Friday 28 May 2021

विज्ञ सवैया छंद और विदुषी सवैया छंद का अविष्कार






 

 

*सादर नमन, कलम की सुगंध, छंदशाला,एवं संचालन मंडल व समस्त साथियों*
सहित ही
.    *पंच परमेश्वराय:नम:*
*आदरणीय गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी को सादर वंदन,आदरणीया इन्द्राणी साहू साँची जी, आदरणीय साखी गोपाल पंडा जी की विवेचना,समीक्षा व सहमति के आधार पर एवं पटल के सुधि छंदकारों,आ.अनिता मंदिलवार सपना जी,आ.परमजीतसिंह कोविद जी,आ.अभिलाषा चौहान जी,आ.अर्चना पाठक निरंतर जी, आ. डाँ. एन.के. सेठी जी, आ.इन्दु साहू जी, आ. श्रद्धांजली शुक्ला जी,आ. धनेश्वरी सोनी गुल जी, आ. चमेली कुर्रे सुवासिता जी,आ. राधा तिवारी,राधेगोपाल जी एवं आ. गीता विश्वकर्मा नेह जी, डाँ. मंजुला हर्ष जी* ...
*आपकी की इन छंदों पर रचनाओं के आधार पर आज हिन्दी साहित्य हेतु दो नवीन छंद  "विज्ञ सवैया" और "विदुषी सवैया"  को सहर्ष मान्यता प्रदान करने पर आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ*

१. छंद--  🦢 *विज्ञ सवैया* 🦢
छंद आविष्कारक- *बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ"*
आज दिनांक २८.०५.२०२१
*विज्ञ सवैया विधान:--*
२१  वर्ण
सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२  ११,२   ११२  ११२  ११२
.               👀👀👀👀👀👀
२.   छंद       *विदुषी सवैया*
छंद आविषकारक - *नीतू ठाकुर विदुषी*
वर्णिक सवैया.....22 वर्ण
रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
🦚 *आ. विदुषी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई* 🦚
*आ.अनिता मंदिलवार सपना जी एवं राधा तिवारी जी को साधुवाद*

सादर, आभारी
बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
सिकंदरा, जिला-दौसा
राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀

*विज्ञ सवैया छंद*

          *विधा - सवैया - प्रथम*
विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अचला नभ से कह आज रही अब प्यास बुझा मन की ।
कर वृष्टि धरा पर रक्षण तो कर सूख रहे वन की ।
तन सूख रहा न दरार मिटे विपदा हर लो तन की ।
मत देर करो अब तो सुन लो विनती शुभ वंदन की ।।

         *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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*विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण ४चरण चारों, समतुकांत हो।*
  *सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण*
*११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२*

         *भारत मात वंदना*
 
जय भारत मात करें  गुणगान सदा खुशियाँ भरती।
जननी कहलाय सहाय करे यह ध्यान सभी करती।।
उपजाय सदा धन अन्न सभी यह जन्नत  है धरती।
इतिहास  पुरातन  भारत उन्नत भाल सदा करती।।

ऋतुएँ  मन  भावन  भू  यह  पावन  गौरव गान करें।
वसुधा धरणी बहती तरणी  इसका  हम ध्यान धरें।।
धरती हमको लगती हिय को इसकोअति प्यार करें।
हम  बालक हैं इसके यह भाव सदा हिय में विचरें।।

             *©डॉ एन के सेठी*

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विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
*अनुरक्ति*

सरकी सिर से सर से सरकी झट छूट गई गगरी ।
कर घूँघट चाल चले तिरछी सखि भूल गई डगरी ।
पनिहारिन से तब पूछ रही कह राम कथा सगरी ।
जब भीतर राम बसे उर में कब हैं मिलते नगरी।

*अर्चना पाठक 'निरंतर'*

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.             ........ सवैया

विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
*जीने की कला*
  **********
बल से मन को रख दूर कहीं हर पंख उड़ान भरे।
भर नीरस से हिय को रस से फिर वादक तान भरे।
यह पावक है चलती छलती तब दीमक कान भरे।
जब जीवन भी चलके ढ़लता नव वैभव गान भरे।

     *परमजीत सिंह कोविद*

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सवैया
११२×७

मन धीरज भी मुख मोड़ रहा,
अब तो हिय डोल रहा ।
धरती सहती न कहे कुछ भी,
मनु क्यों विष घोल रहा ।
सपना करती विनती सुन लो,
मन भी कुछ बोल रहा ।
सबने अपनी मन की कह दी,
बतियाँ अनमोल रहा ।

अनिता मंदिलवार "सपना"

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*इस नये सवैया पर मेरी भी कोशिश*

११२  ११२  ११२ ११२ 
११२  ११२  ११२
सलिला कहती वन प्रांतर से,
जल से जड़ सिंचित है ।
पतझार हिया दुख टार सखे,
नदिया रहते चिंतित है ।।
मन मोद मना सब ही ऋतुएँ,
शुभ सा अनुकूलित है ।
सब रंग सुगंध धरे तुमसे,
जगती अनुप्राणित है ।।

मुझसे बनते वह बादल हैं,
बरखा खरमास झरे ।
अवनी दिखती निखरी सँवरी,
तृण पात समेत हरे ।।
नदिया उमगे लहरा लहरे,
छनके बूँदिया उभरे ।
वन से नद का,नद से वन का
मन बंधन है गहरे ।

गीता विश्वकर्मा नेह

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जय माँ शारदे
सवैया छंद
प्रथम प्रयास
112 112 112 112 112 112 112 22

मन धीर धरो नित काम करों फलदायक हो धरती धीरा।
धरती पर  बीज जगाय तभी
फल बेल बढ़े फलता खीरा।
वरदान बनें  श्रम की महिमा
मन जीत जगात सदा नीरा।
श्रम ही नित लाय निखार बनें
मन ही मन मान लगे हीरा।

मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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नमन मंच
सवैया छंद
एक प्रयास

११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ २२

पितु मातु सदा सुख दायक हैं
   हम मान करें उनका साथी।

गुरु ज्ञान सदा फलदायक  है
हम ध्यान धरें उनका साथी।

धरती फल फूल अनाज भरे
हम गान करें उसका साथी।

मुरली मनमोहन आज बजा
रस पान करें उसका साथी।

डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव "मंजुल"

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112  112 112 112 112 112 112 22
अपने सपने लगते हमको कबसे सबसे कहते है वो।
चलते सबसे मिलके सजना सुनते ठहरे रहते है वो।।
कितना मनमोहक आज लगे नदिया बनके बहते है वो।
लगते मुझको मुझसे पहले सबके तड़पन सहते है वो ।।
     
चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

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जय माँ शारदे
सवैया छंद
प्रथम प्रयास
112 112 112 112 112 112 112 22

नदियाँ नित बहती रहती है,
तब निर्मल जल उसमें रहताl
ज्ञान तभी तक बढ़ता जानों ,
जितना ज्ञानी उसको कहताl
पोखर जल पोखर में  सड़ता,
पोखर से वो कब है बहताl
विद्या अपने तक जो रखता,
बन पाता कब वो फिर महताl

*सरोज दुबे 'विधा'*
*रायपुर छत्तीसगढ़*

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*सवैया*
कलम की सौगंध
सादर नमन मंच🙏

