा पर खड़ा, बनता सब की ढाल।
रक्षण को तत्पर सदा,धरती माँ का लाल।।
धरती माँ का लाल, धरा को माता कहता।
दुश्मन करते घात, साथ संकट में रहता।।
कितने हुए  शहीद, हुई है घटना दैनिक।
फिर भी हैं तैयार, देश के रक्षक सैनिक।।

रचनाकार का नाम - नीतू ठाकुर

Saturday 28 December 2019

कुण्डलिया छंद... कुनबा ,पीहर

[28/12 6:05 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 28.12.19

21-   कुनबा
**********
ताकत कुनबा जोड़ता,
तन्हा है कमजोर।
कौन बात को पूछता,
जैसे तूती शोर।

जैसे तूती शोर,
दबा जो नक्कारों से।
एक वीर की हार,
दिखी दस मक्कारों से।

कुनबा वह बेजोड़,
न दिखती जहाँ बगावत।
सब मिलजुल कर एक,
"अटल" कुनबे की ताकत।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏


22-    पीहर 
***********
बेटी पीहर में गयी,
करने को आराम।
पर किस्मत का खेल है,
दिखा वहाँ भी काम।

दिखा वहाँ भी काम,
पड़ी कोने में गुड़िया।
जो थी उसकी जान,
आज वह लगती बुढ़िया।

"अटल" उठा पुचकार,
नयी पोशाक लपेटी।
बचपन की थी याद,
देख कर रोई बेटी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[28/12 6:05 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया कलम वीर हेतु*
*दिनांक -----25/12/19*
(17)  *बाबुल*

बाबुल की ये देहरी , जाती बिटिया छोड़ ।
स्नेह  प्रीत की डोर से ,  रिश्ते नाते जोड़ ।।
रिश्ते नाते जोड़ , पहन के लज्जा गहना ।
असिस पिता ये देय  , सदा मुस्काती रहना।
करे धरा ये प्रश्न ,पिंजरे की ये बुलबुल ।
जाती क्यों सब छोड़, देहरी मैया बाबुल‌।।

(18) *भैया* 

बंधन न्यारा नेह का ,भैया बहना प्रीत ।
पावन धागे से बँधा, कितना मोहक रीत ।।
कितना मोहक रीत , बचा कर इसको रखना।
भैया बहना धर्म , सदा ही रक्षा करना ।।   
करती बहना मान , लगा कर रोली चंदन ।
रखना हर क्षण लाज , निराला है ये बंधन ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[28/12 6:08 PM] सरला सिंह: ----------------------------------------------------------
28.12.19

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-28/12/19*
*विषय: कुनबा*
*विधा कुण्डलियाँ*
*21-कुनबा*

जोड़े कुनबा मैं रही,रखे सभी पर प्रीत।
 पाई पाई जोड़ के,पूरी की सब रीत।
 पूरी की सब रीत, भये सब दौलत वाले।
 कोठी गाड़ी साथ, हुए कुछ मन के काले।
 सरला कहती आज,खड़े वह मुख को मोड़े।
 देते कब हैं साथ , नहीं अब नाता जोड़े।

  *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
  *दिल्ली*

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-28/12/19*
*विषय: पीहर*
*विधा कुण्डलियाँ*

 *22-पीहर* 


  गोरी पीहर से चली,गली पिया घर आज,
  माथे डाले चूनरी, हार गले में साज।
  हार गले में साज,अरे ये बिंदी चमके।
  चमके यह सिंन्दूर,साथ गजरा भी महके।
  कहती सरला आज,लगे बंधी हो डोरी। 
  बहके दोनों पैर, चली पिय‌ के घर गोरी।।

