Thursday 30 September 2021

झारखंड कलम की सुगंध स्थापना दिवस आयोजन (प्रथम)

 

झारखंड कलम की सुगंध का प्रथम स्थापना दिवस 30.09.2021 को बड़े ही धूमधाम से जमशेदपुर झारखंड में मनाया गया। साथियों की उपस्थिति ने आयोजन में चार चांद लगा दिए। इस अवसर पर झारखंड कलम की सुगंध की अध्यक्ष आदरणीया आरती श्रीवास्तव 'विपुला' जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा ...

आज बड़ी ही खुशी का दिन है।झाड़खंड कलम की सुंगध मंच पर आज हम सब इसकी स्थापना दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुये है।इसके संस्थापक आ. संजय कौशिक विज्ञात जी है जो अनेक छंदो के ज्ञाता है और छः नये छंद के प्रणेता भी।इस मंच का उद्देश्य भी यही हैं कि हम नये नये छंद सीख सके और अपनी लेखनी को धार दे सके।मुख्य अतिथि के रुप में मंच पर आसिन आ. प्रतिभा प्रसाद जी एंव विशिष्ट अतिथि आ.बंसत जमशेदपुरी जी भी अनेक छंदो के ज्ञाता हैं।बंसत जमशेदपुरी जी को हम दोहा किंग के भी नाम से जानते है।हम इन दोनो महारथियों के मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीख सकते है कहते है न कि सीखने की कोई उम्र नही होती,बस हमे सीखने की जज्बा को जगाना है।

मैं नीतू ठाकुर विदूषी जी का आभार व्यक्त करती हूँ कि उन्होंने कलम की सुंगध झाड़खंड मंच को हमेशा सहयोग दिया ताकि हम सब एक साथ एक मंच पे आकर अपनी लेखनी को साझा करे और एक दूसरे से बहुत कुछ सीखते हुये आगे बढ़ते रहे।इस मंच को पालित पोषित करने में निवेदिता श्रीवास्तव जी का अमूल्य योगदान है । वीणा पांडे भारती जी एंव मनीषा सहाय सुमन जी एंव सबीता सिऔह हर्षिता जी का भी काफी सहयोग रहा ।मंच संचालिका किरण कुमारी जी कुशलता से मंच संचालित कर रही है।इन सब से बढ़कर आप सभी है जिनसे मंच सदैव गुलजार रहता है।झाकंती हिय आंगन कविता हम सब की सांझा संकलन बहुत जल्द हमारा हाथो में होगी और फिर बहुत जल्द बाजार मे धूम मचायेगी।सालो भर अपनी लेखनी चलाने वाले या फिर कोई कारण से अपनी लेखनी प्रतिदिन नहीं चला पाये है मैं उन सबके लिए मां शारदे से प्रार्थना करती हूँ कि वे उनकी लेखनी को धार दे ताकि हम सब नये नये कीर्तिमान स्थापित कर सके।आप सबका साथ यूं ही मिलता रहे ,इन्ही आंकाक्षाओं के साथ मैं अपनी शब्दों को विराम देती हूँ।

धन्यवाद।


झारखंड कलम की सुगंध में प्रान्त के अनेक जानेमाने कवि   हैं जिनके मार्गदर्शन में नवांकुरों की लेखनी भी निखरती जा रही है। सभी एक दूसरे का सदैव सहयोग करते हैं यही इस मंच की विशेषता है। आरती जी के मार्गदर्शन में मंच प्रगति पथ पर अग्रसर सर है। उनका कार्य सभी के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है। समय-समय पर होने वाली प्रतियोगिताएँ और कविसम्मेलन साथियों में ऊर्जा का संचार करते रहते हैं। इस मंच को सशक्त बनाने में उपाध्यक्ष निवेदिता श्रीवास्तव 'गार्गी' जी, महासचिव वीणा पांडे 'भारती'जी, सचिव मनिषा सहाय 'सुमन' जी, उपसचिव सबिता सिंह 'हर्षिता' जी, मंच संचालिका किरण कुमारी जी का योगदान अविस्मरणीय है। ऐसे आयोजन भविष्य में भी होते रहेंगे इसका हमें विश्वास है। कलम की सुगंध के सभी मंचों की ओर से इस आयोजन की अनंत बधाई और शुभकामनाएं 💐💐💐💐💐💐💐💐





छायाचित्रों में कैद कुछ अविस्मरणीय क्षण ...




































Friday 25 June 2021

गीत - यह मुमकिन नहीं है : जसवीर सिंह हलधर

आज फेसबुक और व्हाट्सएप पर अनेक सुंदर सुंदर रचनाएं देखने पढ़ने को मिल जाती हैं ऐसे ही गीतकार हलधर के गीतों को पढ़ना उन्हें भीड़  से अलग करता है सुंदर शब्द शिल्प आकर्षक भाव और सरल भाषा के प्रयोग से हलधर जी के गीत अलग सा दृश्य बनाकर अनुपम छटा बिखेरते हैं 

कविवर जसवीर सिंह 'हलधर' जी के इस प्रयास से जुड़ कर आप की भी सुखद अनुभूति का आभास अवश्य होगा ...

- संजय कौशिक 'विज्ञात'





गीत - यह मुमकिन नहीं है

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झूँठ का सच से करूँ व्यापार यह मुमकिन नहीं है ।

मान  लूँ कठिनाइयों से  हार  यह मुमकिन नहीं है ।।


रात मेरी आँख से काजल चुराया चांदनी ने ।

जल गए सपने सुहाने कहर ढाया दामिनी ने ।

सांस अब भी चल रही है , जिंदगी को छल रही है ,

छोड़ दूँ मैं हाथ से पतवार यह मुमकिन नहीं है ।

मान लूँ कठिनाइयों से हार यह मुमकिन नहीं है ।।1


राह का मैं वो मुसाफिर जो कभी  रुकना न जाने ।

काव्य का रस्ता चुना है छोड़ कर सारे ठिकाने ।

खार भी कुछ अनमने हैं ,फूल भी पत्थर बने हैं,

जीत लूँ मैं लोभ का संसार यह मुमकिन नहीं है ।

मान लूँ कठिनाइयों से हार यह मुमकिन नहीं है ।।2


काम की रति भी यहां पल भर नहीं आराम पाती ।

काल की गति भी यहां पर नित नए पैगाम लाती ।

मुड़ रहा हूँ वासना से ,जुड़ रहा हूँ साधना से ,

खुल न पायें चेतना का द्वार यह मुमकिन नहीं है ।

मान लूँ कठिनाइयों से हार यह मुमकिन नहीं है ।।3


चार दिन की रोशनी है इन अँधेरों की डगर में ।

मौत ही पक्की सहेली जन्म से पनपे सफर में ।

प्रश्न का उत्तर न पाया ,घूम सारा विश्व आया ,

गीत में "हलधर" लिखे शृंगार यह मुमकिन नहीं है ।

मान लूँ कठिनाइयों से हार यह मुमकिन नहीं है ।।4


हलधर -9897346173




Thursday 24 June 2021

माहिया छंद - डॉ विजेंद्र पाल शर्मा


 वरिष्ठ कविवर  डॉ. विजेंद्र पाल शर्मा सहारनपुर की सशक्त लेखनी काव्य रस की अनेक विधाओं में पूर्णाधिकार से जम के चलती है इन्हें पढ़ने का और लाइव सुनने का जब-जब सौभाग्य प्राप्त हुआ तब-तब इनके शब्द शिल्प और भावों ने कुछ हटकर आकर्षण की छाप छोड़ी है ऐसे में प्रस्तुत हैं इनकी शशक्त लेखनी से अंकुरित माहिया छंद -- संजय कौशिक 'विज्ञात'

पढ़िए और आप भी आनंद लीजिये ...




