Thursday 16 January 2020

कुण्डलियाँ छंद...दुनिया, तपती



[16/01 5:46 PM] भावना शिवहरे: दुनिया
दुनिया दिखती वही है, देखत वन विचार!
 रहिये आप ही, बनें वही सुविचार!!
बने वही सुविचार, दोष देखे बन नाता!
आत्मा आभा पात, वाणी से ही सुभाता
 विकारो  की सुध ले, त्याग से ही जग जिया
भूखा मानव देख, ठिठोली करती  दुनिया

बिखरी
 बिखरी  काली है  घटा , संभल जाते  हाल
 नाता जीवन तुम नही,  डगर मिलत  बेहाल
डगर मिलत बेहाल, रिस्तों से  होत नाता
 खुशिया मिली जबसे, समेट लेत कर भाता
 चुन चुन रखती वहीं, भरपूर होती  गगरी
 सपनें पूरे होत, आँगन की खुशी बिखरी
[16/01 5:58 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक - 16/01/2020

कुण्डलिया (53)
विषय- दुनिया
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दुनिया  है  सुन्दर  बहुत, अगर  नजरिया  साफ I
मन जिसका कलुषित रहा, करे न दुनिया माफ ll
करे न  दुनिया  माफ, निरंकुश  कितना  भी  हो l
दुर्गति   उसकी  बाद, प्रभावी  जितना  भी  हो Il
कह  'माधव कविराय', धरा  ज्यों  नापे  गुनिया l
त्यों  गुनिया  पहचान, प्रणति  करती है दुनिया ll

गुनिया = गुणवान, लेखपाल/कारीगर का यंत्र

कुण्डलिया (54)
विषय- तपती
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तपती वसुधा  ज्येष्ठ में, खग मृग  जन बेहाल I
दे  तरुवर  रक्षा  करें, अनिल  छाँव   तत्काल ll
अनिल छाँव तत्काल, असर  गर्मी का कम हो l
मानसून   बन   मेघ, बरसते  मौसम  नम  हो ll
कह 'माधव कविराय', धरा जल को ही जपती l
जहाँ  सघन  हों  वृक्ष, वहाँ कब  धरती तपती ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[16/01 6:07 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 16.01.2020 (गुरूवार)

(53)
विषय - दुनिया

अपने अपने हैं सभी,अपनों से हो प्यार।
दुनिया की इस भीड़ में,खो मत जाना यार।।
खो  मत  जाना यार, यहाँ  धोखा  ही  पाते।
जिसका खाते अन्न, उसी का हैं  गुण गाते।।
कहे विनायक राज, देखना  मत तुम सपने।
स्वारथ  के   इंसान, नहीं  है   कोई  अपने।।

(54)
विषय - तपती

धरती  तपती  धूप से, कटते  वन चहुँओर।
नहीं किसी को सुध यहाँ,बनते हृदय कठोर।।
बनते  हृदय  कठोर, नहीं  सुध  कोई लेते।
काटे  वृक्ष   अपार, इसे  बंजर  कर  देते।।
कहे विनायक राज,धरा सबके दुख हरती।
वृक्ष लगाओ आज,बचालो तपती धरती।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[16/01 6:12 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक ....  16 जनवरी 2020
कलम की सुगंध छंद शाला
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
 विषय      *दुनिया*
दुनिया तेरे हैं    विविध,    नाम ,  रूप  बहुरंग ।
देखा है     हमने     तुझे  , सदा बदलते    ढंग ।।
सदा       बदलते    ढंग , कभी तो लगती अपनी।
 कभी     उदार चरित्र,   कभी अति कपटी ठगनी।।
 कहे "निगम कविराज" ,   तुझे क्या समझे गुनिया।
 तू  है      सदा   अबूझ,    पहेली सी   री!  दुनिया ।।

विषय       *तपती*
तपती   वन में   तापसी,   जपती है    हरि नाम.।
योग ध्यान तप साधना ,  बड़ा कठिन यह काम ।।
बड़ा कठिन   यह काम, किंतु है प्रभु को  पाना  ।
जग  -  प्रपंच से   दूर ,     तपस्या करना     ठाना ।
कहे "निगम कविराज",   अहर्निश जगती, जपती।
अति प्रचंड  तप-अग्नि , तापसी निशि-दिन तपती।।

