Monday 20 July 2020

तपती धरती : भरत नायक 'बाबूजी'


कविवर भरत नायक 'बाबूजी' एक ऐसा नाम जो साहित्य जगत में किसी भी परिचय का मोहताज नहीं है। साहित्य की शीतल धारा उनकी लेखनी से प्रस्फुटित होकर इस प्रकार बह कर निकलती है कि पाठक मंत्र मुग्ध पड़ता सा उसमें स्नान करता सा प्रतीत होता है। आज हम उन्हीं की एक रचना को आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं 

*"संक्षिप्त जीवन परिचय"*-
1- नाम- भरत नायक "बाबूजी"
2- माता का नाम- स्व. चम्पादेवी नायक
 पिता का नाम- स्व. अभयराम नायक
सहधर्मिणी का नाम- श्रीमती राजकुमारी नायक
संतान- श्रीमती रजनी बाला चौधरी (बडी- पुत्री)
दुष्यंत कुमार नायक (छोटा- पुत्र)
3- स्थाई पता- लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.), पिन- 496100
4- मो. नं.- 9340623421
5- जन्म तिथि- 11- 06- 1956
जन्म स्थल- लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.)
6- शिक्षा- स्नातकोत्तर (हिंदी, समाज शास्त्र), बी. टी., रत्न
7- व्यवसाय- सेवा निवृत्त व्याख्याता
8- प्रकाशित रचनाओं की संख्या- पंच शताधिक
9- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या- साझा संकलन- तीस, एकल- एक ("भोर करे अगवानी"- छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)
10- काव्य पाठ का विवरण- दिल्ली सहित देश के विभिन्न भागों के सैकड़ों मंचों पर काव्य पाठ अध्यक्षता, मुख्य आतिथ्य,विशेष आतिथ्य एवं आकाशवाणी से प्रसारण।
11- सम्मान का विवरण- छ. ग. शासन, प्रशासन एवं भा. द. सा. अकादमी नयी दिल्ली से डॉ. अम्बेडकर फैलोशिप  सम्मान, अखिल भारतीय राष्ट्रीय कवि संगम छत्तीसगढ़ इकाई से वरिष्ठ साहित्यकार दिनकर सम्मान के साथ शताधिक  विभिन्न सम्मान एवं अभिनंदन ।
12- लेखन- हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी भाषा में स्वतंत्र लेखन।
प्रतिनिधित्व- नवोन्मेष रचना मंच घरघोड़ा, रायगढ़ का संस्थापक अध्यक्ष, कला कौशल साहित्य संगम छत्तीसगढ़ का संस्थापक/अध्यक्ष, भरत साहित्य मंडल, लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.) का संस्थापक, अनेक साहित्यिक पटलों एवं साहित्यानुरागियों का मार्गदर्शन।
13- Email ID- bharatlalnaik3@gmail.com

संकलन कर्त्ता 
नीतू ठाकुर विदुषी

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*"तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को"*
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(लावणी छंद गीत)
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विधान- १६,१४ मात्राओं के साथ ३० मात्रा प्रतिपद। पदांत लघु गुरु का कोई बंधन नहीं। युगल पद तुकबंदी।
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●धरा कहे सरसा दो जल से, वासव! मम उर-अंतर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
नीर-दान दे आज सँवारो, मेरे तन-मन जर्जर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।

●मेरा तप कब होगा पूरा? हे घनवाहन! बतलाना।
खंजर-दाघ-निदाघ भोंक अब, छलनी और न करवाना।।
व्याकुल होकर आज धरा है, करे पुकार पुरंदर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।

●कृष्ण-मेघ बरसोगे कब तुम? मुझको कब सरसाओगे?
तृषित चराचर चित चिंतन को, बोलो कब हरसाओगे??
करो वृष्टि अब सृष्टि तृप्त हो, रच भू-गगन स्वयंबर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।

●नित उजाड़ शृंगार धरा का, हरियाली को तरसेंगे।
बची रहेगी अटवी अपनी, बादल भी तब बरसेंगे।।
देखे मन मारे महि-मीरा, अपने अंबर-गिरधर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।

●जीव जंतु नग नदियाँ घाटी, तरस रहे हैं पानी को।
प्रतिबंधित अब करनी होगी, मानव की मनमानी को।।
ताप नित्य बढ़ता है वैश्विक, ज्ञान गहो अब उर्वर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।

●आये दिन यह मानसून भी, अब धोखा दे जाता है।
हाल हुआ है बद से बदतर, फाँसी कृषक लगाता है।।
त्राहिमाम भू कहती "नायक", पुकारती है ईश्वर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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@kalam_ki_sugandh