Saturday 21 December 2019

कुण्डलिया छंद...आँचल, कजरा

[21/12 6:01 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 21.12.19

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-   *आँचल*
धानी  चूनर  भारती, आँचल  भरा ममत्व।
परिपाटी बलिदान की,विविध वर्ग भ्रातृत्व।
विविध वर्ग  भ्रातत्व, एकता अपनी  थाती।
आँचल भरे  दुलार, हवा  जब लोरी  गाती।
शर्मा  बाबू लाल, नागरिक  स्व अभिमानी।
माँ का  आँचल स्वच्छ ,रहे यह चूनर धानी।
,                  👀👀👀
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-  *कजरा*
कजरा से  सजते नयन, रहे  सुरक्षित दृष्टि।
बुरी नजर को टालता,अनुपम कजरा सृष्टि।
अनुपम  कजरा सृष्टि, साँवरे  में गुण भारी।
चढ़े  न दूजा  रंग, कृष्ण  आँखे   कजरारी।
शर्मा  बाबू  लाल, बँधे   जूड़े   पर  गजरा।
सुंदर  सब  शृंगार, लगे  नयनों  में  कजरा।
,                      👀🙏👀
रचनाकार ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[21/12 6:02 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर*
*दिनाँक--21/12/19*

(9)
*आँचल*
छोटी सी गुड़िया चली,आँगन वाड़ी आज,
आँचल में माँ के छुपी,करती थी वो राज।
करती थी वो राज,लली छोटी सी गुड़िया।
पढ़ने जाती आज,कभी थी नटखट पुड़िया।
कहती अनु सुन आज,नहीं है बेटी खोटी।
देगी दुख में साथ,अभी है कितनी छोटी।

(10)
*कजरा*
कजरा डाले गूजरी,देखो सजती आज।
आँखों में उसके छुपा,कोई गहरा राज।
कोई गहरा राज,बता दे तू सुकुमारी।
खोले परदे आज,नहीं कोमल बेचारी।
कहती अनु सुन बात,सजा बालों में गजरा।
करती दिल पे राज,लगा आँखों में कजरा।
*रचनाकार अनुराधा चौहान*
[21/12 6:05 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ-शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 21.12.19

(9) आँचल 

लहराती आँचल चली,देखो गोरी आज।
केश घटा सावन लगे,प्यार भरी अंदाज।।
प्यार भरी अंदाज,मटकती नारि नवेली।
स्वर्ग धरा में आय,परी वो है अलबेली।।
कहे विनायक राज,चले देखो बलखाती।
तिरछी नजरे चाल,हवा आँचल लहराती।।


(10) कजरा 
कजरा आँखों में सजे,पायल छनके पाँव।
गोरी की कँगना बजे,सुनों शहर से गाँव।।
सुनों शहर से गाँव, देख लो शोर मचाती।
नाजुक कली गुलाब,खिले खुशबू फैलाती।।
कहे विनायक राज,लगाई बालों गजरा।
उसकी नैन कटार,बने आँखों की कजरा।।

बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[21/12 6:06 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
*दिनांक----21/12/19*

(9) आँचल

ममता की प्रतिमूर्ति है , त्याग मयी माँ धीर ।
मृदुल मधुर सी शालिनी, नैन नेह का नीर ।
नैन नेह का नीर , गोद में आँचल छाया ।
भरा असिस से हाथ , साहसी कोमल काया ।।
घर आँगन की ज्योति ,रखे दो कुल में समता ।
माँ है देवी रूप , भरी है कोटिश ममता ।।

(10) कजरा 

कजरा नैनों में लगा ,गोरी जो इतराय ।
देखे साजन  साँवरे , मन ही मन मुस्काय ।।
मन ही मन मुस्काय , निहारे अपलक नैना ।
खोया हृदय मयूर , कहाँ अब पाये चैना ।
तन- मन को‌ महकाय , कॆश में शोभित गजरा ।
चित्त उठाये हूक , जुलुम ढाये ये कजरा ।।


*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ, छत्तीसगढ़*
[21/12 6:08 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*21/12/2019*
*दिन - शनिवार*
*विषय - कजरा*
*विधा-कुंडलियां*

   *9-कजरा*

कजरा आंखों में लगा,लगे करत हों बात,
हाथों में कंगन सजा,चले कमर बल खात।
चले कमर बल खात,लगे वह भुवन मोहिनी।
बांधे करधनी साथ,करे बहु खेल सोहिनी।
कहती सरला आज, लगे मनभावन गजरा।
बोलत मुख से नाहि,लगे बतियाती कजरा।।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*21/12/2019*
*दिन - शनिवार*
*विषय - आंचल*
*विधा-कुंडलियां*

   *10- आंचल*

आंचल माथे पर सजा,लगे सुहाना आज।
कंचन सी काया लगे , करे‌ रूप पर नाज।
करे रूप पर नाज,लगे सूरत भी भोली।
हाथों में मेंहदी साथ,लगा माथे पर रोली।
कहती सरला बात,सजा‌ आंखों में काजल।
बढ़ती शोभा देख, हुआ जग सारा पागल।।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[21/12 6:08 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 21/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - आँचल
**************
ममता आँचल छाँव में ,
             रखती पुत्र सँभाल ।
रक्षक बनकर पालती ,
               करती उसे निहाल ।
करती उसे निहाल ,
              मातु है सबसे न्यारी ।
पग पग फूल बिछाय ,
              शूल चुन लेती सारी ।
त्यागमूर्ति शुभ जान ,
           नहीं है उसकी समता ।
शीतलता पहुँचाय ,
          सदा ही माँ की ममता ।।
              
