Thursday 29 August 2019

धरती वंदन....बाबूलाल शर्मा


                      बाबूलालशर्मा
.              🌍  *धरती वंदन*  🌍
.                      ( दोहा छंद)
   (*तारांकित शब्द धरती के पर्यायवाची हैं)
.                   ..... 👀 १ 👀....
धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी  जैसे  पालती, *धरती* जीवन  सार।।
.                        👀 २ 👀
*भूमि*  उर्वरा  देश  की, उपजे  वीर  सपूत।
भारत माँ सम्मान हित, हो कुर्बान  अकूत।।
.                        👀 ३ 👀
*पृथ्वी,* पर्यावरण  की , रक्षा  कर  इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन, जीवन खतरे जान।।
.                        👀 ४ 👀
*धरा*  हमारी मातु सम, हम है  इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की,चली पुरातन काल।। 
.                        👀 ५ 👀
*भू*  पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है, आन बान अरमान।।
.                        👀 ६ 👀
*रसा*  रसातल से उठा,भू का कर उपकार।
धारे  रूप  वराह  का, ईश्वर   ले  अवतार।।
.                        👀 ७ 👀
चूनर हरित *वसुंधरा,* फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ पर  पेड़ हो, हँसता मिले  किसान।।
.                        👀 ८ 👀
*वसुधा*  के शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण  विकास से, मानव  जीवन धन्य।।
.                        👀 ९ 👀
*अचला* चलती है सदा, घुर्णन से दिन रात।
रवि  की  करे परिक्रमा, लगे साल  संज्ञात।। 
.                      👀 १० 👀
*क्षिति* जल पावक अरु गगन,
.                         संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,
   .                      धारण, तजे शरीर।।
.                      👀 ११ 👀
वारि  *इला*  पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए  जीवन  यहाँ, सुन्दर  प्राकृत  नूर।।
.                      👀 १२ 👀
मानस  मानुष  *मेदिनी*,  बचे , बचे  संसार।
संरक्षण करले  सखे, रखें कुशल  आचार।।
.                      👀 १३ 👀
रखें *विकेशी* मान को, निज माता सम मान।
जगत मातु रखिए सखे, लगा प्रदूषण आन।।
.                      👀 १४ 👀
*क्षमा*  क्षमा करती सदा, मानव  के अपराध।
हम भी मिल रक्षण करें,सबके मन हो साध।।
.                      👀 १५ 👀
पेड़  *अवनि* की  शान है, शीतल देते  छाँव।
प्राणवायु  भरपूर  दे, लगा नगर  पथ  गाँव।।
.                      👀 १६ 👀
भरते  निर्मल  बाँध सर, हरे   *अनंता*   ताप।
नीर प्रदूषण है सखे, हम सब को अभिशाप।।
.                      👀 १७ 👀
वारि अन्न जीवन वसन, दिए सर्व सुख शान।
रहें  तभी   *विश्वंभरा*, रक्षण   मय  सम्मान।। 
.                     👀 १८ 👀
रखे  *स्थिरा*  धारण  सदा, मानव  तेरे भार।
करती निज कर्तव्य वह, करले कर्म सुधार।।
.                      👀 १९ 👀
वृक्ष  *धरित्री*  पर  हरे, वर्षा जल की आस।
खूब लगाओ पेड़ फिर, भावि बने विश्वास।।
.                      👀 २० 👀
*धरणी* पर जल है भरा,हिम सागर नद बंध।
खेती, पीने  को नहीं, सोच मनुज मतिअंध।।
.                      👀 २१ 👀
*उर्वी*  पर  है  सिंधु  सर, नदिया और पठार।
फसलें कानन पथ भवन,झेले गुरुतम भार।।
.                      👀 २२ 👀
देश  राज्य  सीमा बना, ले  हथियार  नवीन।
क्यों लड़ते ,रहने यहीं, जेवर जोरु *जमीन*।।
.                      👀 २३ 👀
धीरज से खोदें खनिज, करले भल पहचान।
रहे  *रत्नगर्भा*  अमर, अविरल  रहें  निसान।।
.                      👀 २४ 👀
*महि* से रवि शशि दूर है,फिर भी नेह प्रकाश।
चाहे  तन  से  दूर  हों, मन  में   हो  विश्वास।।  
.                      👀 २५ 👀
गंग *अदिति* पर ही बहे, भागीरथी प्रयास।
निर्मल  रखनी है सदा, जैसे  हरि आवास।।
.                      👀 २६ 👀
*आद्या*  सम हैं  नारियाँ, धारक और महान।
सृष्टि चक्र इनसे चले, मत कर नर अपमान।।
.                      👀 २७ 👀
*जगती*  पर  जीवन रहे, ईश्वर से  अरदास।
जीवन भी साकार तब, होय प्रदूषण नाश।।
.                      👀 २८ 👀
सहती  *धात्री*  देखिए, मानव  के  अतिचार।
मर्त्य जन्म शुभ कर्महित,करले खूब विचार।।
  .                    👀 २९ 👀
इसी  *निश्चला* पर रहें, प्राकृत  जीव अनंत।
सुर नर मुनि  गंधर्व की, चाह बहार  बसंत।। 
.                      👀 ३० 👀
खोद  रहे  *रत्नावती*, बजरी  पत्थर  खेत।
मोती माणिक रत्न भी, खोजे स्वर्ण समेत।।
.                      👀 ३१ 👀
वासुदेव  श्रीकृष्ण  से, सभी ईश अवतार। 
माने माँ  सम *वसुमती*, वीर मिटाए भार।।
.                      👀 ३२ 👀
*विपुला* बड़ी विचित्र है,विपुल भरे भण्डार।
सीमित दोहन कीजिए, मत भर घर आगार।।
.                     👀 ३३ 👀
शस्य श्यामला चाहते, *श्यामा* को घनश्याम।
मीरा, राधा  श्याम को,  सीता  चाहति  राम।।
.                      👀 ३४ 👀
सहे  सदा  माता  *सहा*, पूत , दुष्ट  के  दंश।
'लाल' मात के जो कहे, मेटे खल कुल वंश।।
.                     👀 ३५ 👀
धारे  *सागरमेखला,*  सागर  सरिता  सेतु।
पर्वत जंगल  जीव ये, माता, सुत जन हेतु।।
.                      👀 ३६ 👀
गौ, गौरैया, गिद्ध  गुण, भूल  रहा   इंसान।
उपयोगी जनजीव ये, *गो* का हर अरमान।।
.                     👀 ३७ 👀
धर्म,जातियाँ गोत्र से, मत कर जनअलगाव।
सूरज  *गोत्रा*  चंद्र  के,  रहे  एक  सम भाव।।
.                      👀 ३८ 👀
क्यों *ज्या* को अपमानता, स्वारथ में इन्सान।
माता का  सम्मान कर, जग है  कर्म प्रधान।।
.                      👀 ३९ 👀
*इरा* कभी  देनी नहीं, जन्मत  सीख सपूत।
रजपूतानी  रीति थी, गर्वित  जन रजपूत।।
.                      👀 ४० 👀
जन्म *इड़ा*  पर भाग्य से,करले खूब सुकर्म।
स्वर्ग नर्क  व्यापे नहीं, समझ  धर्म का  मर्म।।
.                     👀 ४१ 👀
लड़े *भोम* हित भोमिया,शीश विहीन कबंध।
शर्मा  बाबू  लाल  के, कुल  में  पुरा  प्रबंध।।
.                 ....👀🌍👀....
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀

No comments:

Post a Comment