  *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
  *दिल्ली*

**************************
[28/12 6:09 PM] सुशीला साहू रायगढ़: *शतकवीर हेतु मेरी रचना*
*विधा-----कुंडलियाँ*
~~~~~~~~~~~~~~~~~
*विषय-------कुनबा* 28/12/2019*
तिनका तिनका उठा के,पक्षी सपना सजाय।
एक एक तिनके कहे ,चलो कुनबा बनाय।
चलो कुनबा बनाय,हमें परिवार बचाना।
ठंड और बरसात, सीख घरौंदा बनाना।
कह शीला निज बात,बुने अब ताना सबका।
सीखे इनसे आज,उठा ले तिनका-तिनका
*विषय-------पीहर*
राखी में  पीहर गयी,खुशी पिया के साथ।
चूड़ी बिंदी से सजे, मेंहदी लगी  हाथ।।
मेंहदी लगी हाथ,मिले सब तो क्या कहना।
कर बचपन की बात,साथ में भाई बहना।।
कह शीला ये सार, रंग बिरंगियाँ पाखी।
झूमें सब परिवार,मना पीहर में राखी।।
*सुशीला साहू शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*
[28/12 6:09 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 28.12.19

(21)कुनबा = कुटुंब,परिवार

मेरा कुनबा है  सुखी, हम सब है मजदूर।
जीवन यापन कर रहें,कभी नहीं मजबूर।।
कभी नहीं  मजबूर, मेहनत  करते हैं हम।
रहते हैं खुशहाल, नहीं  चिंता कोई गम।।
कहे विनायक राज, देख लो  छोटा डेरा।
रहता है  परिवार, वही  है  कुनबा मेरा।।

(22)पीहर 

मेरा पीहर है वहाँ,जहाँ नीम की छाँव।
नदी किनारे  गेह है, सुन्दर मेरा गाँव।।
सुन्दर मेरा गाँव, लगे हैं  सबसे प्यारा।
मातु पिता का द्वार,स्वर्ग से भी है न्यारा।।
कहे विनायक राज,मायका होय बसेरा।
सुख दुख में ये आस,दिलाती पीहर मेरा।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[28/12 6:10 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--28/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
(21)
*कुनबा*
जोड़ा कुनबा प्रीत से,खिलते देखे फूल।
देखी अकूट संपदा,सब कुछ बैठे भूल।
सब कुछ बैठे भूल,भूले  पिता अरु माता।
छोड़ा सबका साथ,रखा बस छल से नाता।
कहती अनु यह देख,बैर को जिसने तोड़ा।
अपनों को रख साथ,खुशी से नाता जोड़ा।
(22)
*पीहर*
प्यारा पीहर छोड़ के,गोरी चली विदेश।
आँखों में सपने सजे,मन में भारी क्लेश
मन में भारी क्लेश,चली वो डरती डरती।
पीहर छूटा आज,मना वो कैसे करती
कहती अनु यह देख,सभी को लगता न्यारा।
भूलें कैसे प्यार,पिता का घर है प्यारा।
*अनुराधा चौहान*
[28/12 6:30 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
28/12/2019::शनिवार

कुनबा
ऐसी कर लो एकता, कुनबा हो कुल देश।
घबराकर देखा करे, दुश्मन भर आवेश।।
दुश्मन भर आवेश, चैन से बैठ न पावे।
सोचे वो सौ बार, कि कैसे आग लगावे।।
चले न उसकी एक, करो अब ऐसी तैसी।।
दिखे हिन्द अनुराग, एकता कर लो ऐसी

पीहर

बचपन बीता है जहाँ, मचा मचाकर शोर।
पीहर की नादनियाँ, अंतस भरें हिलोर।।
अंतस भरें हिलोर, याद आती सब सखियाँ।
गाँव गली घर द्वार, सोच कर रोती अँखियाँ।।
बीते कितने साल, हो गई मैं तो पचपन।
आँगन अब भी खास, जहाँ बीता था बचपन।।
                    रजनी रामदेव
                      न्यू दिल्ली
[28/12 6:33 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 28/12/2019

कुण्डलिया (21) 
विषय- कुनबा
==========

छोटा   कुनबा   हो  गया, घटा   आपसी   नेह I
लुप्त हुए  मुखिया सखे, पति, पत्नी, सुत गेह lI
पति,  पत्नी,  सुत  गेह, नहीं  कौड़ा  रजनी में l
बन्धु,मात, पितु छोड़, सजन सिमटे सजनी में ll
कह  'माधव कविराय', हुआ  रिश्तों  में  कोटा l
स्वजन   पड़ोसी  रूप, बचा  है  कुनबा  छोटा ll 

कुण्डलिया (22) 
विषय- पीहर
===========

रुकना मत पीहर सखी, ज्यादा दिन तक आप I
गली,  मुहल्ला,  नारि, नर, सब   देते   सन्ताप ll
सब    देते   सन्ताप, वही  जिनको  निज  माने l
तरह - तरह  की   बात, अरोचक  मिलते  ताने ll
कह  'माधव कविराय', पड़े  नाहक  में  झुकना l
स्वर्ग  सदृश  ससुराल, नहीं अति पीहर रुकना ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)

[28/12 6:35 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 28 दिसंबर 2019
 कलम की सुगंध छंद शाला
शतक वीर कुंडलियां प्रतियोगिता
विषय   *कुनबा*  (21)

माना  जाता श्रेष्ठ   वो , कुनबा जो   संयुक्त।
हर सदस्य का आचरण ,  अनुशासन से युक्त।।
अनुशासन  से  युक्त, जेष्ठ- जन  होते  स्वामी ।
 हो सम्यक उत्थान , पिता के सब अनुगामी ।।
कहे "निगम" कविराज,  एक सँग रहना खाना।
कुनबा रचे  समाज , सभी  ने  इसको  माना ।।

विषय  *पीहर*   (22)
पीहर   पथ  प्यारा  लगे  , जाए  पिय  के   संग ।
क्या अनुपम अनुभूति है,  कण-कण प्रणय प्रसंग ।।
कण-कण प्रणय प्रसंग, जहाँ पर बीता बचपन।
गुड्डा गुड्डी खेल, खेलते पाया यौवन ।।
कहे "निगम" कविराज, रहे वह अपने पिय-घर।
 स्वर्ग लोक से श्रेष्ठ., लगे पर उसको पीहर ।।

कलम से 
कृष्ण मोहन निगम 
(सीतापुर)छ.ग.

[28/12 6:42 PM] गीता द्विवेदी: 🌷कलम की सुंगध छंदशाला🌷
कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु


दिनांक-26-12-019

(19)
विषय-बहना

बहना मुझको डाँटती, ममता भी अगाध।
हम दोनों के नेह की, सरिता बहे अबाध।।
सरिता बहे अबाध, रहे भाई हरषाये।
हम भी तो हैं साथ, हमें काहे बिसराये।।
हम हैं डोरी एक, लगे है छोटी गहना।
क्षण में जाए रूठ, पहेली लगती बहना।।

(20)
विषय-सखियाँ

ऐसे धूप गंध हवा,प्यारी सखियाँ संग।
रहतीं हिलमिल सदा, देख रहूँ मैं दंग।।
देख रहूँ मैं दंग,तीनों भागती रहतीं।
शक्ति की नहीं थाह, धरा पर खेला करतीं।।
हम लें इनसे सीख, रहेंगें इनके जैसे।
जीवन नदिया पार, चलेंगे मिलके ऐसे।।

 (21)
विषय-पीहर
चंदन सा महका रही, बेटी निज ससुराल।
