विषय - उड़ान
विधा - कविता
जमीं पे रहने वालो सर पे,
एक आसमान तो बाकी है।
समय उड़ गया पंख लगाके,
पर मेरी उड़ान तो बाकी है।।
उड़ चलती समय के संग मैं,
नाइंसाफी की हालातों ने।
सब अरमानों को खाख किया,
पर काट दिए जजबातों ने।।
दफन हुई उन हसरतों में,
अभी कुछ जान तो बाकी है।
समय उड़ गया............
ऊँचा उड़ने की ख्वाहिश तो,
एक सपना बनकर रह गई।
वर्षों से सैलाब था सीने में,
आज कलम जुवां से कह गई।।
तार- तार हुए उन सपनों के,
अभी कुछ निशान तो बाकी है।
समय उड़ गया.............
अपने ही जब हुए न अपने,
गैरों से शिकायत क्या करना।
कदम-कदम पर अश्क मिले,
कोई और इनायत क्या करना।।
ऊँचे लोगों की दुनिया में अपनी,
छोटी सी पहचान तो बाकी है।
समय उड़ गया.........
अब मुझको कोई गम नहीं है,
छीन लो चाहे सबकुछ मेरा।
बीत गयी अब रात अँधेरी,
दिखने लगा है नया सबेरा।।
"पुष्प" न हौसला हार अभी,
आखिरी इम्तिहान तो बाकी है।
समय उड़ गया..........
पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
कटनी (म.प्र.)
@kalam ki Sugandh
बहुत सुंदर रचना ....बहुत बहुत बधाई 💐💐💐
ReplyDelete