 कलम से. ..
कृष्णमोहन निगम
सीतापुर , जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[16/01 6:21 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 16/01/2020
दिन - गुरुवार
53 - कुण्डलिया (1)
विषय - दुनिया
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अनुपम दुनिया का सृजन , करे अचंभित रूप ।
भाँति भाँति के जीव सब , बसे एक ही कूप ।
बसे एक ही कूप , रहो फिर मिलजुल सारे ।
छोड़ो अपना स्वार्थ , बनो सब संग सहारे ।
प्रेम भरा व्यवहार , लगे सबको सुंदरतम ।
रखिए भाव पवित्र , बने यह दुनिया अनुपम ।।
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54 - कुण्डलिया (2)
विषय - तपती
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धरती तपती ताप से ,अम्बर रही निहार ।
तृप्त करो देकर मुझे ,अमृत नीर की धार ।
अमृत नीर की धार , धार धरती हरियाई ।
पाकर जीवन दान , दानशीला इतराई ।
अन धन का भंडार ,मनुज को अर्पित करती ।
लगती मातु समान , भरी ममता से धरती ।।

धार - जल का बहाव
धार - धारण करना
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✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[16/01 6:23 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला*

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - १६.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1)
विषय-          *दुनिया*

दुनिया मतलब की  हुई, स्वार्थ  भरा संसार!
धर्म सनातन की सखे, बिकती सीख उधार!
बिकती सीख  उधार, पंथ  दादुर सम  बोले!
पढ़  अंग्रेजी   बोल, नये  युग  उड़े  हिँडोले!
शर्मा  बाबू  लाल, भूलते  गज  वह  गुनिया!
एकल अब  परिवार, भीड़ में एकल दुनिया!
•.                  •••••••••• 
कुण्डलियाँ (2)
विषय-          *तपती*

तपती असि धनु वीरता, मरुथल  राजस्थान!
सहज पतंगाकार सम, किले  महल पहचान!
किले महल  पहचान, आन इतिहास बखाने!
आतुर युवा किशोर, देश हित शक्ति दिखाने!
शर्मा   बाबू   लाल, बाजरी   सरसों   पकती!
आन बान अरु शान, जवानी जन की तपती!
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[16/01 6:27 PM] सरला सिंह: *16.01.2020 (गुरुवार )*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - गुरुवार*
*दिनांक-16/01/20*
*विषय: दुनिया , तपती*
*विधा कुण्डलियाँ*


  *53-दुनिया*

 भोली है दुनिया बड़ी,भूली जीवन मोल।
 बारूदों पर है खड़ी, लगे उसे अनमोल।
 लगे उसे अनमोल, बात इतना सा भूली।
 अपने हाथों आज, बनाती अपनी शूली।
 कहती सरला आज,खेल बारूद व गोली।
 करती खुद का नाश,बनी इतनी है भोली।।

      *54- तपती*

तपती धरा पुकारती,देख मेघ को आज।
आओ प्यारे मेघ तुम, तुमपर जग को नाज़।
तुमपर जग को नाज़,राह देखें सब तेरी।
देखो जी घनराज, चले बिजली ले चेरी।
कहती सरला बात,धरा माला सी जपती।
बरसे झमझम मेघ, भयी खुश धरती तपती।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[16/01 6:40 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

47. दुनिया

दुनिया ऐसी बावली, भाग रही उस ओर।
छाया है गहरा घना, अन्धकार जिस ओर।।
अन्धकार जिस ओर, उधर को बढ़ती जाती।
घोर तिमिर के गीत, मधुर स्वर में है गाती।।
कह अंकित कविराय, चकित हो देखे मुनिया।
जाती है किस ओर, हमारी प्यारी दुनिया।।

48. तपती

तपती है सारी धरा, तपता है आकाश।
बढ़ती जाती मनुज के, तृष्णाओं की प्यास।।
तृष्णाओं की प्यास, मरुस्थल होता जीवन।
होकर दिशाविहीन, भटकता जाता यौवन।।
कह अंकित कविराय, दिलों में आग सुलगती।
जलता है परिवेश, सृष्टि सारी है तपती।।