पीहर आन बढ़ा रही, देखत सभी निहाल।।
देखत सभी निहाल,निभाती सारे नाते।
करते सभी बखान, नगर में उसकी बातें।।
माता पितु हैं धन्य, करें सब उनको वंदन।
समझो अब मत बोझ,बनाती जीवन चंदन।।

(22)
विषय-कुनबा

होते थे पहले कभी, कुनबे सारे गावँ।
अब एकल परिवार हैं जर्जर होती छावँ।।
जर्जर होती छावँ, बँटी है माया ममता।
बस निभ रहे रिवाज, दिखे न अब तो समता।।
मानो तो अपने हाथ, सदा से काँटे बोते।
अब भी करें प्रयास, जतन खुशियों के होते।।


सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[28/12 6:47 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच   कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
28/12
कुनबा 
रहती मीठी याद बन,लाड़ प्यार मनुहार।
बात पुरानी हो गयी ,कुनबे का संसार ।।
कुनबे का संसार,जहाँ सब अपने रहते ।
प्रेम भरी तकरार ,सभी के सपने सजते।।
होती पल में रार,बुआ  समझौता करती।
बाबा की मुस्कान, सदा यादों में रहती ।।

पीहर

"पीहर" से "पीघर" चली ,लिये सुहानी याद ।
सुता बनी अब स्वामिनी,दो घर की बुनियाद ।।
दो घर की बुनियाद,नये रिश्तों का बंधन ।
आती पीहर याद ,हृदय में होता क्रंदन ।।
मिले श्वसुर घर मान,रहे फिर मन क्यों बीहर।
नारी जीवन सार ,छूट जाता है पीहर ।।

अनिता सुधीर 
लखनऊ

[28/12 6:50 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*विषय-(२१) कुनबा*

टूटा कुनबा देख के, मुखिया हुआ निराश।

तिनके जैसा उड़ गया,जीवन से विश्वास।

जीवन से विश्वास,प्रेम जब उसका हारा।

जीत गया है स्वार्थ,कहाँ अब रहा सहारा।

कहती 'अभि' निज बात,अहम का अंकुर फूटा।

उपजे मन में भेद,और फिर कुनबा टूटा।



*विषय-(२२)पीहर*

प्यारी पीहर की लगे ,मुझको सारी बात।

पक्षी जैसी मैं उड़ी, छूटे भगिनी-भ्रात।

छूटे भगिनी-भ्रात,तात तरुवर सी छाया।

छूटी आँचल-छाँव,दिवस ये कैसा आया।

कहती'अभि'निज बात,विरह में जाती मारी।

बसी दूसरे देश, पिता माता की प्यारी।



*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[28/12 6:51 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा

.         *कलम की सुगंध छंदशाला*

.         कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 28.12.19
.                    🦚🦚
कुण्डलियाँ (1) 
विषय-. *कुनबा*
बातें  बीती  वक्त  भी, प्रेम  प्रीत  प्राचीन।
था कुनबा सब साथ थे, एकल अर्वाचीन।
एकल   अर्वाचीन,  हुए   परिवारी   सारे।
कुनबे अब इतिहास , पराये  पितर हमारे।
शर्मा  बाबू लाल , घात  प्रतिधात  चलाते।
रोते  बूढ़े  आज, सोच   कुनबे  की  बाते।
.                    🦚🦚
कुण्डलिया (2)
विषय:-  *पीहर*

पालन प्रीति  परम्परा, पीहर  प्रिय परिवार।
प्रेम पत्रिका  पा पगे, प्रियतम  पथ पतवार।
प्रियतम  पथ पतवार, प्राण  प्यारे  परदेशी।
परिपालन  परिवार, प्रथा   पालूँ   परिवेशी।
प्रकटे  परिजन प्यार, पालते  प्रण पंचानन।
परमेश्वर  प्रतिपाल, पृथा पीहर पथ पालन।
.                     🦚🤷🏻‍♀🦚
रचनाकार✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[28/12 6:57 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

*दिन शनिवार 28.12.2019* 

*कुनबा* 

तिनका-तिनका तान के, खग खरपत की छाँव
कुनबा-कुनबा जोड़ के, गढ़े ग्रामपति गाँव
गढ़े ग्रामपति गाँव, बूँद से सागर बनता
नगर-नगर से देश, देश में जन-जन जनता
कह अनंत कविराय, माल है मनका-मनका
कण-कण कीमत जान, जोड़ ले तिनका-तिनका

*पीहर* 

पीहर पथ पर पालकी, पालकी पर पुत्री
केवल बैठी देह है, मन हुआ अन्यत्री
मन हुआ अन्यत्री, उड़ा है पंछी बनकर
कभी पिता के पास, कभी है मात चरण पर
कह अनंत कविराय, सोच यह गयी वो सिहर
पुलकित है मन प्राण, प्राण बसते हैं पीहर

*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[28/12 6:59 PM] डॉ मीना कौशल: पीहर

पीहर शीतल छाँव है,बचपन की शुचि याद।
मात पिता भाई बहन ,का मधुरिम संवाद।।
का मधुरिम संवाद,मधुरमय रिश्ता नाता।
जहाँ नहीं अवसाद,प्रेम का पुंज समाता।।
घुटता दम ससुराल,लगे पूरा घर बीहर   ।
बचपन की हर याद,सुहाता अपना पीहर।।

कुनबा

कुनबा में मिलकर रहें,प्रेम सहित परिवार।
महके घर आंगन सदा,चहके बचपन द्वार।।
चहके बचपन द्वार,बने जीवन फुलवारी।
सब मिल रहें निहाल,खुशी आते हर बारी।।
आज सभी परिवार,एकला में ही चुनबा।
बना रहे परिवार,भला है अपना कुनबा।।

डा मीना कौशल
[28/12 7:07 PM] रवि रश्मि अनुभूति: *रवि रश्मि 'अनुभूति '


  🙏🙏

*कुण्डलिया शतकवीर सम्मान, 2019 हेतु*         28.12.2019.
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  21 ) कुनबा
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कुनबा रहते साथ में , गया समय वह बीत । 
प्यारी बातें सब कहें , रहे सभी मन प्रीत ।।
रहे सभी मन प्रीत , साथ - साथ उठें -  बैठें ।
ऐसा हो संस्कार , नहीं हो कोई ऐंठे ।।
अपने मन की बात , कहे सब भाई माँ बा ।
तिनका - तिनका जोड़ , बनाते मिलकर कुनबा।।
         #############


22 ) पीहर 
************
बातें पीहर की सभी , आतीं हमको याद ।
पल भर भी करते नहीं , कभी समय बर्बाद ।।
कभी समय बर्बाद , सभी मिलजुल कर खेलें ।
पीहर की सौगात , प्यार भर - भरकर झेलें ।।
ऐसा पीहर देख , जहाँ कटती सब रातें ।
पीहर आये याद , सभी पीहर की बातें ।।
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(C)  रवि रश्मि 'अनुभूति '
27.12.2019 , 10:50 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[28/12 7:16 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंडलियां शतकवीर हेतु सादर 
28/12/19
              *(21)कुनबा*  