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - कजरा
****************
अनुरागी पिय प्रेम की ,
                प्रियतम रही निहार ।
नैनों में कजरा सजा ,
                  ढूंढें साजन प्यार ।
ढूंढे साजन प्यार ,
               मोहिनी रूप बनाए ।
करे मिलन की आस ,
          पिया छवि हृदय लगाए ।
कहती है करजोरि ,
                 नहीं बनना वैरागी ।
सुनिए प्राणाधार ,
                 तुम्हारी हूँ अनुरागी ।

*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[21/12 6:12 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु -

कुंडलियाँ -9

दिनांक -21-12-19

विषय -आँचल  

माता आँचल मेंमिले, खुशियों का भंडार l
उनके आँचल के तले, निश्छल प्रेम अपार l.
निश्छल प्रेम अपार, मिले खुशियाँ तब प्यारीl
बच्चों में ले ढूँढ, खुशी वो अपनी सारी l
कहे सरोज विचार, सभी को खुश मन भाता l
मिले खुशी सौ बार, संग रहती  जब माताll


कुंडलियाँ -10

दिनांक -21-12-19

विषय -कजरा 

कजरा आँखों में सजा, चमक रही है आज ll
साजन को भाये सदा, गोरी के अंदाज ll
गोरी के अंदाज, लड़े नैना सकुचाती l
कर अदभुत श्रृंगार,  देख कर पिया लजाती 
कहती सुनो सरोज, लगा बालों में गजरा l
देखे दर्पण रूप, रहे अँखियन में कजरा ll

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[21/12 6:15 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच 
आ0 इस पटल से कल जुड़े हैं ,पहले की बेटी और डोली पर लिखी है ,वो भी इसके साथ प्रेषित कर दें ?


कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियां शतकवीर हेतु
21/12/19

1)कजरा

कजरा अँखियों में लगा,गोरी बैठी द्वार ।
रूप सलोना देख के ,चन्दा उतरे पार ।
चन्दा उतरे  पार ,देख ये वो भरमाया।
धरती का ये चाँद ,मुझे क्यों नजर न आया।।
हँस कर  कहती बात ,अभी लगाया न गजरा।
होगा तब क्या हाल ,सजे गजरा अरु कजरा ।।
****
2)
आँचल
**
तेरा आँचल धूप में ,सुखमय शीतल छाँव।
बिन जननी आशीष के ,कहाँ मिले है ठाँव ।।
कहाँ मिले है ठाँव ,मिला ये जीवन तुमसे ,
ले मुख पर मुस्कान ,छिपाती दुख तुम हमसे ।
हो निधि अनमोल तुम ,धन्य है जीवन मेरा ,
माँ !जीवन की आस, ममता नाम है तेरा ।।

अनिता सुधीर
लखनऊ
[21/12 6:15 PM] डॉ मीना कौशल: कलम की सुगन्ध
कुण्डलियाँ शतकवीर
दिनांक। 21.12.19

आँचल

आँचल माँ का दिव्य है,हर लेता सब पीर।
ममता की शुभ छाँव में,कोई नहीं अधीर।।
कोई नहीं अधीर,प्रेम देती है उत्तम।
माँ का हृदय विशाल,नेह सरिता सुख संगम।।
सूर्य छुपे माता के, अम्बर में अरुणाँचल।
सब सुख का वरदान, एक माता का आँचल।।

कजरा अक्षि विशाल कर,मोहक देती रूप।
आकृति लोचन की बने,अंजन के अनुरूप।।
अंजन के अनुरूप ,बने बाचाल सुहावन।
नेह बरसता है माँ की,आँखों से पावन।।
वेणी सुन्दर सजे शीश,मनमोहक गजरा।
शोभा सदा बढ़ाय, रही आँखों में कजरा।।

रचनाकार... डा.मीना कौशल
[21/12 6:29 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 21.12.19

9-     आँचल 
********
गोरी का आँचल उड़ा, 
हुई धूप में छाँव।
सँभल-सँभल कर चल रही, 
देखे पूरा गाँव।

देखे पूरा गाँव,
कोई कुछ कह न पाता।
आँचल क्या लहराय,
सभी का मन ललराता।

"अटल" झलक तू देख,
बनी वह चन्द्र चकोरी।
जो देखे बेहाल,
चली मतवाली गोरी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

10-     कजरा
*********
कजरा आँख लगाइए,
इसके लाभ तमाम।
सुन्दरता बढ़ती दिखे,
मिलें सुखद परिणाम।

मिलें सुखद परिणाम,
रोग आँखों के काटे।
दूर करे सब मैल,
ध्यान यह सबका बाँटे।

"अटल" जँचे हर भेष,
हाल आँखों का सुधरा।
सबका मन ले मोह,
नुकीला हो जब कजरा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[21/12 6:36 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम सुगंध छंदशाला*
******************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*कुण्डलियाँ-(१)*
*विषय-आँचल*
माता का आँचल मिले, सबकी होती चाह।
उसकी ममता के तले,रहे नहीं परवाह।
रहे नहीं परवाह,मगन मन बचपन डोले।
खिलते फूल समान,बड़े ये मन के भोले।
कहती 'अभि' निज बात,तभी बचपन मुरझाता।
आती घड़ी कठोर,बिछड़ जब जाती माता।

*कुण्डलियाँ(२)*
*विषय-कजरा*

कजरा का टीका लगा,माता चूमे भाल।
कितना प्यारा लग रहा,मेरा नन्हा लाल।
मेरा नन्हा लाल,करे कैसी अठखेली।
प्यारी सी मुस्कान,दिखे सुंदर अलबेली।
कहती 'अभि' निज बात,करे जब लालन नखरा।
देती नजर उतार,लगा कर टीका कजरा।

