Monday, 25 November 2019

रिमझिम बरसात (काव्य).....सुशीला साहू " शीला "

*विधा--काव्य*
*शीर्षक--रिमझिम बरसात*

मैं रिमझिम सी बरसात बनी,
     क्यूँ मल्हार की पात बनी।

सूर्य चंद्रमा में कोई छाँव नहीं
      ममता फैलाये मृदु बाँह नहीं।
तुम चाँदनी की गीत सुनाओ,
       मैं धरती की सौगात बनी।
मैं रिमझिम सी बरसात बनी,
      क्यूँ मल्हार की पात बनी।

मेरे इस जीवन की बगिया में,
     सखी सहेली की प्रित उदार में।
सुगमता की हर राह मिली,
      हर दुख सुख की बात बनी,
मैं रिमझिम सी बरसात बनी,
     क्यूँ मल्हार की पात बनी।

काले बादल छाये घनघोर घटा,
      झुम झुम नाचे मयूरी ले छटा।
शाम हुई मुंद ली कुमुदिनी,
       ओस की बूँद जलपात बनी।
मैं रिमझिम सी बरसात बनी,
       क्यूँ मल्हार की पात बनी।

मैं बरखा रानी हुई चिंतन में,
       मेरी बूँदे मोती सी आँगन में
मुझमें है जग जीवन की आस, 
        पर न मेरी कोई हालात बनी,
मैं रिमझिम सी बरसात बनी,
      क्यूँ मैं मल्हार की पात बनी।

*सुशीला साहू* *शीला*
*रायगढ़ (छ.ग.)*
@Kalam ki Sugandh

2 comments:

  1. सुंदर रचना ....बहुत बहुत बधाई 💐💐💐

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  2. अति सुंदर ,बधाई हो मैडम👍👍👍

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