क्या उससा कोई है
 फूलों में खुशबू
 क्या खूब पिरोई है

 तितली को रंग दिए
 ऊपर वाले ने
 सब माहिर दंग किए 

मत जी लाचारी में
 श्रम के गहने रख
 तन की अलमारी में

 घूंघट खोलो राधे
 कृष्ण खड़े दर पर
कर नयनों के बांधे

 जो प्रेम पुजारी हैं
 वे ही जीने के
 सच्चे अधिकारी हैं

 हम प्रेम पुजारी हैं
 कंस सामने हो
 तो कृष्ण मुरारी हैं

 चल सूरज बन जाएँ
 खु़द जलकर जग का
 अंधियारा पी जाए्ँ

 दिल भर - भर कर आया
 वह था संग सदा
 मैं देख नहीं पाया

 सुख चाहो जीवन में
 काँटे मत बोना
 औरों के आँगन में

 हम जितना रूठेंगे
 उतने मीठे पल 
हाथों से छूटेंगे 

घूँघट खोलो राधे
कृष्ण खड़े कब से
अपनी साँसें साधे

डॉ विजेंद्र पाल शर्मा 
5 / 3151 न्यू गोपाल नगर 
नुमाइश कैंप
 सहारनपुर 247001
 मोबाइल 941243 5728


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Monday 21 June 2021

माता-पिता श्री को समर्पित वैवाहिक वर्षगाँठ बधाई गीत


गुरुदेव के माता-पिता श्री को समर्पित वैवाहिक वर्षगाँठ बधाई गीत ....*💐💐💐


हर्षित जीवन पुलकित ये मन

इस दिन की हरबार बधाई

हर्ष बसंत करे अभिनंदन 

कोयल की दे तान सुनाई।। 


*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात'*


जीवन का उपहार समर्पण

नेह त्याग विश्वास समेटे

खेल रहे हिय के आँगन में

सात वचन बाँधे नव फेटे

परिणय का दिन जब-जब आता

लाता स्मृतियों की तरुणाई।। 


*नीतू ठाकुर 'विदुषी'*


शुभ दिन पावन हस्त मिलन का

सौरभ पुलकित सबके आँगन

झूम रही ऋतु मृदुल तान पर

सुरभी सुर की लगती पावन

धरती अंबर बाँट रहे यूँ

मोदक मेवे और मिठाई।। 


*सौरभ प्रभात*


मात पिता के साथ रहे जो,

सच में वे होते बड़भागी।

ईश्वर गुरुजन की सेवा मय

पितर चरण सेवा अनुरागी।

बरगद सी शीतल छायाँ में,

ओट हिमालय सी अछनाई।

हर्षित.......................

।। 

*बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ*


तृण प्राणों के आज प्रफुल्लित,

फिर महके ऑंगन स्नेह भरा।

हरी-भरी परिवारिक बगिया,

गौरव वैभव से गेह भरा।

गान मनोहर गाते पंछी,

अब बोले सरगम शहनाई। 


*परमजीत सिंह कोविद*


मिलता रहे आशीष इनका

चाहती "वीणा" ये कमाई

संग इनके ही रहके सदा

इस जीवन में खुशियांँ छाई

घर आँगन में फूल बरसता

मीठी चलती है पुरवाई। 


*पूनम दुबे "वीणा*


मात पिता सम तुल्य न कोई,

वे ही गुरु अरु भाग्य विधाता।

शुभ दिन परिणय का आया है,

जन्मों का हो जीवन नाता।

उर बगिया के वे रखवारे,

पुष्प उँडेले खुशियाँ छाई। 


*दीपिका पाण्डेय 'क्षिर्जा'।*


चित्र बसा कर उर में सुंदर

भाव शब्द को ढूँढ़ रहा है।

कलम कहे धीरे से आकर

पृष्ठों ने कब प्रेम कहा है।

यही कामना आख्या की है  

जीवन में हो नित ऊंचाई।। 


*अनिता सुधीर 'आख्या'*


मिल जाती जब दो आत्माएँ,

सात वचन दोनों ही माने।

बिन बोले  ही सब समझाये,

दोनों पूरक बनकर जानें।।

आज खुशी का दिन आया है,

खुशियाँ बाँटे आज सवाई।। 


*मधुसिंघी*


मात पिता का उपहार हमें,

जीवन दान मिला है सबको ।

प्रेम की प्रतिमा हैं ये सभी ,

देवों  सा स्थान मिला इनको ।।

सात वचन का मान ये सभी,

 जीवन इनका हो सुखदाई ।।


*सरला झा 'संस्कृति'*


ऊँगलिओं का दिया सहारा 

नन्हें पाँव जब  लड़खड़ाए 

हो जाते व्याकुल क्षण भर में 

जब भी हम पर विपदा आए 

बधाई के क्या शब्द लिखूँ 

सोंच मूढ़ मैं हूँ भरमाई ।।


*श्वेता विद्यांसी*


शहनाई के मधुर स्वरों में

मंगल गीत सभी ने गाए

मेंहदी रचे हाथ में कँगन

खनक खनक कर मोद जगाए

उठे पैर पैजनिया छनके

मांग सजी सूरज अरुणाई।।


 *कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'*


संग चले बन चाँद चकोरी 

हर सुख दुख सहते साथ रहे ।

वचन निभाते सातों फेरे 

थामें हाथों में हाथ रहे ।

सुखद अल्पना स्मृति से सज्जित

मन के आँगन में मुस्काई ।।


*इन्द्राणी साहू"साँची"*


आशीषों की झड़ी लगा के

आँगन सुंदर पुष्प खिलाए।

मात-पिता से घर की खुशियाँ

बार-बार ये शुभ दिन आए।

वैवाहिक जीवन सुखमय हो

खुशियाँ ले रहीं अंगड़ाई।


*अनुराधा चौहान'सुधी'*


सुखद सुयोगों की यह वेला

अति सुंदर  और सुपावन है

स्वर्णिम परिदृश्य मनोरम सा

शुभ क्षण यह जग मनभावन है

शाश्वत सूत्र सनातन है पर

प्रथा पुरातन है फलदाई।।


*वंदना सोलंकी'मेधा'*


भोर लालिमा आनंदित हिय

पुष्प कली सह चौक पुराए।

बंदनवार लगा पुरवाई

झूम झूम फिर मंगल गाए।

देख प्रफुल्लित चटका चिड़िया

नयनों ने निज खुशी जताई ।।..


*पूजा शर्मा "सुगन्ध"*


सद्यःस्नाता शुभ्रांगी सी

महके इठलाये कली कली।

आज मिलन की इस बेला में

गूँजे शहनाई गली गली।

मंद मंद सी पुरवाई भी

फिर होकर मगन गुनगुनाई।।


*अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा'*


बंद लिफाफों में आज छिपा 

पग -पग में फिर उपहार मिले ।

बात करे आकाश धरा से 

है अंतर्मन में फूल खिले ।

सुख - दुख के पथ मिलकर चलते 

भर आँचल में खुशियाँ लाई।।


*चमेली कुर्रे 'सुवासिता'*


मात-पिता की ही गोदी में ,

हम तो फूल बने रहते हैं ।

दुख सारा हमको ही दे दो, 

वो तो हम को नित कहते हैं ।

मात-पिता को देखे राधे, 

तब तब ही मन में मचलाई ।


*राधा तिवारी "राधेगोपाल"*






Friday 18 June 2021

जन्मदिवस बधाई नवगीत

 

एक प्रतिष्ठित गीतकार की 

कलम लिखे हर गीत सुहाना

कौशल गुण परिलक्षित होता

भले साधते शिल्प पुराना।। *गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात'* 


उनके शब्दों से महकी है

गीतों की बगिया इक प्यारी

अर्थपूर्ण हैं भाव मनोरम

लाखों में भी दिखती न्यारी

कोयल की तानों सा मीठा 

लगता है उनका हर गाना।। *नीतू ठाकुर 'विदुषी'* 


तलवार चलाते शब्द नए,

सब सीख रहे हो अभिलाषी।

तान मधुर छेड़े मन चंचल,

मुख बोल ठगे हिय मृदुभाषी।

कर्मठ हाथ सजाए लेखन,

सीखे भावों को सहलाना।। *परमजीत सिंह 'कोविद'*



प्रज्ञ कुशल वो शिल्प विवेकी,

रचते नित ही गीत अनोखे।

स्वर माधुर्य समाया इनमें,

छंद बुने निशदिन ही चोखे।

अवलेखा के जादूगर ये, 

बहुत कठिन इनको छू पाना।। *सौरभ प्रभात* 


भाव रचे मुखरित मंजुल से

जैसे कल कल झरना बहता

श्रृंग मेखला से बह आता

राह पथिक की बातें कहता

और ठहर के ऐसे चलता

छेड़े कोई राग गुहाना।।'प्रज्ञा' 


छंद सीख भावों में ढाला

कल्पक भाव शिल्प के ज्ञाता

एकलव्य हो या गुडाकेश

गुरु बिन ज्ञान न कोई पाता

काव्य राह में चलकर भैया

बड़ा कठिन है नाम कमाना।। *कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'* 


