Sunday 29 December 2019

कुण्डलिया छंद ....पनघट , सैनिक


[29/12 6:17 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु
दिनाँक - 29.12.19

(23)पनघट

पनघट को गोरी चली,पानी की ले आस।
सखियाँ भी हैं साथ में,बातें करती खास।।
बातें करती खास,सभी हैं मस्त मगन में।
सज-धज कजरा देख,लगे इनके नैनन में।।
कहे विनायक राज, करे बातें हैं जमघट।
नारी का व्यवहार,यही जाती जब पनघट।।

(24)सैनिक

बनकर सैनिक देश का,रक्षा करना आज।
ऐ मेरे  बेटों  सुनों, करना  ये शुभ  काज।।
करना ये शुभ काज,आज है धर्म निभाना।
दुश्मन करते वार,उन्हें अब है समझाना।।
कहे विनायक राज,खड़े सीमा पर तनकर।
जो भी हो गद्दार, भगाना सैनिक बनकर।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

[29/12 6:20 PM] अनिता सुधीर: नमन मंच   कलम की सुगंधशाला
शतक वीर हेतु कुंडलिया
29/12
पनघट

पनघट पर घट ले खड़ी,मृग तृष्णा की प्यास।
रिक्त घड़ा कैसे भरे ,जीवन में ये आस ।।
जीवन में ये आस,तप्त मन कर दें शीतल ।
एक बूँद की चाह ,तृप्त अब करें हृदयतल  ।।
खोज रही हूँ राह, तृषा का लगता जमघट।
भरिये घट में ज्ञान,सिक्त कर दें इस पनघट।।

सैनिक
सैनिक सरहद पर खड़े,नहीँ जान से मोह।
सोयें हम सब चैन से ,उन्हें कुटुम्ब बिछोह।।
उन्हें कुटुम्ब बिछोह,कठिन स्थितियों में रहते
लेते नहि वो नींद ,व्यथा कभी न वो कहते ।।
रहते सजग सुजान....करें सब वो वैधानिक।
करे अरि का विनाश ...खड़े रक्षा को  सैनिक।

अनिता सुधीर

[29/12 6:21 PM] सरला सिंह: *************************************
29.12.19

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - रविवार*
*दिनांक-29/12/19*
*विषय: पनघट*
*विधा कुण्डलियाँ*

 *23- पनघट*

राधा जी पनघट चलीं,लेकर गोपी साथ।
कान्हा भी पीछे चले, लिए बांसुरी हाथ।
लिए बांसुरी हाथ, करें सबकी चितचोरी।
मटकी फोड़त जात, करें सबसे बरजोरी।
कहती सरला आज,हरो मेरी भवबाधा।
कान्हा के ही साथ,कृपा बरसावें  राधा।।

*डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'*
*दिल्ली*

*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - रविवार*
*दिनांक-29/12/19*
*विषय: सैनिक*
*विधा कुण्डलियाँ*

    *24-सैनिक*

रहते सरहद पर डटे, सैनिक मेरे वीर।
देकर अपने प्राण भी,हरें देश की पीर।
हरें देश की पीर , करे नित देश की रक्षा।
बारिश गरमी शीत, रहे निरत देश सुरक्षा।
सरला कहती बात,सभी मौसम वे सहते।
भारत की ये शान,डटे हरदम ये रहते।।

*डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'*
*दिल्ली*
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[29/12 6:27 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
*दिनांक ----28/12/19*

 (21). *कुनबा*

दादा दादी माँ पिता , बहना भाई प्यार ।
कुनबा कुंदन सा खिला ,सुंदर सा संसार ।।
सुंदर सा संसार , द्वार में रिश्ते चहके‌ ।
खुशहाली का बाग , चित्त में खुशियाँ महके।।
जोडें रिश्ते तार ,  चलो कर लें ये वादा ।
मिले ढेर आशीष , ईश तुल दादी दादा ।।

(22 )   *पीहर*

पुष्पित पीहर अंगना , शोभित सारा गाँव ।
छूटा बाबुल पालना , माँ का आँचल छाँव ।।
माँ का आँचल छाँव , छूटता  बचपन उपवन
निकली बिटिया आज , सजाने अब नव जीवन ।।
पीहर का संस्कार  , रखे जो हरपल सुरभित ।
खिले ससुराल डाल, सदा हो आँगन पुष्पित ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*छत्तीसगढ़, रायगढ़*
[29/12 6:29 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
*दिनांक----29/12/19*

(23)    *पनघट*

पनघट पर सखियाँ मिलीं , मीठी बतरस घोल।
सुख दुख की बातें करें,  करती हुई कलोल।।
करती हुई कलोल , गाँठ मन की वो खोलें।
मुख में मृदु मुस्कान , संग सखियों के डोलें ।।
गूँजे मधुरिम गीत ,नित्य दिन लगता जमघट।
मोहक मेला मेल ,सजा हो प्यारा पनघट।।

(24). *सैनिक*

सैनिक संबल राष्ट्र के, रखते हरदम‌‌ धीर ।
संयम जज्बा हौसला , भरा हृदय में पीर ।।
भरा हृदय में पीर , गरम हो चाहे सर्दी ।
चौकस खड़े जवान , पहन कर अपनी वर्दी।।
कहे धरा कर जोड़, फर्ज हो सबका दैनिक ।
चलो निभाऐं धर्म , वतन के हम सब सैनिक ।।


*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[29/12 6:29 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 29.12.19

23-   पनघट
***********
पनघट सूने हो गए,
सूने दिखते घाट।
घर-घर नल का जल हुआ,
यही आज के ठाट।

यही आज के ठाट,
मगर यह दिखी बुराई।
सुख-दुख वाली बात,
न पड़ती सहज सुनाई।

"अटल" गया वह दौर,
लगा करता था जमघट।
सबके बंद किवाड़,
कौन अब जाये पनघट ?
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

24-   सैनिक
***********
कोई भी सैनिक दिखे,
उसको दें सम्मान।
एक वही तो शख्स है,
जिसका काम महान।

जिसका काम महान,
न मौसम उसे सताता।
जाड़ा-गर्मी घोर,
न दिखता वह घबराता।

"अटल" जगे दिन-रात,
सुरक्षित जनता सोई।
सीमा पर दे जान,
न इसकी तुलना कोई।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

