Thursday 20 February 2020

विरोधाभास : हिंदी साहित्य की एक आवश्यता- सुशीला जोशी मुज्जफरनगर

विरोधाभास : हिंदी साहित्य की  एक आवश्यता
: सुशीला जोशी मुज्जफरनगर

    विरोधाभास लेखन की वह अलंकार या  शैली  है जिससे किसी कहन में विरोध न होते हुए भी विरोधी आभास दे जाता है । जैसे -
" सुधि  आय , सुधि जाय "
"पिल्ले तो रोज गाड़ी के नीचे आते जाते रहते है।"
 यद्यपि इन वाक्यों में कहीं कोई विरोध नही है लेकिन फिर भी विरोध का आभास दे रहा है ।
      यदि विचार किया जाय तो पूरी प्रकृति विरोधाभास पर टिकी है । जन्म -मरण, दुख -सुख , प्रेम -घृणा, निर्माण -विनाश  जैसे आधार ले कर प्रकृति अडिग खड़ी विरोधाभास का निर्वहन कर रही है , क्योकि  ये एक दूसरे के पूरक हैं । प्रकृति को  अक्षुण बनाये रखने में सहायक है । प्रकृति के क्रियाकलाप परिवर्तन व विनाश के आधार पर ही सम्भव हैं ।
      असंगति , विभावना , और विशेषोक्ति सब विरोधाभास के ही पर्याय हैं  या ये सब विरोधाभास के प्रकार हैं ।
*विरोधाभास क्या है?*

1-- पद में कोई विरोधी बात या विचार न होते हुए भी जब कोई विरोध जताता है तो उसे विरोधाभास कहा जाता है ---
या अनुरागी चित्त की, गति समझे न कोय
*ज्यों ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों त्यों उजले होय*

अवध को अपना कर त्याग से
तपोवन प्रभु ने किया
भरत ने उनके अनुराग से
भवन में वन का व्रत लिया

2--एक ही वाक्य में आपस मे कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाय --वहाँ विरोधाभास होता है --
 *मुहब्बत एक मीठा जहर*

3--एक ही वक्तव्य में विरोधाभाषी  या विरोधी विचारों को प्रतिपादित किया गया हो ,वहाँ विरोधाभास होता है --
*गर्जनापूर्ण शांति/ मीठा दुख*

4-वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास ही विरोधाभास है --
*बिषमयी गोदावरी , अमृतं जल देय*

*प्रकार*...

*असंगति*-- दो असम्भव चीजों के एक साथ प्रयोग में असंगति विरोधाभास होता है ---
*मैं अंधा भी देख रहा हूँ ,तुम्हारा रोना*

*विभावना*--- बिना कारण के किसी कार्य की संभावना दर्शाना विभावना विरोधाभास होता है --
*नीर भरे नितप्रति रहे, न तो प्यास बुझाई*

*विशेषोक्ति*-- किसी असम्भव बात को विशेष परिस्थितियों में सम्भव दर्शाने के लिए विशेषोक्ति का प्रयोग किया जाता है --
*वन सुन्य जबते मधुर , तबते सुनत न बैन*

*बिनु पड़ चलै ,सुनै बिनु काना*

*विरोधाभास का प्रतिपादन*....
       विरोधाभास को दो प्रकार से प्रतिपादित किया जा सकता है -
*1---तार्किक  रूप में*
      इस प्रकार में बहुधा विरोध तर्कसंगत होता है --
*नाई अपने बाल अपने आप नही काटता*

*2--गणित रूप में*----
 इसके प्रतिपादन में सबको एक सी संज्ञा दी जाती है --
*लंका में सभी बावन गज के*

*विरोधाभास की आवश्यकता* .....
साहित्य में आज के तकनीकी युग मे विरोधाभास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि---
1---यह वर्ण -सम्बंधी जटिलताओं के बारे में सोचने को विवश करता है । 
2--यथार्थ को परखने को विवश करता है ।
3-- यद्यपि कभी कभी दुविधा भी उतपन्न करता है किंतु फिर भी उसके निराकरण का मार्ग दिखाता है ।।
4--- लेखक के अंतरात्मा की दुविधा को प्रस्तुत करता है ।
5-- विरोधाभास सत्य व्यक्ति परक है ।
6-- सरकार द्वारा परिभाषित विरोधाभास भी व्यक्तित्वों व भूखण्डों से जुड़ी  परतों और गहराइयों से जुड़ा  हैं  ।
      सामाजिक , राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय असंगतियों का हल ढूंढता है ।
7--लेखक के बुद्धि वैपर्य को निखार कुशाग्र बनाता है ।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर

Wednesday 5 February 2020

कुण्डलियाँ...सहना, वंदन

[05/02 6 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला*
.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - ०५.०२.२०२०
.                    🌼🌼🌼
कुण्डलियाँ (1)
विषय-  *सहना*
सहना सुख का भी कठिन, उपजे मान घमंड!
गर्व  किये  सुख  कब  रहे, हो संतति  उद्दण्ड!
हो   संतति   उद्दण्ड ,चैन   सुख  सारे   खोते!
हो अशांत  आक्रोश, बीज खुद दुख  के बोते!
शर्मा   बाबू   लाल, मीत  दुख  संगत   रहना!
कृपा ईश की मान, मिले जो दुख सुख सहना!
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कुण्डलियाँ (2)
विषय-   *वंदन*
वंदन करें किसान का, जय जय वीर जवान!
नमन श्रमिक मजदूर फिर, देश धरा विज्ञान!
देश धरा विज्ञान, लोक शिक्षक कवि सरिता!
सागर  पर्वत  पेड़, पिता  माता  की कमिता!
शर्मा   बाबू  लाल , पूज  शिव - गौरी  नंदन!
गाय  गगन खग नीर, वात  पावक का वंदन!
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रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[05/02 6:00 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
अनंत पुरोहित 'अनंत'