सूना कुनबा बिन सदन,सूना है संसार।
मीत बन्धु औ नार से,होता है परिवार।
होता है परिवार, सभी सुख दुख सहभागी ।
भेदभाव से परे,एक दूजे अनुरागी।
होत मधुर आभास,संबंध बढ़ता दूना।
कण-कण बसता प्रेम,सदन नाही हो सूना।

           *(22)पीहर* 

पत्ता पीहर डोलता,हियँ मे उठत हिलोर।
बंधन अटूट होत हैं, नेह गेह की डोर ।
नेह गेह की डोर, लड़कपन की शैतानी ।
गुड्डे-गुड़िया खेल,याद आती नादानी।
कहे मधुर ये सोच, मिले पीघर में सत्ता।
गाँव गली घर द्वार, याद पर पीहर पत्ता।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

[28/12 7:20 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुण्डलिया - शतकवीर प्रतियोगिता*

*दिनांक- 21/12/19*

*आँचल*

माता आँचल में मिले, सच्चा प्यार दुलार।
बिन जननी आशीष के, नहीं बने उद्धार।
नहीं बने उद्धार, कह गये सत्य विधाता।
मन में दृढ़ विश्वास, जुड़ा है उनसे नाता।
'रीत' मधुर है बोल, सदा जो सबको भाता ।
करती प्यार दुलार, पास में रहती माता ।

*कजरा*

कजरा नयनों में लगा, माता चूमे लाल ।
भोला भाला लालना, सिर पे काले बाल ।
सिर पे काले बाल, लाल मुँख लगे सुहावन ।
देती नज़र उतार, लाल सबके मनभावन ।
'रीत' बलइया लेत, बाल में बाधे गजरा ।
सुंदर मुँख में दाँत, माथ पर टीका कजरा ।

*दिनांक- 28/12/2029*

*कुनबा*

ताकत कुनबा से मिले, रखे प्यार व्यवहार ।
अपनों को है जोड़ता, करो कभी ना मार ।
करो कभी ना मार, आप हो भाई भाई ।
आपस का व्यवहार, करो मत कभी लड़ाई ।
'रीत' रखे खुशहाल, दुसरा घर नहीं झांकत ।
अपनों को रख साथ, हमेशा देते ताकत ।

*पीहर*

अपना पीहर छोड़के, चली पिया के साथ ।
आँखों में सपना सजा, ले हाथों में हाथ ।
ले हाथों में हाथ, याद आयेगी बहना ।
सास ससुर की बात, हमेशा सहती रहना ।
'रीत' कहे निज बात, करो तुम पूरा  सपना ।
करना सबका मान, तुझे सब समझे अपना ।

*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍

[28/12 7:35 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-28/12/19*
*विषय: कुनबा*
*विधा कुण्डलियाँ*
*२१*

 कुनबा जोड़ा देखिए, भानुमती ने आज |
कंकड़-पत्थर जोड़कर, करती है वह राज |
करती है वह राज, सुहावै सबको भैया |
बनती है दिलदार ,सबों को बाँट रुपैया |
कह विदेह नवनीत, बढ़ा है उसका रुतबा |
कृपा करें करतार, देखिए जोड़ा कुनबा ||

*विषय: पीहर*
*22*

पीहर से वो लौटकर, जब पहुँची ससुराल |
लज्जा में ढ़लते हुए, सुर्ख हो गए गाल |
सुर्ख हो गए गाल, चबा अधरों की लाली |
घूँघट लेती डाल, नवोढ़ा बड़ी निराली |
कह विदेह नवनीत, सुलगता जैसें बीहर |
आई वो ससुराल, छोड़कर अपना पीहर ||


  *नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*

[28/12 7:35 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध  कुंडलिनी छंद प्रतियोगिता
दिन -शनिवार
28-12-19
 विषय-शब्द- कुनबा/पीहर
(1)कुनबा
  
   लोहे के बरतन बना, करते जो  व्यापार।
 रहते कुनबा बीच वो , कपड़े की दीवार। 
 कपड़े की दीवार, बना रहते हैं   सारे
 सर्दी ,गर्मी, झेल,  जिया करते हैं प्यारे।
     कह प्रमिला कविराय, स्त्रियाँ वधू सी सोहे।
  पीट हथौड़ा बना ,रही बरतन   जो लोहे ।।

(2)पीहर

     बेटी पीहर से चली , खुशियाँ लिए हजार।
 देते हैं आशीष  सब, सुखी रहे परिवार।।
सुखी रहे परिवार, फले फूले तू बहना
 सबका मन ले जीत,  सदा खुश ही तुम रहना।
 कह प्रमिला कविराय, याद करती मां लेटी।
 खुशी-खुशी कब आय , लौटकर पीहर बेटी।।

 प्रमिला पान्डेय

[28/12 7:38 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 28/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - कुनबा
**************
तिनका जोड़ा प्रेम का ,
                    युक्ति लगाई नेक ।
संघर्षों से ही बना ,
                    प्यारा कुनबा एक ।
प्यारा कुनबा एक ,
               रहे सब मिलकर सारे ।
सुख दुख सहते साथ ,
               सभी संकट फिर हारे ।
एक सूत्र में बाँध ,
                पिरोते हैं सब मनका ।
करने पक्की नींव ,
             जोड़ते तिनका तिनका ।           

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - पीहर
****************
प्रियतम पथ अनुगामिनी ,
                 प्रीत पिया की धार ।
पीहर पंथ प्रणाम कर ,
                 चली सजन के द्वार ।
चली सजन के द्वार ,
            छोड़कर अपना बचपन ।
लेकर शुभ संस्कार ,
             सजाने पिय का उपवन ।
नई नवेली नार ,
              सजी सजनी सुंदरतम ।
प्रहसित पुष्प समान ,
             हृदय में बसती प्रियतम ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★

[28/12 7:58 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*दिनाँक--28/12/19, शनिवार।*
*विधा--कुण्डलियाँ*
~~~~~~~~~~~~~
*२१--कुनबा*
~~~~~~~~~
सारा कुनबा एक हो, रहे प्रेम के संग। 
सबकी चिंता सब करें, चढ़े प्रेम का रंग।
चढ़े प्रेम का रंग, न टूटे सुंदर नाता,
हो जावे जब बैर , आदमी तब पछताता।
आपस में हो मेल, तभी घर लगता प्यारा।
खान -पान हो साथ, रहे खुश कुनबा सारा।
~~~~~~~~~~~~~
*२२--पीहर*
~~~~~~~~~~~~
छूटा पीहर आ गयी, बेटी पति के द्वार।
मात पिता की आँख से, बहे अश्रु  की धार।
बहे अश्रु की धार, याद बेटी की आती।
उठती मन में पीर, नींद भी उड़ उड़ जाती।
होती प्रति दिन बात, नहीं है नाता टूटा।
बेटी घर की ज्योति, भला कब पीहर छूटा।।
~~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तर प्रदेश*
~~~~~~~~~~~~~~~~
[28/12 8:03 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *संशोधित*