*रचनाकारअभिलाषा चौहान*
[21/12 6:37 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच   कलम की सुगंधशाला
19/12/19
कुंडलिया

1) डोली
डोली बेटी की सजी,खुशियां मिली अपार।
 सपने आंखों में लिये ,छोड़ चली घर द्वार।।
 छोड़ चली घर द्वार ,रीति ये जग की न्यारी।
दो कुल की है लाज ,सदा खुश रहना प्यारी ।।
देते  सब आशीष ,भरी हो सुख से  झोली ।
दृग के भीगे कोर ,उठे जब तेरी डोली।।

2)बिंदी 

बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह ये ,अखियां रही निहार ।।
अखियां रही निहार,तनिक भी चैन न मिलता।
कैसे कटती रात ,विरह में तन ये जलता।।
बढ़ती मन की पीर ,छेड़ती है जब ननदी ।
तुम जीवन आधार ,तुम्हीं से मेरी बिंदी।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
[21/12 6:42 PM] कृष्ण मोहन निगम: कलम की सुगंध छंद शाला
 शतक वीर हेतु कुंडलियां 
दिनांक 21 दिसंबर 2019 
 9...  *आँचल*
आँचल सिर धर नववधू , करे प्रवेश निकेत ।
सास ससुर पदबंदि पुनि, अति पुनीत वर लेत ।।
 अति पुनीत वर लेत , बहू के देख सुलक्षण।
 मन वांछित उपहार,  सभी जन देते तत्क्षण ।।
"निगम" लोक आचार,पूर्ण कर  बोले माँ चल ।
धर आज्ञा निज शीश ,  चले वह थामे आँचल ।।
 10  *कजरा*
डाले कजरा नयन में , गज गामिनि वर नार ।
मोहित कर लेती उसे,  लेती जिसे निहार ।।
लेती जिसे निहार , काम कौतुक सी करती ।
मधुर मधुर मुस्कान,  अधर से किंशुक झरती ।
"निगम" निराले नैन , बड़े सुंदर अति काले ।
 यह उसकी तूणीर , तीर जिसमें वह डालें ।

कलम से 
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर)
[21/12 6:44 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*21/12/2019*
*दिन - शनिवार*
*विषय - कजरा*
*विधा-कुंडलियां*

   *9-कजरा*

कजरा नयनों में रचा, रही कटारी मार |
गोरी गजबन-सी चले, लूटे सरे बजार |
लूटे सरे बजार, करे नयनों से घायल |
कँगना छनके हाथ, निगोडी़ बाजे पायल |
कह विदेह कविराय, निराला तेरा गजरा |
रुचता मुझको हाय, प्रिये नयनों में कजरा ||

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*21/12/2019*
*दिन - शनिवार*
*विषय - आंचल*
*विधा-कुंडलियां*

   *10- आंचल*

आंचल माता का लगे, मुझको ढलती शाम |
धूप गुनगुनी-सी कभी, मुझको दे विश्राम |
मुझको दे विश्राम, भूल सब दुख मैं जाता |
माता मेरी तात, जगत में सत्य विधाता |
कह विदेह कविराय, सूर्य वो है उदयाचल |
जीवन का आगाज,लगे माता का आंचल ||

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[21/12 6:46 PM] डा कमल वर्मा: कुंडलियाँ दिनांक 21-12-19.
कुंडलियाँ क्र (9) 
 1)आंचल
आंचल। 🌹
मांँ का आंचल हट गया,छूटा जीवन प्यार, रोती कटती है सुनो, जीवन जैसे भार।
 जीवन जैसे भार,कटें यह जैसे तैसे,
पेट पडी अंगार,जेब तरसे बिन पैसे।
कमल करें तब याद,पडे जब जब यह फाका
देता सुख का स्वाद,प्यार भर आंचल मांँ का।

 कुंडलियाँ (10) 
कजरा2) 
आँखों में कजरा कहाँ,बिना नींद बेचैन,     
देखूँ कान्हा की छबी ,तडप रही दिन रैन।
तडप रही दिन रैन,कहाँ है शाम सलोना।
कैसे पाऊँ चैन ,कभी तो आन मिलोना।                        कमल कहे क्या बैन,करे वह मिन्नत लाखों,                                                           बैरन हो गये नैन, रैन कटती हैं आंँखों। 
(मिलोना का अर्थ" मनुहार" हैआ कर मिलिये)
रचना कार_ डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[21/12 6:46 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
21.12.2019
9-
आँचल

माँ के आँचल में मिले,ममता का वरदान।
प्यार और पुचकार से,आ जाती है जान।
आ जाती है जान,अंग हर सावन बरसे।
रोग- शोक सब शमन,हिया धक- धक कर हर्षे।
कहे कमल कविराज,मातु में बसती है जाँ।
मिट जाती हर व्याधि,पास में रहती यदि माँ।
10-
कजरा-

गजरा -कजरा लगाकर,चली नार ससुराल।
माथे बिंदी सजाकर,पहने चुनरी लाल।
पहने चुनरी लाल,कंठ वैजन्ती माला।
कर सोलह श्रृंगार,नज़र का टीका काला।
कहे कमल कविराज,आगमन सजना मजरा।
कंठ नंद के लगी,दिखाकर काला कजरा।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[21/12 6:55 PM] शिवकुमारी शिवहरे: कजरा