[29/12 6:29 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.          *कलम की सुगंध छंदशाला*
.         कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
.          दिनांक - 29.12.19
.                     🦚🦚
कुण्डलियाँ (1)
विषय-   *पनघट*
झीलें  बापी  कूप  सर, सरिताओं  के  घाट!
आतुर  नयन  निहारते, पनिहारी  की  बाट!
पनिहारी  की बाट, मिलें  कुछ  बातें  करते!
रीत प्रीत  मनुहार, शिकायत  मन की धरते!
कहे लाल कविराय, स्रोत जल बचे न गीले!
कचरा  पटके  लोग, भरे  पनघट सब झीलें!
.                    🦚🦚🦚
कुण्डलियाँ (2)
विषय-    *सैनिक*
सैनिक  रक्षक  देश  के,  हैं  जैसे   भगवान!
रखें  तिरंगा  मान  को,  मरे  शहादत   शान!
मरे शहादत शान, चाह  बस  कफन  तिरंगा!
भारत रहे  अखण्ड, बहे  जल  यमुना  गंगा!
कहे लाल कविराय, प्राण दे जनहित दैनिक!
मात  भारती  पूत, नमन  है  तुमको  सैनिक!
.                      🦚🤷🏻‍♀🦚
रचनाकार - ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀

[29/12 6:37 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 29/12/2019

कुण्डलिया (24)
विषय- पनघट
===========

गागर   गोरी  शीश  धर, जातीं  पनघट  पास I
श्रमकर जल लातीं भवन, दिनचर्या थी खास ll
दिनचर्या  थी खास, सहेली  हिल - मिल लेतीं l
हो  आदान - प्रदान, विचारों  को  दिल   देतीं ll
कह  'माधव कविराय', बचा  ग्रामीण न नागर l
सदन सलिल का स्रोत, कहाँ पनघट में गागर ll

कुण्डलिया (25)
विषय- सैनिक
===========

सैनिक   सीमा   में  डटे, घर  की  बिन  परवाह I
शीत, ग्रीष्म, बरसात ऋतु, सिर्फ वतन की चाह ll
सिर्फ  वतन  की  चाह, उन्हें  चिन्ता हम सबकी l
धन्य - धन्य  जाँबाज, यही  सत  सेवा  रब  की ll
कह  'माधव कविराय', उमर   पाते   ये   दैनिक l
कफन   तिरंगा  ओढ़, अमर  हो  जाते  सैनिक ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)

[29/12 6:44 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*विषय-(२३)पनघट*

पनघट सूखे हैं पड़े,सूखे नदियाँ ताल।
कुएँ बावड़ी का हुआ,बहुत बुरा अब हाल।
बहुत बुरा अब हाल,कहाँ अब दिखता पानी।
बीते कल की बात,बची बस एक कहानी।
मीलों चलते लोग,शीश पे रखकर घट-घट।
रहता बड़ा उदास,गाँव का मेरा पनघट।

*विषय-(२४)सैनिक*

सीमा पे सैनिक सदा,रखें देश की आन।
उसकी रक्षा के लिए,वारें अपनी जान।
वारें अपनी जान,बड़े ही धुन के पक्के।
रहते सीना तान,शत्रु के छूटे छक्के।
कहती 'अभि' निज बात,देख शत्रु पड़े धीमा।
भारत की है शान,सुरक्षित रहती सीमा।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*

[29/12 6:46 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*

28.12.19 शनिवार

21)*कुनबा*

कुनबा सारा जब जुड़े,तब कहलाए परिवार।
सुख दुख हैं सब बाँटते,अटूट होता प्यार।
अटूट होता प्यार,,नेह के धागे ऐसे।
सुख दुख में हैं साथ,न चाहें रुपये पैसे।
सुन वन्दू के भाव,जगत में अपना रुतबा।
भ्रात भगिनि पित मात,यही तो होता कुनबा।।

22)
*पीहर*

*पीहर प्यारा प्राण से,कहती है हर नार*।
*नार* वहीं पर है गड़ा,बहे भाव की धार।
बहे भाव की धार,पिता की राजदुलारी।
जाना है ससुराल,रीत दुनिया की न्यारी।
सुन वन्दू हिय बात,करे रोदन दिल भीतर।
रखती सबका मान,सासरा हो या पीहर।।

29.12.19 रविवार

23)*पनघट*

पनघट सूने हो चले,चिंतित हुआ समाज।
धरती बंजर हो रही,कैसे उगे अनाज।
कैसे उगे अनाज,पड़ा संकट है भारी।
न्यून हुआ जल स्तर,न दिखें कूप पे नारी।
कहती वन्दू बात,समय ने बदली करवट।
हो अभी से संचय,जल पूरित होंगे पनघट।

24)*सैनिक*

गाथा सैनिक वीर की,हमसे सुन लो आज।
निज प्राण की बलि देते,रखते भारत की लाज।
रखते भारत की लाज,आन है उनको प्यारी।
त्याग समर्पण भाव,खूबियां उनमें सारी।
कहती वन्दू बात,गर्व से उन्नत माथा।
देशहित देते शीश,यही सैनिक की गाथा।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*

[29/12 6:56 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला।🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर सन्मान के लिए।🙏🏻
दिनाँक 29-12-19
 कुंडलियाँ क्र 23
  1)पनघट🌹
कोई महत्व है कहाँ,इस पनघट का आज।
बाला आजादी गई,सखियों का वह राज।।
सखियों का वह राज,प्यार संग छेडखानी।
केवल होते श्राद्ध,मृतों को देतें पानी।।
कमल कहे अब घाट,बने पनघट सब सोई।
जल भरने कब जाय,वहाँ मृगनयनी कोई।।

 कुंडलियाँ क्र 24
  2)सैनिक🌹
 सीमा पर तैनात है,राह तके आदेश।
सैनिक भारत मात के,रक्षित मेरा देश।।
रक्षित मेरा देश,करे आतंक सफाया।
खुद की क्या परवाह,मिटें दुष्टों का साया।।
                   देख कमल बलिदान,करा लो इनका बीमा।                     
अर्पण करते प्राण,डटें भारत की सीमा।।

रचना कार डॉ श्रीमती कमल वर्मा🙏🏻

[29/12 7:00 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---  *पनघट , सैनिक*
दिनांक ----  29.12.19...

(23)           *पनघट*

पनघट पर गोरी खड़ी , भर हाथों से नीर ।
पानी पीकर तृप्ति हों , मिट जाएगी पीर ।
मिट जाएगी पीर , सदा हो मन का पानी ।
होगा नवल प्रभात , गोरी ने गीत सुनाया ।
पा सूरज का प्यार , पुष्प भी है हरषाया ।
कह कुमकुम करजोरि , कभी न लगाना जमघट ।
हो सुंदर व्यवहार , पानी भरेगी पनघट ।।


(24)           *सैनिक*

सैनिक के उपकार को , मत समझो तुम खेल ।
लाख पुण्य के बाद में , होता है यह मेल ।
होता है यह मेल , कर्म  को सदा जगाओ ।
पर इतना लो जान , धर्म को मत बिसराओ ।
कह कुमकुम करजोरि , कर्म करना न अनैतिक ।
रहे सुरक्षित देश , सरहद तैनात सैनिक ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  29.12.2019....