*कुँडलिया कलम‌वीर हेतु*
*दिनांक ---- 26/12/19*
(19) *बहना*

प्यारी सबसे बहनिया, रिश्ता बड़ा अमूल्य ।
बहना भाई स्नेह है , पावन पुण्य अतुल्य ।।
पावन पुण्य अतुल्य , सजाये बहन कलाई ।
रहे बँधा ये डोर ,  युगों युग बंधन भाई ।।                      ‌‌‌‌    
होता भाई मित्र ,  सखी है बहना न्यारी ।
देती माँ सम प्यार , बहनिया जग से प्यारी ।।

(20 ) *सखियाँ*

होती सखियाँ खास ही , अनुपम‌ हैं उपहार ।
मिले कली से जब कली ,बनता सुरभित हार ।।
बनता  सुरभित हार , निराला ये गुलदस्ता ।              
बँधा प्रेम‌ का डोर  , बहुत ही प्यारा रिश्ता ।।
जाती जब वो दूर ,सखी बिन आँखें रोती।
जाने मन की बात , अनोखी सखियाँ होती ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़,छत्तीसगढ़*
[28/12 8:07 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
दिनांक ---  28.12.2019
विषय  ----  *कुनबा , पीहर*

(021)          *कुनबा*

छोटा कुनबा ही रखो , हो सुंदर परिवार ।
खुशियों घर में ही रहे , अच्छा हो व्यवहार ‌।
अच्छा हो व्यवहार , खानदान फले ‌फूलें ।
हो पढने की बात , जाए व्यवधान  चूल्हे ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी न होना मोटा ।
घर रहे खुशहाल , रखेंगे कुनबा छोटा ।।


(22)           *पीहर*

पीहर पीहर मन सदा , बचपन में ही खोय ।
माता पिता कहे सदा  , गम मन राखें जाय  ।
गम मन राखें जाय‌ , ससुराल में खुश रहना ।
बाँध लिया जब नेह , साजन हो गए गहना ।
प्रीत रीत की डोर , रहे घर जाएं शिवहर‌ ।
सदा रहेगी प्रीत , हाँ जाना पुण्य पीहर ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  28.12.2019.....


___________________________________________
[28/12 8:13 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
28/12/19

21/कुनबा
छोटा कुनबा हो चले , रहे प्रेम संचार ,
एक दूसरे के लिए ,हो मन में बस प्यार  ,
हो मन में बस प्यार ,  करें बातें हितकारी ,
सजता इससे धाम  ,सदा हो मंगलकारी ,
सुनो कुसुम की बात  , भाव न हो कभी खोटा ,
अन्तर तक हो प्रेम , सदन हो चाहे छोटा ।।

22/ पीहर

पारस पीपल पुष्प से , पंथ के हैं प्रमाण ,
पिता पितामह पूज्य है  ,पीहर प्रेम प्रणाम ,
पीहर प्रेम प्रणाम , पालते पालक पीड़ा ,
पलक पसारे प्राण ,प्रथम प्रधान का बीड़ा ,
पले कुसुम परिवार , प्रीत प्रबंध हो पावस ,
परस  प्रेम परिणाम  , प्रथम प्रतिपादित पारस ।।

               कुसुम कोठारी।

[28/12 8:21 PM] पाखी जैन: *कलम की सुगंध -छंदशाला*

*शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*
 24/12/2019
*कविता*
कविता लिखने बैठती,न छेड़ो घनश्याम।
लिखती पाती प्रेम की,आती ढ़लने शाम।
आती ढ़लने शाम,पिया क्यों खोये चैना ।
लाली छाई आज,मिलाते हैं वो नैना।
बादल काले देख,मुदित मन डोले सविता।
पीकर मदिरा साँझ,हुई मतवाली कविता।
*मनोरमा जैन पाखी*
÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷××÷
23/12/2019
*उपवन*
खिलते देखो अब नहीं,वन उपवन में फूल ।
होता नित आघात है,चुभे हृदय यह शूल ।
चुभे हृदय यह शूल,नित्यप्रति फूल तोड़ते 
कहते घर की शान,और मुख सहज मोड़ते।
कली खिले बन फूल,फूल पर भँवरे मिलते।
बिना कली के फूल,कहाँ हैं बोलो खिलते।
*मनोरमा जैन पाखी*
24/12/2019
*ममता*
धारा सी बहती यहाँ ,बहे नयन से नीर ।
माँ की ममता मानते,रखे हृदय में पीर ।
रखे हृदय में पीर,पीर सबकी हर लेती।
कितने भी हों क्लेश,सदा सुख उर भर देती ।
रख के निर्मल भाव,खेल देखे वो सारा।
है पावन सा रूप,बहाती निर्मल धारा।
*मनोरमा जैन पाखी*
25/12/2019
*बाबुल*
बाबुल गलियाँ छोड़ के ,चली सजन के गाँव।
मात पिता का आँगना,छोड़ नेह औ'छाँव 
छोड़ नेह औ'छाँव,चली वो वचन निभाने।
दूर किनारे गाँव,सजन का गेह बसाने।
कहती पाखी बात,अभी मत होना आकुल।
बेटी रखना लाज,कहे तेरा ये बाबुल।
*मनोरमा जैन पाखी*
÷×÷÷÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷×÷
[28/12 8:22 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
*दिनाँक- 25/12/19*