कजरा आँखों मे लगा, दर्पण रही निहार।
रुप सलोना सा लगे,कर सोलह श्रृगार।
कर सोलह श्रृंगार,सजे अधरों मे लाली
पहिन गले मे हार,सुरमयी आँखें काली।
मिला पिया का प्यार, लगा बालों मे गजरा।
मिलता रहे दुलार,सदा आँखों मे कजरा

      शिवकुमारी  शिवहरे
[21/12 6:55 PM] शिवकुमारी शिवहरे: आँचल
ममता आँचल मे लिये, बाँट रही है प्यार।
माँ के आँचल मे खिला,ममता लाड़ दुलार।
ममता लाड़ दुलार,सदा देती वह खुशियाँ।
माँ करती है प्यार ,  मिले माँ से ही दुनिया।
ममता मिले समान,मात का प्यार न कमता ।
भरा हृदय मे प्यार ,बसी आँचल मे ममता।

   शिवकुमारी शिवहरे
[21/12 6:57 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंदशाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
21/12/19

 *(1)*आँचल**  

माता ममता से भरी,नेह गेह का रंग ।
बालक चैन सुकुन भरा,टकटक चिन्हत संग ।
टकटक चिन्हत संग,लगे माता ही प्यारी।
आँचल की ले ओट,बलैया ले महतारी ।
कहे मधुर के बोल,होय जीवन  सुखदाता ।
है अबोध वह जान,मगर जाने है माता।

           *(2)कजरा* 

कजरा कजरौटी धरी,देय डिठौना मात।
नजर लगे ना लाल को,दूर करें हर घात।
दूर करें हर घात,मात की अदा निराली।
जीव जान से खूब,पालती पालनहारी।
कहती मधुर विचार,  भूलती सज्जा  गजरा।
भूख प्यास  भी भूल, लला को आँजे कजरा।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[21/12 6:57 PM] शिवकुमारी शिवहरे: बिंदी

बिंदी माथे पर लगा,सिंदूर भरा  लाल
हाथ मे मेहदी लगी,घुँघराले है बाल।
घुँघराले है बाल, बाँध के सिर पर जूड़ा।
गोरे गोरे गाल, हाथ मे पहना चूड़ा।
बिंदी बनी है ढ़ाल, सजन तो हो गया बन्दी।
सजती माथे भाल, लगा माथे मे बिंदी।

      शिवकुमारी शिवहरे
[21/12 6:57 PM] शिवकुमारी शिवहरे: डोली
डोली बैठी है सखी ,चली पिया के द्वार।
मातपिता सब छूटते,छूटा घर परिवार।
छूटा घर परिवार, सभी छूट गई सखियाँ ।
मिलेगा प्रेम अपार,सदा देना है खुशियाँ।
चली सखी ससुराल,  सखी छूटी हमजोली।
चलती धीमी चाल,सखी बैठी है ड़ोली।

    शिवकुमारी शिवहरे
[21/12 7:02 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला 
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -21/12/19

आँचल (9)

आँचल फैला कर गई, नारी माँ के द्वार।
 माता से है माँगती, वो जीवन आधार।।
 वो जीवन आधार ,खिले आँगन फुलवारी।
 साजन जी के साथ, बसी है दुनिया सारी।
 कह राधे गोपाल, चलें हम साथ हिमाचल।
 माता जी के द्वार, गई फैलाकर आँचल।।

 कजरा (10)

कजरा नैनों से कहे, सुन लो मेरी बात।
 दो नैनों की है मिली, मुझको भी सौगात।।
 मुझको भी सौगात, कहे सब मुझको काला।
 देती मेरा साथ, सदा ही बिंदी माला।
कह राधे गोपाल, लगा चोटी में गजरा।
 सुन लो मेरी बात, कहे नैनों से कजरा।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[21/12 7:02 PM] कुसुम कोठारी: 21/12/19
कुण्डलियाँ

9 आँचल
फहराता आँचल उड़े, मधु रस खेलो फाग 
होली आई साजना,  आज सजाओ राग ,
आज सजाओ राग , कि नाचें सांझ सवेरा ,
बाजे चंग मृदंग ,खुशी मन झूमे मेरा ,
रास रचाए श्याम, गली घूमे लहराता
झुकी लाज सेआंख , पवन आँचल फहराता।।

10 कजरा
काला कजरा डाल के , बिंदी लगी ललाट
रक्तिम कुमकुम से सजे , बालों के दो पाट ,
बालों के दो पाट ,लगा होठों पर लाली 
बेणी गजरे सजे ,चली नारी मतवाली ,
लाल लाल है गाल , सँगी सुख देने वाला ,
अँजे सुबह औ शाम ,आंख में अंजन काला।

कुसुम कोठारी।
[21/12 7:09 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 21/12/2019

कुण्डलिया (9) 
विषय- आँचल
===========

तेरा माँ आँचल कवच, अलग न  करना आप l
जब तक मैं जीवित रहूँ, करूँ तुम्हारा  जाप ll
करूँ  तुम्हारा  जाप, यही  प्रभु  सच्ची  सेवा l
जीवन  में  सुख चैन, मिलेगा  असली  मेवा ll
कह  'माधव कविराय', चरण में मस्तक मेरा l
सफल रहे मम जन्म, सदा सिर आँचल तेरा ll

कुण्डलिया(११) 
विषय- कजरा
===========

कजरा दृग गजगामिनी, मृगलोचन  मृदुचाल I
तिरछी चितवन मदभरी, गजब गुलाबी गाल ll
गजब  गुलाबी  गाल, रसीले  अक्षर  अनुपम l
आबनूस  त्यों  केश, चमकते रद चपला सम ll
कह 'माधव कविराय', चिकुर साजे नव गजरा l
मनमोहक   चितचोर, बचाये   रमणी  कजरा ll