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[29/12 7:07 PM] सुशीला साहू रायगढ़: ✍️ *कलम की सुगंध छंदशाला* ✍️
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु मेरी  रचना*
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*23--विषय--------पनघट* 29/12/2019*
पनघट के तीर यमुना ,चली घड़ा ले साथ।
गोरी अब पानी भरे, रखे कमर में हाथ।।
रखे कमर में हाथ, देख  छलकते गगरियाँ।
छलके मीठे नीर ,बोल उठते सांवरियाँ।।
कह शीला ये बात,कृष्ण की लीला अटपट।
राधा संग चले कृष्ण ,तीर यमुना के पनघट।
*24--विषय-------सैनिक*
सैनिक लौ पथगामिनी,चले पग पग कतार।
जवान रक्षा अब करें ,डटे सब लगातार।।
डटे सब लगातार, देशहित जन धन रक्षा।।
सैनिक पहरेदार, करें हमारी सुरक्षा।।
कह शीला कर जोड़,सपथ लें हम अब दैनिक।
बचाए हमारी जान ,करें सुरक्षा ये सैनिक।।

*सुशीला साहू शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*

[29/12 7:14 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिसंबर 29 दिसंबर 2019
कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलियां शतक वीर प्रतियोगिता
विषय       *पनघट*
पनघट   पथ   सूने  पड़े , कूएँ  खड़े   उदास ।
पनिहारिन सब खो गई , खोया सब उल्लास ।।
खोया    सब   उल्लास , नलों   से   कूएँ हारे ।
घर घर  टोंटी -धार ,  विजन  हैं  घाट   हमारे ।।
"निगम" हास परिहास ,  दृश्य था सुंदर जमघट।
अब  बन गया अतीत,  कहानी में बस पनघट ।।

विषय        *सैनिक*

 सीमा पर चौकस खड़ा , करे कड़ा संघर्ष ।
सहे वात वर्षा शरद   ,  सैनिक सदा सहर्ष ।।
सैनिक सदा सहर्ष , अटल हिमगिरि के जैसे ।
माँ  का वीर सपूत,  डिगें  डग मग से कैसे ।।
कहे "निगम" कविराय , शत्रु शोणित हो धीमा
 ललकारे  निर्भीक, वीर जय  हिंदी - सीमा ।।

कलम से
कृष्ण मोहन निगम (सीतापुर) छत्तीसगढ़

[29/12 7:20 PM] कमल किशोर कमल: नमन
२९.१२.२०१९
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु
२३-
पनघट
पनघट गायब हो गये,जैसे गायब शेर।
पनिहारिन दिखती नहीं,दूर -दूर हैं खेर।
दूर- दूर हैं खेर,जहाँ पर बसती दुनियाँ।
खेत किसानी खूब,मटककर चलती पुनिया।
कहे कमल कविराज,नलों में लगता जमघट।
पानी भरते लोग,जिसे कहते हैं पनघट।
२४-सैनिक
भारत सैनिक वीर हैं,करते सभी सलाम‌।
देश सलामत चाह में,पैदा हुए कलाम।
पैदा हुए कलाम,मिसाइल दागी हमने।
अमन चैन के मजे,दिये हैं सेना रब ने।
कहे कमल कविराज,रक्ष करते हैं दैनिक।
वर्षा गरमी शीत,अडिग हैं भारत सैनिक।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
        🌹👏
[29/12 7:22 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

*दिनाँक - 26/12/19*

19  *बहना*

बहना मेरी है परी,मधुरस की है घोल।
पीछे पीछे वह चली,भैया भैया बोल।
भैया भैया बोल,बहुत बातें करती है।
घूमे  वो बेखौफ,छिपकली से डरती है।
कहती रुचि करजोड़,गेह की होती  गहना।
नाजुक कली गुलाब,परी है मेरी बहना।

20 *सखियाँ*

सखियाँ होती सहचरी,मस्ती करतीं खूब।
करे नित्य अटखेलियाँ,नादानी में डूब।
नादानी में डूब,हँसी गूँजे घर द्वारे।
मनभावन है रूप,मोंगरा गजरा धारे।
कहती रुचि करजोड़,सँजोये सपने अखियाँ।
मन में है विश्वास,चली इठलाती सखियाँ।

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

*दिनाँक - 28/12/19*

21  *कुनबा*

मुखिया करता मेहनत,कुनबा हो खुशहाल।
सबकी इच्छा पूर्ण हो,विकसित हो हर डाल।
विकसित हो हर डाल,मिले सबको सम मौका।
प्रेमभाव पतवार,पार लगता है नौका।
कहती रुचि करजोड़,रहे परिजन बिन दुखिया।
जोड़ रखा परिवार,मेहनत करता मुखिया।

कुनबा- कुटुंब, परिवार

22  *पीहर*


आतुर रहती औरतें,काम करें सम्पन्न।
पीहर आनंदित करे,मन है बड़ा प्रसन्न।
मन है बड़ा प्रसन्न,मातु का आँचल पावन।
करता भाव विभोर,मेघमय हो ज्यों सावन।
कहती रुचि करजोड़,फुदकता है ज्यों दादुर।
पीहर जाने हेतु,सदा रहती हैं आतुर।


✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

[29/12 7:29 PM] डॉ मीता अग्रवाल: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
29/12/2019

              *(23) पनघट**

बीती बचपन लोरिया,बीत गई सब बात।
काल कहानी बन गई,मनुज आज बिसरात।
मनुज आज बिसरात,पुरातन सभी नज़ारे ।
गोरी पनघट गाँव, बासुरी नदी किनारे ।
पास पडोसी नात,घाट औ नदियाँ रीती।
हावी आधुनिकता,पुरानी बातें बीती। 

            *(24)सैनिक*


सरहद पर तैनात है,सैनिक  वीर जवान ।
रक्षा करने  देश की,रहते सीना तान।
रहते सीना तान, देशहित जान गँवाते।
खुशियाँ गम भी बाँट ,पसीना लहू बहाते।
सोता सारा देश, चैन से अपने घरहद ।
पाला लू बरसात,खड़ा है  सैनिक सरहद। 

         *(25)*
सीमा पर अरि घात को, पहरा देत जवान ।
माता ममता छोड़ कर,भारत माँ की शान ।
भारत माँ की शान, देश हित तनमन वारे।
सरहद पहरेदार,होत है सैनिक न्यारे।
माटी से है नेह, लाल है रक्षक भीमा।
जान हथेली राख, सुरक्षा करते सीमा ।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[29/12 7:35 PM] कुसुम कोठारी: कुण्डलियाँ
29/12/19
23 पनघट
पनघट आई गूजरी , चंदन महका आज ,
बहकी बहकी चाल है , आँखों में है लाज ,
आंँखों में है लाज , झूम मन नाचे गाए ,
द्रुम छेड़े नव राग  ,  श्याम ज्यों बँसी बजाए ,
कहे कुसुम ये राज , पवन सँवारे केश लट ,
निज उलझा है जाल,देख ललिता को पनघट।।