कुण्डलिया (17)
बिषय- बाबुल

मेरी बिटिया लाडली, अपना रखना ख्याल।
बाबुल के घर छोड़ कर, जाना है ससुराल।।
जाना है ससुराल, परायी होती बेटी।
सह लेना चुपचाप, नहीं करना मजिस्ट्रेटी।।
बच्चे करे उदंड, न करना तुम हथफेरी।
घर का रखना मान, लाडली बेटी मेरी।।

कुण्डलिया (18) 
विषय- भैया

रोना कभी नहीं बहन, सुन लो मेरी बात।
जीवन के इस भोर में, कभी न आये रात।।
कभी न आये रात, मगर यह भी तो सुन लो।
साहस से हर काम, करोगे इतना गुन लो।।
अपने भीतर आप, प्रेम हरदम ही बोना।
भैया तो है साथ, नहीं बिलकुल भी रोना।।


*दिनाँक-26/12/19*
कुण्डलिया(19)
विषय - बहना

बहना तुमको देखकर, गुजरे शुभ दिन रात।
प्यारी लगती हो बड़ी, जब करती हो बात।।
जब करती हो बात, विकल मन मुस्काता है।
खुश तुमको ही देख, चैन मुझको आता है।।
चाहूँ क्या मैं और, मुझे है इतना कहना।
जियो हजारो साल, लाडली प्यारी बहना।।

कुण्डलिया(20)
विषय - सखियाँ

सखियाँ यदि होती नहीं, कैसे आता चैन।
दिन भी कटता ही नहीं, कैसे कटती रैन।।
कैसे कटती रैन, बताओ इस जीवन के।
लाये कोई ढूँढ, वही फिर दिन बचपन के।।
पढ़ना-लिखना साथ, वही चमकीली अखियाँ।
फिर से मुझको याद, आ गईं हैं सखियाँ।


*रचनाकार - उमाकान्त टैगोर कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)*
[28/12 8:31 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 28.12.19

कुण्डलियाँ (21) 
विषय- *कुनबा*

कुनबा बनता प्रेम से, होता मिलन-वियोग।
घर को नव आकार दे, आपस का सहयोग।।
आपस  का  सहयोग, एक  दूजे की ताकत।
सुख-दुख सहना साथ, सभी की होती आदत।।
छोटा  सा  संसार, जहाँ ये मन है रमता ।
पगता प्रेम प्रगाढ़, तभी ये कुनबा बनता।।



कुण्डलियाँ (22) 
विषय- *पीहर*

प्यारा पीहर छोड़कर, चली लली ससुराल।
मात-पिता आशीष दें, सदा रहे खुशहाल।।
सदा रहे खुशहाल, हँसी होठों पर हरदम।
आए मैका याद, नहीं करना आँखें नम।।
करना सबका मान, सम्मान  रहे  हमारा।
वही  तुम्हारा  गेह, पराया पीहर प्यारा।।


रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[28/12 8:34 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 28/12/19
कुण्डलियाँ- (21)
विषय - *कुनबा*
सपना कुनबा  देखता, हर अपना हो पास। 
मंदिर की घंटी बजे, यू बजती है श्वास।। 
यू बजती है *श्वास*, *श्वास* जब मुख से निकली । 
गुजरी कैसी *रात*, *रात* भर रोती तितली ।। 
सुवासिता सुन *राग*, *राग* में वोही अपना । 
भले एक हो *तार*, *तार* में बाधो सपना ।। 

सपना -गहरी नींद में देखते है
         भविष्य के लिए सोचना 
श्वास - साँस, आह
रात - निशा, निराशामयी 
तार - सोने चांदी के तार 
        तार भेजने का पता

कुण्डलिया-(22)
विषय- *पीहर*  

पीहर हो अपना सदा, ज्यों पीपल की छाँव। 
भैया मेरे बात सुन, खेलो मत धन दाँव।।
खेलों मत धन दाँव, प्रीत में रीत  समाई। 
क्यों शादी के बाद, हुई है सुता पराई।। 
सुवासिता मन हर्ष , झूम के गाती सोहर। 
फैलाकर मन पंख, सोच में उड़ती पीहर।।

           🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[28/12 8:37 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक- 24/12/19

15 *कविता*

कविता ही कविता दिखे,विषय वस्तु संसार।
चुन चुन कवि की लेखनी, लिखे हृदय उद्गार।
लिखे हृदय उद्गार, छंद रस करे समाहित।
अलंकार मय काव्य,लोक हित भाव प्रवाहित।
कहती रुचि करजोड़,रश्मि देती ज्यों सविता।
सर्व सुखद परमार्थ,सदा निश्रित हो कविता।

 16 *ममता*

मूरत है ममतामयी,माँ होती अनमोल।
माता के उपकार को ,कोई न सके तोल।
कोई न सके तोल,झेलती हर संकट को।
सबका रखती ध्यान,हटाती पथ कंटक को।
कहती रुचि करजोड़,बड़ी भोली है सूरत।
होती बड़ी महान, भलाई की यह मूरत।

कंटक- काँटा

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

*दिनाँक - 25/12/19*
कुण्डलिया

17  *बाबुल*

बाबुल मत मारो मुझे,तेरी हूँ संतान।
आने दो जग में मुझे,सदा करूँ सम्मान।
सदा करूँ सम्मान,शिकायत नहीं करूँगी।
सदा निभाऊँ फर्ज,तुम्हारा ध्यान रखूँगी।
कहती रुचि करजोड़,नहीं होना अब व्याकुल।
दो कुल चलूँ सँवार,नाज होगा सुन बाबुल।