49. बहना

बहना भाई के लिए, करती है जो त्याग।
शब्दों से वर्णन नहीं, होता वो अनुराग।।
होता वो अनुराग, जानता इसे जमाना।
भाई, बहिन का प्यार, विश्व ने भी है माना।।
कह अंकित कविराय, मान लो मेरा कहना।
मन से अपने दूर, कभी मत करना बहना।।

50. सखियाँ

सखियाँ जब आगे बढ़ीं, थाम सिया का हाथ।
देखा तब श्रीराम को, लक्ष्मण जी के साथ।।
लक्ष्मण जी के साथ, फूल जो चुनने आये।
नयन सिया के देख, उन्हें उस समय लजाये।।
कह अंकित कविराय,हुईं तब अपलक अखियाँ।
सीता का ये हाल, देखकर बोलीं सखियाँ।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[16/01 6:51 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *दुनिया , तपती*
दिनांक  --- 16.1.2020....

(55)              *दुनिया*

मेला दुनिया ही लगे , भाँति भाँति के लोग ,
जीवन जीने की कला , बाँटा करते भोग ।
बाँटा करते भोग , प्रभू प्रताप हैं सारे।
मन में है विश्वास  , सभी आशा हैं प्यारे ।
कह कुमकुम कविराय , सदा फल बिकता ठेला ।
दुनिया में हो रंग  , कभी लगता जब मेला ।।


(56)           *तपती*

तन मन जब तपने लगे , मत करना तुम खेद ।
अंतस की जब भावना , बता देत है भेद ।
बता देत है भेद , कहो जाकर कविवर से ।
बहा देना तुम स्वेद , मिलों आकर प्रियवर से ।
मिल जाएगा प्राण , सदा मिलना जन गण से ।
होगा यूँ अभिमान , लगे तपने तन मन से ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  16.1.2020.....

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[16/01 6:52 PM] अनंत पुरोहित: 51) गलती

गलती से जो सीखता, बनता वही महान।
अवगुण मनुज सुधारता, होता है सुज्ञान।।
होता है सुज्ञान, सफल दुनियाँ में होता।
आत्मदोष अनदेख, वही फिर पीछे रोता।।
कह अनंत कविराय, खुशी इसमें ही पलती।
गुणनिधि गुण गुणवान, सुधारो अपनी गलती।।

52) बदला

बदला बदला सा लगे, मेरा प्यारा देश।
गुरुजी भारत का नहीं, ऐसा था परिवेश।।
ऐसा था परिवेश, स्वर्ण पक्षी था उड़ता।
नारी का सम्मान, ज्ञान वाणी था उठता।।
कह अनंत कविराय, अनिल पश्चिम का पगला।
जब से आया देश, देश मेरा है बदला।।

53) दुनिया

दुनिया की ऐसी प्रथा, जैसे चलते ढोर।
पीछे पीछे हैं चले, एक चला जिस ओर।।
एक चला जिस ओर, सभी अनुगामी बनते।
निज विवेक को छोड, सदा अनुपालन करते।।
कह अनंत कविराय, खिलाओ नित नव कलियाँ।
कर बुद्धि का प्रयोग, नकल को छोडो दुनिया।।

अनंत पुरोहित 'अनंत'
[16/01 7:00 PM] अनिता सुधीर: कुण्डलिया शतकवीर
 *16.01.2020 (गुरूवार)*

दुनिया

मेरी दुनिया सिमट के,रही मित्र के साथ।
नया मित्र अद्भुत रहा ,लिया कलम जो हाथ ।।
लिया कलम जो हाथ,नई रचना नित लिखती।
मिला आपका साथ,'कलम सुगंध 'में पढ़ती ।
नव कुंडलियां रोज ,सिखाती शाला तेरी ।
सँवारे कलम आप ,निखारी दुनिया मेरी ।

तपती
तपती धरती मन रहा,लिये छाँव की आस ।
पिय के शीतल प्रेम की ,सदा लगी थी प्यास ।
सदा लगी थी प्यास,तृषा  बढ़ती ही जाये ।
बैठ रहे  दिन रात ,तृप्ति कैसे मन पाये ।
कहती अनु ये बात ,सदा वो भटका करती।
दे दो एक  उपाय ,संतुष्ट हो तपती धरती ।