रचनाकार का नाम-
        सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                     महोबा (उ.प्र.)
[21/12 7:13 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

*दिनांक - 17/11/19*

कुण्डलियाँ (3) 
विषय- काजल

काजल टिक दूँ आ तुझे, नजर लगे मत तोय।
तुझे देख मैं ही नहीं,  ये जग मोहित होय।।
ये जग मोहित होय, रूप में तेरे गोरी।
इसीलिये ही रोज , चढ़ी रहती है त्योरी।।
तुमसे अतिशय प्रेम, कभी भी मत करना छल।
रहूँ तुम्हारे साथ, बना लो मुझको काजल।।

कुण्डलियाँ (4) 
विषय- गजरा

गजरा तेरे ही लिए, लेकर आया आज।
गोरी मेरे पास आ, मुझसे कैसी लाज।।
मुझसे कैसी लाज, छोड़ दो अब शरमाना।
है इक दूजे संग, हमें जिंदगी बिताना।।
रखो न हमसे आज, स्वयं पर इतना पहरा।
जूड़े में दूँ बाँध, आज तेरे  मैं गजरा।।


*दिनांक - 18/12/19*

कुण्डलियाँ (5) 
विषय- पायल

जब भी उसके पाँव में, पायल करती शोर।
बहके-बहके क्यों लगे, मन मेरा चितचोर।।
मन मेरा चितचोर, उसी दर्शन को तरसे।
सके न कुछ भी बोल, पता क्या? किसके डर से।।
उसे निहारूँ नित्य, गली से गुजरे तब भी।
उसका करता खोज, कहीं मैं जाऊँ जब भी।।

कुण्डलियाँ (6) 
विषय- कंगन

कंगन ला दो आप जी, तभी करूँगी ब्याह।
मानूँगी सजना तुम्हें, और कहूँगी वाह।।
और कहूँगी वाह, बहुत खुश हो जाऊँगी।
प्रियवर तेरे गीत, सदा ही मैं गाऊँगी।।
मेरे प्राणाधार, रखो बस इतना बंधन।
ला दूँगा मैं चाँद, कहो क्या है ये कंगन।।


रचनाकार का नाम- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द, जाँजगीर(छ.ग.)
[21/12 7:27 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला* 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

*दिन शनिवार 21.12.2019* 

 *9) आँचल*
डाँटे बाबा बाल को, भागा माँ के पास
कठिन समय हो कोय भी, माता बनती आस
माता बनती आस, घुसे आँचल में सुबके
डर कोई ले घेर, वहीं छुप कर जा दुबके
कह अनंत कविराय, चुभे यदि जब भी काँटे 
आँचल ही दे साथ, उसे कोई जब डाँटे

 *10) कजरा* 
कजरा वाले नैन में, डूबा है दिन-रात
खोया निज सुख-चैन को, भूला है निज गात
भूला है निज गात, होंठ की लाली देखा
बादल जैसे बाल, माँग सिंदूरी रेखा
कह अनंत कविराय, लटों पे डाले गजरा
हिय पर फिरे कृपाण, लगा निकले जब कजरा

 *रचनाकारः* 
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
[21/12 7:43 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता, दिनांक--२१/१२/१९. शनिवार।*
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*९--आंचल-*
~~~~~~~~~
मिलता आँचल में हमें, माँ के निश्छल प्यार।
माता ही करती सदा, सबसे अधिक दुलार।
सबसे अधिक दुलार, जन्म दे दूध पिलाती। 
लोरी गा कर नित्य, रात में हमे सुलाती।
माँ का पाकर नेह, सभी का मुखड़ा खिलता।
जब तक माँ है साथ, अलौकिक सुख है मिलता।।
~~~~~~~~~~~

*१०--कजरा--*
~~~~~~~~~~~
कजरा नयनों में लगा, मांग भरे सिंदूर।
राह निहारे नित्य तिय, प्रियतम हैं अति दूर।
प्रियतम हैं अति दूर, विरह की जलती ज्वाला।
कर के पति को याद, हृदय होता मतवाला।
बेणी बाँधे रोज,लगा बालों में गजरा।
बिंदी सोहे भाल, पिघलता जाये कजरा।। 
~~~~~~~~
*-- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--बलिया, उत्तर प्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~


*सादर समीक्षार्थ आदरणीय 🙏🙏*
[21/12 7:44 PM] रजनी रामदेव: कुण्डलिया छन्द- शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
21/12/2019::शनिवार

आँचल--
ओढ़े आँचल धुंध का, आये दिनकर राज।
खूब शरारत कर रहे , दुल्हा के अंदाज़।।
दुल्हा के अंदाज़ , बनी बाराती दुनियाँ।
सर्द सजीली भोर, लगे उनकी दुल्हनियाँ।।
ठुमक ठुमक कर चलें, आज तो उनके घोड़े।
आये दिनकर राज, धुंध का आँचल ओढ़े।।