छंद शिल्प के माणिक चुनकर

तारापति सम कला दिखाएं।

लगे दिवाकर नीलगगन से

पटल सुशोभित करने आए।

विज्ञ अंश है खान गुणों की

बुनें भाव का ताना बाना।। *पूजा शर्मा "सुगन्ध"* 


डाली -डाली है मतवाली

छेड़ रही कुछ गीत पुराने

अनजानी सी राहें पकड़ी

याद आते है वो जमाने

बिन पंखो के उड़ता है मन

खुश रहने का हुआ बहाना।। *पूनम दुबे "वीणा"* 


हृद नभ पट से लय ताल बजे

भू पन्नें पर शब्द विराजे

अंकुर होते भाव सुहाने

मेघ पुष्प से घन मन साजे

रिमझिम रिमझिम भाव लेखनी

पंछी पाठक चुगते दाना।। *दीपिका पाण्डेय "क्षिर्जा"* 


भाव सजीले झरने बहते,

चंचल मन चलती पुरवाई। 

रात कहे दिन में बदलूँगी,

प्रेमी सूरज है हरजाई। 

कवित्त नए अब रंग बिखेरे,

सुंदर शब्दों युक्त ख़ज़ाना। *कंचन वर्मा ‘’विज्ञांशी’’* 


शब्द-शब्द चमके मोती से,

अर्थ प्राण में रस बरसाते।

कल्पित कानन से चुनकर वे

भाव पुष्प को रहे सजाते।

साधक बनकर करे साधना,

आशा के नित दीप जलाना। *अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'* 


आशाओं के पंख लगाकर

उड़े व्योम में मस्त पवन सा ।

बनी तूलिका शुभ पथ गामी 

कर्म सुवासित शुभ चंदन सा ।

रस छन्दों का दीप जलाकर

नित्य ढूँढते नया ठिकाना ।। *इन्द्राणी साहू"साँची"* 


आनन्दित हो जीवन आगे,

रहो सदा ही खुश होकर के ।

साथ रहे ये कलम आपकी, 

शब्दों में ही तो खोकर के।।

लिखते रहना नित कुछ नूतन,

इस जीवन का खोना पाना।। *राधा तिवारी "राधेगोपाल"* 


छंद ज्ञान भावों का अर्पण ,

बनी लेखनी है नित सावन।

चमक रहा ज्यों आभा मंडल,

सूर्य किरण ज्यों पड़ते पावन।

इतिहास रचे गीत सुहावन ,

छंद विज्ञ बनकर समझाना।। *धनेश्वरी सोनी गुल* 


द्रवित ह्रदय से कल कल बहती

काव्य सरित की निर्मल धारा 

लेखन का लालित्य अनोखा

कौशल सा है एक सितारा 

नित्य सृजन के सुमन खिलाकर 

भाव जगत उपवन महकाना ।। *अमिता श्रीवास्तव 'दीक्षा'* 


मन के कोरे कागज में ही 

   भाव हृदय के लिख लेते है। 

अंतर्मन का मंथन करके 

   अक्षर में सब कह देते है ।

सच राह दिखा कर भटके को 

लेखन से ही पथ दिखलाना।। *चमेली कुर्रे 'सुवासिता'* 


दिन उत्सव का होवे मंगल

सब देवों का वरदान मिले

तन मन से सब कारज हों शुभ

नित जीवन को उत्थान मिले

हो सुख का उर उल्लास सदा 

दुख से चित्त रहे अनजाना ।। *गीतांजलि 'विधायनी'* 


निर्मल है  वाणी ओजस्वी 

प्रखर शब्द सूर्य की भांति 

नित रागिणी हैं बिम्ब गाते 

गीतों की गरिमामयी पांति 

जिनके  लेखन के कौशल का 

आज हुआ है मंच दिवाना l *श्वेता विद्यांसी* 


आशाओं के दामन में कुछ,

फूल खिलाये हैं वर्णों के।

बगिया का माली आया है,

नित श्रृंगार करे पर्णों के ।।

तराशता हर डाली डाली ,

रूप सँवार हर्ष को पाना  ।। *सरला झा 'संस्कृति'* 


भावों की अठखेली क्षण क्षण 

अंतस में करती हंगामा

शब्दों का संदूक लिए फिर

कौशलता पहनाया जामा

शुभ अवसर यह बार बार हो

ताक धिना धिन करते जाना।। *अनिता सुधीर 'आख्या'* 


पुलकित भावों के मोती से,

गूँथें सुरभित सुन्दर माला ‌।

पटल सुशोभित होता रहता,

कौशलजी का सृजन निराला।

देते हम आपको बधाई,

जग में बन दीप जगमगाना।। *धनेश्वरी देवांगन 'धरा'* 

Tuesday 15 June 2021

आल्हा शतकवीर कार्यक्रम हुआ सम्पन्न ...


छंदशाला पर आल्हा  छंद शतकवीर सम्मान समारोह संपन्न 


वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप  के जन्म जयंती के शुभ दिवस पर आल्हा  छंद   शतकवीर सम्मान समारोह का आयोजन हर्ष उल्लास के साथ संपन्न हुआ । इस आयोजन  में  संस्थापक कलम की सुगंध  संजय कौशिक विज्ञात,  महासचिव अर्णव कलश एसोसिएशन- डाॅ अनिता भारद्वाज अर्णव, मंच संचालिका अनिता मंदिलवार सपना, अध्यक्ष- बाबूलाल शर्मा विज्ञ, मुख्य अतिथि और मीडिया प्रभारी - नीतू ठाकुर विदुषी, विशिष्ट अतिथि- इन्द्राणी साहू साँची, अर्चना पाठक निरन्तर 

की उपस्थिति में संपन्न हुआ । सम्मान समारोह का उद्घाटन  संस्थापक गुरूदेव संजय कौशिक विज्ञात जी द्वारा किया गया । गुरूदेव विज्ञात जी ने अपने संबोधन में सबको बधाई देते हुए कहा की कलम की सुगंध  मंच पर इसके पहले ग्यारह  विधाओं पर शतकवीर कार्यक्रम संपन्न हो चुके हैं  । दो संचालित हैं  । ऐसे आयोजन सृजनकारों को सृजन के लिए ऊर्जा प्रदान

 करते हैं  । कलम की सुगंध छंदशाला की मुख्य  संचालिका  ने जानकारी दी कि मंच पर 51 शतकवीर सम्मान कुसुम कोठारी प्रज्ञा, परमजीत सिंह कोविद, डॉ एनके सेठी,गुलशन कुमार साहसी, नीतू ठाकुर विदुषी,बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ,डॉ ओमकार साहू मृदुल, आरती श्रीवास्तव विपुला, प्रवीण कुमार ठाकुर,धनेश्वरी देवांगन धरा, गीता विश्वकर्मा नेह,कृष्ण मोहन निगम, इंदु साहू,इन्द्राणी साहू सांँची,डॉ दीक्षा चौबे, पुष्पा गुप्ता प्रांजलि ,डॉ मीता अग्रवाल मधुर, अनीता सुधीर आख्या, चमेली कुर्रे सुवासिता,राधा तिवारी "राधेगोपाल" सुधा देवांगन शुचि ,धनेश्वरी सोनी गुल,अर्चना पाठक निरंतर ,संतोष कुमार प्रजापति माधव, डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल ,अनिता मंदिलवार सपना,कन्हैया लाल श्रीवास, सरोज दुबे विधा,गीतांजलि विधायिनी, गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न,केवरा यदु मीरा, श्रद्धान्जलि शुक्ला"अंजन",राजीव देवांगन 'प्रेम'"*मधु सिंघी, सुरेश कुमार देवांगन,अलका जैन आनंदी,अनुराधा चौहान, आरती मेहर रति, लीना पटेल दिव्य, इन्दिरा गुप्ता यथार्थ, अनीता सिंह अनु, कंचन वर्मा विज्ञांशी, प्रियंका गुप्ता, सुशीला साहू विद्या, अभिलाषा चौहान सुज्ञ,गुलशन कुमार साहसी, अजय पटनायक मनोज पुरोहित, हेमलता शर्मा मनस्विनी, सौरभ प्रभात, संगीता राजपूत श्यामा, कंचन वर्मा 

विज्ञांशी, केवरा यदु मीरा, सुशीला साहू विद्या, अलका जैन आनंदी,भावना शिवहरे  को और  तीन श्रेष्ठ समीक्षक सम्मान सरस्वती, वीणापाणि और हंसवाहिनी समीक्षक समूह के प्रमुख समीक्षक बाबूलाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ', इंद्राणी साहू साँची और अर्चना पाठक निरन्तर  को साथ ही 25 सहसमीक्षक सम्मान और  मंच संचालक सम्मान अनिता मंदिलवार सपना और श्रेष्ठ प्रचारक सम्मान नीतू ठाकुर विदुषी,  मंच सह संचालक राधा तिवारी राधे गोपाल  को सम्मान से सम्मानित किया गया  ।  सृजन करने वाले भारत के साथ विदेश के रचनाकार भी शामिल हुए ।


 


इस अवसर पर सभी का आभार व्यक्त करते हुए गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने कहा...