112 112 112 112 112 112 112

चितचोर कहां तुम हो अब देर करें मन जो झुलसे,
गिरिधर अब कौन मुझे कहते दिल की बतियां हुलसे।।
यमुना तट से जल पीकर कृष्ण यहां तुम आप फिर से,
मुरली सुनके तड़पी नित मैं अब तो मिल जा हमसे।।

बिंदु प्रसाद रिद्धिमा
स्वरचित✍️ रांची, झारखंड

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.             ........ सवैया
*1*
विधान:--  २१ वर्ण प्रति चरण
४ चरण चारों, समतुकांत हो।
सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
११२  ११२  ११२ ११२  ११२  ११२  ११२
उसके सपने हम को दिखते
दिखते रहते।
भंँवरे तितली रस को चखते
चखके कहते।
हम भी तुम को सुनते रहते दुख भी सहते।
कलियाँ रहती सहमी सहमी
दृग भी बहते
               
राधा तिवारी
"राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
खटीमा,उधम सिंह नगर, उत्तराखंड

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नमन मंच
सवैया छंद
एक प्रयास

११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ २२

मन मोहन माधव श्याम सखी,सुख जीवन का बस वे ही हैं।
उनसे कहती उनसे सुनती,रस रास रचे सब वे ही हैं।
मुरली बजती मन नाच उठे,अधरों पर बास करे ही हैं।
हिय में झलकी झलके उनकी,जग में कण में बस वे ही हैं।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
सादर समीक्षार्थ 🙏🙏

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नमन मंच 28/05/2021
विधा-सवैया
शिव शंकर हे सुन लो अब तो जन जीवन पावन हो।
दुनिया भर के दुख ये सबके हर लो तुम तारन को।
विष पान करे प्रभु कौन सदा विष के तुम मारन हो।
तुमसे जग की हर एक बहार करो विष धारन हो।

✍️श्रद्धान्जलि शुक्ला अंजन

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विदुषी सवैया छंद

212 212 212 2 , 12 212 212 212 2

हौसलों में भरें दिव्य ऊर्जा , चलो आज संकल्प ऐसा उठाएँ ।
प्राणियों को करे तुष्ट ऐसी , सुधा प्रीति की श्रेष्ठ धारा बहाएँ ।
ज्योत्सना चंद्र की हम बनें फिर , अँधेरों भरी यामिनी को डराएँ ।।
जो दिखाए सही राह हमको , वही ज्योति आशा भरी हम जलाएँ ।।

         *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)

मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

*वेदना*
-----------
आपसे प्यार था जान से भी, तुम्हें गोद में फूल सा ही सुलाती ।
बेड़ियाँ पाँव की रोकती थीं, सदा याद में खूब पीड़ा रुलाती ।
आस भी टूटती है न जाने, यही लेख हो भाग्य का जो झुलाती ।
छूटता है अभी साथ सारा, दुबारा पुनर्जन्म हो तो बुलाती।

*अर्चना पाठक 'निरंतर'*
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संशोधित
*सवैया छंद*

*माॅं*
212 212 2122, 12 212 212 212 2

रीझ कोई नयापन दिखाती, जली सोच वाचाल विष घोलती है।
कोयलें कूकती काग छेड़े, जले आज देखो निशा डोलती है।
भूलकर राग मन के धरा पग, सही राह पर चाल भी बोलती है।
कौन सुनता भरी आस मन में, तनुज पाल कर मात दुख तोलती है।।

    *परमजीत सिंह कोविद*

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मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

भारती के सदा गीत गाते, चलें भाव के पुष्प से प्रेम धारा ।
नेह में हार से जीत हो जो, तहाँ रागिनी है बजे आज प्यारा ।।
क्या मिला क्या नहीं छोड़िये भी, यहाँ जो मिला है वहाँ देख तारा ।
मानिये बात सीधी सही वो, कहाँ आप भी जीवनी मान हारा ।।

अनिता मंदिलवार सपना
.            
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मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
नैन को प्रेम का रंग देना, पिया चाहती भावनाएँ यही है ।
मीत साथी कहो मान दोगे, मुझे बात ये नेह के क्या सही है ।
बावरी चंचला मैं नदी सी, हुई देखिए प्रीत ये
जो बही है ।
गंध की धार में ले चला है,कहाँ मौन मुस्कान ने क्या कही है ।

गीता विश्वकर्मा नेह

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*सवैया*
कलम की सौगंध
सादर नमन मंच
28.05.21 शुक्रवार

212 212 212 2,12 212 212 212 2

जिंदगी से प्यारी लगे नित ,जहाँ सीखते सीखते जान पाया।
सैनिकों वीरता से जियो तुम, करो युद्ध सेना अभी जीत दिलाया।
शुभ तिरंगा उड़े नील नभ में, सदा साथ देना जिसे खुशियां दिलाया।
बात सच्ची यही है अभी तक, हमें सोचते सोचते स्वयं सोया।

बिंदु प्रसाद रिद्धिमा
स्वरचित✍️ रांची झारखंड

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द्वितीय सवैया

२१२ २१२ २१२ २,१२ २१२ २१२ २१२२
पालती पोषती मात कैसे,सदा देखती कष्ट कोई न आए।
भोगती पीर है धीर धारे, कभी बोल कड़वे न वो सुनाए।
जागती वो रहे डूब चिंता,खुशी बालकों पर सदा वो लुटाए।
पूजता जो उन्हें भाग्य जागे,तभी चाहते जो सदा लोग पाए।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
सादर समीक्षार्थ 🙏🙏

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*.......  सवैया*
*2*

मापनी ~
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

रोग कैसा यहांँ आज आया, बना कौन साथी सहारा बता दो।
देख पीड़ा कभी भी किसी की,
बनो आज राधा सहारा दिखादो।
दोष देखो कभी भी किसी में, उसे प्यार धारा बनाना सिखा दो।
आज कोई सुखी तो नहीं है,बनो नेह डोरी जमाना बितादो।।

राधा तिवारी
"राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
खटीमा,उधम सिंह नगर, उत्तराखंड

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सादर समीक्षार्थ🙏

*द्वितीय सवैया*
*मापनी*
*२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २*

भारती पावनी भावनी ये, धरा धारती अन्न ये पालती है।
शस्य ये श्यामला साधना भू,धरा
ये सभी ही करे आरती है।।
मात सेवा करें भावना शुद्ध, हो कामना ये सदा धारती है।
मातृ भू से बड़ा है नहीं सृष्टि में आपदा कष्ट से वारती है।।

            *©डॉ एन के सेठी*

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सवैया छन्द

मापनी
212 212 212 2, 12 212 212 212 2

राम का रूप प्यारा लगे है, सदा रामजी को सहारा बनाएं।
साथ देते सुखों में सदा ही, हमारे दुखों को किनारा लगाएं।।
राम सारे सभी दुःख तारें, स्वयं की कथा नित्य वासी सुनाएं।
ईश हैं साथ में मानते ये, धरा में सभी लोग माथा झुकाएं।।

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

सवैया
विषय-गुरु

मापनी
211 211 211 211, 211 211 211 22

ज्ञान प्रकाश भरें हममें नित, साथ रहें गुरु देव हमारे।
छंद विधान हमें सिखला सब, हैं हम तो बस आप सहारे।।
जीव धरा पर ज्ञानमयी बन, पाकर ही गुरु नाम पुकारे।
मान रखें गुरुदेव सदा हम, ज्ञान लिए निज धाम पधारे।।