अनिता सुधीर
[16/01 7:02 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतक वीर हेतु

दिनाँक- 16/91/2020

*दुनिया*

दुनिया में सब जीव के,शिव हैं पालनहार।
सृजनहार भी काल भी,महिमा अपरम्पार।
महिमा अपरम्पार,नाम भोला भंडारी।
जब आता है कोप,बने फिर वो संघारी।।
कहती रुचि करजोड़,कहे दादा सुन मुनिया।
शक्ति ईश्वरी मान,चले जिससे ये दुनिया।।


*तपती*

तपती धरती ग्रीष्म में,सूरज उगले आग।
गला सूखता प्यास से,ठंडाई  अनुराग।।
ठंडाई अनुराग,खूब शरबत हैं पीते।
सूखी नद की धार,नीर ढूंढे मृग चीते।
कहती रुचि करजोड़,दोपहर मुश्किल लगती।
परेशान हर जीव,धरातल ऐसी तपती।।


✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[16/01 7:10 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 16/01/2020
कुण्डलिया- ( *53*)
विषय - *दुनिया*

रहते दुनिया में कई ,जन्म जात दिव्यांग।
अलग जरा इंसान से , दिव्य शक्ति साष्टांग ।।
दिव्य शक्ति साष्टांग , न दिखते सुन्दर तन से।
रहते है विकलांग , जगत में हर नर मन से।।
सुवासिता संघर्ष , करें ये उपमा कहते।
विजय मार्ग के चिन्ह , सदा इनके पग रहते।।


कुण्डलिया -( *54*)
विषय - *तपती*
तपती छाती दूध की , माता हुई निहाल।
बेटा बाड़ प्रकोप से , ग्रास बनाये काल।।
ग्रास बनाये काल , वक्ष स्थल टपके अमरित।
आँचल में वो पुत्र , नही अब होता विचरित।।
सुवासिता बिन बाल , पुत्र मेरा वो जपती।
तड़पे बहुत अथाह , पीर से छाती तपती।।

           🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[16/01 7:16 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध। कुंडलियां शतकवीर।*
*दिन-- वृहस्पतिवार, दिनांक--१६/०१/२०२०*
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*५३-दुनिया*
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सारी दुनिया दंग हैं, देख देश का हाल।
जयचंदों की आज कल, लगी हुई चौपाल।
लगी हुई चौपाल, नित्य दंगे करवाती।
तोड़-फोड़, विध्वंस, कराती, आग लगाती।
मचा हुआ है शोर, हो रही मारा मारी।
जला रहे निज देश, सोचती दुनिया सारी।।
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*५४--तपती*
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चाहे जंगल हों घने, चाहे तपती रेत।
सैनिक पहरा दे रहे, पर्वत हो या खेत।
पर्वत हो या खेत, रोशनी या  अंधेरा।
गर्मी, वर्षा, शीत, लगाते निशि दिन फेरा।
सारी चिंता छोड़, मनाते हैं ये मंगल।
हो सागर अनजान, गगन हो, चाहे जंगल।।
~~~~~~~
*-विद्या भूषण मिश्र "भूषण"-*
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[16/01 7:17 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
 शतक वीर हेतु कुंडलियां
16/01/2020

दुनिया (53)
दुनिया में रहना सदा, मात-पिता के साथ।
 पार सड़क करते समय, पकड़ो उनका हाथ।
 पकड़ो उनका हाथ, वही है भगवन तेरे।
 कष्ट सहे दिन-रात, कभी भी मुँह ना फेरे।
 कह राधेगोपाल, संग हो मेरे मुनिया।
 मात-पिता के साथ, बनी बच्चों की दुनिया।।

 तपती (54)

तपती है जब रेत भी, जेठ मास में रोज।
 देखो लोगों का उड़ा, कैसे निशदिन निशदिंओज।
 कैसे निशदिन आेज ,रंग भी होता काला।
 श्वेद टपकता देख,रखो तुम पास दुशाला।
कह राधेगोपाल, नहीं वह कुछ कर सकती।
 जेष्ठ मास में रोज, रेत भी जब है तपती।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[16/01 7:22 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
16.01.2020

51-दुनियाँ

पुनिया दुनियाँ में रहे,पौध लगाओ खूब।
शुद्ध हवा मिलती रहे,हरी-भरी हो दूब।
हरी -भरी हो दूब,फूल फुलवारी फूले।
रसधर फल की माँग,बाग की कलियाँ झूले।
कहे कमल कविराज,खुशी से डोले सुनिया।
रंग -बिरंगे भाव,लिए दुनियाँ में पुनिया।
52-तपती

तपती धरती खोलती,उरतल के उद्गार।
सारा दिन जलती रही,लेकर जग का भार।
लेकर जग का भार,रात भर जगती रहती।
सोमपान की मार,भोर में उठकर सहती।
कहे कमल कविराज,कभी हो जाती परती।
वर्षा की दरकार,हरी हो‌ तपती धरती।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[16/01 7:30 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

53-दुनिया (16.01.2020)
दुनिया दिखती है पृथक, होती है कुछ और।
जिसमें तन-मन रम गया, नहीं सुढृढ़  वह ठौर।।
नहीं सुढृढ़ वह ठौर, छद्म है जगत बसेरा।
क्षणभंगुर यह लोक, कहें नहिँ तेरा-मेरा।।
सोलह आने सत्य, मान लें मुन्ना मुनिया।
जन्म मृत्यु इहलोक, नाम है जिसकी दुनिया।।


54-तपती
तपती कन्या सूर्य की, मनभावन यह नाम।
छोटी पुत्री सुंदरी, रूप अजब अभिराम।।
रूप अजब अभिराम, देखकर राजा मोहित।
नाम संवरण श्रेष्ठ, हस्तिनापुर अति शोभित।।
सूर्यदेव अनुसार, व्याह को जोड़ी जमती।।
सूर्य सुता दमदार, नाम जिसकी है तपती।।

कन्हैया साहू 'अमित'
[16/01 7:36 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
16/01/2020:: वीरवार

दुनिया

अलबेली दुनिया दिखे, अम्बर के उस पार।
करते हैं अठखेलियाँ, बदली के अम्बार।।
बदली के अम्बार, नज़ारा  अद्भुद प्यारा।