63) थाली

धागा थाली में रखा, पागा उसमें स्नेह।
रक्षाबंधन भोर में,  प्रेम भरा यह गेह।।
प्रेम भरा यह गेह, खुशी कण-कण में ढलकी।
भ्राता भगिनी प्रेम, आँख माता की छलकी।।
कह अनंत कविराय, पवित बंधन यह तागा।
स्नेह सुधा मनुहार, समेटे है यह धागा।।

64) बाती

बाती दीपक साथ में, करते साथ प्रकाश।
अंधकार को दूर कर, लाते नया उजास।।
लाते नया उजास, आस मन में हैं भरते।।
धारण कर उत्साह, मार्ग रौशन हैं करते।।
कह अनंत कविराय, उजाला खुशियाँ लाती।
करते मार्ग प्रशस्त, संग मिल दीपक बाती।।

65) आशा

आशा का दीपक सदा, मन में करे प्रकाश।
करता रह कर्तव्य को, प्रभु पर रख विश्वास।।
प्रभु पर रख विश्वास, कर्म को मन से करना।
दुश्चिंता को त्याग, लक्ष्य से कभी न डरना।।
कह अनंत कविराय, पास आए न निराशा।
मन को कर मजबूत, सदा रख उसमें आशा।।

66) उड़ना

उड़ना तुम आकाश में, ज्ञान डोर को थाम।
सारी दुनिया में करो, मात पिता का नाम।।
मात पिता का नाम, लोग तुमसे ही जानें।
बिटिया तुमपर गर्व, तुम्हें कुल गौरव मानें।।
कह अनंत कविराय, नहीं तुम पीछे मुड़ना।
कदम बढ़े हर बार, सदा ऊँचा ही उड़ना।।

रचनाकार-
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[05/02 6:02 PM] केवरा यदु मीरा: चित्र चिंतन

पीली चादर ओढ़ के, धरा रही मुस्काय।
बच्चे सारे आ गये, देखो पतंग उड़ाय ।

सरसों गाती गीत हैं,आज पवन के संग ।
झूम झूम कर नाचती, कहे लगालो अंग ।।

ऋत बासंती आगयी, कोयल कूके बाग।
आजा अब परदेसिया, गायें मिलकर फाग ।।

पवन बसंती जा कहो साजन को संदेश ।
आया है ऋतु राज अब, सही न जाये क्लेश ।।

फूल फूल को चूम कर, मधुप मचाये शोर ।
विरह अगन में मैं जलूँ, आजा रे चितचोर ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[05/02 6:02 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
शतकवीर हेतु कुंडलियां
 विषय  सहना ,वंदन दिनांक 05/02/ 2020

 सहना(83)

 सहना पड़ता है सदा, अपना दुखड़ा आप।
औरों के दुख दर्द से, अपना दुख मत माप।।
 अपना दुख मत माप, दुखी हैं सब संसारी।
सहने को तो दर्द, सदा करना तैयारी।
 कह राधेगोपाल, नदी में सुख की बहना।
 अपना दुखड़ा आप, सदा  पड़ता हैं सहना।।

वंदन (84)
वंदन है माँ शारदे, तुम को बारंबार।
 तुमसे ही चलती रहे, ज्ञान नदी की धार।
 ज्ञान नदी की धार, सदा हिम्मत दे देना।
 छेड़ के वीणा तार,सभी दुख तुम हर लेना।
 कह राधेगोपाल, अरे तुम सुनना क्रंदन।
 तुम को बारंबार, शारदे करते वंदन।।

राधा तिवारी"राधेगोपाल"
 खटीमा
उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
[05/02 6:03 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 05.02.2020 (बुधवार)

(83)
विषय - सहना

सहना है हर दुःख को,सुख के दिन तो चार।
बिना दुःख के सुख नहीं, रीत यही संसार।।
रीत  यही  संसार, कर्म  सबको  है  करना।
प्यार मिले स्वीकार,किसी से क्यों है डरना।।
कहे विनायक राज,किसी से कुछ मत कहना।
भाग्य लिखा जो आज,सभी को सब कुछ सहना।।

(84)
विषय - वंदन

वंदन माटी का करूँ, जन्म  मिले  हर बार।
देह  समर्पण  देश हित, हो  मेरे  करतार।।
हो  मेरे   करतार,   प्रार्थना   तुमसे   मेरा।
जीवन के दिन चार, बिते  चरणों में तेरा।।
कहे विनायक राज,धरा की माटी चन्दन।
नित उठ सुबहो शाम,करूँ मैं इसकी वंदन।।

बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[05/02 6:11 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

  *05/02/2020*
*दिन - बुधवार*
*विषय - सहना, वंदन*
*विधा-कुंडलियां*

                     *83-सहना*
सहना आता है नहीं,गलत दिखे जो काम।
करते हैं वहीं हिसाब, और देश का नाम।
और  देश का नाम, कांपते दुश्मन सारे।
भारत  वीर  महान,सभी हैं इससे  हारे।
कहती सरला आज,माने जो नहीं कहना।
दुश्मन मद हो चूर, वीर जानते न सहना। 
 
                   *84-वंदन*
वंदन मां तेरी करूं, चरणों में रख माथ,
करना मां कृपा सदा, रखना मुझको साथ।
रखना मुझको साथ,आस करना मां पूरी।
देना मां  आशीष, साध न  रहे  अधूरी।
कहती सरला आज, लगाती माथे चंदन।
दीपक लेकर हाथ, करूं मैं मां का वंदन।

*डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'*
*दिल्ली*
[05/02 6:13 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
कुंडलिया(८३)

विषय-सहना

सहना अत्याचार को,बनता है अभिशाप।
बढ़ता है अन्याय भी,बढ़ जाते हैं पाप।
बढ़ जाते हैं पाप,खड़ा दुर्भाग्य द्वार पर।
शोषण का दुख भोग,बैठ तू सदा हार कर।
कहती'अभि'यह देख,सदा बस रोते रहना।
अति वर्जित सर्वत्र, नहीं चुप रह कर सहना।

कुण्डलिया(८४)
विषय-वंदन

वंदन प्रभु तेरा करूँ,जपूँ तुम्हारा नाम।
ममता माया मोह में,मन न रहे निष्काम।
मन न रहे निष्काम,प्यास बढ़ती ही जाती।
मैले मन के भाव,सत्य मैं देख न पाती।
मैली काया सदा,बने अब कैसे चंदन।
'अभि' अज्ञानी रही,जानती कैसे वंदन?

रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[05/02 6:17 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
5/02/2020::बुधवार

सहना
सहना मीरा को पड़ा, कुल जग का अपमान।
राणा ने जो विष दिया, माना अमिय समान।।
माना अमिय समान, पान कर मीरा हाँसी।
धारा जोगन वेश ,भक्ति थी उसकी साँची।।
इकतारा ले हाथ , उतारा सारा गहना।
पड़ा बहुत अपमान ,भक्ति के कारण सहना।

वंदन

वंदन करती है धरा, आता जब ऋतुराज।
पवन बसन्ती झूमती, प्रकृति छेड़ती साज़।।
प्रकृति छेड़ती साज़, फ़ाग  के राग सुहाने।
करते भ्रमर गुँजार , लगी कलियाँ मुस्काने।।
टेसू महुआ खूब, महकते ज्यूँ हो चंदन।
आओ जी ऋतुराज, तुम्हारा घट घट वंदन।।
                    रजनी रामदेव
                       न्यू दिल्ली
[05/02 6:26 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक -05 /02/2020
दिन - बुधवार
83 - कुण्डलिया (1)
विषय - सहना
***************
सहना सबके भार को , कृपा सिंधु भगवान ।
ज्ञानी ध्यानी या अधम , या हों संत सुजान ।
या हों संत सुजान , सभी हैं तेरे बालक ।
जगत पिता जगदीश , तुम्हीं हो जग के पालक ।
मिले ईश आशीष , वही है सच्चा गहना ।
क्षमा शील हो आप , भार धरती का सहना ।।
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84 - कुण्डलिया (2)
विषय - वंदन
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वंदन है प्रभु आपको ,सुन लो पालनहार ।
भाव सुमन अर्पण करूँ , नमन करो स्वीकार ।
नमन करो स्वीकार , अकिंचन मुझको जानो ।
शरण पड़ी हूँ नाथ , भक्ति मेरी पहचानो ।
श्री चरणों की धूल , लगाऊँ माथे चंदन ।
रख दो करुणा हाथ , हृदय से है पग वंदन ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[05/02 6:30 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया कलम वीर हेतु

83.).   वंदन

वंदन करती आपकी , गौरी सुवन गणेश ।
दो हमको शुभकामना,  मिटे रोग अरु क्लेश ।।
मिटे रोग अरु क्लेश ,  गजानन अंतर्यामी ।
प्रथम पूज्य गणराज , आप हो सबके स्वामी ।।
कहे "धरा" कर जोड़ , करूँ नित नित अभिनंदन।
मिले हमें बल बुद्धि , ह्रदय से करती  वंदन।।

84 ).   सहना

सहना है हर त्रास को , मिले छाँव या धूप ।
समय मनुज का तो सदा, रहे कहाँ अनुरूप ?।
रहे कहाँ अनुरूप , भला क्यों नैना रोती ?।
रखो चित्त में आस ,सीप मन धीरज मोती ।।
कहे "धरा" धर धीर , परम सुख संयम गहना ।
होगी बाधा त्राण , धैर्य से सुख दुख सहना ।।


*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[05/02 6:35 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *सहना, वंदन*
दिनांक  --- 5.2.2020....

(83)               *सहना*

सहना दर्द बहुत पड़ा ‌,  मत सह अत्याचार ।
पहल करे को रोक दे‌ , उचित यही व्यवहार ।
उचित यही व्यवहार , सुता ‌को समझा देना ।
रोको अनुचित कर्म , धर्म मानवता कहना ।
कह कुमकुम करजोरि , सुनो तुम मेरी बहना ।
मत करना बरजोरि , कभी पीड़ा भी सहना ।।


(84)              *वंदन*

वंदन सदा चरण‌न की‌ , प्रभुवर आठों याम ।
रहना मेरे साथ में , करती तेरा काम‌ ।
करती तेरा काम , सदा जपती हूँ भगवन ।
नित लेती हूँ नाम , कभी घुमती हूँ उपवन ।
सदा किया है ध्यान , रहे जीवन यूँ नंदन ।
जगत कहे जब राम , सदा ही तेरा वंदन‌ ।।


🌹 प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
      दिनांक  5.2.2020......