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

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मातु सेवा सदा भाव से हो ,करो वंदना मातु की ज्यों पुजारी।
भावना साधना हो सदा से ,विधाता  बनाए कभी ना  बिचारी ।।
मातु गंगा लगे पावनी ज्यों मनोकामना पूर्ण होती हमारी।।
मातु ज्ञानी हमारी सदा से ,वही कष्ट को दूर टाले सुखारी।।

धनेश्वरी सोनी गुल

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Saturday 15 May 2021

अतिशयोक्ति अलंकार पर कार्यशाला (कलम की सुगंध छंदशाला)





आल्हा 

16/15

चेतक राणा का जोड़ा था, दो मित्रों का वो परिवार।
कौशल योद्धा दोनों रण के, भरता चेतक था हुंकार।।

टप-टप टॉप सुनी चेतक पग, रिपुओं के बजते थे कान।
एक हवा की लघु आहट पर, हो जाता था अंतर्ध्यान।।

बनता चेतक श्रेष्ठ सवारी, राणा पाते जिसपे मान।
प्रलयंकारी सी आँधी बन, चेतक करता था प्रस्थान।।

राणा की हिय वेग धड़कनें, जिनका चेतक को था ज्ञान। 
शिक्षित वो उनका अनुयायी, राणा का रखता था ध्यान।।

हल्दी घाटी अब तक गाती, चेतक का वो गौरव-गान। 
शौर्य पराक्रम अमर कराया, चेतक ने देकर बलिदान।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




*प्र.अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते है ?*
उत्तर
1. *किसी भी स्थिति का वर्णन*
जैसे - युद्ध का वर्णन ।
2. *किसी भी स्थान का वर्णन*
जैसे - रण क्षेत्र का वर्णन ।
3. *किसी भी परिणाम का वर्णन*
जैसे -युद्ध में किसी की हार या जीत का वर्णन ।

जहाँ किसी का वर्णन बढ़ा- चढ़ा कर किया जाता है और वो वर्णन लोक मर्यादा या समाज के मर्यादा का उल्लंघन या तोड़़ता हुआ  प्रतीत होता है वहा अतिशयोक्ति  अलंकार होता है।

चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

*अलंकार किसे कहते है?*
किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार है ।
अलंकार का सामान्य अर्थ है आभूषण या गहना। जिस प्रकार आभूषण से शरीर की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार अलंकार (सुन्दर वर्ण ) से काव्य की शोभा बढ़ती है।  साधारण बोलचाल में आभूषण को अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार आभूषण धारण करने से नारी के शरीर की शोभा बढ़ती है वैसे ही अलंकार के प्रयोग से कविता की शोभा बढ़ती है।
*अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते है ?*
1. *किसी भी स्थिति का वर्णन*
जैसे - युद्ध का वर्णन ।
2. *किसी भी स्थान का वर्णन*
जैसे - रण क्षेत्र का वर्णन ।
3. *किसी भी परिणाम का वर्णन*
जैसे -युद्ध में किसी की हार या जीत का वर्णन ।
जहाँ किसी का वर्णन बढ़ा- चढ़ा कर किया जाता है और वो वर्णन लोक मर्यादा या समाज के मर्यादा का उल्लंघन या तोड़़ता हुआ  प्रतीत होता है वहा अतिशयोक्ति  अलंकार होता है।
जैसे - 1.
*आ. विज्ञात गुरुदेव जी* के आल्हा छंद को देखते है।
चेतक राणा का घोड़ा था, दो मित्रों का वो परिवार।
कौशल योद्धा दोनों रण के, भरता चेतक था हुंकार।।

टप-टप टॉप सुनी चेतक पग, रिपुओं के बजते थे कान।
*एक हवा की लघु आहट पर, हो जाता था अंतर्ध्यान*।।
✍️ *आ. संजय कौशिक 'विज्ञात' गुरदेव जी*
इसके दूसरा छंद के तीसरे और चौथे चरण में समाज की मर्यादा का उल्लंघन करती हुई व्याख्या दिख रही है।
अर्थात गुरुदेव जी ने निःसंदेह बढ़ा -चढ़ा कर अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग किये है। अतिशयोक्ति अलंकार की आकर्षण से इस छंद या इस बंध को ऐसा चमत्कारी किये है कि इसका सम्मोहन पाठक या श्रोता के मन में एक अलग ही छाप दिखाई देता है।
2. ✍️ *आ. अनिता सुधीर जी*
ब्राह्मण कुल में जन्म परशु का, कर्म रहे क्षत्रिय अनुसार।
*अस्त्र परशु शंकर का रख कर, करते धरती का उद्धार*।।
रहा है
इसमें कवियत्री कहना चाह रही है की अस्त्र परशु शंकर का रख कर
धरती का उद्धार कर रहा है।
3. ✍️ *अर्चना पाठक 'निरंतर'*
*अरि मस्तक पर दौड़ रहा है*,
*राणा का था वह हथियार*
पुतली के राणा से पहले ,
          मुड़ जाने चेतक तैयार ।

इसमें अतिशयोक्ति अलंकार  प्रयोग करते हुए कवियत्री कह रही है की अरि मस्तक पर तलवार दौड़ रहा है ।

4.✍️ *आ. इन्द्राणी साहू"साँची*

*टूट पड़ी वह अंग्रेजों पर*
*बिजली बनकर कौंधी नार*
सौम्य स्वरूपा छवि को तजकर
ज्वाल बनी करती हुंकार ।
इसमें कवियत्री अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग करते हुए कह रही है कि नारी बिजली बनकर अंग्रेजो पर टूट पड़ती है।

*वीर रस किसी कहते है*?
जब किसी रचना  या युद्ध अथवा किसी कार्य को करने के लिए ह्रदय में जो उत्साह का भाव जागृत होता है उसे वीर रस कहते हैं ।
जैसे
*बुन्देलों हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी*
वीर रस के सहयोग से योद्धा अथवा पराक्रमी व्यक्ति का उत्साहवर्धन किया जाता है।

*अतिशयोक्ति अलंकार और वीर रस में सामंजस्य क्या है।*
अतिशयोक्ति अलंकार और वीर रस में जो सामंजस्य है उस पर मैं चर्चा करना जरूर चाहूंगी।मुझे अतिशयोक्ति अलंकार और वीर रस में सामंजस्य अति उत्तम  लगा क्यों कि अतिशयोक्ति अलंकार और वीर रस के सामंजस्य से काव्य प्रभावी और ऊर्जावान बन जाता है और उर्जा की आवश्यकता तो सभी को होती है बिना उर्जा के तो एक घर में अंधेरा दिखाई देता है इस लिए यह छंद एक नूतन उर्जा प्रवाह करने में समर्थ है।
*आल्हा छंद अतिशयोक्ति और  वीर रस से आकर्षण बढ़ जाता है*
मुझे तो यह छंद हर तरीके से आकर्षक लगता है क्यों कि अतिशयोक्ति अलंकार और वीर रस के सामंजस्य से बातों को बढ़ा- चढ़ा कर वर्णन करना एक भाषा के सौंदर्य को न केवल निखारता है बल्कि स्वीकारता भी है।
      सुनने में ऐसा भी मिला है कि अलंकार कविता में बोझ बनते है। पर यह सत्य मुझे नही लगता क्यों की अलंकार वीर रस के साथ सामंजस्य इस प्रकार से बना लेता है कि कविता पर कभी भी बोझ नही बनता है।
            वीर रस में आज से पूर्व मैने बढ़े-बढ़े कवियों के कविता को पढ़ा है सौभाग्य से मैं लिख नही पाई पर *आ.संजय कौशिक विज्ञात गुरुदेव जी के मार्गदर्शन* से मैने पहला आल्हा छन्द लिखा और उसके साथ में अतिशयोक्ति अलंकार लिखने का प्रयास भी किया पर बना कितना और नही बना कितना ये तो समीक्षक साथी ही बता पायेंगे।यदि नही बना है तो आगे बन भी जायेगा मुझे विश्वास है क्यों कि प्रयास कभी भी विफल नही होते है। और सार्थक दिशा में किये गये प्रयास सदैव ही सफल होते हैं।
 