करते लहर किलोल, सिंधु का लगे किनारा।।
किश्ती वायुयान, तैरतीं जहाँ नवेली।
अम्बर के उस पार, दिखे दुनिया अलबेली।।

तपती
जलती वीरों की चिता,तपती अब भी राख।
आतंकी बन आज क्यूँ,मिटा रहे हो साख।।
मिटा रहे हो साख, बने फिरते हो हीरो।
जलता देखे रोम, बजाता वंशी नीरो।।
देश भावना आज,नहीं क्यूँ मन में पलती।
हँस कर दी थी जान, चिता वो जिनकी जलती।।
              रजनी रामदेव
                 न्यू दिल्ली
[16/01 7:58 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतकीय कुंडलियां प्रतियोगिता
16/1/2020
दिन-गुरवार

(53)दुनिया

 दुनिया  में  मिलता नही,  कोई सच्चा मीत।
  स्वार्थ मन में रख रहे , करते झूठी  प्रीत।
करते हैं  वो प्रीत, बोल कर मीठी  बोली।
   बन जाये जब काम , लगे विष बोली घोली।
 कह प्रमिला कविराय,   चकित  है  देखे  मुनिया।
   जैसी दिखती मुझे, नही वैसी है दुनिया।।

(54)तपती

 तपती धरती जेठ की,   किया अग्नि में वास।
   पार्वती  ने फिर किये,   घोर कठिन उपवास।
 घोर कठिन उपवास, किये  पति  पाऊँ  शंकर
 नाम जपें दिन रैन ,लगे न काँटा कंकर।
 कह  प्रमिला कविराय,   नाम शिव का  ही जपती।
 खड़ी रहें इक पांव, जहां धरती हो तपती।।

 प्रमिला पान्डेय
[16/01 8:00 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
16-1-2020

दुनिया तेरी है गजब, गजब तू नँदकुमार ।
तेरी लीला है गजब,जाने तू करतार ।।
जाने तू करतार, नहीं है तेरा सानी।
माँगे हाथ पसार,भरे झोली वरदानी ।
माँगू यह वरदान,रोय मत कोई मुनिया
एक नजर तो देख, श्याम जी तेरी दुनिया ।।

तपती

तपती धरती हो भले, जाड़े की हो मार ।
हिम शिखरों पे हैं खड़े,सैनिक पहरेदार ।।
सैनिक पहरेदार, जान है देने वाले।
अमर तिरंगा बोल, चले धुन में मतवाले ।
मेंहदी वाले हाथ, सदा करती है विनती।
शीलत करदो राम,धरा है जलती तपती ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[16/01 8:11 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला प्रणाम।
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए।
डॉ श्रीमती कमल वर्मा
कुंडलियाँ क्र 57 
विषय _दुनियाँ
आये दुनियाँ में सभी,रख सन्मुख कुछ ध्येय।
 पूरा प्रयत्न जो करें,पाते ही है श्रेय।
पाते ही है श्रेय,कभी व्यर्थ कहाँ जाता।
तेरे भले न आय,और के जरूर आता।
कमल न कुछ भी सोच,करे जा दिल जो भाये।
गिनती होता कर्म,कौन छुपा कहीं आये।

कुंडलियाँ क्र 58
 विषय _तपती
गरमी आयेगी सुनो,माघ माह के जाय।             तपती तरसेगी धरा,छांव ढूँढती हाय।
छांव ढूँढती हाय,पेड कोई मिल जाता,
पंछी बैठे डाल,मधुर सी धुन में गाता।
कहे कमल कर जोड़,दिखे कहाँ शीत,नरमी।
छांव  ढूँढता जीव,देख जब आये गरमी।
[16/01 8:15 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
१६/१/२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (५३)

विषय-दुनिया
सारी दुनिया देखती , आँखो का ये हास
अँदर डाला नही दिखे ,काजल कितना पास
काजल कितना पास , कोर के भीतर रहता ,
मुझ से सुंदर नैन , सदा गर्वित हो कहता ,
कहे कुसुम ये भेद  ,बात है कितनी न्यारी
घट में रहते ईश , ढूंढ़ती दुनिया सारी ।।

कुण्डलियाँ (५४)

विषय-तपती
हरता तपती ताप को , माँ पर श्रृद्धा भाव ,
सुमिरन हो आठों पहर , मानस  रख तू चाव ,
मानस रख तू चाव ,आस पूरित हो तेरी ,
कहती माँ सब छोड़ , शरण में आजा मेरी ,
कहे कुसुम जो ध्यान ,विनय से उसको करता ,
उनको माँ की छाँव  , मात ही संकट हरता ।।

कुसुम कोठारी।