लगभग एक महीने तक दिन रात का सतत श्रम आपने किया है नमन आप सही सभी आल्हा शतकवीरों को नमन करता हूँ आप सभी को, सादर प्रणाम 🙏🙏🙏
मुझे हर्ष है इसबार लगभग 45 आल्हा शतकवीर बने हैं सभी को आत्मीय बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐💐

साथ ही मंच प्रमुख संचालक आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी को अनंत बधाई सफल आयोजन लगातार तृतीय शतकवीर कार्यक्रम के आयोजन के लिए 💐💐💐

सह संचालिका महोदया आदरणीया राधा तिवारी राधेगोपाल जी को हार्दिक बधाई 💐💐💐 समय - समय पर मंच को मार्गदर्शित करती रही हैं प्रमुख मंच संचालक को अच्छे से सहयोग कर दिखाया है। सभी जिम्मेदारियों को समय पर निभाया है। पुनः हार्दिक बधाई 💐💐💐

प्रमुख समीक्षक समूह पावन त्रिवेणी धारा के मुख्य समीक्षक
आदरणीय बाबूलाल शर्मा विज्ञ जी बहुत सुंदर समीक्षा दी है पूरे ही कार्यक्रम में सबसे बड़ी उपलब्धि आप अपने जैसे समीक्षक तैयार भी कर रहे हैं आपको अनंत बधाई आपके समीक्षक समूह सहित 💐💐💐💐

आदरणीया इंद्राणी साहू साँची जी आपकी भी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है बहुत सुंदर समीक्षा दी गई है आपके समीक्षक समूह द्वारा विश्वास है आपके समीक्षक समूह से भी कुछ अच्छे समीक्षक निकल सकें आपको अनंत बधाई आपके समीक्षक समूह सहित 💐💐💐💐

तीनों शतकवीर कार्यक्रम के अनुपम प्रयोग
आदरणीया अनिता सुधीर आख्या जी
आदरणीया नीतू ठाकुर विदुषी जी
आदरणीया अर्चना पाठक निरंतर जी
आप तीनों की समीक्षा भी प्रशंसनीय रही है नमन आप तीनों को विश्वास है आपके समूह से भी कुछ अच्छे समीक्षक देखने को मिलेंगे आप तीनों को अनंत बधाई आपके समीक्षक समूह सहित 💐💐💐💐

निवेदन सहयोगी समीक्षक की भूमिका शिल्प की गहराई सिखाती है कथन को सुदृढ बनाती है अतः सभी इस भूमिका में स्वयं को आगे लाएं ताकि लेखनी सशक्त होकर निखरे 🙏🙏🙏

मीडिया प्रभारी आदरणीया नीतू ठाकुर विदुषी जी प्रत्येक कार्यक्रम में अपनी भूमिका को आदर्श रूप से निभाती आई हैं जिससे मंच पर शतकवीर प्रतिभागिता का ग्राफ ऊपर चढ़ता आ रहा है आगे भी इस कार्य को और सुंदर तथा आकर्षक बने इसमें आपके श्रेष्ठ योगदान की अपेक्षा रहेगी सादर 💐💐💐💐

अंत में आप सभी सतत साहित्यिक साधकों को सादर नमन 🙏🙏🙏

संजय कौशिक 'विज्ञात'



सादर आभार

🙏🏻🌹🤟🎸
आ  विज्ञात  सरजी और  पटल के सभी समीक्षक कार्यकर्ता ओर स्नेही स्वजन।
आभार धन्यवाद सब शब्द व्यर्थ है आपके स्नेहिल  व्यवहार ओर  सशक्त सानिध्य के आगे ....मैं हू ना ...वाक्य का सही पर्याय है आप सब ॥साधुवाद
नमन , वंदन।अभिनंदन सब छोटे  है आप सब के  दृढ़ता भरे साथ।और सतत  मेहनत  के आगे ।
उस पर मेरे  जैसा असाहित्यिक इंसान ।
जिसे सिखाना  पत्थर  पर लकीर  खीचने जैसा था ।
पर वो खीच दी  आप सब ने मिल कर ।पुनः आभारी हू ।
इस सम्मान का मुझ से अधिक आ विज्ञात जी का है । जब भी समय असमय उनसे कुछ भी पूछा उन्होने मुझे उसी समय  समझाया बताया । वंदन सर
मैं अपना सम्मान पत्र आ  विज्ञात जी को समर्पित करती हू ।
plz सर   इसे स्वीकर कर मुझे अनुग्रहीत करे ।
धन्यवाद पुनः आभार

*डा इन्दिरा गुप्ता 'यथार्थ'*

*आल्हा शतकवीर की यात्रा*

आल्हा शतकवीर आरंभ होने जा रहा था हम भाग लेना चाहते थे लेकिन पहले दो शतकवीर नवगीत तथा उल्लाला शतकवीर के बीच से ही हटना पड़ा ,कारण अस्वस्थ होना ।
तभी गीतांजलि जी ने कहा आल्हा शतकवीर में भाग ले रही हो, हमने कहा मन तो हैं लेकिन लगता नहीं है कि नियमित रूप से लिख पाएगे । गीतांजलि जी ने प्रेरित किया और आज पहला शतकवीर प्राप्त किया ।
संतुष्टि हैं कि एक कार्य तो ऐसा हुआ जो हम नियम से कर पाये ।

बीच बीच में ऐसा लगा कि इस बार भी नहीं हो सकेगा शायद लेकिन समीक्षकों की निस्वार्थ भावना हमेशा लिखने के लिए विवश करती थी ।
बीच में कुछ दिन आल्हा छंद ना लिखने के कारण पीछे रह गये ।
सपना बहन ने कहा कि कल  सभी को समय पर  100 आल्हा
छंद भेजने हैं हमारे 16 छंद बिना समीक्षा के रह गये थे। चमेली बहन को हमने रात के  लगभग नौ बजे कहा कि क्या वे 16 छंदों की समीक्षा कर देगी और उन्होंने आधे घंटे के भीतर ही समीक्षा करके दे दी ।
सच में ये हदय को सुख देने वाला अनुभव है। आल्हा शतकवीर की यात्रा बहुत कुछ सीख दे गयी ।
आदरणीय गुरूदेव जो सदैव पटल पर एक नयी उर्जा लेकर आते हैं उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।

कलम की सुगंध छंदशाला के मंच को प्रणाम जो हम जैसे कोयले को हीरा बना रहे हैं

*संगीता राजपूत "श्यामा"*

आल्हा छंद शतकवीर यात्रा
कलम की सुगंध छंदशाला एक जीवंत व ज्ञानवर्धक साहित्यिक समूह है।इस समूह से जुड़ना बड़े ही सौभाग्य की बात है।अपनी व्यस्तता के चलते मैं बहुत अधिक सक्रिय नहीं रह पाती परंतु इस बार आल्हा छंद शतकवीर लिखने का मोह संवरण नहीं कर पाई। शुरुआत में लगा कैसे यह संभव हो पाएगा पर पावन मंच का वातावरण स्वतः प्रेरणा देता है।समय -समय पर आदरणीय विज्ञात गुरुदेव व मंच संचालिका आदरणीया अनीता मंदिलवार जी का उत्साह वर्धन मिलता रहा जिससे यह यात्रा सुगम हो पाई।मैं उनका आत्मीय आभार प्रकट करती हूँ।🌷🙏🌷
तीनों समीक्षक समूह और उनके साथ आदरणीय विज्ञ भाई जी की श्रम साध्य सटीक समीक्षा ने मन मोह लिया।कुशल निपुण समीक्षकों के सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला।उन सबको बहुत बहुत साधुवाद।🙏🙏
मंच संचालिका आदरणीया अनीता मंदिलवार जी ने पूरे समय व्यवस्था व अनुशासन की आदर्श मिसाल प्रस्तुत की।मेरी आल्हा छंद लिखने की यात्रा बहुत ही आनंदमयी व ज्ञानवर्धक रही।अब तो एक और शतकवीर लिखने का साहस जग गया है।😊
अंत में पूरे मंच का हार्दिक आत्मीय आभार प्रकट करती हूँ। एक बार फिर सभी शतकवीरों को बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं!🌹🌹🙏🌹🌹