18  *भैया*

आया श्रावण पूर्णिमा,रक्षाबंधन पर्व।
घर आवें बेटी बहन,भैया करते गर्व।
भैया करते गर्व,बाँधती राखी बहना।
प्रेम पगी ये डोर,कलाई की है गहना।
कहती रुचि करजोड़,मिठाई सबने खाया।
यह पावन त्यौहार,नेह बरसाने आया।

सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

[28/12 8:40 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:- 26/12/19 

19. बहना

बहना पीहर छोड़कर,जब जाती ससुराल।
जीवन भर रहती वहां,यादों को संभाल।
यादों को संभाल, सेतु का धर्म निभाती।
दोनों कुल का मान, समझ सबको अपनाती।
सबके प्रति समभाव,यही नारी का गहना।
चुनकर सच का मार्ग,बढ़ो तुम प्यारी बहना।।
~~~~~~~~~~~~~~~~
20) सखियाॅ

सखियाॅ सुख दुख बांटने, करती है संवाद।
विगत दिनों की बात को, साथ बैठ कर याद।
साथ बैठ कर याद, मिलन को ताजा करतीं।
साझा कर निज भाव ,खुशी से आहें भरतीं।
सारे सुख दुख भूल,खूब मटकाती अॅखियाॅ।
हर पल का आनंद ,उठाती हैं ये सखियाॅ।।
~~~~~~~~~~~~~~~~
कुंडलियां:- 28/12/19

21. कुनबा

रहकर कुनबा में सभी ,करते अपना काम।
इसके संग समाज का,जुड़ा हुआ है नाम।
जुड़ा हुआ  है नाम,यहीं सब मिलकर रहते।
भूख भगाने लोग,घोर विपदा भी सहते।
बढ़े देश का मान,काम हो सोच समझकर ।
सफल करो अभियान, एक कुनबा में रहकर।।
~~~~~~~~~~~~~~
~~~

22. पीहर

अपना पीहर देख कर, वह है बहुत उदास।
अब तक क्यों आये नहीं, सजना मेरे पास।
सजना मेरे पास, सोच में डूबी रहती। 
सीमा में तैनात, पिया को अब क्या कहती।
करती है मनुहार , देखकर हर दिन सपना।
भेजो पिय संदेश, मानकर हमको अपना।।

महेंद्र कुमार बघेल
[28/12 9:02 PM] सरोज दुबे: कलम की सुंगध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -22
दिनांक -28-12-19

,विषय -कुनबा 

रहना है जो हर्ष से,
कुनबा से हो प्यार l 
सुख दुख दोनों में रहे, संग संग हर बार 
संग संग हर बार, मिले बूढ़ों का साया 
और मिले फिर स्नेह, बढ़े आपस की माया 
कहे सरोज विचार, सभी बातों को सहना 
मोती बन कर संग, सभी धागे में रहना 

कुंडलियाँ -23
दिनांक -28-12-19

विषय -पीहर 

भैया पीहर है सदा, तेरे से गुलजार  l
मातु पिता के बाद में, तेरा है घर बारl
तेरा है घर बार,  
मान तुम देते रहना l
आऊँ हर त्यौहार, यही था माँ का कहना l
कहती सुनो सरोज, रही बन मैं तो गैया l
देखूँ तेरी राह, याद ये  रखना भैया l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏

[28/12 9:27 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छन्द शाला। 🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर सन्मान के लिए। 
दिनांक 28-12-19
कुंडलियाँ क्र21
1) कुनबा, 🌹
मेरा कुनबा है बड़ा, सारे रहते साथ। 
दो पीढी यह तीसरी,हाथ में लिए हाथ। 
हाथ में लिए हाथ,संग सुख दुःख सब सहते,
साझा है परिवार,रोज यह कृति से कहते। 
कहे कमल कर जोड़,एक है सबका डेरा। 
सब दुनियाँ को छोड, अलग है कुनबा मेरा। 

 कुंडलियाँ क्र22
2) पीहर🌹
पीहर से हर लाय पी,बना सुहागन आज। 
बहुत बडा दायित्व है,रखना दो घर लाज।। 
रखना दो घर लाज,कहीं न रहूँ अधिकारी। 
स्त्री इज्जत सामान,सजी गुड़ियाँ बेचारी। 
कमल कहे धर धीर,नार का जीना दूभर।     अधिकारों की पीर,नहीं है स्त्री का पीहर। 

रचना कार डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[28/12 9:42 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 28.12.19

कुण्डलियाँ (19) 

विषय-बहना

यमक का एक प्रयास......

*बहना* मेरी तारिका,है हम सबकी जान।
छेड़े जब वो रागिनी, घोले मिश्री  कान।
घोले मिश्री *कान,कान* न देती  बात पर।
हिरणी *जैसी* *चाल,चाल* नहीं चलती मगर।
करती दिल पर *राज,राज* न किसी से कहना।
फूटे न एक *बोल,बोल* तो कुछ तू *बहना* ।।


कुण्डलियाँ (20) 
विषय-सखियाँ

सखियाँ मिल बैठीं चार,कली ओस पिक घास।
मन व्यथा कहें दिल खोल,समय न मानव  पास।
समय न मानव पास,धैर्य का बाँध अब टूटा।
करता अत्याचार,सखियो! हाथ भी छूटा।
सुन ये अनु तू  आज,कहें ये भीगी अँखियाँ।
अब न  कर तिरस्कार,कह रही चारों  सखियाँ।।

रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल
[28/12 9:47 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर  हेतु
दिनाँक-28/12/2019
(19-)
विषय-बहना

बहना मेरी चाँदनी, चमके आँगन बीच।
जैसे उतरी अप्सरा,नभ से अँखियाँ मींच।
नभ से अँखियाँ मींच,डली मिश्री सी बोली
चले हंस की चाल ,कली ने अँखियाँ खोली।
जग की टेढ़ी चाल, सदा तू बच कर रहना।
मेरे घर का मान, बचा रखना तू बहना।