[16/01 8:18 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*

*दिनाँक- 11/01/20*
कुण्डलिया(45)
विषय- गहरा

गहरा रिश्ता जोड़कर, छोड़ न देना साथ।
रूठनि मत रूठना, दे दो अपनी हाथ।
दे दो अपनी हाथ, प्रिये तेरा हो जाऊँ।
तुमको पूजूँ और, सदा तुमको ही गाऊँ।।
एक लगाये आस, तुम्हारे खातिर ठहरा।
रिश्ता तुमसे आज, जुड़ा है ज्यादा गहरा।।

कुण्डलिया(46)
विषय- आँगन

भाई से भाई अगर, करे कभी तकरार।
आँगन में दीवार हो, वह कैसा परिवार।।
वह कैसा परिवार, स्वार्थ पलता हो जिस घर।
जिस घर होता प्यार, वहाँ बसते हैं ईश्वर।।
कभी न आये द्वेष, जमें मत मन में काई।
सभी करे गुणगान, रहे ऐसा घर भाई।।

*दिनाँक- 12/01/20*
कुण्डलिया(47)
विषय- आधा

जैसे आधा चाँद है, वैसे मैं हूँ आज।
आ जाओ मेरे लिए, छोड़ जगत से लाज।।
छोड़ जगत से लाज, बुरी है दुनिया सारी।
समझे क्या वे प्रीति, जगत खुद से है हारी।।
तेरे मेरे बीच, बने मत कोई बाधा।
आ जाओ मनमीत, तुम्हारे बिन हूँ आधा।।

कुण्डलिया(48)
विषय- यात्रा

यात्रा करने हम यहाँ, आये हैं इस लोक।
जाना है सब छोड़कर, करें भला क्यों शोक।।
करें भला क्यों शोक, सत्य है तो अपनायें।
जीवन के दिन चार, झूमकर नाचे गायें।।
सदा जलायें दीप, घटायें तम की मात्रा।
ऐसे ही खुशहाल, सफल हो जाये यात्रा।।


रचनाकार-उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)
[16/01 8:33 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*कुण्डलियाँ(५३)*
*विषय-दुनिया*

अपनी दुनिया में रमे, दुनिया के सब लोग।
तृष्णा माया लोभ में,रहे दुखों को भोग।
रहे दुखों को भोग,ये दुनिया आनी जानी।
चार दिनों का साथ,मिटी फिर सारी कहानी।
कहती'अभि'निज बात,लगे सुंदर ये जितनी।
कभी चले न संग, लगे चाहे कितनी अपनी।

*कुण्डलियाँ-(५४)*
*विषय-तपती*


तपती धरती कह रही,सबसे बारम्बार।
मानव अब तो मान लें,होगी तेरी हार।
होगी तेरी हार,नदी -नाले सब सूखे।
बंध्या होती धरा,मरोगे सब ही भूखे।
कहती'अभि'निज बात, प्रदूषित होती धरती।
बदला मौसम चक्र,दिनों-दिन धरती तपती।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[16/01 8:45 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध --छंदशाला
शतकवीर हेतु कुंडलिया
16/01/2020

50-- *बिखरी*
बिखरी क्यूँ है जिन्दगी?,रखो स्वयं विश्वास ।
नहीं अकेला कारवाँ,पथिक सभी हैं पास ।
पथिक सभी हैं पास,खिले चेहरे खुशी से ।
सभी चले हैं साथ, कदम उठे हैं सभी के ।
बदला पाखी देश, समय की गति है निखरी।
सोच समझ कर खेल ,संवरे किस्मत बिखरी ।
पाखी

51-- *गलती*

गलती सबकी देखिये ,रख मन में मृदु भाव ।
सही गलत होते सभी ,पड़े इनका प्रभाव ।
पड़े इनका प्रभाव,बदलते सभी नजारे।
खुशियों का माहौल,बनो सब ही के प्यारे।
है यह आँगन द्वार,बड़ों की है सब चलती।
पाखी बचता कौन,करें सब मीठी गलती।
मनोरमा जैन पाखी
[16/01 8:45 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध --छंदशाला
शतकवीर हेतु कुंडलिया
16/01/2020

50-- *बिखरी*
बिखरी क्यूँ है जिन्दगी?,रखो स्वयं विश्वास ।
नहीं अकेला कारवाँ,पथिक सभी हैं पास ।
पथिक सभी हैं पास,खिले चेहरे खुशी से ।
सभी चले हैं साथ, कदम उठे हैं सभी के ।
बदला पाखी देश, समय की गति है निखरी।
सोच समझ कर खेल ,संवरे किस्मत बिखरी ।
पाखी

51-- *गलती*

गलती सबकी देखिये ,रख मन में मृदु भाव ।
सही गलत होते सभी ,पड़े इनका प्रभाव ।
पड़े इनका प्रभाव,बदलते सभी नजारे।
खुशियों का माहौल,बनो सब ही के प्यारे।
है यह आँगन द्वार,बड़ों की है सब चलती।