*---अनीता सिंह"अनु"*

आल्हा शतकवीर के अनुभव

सर्वप्रथम आ0 गुरु जी और सभी विद्वजन को सादर अभिवादन ।
ये सम्मान मैं गुरु जी और पटल को समर्पित करती हूँ।
ये शतकवीर पूरा होना असंभव लग रहा था । इसका पूरा होना किसी रोमांच से कम नहीं है ।कुछ घरेलू व्यस्तता के कारण आरम्भ में अपना नाम नही दिया था,पर न लिखने की बेचैनी थी।
स्वतंत्रता आंदोलन विषय का चुनाव इसी लिये किया था कि ये शतकवीर से आगे कई शतकवीर के द्वार खोलेगा ।
ये केवल प्रतिदिन के चार छन्द नही अपितु शोध का विषय था ।
एक बार फिर से अपने इतिहास को पढ़ रहे थे ,उसमें कभी क्षोभ कभी खिन्नता और उस काल की पीड़ा का ,
उनके जज्बातों को आत्मसात कर रहे थे।
मेरा पूरा कार्य नही हो पाया था ,आज अंतिम दिन रात में जग कर जब पूरा किया तो इसका अहसास शब्दों में
बयान कर पाना मुश्किल हैं ।
वैसे तो कई शतकवीर हुए हैं पर इस शतकवीर की अनुभूति कुछ अलग है
*गाल लगा*  का अद्भुत प्रयोग इतिहास के नाम के साथ
अविस्मरणीय रहा ।
अभी *उन्नीस सौ पाँच* में कैसे प्रयोग करें कृपया बताएं ।
आ0 गुरुदेव जी का और पटल का आभार है जो इस शतकवीर की ऐसी रूपरेखा बना कर एक नई विधा को
जड़ाऊ शिल्प के साथ इतिहास के झरोखे तक ले गए ।
आप सबके आशीर्वाद से इसे और आगे ले जाना चाहूंगी
खंड काव्य तक ।
जिस मानसिक हालात और समय व्यस्तता में लिखा मैं उससे संतुष्ट नही हूँ ,पर आगे अपनी भूमिका से न्याय  करने का प्रयास करेंगे।
भावुक हूँ मैं इस समय ।
सादर
क्षमा सहित

और एक बात कहना चाहूंगी कि जब यहाँ समीक्षा का समय होता था तो वहाँ सुबह के 6 बजे होते थे मेरी छोटी सी गुड़िया  मेरे पास होती थी तो उल्लाला और आल्हा छन्द उसने भी  सुना और 😄
और समीक्षा की
सादर

*अनिता सुधीर 'आख्या'*

बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव 🙏
इस पटल से बहुत कुछ सीखने को मिला है या ये कहें जो कुछ सीखा वो आपके मार्गदर्शन का ही परिणाम है तो अतिश्योक्ति नही होगी। कुछ छंद लिख लेना अलग बात है पर 100 बंध लिखते लिखते शिल्प अच्छे से समझ आ जाता है। शतकवीर लंबा आयोजन है पर सबको हमेशा ऊर्जावान रखते हैं और लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। हमारे लिए गर्व कि बात है कि हम कलम की सुगंध का हिस्सा हैं और आप हमारे गुरुदेव 🙏
सपना जी का संचालन प्रशंसनीय है। राधे जी से पटल पर रौनक बनी रहती है और उनकी सक्रियता सब में ऊर्जा भर देती है।
शर्मा सर, साँची जी, अर्चना जी इनके अथक प्रयासों को नमन 🙏
हर विधा पर सभी सह समीक्षक बहुत ही मेहनत करते हैं और अच्छे से अच्छी समीक्षा देने का प्रयास करते हैं ...किसी समीक्षक की अनुपस्थिति में अतिरिक्त श्रम करते हैं। एक दूसरे का मार्गदर्शन करते हैं।उन सभी से बहुत प्रेरणा मिलती है।
यह पटल एक परिवार की तरह है जहाँ सब एक दूसरे की मदत करते हैं।
कलम की सुगंध इसी तरह निरंतर अपने प्रयासों से साहित्य की सेवा करते हुए अपनी सुगंध चारों ओर फैलाये यही ईश्वर से प्रार्थना 🙏
स्नेहाशीष बनाये रखियेगा गुरुदेव 🙏

*नीतू ठाकुर 'विदुषी'*

एक अनोखा सफ़र,’आल्हा सफ़र ‘💐💐💐
प्रथम उल्लाला शतकवीर समाप्त हुआ। सभी को देख कर बहुत ख़ुशी का एहसास हुआ। सभी को बधाई देते हुए मैंने कहा की ईश्वर करे की मुझ में भी लगन आए और मैं भी शतकवीर बनूँ। तभी आदरणीय गुरु जी ने मुझे उल्लाला शतकवीर समूह का हिस्सा बनाया। उसी टाइम लॉक्डाउन भी हो गया तो कार्यक्षेत्र का समय लेखन कार्य को मिल गया। उल्लाला शतकवीर से आल्हा शतकवीर के लिए उत्साह और लगन मिली। शुरू में तो लगा की मैं तो वीर छंद लिख ही नहीं सकती। लेकिन गुरु जी ओडीओ सुन कर जोश आ गया फिर पन्नाधाय पर लिखा तो अनिता जी से बहुत सुंदर समीक्षा मिली। दो दिन देरी से शुरू किया लेकिन शतकवीर की दूसरी दौड़ का मैं हिस्सा थी। फिर गुरु जी का संतप्त नारी का अभिशाप से खंड काव्य की प्रेरणा मिली। इसी बीच गुरु जी के मनहरन की एक पंक्ति ‘अम्बा जंगलों के बीच,भोग रही नीच शाप ‘ से मनहरन जैसे आभूषण से अपने खंड काव्य को सजाने की प्रेरणा मिली। पहली बार मैंने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर कुछ लिखने की कोशिश की।पृथ्वी राज चौहान के अध्ययन के सफ़र में एक बार फिर बचपन वाली दुनिया में पहुँचाया। यानी मैं फिर से इतिहास की कक्षा में थी लेकिन इस बार इतिहास की कक्षा का हिंदी की कक्षा में समावेश हुआ। मेरा आज तक तक सबसे बेहतरीन सफ़र है मेरा आल्हा सफ़र। आदरणीय गुरु देव जी और समूह के सभी गुणीजनों को मेरा हार्दिक नमन जो मेरी लेखनी को भिन्न भिन्न दिशाओं में अग्रसर कर रहें हैं ❤️❤️❤️😊😊😊🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻❤️❤️🙏🏻🙏🏻

*कंचन वर्मा ‘विज्ञांशी’*

*मेरी आल्हा शतकवीर  काव्य यात्रा*

सर्वप्रथम मैं पावन पटल *कलम की सुगंध छंदशाला* को नमन करती हूंँ एवं परम आदरणीय गुरूजी विज्ञात सर जी को सादर नमन करती हूंँ। आदरणीया  अनिता मंदिलवार दीदी जी को मैं सादर धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करती हूंँ, कि उन्होंने इस पावन पटल पर मुझे जोड़ा एवं आल्हा छंद शतकवीर पर कार्य करने की प्रेरणा मुझे दिया।
आल्हा छंद मेरा प्रिय छंद है इसमें लिखने का शौक मुझे शुरू से था। मैं पटेल के सभी गुरुजनों सभी समीक्षक साथियों को सहृदय आभार व्यक्त करती हूंँ कि उन्होंने अपने कीमती अमूल्य समय निकाल कर हम छंद साधकों के छंदों को समीक्षा करके उसे परिमार्जित किया और हमें अपनी त्रुटियों से अवगत करा कर सही मार्गदर्शन दिया है।  आल्हा छंद में ऐसे बहुत सारे विधान हैं जिसे हमने पहली बार सीखा है।  अभी तक हमने कोई भी दो त्रिकल एक साथ करने का प्रावधान जाना था  लेकिन इसमें हमने सीखा कि त्रिकल को भी गेयता के आधार पर लिखा जाता है जैसे *गाल लगा* साथ ही अपने लेखन विषय की पूरी गहनता से अध्ययन करने का मौका मिला निश्चित ही इसमें, हमारा ज्ञान बढ़ा है। यह मेरे लिए बहुत ही सार्थक रहा है और इसके लिए मैं सहृदय आभार व्यक्त करती हूंँ🙏🏻

*लीशा पटेल दिव्य, रायगढ़*

माँ वीणा पाणी को वंदन🙏 गुरुदेव को नमन🙏
आल्हा छंद पर शतकवीर बनने का नहीं, बनाने का श्रेय आदरणीय गुरुदेव को देती हूँ, जिनकी वाणी के ओज ने हमें लिखने का ओज दिया।
दो शतकवीर लिखने के बाद घर की व्यस्तता और आँखों की परेशानी की वज़ह से सोचा था अब काफी दिन लेखन से दूर रह आँखों को विश्राम दूंगी ,पर कायम नही रह पाई , गुरुदेव ने शतक वीर से पहले हमें आल्हा के बारे में जानकारी दी थी और हमने एक दो नवगीत भी आल्हा पर लिख दिये थे।
तब तक सोचा नहींं था कि आल्हा पर शतक वीर का आयोजन होगा ।
आल्हा पर खंडों काव्य की रूपरेखा बन रही थी ,और आल्हा मुझे गुरुदेव के जादुई शब्दों से इतना आकर्षित कर रहा था मैंने भी कुछ आल्हा लिखें बस बीच में ही आल्हा शतक वीर की योजना आई और विपरित परिस्थितियों में भी लेखन शुरू किया ,
समीक्षा का कार्य इतना रोमांचक रहता था कि बयान नहीं कर सकती समीक्षा के दौरान बहुत कुछ सीखने मिला।
गुरुदेव की पैनी दृष्टि हर समीक्षक पर थी ,बीच बीच में कई दिशानिर्देश मिले,जो और अच्छा करने को प्रेरित करती थी ।
और समीक्षा के बाद आधा घंटा जमकर खिंचाई एक दूसरे की,मस्ती, सहयोग तो देखने लायक था एक दूसरे का जैसे संयुक्त परिवार में विवाह होता था तो कैसे सभी मिलजुल कर हँसी मजाक में बड़े से बड़ा काम कर जाते हो ,ठीक वैसी ही अनुभूति थी।
कुल मिलाकर एक सुखद समय।
साथ ही शतकवीर बनने का अदम्य आनंद।
सभी संचालक वर्ग और सभी समीक्षक वर्ग का हृदय से आभार।
सभी शतकवीरों को आत्मीय शुभकामनाएं और बधाई।

*कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'*

सर्वप्रथम आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात जी को बहुत बहुत साधुवाद जो इतना सुंदर उपक्रम आप चला रहें हैं।इस तरह की साहित्य की सेवा सचमुच अद्भुत है।आपके नम्रता की तो मैं पहले से कायल थी । कलम की सुगंध छंदशाला से जुड़ने के बाद मुझे एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही है। लगातार नम्रतापूर्वक कुछ नया सीखना और सिखाना इस समूह की विशेषता है। सोने पे सुहागा त्रिवेणी संगम के रूप में हंसवाहिनी समूह,वीणापाणि समूह और सरस्वती समूह के सभी  सहयोगी समीक्षक बड़े स्नेह के साथ समझाते हैं। यहाँ सभी एक से बढ़कर एक साहित्यकार हैं। आदरणीय विज्ञात जी और विज्ञ जी की  लेखन शैली अद्भुत है। काफी कुछ सीखने को मिलता है। आप लोगों के सान्निध्य में विशेष रूप से आल्हा /वीर छंद में खंड काव्य लिखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है।आल्हा शतकवीर की यात्रा अविस्मरणीय रहेगी। यह मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।सखी अनिता मंदिलवार सपना जी की मंच पर लगातार सक्रियता ,स्नेह ,अनुशासन बहुत कुछ सिखा देता है।नीतू ठाकुर विदूषी,राधा तिवारी जी  के  स्नेह की विशेष आभारी हूँ।

*मधुसिंघी (नागपुर)*

कलम की सुगंध छंद शाला मंच को नमन करती हूँ परम आदरणीय गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी को नमन करती हूँ। मंच संचालिका अनिता मंदिलवार जी के प्रोत्साहन से ही मैं यहाँ तक पहुँच पाई। उन्होंने सरस्वती टीम के मुख्य समीक्षक के लिए मुझे नामित किया और एक जिम्मेदारी सौंपी ।
प्रारंभ में मुझे भय था परंतु समीक्षा समय मेरे सह समीक्षक साथी गण  का प्रथम दिवस ही इतना अच्छा सहयोग मिला कि मैं बता नहीं सकती ,मेरा पूरा भय जाता रहा। इस सरस्वती टीम में आदरणीया चमेली कुर्रे सुवासिता जी, आदरणीया अनीता सुधीर जी, आदरणीया कुसुम कोठारी जी, आदरणीया गीतांजलि विधायनी जी, आदरणीया कंचन वर्मा विज्ञांशी जी, आ.परमजीत सिंह कल्लूरी कोविद जी, आ.गुलशन कुमार साहसी जी ,डॉक्टर सीमा अवस्थी जी, आ.मीता अग्रवाल जी ,आ.महेंद्र जी आप सभी का सहयोग अतुलनीय रहा। मैंने कल्पना भी नहीं की थी उससे भी ज्यादा आप लोगों ने सहयोग किया और किसी विषम परिस्थिति के लिए भी आप तुरंत उपस्थित रहे मैं आप सभी को नमन करती हूँ और आपके सहयोग की तहे दिल से सराहना करती हूँ।ऐसे ही आप सभी का सहयोग हमेशा मिलता रहे और बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ। समय का पता ही नहीं चला हँसते खेलते समीक्षा संपन्न हो ‌गई और शतकवीर को अंजाम तक पहुँचा दिया।
मैंने आल्हा छंद शतकवीर के लिए महाराणा प्रताप विषय का चयन किया।  यह व्यक्तित्व मेरे लिए एक आदर्श है मेरे मन में उनके लिए एक विशिष्ट स्थान है उनका जीवन चरित्र मुझे आकर्षित करता है  शतकवीर होने के बाद भी मेरी तृप्ति नहीं हुई और मैं आगे और लिखने का प्रयास कर रही हूँ।
हमेशा याद रखूँगी यह सफर ,कुछ समीकरण बनते हैं तो कुछ अच्छा होता है हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहा ।आल्हा में भी कुछ नए प्रयोग किए गए ।त्रिकल का प्रयोग *गाल लगा* का अनूठा रहा इससे लय प्रवाहित होती है और लेखन भी बहुत सुंदर लगने लगता है ।
सबकी रचनाओं की समीक्षा करते करते हमारी रचनाएँ खुद ही  सुधरने लगती है और फिर गलतियाँ कम होने लगती हैं। कलम की सुगंध छंद शाला मंच का आभार व्यक्त करती हूँ जिसकी वजह से ही मैं इसका हिस्सा बन पाई और मैंने छंदों के विषय में सीख पा रही हूँ।

वीणापाणि समूह के मुख्य समीक्षक आदरणीय बाबूलाल शर्मा जी का हृदय की गहराईयों से आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने ढाल बनकर हमेशा संरक्षण दिया और मार्ग प्रशस्त किया, उन्हेंं नमन करती हूँ ।जाने अनजाने यदि कभी मैंने दिल दुखाया होगा तो इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
हंस वाहिनी समूह की मुख्य  समीक्षक इण्द्राणी साहू साँची जी और आ. नीतू ठाकुर विदुषी जी का आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने मुझे मार्गदर्शन किया।

*सभी शतकवीरों को हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ।*

धन्यवाद

*अर्चना पाठक 'निरंतर'*
मुख्य समीक्षक (सरस्वती समूह)

🙏🏼🙏🏼💐🙏🏼🙏🏼

कोटि नमन गुरुदेव!

इस बार का आयोजन अत्यंत सुंदर रहा। विषय मनोनीत हो तो सबकी लेखनी और निखर उठती है।

मात्र एक माह में ४५ उत्कृष्ट खण्ड काव्यों का सफल सृजन कदाचित किसी अन्य मंच पर न हुआ होगा।

सब साथियों का निरंतर सहयोग रहा। सब समीक्षकों का सतत उत्साह भी। मंच संचालकों का अथक परिश्रम और धैर्य सराहनीय है।

किंतु सर्वोपरि सत्य तो यह है कि आपके मार्गदर्शन से ही सब सम्भव हुआ है। 🙏🏼

*गीतांजलि, अमेरिका*

आदरणीय गुरुदेव को कोटिश नमन🙏 सभी विद्वजनों का सादर वंदन🙏
सभी साथियों को हार्दिक बधाई ।आल्हा शतकवीर लिखने से पहले मन में डर था कि कैसे लिखेंगे ,पर आप सबके सहयोग से इस आयोजन में अत्यंत आनंद आया।सभी समीक्षकों को धन्यवाद जिन्होंने अथक परिश्रम से हमारी रचनाओं की समीक्षा की।

*अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'*

*आल्हा शतकवीर के अनुभव...*

सर्वप्रथम मैं
आ. विज्ञात गुरुदेव जी
आ. विज्ञ भैया जी
आ. सपना दीदी जी
आ. राधा तिवारी राधे गोपाल दीदी जी
और तीनों समीक्षक समूह के सदस्यों को सादर नमन करती हूँ...
🌹🙏🌹
और हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद प्रेषित करती हूँ...