24 सैनिक
सैनिक मेरे देश का , सदा हमारी  आन ,
देश  सुरक्षा वारता ,अपना तन मन प्राण ,
अपना तन मन प्राण  , पहनकर रखता वर्दी ,
करता है कर्तव्य ,  कड़क हो चाहे सर्दी
कहे कुसुम हो धन्य  , कार्य उनका ये दैनिक ,
बनता पहरेदार , देश का रक्षक सैनिक।
कुसुम कोठारी।

[29/12 7:49 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 29/12/19
कुण्डलिया (1)
विषय - पनघट
**************
पनघट पे प्यासा पथिक ,
                   पहुँचा पानी आस ।
पनिहारिन पूछे पता ,
                    कहाँ तुम्हारा वास ।
कहाँ तुम्हारा वास ,
              किधर जाना है तुमको ।
अनजानी है राह ,
              साथ ले लो जी हमको ।
पथिक रहा सकुचाय ,
              ठिठोली करतीं नटखट ।
अनजानों से प्रीत ,
             सिखाता प्यारा पनघट ।।   
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
कुण्डलिया (2)
विषय - सैनिक
****************
रक्षक बनकर देश की ,
                     सीमा पर तैनात ।
निर्भय सैनिक हैं खड़े ,
                   सहते हर आघात ।
सहते हर आघात ,
             देश पर मर मिट जाते ।
पकड़ तिरंगा हाथ ,
                  गगन में ये लहराते ।
थर थर काँपे शत्रु ,
                   भागते सारे तक्षक ।
नमन करो स्वीकार ,
               देश के असली रक्षक ।।

*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★

[29/12 7:52 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
29/12/2019:: रविवार

पनघट

महकी महकी है सुबह  ,नव वधु कर श्रृंगार।
है पनघट पर जा रही, सिर पर गगरी धार।।
सिर पर गगरी धार, कमर खाती हिचकोले।
कंगन करते शोर , पाँव की पायल बोले।।
मृगनैनी सो नैन, चले कुछ बहकी बहकी।
मुख पर है मुस्कान, लगे वो महकी महकी।।

सैनिक

भोली भाली लाडली, दे सैनिक पोशाक।
आओगे कब पूछती, लाना सँग में फ़्राक।।
लाना सँग में फ़्राक, गुलाबी नीली पीली।।
फिर प्यारा उपहार, पहन नाचे नखरीली।।
गई दिवाली बीत, आज होली भी होली।
कब आओगे तात,सोचती है अब भोली।।
              रजनी रामदेव
                न्यू दिल्ली

[29/12 7:55 PM] अनुराधा चौहान  मुम्बई: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*दिनाँक--29/12/19*
*विधा--कुण्डलियाँ*
(23)

*सैनिक*

सैनिक तपता धूप में,झेले बारिश मार।

बर्फीली चोटी खड़ा,माने कभी न हार।

माने कभी न हार,तभी हम सुख से रहते।

वीर सपूत महान,नहीं संकट से डरते।

कहती अनु यह देख, यही दिनचर्या दैनिक।

सहते दिल पे वार,डटे रहते हैं सैनिक।

(24)

*पनघट*

पनघट से राधा चली, कान्हा पकड़े हाथ।

झटके मटकी फोड़ दें,गोपी देते साथ,

गोपी देते साथ, करे फिर सीनाजोरी।

माखन मिश्री हाथ, यशोदा पकड़ी चोरी।

कहती अनु यह देख, लगाकर बैठा जमघट।

नटखट है चितचोर,बजाता मुरली पनघट।
*अनुराधा चौहान*

[29/12 7:56 PM] कमल किशोर कमल: नमन
२९.१२.२०१९
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु
२३-
पनघट
पनघट गायब हो गये,जैसे गायब शेर।
पनिहारिन दिखती नहीं,दूर -दूर हैं खेर।
दूर- दूर हैं खेर,जहाँ पर बसती दुनियाँ।
खेत किसानी खूब,मटककर चलती पुनिया।
कहे कमल कविराज,नलों में लगता जमघट।
पानी भरते लोग,जिसे कहते हैं पनघट।
२४-सैनिक
भारत सैनिक वीर हैं,करते सभी सलाम‌।
देश सलामत चाह में,पैदा हुए कलाम।
पैदा हुए कलाम,मिसाइल दागी हमने।
अमन चैन के गाल,दिये हैं सेना रब ने।
कहे कमल कविराज,रक्ष करते हैं दैनिक।
वर्षा गरमी शीत,अडिग हैं भारत सैनिक।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
        🌹👏

[29/12 7:56 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -29/12/19

पनघट (23)
पनघट पर गोरी गई, लेकर मटकी हाथ।
 जल भरने को जा रही, वो सखियों के साथ।।
 वो सखियों के साथ, हमेशा जाती रहती।
 सूख गए हैं ताल, कमी अब जल की कहती।
 कह राधे गोपाल, गगरिया बनकर नटखट। छनकाती है नीर, गई जब सखियाँ पनघट।

सैनिक (24)
 सैनिक मेरे देश के,नमन करूँ शत बार।
 अरि पे करते तुम सदा, चौकस हो कर वार।।
 चौकस हो कर वार, सदा सीमा पर रहते।
 मात-पिता परिवार, यही हैं सबसे कहते।।
 कह राधेगोपाल, धरें ये धीरज दैनिक।
 नमन करूँ शत बार,अरे ओ तुमको सैनिक।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

[29/12 8:02 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*


*दिन - रविवार*
*दिनांक-29/12/19*
*विषय:-पनघट*
*23*
पनघट पहुँचा साँवरा, कंकड़ लेकर हाथ |
लगा मटकियाँ फोड़ने , ले ग्वालों को साथ |
ले ग्वालों को साथ, कंकड़ी मारें कसकर |
गोपन करतीं हाय, कन्हैया अब तो बस कर |
कह विदेह नवनीत, बड़ा है मोहन नटखट |
सरपट दौड़ा आय, साँवरा पहुँचा पनघट ||

*विषय:- सैनिक*
*24*

सीमा पर जो झेलता, गोली और तुषार |
उस सैनिक को है नमन, उसकी कृपा अपार |
उसकी कृपा अपार, रहे वो ताने सीना |
उसकी जय-जयकार ,अमन अरिदल का छीना |
कह विदेह नवनीत, बना दुश्मन का कीमा |
उसके हाथों मित्र,सुरक्षित अपनी सीमा ||


  *नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*

[29/12 8:04 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुंडलिया - शतकवीर प्रतियोगिता*

*दिनांक- 22/12/2019*

*चूड़ी*

चूड़ी चमके हाथ में, गोरी रही निहार ।
मधुर मधुर करने लगी, मुझसे ही मनुहार ।
मुझसे ही मनुहार, आज बतलाओ सजना ।
कह दो दिल की बात, पहनके आयी कंगना ।
'रीत' पुकारे मीत, खाइये मीठी पूड़ी ।
पायल करे पुकार, हाथ में खनके चूड़ी ।