(2)--कजरा--

कजरा नैनों में धरा, मस्तक बिंदी लाल।
मोर मुकुट धर शीश पर, मैया हुई निहाल।।
मैया हुई निहाल, देख मुख अपने ललना।
रेशम डोरी खींच, झुलाती है वो पलना।।
देती नज़र उतार, न बालक जाये नज़रा।
काला टीका भाल, लगाती है सँग कजरा।।
               रजनी रामदेव
                  न्यू दिल्ली
[21/12 7:50 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम सुगंध छंदशाला*
******************
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*******************
*कुण्डलियाँ-(९)*
*विषय-आँचल*
माता का आँचल मिले, सबकी होती चाह।
उसकी ममता के तले,रहे नहीं परवाह।
रहे नहीं परवाह,मगन मन बचपन डोले।
खिलते फूल समान,बड़े ये मन के भोले।
कहती 'अभि' निज बात,तभी बचपन मुरझाता।
आती घड़ी कठोर,बिछड़ जब जाती माता।

*कुण्डलियाँ(१०)*
*विषय-कजरा*

कजरा का टीका लगा,माता चूमे भाल।
कितना प्यारा लग रहा,मेरा नन्हा लाल।
मेरा नन्हा लाल,करे कैसी अठखेली।
प्यारी सी मुस्कान,दिखे सुंदर अलबेली।
कहती 'अभि' निज बात,करे जब लालन नखरा।
देती नजर उतार,लगा कर टीका कजरा।

*रचनाकारअभिलाषा चौहान*

अंक ग़लत अंकित करने के कारण पुनः प्रेषित
क्षमा
[21/12 8:00 PM] सुकमोती चौहान रुचि: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनाँक 19.12.2019

7.  *बिंदी*

 सोहे बिंदी माथ पर,सिर पर चुनरी लाल।
चूड़ी खनके हाथ में, घुँघराले हैं बाल।
घुँघराले हैं बाल,खड़ी है दर पर बाला
मंद मधुर मुस्कान,गले में कंचन माला
कहती रुचि करजोड़,सुबह कवि रचता दोहे।
काले भौहों बीच,माथ पर बिंदी सोहे।


8.    *डोली*

बिटिया की डोली उठी,भीगे सबके नैन।
कंठ हुआ अवरुद्ध है,मात पिता बेचैन।
मात पिता बेचैन,अश्रु बरबस ही बहते।
मन है बड़ा अधीर,नहीं मुख से कुछ कहते।
कहती रुचि करजोड़,सुता खुशियों की डिबिया।
पल पल अब दिन रैन,याद आती है बिटिया।

*कलम की सुगंध छंदशाला*
कुन्डलिया शतकवीर हेतु

दिनाँक - 21/12/19

  9  *आँचल*


ममता की आँचल सखी,सुंदर पीपल छाँव।
शांतिपूर्ण वातावरण, नदी किनारे गाँव।
नदी किनारे गाँव,हरी सब्जी है मिलते।
बैंगन गोल मटोल,मटर मूली हैं बिकते।
कहती रुचि करजोड़, पपीता अमरुद पकता।
जीव जंतु के हेतु,प्रकृति की झलके ममता।


10  *कजरा*

नयनों में कजरा लगा,सिर पर मयूर पंख।
एक हाथ में बाँसुरी,एक हाथ में शंख।
एक हाथ में शंख,साँवरा बड़ा निराला।
छम छम बजे नुपूर,चले जब मुरली वाला।
कहती रुचि करजोड़,सुधा टपके वचनों में।
चले कन्हाई आज,लगा कजरा नयनों में।

✍ सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[21/12 8:54 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

शतक वीर सम्मान , 2019 हेतु कुण्डलिया छंद 

9 ) आँचल 
***********
माता के आँचल तले , मिलती ठंडी छाँव ।
ठुमकती चले बालिका , उठते नन्हें पाँव ।।
उठते नन्हें पाँव , प्यार है उस पर आता ।
मिलती ठंडी छाँव , उसे आँचल मिल जाता ।।
फूल सा देखा शिशु , सदा ही  माँ को भाता ।।
देती शिशु को प्यार , आँचल के तले माता ।।



10 ) कजरा 
************
कजरारी आँखें भरीं , कजरा लिया लगाय ।
मोहन तो प्यारा लगे , माथे मोर मुकुट भाय ।।
माथे मोर मुकुट भाय , गलमाल दा सुहाती ।
मुरली अधरों साज , मधुरिम है लय सुनाती ।।
पैंजनी बजे आज , हृदय ले जीत मुरारी ।
पीतांबर सोहे तन , सजीं आँखें कजरारी ।।
€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
:21.12.2019 , 8:12 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[21/12 9:30 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
शनिवार-21.12.2019.

9)*आँचल*

ममता ने संसार को, दिया प्रेम का रूप। 
माता के आँचल खिले,सदा नेह की धूप।
सदा नेह की धूप,स्नेह का ढंग निराला। 
भूखी रहकर मात, खिलाती प्रेम निवाला।
कहती वंदू बात,वही है भाग्यविधाता।
दूर खड़े यमदूत,डटी है भय बिन माता।।

10)*कजरा*

कजरा नैनों से बहा, काले हुए कपोल
निर्मोही प्रीतम हुए ,जान न पाए मोल।
जान न पाए मोल,हुए साजन परदेसी ।
विनती करती आज ,विरह में रोये कैसी।
देखी आंसू धार,बरसना भूले बदरा।
दे बांहों का हार, हटाया पी ने कजरा।।

*वंदना सोलंकी*
[21/12 9:39 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर  कुंडलिया छंद 
21-12-19

आँचल सिर पर ओढ़ कर, चली पिया के संग ।
बिंदिया चमके माथ में, लाल चुनरिया रंग ।
लाल चुनरिया रंग  गोरिया है शरमाती ।
हिना से लिखा नाम, छुपा कर चुमती जाती ।
मतवाली सी चाल, पाँव में बाँध के पायल ।
देख पिया की ओर ,ढ़लकते सिर से आँचल ।।