और मैं अपने इस *सम्मान पत्र* को *आ.संजय कौशिक विज्ञात* गुरुदेव जी को समर्पित करती हूँ ।

जब आल्हा शतकवीर कार्यक्रम की घोषणा की गई थी तो मैं बहुत खुश हुई थी पर जैसे ही विषय के लिए नाम सूचीबद्ध किए मैं 13/05/21 को  एक बजे नाम सूचीबद्ध कर दी पर अंतस से बहुत डरी हुई थी सोच-विचार करने के बाद *गुण्डाधुर* विषय पर आल्हा छंद लिखना सुनिश्चित की 16/05/21 को पूरी रात मैं नहीं सोई और 17/05/21 को सुबह छः बजे से बिना चाय-नाश्ता किये पेन पकड़ कर बैठी रही इसी बीच आ. संजय कौशिक विज्ञात गुरुदेव जी को अपने विषय अवगत करते हुए बोली कि गुरुदेव जी मैं *गुण्डाधुर* विषय पर लिख रही हूँ । पर मैं मुख्य पटल में मैं डर से विषय के नाम नहीं लिखी क्यों कि मैं अपने आप को टटोल रही थी कि मैं सौ आल्हा छंद लिख पाऊंगी कि नहीं ।
      इस तरह से दोपहर के 2:25 में *आ. प्रियंका गुप्ता दीदी जी* विषय -- गुण्डाधुर लिख दी देख कर मैं बहुत रोई क्योंकि मैं अंदर से हार गई थी और अपनी गलती की सजा स्वयं पर गुस्सा होते हुए  मैं अपना मनपसंद विषय *गुण्डाधुर* को छोड़  दी और आल्हा छंद नहीं लिखना है ये मन बना ली थी पर *आ. विज्ञात गुरु देव जी* के सलाह पर 2:27 मिनट में मैं  *अश्वमेघ पर लवकुश युद्ध* विषय में अपना नाम लिख तो दी पर इनके बारे कुछ भी नहीं जानती थी और न ही किसी प्रकार के कोई पुस्तक था मेरे पास पर गुरुदेव जी बहुत ही प्यार से समझाते हुए बोले कि घटना क्रम को क्रम से लिखते हुये और *अतिशयोक्ति अलंकार* का प्रयोग करते हुए चलो और मैं गुरदेव जी के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से अपने विचार में *अतिशयोक्ति अलंकार* का प्रयोग करते हुए 24 आल्हा छंद लिख ली पर मन में डर था ही कहीं गलत तो नहीं लिख रही हूँ मैं ये सोच कर डर रही थी जैसे ही कलम की सुगंध छंद शाला समूह में *आ. विज्ञात गुरु देव जी* मेरी आल्हा छंद पढ़ कर मेरी प्रशंसा किए जिसे सुन कर मैं और मेरी लेखनी फूले नहीं समाये और मन मोरनी बन कर पूरा दिन चहकती रही और मेरी लेखनी भी दौड़ने लग गई।
      इस तरह से मैं गुरुदेव जी के मार्गदर्शन और आप सभी के आशीर्वाद से *विषय -अश्वमेघ पर लवकुश युद्ध* में
*गाल लगा और अतिशयोक्ति अलंकार*  का प्रयोग करते हुए सौ आल्हा छंद कब पूरा लिख ली पता ही नहीं चला । आल्हा छंद में शतकवीर की यात्रा यादगार रहा और सदा रहेगा क्योंकि *डर के सामने जीत है*

     और हाँ... *आ. कुसुम कोठारी दीदी जी* को हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद कहना चाहूंगी क्यों कि उन्हें अंतिम दिवस तक मैं परेशान करती रही ।
*आ. परमजीत सिंह कोविद भैया जी* को बहुत बहुत धन्यवाद लवकुश लीला भाग एक, दो और तीन देने के लिए।
सरस्वती समूह के सभी सदस्यों को आभार व्यक्त करती हूँ ।

पुनः मैं आ.विज्ञात गुरुदेव जी के श्रीचरणों को प्रणाम करते हुए साधुवाद कहती हूँ।
आप सभी को धन्यवाद
        🌹🙏🌹
*✍️चमेली कुर्रे 'सुवासिता'*

*आल्हा छंद पर शतकवीर यात्रा*

गुरुदेव जी को कोटि-कोटि प्रणाम🙏🙏 सभी समीक्षक गण एवं संचालिका दीदी सब को नमन वंदन अभिनंदन🙏
आल्हा शतकवीर सुखद यात्रा की सोच मात्र से ही रोमांचित हो जाती हूं ।मैंने *उल्लाला शतकवीर* भी पूरा किया था ,दूसरी उल्लाला भेद -1 महामारी से ग्रस्त पारिवारिक व्यस्तता के कारण पूरा नहीं कर सकी। 20 ही छंद  लिख  पायी थी,,,,इसका अफसोस अब तक है ।
आल्हा छंद मैंने *जोधाबाई* पर पूरा किया है। 50 छंद के बाद मैं विषय बदलना चाह रही थी पर *अनीता सपना दीदी* ने कहा *गुरुदेव जी* भी चाहते हैं कि आप इस विषय पर लिखें शतक वीर बने। तभी मैंने निश्चय किया कि एक ही विषय पर आगे लिखूंगी। हर बार अलग अलग आदरणीय समीक्षक मिले पर समीक्षा का मापदंड सभी में एक सा,,,, सच में बड़ा आश्चर्य,,, साथ बैठकर भी 5 लोग एक तरह की समीक्षा शायद ही कर पाते हो🙏
मैं खुद को इस परिवार में पाकर धन्य मानती हूं ।पहले की अपेक्षा अब गलतियां कम होती  हैं या नहीं भी होते हैं 🙏धीरे-धीरे मात्रा भार में भी पकड़ मजबूत हो रही है ।अपनी समीक्षा के साथ अन्य प्रतिभागियों की समीक्षा पढ़कर ज्ञान बटोरती हूं। आगे भी छंद शाला से जुड़ी रहूंगी और आप गुणी जनों श्रेष्ठ जनों से सीखती रहूंगी🙏
तहे दिल से *कलम की सुगंध* परिवार को धन्यवाद करती हूं।
🙏🙏

*बिंदु प्रसाद रिद्धिमा* , रांँची झारखंड

आल्हा छंद पर शतकवीर यात्रा।

कलम की सुंगध में एक और शतकवीर शुरु होने वाला है,जानकर बहुत खुशी हुई।देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को मैने चुना ,यही सोचकर की अपने समाज में प्रोग्राम होने से मैं वहाँ भी इसे प्रस्तुत कर सकती हूँ, "एक पंथ दो काज।"
सबसे अच्छी बात मुझे इस पटल पर यही लगता है कि यहाँ बहुत ही सहजता से सीखाय जाता है ।एक नियम के तहत सीखाने से ज्यादा भटकना नही पड़ता है, जैसै,चौकल और त्रिकल से ही पूरा छंद लिखा जाता है।सौ छंद लिख लेने से उस छंद में आत्मविश्वास जाग उठता है।गुरुदेव संजय कौशिक व  बहना नीतू ठाकुर विदूषी सपना बहन सभी का मैं आभार व्यक्त करती हूँ, जिनके बिना सहयोग मैं कोई भी शतकवीर नही बन पाती ।अपने सभी समीक्षकों का मैं आत्मिय आभार व्यक्त करती हूँ ।भले मैं पटल पर प्रतिदिन आभार व्यक्त नही कर पाई थी,लेकिन मैं दिल से सबका आभार वयक्त करती हूँ, ।

आरती श्रीवास्तव 'विपुला'

आप सभी ने बहुत सुन्दर आल्हा छंद की यात्रा लिखी । पढ़कर बहुत अच्छा लगा । ऐसे ही सब आगे बढ़ते रहें  । सीखिए और सिखाइए यही मंच का उददेश्य हैं  । मंच सदैव सच्चे और अच्छे साथियों के साथ है ।🙏🙏🙏🙏

आज हम सभी आल्हा शतक वीर लिखने वालों के 100 आल्हा हो जाएंगे।

 आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

हम सभी ने एक विषय लिया था और उस पर शतक वीर बनाना था इसी क्रम में मैंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का सहयोग करने वाली झलकारी बाई के व्यक्तित्व को आप सभी के सामने आल्हा छंद के माध्यम से प्रस्तुत किए थे मुझे बहुत आनंद की अनुभूति हुई।

*अनिता मंदिलवार 'सपना'*

 *मैं राधा तिवारी "राधेगोपाल" खटीमा उधम सिंह नगर उत्तराखंड*

 मंच सह संचालिका* बतौर आपके समक्ष पिछले कई दिन से हूँ।बहुत आनंद का अनुभव किया मैंने। समय और श्रम बहुत लगता है मगर फिर भी आप सभी की लेखनी को मैं नमन करती हूंँ। अगर इस बीच मैंने कभी किसी को कुछ बुरा कहा हो या त्रुटि वश कुछ गलत हो गया हो तो मैं आप सभी से क्षमा चाहूंँगी। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ में *मैं छंद शाला के संस्थापकपरम श्रद्धेय गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी, मंच संचालिका अनीता मंदिलवार सपना जी, नीतू ठाकुर विदुषी जी ,परम आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ जी, हमारे सभी विद्वान बुद्धिमान समीक्षक और प्यारे प्यारे प्रतिभागी जो अपनी प्यारी-प्यारी लेखनी का प्रदर्शन करते रहे हैं आप सभी को नमन* 🙏