*आल्हा छंद*-

नारी निर्बल रहना छोड़ो,
      देख जगत के अत्याचार।
शक्ति धरा पर तुम हो उत्तम,
उत्तमता कहती हर बार।

भाग्य स्वयं ही अपना लिखकर ,
           दुनिया को दे दो पहचान।
तेरे चरणों की रज चमके,
     *भाल मुकुट के उत्तम स्थान* ।।

त्राहि हृदय से करना छोडो़ ,
        देख समय भी देगा साथ ।
गोद त्रिदेव पले थे तेरी,
      देव झुकाये पग में माथ ।।

मार दहाडे़ शेरों जैसी ,
      कापे धरती ये आकाश।
  सांसो की आँधी से दहके,
काल बली का काला पाश।।

धूल चटा कर दुश्मन को तुम,
      मांगो मत छीनो अधिकार।
रूप धरो दुर्गा काली का,
     हर अरि का कर दो संहार ।।

इसमें अतिशयोक्ति अलंकार के साथ ही मैं वीर रस में लिखने की कोशिश की हूँ।
            इसलिए मैं आप सभी से यही कहना चाहती हूँ कि आप सब जब भी वीर रस में कविता लिखें तो उसमें अतिशयोक्ति अलंकार के साथ ही लिखें।
         🌹🙏🌹
✍️चमेली कुर्रे 'सुवासिता'




*अतिशयोक्ति अलंकार*-
जब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बढ़ा -चढ़ा कर किया जाए तब वहाँ आतिशयोक्ति अंलकार होता है
इस अलंकार में असम्भव  तथ्य बोले जाते हैं
जैसे -1. हनुमान की पूँछ में, लग न पाई आग,
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग
2.आगे नदियां परी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार, तबतक चेतक था उस पार

3. परवल पाक, फाट हिय गेंहूँ
आदि
*सरोज दुबे,विधा,*
*रायपुर छत्तीसगढ़*

*आल्हा छंद पर एक प्रयास*
       *गीत*
*16/15*
        *नारी*

नारी तपती धरती है तो
नारी दुर्गा की अवतार
नारी सबकी ही जननी है
नारी पृथ्वी का आधार

रूप अनेकों इस नारी के
नारी क्षमता की है खान
बोझ हमेशा ढोती वो है
कब करती कष्टों का भान
मान रखोगे मान करेगी
वरना भरती है हुंकार
नारी..........................

नारी तोपों का गोला है
नारी वैरी की है त्रास 
नारी जलती ज्वाला है तो
नारी किरणों की है आस
आँख उठाकर देखोगे तो
बन जाएगी वो तलवार
नारी.........................

कोमल है कमजोर नहीं पर
रखती है धरती का मान
आँच नहीं आने देती है
छाया देती आँचल तान
नारी जलती चूल्हे जैसी
ये  है अंगारो का हार

नारी.....................

*सरोज दुबे 'विधा''*
*रायपुर छत्तीसगढ़*
🙏🙏🙏🙏

वीर रस पर आधारित- दूसरे और तीसरे अंतरे के पूरक पंक्ति में आतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है



अतिशयोक्ति अलंकार

कवि अपनी प्रखर कल्पनाशक्ति के माध्यम से राई को पहाड़ बनाकर प्रस्तुत करने का सामर्थ्य रखता है। अपनी भावाभिव्यक्ति को बल देने के लिए वो अनेक शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग करता है। नव रसों में डूबा कवि अपने भाव प्रवाह में बहते हुए लोक सीमा से बढ़कर किसी वस्तु या घटना का वर्णन , स्तुति या निंदा करता है उस समय अतिशयोक्ति अलंकार का उगम होता है। अतिशयोक्ति अलंकार कवि की कल्पना मात्र है जिसका यथार्थ से कोई संबंध नही परंतु यह अलंकार अद्भुत कल्पनाशक्ति से ही उपजता है जिसके कारण अपना गहरा प्रभाव पाठक के मन पर छोड़ने में सफल होता है। वीर रस के कवि अतिशयोक्ति अलंकार का जम के प्रयोग करते हैं जो उनके कथन को प्रभावी बनाती है।

*जहां किसी गुण या स्थिति का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।*
इस अलंकार में लोक सीमा से बढ़कर तारीफ या निंदा की जा सकती है।

*उदाहरण*
खीरा खाकर भीम ने दुश्मन मारे लाख,
श्याम हँसकर बोलते मैंने दी थी दाख।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

*अतिशयोक्ति अलंकार के प्रकार*

1) रूपकातिशयोक्ति-
2) सम्बन्धातिशयोक्ति
3) भेदकातिशयोक्ति
4) चपलातिशयोक्ति
5) अति-क्रमातिशयोक्ति/अक्रमातिशयोक्ति
6) असम्बन्धातिशयोक्ति
7) अत्यन्तातिशयोक्ति अलंकार

*1) रूपकातिशयोक्ति*
जिसमें वर्णन रूपक की तरह होता है परंतु केवल उपमान का उल्लेख कर के उपमेय का स्वरूप उपस्थित किया जाता है।अर्थात जब उपमेय का लोप करके केवल उपमान का ही कथन किया जाए और उसी से उपमेय का अर्थ लिया जाए तो वहाँ रूपकातिश्योक्ति अलंकार होता है ।

*उदाहरण*

पत्रा ही तिथि पाइये , वा घर के चहूँ पास ।
नित प्रति पून्योई रहत , आनन ओप उजास ।।
हनुमान की पूंछ में , लग न पाई आग ।
लंका सारी जरि गई , गए निसाचर भाग ।।

*2) सम्बन्धातिशयोक्ति*
जब दो वस्तुओं में कोई सम्बन्ध न होने पर भी संबंध बताया जाए तो वहाँ सम्बन्ध अतिश्योक्ति अलंकार होता है ।
*उदाहरण*
कोकन अति सब लोक ते , सुखप्रद राम प्रताप ।
बन्यो रहत जिन दम्पतिन , आठों पहर मिलाप ।।

*3) भेदकातिशयोक्ति अलंकार*
जब और ही निराला , न्यारा , आदि शब्दों से किसी की अत्यन्त प्रशंसा की जाए तो वहाँ भेदकातिश्योक्ति अलंकार होता है ।

*उदाहरण*

न्यारी रीति भूतल निहारी सिवराज की ।

*4) चपलातिशयोक्ति अलंकार*
जब कारण के होते ही तुरंत कार्य हो जाए तो वहाँ चपलातिश्योक्ति अलंकार होता है ।

*उदाहरण*

तब शिव तीसर नैन उधारा ।
चितवन काम भयउ जरि छारा ।।

*5) अति-क्रमातिशयोक्ति/अक्रमातिशयोक्ति*
जब कार्य और कारण एक साथ हो अर्थात् कारण के बाद ही कार्य घटित होता है किन्तु जब कारण के साथ ही कार्य होना वर्णित हो तो वहाँ अक्रमातिश्योक्ति अलंकार होता है ।

