Wednesday 4 September 2019

लुट रही है द्रौपदी....आशीष पाण्डेय "ज़िद्दी"

लुट रही है द्रौपदी अब आपके संसार में।
घर गली चौराहे देखो देख लो बाजार में।
अस्मिता है लुट रही मासूमियत मरती यहाँ।
वासना का खेल गन्दा इस धरा दरबार में।
लूट रही है द्रौपदी........

मौन क्यूँ बैठे हो कान्हा धर्म रथ फिर हाँक दो।
पाप से दुनिया भरी है , हे कन्हैया झाँक दो।।
शकुनियों की चाल में फिर से फँसा यह सत्य है।
बढ़ गए कितने दुशासन हाथ इनके काट दो।
मौन क्यूँ बैठे...........

कंस को मारा तुम्हीं ने मारा है शिशुपाल को।
पूतना का वध किया जीता तुम्हीं ने काल को।
फिर तुम्हारी इस धरा पर हर गली में कंस हैं।
मार दो प्रभु आप हर हैवानियत के लाल को।
कंस को मारा........

बेबसों का हो रहा शोषण यहाँ पर देखिए।
क्रूर क्रोधी मदभरे इंसानों के घर देखिए।
चूसते हैं खून जो मजबूर अरु मजदूर का।
उड़ रहे जो पाप करके आसमाँ पर देखिए।
बेबसों का हो रहा......

धर्म सिखलाने मनुज को आज गीता सार से।
कलियुगी यह कर्म बोझिल मन हुआ व्यभिचार से।
जन्म ले आओ कन्हैया रो रही है देवकी।
बेड़ियाँ खोलो सभी की मुक्त हों संसार से।।
धर्म सिखलाने........

प्रेम का फिर पाठ कोई अब पढा संसार को।
खत्म कर दे हे गोविंदा पाप के व्यापार को।
गाय काटी जा रही हैं खो गया माखन तेरा।
हे कन्हैया रोक ले गौ-मात के संहार को।
प्रेम का फिर पाठ........

          आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।

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