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[05/02 6:49 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला।
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए।
कुंडलियाँ क्र.89
विषय_ सहना
सहना सीखें मात से,सुखी रखे परिवार।
कठिनाई सह के सभी,चलता है संसार।
चलता है संसार,सुबह से उठ लेती हैं।
सब का रखती ध्यान,काम सब कर देती है। रहता कमल बुखार, कहाँ सीखा है कहना।
माँ है घर की नींव,बोझ जाने है सहना।

कुंडलियाँ क्र 90
 विषय_वंदन
वंदन गुरुजन आपको,गये छंद सब जान।   आगे भी आशीष दें,सदा ही रखना ध्यान।
सदा ही रखना ध्यान,और कविता सिखलाना।
सिखला देना पूर्ण,निपुण सब को कर जाना।
कमल चरण की धूल,माथ हो जैसे चंदन। 
हम करते नित याद,आपको गुरुवर वंदन।
कृपया समिक्षा करें।
[05/02 6:56 PM] कुसुम कोठारी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
५/२/२०२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (८३)

विषय-सहना ।
सहना सब प्रारब्ध को , गति कर्मो की मान ।
शांत भाव से सब सहो ,बात भाग्य की जान।
बात भाग्य की जान, पुण्य पथ पर ही चलना ।
नेकी का कर काम ,दीप ज्यों झिलमिल जलना।
कुसुम कहे सुन संत , धैर्य है सुंदर गहना ।
सही नीति की बात ,नीति पूर्वक ही सहना ।।

कुण्डलियाँ (८४)

विषय-वंदन
वंदन हो तुझ पाद में ,दो विद्या वरदान ।
मेधा से झोली भरो , वरद हस्त दो दान ।
वरद हस्त दो दान , शीश चरणों में  रखती ।
छवि निरखूँ दिन रात , विनय से वंदन करती ।
कुसुम मिले तुझ दृष्टि , हृदय बन जाए चंदन।
कृपा करो हे मात , करूं तुझको नित वंदन ।।

कुसुम कोठारी।
[05/02 7:12 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
         

          *(83)सहना*

सहना वसुधा की व्यथा,करती नाही क्लेश।
सबको देती एक सा,धरती माँ का वेश।
धरती माँ का वेश,पालथी पोषण करती।
शीत ग्रीष्म बरसात,मात सम सबकुछ सहती।
है अनुपम श्रृंगार, हरित हरियाली गहना।
देने का ही भाव,सिखाती सुख दुख सहना ।

                    *(84)वंदन* 
वंदन  माटी नित करें, महिमा अपरम्पार।
धर्म कर्म हो देश हित,माँगू जनम हजार।
माँगू जनम हजार,कामना सेवा करना।
जब भी आँख उठाय,पड़े दुश्मन को मरना।
करें मधुर मनुहार, लगा नित माथे चंदन।
बार बार हो जनम,भारती माटी वंदन।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[05/02 7:30 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
शतकवीर कुण्डलियाँ
दिनाँक-5/2/20
___________________
83
सहना
सहना पड़ती है कभी,अनचाही सी बात।
जिसके कारण ही सदा,बने अजब हालात।
बने अजब हालात,नहीं कोई गलती माने।
करते सदा विवाद,बिना ही सच को जाने।
कहती अनु सुन आज,किसी से तब कुछ कहना।
जब अनुचित हो बात,नहीं फिर चुप हो सहना।

84
वंदन
वंदन श्री हरि का करूँ,कर जोड़ सुबह शाम।
चारों तीरथ सुख मिले,विनती आठों याम।
विनती आठों याम,भजे मन हरि गोपाला।
विट्ठल विट्ठल नाम,मिले सुख जपते माला।
कहती अनु कर जोड़,लगा हरि माथे चंदन।
मिलता चरण निवास,करूँ नित हरि का वंदन।

अनुराधा चौहान
[05/02 7:35 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
सोमवार-03.02.2020

*81)माना*

कितना माना था उसे,दिया न उसने मान।
मना मना कर थक गई,टूटा निज अभिमान।
टूटा निज अभिमान,सजन जी पास न आए।
दे दूँ अपनी जान,बात शायद बन जाए।
वन्दू बड़ी उदास,प्यार है पिय से जितना।
समुंदर सा अथाह,असीमित जाने कितना।।

*82)कहना*

कहना सुनना कुछ नहीं,छुपा रहे करतूत।
बिना बात के तन रहे,लातों के ये भूत।
लातों के ये भूत,करो अब खूब पिटाई।
करें देश से द्रोह,राष्ट्र की शाख मिटाई।
क्षुब्ध हुए मन भाव,न भाए इनका रहना।
खींचो अब तलवार,बंद अब सुनना कहना।।

बुधवार-05-02-2020

*83)सहना*

सहना नहीं देखो सुता,अपने पर अन्याय।
दुष्ट दरिंदे लोग हैं,कौन दिलाये न्याय।
कौन दिलाए न्याय,सभी हैं गूंगे बहरे।
कहते तुम को शाप,लगाते तुम पर पहरे।
कह वन्दू कविराय,कभी न मौन तुम रहना।
खींच लेना तलवार,मगर कुछ गलत न सहना।।

*84)*वंदन*

विनती करती आपसे, दे दो माँ वरदान।
हाथ जोड़ वंदन करुँ,हम बालक नादान।
हम बालक नादान,तुम्हीं विद्या की दात्री।
हम भोले अनजान,बने कैसे सहपात्री।
कोई न देता भाव,कहीं न हमारी गिनती।
मिले हमें भी मान,यही बस करते विनती।।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
*****
[05/02 7:38 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक 5/2/2020
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
विषय. *सहना*
सहना माता पिता गुरु,  इन तीनों की डाँट ।
ये तीनों सर्वस्व निज, देते हम में बाँट ।।
देते हम में बाँट, स्वयं  ये दुख सह लेते ।
हितकर-सच तत्काल, कटुक या मृद,कह देते।।
"निगम" सुहृद पितु मातु,  सदा इनके बन रहना।
करना सेवा मान , पड़े दुख इन्हें न सहना ।।