*उदाहरण*

बाणन के साथ छुटे प्राण दनुजन के ।

*6) असम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार*
जब सम्बन्ध होने पर भी संबंध न बताया जाए तो वहाँ असम्बन्ध अतिश्योक्ति अलंकार होता है ।

*उदाहरण*

विधि हरिहर कवि कोविद वानी ।
कहत साधु महिमा सकुचानी ।।

*7) अत्यन्तातिश्योक्ति अलंकार*
जब कारण के पहले ही कार्य हो जाए तो वहाँ अत्यन्तातिश्योक्ति अलंकार होता है ।

*उदाहरण*

शर खींच उसने तूण से कब किधर संधाना उन्हें ।
बस विद्ध होकर ही विपक्षी - वृन्द में जाना उन्हें ।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'




जहाँ किसी वस्तु या स्थिति का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाए।

जैसे
आगे नदिया पड़ी अपार, कैसे घोड़ा उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।

पुष्पा गुप्ता 'प्रांजलि'



*अतिशयोक्ति अलंकार*
काव्य में जहाँ  लोक सीमा का अतिक्रमण करके किसी बात को बढ़ा चढ़ा के कहा जाए,वो अतिशयोक्ति अलंकार कहलाता है।
*आगे नदिया पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार।*
*राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार॥*

यहाँ पर चेतक घोड़े की रफ़्तार को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है , अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है ।

अनुराधा चौहान 'सुज्ञ'



अतिशयोक्ति अलंकार

जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। अर्थात जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं। यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण के अलंकार के भेदों में से एक हैं।
कुछ उदाहरण

धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण।

ऊपर दिए गए वाक्य में बताया गया है कि जैसे ही अर्जुन ने धनुष उठाया और उस पर बाण चढ़ाया तभी धरती, आसमान एवं नदियाँ कांपने लगी ओर सभी जीवों के प्राण निकलने को हो गए।
यह बात बिलकुल असंभव है क्योंकि बिना बाण चलाये ऐसा हो ही नहीं सकता है। इस तथ्य का लोक सीमा से बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

भूप सहस दस एकहिं बारा। लगे उठावन टरत न टारा।।

ऊपर दिए गए उदाहरण में कहा गया है कि जब धनुर्भंग हो रहा था कोई राजा उस धनुष को उठा नहीं पा रहा था तब दस हज़ार रजा एक साथ उस धनुष को उठाने लगे लेकिन वह अपनी जगह से तनिक भी नहीं हिला।
यह बात बिलकुल असंभव है क्योंकि दस हज़ार लोग एक साथ धनुष को नहीं उठा सकते। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

परवल पाक, फाट हिय गोहूँ।

ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवि मालिक मोहम्मद जायसी ने नायिका नागमती के विरह का वर्णन करते हुए कहा है कि उसके विरह के ताप के कारण परवल पाक गए एवं गेहूं का हृदय फट गया।
लेकिन यह कथन बिलकुल असंभव हा क्योंकि गेहूं का कभी हृदय नहीं फट सकता है। अतः यह बात बढ़ा-चढ़ाकर बोली गयी है। अतएव यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।
नागमती विरह बारहवीं कक्षा में जब एक पाठ के रूप में पढ़ी थी । मैडम की कुछ बातें आज तक याद है ।
नागमती के सौन्दर्य का वर्णन अतिशयोक्ति बहुत ही उत्तम है ।

अनिता मंदिलवार सपना



जी उसमें एक उदाहरण यह भी दिया जाता है जिसमें नागमती की उंगली की अंगूठी कंगन बन जाती है ।

वह विरह में इतना दुबली हो गई है कि उसकी उंगली की अंगूठी कंगन बन गई है।
उन्होंने नागमती वियोग वर्णन में अतिशयोक्ति का खूब प्रयोग किया है का वर्णन किया है।

आशा शुक्ला 'कृत्तिका'



*वीर रस में अतिशयोक्ति* *अलंकार का स्थान।*

अलंकार रहित काव्य सूनी मांग जैसा होता है ।
काव्य में नौ रस हैं और हर अलग रस में कुछ अलंकार अपनी अलग शोभा दिखाते हैं।
ऐसे ही वीर रस ऐसा रस है, जिसका स्थाई भाव उत्साह है, जो लिखने, पढ़ने और सुनने वालों में एक जोश का संचार करता है।
वीर रस सिर्फ युद्ध भूमि या शत्रुओं से लड़ना भर नहीं है ,
एक विस्तृत क्षेत्र है वीर रस का..
शत्रु का उत्कर्ष, दीनों की दुर्दशा, धर्म की हानि आदि को देखकर इनको मिटाने के लिए किसी के हदय में उत्साह नामक भाव जागृत हो और वही विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भावों के संयोग, से रस रूप में परिणत हो तब ‘वीर रस होता है।

हम देखते हैं जब वीर रस सौम्यता से लिखा जाता है तो अपने में निहित भावों को पूरा आकाश नहीं दे पाता ,यदि वीर रस अतिशयोक्ति के साथ लिखा जाता है तो वो एक अलग विस्तार पाता है।
वीर रस में अतिरंजना साफ झलकती है पर वो एक ऐसी अनुभूति देती है कि श्रोता, पाठक जैसे स्वयं को जोड़ लेते हैं उस काव्य से।
मेरे अनुभव में वीर रस अतिरंजित हो तो असरकारी होता है  ।
एक बालक को कहते हैं दूध पीले जल्दी से पहलवान जितनी ताकत आ जायेगी और वो अबोध दूध झटाझट गटक कर अपनी मांसपेशियों को यूं तानकर देखता है कि जैसे वो तो पहलवान बन ही गया।
ऐसे ही पाठक और श्रोता जब अतिरंजित शोर्य सुनते पढ़ते हैं तो स्वमं को उस स्थान पर पाते हैं जैसे वे जुड़ गये हों उस वस्तु स्थिति से उनके मस्तिष्क पर भी एक सीधा प्रभाव पड़ता है कुछ सकारात्मक करने का।
इसलिए वीर रस में अतिशयोक्ति  अलंकार काव्य का आवश्यक अंग है मेरे विचार से 🙏।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

*जय माँ शारदे*
  *सरोज दुबे 'विधा'*
*कलम की सुगंध छंद शाला*
*अलंकार पर कार्य शाला*

        *वीर रस         अतिशयोक्तिअलंकार*
*वीर रस* -जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पति होती है तो उसे वीर रस कहा जाता है
उदाहरण -बुंदेलो हरबोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थीl
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी l

वीर रस -आलंबन, उद्दीपन, विभाव अनुभाव तथा संचारी भाव
वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है
*आलंबन* -शत्रु, धार्मिक ग्रंथ, पर्व, तीर्थ स्थान, दयनीय व्यक्ति आदि
*उद्दीपन*-शत्रु का पराक्रम, दान, धार्मिक कार्य, दुःखियों की सुरक्षा आदि
*संचारी भाव*-हर्ष,( मोह )दया,उत्सुकता, गर्व 
*वीर रस के भेद*- 4हैं
1. युद्ध वीर -जो रणभूमि में अपनी वीरता सिद्ध करता है उ. झाँसी की रानी, महाराणा प्रताप
2. धर्म वीर -जो धर्म निर्वाह के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे
उ.मर्यादा पुरूषोत्तम  राम
2. दानवीर -जो दुखी लाचार और विवश व्यक्ति को दान देने या  सहायता करने में समय तथा परिस्थिति नहीं देखता
उ. दानवीर कर्ण
4. दयावीर -दया धर्म का मूल है, जिसके पास दया है वही धर्म का निर्वाह कर सकता है जैसे रामजी
कर्मवीर -उस व्यक्ति को माना गया है जो कर्म करने में वीर हो