*झुमका*

झुमका सोहे कान में, पहन गले में हार ।
हाथों में कंगना सजा, चली पिया के द्वार ।
चली पिया के द्वार, छोड़ बाबुल का अंगना ।
देखन आयी नारि, बहुत शरमीले सजना ।
'रीत' जगाये प्यार, लगाकरके जब ठुमका ।
दे दो यह उपहार, मंगाकर मुझको झुमका ।

*दिनांक - 29/12/2019*

*पनघट*

पनघट अब सूना लगे, सूना सूना घाट।
घर घर नल का राज है, यही ठाट औ बाट।
यही ठाट औ बाट, सभी में आज समाया ।
रहा न कूआँ आज, नलों की ऐसी माया ।
'रीत' प्रीत मनुहार, समय अब बदली करवट।
सखियाँ हुई उदास, नहीं आना अब पनघट ।

*सैनिक*

सैनिक रक्षक देश के, भारत के है शान ।
नमन देश के लाल को, जो दे देते जान ।
जो दे देते जान, पूत धरती के प्यारे।
खुद की नहि परवाह, दुश्मनों से ना हारे।
'रीत' देख बलिदान, अश्रु जल आये दैनिक ।
सच्चे माँ के पूत, अमर है वे ही सैनिक ।

*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍

[29/12 8:08 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 29.12.19

कुण्डलियाँ (23)
विषय- *पनघट*

पनघट  के  पथ  बावरी, जाती प्रात: शाम।
मन ही मन यह सोचती, मिले साँवरा श्याम।।
मिले  साँवरा  श्याम, दरष  की प्यासी अँखियाँ।
करलूँ  नैना  चार,  जलेगी  सारी सखियाँ।।
प्रांजलि का है मीत, हृदय में बसता नटखट।
उससे सच्ची प्रीत, प्रीत का साक्षी पनघट ।।



कुण्डलियाँ (24)
विषय- *सैनिक*


सैनिक सीमा पर डटा, शीत ग्रीष्म बरसात।
रक्षा भारत की करे, सहकर हर आघात।।
सहकर हर आघात, प्राण वह दांव लगाता।
माटी से है प्रेम, सिद्ध वह कर दिखलाता।।
प्रांजलि उनपर गर्व, कठिन है जीवन दैनिक।
जब तक अंतिम साँस, डटा सीमा पर सैनिक ।।


रचनाकार का नाम- पुष्पा गुप्ता प्रांजलि

[29/12 8:29 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुण्डलियाॅ:-29/12/19

23. पनघट

पनघट में जल की कमी, भरलो गगरी एक।
बूंद बूंद है कीमती, सोचें हम प्रत्येक ।
सोचे हम प्रत्येक, बाद में तर्क लगाना।
बनके जिम्मेदार, दूसरों को बतलाना।
इसे करो स्वीकार,लगे मत कोई जमघट।
बुझे सभी का प्यास, एक है अपना पनघट।।

24. सैनिक

सैनिक सीना तान के, रखे देश का मान।
सीमा के प्रहरी सजग, तुमको है सम्मान।
तुमको है सम्मान, सदा आगे ही बढ़ना।
सब आतंकी मार, देश को फिर से गढ़ना।
दुष्कर हर वो काम ,आप करते हो दैनिक।
रखे देश का आन, वही कहलाते सैनिक।।

महेंद्र कुमार बघेल

[29/12 8:33 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलिया शतकवीर हेतु
29-12-019

(23) पनघट

राधा पनघट पर खड़ी, करना चाहे बात।
आये हैं कृष्णा नहीं, देखे उनकी राह।।
देखे उनकी राह, करेंगे अभी बहाना।
सखियाँ हैं हैरान, सभी हैं देती ताना।।
बीती जाए शाम, धीर भी होता आधा।
अब आये चितचोर, खड़ी मुँह फेरे राधा।।

(24) सैनिक
करते रखवाली सदा, त्यागे तनमन मोह।
सैनिक सीमा पर खड़े, सहें कुटुंब विछोह।
सहें कुटुंब विछोह, हमें भी है कुछ करना।
उनको देना मान, नहीं वचनों से टरना।।
कीर्ति अमर महान, यशोगाथा वो रचते।
माटी रहे कृतज्ञ, उसे आलोकित करते ।।


सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी

[29/12 8:40 PM] चमेली कुर्रे: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 29/12/19
कुण्डलियाँ- (23)
विषय - *पनघट*

पनघट सब वीरान है ,कहे किसे मन पीर।
घर घर में नल लग गये, बहे गली में नीर।।
बहे गली में नीर, हृदय पंक्षी है प्यासा ।
गया प्रीत घट रीत, रहे हर जीव उदासा ।।
सुवासिता मन द्वार, लगे यादों का जमघट।
मिले कष्ट हर रोज, सिसकते दिखते पनघट।।

कुण्डलिया-(24)
विषय- *सैनिक*
सैनिक कहता दोस्त से, निकट बहन का ब्याह।
घर पर माँ पापा सभी, देखे मेरा राह।।
देखे मेरा राह,हुई है खारिज छुट्टी।
गया नही जो गाँव,बहन कर देगी कुट्टी ।।
सुवासिता को गर्व , सुना जब भैया नैतिक।
एसे ही है शूर , निभाते वादे सैनिक।।

       🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)

[29/12 8:41 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक-29/ 12/ 2019
दिन-रविवार

(23)
विषय-पनघट

आई ऊषा- सुंदरी,नभ -पनघट को ओर।
सप्त रंग की ओढ़नी,ओस बिंदु की कोर।
ओस बिंदु की कोर,लिए तारों की गागर।
डूबी अम्बर बीच,भरा घट में द्युति-सागर।
गूँज उठा खग-गान,कली अलि को रस लाई।
फैलेगा घट रात, हँसी  नागरी को आई।




(24)
विषय-सैनिक
सोती जनता चैन से,मिलता रिपु से त्राण।
सैनिक सीमा पर डटा,लगा दाँव पर प्राण।
लगा दाँव पर प्राण, नहीं चिंता मौसम की।
रिपु पर करता वार,मिली अरि से जो धमकी।
घर पर अटके प्राण,प्रिया बिन उसके रोती।
जगती सारी रात,सुखी हो दुनिया सोती।

रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

[29/12 8:45 PM] अनंत पुरोहित: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन रविवार 29.12.2019*

*23) पनघट*

पनघट बैठी *नार* की, अति न्यारी है *नार*
सिर पर *घट* को है *धरा* , *धरा* धरे *घट* भार
धरा धरे घट भार,  सहनशीला है भारी
जीवन का आधार, मनुज होता आभारी
कह अनंत कविराय, जीव भी आया भव तट
*पानी* भर घट पार, रुका खाली घट पनघट

*नोट:*
*नार*= नारी, ग्रीवा; *घट*= घड़ा, शरीर; *धरा*= धरना, धरती, गर्भिणी स्त्री; *पानी*= पानी, ज्ञान

*24) सैनिक*

हलधर घर भीतर सहे, सैनिक सीमा पार
एक धरे हल हाथ में, दूजा के तलवार
दूजा के तलवार, यही *फल* *हल* है उसका
*हल* हलधर के पास, भूख का *हल* जन-जन का
कह अनंत कविराय, देश के दोनों श्रीधर
सैनिक से सुरक्षित, अन्न देता है हलधर

*नोट:*
*हल* = हल(नाँगर), समाधान
*फल*= तलवार की धार, फल

*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ

[29/12 8:45 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
29-12-19

 कुनबा

कुनबा प्यारा वह लगे, मिल कर रहते साथ ।
भाई बहना साथ हो,हाथ में लिये हाथ ।
हाथ में लिये हाथ,मात पित सँग हो रहते ।
प्यारा सा परिवार, बैठ कर हिल मिल हँसते ।
कहती मीरा आज,चले दादी का रूतबा ।
गाते गीत मल्हार, वह लगे प्यारा कुनबा ।।

पीहर

पीहर प्यारा है लगे, मात पिता का प्यार ।
भाई बहन की एकता, अलग दिखे संसार ।
अलग दिखे संसार, मैं जहाँ राजदुलारी ।
नखरा करूँ हजार, थी सभी की मैं प्यारी ।
आयी मैं ससुराल, नयनवाँ बरसे झर झर ।
कैसी है ये रीत, छोड़ कर आई पीहर ।।

पनघट
पनघट पे मोहन खड़ा, लिये कमर में हाथ ।
कैसे मैं पनिया भरूँ, नहीं सखी है साथ ।
नहीं सखी है साथ, साँवरा  कर बरजोरी ।
बहियाँ थामे आय, सुन कहे राधे गोरी ।
बैठ जरा तू साथ, कान्हा लागे नटखट ।
मीरा कहती आज,मिल गया गिरधर पनघट ।।

सैनिक

सैनिक मेरे देश के, होत हैं  जांबाज ।
दुश्मन के छक्के छुड़ा, दिखा दिया है आज ।
दिखा दिया है आज, देश हित जान गँवाते ।
ग्रीष्म ठंड बरसात, हो नहीं वह घबराते ।
कह मीरा कर जोड़, गजब है इनका दैनिक ।
भारत माँ के लाल, नमन है तुमको सैनिक।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम

[29/12 8:54 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 🙏🏼

(१९) बहना

बहना, बोले उर्मिला, अखियन आँसू पूर।
संग पिया वन वास को, जाती हो तुम दूर।
जाती हो तुम दूर, कठिन व्रत का चयन कर।
चुनकर पति का साथ, सुधा स्वर्ग की नयन भर।
चौदह वर्ष वियोग, सिया, है मुझको सहना।
रही शरण तव सौंप, धरोहर निज मैं, बहना।

(२०) सखियाँ

सखियाँ बोलें, भो सिया, वंदो गौरी मात।
जब से देखा राम को, पुलकित हैं तव गात।
पुलकित हैं तव गात, कमल लाल खिले मुख पर।
मांगो मन का मीत, भवानी से तुम हठ कर।
सुनकर सुखकर सीख, झुकी लाज भरी अखियाँ।
कैसे सारे भेद, जान जातीं हैं सखियाँ?

(२१) कुनबा

आई घडी विवाह की, बाराती आलोक।
कुनबा कैलाशपति का, सोचे मैना रोक।
सोचे मैना रोक, उमा तो राजकुमारी।
हर भूतों के नाथ, भस्म विभूत के धारी।
इधर राजसी भोग, उधर श्मशान दुहाई।
कैसी यह हे देव, परीक्षा इस पल आई।

(२२) पीहर

माता पिता भैया सखी, जहाँ जहाँ ये लोग।
वहाँ वहाँ पीहर बसे, पति से जहाँ वियोग।
पति से जहाँ वियोग, सास न ससुर न, न देवर।
न गृहस्थी के काज, नहीं ननदी के तेवर।
पीहर पितु की प्रीत, भले भाव भरा भ्राता।
सखियाँ सींचें स्नेह, मधुर मोहमयी माता।

गीतांजलि ‘अनकही’ 🙏🏼

[29/12 8:55 PM] रवि रश्मि अनुभूति: ****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

*कुण्डलिया छंद शतकवीर सम्मान ,*  *2019 हेतु ।*
***************************

  कुण्डलिया छंद
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
23 ) पनघट
************
गोरी पनघट पर खड़ी , रहती बाट निहार ।
मोहन अब तो आ रहे , माने वह क्यों हार ।।
माने वह क्यों हार , घट लिये खड़ी पुकारे ।
पनघट सूना अभी , खड़ी वह राह निहारें ।
बतियाँ सुनकर सखी , छोड़ धैर्य की डोरी ।
आओ श्याम अभी , खड़ी पनघट पर गोरी ।।
          ¤¤¤¤¤¤¤¤¤



24 ) सैनिक
************
मेरे।।
सच्चे हैं वे रक्षक , देश के सैनिक मेरे ।।
           &&&&&&&&&&&

25 ) कोयल
*************
डोले कोयल डार पे , बोले मीठे बोल ।
काली है तो क्या हुआ , गाती है दिल खोल ।
गाती है दिल खोल , देख मन मयूर नाचे ।
मनवा हुआ उदास , प्यार की पाती बाँचे ।।
पिया की याद दिला , भेद तो सारे खोले ।
हूक जगाती हिया , डार पे कोयल बोले ।।
            卐卐卐卐卐卐卐



26 ) अम्बर
************
तारे अम्बर पर जड़े , टिमटिम करते देख ।
टूटा तारा यूँ लगे , खिंची गगन पर रेख ।।
खिंची गगन पर रेख , सुनो अंबर है भाता ।
तारों व अंबर का ,  दिखे बहुत गूढ़  नाता ।।
एकता अभी सीख , बढ़े आगे ही सारे ।
देख पियें हम सुधा , जड़े अम्बर पर तारे ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
29.12.2019 , 7:29 पी.एम. पर रचित ।
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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹

[29/12 8:56 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
*कुण्डलिया - शतकवीर सम्मान हेतु!*
*दिनाँक - 29.12.19, दिन -- रविवार।*
~~~~~~~~~~~~~~

*23--पनघट*
~~~~~~~~~~~~
पनघट  को गोरी चली, ले सखियों को साथ।
गागर पानी का लिये, अपने-अपने माथ।
अपने-अपने माथ, कमर बल खाती जाती।
मुख पर आँचल डाल, हाथ चूड़ी खनकाती।
भरें कुएँ से नीर, उठाये अपना घूँघट।
रहे सदा गुलजार, गाँव का सुंदर पनघट।।
~~~~~~~~~~~~~~

*24--सैनिक*
~~~~~~~~~~~
दुश्मन से डरते नहीं, रहें सदा तैयार।
सैनिक भारत देश के, कर दें सीमा पार।
कर दें सीमा पार, शत्रु की नींद उड़ाते।
पले जहाँ आतंक , वहीं गोले बरसाते।
जब जब करते वार, हजारों दुश्मन मरते।
भारत माँ के लाल, नहीं दुश्मन से डरते।।
~~~~~~~~~~~~
*--विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--बलिया, उत्तर प्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~

[29/12 8:58 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता
कुंडलिनी छंद
 दिन - रविवार /29-12-19
 बिषय- शब्द/पनघट/मटकी
(1)पनघट

 मटकी फोरत नित्य ये ,   घेरें पनघट राह।
  जब भींजे चूनर मेरी, सँग सखा कहें वाह।।
 सँग सखा कहें वाह, हँसे सब दै- दै तारी।
  मुरली मधुर बजाय, नचत बिच  बिच बनवारी।
 कह प्रमिला कविराय, रार मोहन पे अटकी।
 लिए  उलहना खड़ी,   श्याम नित फोरें मटकी।।
(2)
सैनिक

     सीमा पर डट कर खड़े, प्रहरी बनकर आज
 रक्षा करता देश की, वो  सैनिक जां बाज।
 वो सैनिक जांबाज, न झुकने देय तिरंगा।
 दुश्मन को  दे मौत, करें जो देश में दंगा।
 कह प्रमिला कविराय, यही है  इनकी गरिमा।
  होकर रहते खड़े , सजग  भारत की सीमा।।

प्रमिला पाण्डेय
कानपुर

[29/12 9:07 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*

28.12.19 शनिवार

21)*कुनबा*

कुनबा सारा जब जुड़े,तब कहलाए परिवार।
सुख दुख हैं सब बाँटते,अटूट होता प्यार।
अटूट होता प्यार,,नेह के धागे ऐसे।
सुख दुख में हैं साथ,न चाहें रुपये पैसे।
सुन वन्दू के भाव,जगत में अपना रुतबा।
भ्रात भगिनि पित मात,यही तो होता कुनबा।।

22)
*पीहर*

*पीहर प्यारा प्राण से,कहती है हर नार*।
*नार* वहीं पर है गड़ा,बहे भाव की धार।
बहे भाव की धार,पिता की राजदुलारी।
जाना है ससुराल,रीत दुनिया की न्यारी।
सुन वन्दू हिय बात,करे रोदन दिल भीतर।
रखती सबका मान,सासरा हो या पीहर।।

29.12.19 रविवार

23)*पनघट*

पनघट सूने हो चले,चिंतित हुआ समाज।
धरती बंजर हो रही,कैसे उगे अनाज।
कैसे उगे अनाज,पड़ा संकट है भारी।
होता जल स्तर न्यून, वेदना कूप निहारी।
कहती वन्दू बात,समय ने बदली करवट।
हो संचय तत्काल, भरे जब होंगे पनघट।

24)*सैनिक*

गाथा सैनिक वीर की,हमसे सुन लो आज।
देते बलि निज प्राण की,रखते भारत लाज।
रखते भारत लाज,आन है उनको प्यारी।
त्याग समर्पण भाव,खूबियां उनमें सारी।
कहती वन्दू बात,गर्व से उन्नत माथा।
बलि दे देते शीश,यही सैनिक की गाथा।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*

[29/12 9:07 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 28/12/19

कुण्डलियाँ (21)
विषय- कुनबा

आदर अग्रज को मिले, मिले भ्रात को प्यार।
कुनबा ऐसा ही रहे, सुखी रहे संसार।।
सुखी रहे संसार, विवेकी हो हर मानव।
बने न कोई क्रूर, बने मत कोई दानव।।
फैलाओ जी पैर, रहे जितनी ही चादर।
पाओगे सम्मान, बड़ों का हो जब आदर।।

कुण्डलियाँ (22)
विषय- पीहर

आती जब जब है मुझे, मेरे पीहर याद।
तब तब मन थिरके नहीं, गूँजे अनहद नाद।।
गूँजे अनहद नाद, सोचकर बीते पल को।
चंचल चितवन स्फूर्ति, न चिंता रहती कल को।।
सुधबुध खोकर रोज, ख्वाब में मैं खो जाती।
वही बचपना आज, काश मुड़कर फिर आती।।

रचनाकार-
उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)

[29/12 9:29 PM] अमित साहू: *कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर*

19-बहना (26/12/2019)
बहना मेरे हो तुम्हीँ, स्वयं सदन की शान।
मान बढ़ाना तू सदा, बनना गर्व गुमान।।
बनना गर्व गुमान, राह पर अपनी चलना।
बनकर दीपक ज्योति, अहंमय तम को दलना।।
रह निश्छल निर्भीक, पहनना लज्जा गहना।
मानवती सम मान, मिलेगा जग में बहना।।

20- सखियाँ
सखियाँ खेलें साथ सब, मिलजुलकर दिन रात।
अंतरंग अठखेलियाँ, नहीं छुपातीं बात।।
नहीं छुपातीं बात, हाल अंतर्मन कहतीं।
नोकझोंक अलगाव, पृथक कब उर से रहतीं।।
बलिहारी सौ बार, देखने तरसे अँखियाँ।
मीत 'अमित' उपहार, सुवासित सहृदय सखियाँ।।

21-कुनबा (28/12/2019)
रोड़ा पत्थर ईंट से, बनते दर दीवार।
अपनापन आत्मीयता, बसते घर संसार।।
बसते घर संसार, सहज सब भेद  मिटाते।
यदा सुमति व्यवहार, शत्रु भी मुँह की खाते।
कहे 'अमित' कविराज, भानुमति कुनबा जोड़ा।
प्रेम जगत में सार, शेष अटकाते रोड़ा।।

22-पीहर
सास सताती रात दिन, ससुर नहीं है वाग्य।
सिसक रही हूँ मैं यहाँ, सजन लिए वैराग्य।।
सजन लिए वैराग्य, भाग्य क्यों मेरा फूटे।
कैसी है यह रीति, सुता का पीहर छूटे।।
बात-बात में बात, तुच्छ को ताड़ बताती।
मुझको दासी मान, व्यर्थ ही सास सताती।।


23-पनघट (29/12/2019)
पानी पनघट माँगता, नदियाँ मरती प्यास।
प्रदुषित अति पर्यावरण, धरा करे अरदास।
धरा करे अरदास, सँभल जाओ हे मानव।
लोलुपता में लीन, बनो मत अब तुम दानव।।
प्रकृति 'अमित' वरदान, विपुल वैभव वरदानी।
तरुवर भू श्रृंगार, सहेजो मिट्टी पानी।।


24-सैनिक
सैनिक सक्षम हैं सदा, होते अति बलवीर।
राष्ट्रधर्म पालन करें, हो करके गंभीर।।
हो करके गंभीर, बनातें रिपु का कीमा।
समुदय सबल सचेत, सजग प्रहरी ये सीमा।
वर्षा जाड़ा ग्रीष्म, देशहित सेवा दैनिक।।
'अमित' नमन है नित्य, धीर भारत के सैनिक।

कन्हैया साहू 'अमित'

[29/12 9:33 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 29.12.19

कुण्डलियाँ (21)
विषय-कुनबा
सारे ढक्कन को ढके,कुनबा ऐसी ढाल।
 बातें बढ़ती हैं तभी,होते फिर बेहाल।
होते फिर बेहाल,अकेले जब रह जाते।
कुनबा हो जब साथ,तभी आगे बढ़ पाते।
अनु की सुन लो बात,लगें अब रिश्ते खारे।
एकल सब परिवार,आधुनिक बनते सारे।।




कुण्डलियाँ (22)
विषय-पीहर
डोली फूलों  से सजी,पीहर जाये छूट।
मात पिता की  लाडली,स्वप्न न जाये टूट।
स्वप्न न जाये टूट,पिया के मन तू भाये
कदम-कदम खुश रहे,कली मन की खिल जाये।
कहे अनु सुनो आज,सजे फिर माथे रोली।
फूलों का सिंगार,उठी लाडो की डोली।।




रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल

[29/12 9:39 PM] उमाकांत टैगोर: कलम की सुगंध छंदशाला

 *कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक -29/12/19

कुण्डलियाँ (23)
विषय- पनघट

पनघट पर ग्वालिन गये, जब भरने को नीर।
बिना उपद्रव के सखे, मोहन धरै न धीर।।
मोहन धरै न धीर, देय मटकी सब फोड़ी।
यही उधम सब देख, सभी ग्वालिन कर जोड़ी।।
कहे प्रभो हे श्याम, करो मत इतनी खटपट।
भर लेने दो नीर, सभी आये हैं पनघट।।

कुण्डलियाँ (24)
विषय- सैनिक

सोते सैनिक कब भला, है सीमा तैनात।
ठंडी बर्फानी जो रहे, सह लेते हैं घात।।
सह लेते हैं घात, बचाने खातिर हमको।
अद्भुत उनके खेल, खेलते गोली बम को।।
रखते जीवन दाँव, वीर ऐसे हैं होते।
जगते है दिन रात, बताओ कब वे सोते।।

रचनाकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)

[29/12 9:50 PM] पाखी जैन: *कलम की सुगंध-छंदशाला*
*शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*

*18- भैया*

भैया दोनों जब चले,गये महल को छोड़।
चली सिया भी साथ में  ,बेमन मुखड़ा मोड़।
 बेमन मुखड़ा मोड़, खड़ी  बिखराये मोती  ।
पथ के कंकड देख,सिया भयभीत  न होती
करते संकट दूर ,कहें वनचर हे मैया ।
देती सीता नेह,संग हैं दोनों भैया ।
पाखी


*19-कुनबा..*
कुनबा सब का  एक है ,करे कौन फिर घात।
परिहारक बनते तभी , जब न  बनाये बात।
जब न बनाये बात,करते निंदा स्वजन की
परिचायक है कौन,सभी बात करें घर की ।
करें कुठाराघात,घात से शान न निखरे।
डूबा सूरज गेह,बिन नेह बिखरे कुनबा ।
पाखी


*20-बहना*
बहना होती होलिका,जब हिरण्य है भ्रात ।
अनाचार में संग दे,करती अपना  घात ।
करती अपना घात,घात करे वो  कौन है ।
सिया जा रही देख,उर्मिला आज मौन है।
बहती आँसू धार,मुझे है वियोग सहना।
रख लूँगी सम्भाल ,अमानत तेरी बहना।

*मनोरमा जैनपाखी*

*21-सखियाँ*
सखियाँ.
 सखियाँ छेडे आज तो , देख सभी हैं दंग।
शरमाती कैसे सिया ,सब करती हैं तंग।
सब करती हैं तंग, बांध धैर्य का न टूटा ।
देख   राम समीप   ,घूंघट कर से न छूटा ।
सुन लो पाखी आज , सखी  वो तप है  धरती ।
मिलते जब दृग चार ,नेह उर से वो  करती ।
पाखी


*मनोरमा जैन पाखी*

[29/12 9:59 PM] नीतू जी: *कलम की सुगंध छंदशाला*

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिनांक - 29.12.19*


21-पीहर

पापा की परियाँ सहें, पर कटने की पीर।
पिया पराया कर गए, पीहर छूटा तीर।।
पीहर छूटा तीर, नीर नैनों से बरसे।
बैठे जा परदेस, तोड़कर नाता घर से।।
विरह झेलता अंक, अंक अंतर का नापा।
छलक उठी तब आँख, आँख बिन तरसे पापा।।

22- कुनबा

बनता कुनबा नेह से, छोटा सा संसार।
त्याग,तपस्या,कर्म से, संकट होते पार।।
संकट होते पार, प्रेम से जुड़ते नाते।
दिन लगते त्योहार, मीत बिछड़े मिल जाते।।
एकाकी मन पीर, हृदय जा किसे सुनाता।
अपनों के बिन अंत, मनुज को दुखी बनाता।।

23- पनघट
सूना पनघट हो गया, सूखे नदिया ताल।
वृक्ष बिना छाया नही, तरसे फल को बाल।।
तरसे फल को बाल, धरा बंजर अब लागे।
छोड़ किसानी लोग, सभी परदेस जो भागे।।
छूटा घर का मोह, कमाते धन सब दूना।
रिक्त खेत खलिहान, हुआ घर आँगन सूना।।

24- सैनिक
सैनिक सीमा पर खड़ा, बनता सब की ढाल।
रक्षण को तत्पर सदा,धरती माँ का लाल।।
धरती माँ का लाल, धरा को माता कहता।
दुश्मन करते घात, साथ संकट में रहता।।
कितने हुए  शहीद, हुई है घटना दैनिक।
फिर भी हैं तैयार, देश के रक्षक सैनिक।।

रचनाकार का नाम - नीतू ठाकुर

3 comments:

  1. यदि सभी रचनाएँ एक ही प्रारूप में लीखी जाती तो अत्योत्तम संग्रह होता।
    सादर निवेदन सभी रचननाकार एक ही प्रारुप में लिखें।
    अमित साहू...

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    1. सुंदर सुझाव आदरणीय 🙏

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  2. अति सुन्दर संकलन आप सभी आदरणीयों का हार्दिक बधाईयाँ

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