कजरा 

कजरा नैनो में लगा, बिंदिया माथे लाल ।
चलती बन मन मोहनी, गजरा बाँधे बाल ।
गजरा बाँधे बाल, चली वह गाने गाती ।
लचक दार है चाल, कभी आँचल ढ़रकाती ।
कहती मीरा देख, गजब करती है नखरा ।
घायल करती आज, लगा नैनों में कचरा ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[21/12 9:40 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:- 21/12/19

आॅचल

आॅचल की छाया तले, ममता मिले अपार।
आजीवन कायम रहे,मात पिता का प्यार।
मात पिता का प्यार, मोल इसका पहचानो।
देते जीवन दान, उसे तुम अपना मानो।
मत कर गरब गुमान,रूप यह नश्वर काया।
वह घर स्वर्ग समान, जहां आॅचल की छाया।।


कजरा

दर्पण देख निहारती, सजनी अपना रूप।
आॅखों में कजरा लगा, रहने सदा अनूप।
रहने सदा अनूप, पालती है अभिलाषा।
मनमोहक सौन्दर्य, समझ काया की भाषा।
सुंदर रखकर भाव,करे ये तन मन अर्पण। 
अपनों को कर याद,निहारें निस दिन दर्पण।।

महेंद्र कुमार बघेल
[21/12 9:41 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलियाँ शतकवीर*

दिनांक- 21/12/19
कुण्डलियाँ- (9)
विषय- *आँचल*

आँचल में माँ के पयो, जीव दान का घोल। 
स्वर्ग चरण में देख ले, कहे जिसे अनमोल।। 
कहे जिसे अनमोल, भाव में ममता बहती। 
वातसल्य की  मूर्त, दिखे ज्यों जगती रहती।। 
सुवासिता क्यों आज, मची है मन में हलचल। 
बने धूप में छाँव, यही ममता का आँचल।।


कुण्डलिया-(10)
विषय- *कजरा* (हास्य) 

कजरा तेरी आँख का, लेता मझको लूट। 
प्यार भरा प्रस्ताव सुन, तू दे मुझको कूट।। 
तू दे मुझको कूट, लौंग सी चाय बनाती। 
आते जाते लोग, मुझे उन से पिटवाती।।
सुवासिता सुन मर्म, बना बेचारा गुजरा। 
हालत रहा विगाड़, यही आँखो का कजरा।।



         🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[21/12 9:47 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 21/12/19 

कुण्डलियाँ (9) 
विषय- *आँचल*

माँ के आँचल मे छुपा, सारे जग का प्यार।
सभी बलाएँ लाल की, फेंके नजर उतार।।
फेंके नजर उतार, लगा काजल का टीका।
सबसे सुंदर लाल, जगत लगता है फीका।।
ममता  ये अनमोल, बरसती बनके बादल।
दूजा नहीं विकल्प, एक ही माँ का आँचल ।।




कुण्डलियाँ (10)
विषय- *कजरा*

कजरा  डाला  नैन  में, करने  को  श्रृंगार।
घायल पिय को कर गई, यह कजरारी धार।।
यह  कजरारी  धार, तीर  बनके है  चुभती।
चलती जो इकबार, नहीं बिन मारे रुकती।।
काजल  बिन  नैन, लगे बारिश  बिन बदरा।
देते  मन  को चैन, सजे जब इनपे कजरा।।




रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[21/12 9:49 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला 
शतकवीर हेतु कुंडलियाँ 
7-
*पायल*

 पायल की  झंकार सुन ,जागे सारा गाँव 
बजती आंगन में तभी , साजन देखे पाँव.
साजन देखे पाँव , खुशी से मन ये चहके।
सजता पूरा गाँव  , बाग फूलों से  महके।।
देख पिया का प्यार  , जिया हो जाता घायल 
झूमें सब संसार ,बजती जब यही पायल ।

8-/
*बिंदी*
कुमकुम का टीका लगा, रस-सिंदूरी मांग ।
पुष्प  बीनती राधिका ,भरे कन्हैया स्वांग ।
 भरे कन्हैया  स्वांग ,लगा कपोल पर बिंदी ।
पहन रहे गर माल ,चिढा़ते कर तुकबंदी
 गोप सखा सब मग्न ,गोपियाँ हैं सब गुमसुम ।
 नाच रहे सब लोग,,धरा पर  बिखरा कुमकुम ।


कुंडलियाँ शतकवीर के लिए 

9--आंचल 
छोटी लाड़ो भी चली ,आफिस करने काम 
दामन माँ का छोड़ के ,करने माँ का नाम ।
करने माँ का नाम,वही है दुनियाँ उसकी 
निर्धनता अभिशाप,मिटाती खुशियाँ सबकी 
छोड़ा आँचल मात ,कमाने निकली रोटी 
है माता लाचार , नहीं बेटी अब  छोटी
पाखी


10--
कजरा ..
काले कजरारे नयन ,काले तेरे केश 
काले मन वाले सजन,कैसा तेरा देश ।
कैसा तेरा देश ,सजा आंखों  पे लाली 
अंजन लगता आंख ,बजाते हैं वो ताली।
छलकेआंसू धार ,बरसना भूले सारे 
कजरा आंखों देख ,आ गये बादल  काले ।
मनोरमा जैन पाखी
[21/12 9:54 PM] अमित साहू: कुण्डिलयाँ शतकवीर