वीर रस के उदाहरण -
1. रण बीच चौकड़ी भर -भर कर, चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था
2. कब तक द्वन्द सम्हाला जाए,
युद्ध कहाँ तक टाला जाए
वंशज है महाराणा का चल फेंक जहाँ तक भाला जाए

*अतिशयोक्ति अलंकार*-
जब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बढ़ा -चढ़ा कर किया जाए तब वहाँ आतिशयोक्ति अंलकार होता है
इस अलंकार में असम्भव  तथ्य बोले जाते हैं
जैसे -1. हनुमान की पूँछ में, लग न पाई आग,
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग
2.आगे नदियां परी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार, तबतक चेतक था उस पार

3. परवल पाक, फाट हिय गेंहूँ
आदि
*सरोज दुबे,विधा,*
*रायपुर छत्तीसगढ़*



एक कुंडलिया वीर रस में

साहस शौर्य अदम्य था, सिंहों सी हुंकार।
होकर अश्व सवार वह, करे शत्रु संहार।।
करे  शत्रु  संहार,  काल बन उतरी रण में।
लिए हाथ तलवार, कोटि को काटे क्षण में।।
वह झाँसी की आग, तोड़ती  रिपु का ढाढस।
गोरे   थे   हैरान,  देखकर  उसका  साहस।।

___पुष्पा प्रांजलि



चंचला स्नान कर आये, चन्द्रिका पर्व में जैसे। उस पावन तन की शोभा, आलोक मधुर थी ऐसे।।
इन पंक्तियों में नायिका के रूप एवं सौंदर्य का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

देख लो साकेत नगरी है यही। स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं यहां एक नगरी की सुंदरता का वर्णन किया जा रहा है। यह वर्णन बहुत ही बढ़ा चढ़कर किया जा रहा है। जैसा की हम जानते हैं की जब किसी चीज़ का बहुत बढ़ा चढाकर वर्णन किया जाता है तो वहां अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

अतः ऊपर दी गयी पंक्ति भी अतिश्योक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगी।

मैं बरजी कैबार तू, इतकत लेती करौंट। पंखुरी लगे गुलाब की, परि है गात खरौंट।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं यहां गुलाब की पंहुरियों से शरीर में खरोंच आने की बात कही गयी है। अर्थात नारी को बहुत ही कोमल बताया गया है। जैसा की हम जानते हैं गुलाब की पंखुरिया बहुत ही कोमल होती हैं और उनसे हमें चोट नहीं लगती। यहां गुलाब की पंखुरियों से चोट लगने की बात कही गयी है जो की एक अतिश्योक्ति है।

अतः यह उदाहरण अतिश्योक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

बाँधा था विधु को किसने इन काली ज़ंजीरों में, मणिवाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ है हीरों से।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं कि कवि ने मोतियों से भरी हुई प्रिया की मांग का वर्णन किया है।

इन पंक्तियों में चाँद का मुख से काली ज़ंज़ीर का बालों से तथा मणिवाले फणियों से मोती भरी मांग का अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन किया गया है। जैसा की हम जानते हैं की जब किसी चीज़ का बढ़ा-चढ़कर उल्लेख किया जाता है तब वहां अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

अतः यह उदाहरण अतिश्योक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

देखि सुदामा की दीन दशा करुना करिके करुना निधि रोए।
ऊपर दिए गए उदाहरण में कवि का काव्यांश से तात्पर्य है की सुदामा की दरिद्रावस्था को देखकर कृष्ण का रोना और उनकी आँखों से इतने आँसू गिरना कि उससे पैर धोने के वर्णन में अतिशयोक्ति है। अतः यह उदाहरण अतिश्योक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

कहती हुई यूँ उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। हिम कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए।।
जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं , यहाँ उत्तरा के जल (आँसू) भरे नयनों (उपमेय) में हिमकणों से परिपूर्ण कमल (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है। अर्थात उत्तरा के रोने का बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया गया है। जैसा की परिभाषित है की जब भी किसी तथ्य का बढ़ा चढ़ा कर वर्णन होता है तो वहां अतिश्योक्ति अलंकर होता है।

अतः यह उदाहरण अतिश्योक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

दादुर धुनि चहुँ दिशा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं, यहाँ मेंढकों की आवाज़ (उपमेय) में ब्रह्मचारी समुदाय द्वारा वेद पढ़ने की संभावना प्रकट की गई है। यह एक तथ्य है की मेंढकों की आवाज़ में एवं वेड पढने में बहुत ही ज्यादा फर्क होता है अतः मेंढकों के आवाज़ निकालने को वेद पढने से तुलना किया गया है।

1
अतिशयोक्ति वीर रस,
जैसे चंदन पानी।
घुल के देते हैं हमें ,
अद्भुत गंध सुहानी
आल्हा से जब मेल हुआ तो
गर्जन लागे मेह
मनभावन मनमोहनी
अब कविता की देह

2
चम-चम  चम-चम सूरज जैसी
चमक रही रानी तलवार
एक वार से शत्रु अनेकों
कट  गिरते सिर बारंबार

कुछ उदाहरण

तुम्हारी या दंतुरित मुस्कान ,मृतक में भी डाल देगी जान।

मृतक शरीर में मुस्कान के माध्यम से जान फुकना लोक सीमा से परे का विषय है। अर्थात यहां अतिशयोक्ति का प्रयोग किया गया है।

जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया
असमर्थ हो उसके कथन में ,मौन वाणी ने किया।

अद्भुत वीरता का प्रदर्शन देख वाणी के द्वारा उसे व्यक्त नहीं किया जा सका और वह सभी बातें वीरता का वर्णन मौन वाणी अर्थात चुप रह कर हो गई। यह संभव से परे की बात है चुप रह कर कोई बात कैसे कह सकता है।

पिय सो कहेहु सँदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग
सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुंआ हम लाग।

नायिका कौआ के माध्यम से अपने प्रेमी के पास संदेशा भेज रही है और काला धुआं उठने का स्रोत स्वयं के शरीर को बता रही है ,जबकि वास्तविकता में ऐसा संभव नहीं है।

*अतिशयोक्ति अलंकार की पहचान*

अतिशयोक्ति अलंकार को साधारण रूप में समझें तो इसके अंतर्गत बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाता है। अर्थात जो कार्य संभव नहीं है उसको भी शब्दों के चमत्कार से संभव और सरल बताया जाता है।

जैसे क्रोध में व्यक्ति कहता है फूंक मार कर पहाड़ उड़ा दूंगा वास्तविक रूप से यह संभव नहीं है। किंतु काव्य में प्रयुक्त हुआ है ,अतः यह  *अतिशयोक्ति अलंकार* का अंग बन जाता है।

डॉ मंजुला श्रीवास्तव 'मंजुल'


*आल्हा छंद पर दूसरा प्रयास*

भीम उठाकर गदा डराता,
बात हृदय में लेता ठान।
दुर्योधन को ललकार रहा,
रक्त बहा होगा जलपान।।

