Thursday 20 February 2020

विरोधाभास : हिंदी साहित्य की एक आवश्यता- सुशीला जोशी मुज्जफरनगर

विरोधाभास : हिंदी साहित्य की  एक आवश्यता
: सुशीला जोशी मुज्जफरनगर

    विरोधाभास लेखन की वह अलंकार या  शैली  है जिससे किसी कहन में विरोध न होते हुए भी विरोधी आभास दे जाता है । जैसे -
" सुधि  आय , सुधि जाय "
"पिल्ले तो रोज गाड़ी के नीचे आते जाते रहते है।"
 यद्यपि इन वाक्यों में कहीं कोई विरोध नही है लेकिन फिर भी विरोध का आभास दे रहा है ।
      यदि विचार किया जाय तो पूरी प्रकृति विरोधाभास पर टिकी है । जन्म -मरण, दुख -सुख , प्रेम -घृणा, निर्माण -विनाश  जैसे आधार ले कर प्रकृति अडिग खड़ी विरोधाभास का निर्वहन कर रही है , क्योकि  ये एक दूसरे के पूरक हैं । प्रकृति को  अक्षुण बनाये रखने में सहायक है । प्रकृति के क्रियाकलाप परिवर्तन व विनाश के आधार पर ही सम्भव हैं ।
      असंगति , विभावना , और विशेषोक्ति सब विरोधाभास के ही पर्याय हैं  या ये सब विरोधाभास के प्रकार हैं ।
*विरोधाभास क्या है?*

1-- पद में कोई विरोधी बात या विचार न होते हुए भी जब कोई विरोध जताता है तो उसे विरोधाभास कहा जाता है ---
या अनुरागी चित्त की, गति समझे न कोय
*ज्यों ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों त्यों उजले होय*

अवध को अपना कर त्याग से
तपोवन प्रभु ने किया
भरत ने उनके अनुराग से
भवन में वन का व्रत लिया

2--एक ही वाक्य में आपस मे कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाय --वहाँ विरोधाभास होता है --
 *मुहब्बत एक मीठा जहर*

3--एक ही वक्तव्य में विरोधाभाषी  या विरोधी विचारों को प्रतिपादित किया गया हो ,वहाँ विरोधाभास होता है --
*गर्जनापूर्ण शांति/ मीठा दुख*

4-वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास ही विरोधाभास है --
*बिषमयी गोदावरी , अमृतं जल देय*

*प्रकार*...

*असंगति*-- दो असम्भव चीजों के एक साथ प्रयोग में असंगति विरोधाभास होता है ---
*मैं अंधा भी देख रहा हूँ ,तुम्हारा रोना*

*विभावना*--- बिना कारण के किसी कार्य की संभावना दर्शाना विभावना विरोधाभास होता है --
*नीर भरे नितप्रति रहे, न तो प्यास बुझाई*

*विशेषोक्ति*-- किसी असम्भव बात को विशेष परिस्थितियों में सम्भव दर्शाने के लिए विशेषोक्ति का प्रयोग किया जाता है --
*वन सुन्य जबते मधुर , तबते सुनत न बैन*

*बिनु पड़ चलै ,सुनै बिनु काना*

*विरोधाभास का प्रतिपादन*....
       विरोधाभास को दो प्रकार से प्रतिपादित किया जा सकता है -
*1---तार्किक  रूप में*
      इस प्रकार में बहुधा विरोध तर्कसंगत होता है --
*नाई अपने बाल अपने आप नही काटता*

*2--गणित रूप में*----
 इसके प्रतिपादन में सबको एक सी संज्ञा दी जाती है --
*लंका में सभी बावन गज के*

*विरोधाभास की आवश्यकता* .....
साहित्य में आज के तकनीकी युग मे विरोधाभास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि---
1---यह वर्ण -सम्बंधी जटिलताओं के बारे में सोचने को विवश करता है । 
2--यथार्थ को परखने को विवश करता है ।
3-- यद्यपि कभी कभी दुविधा भी उतपन्न करता है किंतु फिर भी उसके निराकरण का मार्ग दिखाता है ।।
4--- लेखक के अंतरात्मा की दुविधा को प्रस्तुत करता है ।
5-- विरोधाभास सत्य व्यक्ति परक है ।
6-- सरकार द्वारा परिभाषित विरोधाभास भी व्यक्तित्वों व भूखण्डों से जुड़ी  परतों और गहराइयों से जुड़ा  हैं  ।
      सामाजिक , राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय असंगतियों का हल ढूंढता है ।
7--लेखक के बुद्धि वैपर्य को निखार कुशाग्र बनाता है ।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर

1 comment:

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी आदरणीया 👌👌👌 इस अलंकार के विषय में पहली बार इतने विस्तार से पढ़ने का सुअवसर मिला...शानदार उदाहरण 👏👏👏👏 बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏

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