विषय       *वंदन*
वंदन जननी जन्म-भू ,  वंदन पद रज-संत ।
वंदन उस बलिदान का, जिसका मान अनंत।।
जिसका मान अनंत , किया उत्सर्ग प्राण का।
सिखा गए शुभ पाठ, हमें जो राष्ट्र त्राण का ।।
"निगम" स्वर्ग से श्रेष्ठ, सदा शुचि जैसे चंदन ।
मातृभूमि की धूल,  वंद्य कर इसका वंदन ।।

 कलम से ..
कृष्ण मोहन निगम
सीतापुर
जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[05/02 7:47 PM] धनेश्वरी सोनी: शतकवीर सम्मान
                 कलम की सुगंध
                  बुधवार  5/2/2020
                  कुण्डलिनीयाँ
                   बंधन

 वंदन करते राम की ,हाथ जोड़कर मंत्र ।
 चंदन टीका माथ पे, तिलक करे ताम्र यंत्र ।
 तिलक करें ताम्र यंत्र, पुजे जो पंडित भगवन।
 आरती वंदन थाल ,सजे अर्घ संध्या पुजन ।
 बटते प्रसाद हाथ ,सुबह रात्रि मिले लडुवन ।
 रखते सबपे आस ,करें सभी लोग वंदन ।

                         सहना

 सहना राम को है पड़ा ,पग-पग चल वनवास ।
 सीता कोमल भी चली ,लक्ष्मण भैया खास।
 लक्ष्मण भैया खास ,तीर तरकश पास रखें।
 धरती कड़क कठोर ,चुभे कंकड़ फुल दिखे।
 सीता चलती सोच ,भाग्य अब तुझसे कहना ।
 मांगी मैंने राम ,साथ प्रभु सब है सहना।

         धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[05/02 7:48 PM] कमल किशोर कमल: कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
05.02.2020
83-सहना
सहना पड़ता जगत में,धूप छाँव बरसात।
कभी शोक से दिल दुखे,कभी खुशी की रात।
कभी खुशी की रात,कि जीवन पवन समाना।
खंदक खाई नाल,नदी पर बहते जाना।
कहे कमल कविराज,यही संतों का कहना।
कितना भी दुख रहे,मगर चुपके से सहना।

84-वंदन
वंदन करता भोर उठ,तात मात बड़भ्रात।
उनके आशीर्वाद से,चंगा रहता गात।
चंगा रहता गात,दर्द सारे मिट जाते।
मिलती खुशी अपार,हास रस हँसकर आते।
कहे कमल कविराज,बड़ों का रज कण चंदन।
धन बल विद्या बढ़े,चलो रे करिये वंदन।

कवि-कमल किशोर "कमल"
         हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
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[05/02 7:53 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 05/02/2020
कुण्डलिया- ( *83*)
विषय - *सहना*
सहना चुप हो कर नही , नारी अत्याचार।
तोड़ भ्रमित दीवार को , ले अपना अधिकार।।
ले अपना अधिकार , रही क्यों बन बेचारी ।
अगर बनी कमजोर , समझ खुद से तू हारी।।
सुवासिता सुन बात , कमर कस ले है कहना।
बढ़ा आत्मविश्वास , कभी दुख फिर मत सहना।।

कुण्डलिया -( *84*)
विषय - *वंदन*
वंदन नारी शक्ति को , मैं करती हूँ आज ।
पत्नी बेटी माँ बहू , बन कर करती काज ।।
बन कर करती काज , सदा रहती आभारी।
नव जीवन को साँस ,  दिये लक्ष्मी अवतारी ।।
सुवासिता ये धूल , बना माथे का चंदन।
नजर दोष कर दूर , करू शत शत मैं वंदन।।

           🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[05/02 7:55 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(83)
विषय-सहना
सहना अत्याचार को,बहुत बड़ा है पाप।
मिली छूट जो दुष्ट को,पीड़ित होंगे आप।
पीड़ित होंगे आप, नहीं खुशी और कैसी।
लज्जा है धिक्कार, जिंदगी कायर जैसी।
कह आशा निज बात, सभी को कहना।
चाहे डँस ले काल,नहीं अधर्म है सहना।


(84)
वंदन गुरुजन का करो,मिलता ज्ञान अपार।
हो जाये उनकी कृपा, खुलता यश का द्वार।
खुलता यश का द्वार,ज्ञान-रहस्य खुलवाते।
हम हों अगर निराश, साहस हमें बँधवाते।
कह आशा निज बात,नमन करते हम वंदन।

रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[05/02 7:57 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक- 5.2.2020
कुंडलिया (83) *सहना*

सहना सीमित ही सही, होते अत्याचार।
कायरता कहते इसे, सहना नहीं अपार।।
सहना  नहीं अपार, बात यह मेरी मानो।
अपनी आँखें खोल, सत्य मिथ्या पहचानो।।
हो वाणी में तेज, मौन बिल्कुल मत रहना।
बना झूठ व्यापार, नहीं अब हमको सहना।।

कुंडलिया (84) *वंदन*

वंदन  भारत  मात का, करते  वीर जवान।
रखते उसकी आन को, होकर वे बलिदान।।
होकर  वे  बलिदान, रक्त से तिलक लगाते।
करते नित गुणगान, माल मस्तक पहनाते।।
धन्य मात के लाल, समझते रज को चंदन।
उनपर  होता  गर्व, करें सब उनका वंदन।।

_______पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[05/02 8:09 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 05/02/2020