जो सदस्य मंच पर होते हुए भी अपनी लेखनी का प्रयोग नहीं कर रहे हैं उन से मेरी🙏 करबद्ध प्रार्थना है कि आप भी सक्रिय हो जाएँ ।जब तक हम लिखेंगे नहीं तब तक हम सीख नहीं पाएंगे और मंच पर सक्रिय रहने का मतलब है कि गुरुदेव का आशीर्वाद हम पर बना रहेगा। हमारी गलतियांँ सुधरेंगी और बहुत कुछ अच्छा ही होगा।।




*राधा तिवारी* 

*"राधेगोपाल"*

*मंच सह संचालिका आल्हा शतकवीर*

*एल टी अंग्रेजी अध्यापिका*

 *खटीमा,उधम सिंह नगर*

 *उत्तराखंड*


Friday 4 June 2021

गुरु गोरखनाथ आल्हा छंद आधारित चालीसा

*रचनाकार:-* 
 *परमजीत सिंह कोविद* 
          *कहलूरी* 

*गुरु गोरखनाथ कथा सार* 

*विज्ञात छंद:-* 

गोरख नाथ हैं भोले,
यूॅं मुख वे नहीं खोले।
वो  चिमटा  गढ़ाएंगे,
वे दुख भी मिटाएंगे।।

*दोहा:-* 

जप-तप से योगी बना,वह भोला अवतार,
जिसके सिर पर हाथ हो, नाव लगाए पार।। 

*दोहा:-* 

जन-मन के उत्थान को, जोड़ खड़े सब हाथ।
शिव शंकर अवतार में, आए गोरखनाथ।।

*आधार आल्हा छंद:-* 

धरती पर गुरु गोरख आए,
विश्व धरा करने उद्धार।
योगी जैसा वेश बनाकर,
जन्म लिया हो शिव अवतार।।

देते योगी भस्म पुड़ी में,
बांझ सुता को गुरु मच्छेंद्र।
विश्वास नहीं करती अबला,
फेंक दिया कूड़ा भू केन्द्र।।

बारह साल रहा भूतल में,
पाकर गर्भ हुई भू धन्य।
बारह वर्षों बाद निकल कर,
कहलाए वह धरती जन्य।।

नाथ निरंजन का गुण गाने,
गुरु शिक्षा को हैं तैयार।
गुरु मच्छेंद्र पुकारे गोरख,
गोरख महिमा अपरंपार।।

मच्छेंद्र परीक्षा लेते अब,
गोरख की जो मांगे दान।
प्रण गुरु का पूरा करते वो,
ऑंख निकाले दे बलिदान।।

देख तपस्या करते गोरख,
इंद्र डरे सिंहासन डोल।
भंग तपस्या करने को फिर,
बोल रहे थे भरकम बोल।।

राज्य त्रिया में पहुॅंचे गोरख,
धार लिया नारी का रूप।
ज्ञान दिया अपने ही गुरु को,
आभा फैली विश्व अनूप।।

शिष्य पिपासा भी पूरी की,
मनाकनी रानी का मान।
अपने गुरु को राह दिखाई,
और वचन पूरा हनुमान।।

नाथ पंथ की रक्षा करके,
दीन दुखी का देते साथ।
धैर्य धरे मर्यादित योगी,
मान बचाते गोरखनाथ।।

गुरु आज्ञा से चिमटा गाढ़ा,
बैठ लगा धूॅंणा नेपाल।
अब वर्षा बूंद नहीं होगी,
नाथ प्रतिज्ञा घोर अकाल।।

धूर्त महेंद्र सबक सीखे फिर,
काल रहा था चीख-पुकार।
नेपाल नरेश बुरा त्यागे,
वर्षा होती मेघ अपार।।

फिर से क्रूर हुआ वो दानव,
कौन लगाए बेड़ा पार।
मिट्टी घोल बनाए सैनिक,
जान भरी सेना तैयार।।
 
बलवंत बना बंदी लाया,
हार करे पापी स्वीकार।
फिर से तोड़ घमंड दिया था,
खत्म हुआ अब अत्याचार।।

त्री विक्रम राजा को जीवन,
देने की ली मन में ठान।
सोच विचार बिना प्रण लेकर,
करते गुरु नेक समाधान।।

काली से गोरख युद्ध करे,
क्रोध मिटाया करके ध्यान।
तीन वचन लेकर छोड़ा फिर,
तोड़ा चण्डी का अभिमान।।

वीरभद्र की आई शामत,
योगी आज सुनाते दण्ड।
नाथ बचा तन अपने गुरु का,
लौटे उसका तोड़ घमंड।।

गोरखनाथ प्रतापी योगी,
नेत्र बुझा सब लेते जान।
नाथ अलख के बोल जगाते,
शिव अवतार बना आख्यान।।

देखो महिमा योगी जी की,
गोरख हरते सब के त्राण।
ढूंढ लिए टुकड़े गुरु तन के,
वापिस आए उनके प्राण।।

देख पवित्र धरा होती अब,
करते सब जन का उत्थान।
दैत्य धरातल पर काटे सब,
योगी साधु मिले सम्मान।।

नरभक्षी राक्षस ऐसा वो,
दैत्य बड़ा था नाम सुबाहु।
योगी जन को ऐसे खाता,
जैसे काल घटाए राहु।।

गुरु महिमा है वारी न्यारी,
निर्धन को करती धनवान।
जिनके हाॅंड नहीं दाने हों,
उनके घर पकते पकवान।।

बीज बिना पौधे उग जाते,
खेतों में उग जाते धान।
ऐसे थे गुरु गोरख बाबा,
दीन दुखी का करते मान।

नग्न कलेवर को पट देते,
भूखे को देते जलपान।
मूर्ख मिले तो वो मति पाता,
बाॅंझ सुता पाती संतान।।

दीन दुखी बनते जब सेवक,
हाथ बढ़ाकर हरते त्राण।
करते नाथ वचन पूरा फिर,
हर पापी के सूखें प्राण।

धूर्त निशाचर जो घूमे यूॅं,
वे राक्षस से लड़ते युद्ध।
अत्याचारी जो हो जाते,
उन दानव पर होते क्रूद्ध।।

हार नहीं होती उनकी फिर,
जिनके तारण होते नाथ।
शुभ आशीष मिले उनको फिर,
धरते सिर गुरु गोरख हाथ।।

भस्म रमा कर माथे योगी,
स्वाह पुड़ी में डाल भभूत।
खाकर भक्तों के दुख कटते,
भागें डर के मारे भूत।।

जन्म लिया योगी ने भू पर,
रत्न बचाने को अनमोल।
अड़ियल पूरे तप करते वो,
कड़वे बोल रहे वो बोल।।

खिचड़ी का इक थाल बनाकर,
पूरे जन का भरते पेट।
अब है वह नगरी गोरखपुर,
शीश नवाएं माथा टेक।।

चल के नाथ हिमाचल आए,
ज्वाला माॅं करती आह्वान।
आग उबाले काठ हॅंडी जल,
बैठी माता अंतर ध्यान।।

पानी उबले एक जगह पर,
काॅंगड़िया कस्वा था कोट।
दर्शन पाकर कष्ट मिटाओ,
लोप कराओ सारे खोट।।

क्रोधित होकर ज्वाला उखड़ी,
ढूंढन भेजा काल भूचाल।
बोले दैत्य धराछाई कर,
नीति बुने सब अपने जाल।।

अब तो लौटो नाथ भले तुम,
नीर बहाएं सारे संत।
भोग लगाओ पर्वत चड़के,
तब होगा कलयुग का अंत।।

वैष्णों माता अंत गुफा में,
बैठी होकर अंतरध्यान।
भैरवनाथ चला पीछे जब,
वीर अड़े आगे हनुमान।।

माता ने गर्दन काटी फिर,
गुस्से होकर मार त्रिशूल।
गोरख बीच बचाने आए,
कर दो माफ नहीं हो भूल।।

हे गुरु मुझको जीवन दे दो,
टूटा अब मेरा अभिमान।
माॅं के बाद हो भैरव पूजा,
दें गोरख एक समाधान।।

रानी काशल कपटी नारी,
धोखे से लेती वरदान।
चाल कपट से छलती सबको,
गुरु देखे हो अंतरध्यान।

राजा नाग जगाए जाकर,
बाशल की भरनी थी गोद।
नाग पदम को उनसे मांगा,
गोगा होगा पुत्र अमोद।।

काशल को फिर शाप दिया था,
पुत्र मरे तो धरना धीर।
दोनों बेटे शीघ्र मरेंगे,
आएगा जब जाहरवीर।।

बारह वर्षों बाद बना फिर,
चेला गुरु का जाहरवीर।
गोरख के तप शिक्षाओं से,
मिटती जन मानस की पीर।।

*दोहा* 
गुरु गोरख के नाम से, भागें भूत पिशाच।
घर में रखें भभूत को,रोगी जाएं नाच।।


   *परमजीत सिंह कोविद* 
            *कहलूरी*