कृष्ण कहे सुन लो कौरव तुम,
आज लडूंगा बिन हथियार।
सिर्फ रहूंगा चालक बनकर,
धर्म विजय को हूं तैयार।।

  *परमजीत सिंह कोविद*

*एक उदाहरण*

वेणी केणी सी साजती, महकी कटि शृंगार से।
अस्त्रों शस्त्रों को दागती, धनुषी बाण प्रहार से।।

*संजय कौशिक 'विज्ञात'*



भाला फेंका जब राणा नें,
दबकर मरे मुगल चालीस

बाबूलाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ'

आल्हा छंद 16/ 15

चेतक
-------

डर से दुश्मन काँपे थर -थर
चेतक ने ली जब चिंघाड़।
तृण रज टाप उड़े वारिद  से
वीर बली देता है झाड़।

अरि मस्तक पर दौड़ रहा है,
राणा का था वह हथियार ।
पुतली के राणा से पहले ,
मुड़ने को चेतक तैयार ।

शक्ति दिखाकर उड़ जाता है,
पाता ठाँव नहीं ठहराव।
वाम दिखा फिर दौड़ा सरपट ,
पार किया है हर बहकाव।

करवालों में सरपट दौड़ा ,
भान नहीं अरि दल की चाल।
फँसकर रोक लिया नाले ने,
घात किया धोखा विकराल।

अंत हुआ चेतक का ऐसे,
चेतन राणा का था भंग।
तब प्रतिशोध भरा था मन में,
ज्वाला जलती धू-धू अंग।

अर्चना पाठक 'निरंतर'

वीर रस के अवयव
स्थाई भाव -उत्साह
आलंबन (विभाव)- अत्याचारी शत्रु उद्दीपन (विभाव)- शत्रु का पराक्रम, शत्रु का अहंकार, रण वाद्य, यश की इच्छा ।
अनुभाव -कम्प, धर्मानुकूल आचरण, पूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि। संचारी भाव -आवेग, उग्रता ,गर्व में औत्सुक्य, चपलता ,घृति, स्मृति उत्सुकता आदि।

अर्चना पाठक 'निरंतर'

सभी विद्वजन को सादर अभिवादन
कलम की सुगंधशाला, आ0 अनिता जी,गुरुदेव , आ0 सपना जी के सतत प्रयास को सादर नमन 
जो निरंतर विभिन्न विषयों पर कार्यशाला आयोजित कर
हम सबका ज्ञान वर्धन करते हैं ।
आप सब की सहभागिता को नमन ।
आज की कार्यशाला वीर रस और अतिश्योक्ति अलंकार पर आयोजित की गई है।

जिस कथ्य और काव्य से वीरता युक्त भाव प्रकट हो ,
रक्त धमनियों में उबलने लगे ,सुषुप्त मन को जागृत कर उत्साह उमंग की अविरल नदियाँ प्रवाहित होने लगे, वही वीर रस होता है।
योद्धा अथवा पराक्रमी व्यक्ति का गुणगान कर लेखनी उस परिवेश का जीवंत चित्रण करते हुए कागद रँगती रहती हैं।
गौरव गाथा का सुंदर चित्रण वीर को, काव्य को और सृजनकार को युगों तक अजर अमर अक्षत कर देता है।
वीर रस का स्थाई भाव उत्साह है।
एक दुविधा सदा उत्पन्न होती है कि वीर रस और रौद्र रस की पहचान कैसे की जाए।
इसका कारण यह है कि दोनों के उपादान बहुधा एक - दूसरे से मिलते-जुलते हैं। दोनों के आलम्बन शत्रु तथा उद्दीपन उनकी चेष्टाएँ हैं। 
परंतु ये सदा ही ध्यान में रखें कि

*रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध*  तथा
*वीर रस का स्थायी भाव उत्साह*  है।

वीर रस के अवयव स्थायी भाव ,आलंबन, उद्दीपन ,
अनुभाव और संचारी भाव मिलकर उत्साह पूर्वक
ऐसे काव्य गाथा का सृजन करते हैं कि अतिश्योक्ति अलंकार स्वतः ही प्रवेश कर जाता है।

बेटी घर आँगन मुस्कायी,आज नहीं था अत्याचार।
छींट नहीं शोणित की कोई,आज दिखा ऐसा अखबार।।

जैसे ये कथ्य असंभव सा ही लग रहा है।और अतिश्योक्ति का प्रयोग अनायास ही हुआ ।

सादर

अनिता सुधीर आख्या

*अतिशयोक्ति अंलकार*

अतिशयोक्ति ( अतिशय +उक्ति )
हिन्दी भाषा में  प्रयोग अलंकार के रूप में किया जाता है ।
बढ़ा चढ़ाकर तथा अपनी ओर से बहुत कुछ मिलाकर कही हुई बात। (एग्जैजरेशन) एक अलंकार जिसमें किसी की निंदा,प्रशंसा आदि करते समय कोई बात साधारण से बहुत अधिक बढ़ा चढ़ाकर कही जाती है।
हिन्दी के गद्य पद्य दोनों विधाओ में यह उदाहरण के लिए हम पढ व सुन सकते है।यथा-

"अगर उसको एक अच्छा शिल्पी कहें , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।"-अतिशयोक्ति शब्द का उपयोग सरोजिनी साहू ने अपनी कहानी बलात्कृता इस प्रकार से किया है.

"कहना अतिशयोक्ति न होगी कि हमारा गांव एक आदर्श गांव था ।"अतिशयोक्ति शब्द का उपयोग आर.के.भारद्वाज ने अपनी कहानी मसखरा इस प्रकार किया है ।
यह तो कथन मे प्रयुक्त है।पर
सामान्य तौर पर देखिए
जैसे - बच्चों ने घर सर पर उठा रखा है ।
बच्चे तो घर को अपने सर पर नहीं उठा सकते परन्तु उन्होंने इतना शोर मचा रखा है कि उक्त वाक्य कहना पड़ा ।

हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग।
सारी लंका जल गई गए निश्चय भाग।

स्कूल में पढ़े थे यह उदाहरण जो आज तक याद है।
कबीर की उलटबासियो मे -"कूता को ले गई बिलाई " जैसी अतिशयोक्ति को समझने मे सहायक है।