कुण्डलिया (83)
विषय- सहना
=========

सहना गहना  मनुज का, रिश्तों में  अनुबन्ध I
खट्टा - मीठा अति सरल, रहे सुखद सम्बन्ध ll
रहे  सुखद  सम्बन्ध, बचाओ  नाजुक  रिश्ते l
बात - बात  में  ताव, सभी  सम्बन्धी  रिसते ll
कह 'माधव' कविराय, बड़ों का मानो कहना l
पर  अनीति  अन्याय, नहीं  सपने में  सहना ll

कुण्डलिया (84)
विषय- वन्दन
=========

वन्दन  चढ़ते  सूर्य  का, करता  सकल जहान I
वही भानु  ढलता हुआ, भय  अवसाद वितान ll
भय  अवसाद   वितान, भुलाए  गुण  ही  सारे l
पथ  प्रशस्त  कर आप, मिली जो प्रभा सहारे ll
कह 'माधव कविराय',न छोड़ो अहिभ्रम चन्दन l
अवगुण  सभी  बिसार, गुणों का  करिये वन्दन ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[05/02 8:09 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु

दिनांक-03-02-020

81
विषय-माना

माना धीरे चल रहा, जाना भी है दूर।
आशा अरु विश्वास है, साहस भी भरपूर।।
साहस भी भरपूर, नहीं संकट से डरना।
काँटे लगते फूल, चुभन हँसकर ही सहना।।
धारण लक्ष्य महान, विजय परचम लहराना।
जग देखता शौर्य, तभी तो लोहा माना।।

82
विषय-कहना

कागा कहना राम से, संकट का आकाश।
कर लूँगी मैं पार जब, उसका हो विश्वास।।
उसका हो विश्वास, वही है एक सहारा।
पापी हो या संत, सभी को उसने तारा।।
जोड़े रखना नाथ, तुम्हीं से पावन धागा।
कह देना संदेश, सताना छोड़ो कागा।।


दिनांक-05-02-020

83
विषय-सहना

सहना तबतक धर्म है, जब तक है उपचार।
बढ़ता अत्याचार जो, सहना है बेकार।।
सहना है बेकार, विरोध जताना होगा।
सच्चाई की जीत, जलेगा झूठ का चोगा।।
तभी तो हो आसान, जगत में सबका रहना।
जब तक धर्म निबाह, उचित तब तक ही सहना।।


84
विषय-वंदन

वंदन करती आपका, करूँ मात नित ध्यान।
ममता की मूरत तुम्हीं, दो विद्या का दान।।
दो विद्या का दान, मुझे अपना लो माता।।
हूँ जग में लाचार, सदा तेरे गुण गाता।।
गाएँ तीनों लोक, हरष के तेरे नंदन।
शीतल बहे समीेर, करें सूरज शशि वंदन।।

 सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[05/02 8:24 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 05.02.2020 (बुधवार)*
83-  सहना
*********
सहना मुश्किल है बहुत, सबकी ही सब बात।
अगर करें प्रतिकार तो, समझें सब आघात।
समझें सब आघात, बुरी है ये बीमारी।
आदत से लाचार, करें यह गलती भारी।
"अटल" अधिक मत बोल, बड़ों का है यह कहना।
जिस की ज्यादा बात, उसे मुश्किल है सहना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

84-   वंदन
**********
वंदन भारत भूमि को, जिसमें बसती जान।
हम भारत के पुत्र हैं, इस पर है अभिमान।
इस पर है अभिमान, करेंगे इसकी पूजा।
यह धरती का स्वर्ग, नहीं कुछ इस सा दूजा।
"अटल" चमकता भाल, यहाँ की माटी चंदन।
जब तक तन में साँस, करें इसका अभिनन्दन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[05/02 8:25 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 05.01.2020

कुण्डलियाँ (79)
विषय-चमका
चमका जग, नभ चाँदनी,नीरवता चहुँ ओर।
देखो सुन्दर यामिनी,शीतलता हर कोर।
शीतलता हर कोर,धरा वधु सी शरमाई।
प्रकृति करे श्रृंगार,रूपसी वो इठलाई।
वर्णन कर अनु आज,दामिनी सा नभ दमका।
टिमटिमा रहे दीप,गगन में चंदा चमका।।

कुण्डलियाँ (80)
विषय-गीता
गीता पावन ग्रंथ है, सब ग्रंथों का सार।
कर्म धर्म का मूल है,होगा बेड़ा पार।
होगा बेड़ा पार,कर्म बस करते रहना।
फल की इच्छा छोड़,यही गीता का कहना।
गीता पढ़ अनु आज,यही है सच्ची मीता।
पिछली बातें भूल,बढ़ो कहती है गीता।।



 
   

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 05.01.2020

कुण्डलियाँ (81)
विषय-माना
माना अपना ईश को,हो गयी मैं निहाल।
रिश्ते नाते तोड़के,तोड़ो भय का काल।
तोड़ो भय का काल,शरण में उनकी हो लो।
लेंगे फिर वो गोद,आँख तुम अपनी खोलो।
बातें अनु लो मान,भक्ति पथ बढ़ते जाना।
समर्पित अहंकार,सदा बस हरि को माना।।



कुण्डलियाँ (82)
विषय-कहना
कहना तो चाहें सभी,क्या सुनते दे ध्यान?
अपनी ढपली राग है,कौन सुने दे कान?
कौन सुने दे कान,सभी धुन में हैं  खोये।
तू-तू,मैं-मैं राज,पीटके सिर फिर रोये।
अनु का ये संदेश,गाँठ बाँधे मत रहना।
सबकी सुन लो खूब,तभी तुम अपनी कहना।।



   
   

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[05/02 8:32 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद

सहना 83

सहना सीता को पड़ा, हरण किया लंकेश ।
रटती रामा नाम वह, सहती रही कलेश ।
सहती रही कलेश, राम फिर आये लंका ।
कर रावण का नाश, बजा कर  सबका ड़ंका।
कहते वेद पुराण, काम तुम बुरा न करना ।
हो कर के बदनाम,मरण पड़ता है सहना ।।

वंदन

वंदन भारत देश को, महिमा अपरम्पार ।
राम कृष्ण जन्में जहाँ, जन्म मिले सौ बार ।
जन्म मिले सौ बार,श्याम जी इतना करना ।
मातृ भूमि के हेतु, वरण है मुझको मरना ।
कहती मीरा नाथ, यहाँ की माटी चंदन ।
जगत गुरू कहलाय, भरत भू  शत शत वंदन ।।

केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[05/02 8:33 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

79 ) सहना
************
सहना न अन्याय कभी , करना तुम प्रतिकार ।
मानो कभी न बात को , भाग्य का आधार ।।
भाग्य का आधार , इसे बदलना अभी  है ।
कुरीति हो अमान्य , दिशा बदलती तभी है ।।
करना हरदम न्याय , यही हमको है कहना ।
सच्ची ही हो नीति , सदा सही न्याय सहना ।।
%%%%%%


80 ) वंदन
***********
वंदन कर माँ शारदे , माँगें हम वरदान ।
इतना करना काम ही , दे दो विद्या दान ।।
दे दो विद्या दान , सुनो मातु विनय करते ।
तेरे चरणों लोट , कहें माँ दम हम भरते ।।
आशीष मिले साथ , बना दो जग यह नंदन ।
खुशियाँ माँगें आज , करें माँ शारद वंदन ।।
&&&&&&&&

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
5.2.2020 , 7:50 पीएम पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[05/02 8:33 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

85. सहना

सहना जिसको आ गया, जीवन का दुख दर्द।
इस दुनिया मे है वही, सचमुच सच्चा मर्द।
सचमुच सच्चा मर्द, नहीं जो घबराता है।
करता जो संघर्ष, विजयश्री वो पाता है।
कह अंकित कविराय, मान लो मेरा कहना।
जीवन के दुख दर्द, आप भी सीखो सहना।।

86. वंदन

वंदन प्रभु का कीजिये, करता वो उद्धार।
उससे करना चाहिए, हमको सच्चा प्यार।।
हमको सच्चा प्यार, वही देता है जीवन।
उसका ही उपहार, हमारा तन, मन, यौवन।।
कह अंकित कविराय,लगाकर उसके चंदन।
हाथ जोड़कर नित्य, कीजिये उसका वंदन।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[05/02 8:34 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला........कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★                   
           *विषय........माना*
             विधा.........कुण्डलियाँ 
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मानव जीवन है मिला,माना सब अधिकार।
भाव भक्ति के पाथ में,करता जग उपकार।
करता  जग  उपकार ,नेह मानुष का पाता।
मीठा  वाणी  बोल , सदा पावन मन भाता।
कहता कवि श्रीवास,बनो मत कभी न दानव।
रखना  सबका  मान,काज उत्तम कर मानव।
★★★★★★★★★★★★★★★★★                 
           *विषय........कहना*
             विधा.........कुण्डलियाँ 
★★★★★★★★★★★★★★★★★
कहना मित भाषी सदा,उत्तम रखो विचार।
वाणी  मीठा  भी  रहें , नेक रखो व्यवहार।
नेक  रखो  व्यवहार ,मंच है प्यारा आलम।
करो  नहीं तकरार,बना हो सबका सालम।
कहता कवि श्रीवास,साथ में हमको रहना।
होता जीवन खास,वचन सत का ही कहना।
★★★★★★★★★★★★★★★★★               
           *विषय........सहना*
             विधा.........कुण्डलियाँ 
★★★★★★★★★★★★★★★★★
सहना मत अपमान को,गलत किसी की बात।
स्वाभिमान पालन करो, कुछ  भी  हो हालात।
कुछ  भी हो हालात ,नेक  हो  अपना  कार्य।
रहता  अपना  मान , पाथ  मंगल  का  धार्य।
कहता कवि श्रीवास, सदा हो मिलकर रहना।
होता हर दिन खास , बड़ो  की  बातें  सहना।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
           *विषय........वंदन*
             विधा.........कुण्डलियाँ 
★★★★★★★★★★★★★★★★★
वंदन चंदन भाल पर,भारत माँ की शान।
वीर शहादत देश पर,धरती माँ की आन।
धरती माँ की आन,लोक जग धारा बहता।
रखे  भारती लाज,आज हर भाषा कहता।
कहता कवि श्रीवास,बने वासी रघुनंदन।
रखे देश  का मान,करें सब भारत वंदन।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[05/02 8:45 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
3-2-2020

माना 81

माना मैं नारी सही, पर नहीं लाचार ।
छू रही आसमान को, अनपढ़ नहीं गँवार।
अनपढ़ नहीं गँवार, राह खुद चुनती जाती ।
हर क्षेत्रों में नाम, नहीं अब है घबराती ।
कहती मीरा आज, कदम तुम सदा बढाना ।
नारायणी है आज, जगत ने तुझको माना ।।

कहना 82

कहना मेरा मानलो, रखो मात पित साथ ।
चरणों में तीरथ समझ,सदा झुकाओ माथ ।
सदा झुकाओ माथ, कभी तुम दूर न करना ।
मात पिता भगवान, सदा सेवारत रहना ।।
बनना भरत समान,श्रवण बन सँग ही रहना।
मिलता आशीर्वाद, यही मीरा का
है कहना ।।

केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[05/02 8:47 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
कुऩ्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक-३०/०१/२०२०
कुण्डलियाँ
विषय
यादें
-----
यादें अपनी दे गया,वो बचपन भी खूब।
नटखट सी शैतानियाँ,खेलें चढ़ती धूप।।
खेलें चढ़ती धूप,सखा सपने में आये।
तड़पाये मन प्राण,कभी भी  लौट न पाये।।
करे निरंतर बात,बहुत तड़पाती नादें।
मीठा -मीठा साथ,शेष बचपन की यादें।।

छोटी

छोटी सी ये जिंदगी,रखना  इसे सँभाल।
जी सको सभी हाल में खुद को एेसा ढाल।।
खुद को एेसा ढाल,जटिल राहें हो सीधी।
मन में बाँधो गाँठ,आस रखना मत आधी।।
कहे निरंतर बात,पेट भरती है रोटी।
करे बड़ा वो काम,लगे दिखने में छोटी।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[05/02 8:52 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -83
दिनांक -5-2-20

विषय -सहना
सहना अब तुम सीख लो, जीना हो आसान l
धीरज से कटता सदा, संकट सब लो जान l
संकट सब लो जान, धैर्य जिसमें है रहता l
होता वो बलवान, सदा मीठा ही कहता l
कहती सुनो सरोज, सहन करके तुम बहना
करना तुम मत क्रोध, सीख लो सब कुछ सहना l

कुंडलियाँ -84
दिनांक -5-2-20

विषय -वंदन

वंदन  जननी  का करो, लेलो  तुम वरदान l
 उनके पग में  सर  झुके, मिले  सदा सम्मानl
मिले सदा सम्मान,भ्रमित हो कर  मत रहना l
रखो डगर तुम साफ, आगे बढ़ना तुम नंदन l
रखना माँ की लाज, करो उनका तुम वंदन l

सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[05/02 8:57 PM] नीतू ठाकुर 'विदुषी': कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनाँक- 5.2.2020
विषय- *सहना*

सहना भी अपराध है, सीखो मन प्रतिकार।
त्याग,तपस्या,प्रेम का, मौन नही आधार।।
मौन नही आधार, ह्रदय जो व्याकुल करता।
करे अधर्मी मौज , दंड शोषित है भरता।।
जानो तुम उद्देश्य, जगत में क्यों है रहना।
मिटा पाप उत्साह , बढ़ावा देता सहना।।

विषय-*वंदन*

वंदन है उस मातु को, सींचे तन नौ मास।
सब कुछ अर्पण जो करे, तोड़े कभी न आस।।
तोड़े कभी न आस , पास हरदम वो रहती।
सहती कष्ट अपार , किसी से कुछ कब कहती।।
माँ चरणों की धूल, शीश पर लागे चंदन।
मत भूलो उपकार,करो शत शत तुम वंदन।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'
[05/02 8:58 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर

दिनांक ०५/०२/२०

८३) सहना

सहना है विरहा सखी, गये पिया वनवास।
चौदह सावन काटने, रख कर मन में आस॥
रख कर मन में आस, नहीं पल भर है रोना।
चलना सत की राह, नहीं धीरज है खोना॥
दे सुख तप अलि, अंत, यही संतों का कहना।
रहना मन को थाम, मुझे है विरहा सहना॥

८४) वंदन

वंदन करती वन सिया, अर्चे चरण सरोज।
लौटें पति देवर कुशल, गए जो मृग की खोज॥
गए जो मृग की खोज, बली हठ मेरा सुन कर।
काँधे धनु को धार, उठा शर तीखे चुन कर॥
हे अम्बे, जग मात, लगा तव पद शुचि चंदन।
माँगूँ शुभ वरदान, करूँ जननी मैं वंदन॥

गीतांजलि ‘अनकही’
[05/02 9:09 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Date: 05 Feb 2020

Note:
कहना

कहना माना राम ने, भेज दिया वनवास।
चौदह वर्ष वन मे रहे,मिला बहुत है त्रास।
मिला बहुत है त्रास,साथ गये लक्ष्मन भ्राता।
दुख पाये अपार,  वन मे जानकी माता।
वन जाऊँगी साथ ,सदा राम संग  रहना।
भेज दिया वनवास,राम ने माना कहना।

शिवकुमारी  शिवहरे




Date: 05 Feb 2020

Note:
माना

माना ईश्वर को सदा, करते  भव से पार।
निशदिन  मै पूजा कँरू, जीवन को दे तार।
जीवन को दे तार, जीवन बन जाये चंदन
 प्रभु होते आधार,  कँरू मै प्रभु का वंदन।
करी प्रभु से प्रीत, हमेशा अपना है जाना।
करते भव से पार ,सदा ईश्वर को माना।

शिवकुमारी शिवहरे
[05/02 9:40 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*

 83--- *सहना*
कहना मेरा मान कर , चलो नेक तुम राह ।
साधो पर उपकार को ,मिटती सभी कराह ।
मिटती सभी कराह , पार भवसागर गहरा ।
कटे पाप के शाप , रहे न दुख का पहरा ।
करो खूब उपकार , पड़े जो दुख भी सहना ।
*रखना* आत्मा शुद्ध , यही है मेरा कहना ।।

84-- *वन्दन*
वन्दन कर भगवान का , जिनसे ये संसार ।
खाने को सबकुछ दिया , रहने को घर बार ।
रहने को घर बार , दान दी मानव काया ।
रच करके संसार , *दिखाई*  अपनी माया ।
 दुख में धर ले धीर , करो मत  पीड़ा क्रंदन ।
जिनसे है संसार , करो  बस उसका वन्दन ।।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर