Friday 27 December 2019

कलम की सुगंध वर्कशॉप "अलंकार के महत्व"

शीर्षक :- अलंकार की वर्कशॉप
  आदरणीय संजय कौशिक " विज्ञात" सर के सुझाव पर  कलम की सुगंध छंदशाला में दिसम्बर माह की वर्कशॉप का आयोजन किया गया जिसकामुख्य विषय 'अलंकार के महत्व ' रहा। जिसकी अध्यक्षता आदरणीया अनिता मंदिलवार " सपना"  ने की इस वर्कशॉप में मुख्यातिथि के तौर पर आदरणीया  रजनी रामदेव जी सादर आमंत्रित की गई लगभग 150 कवि परिवार की उपस्थिति में यह ऑनलाइन वर्कशॉप अपने उद्देश्य की पूर्ति करती हुई पूर्ण सफल रही।कार्यक्रम दौरान कवि परिवार में नवांकुर कवि एवं कवयित्रियोंद्वारा जिज्ञासा वश अनेकों प्रश्न किये गए जिनका उत्तर आदरणीया रजनी रामदेव जी द्वारा समय समय पर दिया गया। सभी लाभान्वित हुए इस वर्कशॉप से और भविष्य में भी इस प्रकार की मासिक वर्कशॉप के आयोजन के लिए संचालन परिवार द्वारा योजना बनाई गई। प्रस्तुत है वर्कशॉप का
सारांश ......*  


अनिता मंदिलवार सपना: *वर्कशॉप:- अलंकार के महत्व*
📕दिनांक:- 27 दिसम्बर, वार शुक्रवार 📕
⏲समय : 12 बजे दोपहर ⏲
*अध्यक्ष: अनिता मंदिलवार सपना*
*मुख्य अतिथि: रजनी रामदेव*
*मुख्य सानिध्य: नरेश जगत*
*सानिध्य: नीतू ठाकुर*
मुख्य मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी की अध्यक्षता में *अलंकार के महत्व* पर वर्कशाप का आयोजन आज दोपहर 12 बजे किया जाएगा
अनिता मंदिलवार सपना: आइए शुभारंभ करते हैं
अनिता मंदिलवार सपना: माता की वंदना के साथ

 नीतू : माँ सरस्वती और भगवान श्री गणेश को वंदन कर इस चर्चा को प्रारंभ करते हैं 🙏🙏🙏
विज्ञात जी : निवेदन 12:30 तक सभी अपने दोहा, चौपाई, रोला या अन्य छंदों के माध्यम से वंदन काल में पोस्ट करें
 नीतू : प्रथम प्रश्न आदरणीया रजनी जी से ... अलंकार क्या है और उनके प्रकार के विषय में बताएं 🙏🙏🙏
अनिता मंदिलवार सपना: आइए चर्चा को बढ़ाते हैं
अनिता मंदिलवार सपना: पटल के सभी रचनाकार इसमें शामिल हों । निवेदन है
अनिता मंदिलवार सपना: आइए आदरणीया जी

 नीतू : मेरे जानकारी के हिसाब से
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम + कार। यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ‘ आभूषण।’ मानव समाज बहुत ही सौन्दर्योपासक है उसकी प्रवर्ती के कारण ही अलंकारों को जन्म दिया गया है। जिस तरह से एक नारी अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग में लाती हैं उसी प्रकार भाषा को सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है। अथार्त जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।
अनिता मंदिलवार सपना: बहुत बढ़िया
पुरुषोत्तम दास प्रजापति 'सुदर्शन': अलंकार का अर्थ है आभूषण अर्थात काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं
धनेश्वरी सोनी: 🙏🙏🙏 आप सभी का सादर आभार
अभिलाषा चौहान: जदपि सुजाति सुलच्छनी,सुबरन सुरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न बिराजइ,कविता बनिता मित्त।
कविवर केशवदास के द्वारा दी गई अलंकार की परिभाषा।
पुरुषोत्तम दास प्रजापति 'सुदर्शन': अलंकार तीन प्रकार के होते हैं शब्दालंकार, अर्थालंकार,, उभयालंकार
नीतू : जी आदरणीय 🙏 आभार
नीतू : कृपया इनके प्रकारों के बारे में भी कुछ बताएं
अनंत पुरोहित: वापस घर मैं लौटता, लेकर मान सम्मान
अभिनंदन पितु मात का, फिर आते भगवान
🙏🙏🌷
नीतू : 🙏🙏🙏

पुरुषोत्तम दास प्रजापति 'सुदर्शन': काव्य का सौंदर्य बोध कराने वाले तत्व ही अलंकार होते हैं
अभिलाषा चौहान: काव्यान शोभाकरान् धर्मान अलंकार प्रचक्षते।
आचार्य दण्डी ने काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्मों को अलंकार माना है।
नीतू : कृपया थोड़ा विस्तार से बताएं 🙏
नीतू : बहुत सुंदर 👌👌आभार अभिलाषा जी

नीतू : कुछ दिन पहले ही हमने अलंकार के विषय में कुछ पढ़ा बहुत अच्छा लगा वो जानकारी आप के साथ साझा कर रहे है
1  अलंकार शोभा बढ़ाने के साधन है। काव्य रचना में रस पहले होना चाहिए उस रसमई रचना की शोभा बढ़ाई जा सकती है अलंकारों के द्वारा। जिस रचना में रस नहीं होगा , उसमें अलंकारों का प्रयोग उसी प्रकार व्यर्थ है , जैसे –   निष्प्राण शरीर पर आभूषण। ।
2  काव्य में अलंकारों का प्रयोग प्रयासपूर्वक नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर वह काया पर भारस्वरुप प्रतीत होने लगते हैं , और उनसे काव्य की शोभा बढ़ने की अपेक्षा घटती है।

काव्य का निर्माण शब्द और अर्थ द्वारा होता है। अतः दोनों शब्द और अर्थ के सौंदर्य की वृद्धि होनी चाहिए।

नीतू : सभी से निवेदन है कृपया अपनी जानकारी साझा करें और  कोई प्रश्न है तो अवश्य पूछें 🙏
अभिलाषा चौहान: भाव को काव्य की आत्मा माना गया है।भाव का आधार रस है, अतः रस को विद्वानों ने काव्य की आत्मा माना। काव्य के निर्माण में शब्द को काव्य का शरीर और अर्थ को प्राण माना है।इस काव्य रूपी शरीर के सौंदर्य की वृद्धि अलंकार से होती है। अलंकार शब्द के प्रयोग और अर्थ के प्रयोग से अपना सौंदर्य प्रकट करते हैं। इसलिए अलंकार के मुख्य दो भेद हैं शब्दालंकार और अर्थालंकार।
नीतू : आदरणीया रजनी जी कृपया सभी का मार्गदर्शन करें 🙏
नीतू : बहुत सुंदर जानकारी
अभिलाषा चौहान: शब्दालंकार और अर्थालंकार के समायोजन से तीसरा भेद है-उभयालंकार
नीतू : जी

कुसुम कोठारी: अलंकार की परिभाषा में भी अलंकार है ,जैसे एक रमणी आभुषण पहनती हैं तो उसके सौन्दर्य में वृद्धि होती है,(सौन्दर्य कभी बढ़ता नहीं है बस निखरता है ) या वो ज्यादा सुंदर दिखने लगती है।
ठीक ऐसे ही अलंकारों के प्रयोग से काव्य को और उत्कृष्ट दिखाया जाता है भाव ,भाषा और रस रचनाकार की जैसी होगी वैसी ही रहेगी । अगर रस नहीं तो अलंकार भरने भर से काव्य आकर्षक नहीं हो सकता भारी हो जाता है।
जैसे लाद कर गहने पहने भर से नारी सौंदर्य में कभी वृद्धि नहीं होती ।प्राण विहीन शरीर पर कैसे आभुषण ?
यानि यहां काव्य रमणी है ,और अलंकार आभुषण तो यहां हम अलंकार को उपमा अलंकार में दिखा रहे हैं
नीतू : बहुत सुंदर जानकारी कुसुम जी 🙏🙏🙏 आभार
अमित साहू: 🙏आप सबकी जानकारियाँ बहुत उत्कृष्ट..
नीतू : चर्चा में सभी सम्मिलित हों और सभी का मार्गदर्शन करें 🙏
बोधन राम विनायक: जी दीदी🙏🙏🙏

कुसुम कोठारी: अलंकार का प्रयोग स्वाभाविक रूप से होना चाहिए। कृत्रिम या अस्वाभाविक रूप से प्रयुक्त अलंकार काव्य की शोभा नहीं बढ़ाते  काव्य में अलंकारों का महत्त्व उसी सीमा तक है, जब तक अलंकार काव्य के प्रकृत सौन्दर्य को बढ़ाने में सहायक हों।
अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग ही काव्य को सुंदर बनाने में सक्षम होता है।
बोधन राम विनायक: बहुत सुन्दर👏👏👏

रजनी रामदेव: शब्दालंकार-- जिसमें शब्द ही काव्य के अलंकार होते हैं। लेकिन कभी कभी  पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग से भाव-रस कमजोर हो जाता है।
प्रथम भाव पक्ष को मजबूत करते हुए शब्दों का प्रयोग
अभिलाषा चौहान: चरन धरत चिंता करत,चितवत चारहुं ओर
सुवरण को ढूंढत फिरत कवि कामी अरू चोर।
श्लेष अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण है श्लेष का अर्थ होता है 'चिपका हुआ'यहाँ
पर इस दोहे के अनेक अर्थ है।

नीतू : जी आदरणीया पूर्ण सहमत 🙏
नीतू : कृपया इनके प्रकारों के बारे में विस्तार से बताएं 🙏
अमित साहू: 🙏शत प्रतिशत सत्य कथन🙏🙏
आरती श्रीवास्तव: अलंकार का अर्थ है कविता में काव्य रूपी काया की शोभा बढ़ाने वाला ।
नीतू : शब्दालंकार के विषय में कुछ बताएं

नीतू : कुछ दिन पहले पढ़ा था ...
शब्दालंकार
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार। शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनी और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
अर्थार्त जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।
शब्दालंकार के भेद :-
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार
विप्सा अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
शलेष अलंकार
कृपया इन सभी अलंकारों के विषय में मार्गदर्शन करें
अनुपमा अग्रवाल: शब्दालंकार में भाव से अधिक शब्दों का चमत्कार होता है।
नीतू : जी

रजनी रामदेव: शब्दालंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
श्लेष अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार
विप्सा अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
अनुप्रास अलंकार में एक ही वर्ण की आवृत्ति बार बार होती है
चारु चन्द्र की चंचल किरणे....
यमक अलंकार में एक शब्द कई बार आता है और उसके अर्थ भी अलग अलग होते हैं। परन्तु श्लेष अलंकार में एक शब्द ऐसा होता है जिसके कई अर्थ  होते हैं।
जैसे-- कनक कनक ते सौ गुना, मादकता अधिकाय।
या खाय बौराय जग, वा पाए बौराय।।
यहाँ
कनक -- धतूरा
कनक--सोना
एक को खाकर मनुष्य पगला जाता, दूसरे को पाकर
श्लेष अलंकार--
इसमें
श्लेष-- चिपचिपा, या चिपका हुआ
जैसे
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत की सोय
बारे उजियारा करे, बढ़ै अँधेरो होय।।
यहाँ " बढ़ै" का अर्थ-- दीपक के सन्दर्भ में उसके बढ़ जाने या बुझ जाने से है।
दूसरा-- कुल कपूत-- के संदर्भ में सब कुछ नष्ट करने से है।
वक्रोक्ति अलंकार में कहने वाले व्यक्ति का और सामने वाले व्यक्ति का समझने का अर्थ अलग अलग होता है
जैसे
राधा पूछें -- कौन
कृष्ण- हरि
हरि-- कृष्ण
हरि, वानर

आरती श्रीवास्तव: यमक अलंकार_शब्द या वाक्यांश की आवृत्ति एक से अधिक बार हो-कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय एक कनक धतूरा है तो दूसरा सोना

कुसुम कोठारी: विचारकों ने अलंकारों को ८ रूपों में माना है  शब्दालंकार, अर्थालंकार, रसालंकार, भावालंकार, मिश्रालंकार, उभयालंकार तथा संसृष्टि और संकर ।
इनमें प्रमुख शब्द तथा अर्थ के आश्रित अलंकार हैं।
शब्दालंकार ,अर्थालंकार
जब किसी शब्द के पर्यायवाची का प्रयोग करने से पंक्ति में ध्वनि का वही चारुत्व न रहे तब मूल शब्द के प्रयोग में शब्दालंकार होता है ।
और जब शब्द के पर्यायवाची के प्रयोग से भी अर्थ की चारुता में अंतर न आता हो तब अर्थालंकार होता है।
वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से रुद्रट  का वर्गीकरण  सफल माना जाता है उन्होंने वास्तव, औपम्य, अतिशय और श्लेष को आधार मानकर उनके चार वर्ग किए हैं। वस्तु के स्वरूप का वर्णन वास्तव है। इसके अंतर्गत 23 अलंकार आते हैं। किसी वस्तु के स्वरूप की किसी अप्रस्तुत से तुलना करके स्पष्टतापूर्वक उसे उपस्थित करने पर औपम्यमूलक 21 अलंकार माने जाते हैं। अर्थ तथा धर्म के नियमों के विपर्यय में अतिशयमूलक 12 अलंकार और अनेक अर्थोंवाले पदों से एक ही अर्थ का बोध करानेवाले श्लेषमूलक 10 अलंकार होते हैं।

नीतू : बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी आदरणीया 🙏
रजनी रामदेव: जी बहुत खूब👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
नीतू : बहुत सुंदर 🙏🙏🙏
नीतू : कृपया अर्थालंकार के विषय में भी सभी मार्गदर्शन करें 🙏

अनुपमा अग्रवाल: वक्रोक्ति अलंकार क्या है?
इस अलंकार में ध्वनि के विकार के आधार पर समान शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता हैं किंतु यहां पर शब्दों की आवृत्ति नहीं होती।
उदाहरण :
रुको, मत जाने दो।
रुको मत, जाने दो।।

रजनी रामदेव: वाह
डा कमल वर्मा: 🙏🏻🌹👌कमल वर्मा
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻
डा कमल वर्मा: यमक से क्या अलग?

अनुपमा अग्रवाल: विप्सा अलंकार क्या है?
जब हर्ष, शोक, आदर और विस्मयबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्द की पुनरावृत्ति होती है तो वह विप्सा अलंकार होता है।
उदाहरण :
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।

बोधन राम विनायक: सुन्दर

अभिलाषा चौहान: मैं सुकुमारि नाथ वन जोगु।
तुमहिं उचित तप मो कहं भोगु।
इसमें सीता जी राम चंद्र से कह रहीं हैं कि यदि मैं सुकुमारि हूं और वन में नहीं रह सकती और आप वन में रहकर तप करेंगे आप वन के योग्य हैं। इसमें व्यंग्य निहित है जो सीता जी के वक्र कथन को अभिव्यंजित कर रहा है। आमतौर पर हम इस अलंकार का प्रयोग प्रतिदिन कर ही लेते हैं।बोलचाल में।

अनुपमा अग्रवाल: जी यमक में जिन शब्दों की पुनरावृत्ति होती है उनका प्रयोग अलग-अलग अर्थ में होता है।
आरती श्रीवास्तव: बहुत सुंदर जानकारी

अभिलाषा चौहान: चरन धरत चिंता करत,चितवत चारहुं ओर
सुवरण को ढूंढत फिरत कवि कामी अरू चोर।
श्लेष अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण है श्लेष का अर्थ होता है 'चिपका हुआ'यहाँ
पर इस दोहे के अनेक अर्थ है।

कृष्ण मोहन निगम: वाह
डा कमल वर्मा: वक्रोक्ति उलाहना की तरह?
अनुपमा अग्रवाल: पूरे दोहे के ही अर्थ में अंतर है क्या यहाँ पर??
अनिता मंदिलवार सपना: आइए आप भी जानकारी साझा कीजिए

अनुपमा अग्रवाल: पुनरुक्ति अलंकार क्या है?
जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वह पुनरुक्ति अलंकार होता है।
पुनरुक्ति दो शब्दों से मिलकर बना है।
पुनः+ उक्ति = पुनरुक्ति

बोधन राम विनायक: बहुत सुन्दर जानकारी🙏
अभिलाषा चौहान: हां चरन-पैर,छंद का चरण
सुवरन-स्वर्ण,सुंदर वर्ण,सुंदर वर्ण वाली स्त्री
कवि
कामी
चोर
तीनों के अर्थ में इसका प्रयोग है।
बोधन राम विनायक: हाँ🙏
अभिलाषा चौहान: *मधुर-मधुर* मेरे दीपक जल।
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
केवरा यदु मीरा: मेरा नाम भी जोड़ दीजिये
यशवंत यश सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग: 🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग
ठंडा ठहरा ठूसकर,ठनठन ठनका ठंड ।
ठाणे ठिठुरन ठाकरे, ठंडक ठेले दंड ।।
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग
डा कमल वर्मा: आज आशु दोहा सृजन कार्यक्रम सायं 8.00 बजे
आप सादर आमंत्रित हैं🙏🙏🙏🙏
अपना नाम सूचीबद्ध करें
1कमल किशोर "कमल"
2अनुपमा अग्रवाल
3आरती श्रीवास्तव
4सुश्री गीता उपाध्याय
5 आशा शुक्ला
6डा श्रीमती कमल वर्मा
सादर🙏🙏

अनुपमा अग्रवाल: माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे , मन का मनका फेर।।
यमक अलंकार
अमित साहू: विमल विमद वरदायिनी, वर दे विरद विवेक।
वरदहस्त  वागेश्वरी,  विनती 'अमित' अनेक।।
यह अनुप्रास के कौन सी श्रेणी में है??
मार्गदर्शन करिए🙏🙏🙏

आरती श्रीवास्तव: नारी जग की जान सा, नारी घर की  शान।
नारी कल्याण करे सदा,रखे नारी का मान।।
अनुप्रास अलंकार का सटीक उदाहरण है कि नही कृपया मार्गदर्शन करें।

अनुपमा अग्रवाल: ये वृत्यानुप्रास
अनुपमा अग्रवाल: वृत्यानुप्रास के अंतर्गत एक ही वर्ण की आवृत्ति होती है।
अभिलाषा चौहान: वृत्यानुप्रास ,एक की व्यंजन की बार-बार आवृत्ति है।🙏🙏
अनुपमा अग्रवाल: ये लाटानुप्रास का एक अच्छा उदाहरण है
अनुपमा अग्रवाल: इसमें नारी शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुयी है।
आरती श्रीवास्तव: लाटानुप्रास ?
आशा शुक्ला: 👌👌👌👌👌
डा कमल वर्मा: 🙏🏻👌 छेकानुप्रास भी बता दीजिये, आदरणीय।

अनुपमा अग्रवाल: लाटानुप्रास अलंकार - जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो, तो वहाँ 'लाटानुप्रास अलंकार' होता है।
उदाहरण-
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
उपरोक्त दो पंक्तियों में शब्द प्रायः एक से हैं और अर्थ भी एक ही हैं। अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।

वंदना सोलंकी: प्रतियोगिता से इतर एक प्रयास
कृपया समीक्षा करें🙏🏻
*सूर्यग्रहण*
धरती रवि *समरेख* पर, अड़ा बीच में चाँद
दिनकर का प्रकाश भी, *रेख* न पाए फांद
रेख न पाए फांद, खगोल दशा परिवर्तन
गृहण ग्रहण कर दृश्य, ग्रहों का होता नर्तन
कहे वंदना देख, कुछाया कैसी भरती
मध्य मार्ग में चन्द्र, भानु *कर* तरसे *धरती*
वंदना सोलंकी
कर - किरण
ग्रह-नक्षत्र
गृह-घर
धरती-पृथ्वी
धरती-रखती
समरेख-समानान्तर रेखा
सम-समान

अनुपमा अग्रवाल: छेकानुप्रास - जहाँ अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत: व क्रमश: आवृत्ति हो, वहाँ 'छेकानुप्रास अलंकार' होता है।
उदाहरण-
रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै,
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।
उपरोक्त पंक्तियों में 'रीझि-रीझि', 'रहसि-रहसि', 'हँसि-हँसि', और 'दई-दई' में छेकानुप्रास अलंकार है, क्योंकि व्यंजन वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है।

आरती श्रीवास्तव: बहुत सुंदर जानकारी🙏🏽🙏🏽
अभिलाषा चौहान: एक वर्ण की एक से अधिक बार आवृति।
वंदना सोलंकी: विप्सा का क्या मतलब है

अभिलाषा चौहान: पूत कपूत तो क्यों धन संचै।
पूत सपूत तो क्यों धन संचै ।
में अलंकार बताएं

कुसुम कोठारी: अर्थालंकार के भेद
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
द्रष्टान्त अलंकार
संदेह अलंकार
अतिश्योक्ति अलंकार
उपमेयोपमा अलंकार
प्रतीप अलंकार
अनन्वय अलंकार
भ्रांतिमान अलंकार
दीपक अलंकार
अपहृति अलंकार
व्यतिरेक अलंकार
विभावना अलंकार
विशेषोक्ति अलंकार
अर्थान्तरन्यास अलंकार
उल्लेख अलंकार
विरोधाभाष अलंकार
असंगति अलंकार
मानवीकरण अलंकार
अन्योक्ति अलंकार
काव्यलिंग अलंकार
स्वभावोती अलंकार

वंदना सोलंकी: लाटानुप्रास
अनुपमा अग्रवाल: विप्सा अलंकार क्या है?
जब हर्ष, शोक, आदर और विस्मयबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्द की पुनरावृत्ति होती है तो वह विप्सा अलंकार होता है।
उदाहरण :
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।

पुरुषोत्तम दास प्रजापति 'सुदर्शन': 👌👌

कुसुम कोठारी: 1. उपमा अलंकार
उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है।
जैसे :- सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
उपमा अलंकार के अंग :-
उपमेय
उपमान
वाचक शब्द
साधारण धर्म
1. उपमेय क्या होता है :- उपमेय का अर्थ होता है – उपमा देने के योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता है।
2.उपमान क्या होता है :- उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते हैं।
3. वाचक शब्द क्या होता है :- जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।
4. साधारण धर्म क्या होता है :- दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।
उपमा अलंकार के भेद :-
पूर्णोपमा अलंकार
लुप्तोपमा अलंकार
1. पूर्णोपमा अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमा के सभी अंग होते हैं – उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म आदि अंग होते हैं वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है।
जैसे :- सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
22.लुप्तोपमा अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमा के चारों अगों में से यदि एक या दो का या फिर तीन का न होना पाया जाए वहाँ पर लुप्तोपमा अलंकार होता है।
जैसे :- कल्पना सी अतिशय कोमल। जैसा हम देख सकते हैं कि इसमें उपमेय नहीं है तो इसलिए यह लुप्तोपमा का उदहारण है।

अभिलाषा चौहान: 👌👌
नीतू : बहुत सुंदर जानकारी ...काफी विस्तार से बताया आप ने ....बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏
नीतू : आशा जी आप की कोई अलंकार बद्ध रचना कृपया प्रेषित करें 🙏

कुसुम कोठारी: 2. रूपक अलंकार
जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।
जैसे :- “उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।”
रूपक अलंकर में
उपमेय को उपमान का रूप देना।
वाचक शब्द का लोप होना।
उपमेय का भी साथ में वर्णन होना।
रूपक अलंकार के भेद :-
सम रूपक अलंकार
अधिक रूपक अलंकार
न्यून रूपक अलंकार
1. सम रूपक अलंकार
इसमें उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है वहाँ पर सम रूपक अलंकार होता है।
जैसे :- बीती विभावरी जागरी. अम्बर – पनघट में डुबा रही, तारघट उषा – नागरी।
2.अधिक रूपक अलंकार
जहाँ पर उपमेय में उपमान की तुलना में कुछ न्यूनता का बोध होता है वहाँ पर अधिक रूपक अलंकार होता है।
3. न्यून रूपक अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमान की तुलना में उपमेय को न्यून दिखाया जाता है वहाँ पर न्यून रूपक अलंकार होता है।
जैसे :- जनम सिन्धु विष बन्धु पुनि, दीन मलिन सकलंक
सिय मुख समता पावकिमि चन्द्र बापुरो रंक।।

आशा शुक्ला: मनोभावों को प्रकट करने के लिए छिः छिः, राम-राम ,चुप-चुप, देखो -देखो, वाक्यों को दोहराना,,,, इस प्रकार के शब्द को दोहराना वीप्सा अलंकार है।
अनुपमा अग्रवाल: 👍
नीतू : भाव सभी को चाहिये, सभी भाव के भक्त।
व्यापारी कवि देखलो, रहें भाव अनुरक्त॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'

अमित साहू: 🙏अति अनुकरणीय व संग्रहणीय🙏
नीतू : इसमें किस अलंकार का प्रयोग हुआ है
आशा शुक्ला: जी देखती हूँ🌹🙏🌹
आशा शुक्ला: श्लेष अलंकार
नीतू : इसे छंदशाला में प्रेषित कर दिया है
वंदना सोलंकी: मैंने भी ऊपर एक कुंडली डाली है,, उसमें भी कोई न कोई अलंकार होगा😂😂
डा कमल वर्मा: इसमें भाव शब्द को तीन बार विभिन्न अर्थ से उपयोग किया गया।
नीतू : जी आदरणीया

कुसुम कोठारी: 3. उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ उपमेय में उपमान के होने की संभावना का वर्णन हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु,मेरे जानते,मनहु,मानो, निश्चय, ईव आदि आता है बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे:
मुख मानो चन्द्रमा है।
4. अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे :
आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार।
5. मानवीकरण अलंकार
जब प्राकृतिक चीज़ों में मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन हो तब वहां मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे :
फूल हँसे कलियाँ मुस्कुराई।
अनुपमा अग्रवाल: *कुनबा*
*तिनका-तिनका* तान के, खग खरपत के छाँव
*कुनबा-कुनबा* जोड़ के, गढ़े ग्रामपति गाँव
गढ़े ग्रामपति गाँव, बूँद से सागर बनता
*नगर-नगर* से *देश, देश* में *जन-जन* जनता
कह अनंत कविराय, माल है *मनका-मनका*
*कण-कण* कीमत जान, जोड़ ले *तिनका-तिनका*
*अनंत पुरोहित*

अभिलाषा चौहान: श्लेष अलंकार
भाव दो अर्थ अभिव्यक्त कर रहा है व्यापारी और कवि के संदर्भ में।
अनुपमा अग्रवाल: इसमें बताईये कौन सा अलंकार है।

अभिलाषा चौहान: आदरणीय कल हमने भी अलंकारों का प्रयोग करने की कोशिश की।कृपया बताइए,सफलता मिली या नहीं 🙏🌷
१)बहना
*बहना बनकर बावरी,नाचे जैसे मोर।*
भैया वर के रूप में,लगता नंदकिशोर।
*लगता नंदकिशोर,चंद्र सम मुखड़ा चमका*
पीत वसन हैं अंग, *सूर्य ज्यों नभ पर दमका।*
अधरों पर मुस्कान,शीश पगड़ी है पहना।
देती नजर उतार,लगाती काजल बहना।
अभिलाषा चौहान
सादर समीक्षार्थ 🙏🌷

नीतू : सुंदर 👌👌👌
अभिलाषा चौहान: 👌👌 बहुत बढ़िया सखी🙏🙏🌷🌷

वंदना सोलंकी: प्रतियोगिता से इतर एक प्रयास
कृपया समीक्षा करें🙏🏻
*सूर्यग्रहण*
धरती रवि *समरेख* पर, अड़ा बीच में चाँद
दिनकर का प्रकाश भी, *रेख* न पाए फांद
रेख न पाए फांद, खगोल दशा परिवर्तन
गृहण ग्रहण कर दृश्य, ग्रहों का होता नर्तन
कहे वंदना देख, कुछाया कैसी भरती
मध्य मार्ग में चन्द्र, भानु *कर* तरसे *धरती*
वंदना सोलंकी
कर - किरण
ग्रह-नक्षत्र
गृह-घर
धरती-पृथ्वी
धरती-रखती
समरेख-समानान्तर रेखा
सम-समान
अनुपमा अग्रवाल: यमक
कुंडलिया  शतकवीर
कलम की सुगंध - छंदशाला
दिनाँक - 25/12/2019
(17)विषय-बाबुल
आकर बाबुल देख ले,मेरे रचनाकार।
तुझे पुकारे ये *धरा* , *धरा* ह्रदय पर भार।
धरा ह्रदय पर भार,सहा कैसेअब जाए।
सकल मनुज पर *वार* , *वार* बदले में पाए।
गई पिता अब *हार* , *हार* दुख के लटकाकर।
टूटे मन के *तार* ,  *तार* मुझको तू आकर।
रचनाकार,-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश

नीतू : अनंत पुरोहित सर कृपया मार्गदर्शन करें ....आप की रचना बहुत ही सुंदर है
अनुपमा अग्रवाल: यमक अलंकार का एक श्रेष्ठ उदाहरण
डा कमल वर्मा: "तिनका कबहुँ न नींदिये ", दो अर्थ है।
जो पायन तर होय.।
कृपया
अनुपमा अग्रवाल: आशा जी कृपया इसे समझायें

अभिलाषा चौहान: सखियाँ *झूला झूलती,* *वृंदावन के बाग।*
*मनमंदिर में मीत* का,बसा हुआ है राग।
बसा हुआ है *राग*, *राग* वे मधुर सुनाती।
*ऐसे छेड़ें तान,लगे बुलबुल हैं गाती।*
मदन करे श्रृंगार,देखती सबकी अखियाँ।
रति का लगती रूप,बाग में *सारी सखियाँ।*
अभिलाषा चौहान

कुसुम कोठारी: अर्थालंकार के मुख्य 5 ऊपर बताए हैं  ।
अर्थालंकार का एक रोचक भेद है उसे देखिए👇
भ्रांतिमान अलंकार-
     जहाँ प्रस्तुत को देखकर किसी विशेष साम्यता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। उदाहरण-
1.   चंद के भरम होत मोड़ है कुमुदनी।
2. नाक का मोती अधर की कान्ति से,
    बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
    देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,
    सोचता है, अन्य शुक कौन है।
3.  चाहत चकोर सूर ऒर , दृग छोर करि।
     चकवा की छाती तजि धीर धसकति है।

अभिलाषा चौहान: बहुत ही उत्तम 🙏🙏

अनुपमा अग्रवाल: विषय-बाबुल
*बाबुल* तेरी लाडली, है कितनी असहाय।
फंसी ऐसे जाल में, निकल तभी यह पाय।।
निकल तभी यह *पाय, पाय* जब धूर्त्त कमीने।
मैं आँगन की *डाल, डाल* दी मर कर जीने।
दूँगी  उनको *मात, मात* मत होना आकुल।
थी मेरी क्या *भूल, भूल* मत जाना *बाबुल* ।।
पाय- सकना,मिलना
डाल-शाखा,तोड़ डालना
मात-हार,माँ
भूल-गलती,विस्मृत

रचनाकार का नाम-अनुपमा अग्रवाल
बोधन राम विनायक: अद्भुत🙏
अनुपमा अग्रवाल: यमक अलंकार का एक अन्य उदाहरण

अनुराधा चौहान  मुम्बई: (१)
*कविता कहती सुन कलम,कैसा कलियुग आज।*
*कोयल से कागा भला,कहती कड़वे राज।*
*कहती कड़वे राज,कर्म सब कलुषित करते।*
कलियुग रचे विधान,तभी दुख से सब डरते।
कहती अनु यह देख,क्लेश की बहती सरिता।
*कलियुग छीने प्रेम,यही कहती है कविता।*
(२)
*सखियाँ सुमन सुगंध सी,सुंदर सरल स्वभाव*।
*कोमल काया की कली,करुणा के ले भाव।*
करुणा के ले भाव,सखी की समझे पीड़ा।
करती दूर विषाद,उठाती सुख का बीड़ा।
कहती अनु यह देख, खुशी से भीगी अखियाँ।
देती दुख में साथ,भली होती हैं सखियाँ।
*अनुराधा चौहान*
बोधन राम विनायक: बहुत सुन्दर🙏

नीतू : अनुप्रास अलंकार का नायाब उदाहरण
कविता काव्य कवित्त के, करते कर्म कठोर।
कविजन केका कोकिला,कलित कलम की कोर।
कलित कलम की कोर, करे कंटकपथ कोमल।
कर्म करे कल्याण, कंठिनी काली कोयल।
कहता कवि करजोड़, करूँ कविताई कमिता।
काँपे काल कराल, कहो कम कैसे कविता।
कमिता ~कामना
…… बाबू लाल शर्मा,बौहरा

नीतू : आदरणीय मार्गदर्शन करें 🙏

अनुपमा अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन गुरूवार 26.12.2019*
*19) बहना*
बहना बड़भागी बहुत, पाया पति पितु प्यार
भाती भगिनी भ्रात भी, माँ माने मनुहार
माँ माने मनुहार, होय हठ हठिनी हठिली
भावज को भी भाय, ननद नटखट नखरीली
कह अनंत कविराय, कूकती कथनी कहना
कुंदन कंचन काय, केश कालिंदी बहना
*20) सखियाँ*
सखियाँ मुख मोती झरे, कूजे कोयल क्रोंच
गलियाँ गायन गूँजता, चहचह चिड़िया चोंच
चहचह चिड़िया चोंच, खगेंद्र खग खिलखिलाते
सखियाँ सम खद्योत, जगत मध्य झिलमिलाते
कह अनंत कविराय, कल्प की कल्पित कलियाँ
सखियों से संसार, खास होती हैं सखियाँ
*रचनाकार*
अनंत पुरोहित 'अनंत'
सादर समीक्षार्थ
अनुपमा अग्रवाल: ये एक वृत्यानुप्रास की सुंदर छटा
कुसुम कोठारी: छेकानुप्रास का एक प्रयास मेरा, पता नहीं सफल है या नही,देखियेगा
कुणड़लियाँ चमत्कारी तो नहीं बन पाई पर प्रयोग शुद्ध लेने का प्रयास किया हैं
गुणी जन राय दें🙏
सखियाँ
*सखियाँ* *सुख* की खान है , *मीठा*मधु ** रस पान ,
*हिलमिल* *हँसती* खेलती  , *एक* *एक* की प्राण ,
*एक* *एक* की प्राण ,  खुशी में झूमे नाचे
*करे* *कुंज* में *केलि* , हाथ सुरंग *रँग* *राचे*
*कहे* *कुसुम* ये बात  ,रखो  पुतली भर अखियाँ,
ये जीवन का सार , जगत में प्यारी सखियाँ। ।।
कुसुम कोठारी।
अनुपमा अग्रवाल: यदि हम अपनी रचनाओं में इसी तरह से स्वाभाविक रूप से अलंकारों का प्रयोग करें तो रचना की छटा देखते ही बनती है।
वंदना सोलंकी: कृपया हमारी रचना के गुण दोष बताएं🙏🏻
नीतू : आदरणीय विश्वमोहन जी की अलंकारों से सुसज्जित एक सुंदर रचना...
श्वेत शशक सा शरद सुभग सलोना
चमक चांदनी चक मक कोना कोना
राजे रजत रजनी का चंचल चितवन
प्लावित पीयूष प्रेम पिया का तन मन
पवन शरारत सनन सनन सन
पुलकित पूनम तन मन छन छन
कर स्पंदन विश्व विकल मन
चरम चिरंतन चिन्मय चेतन
कुंदेंदु कला की तू कुंतल तरुणाई
लाजवंती ललना लोचन ललचायी
सिहर सिहर सरस समीर सरमायी
अंग अनंग बहुरंग भंग अंगड़ाई
अमरावती की अमर वेळ तू
मदन प्रेमघन मधुर मेल तू
तरुण कुञ्ज तरु लता पाश
वृन्दा वन वनिता विलास,
कान्हा की मुरली के अधर
हे प्रेम पिक के कोकिल स्वर!
किस ग्रन्थ गह्वर के  राग छंद ये गाई,
लय, लास, लोल, लावण्य घोल तू लाई
मन मंदिर में तू, मंद मंद मुस्काई
प्राणों में प्रेयसी, प्रीत प्राण भर लाई
कलकल छलछल छलक मदिरा छाई
शाश्वत सुवास सा श्वास श्वास छितराई
सतरंगी सी, इन्द्रधनुषी! रास रंग अतिरेक
एक और एक प्रेम गणित में होते सदा ही एक!

कुसुम कोठारी: आदरणीय विज्ञात सर की एक
अलंकृत रचना।
वृत्यानुप्रास
अतिशयोक्ति
और भ्रानतिमान
व्यंग्य
व्याकुल कुल कृति कल्पना, किंचित विचलित छाँव
सूर्य ग्रहण के पर्व पर, कवि पहुँचे रवि गाँव
कवि पहुँचे रवि गाँव, कुशा की कलम बनाकर
मेघ बने मसिपात्र, पात्र को सम्मुख पाकर
कह कौशिक कविराज, आज रवि दिखे भयाकुल
समझ लिया कवि राहु, व्यंग्य समझें सब व्याकुल
संजय कौशिक 'विज्ञात'
कुल - परिवार
कृति - रचना
मसिपात्र- स्याही की दवात
पात्र- योग्य
भयाकुल - भयभीत
व्याकुल - बेचैन
-----+----+----+
वाह!गजब है ग्रहण के समय कवि, रवि गांव जरूर गया पर पवित्र कुशा हाथ में लेकर की कहीं ग्रहण के उपद्रव का असर  उस पर न हो ,और ग्रहण का आंखों देखा हाल ही लिख आये
आज के टीवी रिपोर्टर जैसे ।
इधर सूरज समझा की राहु आ धमका और बैचेन हो गया ।
(सच कवि कौन राहु से कम है ।)
भ्रातिंमान  अलंकार का प्रयोग।
अप्रतिम रचना है ।लय बाधा कुछ है ,मेरे अल्प ज्ञान से।
विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': बहुत सुंदर रचना ।‌ हार्दिक बधाई।
अभिलाषा चौहान: मेरी दृष्टि में यह रचना कवि कर्म की सार्थकता सिद्ध करने के साथ "जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि"उक्ति को सार्थक करती है।काव्य रचना स्वांत सुखाय होते हुए भी समाज का मार्गदर्शन करने वाली उद्देश्य पूर्ण हो इसी में रचनाकार की सार्थकता है।🙏🙏🌷🌷
अमित साहू: 🙏अत्योत्तम आदर्श अलंकारिक सृजन

आशा शुक्ला: जी,, इस रचना में धरती अपने रचनाकार परमेश्वर से प्रार्थना कर रही है कि आप  आकर देख लो पापों (अत्याचारों)के  भार से मैं दबी जा रही हूँ मेरा ह्रदय दबा जा रहा है जिसे अब सहना मुश्किल है।मैंने अपना सब कुछ मनुष्य पर न्यौछावर कर दिया है पर बदले में मुझे आघात ही मिला है
(यहाँ खनन,संसाधनों का अति दोहन,प्रदूषण के आघात इंगित किये गए हैं)
मैं अब इस दारुण दुख  माला को पहन का व्यथित हूँ। मेरी मन की वीणा के तार टूट चुके है,अब आकर मुझे इन अत्याचारों से मुक्ति दिलाओ।
,,,यहाँ धरा का अर्थ, धरती,,दूसरे धरा का अर्थ रखा हुआ है
वार का अर्थ,,,न्यौछावर और दूसरे वार का अर्थ आघात  है
हार का अर्थ थकना,या पराजित होना,,दूसरे हार का अर्थ माला है
पहले तार का अर्थ वीणा के तार
दूसरे तार का अर्थ मुक्ति दिलाना या उद्धार करना है।
और सामान्य रूप से इसका अर्थ है धरा के समान सहनशील लड़की अपने रचनाकार पिता को पुकार रही है और कह रही है कि हे पिता-आकर देख लो कि मुझ पर कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं जो अब सहन करने के योग्य नहीं हैं। मैंने अपना सर्वस्व इन मनुष्यों पर  अर्पण कर दिया है पर बदले में मुझे अत्याचारों के आघात ही मिले हैं। जिनको सहन करते करते मैं पराजित हो चुकी हूं या हार चुकी हूं। जो मैंने मैंने वरमाला का हार पहना था वह दुखों का हार बन गया है। मेरे मन रूपी वीणा के तार टूट चुके हैं आकर इनसे मुझे मुक्ति दिलाइये।जी इसमें यमक,मानवीकरण का समावेश किया है,,,समीक्षा आप सबके हाथ में है।जैसा उचित समझें🌹🙏🙏🌹

नीतू : चर्चा में स्वागत है आदरणीय 🙏 कृपया आप भी कुछ मार्गदर्शन करें 🙏
कुसुम कोठारी: 👌👌
नीतू : बहुत खूब👌👌👌 👏👏👏
 कुसुम कोठारी: 👌👌
आशा शुक्ला: ,🌹🙏🙏🌹
कुसुम कोठारी: अभूतपूर्व👌
नीतू : बिल्कुल सही कहा आदरणीया 🙏
अभिलाषा चौहान: 👌👌
अभिलाषा चौहान: केवल सखी🙏🙏
कुसुम कोठारी: बहना छेकानुप्रास का उत्तम👌
नीतू : जी सखी 🙏🙏🙏🌷
कुसुम कोठारी: छेका
उपमा
उत्प्रेक्षा
👌👌👌
आशा शुक्ला: अति उत्तम रचना👌👌👌👌
नीतू : बहुत सुंदर रचना 👏👏👏
आशा शुक्ला: अद्भुत👌👌👌👌👌👌
कुसुम कोठारी: सुंदर वृत्यानुप्रस
उममा👌👌
अनुपमा अग्रवाल: 👌👌👌
नीतू : आदरणीया रजनी जी से अनुरोध है कि आज की शानदार चर्चा पर अपने विचार व्यक्त करें 🙏🙏🙏
कुसुम कोठारी: बहुत बहुत सुंदर।👌👌
आशा शुक्ला: उपमा,छेकानुप्रास,उपमा अलंकार से विभूषित अति उत्तम,,अद्भुत रचना👌👌👌👌👌👌👌
 कुसुम कोठारी: सुंदर मानवीयकरण।
सुंदर रचना।
आशा शुक्ला: छेकानुप्रास का अद्भुत प्रयोग👌👌👌👌
कुसुम कोठारी: अप्रतिम ,सरस।
आशा शुक्ला: छेकानुप्रास का अति सुंदर प्रयोग👌👌👌

नीतू : आज की चर्चा बहुत ही शानदार रही....इतने उपयोगी और खूबसूरत विषय का चयन करने के लिए आदरणीय विज्ञात सर  और आदरणीया अनिता मंदिलवार "सपना" जी का बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏 उनसे निवेदन है कि आज की चर्चा पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें 🙏🙏🙏

कुसुम कोठारी: 👌👌 अद्भुत
आशा शुक्ला: मानवीकरण👌👌👌
आशा शुक्ला: बेजोड़ रचना👌👌👌👌
अभिलाषा चौहान: बहुत सुंदर
आशा शुक्ला: सुंदर यमक 👌👌👌👌
अनुपमा अग्रवाल: जी आभार आदरणीया
नीतू : इस चर्चा में सम्मिलित होने वाले इस मंच के सभी सदस्यों का हृदयतल से आभार 🙏🙏🙏
आशा शुक्ला: छेकानुप्रास और उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग👌👌👌👌👌
अभिलाषा चौहान: यमक भी सखी

नीतू : कुछ हमारी कलम से भी 🙏🙏🙏😀
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिनांक - 25.12.19*
*कुण्डलियाँ (15)*
*विषय :- कविता*
कविता के हर कथ्य पे , शोर करे करताल।
काव्य कल्पना के कुसुम, करते खूब कमाल।।
करते खूब कमाल, कंट पथ कोमल करते।
करे कालिमा दूर, कोकिला के सुर भरते।।
कंचन कवि के भाव, कथन कुंदन की सरिता।
कहे कल्पनालोक, कड़ी कर्मठ की कविता।
*कुण्डलियाँ (16)*
*विषय :- ममता*
माता ममता से भरी, मन को लेती मोह।
मनमंदिर ममतामयी, माँगे मूल्य न छोह।।
मांगे मूल्य न छोह,मिले ममता मन भावन।
मगन हुए मतिमंद, मानते मदिरा पावन।।
माता की मुस्कान, माँगती माँ की जाता।
मिटता मन से मान, मलिन लगती जब माता।।
*कुण्डलियाँ (17)*
*विषय :- बाबुल*
बाबुल के संघर्ष का, मोल लगाते ढीठ।
स्वेद बूँद बहती रही , पुत्र दिखाते पीठ।।
पुत्र दिखाते *पीठ*, *पीठ* पर बैठा ललना।
भूला अपनी *जात* , *जात* छोड़े जब पलना।।
जीवन पथ है *ढाल* , *ढाल* है खुद ही व्याकुल।
सबका जीवन *साज* , *साज* सा बजता बाबुल।।
*कुण्डलियाँ (18)*
*विषय :- भैया*
बहना का अभिमान है, भाई का सम्मान।
भ्रात पिता के स्नेह से, नारी पाती मान।।
नारी पाती *मान*, *मान* अपनों की बातें।
मन से मिटते *भेद* , *भेद* सारे छुप जाते।।
लोभ बढ़ाता *खेद* , *खेद* को पड़ता सहना।
कायर भेदें *पीठ* , *पीठ* पर बैठी बहना।।
*रचनाकार का नाम :- नीतू ठाकुर*

आशा शुक्ला: अत्यंत सुंदर छेकानुप्रास ,,,मनोहारी रचना👌👌👌👌👌
अभिलाषा चौहान: वाह बहुत ही सुन्दर, अलंकार से सजी रचनाएं
आशा शुक्ला: आप तो आप ही हैं😊🙏😊बहुत सुंदर यमक👌👌👌👌
अभिलाषा चौहान: वाह यमक अलंकार का सौंदर्य निखार पर है।
अनुपमा अग्रवाल: क्या खूब श्रृंगार किया है आपने रचनाओं का ......यही तो अलंकार है....रचनाओं का अलंकरण 👌👌👌👌👌

विज्ञात जी: मुख्यातिथि आदरणीया रजनी रामदेव जी का स्वागत है 💐💐💐💐💐💐
आशा शुक्ला: बहुत सुंदर यमक👌👌👌👌
अनुराधा चौहाण मुम्बई: 👌🏻👌🏻👌🏻
अनुराधा चौहाण मुम्बई: 👌🏻👌🏻👌🏻
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
अनुराधा चौहान  मुम्बई: हार्दिक स्वागत आदरणीया💐💐

सुधा सिंह मुम्बई: 24:12:19
कुंडलियाँ:
कविता::
कविता मन की संगिनी,
कविता रस की खान
कवि की है ये कल्पना,
जिसमें कवि की जान
जिसमें कवि की जान,
स्नेह के धागे बुनता
आखर आखर जोड़,
भाव उर के व‍ह चुनता
सुनो सुधा है काव्य
तमस विलोपती सविता।
दग्ध हृदय उद्गार,
सहचरी हिय की कविता।।
ममता::
ममता माया में मढ़ी,
मानो माँ का मोल
महिधर महिमा में झुके
महतारी अनमोल।
महतारी अनमोल
न माँ की करो अवज्ञा
रख लो माँ का भान,
चला लो अपनी प्रज्ञा
सुनु सुधा समझावति,
मात की समझो महता
माँ सम महा न कोय,
नहीं माता सी ममता
सुधा सिंह

अनुराधा चौहाण मुम्बई: 🙏🏻🙏🏻

रजनी रामदेव: आज की चर्चा बहुत ही उपयोगी रही सभी मित्रों ने अलंकारों के विषय पर अपने अपने विचार व्यक्त किये। आद0 अनिता जी का भी बहुत बहुत आभार जिन्होंने इतनी सुंदर अलंकार की कक्षा के बारे में सोचा ।
उम्मीद करती हूं भविष्य में भी ऐसी उपयोगी जानकारी की कक्षाएँ चलती रहेंगी। जिससे सभी लाभान्वित होंगे।
इसमें सम्मिलित सभी मित्रों का एक बार पुनः आभार

सुधा सिंह मुम्बई: कृपया मेरी रचना पर भी प्रकाश डालें क्या यह किसी अलंकार  में fit बैठती है
सुधा सिंह
अभिलाषा चौहान: आपका सहृदय आभार आदरणीया 🙏 इतनी उत्तम ज्ञानवर्धक कक्षा के लिए 🌷🙏

आशा शुक्ला: अलंकारों से सजी एक से बढ़कर एक मनोहारी रचनाएँ सामने आईं ,,,अलग अलग ,,रंग छटा बिखेरती हुई मालूम पड़ता है कि कविता कुंज में आ गए हैं
सुधा सिंह मुम्बई: मैं देर से जुड़ी अभी सब पढ़ना बाकी है
आशा शुक्ला: आपने ,,ममता माया,,,कविता में छेकानुप्रास का सुंदर प्रयोग किया है👌👌👌👌👌

नीतू : चर्चा में सम्मिलित होकर सभी का मार्गदर्शन करने के लिए और इस चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए
आ. कुसुम कोठारी जी
आ.अभिलाषा चौहान जी
आ. अनंत पुरोहित जी
आ. बाबूलाल शर्मा सर
आ.बोधन राम निषाद जी
आ. राधा तिवारी जी
आ. आरती श्रीवास्तव जी
आ. अमित सिंगारपुरिया जी
आ. डॉ कमल वर्मा जी
आ. पुरुषोत्तम प्रजापति जी
आ. अनुपमा अग्रवाल जी
आ. निगम सर
आ. मीरा जी
आ.यश सूर्यवंशी जी
आ.आशा शुक्ला जी
आ. वंदना सोलंकी जी
आ.अनुराधा चौहान जी
आ.सुधा सिंह जी
सभी का बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सुधा सिंह मुम्बई: जी आभार आदरणीया आशा जी,,🙏🙏
अनुराधा चौहान  मुम्बई: 🙏🏻🙏🏻🌹
सुधा सिंह मुम्बई: ,🙏🙏🌹
अनुराधा चौहान  मुम्बई: आपका हार्दिक आभार आदरणीया💐🌹
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कुसुम कोठारी: इतनी ज्ञानवर्धक चर्चा , विशेषज्ञों मंच संचालक ,और सभी उत्साही कार्यकर्ताओं ,गुणी जनों और
पीछे से सूत्र धार आदरणीय विज्ञात सर  सभी को नमन और सादर आभार ।
आज की इस शानदार कार्यशाला के लिए।
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

नीतू : मुख्य अतिथि आदरणीया रजनी जी कृपया आज की चर्चा पर अपने विचार व्यक्त करें ...🙏🙏🙏
अभिलाषा चौहान: 🙏🙏🌷🌷
आशा शुक्ला: जी 🌹🙏🙏🙏🙏🌹हार्दिक आभार
कुसुम कोठारी: अनुपम शृंगार अभिनव अलंकार।
नीतू : अध्यक्षा आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी भी अपने विचार व्यक्त करें 🙏🙏🙏
कुसुम कोठारी: बहुत बहुत आभार आशा जी मेरी अति साधारण रचना पर आपने प्रतिक्रिया दी ।🙏
कुसुम कोठारी: 👍
आशा शुक्ला: यह आपकी विनम्रता है जो ऐसा कहती हैं आपकी रचना बहुत सुंदर है👌👌👌👌👌
अमित साहू: 🙏कुशल संचालन, बहुपयोगी जानकारी व परिचर्चा हेतु आप सभी का सहृदय आभार🙏🙏
कुसुम कोठारी: सादर आभार आपका आदरणीया🙏
वंदना सोलंकी: 👌🏻👌🏻👌🏻
आशा शुक्ला: धन्यवाद दी🌹😊🙏😊🙏🌹

रजनी रामदेव: आज की चर्चा बहुत ही उपयोगी रही सभी मित्रों ने अलंकारों के विषय पर अपने अपने विचार व्यक्त किये। आद0 अनिता जी का भी बहुत बहुत आभार जिन्होंने इतनी सुंदर अलंकार की कक्षा के बारे में सोचा ।
उम्मीद करती हूं भविष्य में भी ऐसी उपयोगी जानकारी की कक्षाएँ चलती रहेंगी। जिससे सभी लाभान्वित होंगे।
इसमें सम्मिलित सभी मित्रों का एक बार पुनः आभार
वंदना सोलंकी: मेरी रचना की समीक्षा कीजिये आशा जी
आशा शुक्ला: मैंने की थी दी,,,😊😊😊 आपकी रचना में आपने मानवीकरण का बहुत ही सुंदर उपयोग किया है जिससे आपकी रचना बहुत ही सुंदर बन पड़ी है। आपकी रचना शक्ति दिन-प्रतिदिन मनोहारी होती जा रही है जिससे मैं चमत्कृत हूं, अद्भुत अद्भुत रचनाएं आपकी कलम से निकल रही है👌👌

विज्ञात जी: सर्व प्रथम आदरणीया रजनी रामदेव जी का आत्मीय आभार उन्होंने आतिथ्य स्वीकार कर कृतार्थ किया 🙏🙏🙏
आज के कार्यक्रम की अध्यक्षा आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी का आत्मीय आभार 🙏🙏🙏इस अलंकार की वर्कशाप के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की अस्वस्थ होने के पश्चात भी
परिस्थितियों को समझते हुए इस आयोजन की संचालिका  आदरणीया नीतू ठाकुर जी का आत्मीय आभार जो इतनी शानदार चर्चा और सभी आसानी से समझ सकें अपने मंच के ही उत्तम श्रेष्ठ उदाहरण प्रेषित कर सभी को लाभान्वित किया है 🙏🙏🙏
इसके पश्चात वर्कशॉप में सम्मिलित सभी कवि- कवयित्रियों का आत्मीय आभार जिन्होंने इस वर्कशॉप के महत्व को समझा और इसे गहराई देने का सार्थक कार्य किया
कलम की सुगंध छंदशाला परिवार के सभी कवि कवयित्रियों को सादर नमन 🙏🙏🙏

कुसुम कोठारी: 👍
आशा शुक्ला: 🌹🙏😊🙏🌹
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
नीतू : आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया आप के द्वारा दी गई जानकारी सभी को लाभ पहुंचाएगी और उसका परिणाम रचनाओं में भी अवश्य दिखेगा 🙏🙏🙏
आशा शुक्ला: आभार आदरणीय🌹🙏🙏🙏🌹
अनुपमा अग्रवाल: 👍
वंदना सोलंकी: धन्यवाद सखी,, मुझसे चूक गई समीक्षा, कुछ कार्य आ 🙏🏻🙏🏻गया था
नीतू : आभार आदरणीय 🙏🙏🙏
रवि रश्मि अनुभूति: 🙏🙏अलंकारों की बहुत सुंदर जानकारी दी गयी । घर में मेहमान आने से मैं उपस्थित नहीं हो सकी , पर मैंने यहाँ दिये गये अलंकारों के बारे में पूरा पढ़ लिया । हार्दिक आभार आपका इतनी बेहतरीन लाभदायक  जानकारी देने के लिए ।🙏🙏👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👍👍👍👍👍👍🌺🌺🌺🌺🌷🌷🌷🌷💐💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹
अभिलाषा चौहान: वाह सखी सुंदर अलंकृत रचना👌👌
पाखी जैन: व्यस्ततावश शामिल न हो सकी। उपयोगी जानकारी हेतु आप का ,नीतू जी ,अनिता जी का तहे दिल से आभार ।
यहाँ इस तरह की चर्चा हेतु निसंदेह होमवर्क भी किया है ।माध्यम कुछ भी हो।
आप सभी के श्रम को नमन।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
हमेशा ही पीछे रह जाती हूँ ।🥺🥺क्षमा
अभिलाषा चौहान: आभार आदरणीय 🙏🌷
अभिलाषा चौहान: 🙏🙏🌷🌷
गीतांजलि जी: अति उत्तम वार्तालाप व अलंकारों पर अनुकरणीय जानकारी 🙏🏼
अनुराधा चौहान  मुम्बई: बहुत सुंदर👌🏻👌🏻

नीतू : आदरणीय विज्ञात सर, आदरणीया अनिता जी आदरणीय रजनी जी और इस चर्चा में सम्मिलित सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करते हैं और चर्चा समाप्ति की घोषणा करते हैं 🙏🙏🙏जो इस चर्चा में सहभागी नही हो पाए वो अवश्य इस चर्चा को पढ़े और उसका लाभ उठाएं 🙏🙏🙏
गीतांजलि : वाह!!
गीतांजलि : उत्तम 👌🏼
गीतांजलि : क्या बात है! 👍🏼
गीतांजलि : 👏🏼👏🏼
गीतांजलि : अप्रतिम रचनायें, नीतू ❤
गीतांजलि : वृत्यानुप्रास का प्रयोग कर एक कुण्डलिया कल मैंने भी प्रेषित की थी। कृपया आप सब समीक्षा दें 🙏🏼
अनुराधा चौहान  मुम्बई: वाह👌🏻👌🏻

गीतांजलि : सादर समीक्षार्थ
कुण्डलिया शतकवीर
१३) जीवन
ज्वाला जीवन जब जले, जड़ जंगम जुग जाल।
जीता जँह जँह जीव जो, जोड़े जुट जंजाल।
जोड़े जुट जंजाल, जड़ जड़ जटिल जुगतियाँ।
जतन जलाएँ ज्योत, जंगल जुगनू जुगनियाँ।
जैसा जो जब जान, जगत जकड़े जन जाला।
जभी जुगत जग जीत, जले जोगी जी ज्वाला।
गीतांजलि ‘अनकही’
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻👍
अनुपमा अग्रवाल: 🙏🏻🙏🏻
गीतांजलि : और यह पूरे दिन की मेहनत का परिणाम, पता नहीं कुछ सही अर्थ बैठा भी या नहीं
अनुपमा अग्रवाल: अप्रतिम👌👌👌👌👌

नवीन कुमार तिवारी: ठण्ड के मारे
घटते बढ़ते सूर्य हैं, रहे जन  हलाकान ।
ठंडी कितनी पड़ रही, मफलर  ढकते कान ।।
मफलर ढकते कान, घुमे हैं देखो सारे ।
फिर भी शरीर काँप,  लगे अब ठिठुरन मारे ।।
जलते अलाव आज, अरे  तब  पादप कटते ।
दूषित बहे बयार, तभी तो जीवन घटते ।।
नवीन कुमार तिवारी,,

आशा शुक्ला: मानवीकरण अलंकार से सजी बेहद सुंदर रचना👌👌👌👌👌
नवीन कुमार तिवारी: हानि पर चर्चा:---
करते प्रयोग आप भी, खाते ठोकर साथ ।
शिक्षा मिलती मानते,पकड़े तब भी माथ ।।
पकड़े तब भी माथ,लगे हैं शोर -मचाने ।
मिलने आते लोग,लगे सब फिर कुरेदने ।।
मत हो आगे हानि, चलो जी सतर्क रहते।
देते सबको राय,  बैठ करचर्चा करते ।।
नवीन कुमार तिवारी,,,

रवि रश्मि अनुभूति: रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏स.संचालिका नीतू ठाकुर जी ,  स. रजनी रामदेव जी , अध्यक्षा अनिता मंदिलवार सपना जी व विज्ञात  जी का हार्दिक आभार इस अति उत्तम वर्कशाॅप के लिए । 👏👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌🌺🌺🌺🌺🌺🙌🙌🙌🙌🙌🙌👍👍👍👍👍🌺🌺🌷🌷💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

गीतांजलि जी: आज संध्या में आशु दोहा प्रतियोगिता रहेगी, तो क्या कुण्डलिया अभी प्रेषित कर सकती हूँ? मैं काफ़ी पीछे हूँ, दिनों की गिनती के हिसाब से।
नवीन कुमार तिवारी: डॉक्टर धरती के भगवान:-
डॉक्टर डॉक्टर खेलते, करते रहे प्रयोग ।
मानव जीवन छोड़ते,कहते ये संयोग ।।
कहते ये संयोग, अरे ये मरता कैसे ।
खाया दवा अनेक,  वहीँ था गलती जैसे ।।
छोड़ा जीवन आज , चलो ले आओ मोटर ।
धरती पर भगवान , कहे जी हमहै डॉक्टर ।।
नवीन कुमार तिवारी,,

विज्ञात जी: अब एक उम्मीद अवश्य रहेगी कि सभी की रचनाओं में कोई न कोई अलंकार अवश्य देखने को मिलेंगे सभी की रचनाएं शानदार सृजन बनकर उभरेंगी। जिससे स्वयं कवि भी उत्साहित होंगे
🙏🙏🙏

गीतांजलि : आभार आ० 🙏🏼🌹
गीतांजलि : धन्यवाद जी 🌹

आरती श्रीवास्तव: 🙏🏽🙏🏽मै रोज पटल पर उपस्थित नही हो पाती हूं, इसका मुझे दुःख है, परन्तु जब भी समय मिलता है सभी चर्चा को पढ़ कर मनन करती हूं,मैं गुरु दक्षिणा के रूप मे कुंडलियां प्रेषित नहीं कर पाउं, लेकिन सीखने का प्रयास करती रहती हूं,सादर🙏🏽🙏🏽

नीतू : आभार आदरणीया 🙏🙏🙏
अभिलाषा चौहान: आभार सखी 🙏🙏
नीतू : सखी जी कल भेजिएगा 4 🙏🙏
अभिलाषा चौहान: कोई बात नहीं सखी प्रयास कीजिए आप अवश्य ही कुंडलियां बना देंगी।
अभिलाषा चौहान: कोशिश करेंगे आदरणीय 🙏🌷
आरती श्रीवास्तव: धन्यवाद सखी,अभी लोकल कवि संस्था से जुड़ ग ई हूं, अधिक समय उसकी तैयारी में ही निकल जाता है।
बोधन राम विनायक: अति उत्तम चर्चा आप सभी आदरणीयों को सादर नमन🙏🙏🙏
डा कमल वर्मा: 🙏कुशल संचालन, बहुपयोगी जानकारी व परिचर्चा हेतु आप सभी का सहृदय आभार🙏🙏
डा कमल वर्मा: कुछ जरूरी कार्य के कारण पटल छोडा था।
आ. महोदय आपको बहुत बहुत धन्यवाद। हम सभी के यही विचार है और हम भी इनके हृदय से आभारी हैं। 🙏🏻🌹कमल वर्मा

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर रिपोर्ट । आप सभी आदरणीयों को बधाइयाँ

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  2. बहुत उपयोगी और ज्ञान वर्धक कार्यशाला ।

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  3. आदनीय महोदय एवं महोदया हम युवा कवियों को मात्रा की गणना करने में काफी परेशानियाँ आती हैं। अगर इस विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जाए तो हम नवांकुर कवियों को बहुत लाभ होगा। जिससे हम हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपनी सहभागिता का निर्वहन कर सके।
    धन्यवाद 🙏💐🙏।
    नवांकुर कवि - कुन्दन बहरदार

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