मीता अग्रवाल

*अलंकार पर कार्यशाला*
*१५ मई २०२१*
*विषय - वीर रस और अतिशयोक्ति अलंकार का तालमेल*
( *संशोधित लेख*)
साहित्य जगत में रस को काव्य की आत्मा माना गया है। नौ रसों में एक वीर रस है। किसी भी कविता को लिखने पढ़ने और सुनने से उत्पन्न होने वाले मनोभाव से जिस अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है उसे ही *रस* कहते हैं। किसी भी छंद में रस और अलंकार का यथोचित प्रयोग शब्दालंकार और अर्थालंकारों की परिधि में ही अतिशयोक्ति लाता है। यही काव्य कामिनी को सौन्दर्य प्रदान कराने वाले *अलंकार* कहलाते हैं।अलंकार का अर्थ ही आभूषण होता है। जिस तरह नारी के सौंदर्य में आभूषण चार चाँद  लगाते हैं वैसे ही  अतिशय से पूर्ण  निखार कर परिभाषा की सीमा में बाँधकर वीरता,युद्ध क्षेत्र, सौन्दर्य,करुणा,ओज आदि घटनाक्रम की नाटकीयता का बखान करना ही काव्य को श्रेष्ठता तक पहुँचाता है।
काव्य में रस, छंद और अलंकार महत्वपूर्ण अंग होते हैं , इनके प्रयोग से ही रचनात्मक भाव प्रकट होते हैं।साथ ही  प्रत्येक छंद का एक स्थाई भाव होता है। वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता है।जब- जब काव्य में उत्साह , उमंग,पराक्रम, शौर्य, वीरता,रोमांच से संबंधित भाव का उल्लेख आता है वहाँ वीर रस की उत्पत्ति होती है।
**- हनुमान की पूंछ में लग न पायी आग।
सगरी लंका जल गई, गये निशाचर भाग।।
**- रण बीच चौकड़ी भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था।।
       अलंकार के ओज रूप में सुंदर अतिशय भरे शब्द ,भूमिका, व्याख्या, रणक्षेत्र और घटनाक्रम की रोचक लेखन शैली से वाक्य का अर्थ काव्य में उच्च प्रभाव देता हैं। *अतिशयोक्ति अलंकारों* का *वीर रस* के छंदों में प्रयोग और ताल-मेल   काव्य में अपेक्षाकृत अच्छा प्रभाव उत्पन्न करता है। ऐसा सृजन अपने आप में अनुपम होता है।
जो सर्वथा उचित है।

डाॅ. सीमा अवस्थी "मिनी"
भाटापारा, ३६गढ़।

अतिशयोक्ति का एक उदाहरण

नाम निराला  लक्ष्मी बाई,
काली‌ की थी वो अवतार
आँख उठे तो आँधी आये ,
कट कट काटे शीश कटार।।

धनेश्वरी देवांगन 'धरा'

वीर रस और आल्हा लिखने के लिए  जरूरी नहीं इतिहास जानना व पढना आवश्यक है बस पढ़ना आवश्यक है,आँखे और कान खुल्ले रखने होंगे हम सामायिक परिस्थितियों में से बहुत कुछ उठा सकते हैं जिनपर वीर रस लिखा जा सकता है।
जिस भी कार्य में  उत्साह का अतिरेक हो...
वीर रस सिर्फ युद्ध भूमि या शत्रुओं से लड़ना भर नहीं है ,
एक विस्तृत क्षेत्र है वीर रस का..
शत्रु का उत्कर्ष, दीनों की दुर्दशा, धर्म की हानि आदि को देखकर इनको मिटाने के लिए किसी के हदय में उत्साह नामक भाव जागृत हो और वही विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भावों के संयोग, से रस रूप में परिणत हो तब ‘वीर रस होता है।
पर हमें हर काव्य सृजन के लिए
पढ़ना बहुत जरूरी है हम जितना पढ़ेगें हमारा लेखन उतना परिमार्जित होगा।
जी सही है चरित्र पर लिखने के लिए उस समय विशेष में जाना आवश्यक है ।
पर मेरा आशय इतना है कि सिर्फ इतिहास ही नहीं बहुत चरित्र हम ले सकते हैं ।
मुख्य वस्तु है पठन
सामायिक
इतिहास
पौराणिक
या पुराने ग्रंथ
या विषय वस्तु से संबंधित

मंच को नमन 🙏माँ वीणा पाणी को नमन🙏आदरणीय गुरुदेव को नमन एंव सभी विशिष्ट योग्य प्रबुद्ध विज्ञ आत्मीय जनों के साथ मंच पर उपस्थित सभी सह
सदस्यों को नमन एवं हार्दिक आभार।
आज की कार्यशाला बहुत उपयोगी रही। संचालन बेमिसाल रहा।
आज माँ वीणा पाणी के साथ
*विद्यावारिधि*  बुद्धि के देव गणेश जी स्वयं मंच पर उपस्थित थे ,मुझे महसूस हुआ ऐसा
अतिशयोक्ति लग सकती है पर सच कहूं तो उस अपरिमित शक्ति के बिना ऐसा होना संभव नहीं है।
अभिराम कार्यशाला, हर सदस्य सार्थक समाधान के साथ उपस्थित।
सभी को नमन सह शुभकामनाएं।🙏🌹
गुरुदेव की निरंतर उपस्थित और समाधान वाच्य से कार्यशाला में
शशधर की आभा आलोकित रही पूरे समय।🙏

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

*आज की अतिशयोक्ति अलंकार पर ज्ञानोपयोगी कार्यशाला में आ. गुरु देव विज्ञात जी, सुवासिता बहन, विदुषी दीदी सपना दीदी, विधा दीदी,सखी मीता जी,आख्या दीदी, आ. पंडा भैयाजी और अन्य उपस्थित विद्वानों द्वारा बहुत ही रोचक और सारगर्भित जानकारी प्रदान की गई ।पटल पर आए जिज्ञासा से भरे प्रश्नों का समुचित समाधान भी किया गया । मेरे लेख का सूक्ष्मता से पढ़कर संतोष जनक समीक्षा हेतु  आप सभी का हार्दिक आभार 💐💐सभी की उपस्थिति को नमन मेरा🙏🙏

डॉ सीमा अवस्थी मिनी

धन्यवाद सखी अनिता जी आपने मुझे  इस कार्यक्रम में संलग्न किया 🙏🙏हार्दिक आभार आदरणीय विज्ञात जी , विज्ञ जी , नीतू जी , और सभी भाई बहनों का🌹🌹🌹🌹🌹आशा करती हूँ कि ऐसे ही ज्ञान वर्धक कार्यक्रम आगे भी  होते जायेंगे और हम अपने ज्ञान कोष का विस्तार करते जायेंगे।🌹🌹🙏🙏

मधुसिंघी

सर्वप्रथम गुरुदेव विज्ञात जी को नमन करती हूँ , जो हमेशा ही कुछ न कुछ नूतन प्रयोग कर हम सभी को लाभान्वित करते रहते हैं ,
*मुखिया मुख सो चाहिए*
बिल्कुल वैसे ही हमारे इस स्वर्ग के समान पावन परिवार के मुखिया गुरुदेव जी हैं जो अपने हर अंश का बराबर ध्यान रखते हैं , उनके सभी ऑडियो सुनी ज्ञान और मार्गदर्शन से ओतप्रोत सभी के लिए उपयोगी सार्थक वचन आपका , सभी साथी जो नहीं जुड़ पाए गुरुदेव जी को अवश्य सुनिए ।
आदरणीया नीतू जी का लेख *गागर में सागर* भरता अतिश्योक्ति अलंकार को पूर्णरूपेण परिभाषित करता हुआ अत्युत्तम लेख , जो सबका मार्गदर्शन करने में सक्षम है ।
आदरणीया अनिता दीदी , आदरणीया मीता ,  जी आदरणीया सीमा जी , आदरणीया चमेली बहन , आदरणीया कुसुम जी सभी के बहुत ही सुंदर सरल शब्दों में अतिशयोक्ति अलंकार को रखा ।
आदरणीय बाबूलाल भैया जो हम सबके प्रेरणा स्रोत हैं , उनका मार्गदर्शन सराहनीय रहा , और सभी ज्ञानेक्षु मेरे परिवार के साथियों की उत्सुकता और समस्या का समाधान अत्यंत ही सराहनीय रहा । इसके लिए आप सभी का साधुवाद ।
*निश्चित ही यह कार्यशाला बहुत ही उपयोगी और सार्थक सिद्ध होगी🙏🙏🙏🙏*