7-बिंदी (19/12/2019)
बिंदी बन माथे सजी, मातु भारती भाल।
सहज सरल समृद्ध सुगम, कहे सुने हिय हाल।।
कहे सुने हिय हाल, समझ का सटिक निवारण।
जन मन की आवाज, भाव सुस्पष्ट उच्चारण।
कहे अमित कविराज, हमारी भाषा हिंदी।
हर्षित हिन्दुस्तान, सजे यह बनकर बिंदी।।

8-डोली
डोली अब दिखता नहीं, कोई कहाँ कहार।
रंग-ढ़ंग बदला हुआ, लोकाचार व्यवहार।।
लोकाचार व्यवहार, अनमना रीत निभाते।
प्रथा सादगी सुप्त, धनिक धन साख दिखाते।।
लुप्तप्राय आत्मीय, दंभपूरित मुख बोली।
अमित अजब बदलाव, नहीं शहनाई डोली।।


9-आँचल (21/12/2019)
अवनी अंबर से बड़ा, माँ का आँचल कोर।
कीर्ति पताका दूर तक, सिंधु सात नहिँ छोर।।
सिंधु सात नहिँ छोर, क्षितिज तक लगता फैला।
अतुलनीय अनुराग, करो इसे न सुत मैला।।
कहे अमित कविराज, प्रथम पूजित है जननी।।
शीश झुकाते देव, धैर्य रखती सम अवनी।।


10-कजरा
अनुरंजन करता कभी, सुंदर रूप बढ़ाय।
नैन सँवारे है यही, कजरा नाम कहाय।।
कजरा नाम कहाय, नयन दिखता कजरारी।
मनपसंद श्रृंगार, बहुत चाहें श्रृंगारी।।
रंग भले है स्याह, किंतु आँखों का अंजन।
काजल करे कमाल, बढ़ाये उर अनुरंजन।।

कन्हैया साहू 'अमित'✍
[21/12 9:55 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 21.12.19

कुण्डलियाँ (7) 
विषय-बिंदी

बिंदी ये अनमोल है,कौन लगाये  मोल।
है शोभा ये भाल की,कोई सके न तोल।
कोई सके न तोल,तभी है सब पर भारी  
अंकों का है खेल,बने फिर एक  हजारी।
चमके बिंदी भाल,हमारा गौरव हिंदी।
खिल खिल जाये रूप, सजे जब माथे बिंदी।।


कुण्डलियाँ (8) 
विषय-डोली

बाबुल से लेकर विदा,बैठी डोली आज।
साजन के जो मन चढ़ी,छाई मुख पे लाज।
छाई मुख पे लाज,गली बाबुल की भूली।
बेटी आये याद,दिखी जब उसकी तूली।
 रोज सुनाती पाठ,सभी का  मन है आकुल।
ले आँखों से नींद,लली भूल चली बाबुल।।



रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[21/12 9:57 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
शनिवार-21/12/2019

(9)
विषय-आँचल
झीना आँचल भूमि का, इंद्रधनुष के रंग।
गाये कोकिल झूम के,विचरण करे अनंग।
विचरण करे अनंग,धरा ने ली अँगड़ाई।
धानी चूनर ओढ़, गगन से मिलने आई।
पीत हरित हैं  लाल, हवा में महका भीना।
फूलों वाले छोर,मही का आँचल झीना।



(10)कजरा


कजरा
कजरा सोहे नैन में, तिलक लगाया भाल।
मातु यशोदा अति मुदित, निरख निरख निज लाल।
निरख निरख निज लाल, खड़ा  हँसता गोपाला।
सजे  सिर मोर पंख ,गले बैजंतीमाला।
मुरली ली अब खोंस,लटों में सजता गजरा
बादल को दे मात,लगा आँखों में कजरा।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[21/12 9:57 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 21.12.19*

*कुण्डलियाँ (7)*
*विषय :- बिंदी*

माथे की बिंदी बिना, पूर्ण न हो श्रृंगार।
अधरों पर छाई हँसी,देती रूप निखार।।
देती रूप निखार, सभी के मन को भाती।
नारी गुण की खान, सदन को स्वर्ग बनाती।
जोड़े वो परिवार,सहेजे रिश्ते नाते।
बनती प्रेम प्रतीक, चमकती बिंदी माथे।।

*कुण्डलियाँ (8)*
*विषय :- डोली*

आँखों में आँसू भरे,कर सोलह श्रृंगार।
बाबुल की कोमल परी,चली पिया के द्वार।
चली पिया के द्वार, उठी आँगन से डोली।
देख रही परिवार, लाडली बिटिया भोली।।
बहे अश्रु की धार, टूटती देखे शाखें।
सखी सहेली छोड़, विदा होती दो आंखें।।

*कुण्डलियाँ (9)*
*विषय :- आँचल*
माँ के आँचल के तले, है सपनों का गाँव।
ईश्वर भी हैं ढूँढ़ते , माँ की शीतल छाँव।।
माँ की शीतल छाँव, धरा को स्वर्ग बनाती।
हर लेती हर पीर, दुखों को दूर भगाती।।
कैसे भी हों लाल, लगें वो माँ को बाँके।
बच्चों के ही पास, प्राण बसते हैं माँ के।।

*कुण्डलियाँ (10)*
*विषय :- कजरा*

कजरा आँखों में सजा,लगा महावर लाल।
अधरों पर लाली सजी,हुए गुलाबी गाल।।
हुए गुलाबी गाल, पिया को खूब लुभाते।
उड़ते काले बाल, नींद को दूर भगाते।।
करे बाँवरा आज, सुगंधित वेणी गजरा।
नैना हुए कटार, सजा है जब से कजरा।।

*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*

@Kalam Ki sugandh

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण कुण्डलिया ....सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई 💐💐💐

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