20
विषय-सखियाँ
सखियाँ तपती धूप में,ठंडी सी हैं छाँव।
चूड़ी खनके हाथ में,पायल छनके पाँव।
पायल छनके पाँव,सदा मन को हरसातीं।
 सुख दुख की कर बात, मगन मन को कर जातीं।
करके उनकी याद ,सदा भीगें ये अँखियाँ।
कनक कनी की कोर, कभी छूटे मत सखियाँ।


(21)
विषय-कुनबा
तिनका तिनका जोड़ के ,चिड़िया बैठी नीड़।
कुनबा आये काम ही ,कौन काम की भीड़।
कौन काम की भीड़,बुने मोह के ये धागे।
आगे आये काल, काल से तो सब भागे।
चिड़िया भागे छोड़, किया पालन था इनका।
टूटा कुनबा और,बिखरा नीड़ का तिनका।



(22)
विषय-पीहर
डोली में गोरी चली,अपने पिय के देश।
देखे पीहर की गली,,बना अनोखा वेश।
बना अनोखा वेश,बड़ी मन में अभिलाषा।
कम था बड़ा दहेज, मिले दुख हुई निराशा।
 मिलता जहाँ दुलार, मिली जहरीली गोली।
अर्थी निकली हाय,अभी आई जो डोली।


रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[28/12 9:50 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला 
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -28/12/19

कुनबा (21)

कुनबा मिटता देखकर,माता पिता निराश ।
रहें सहोदर एक सँग,  उनके यही प्रयास ।
 उनके यही प्रयास , परस्पर होता विघटन।
 कहाँ बचा सहकार , द्वेष का बस आवंटन ।
कह राधे गोपाल, अरे यह जीवन लंबा ।
हमें चाहिए प्रेम ,समर्पण वाला कुनबा।।

पीहर (22)

पीहर जब भी छूटता, रोते हैं दो नैन।
 मात-पिता की लाडली, होती क्यों बेचैन।।
 होती क्यों बेचैन, कहें अब सखियाँ सारी।
 जाएगी ससुराल, हमारी गोरी प्यारी।
कह राधेगोपाल, अरे तू यूँ मत सीहर ।
रोते हैं दो नैन, सदा जब छूटे पीहर।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

[28/12 10:03 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 

सादर समीक्षार्थ 🙏🏼

(१४) उपवन 

उपवन कुसुमित हरा, फूलों से भरपूर। 
कलियाँ कोमल अनछई, ढूँढ रहे दो शूर॥
ढूंढ रहे दो शूर, गौर श्याम सुगठित तन। 
चौड़े वक्ष बलिष्ठ, छटा तेजस्वी कणकण॥
कमल सरीखे नैन, मनोहारी मृदु चितवन।
गुरु हित चुनते फूल, प्रात पावन आ उपवन॥

(१६) ममता 

ममता माँ की बह रही, गिरे नयन से नीर।
बहता स्तन से दुग्ध है, वय मर्यादा चीर॥
वय मर्यादा चीर, गोद बैठाती माता।
राम राम कह राम, नेह मुख घुलता जाता॥
ह्रदय न धरता धीर, वेग न हर्ष का थमता।
कितने बरसों गौण, रही होकर यह ममता॥

(१७) बाबुल 

बाबुल बोले थे, सखी, जा बिटिया उस देश। 
पीछे मुड़ मत देखना, करना मोह न लेश॥
करना मोह न लेश, रहे मन तव भक्ति खरी। 
आलस निद्रा त्याग, सदा तन में शक्ति भरी॥ 
पाल पिता की सीख, न होता मन यह आकुल।
राह कठिनतम लाँघ, चली रख हिय मैं बाबुल॥

(१८) भैया

भैया, सुनिए दूर से, बुला रहे श्री राम। 
हा लक्ष्मण, हा, हा सिया, बोल रहे अविराम॥
बोल रहे अविराम, विकट न विपदा छाई। 
करिये अब न विलम्ब, जाइये गति से, भाई॥
कैसे जाऊँ छोड़, अकेली, तुमको, मैया। 
है मुझको विश्वास, सर्व सक्षम मम भैया॥

गीतांजलि ‘अनकही’ 🙏🏼

[28/12 10:04 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 28.12.2019

*कुण्डलियाँ (19)*
*विषय :- सखियाँ*

चम चम चमके चंद्रमा, चाल चले चित चोर।
सखियाँ सजती साँझ सी, घिरे घटा घनघोर।।
घिरे घटा घनघोर, धरा का क्षण क्षण साजे।
कण कण महका आज, साज थम थम के बाजे।।
पल पल देखे राह, पयलिया बाजे छम छम।
मंद मंद मुस्काय , चमकते कान्हा चम चम।।

*कुण्डलियाँ (20)*
*विषय :- बहना*
बहना सखियों सी लगे, समझे मन का हाल।
संकट के क्षण मातु सी,बन जाती है ढाल।।
बन जाती है ढाल, ढाल में हो जब जीवन।
रिश्ता है अनमोल, रक्त का बंधन पावन।।
है वो घर का मान, मान उसका हर कहना।
बहना मात समान, मात पाए क्यों बहना।।


*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*

[28/12 10:11 PM] कमल किशोर कमल: नमन
28.12.2019
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।

21-कुनबा
छोटे कुनबे हो गये,पति पत्नी अरु लाल।
बड़ी मुसीबत आ पड़ी,छोड़ बड़े निज हाल।
छोड़ बड़े निज हाल,घरों में ताले पड़ते।
अच्छी बड़ी सलाह,मिलन में पाले पड़ते।
कहे कमल कविराज,देखिए रिश्ते खोटे।
भाई मीठ न बाप,हो गये कुनबे छोटे।
22-पीहर
पत्नी को अच्छा लगे,अपना पीहर गाँव।
मातु पिता रहते वहाँ,मिले पीपली छाँव।
मिले पीपली छाँव,गाँव की सोंधी माटी।
खेली लब्भो पाल,सखिन संग रातें काटी।
कहे कमल कविराज,वहाँ से नाता सच्चा।
बचपन वाली प्रीत,लगे पत्नी को अच्छा।
कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
🌹👏