पाखी बचता कौन,करें सब मीठी गलती।
मनोरमा जैन पाखी
[16/01 8:46 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(53)
दुनिया
अचरज से अति ही भरे, दुनिया के सब खेल।
पल-पल  बदले  रंग  हैं ,धूप- छांँव  के  मेल ।
धूप- छांँव  के  मेल, यहाँ   मानव  का   मेला
फूलों पर जो  चला ,आग से भी नित  खेला।
कह आशा निज बात, हुआ वैरागी सब तज।
फिर भी चाहे जनम, यही अद्भुत  है अचरज।


(54)
तपती

 गरमी की ऋतु में बड़ी ,तपती  धरा प्रचंड।
 जलता रवि है दे रहा , मानो  सब को दंड ।
 मानो  सब  को  दंड, नदी -नाले हैं   सूखे।
 प्यासे    घूमें   जीव,  मरें  गरमी  में   भूखे ।
 आशा करे विचार ,अगर रवि बरते नरमी।
 घटे जरा सा ताप ,खतम  हो  जाए  गरमी।


आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
[16/01 8:46 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक- 15.1.2020
कुंडलिया (51) *गलती*

गलती  छोटी  या  बड़ी, हो जाए एकाध।
फिर से मत दुहराइए, बन जाती अपराध।।
बन जाती अपराध, क्षमा हर बार न होती।
ले  लो  इनसे सीख, बनेगा जीवन मोती।।
प्रांजलि कहती भूल, रात दिन हमको छलती।
करना  सदा  सुधार, सिखाती हरदम गलती।।

कुंडलिया (52) *बदला*

बदला मौसम देखिए, अब ठिठुरन का अंत।
हुई  विदाई  शीत की, द्वारे  खड़ी  वसंत।।
द्वारे  खड़ी  वसंत, करें सब उसका स्वागत।
खुशियाँ मिलें अनंत, हृदय उल्लास नवागत।।
कह प्रांजलि हरषाय, मिलन मन मेरा मचला।
आ जाओ अब मीत, आज है मौसम बदला।।

दिनाँक- 16.1.2020
कुंडलिया (53) *दुनिया*

दुनिया दारी की समझ, रही हमेशा दूर।
भोला-भाला  बालमन, खेले  माटी  धूर।।
खेले  माटी  धूर,  खिलौने  लगें  सुहाने।
वह कागज की नाव, पाँव हैं अभी जमाने।।
मधुर  तोतले  बोल, मात  से  बोली  मुनिया।
गुड्डे-गुड़िया खेल, उन्हें क्या करना दुनिया ।।

कुंडलिया (54) *तपती*

धरती तपती रात दिन, आती ऋतु जब ग्रीष्म।
हरा-भरा रखना  सदा, करो प्रतिज्ञा भीष्म।।
करो प्रतिज्ञा भीष्म, नहीं  काटोगे  जंगल।
और लगाओ पेड़, जगत का होगा मंगल।।
कह प्रांजलि समझाय, नहीं दुहराना गलती।
कर लो भूल सुधार, तवे सी तपती धरती।।

____पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि "
[16/01 8:47 PM] सुधा सिंह मुम्बई: 27:
पड़ोसी :
नगरों में जबसे बसे, सबसे हैं अनजान!
कौन मेरे पड़ोस में, नहीं जरा भी ज्ञान!!
नहीं जरा भी ज्ञान, सुनो जी कलयुग आया!
भूले अपना कर्म, पड़ोसी धर्म भुलाया!!
कहे सुधा सुन बात , शूल मिलते डगरों में!
रहे पड़ोसी पास , ध्यान रखिए नगरों में!!
समीक्षा हेतु
सुधा सिंह
[16/01 8:54 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -53
दिनांक -16-1-20

विषय -दुनिया

रहते दुनिया में सदा, तरह तरह के लोग l
आते वे करने यहाँ,सभी करम के भोग l
सभी करम के भोग, करे जो वैसा पाते l
दुनिया की ये रीत, साथ कुछ कब ले जाते l
कहती कहाँ सरोज, सुने बस सच जब कहते
जीवन के दिन चार, चलो मिल जुल कर रहते l

कुंडलियाँ -54
दिनांक -16-1-20

विषय -तपती

गरमी में तपती धरा , सहती सूरज ताप l
बोझा ढोती है सदा, नहीं करे संताप l
नहीं करे संताप, गोद में सबको रखतीl
करे सभी से प्यार, सुधा रस ये कब चखती
कहती सुनो सरोज,  कष्ट से बढ़ती नरमी l
तप तप बनी महान, सदा सहती है गरमी l

सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[16/01 8:57 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
कुंडलियां शतक वीर हेतु
दिनांक 16 /01/ 2020
कुंडलियाँ
 दुनिया
दुनिया अनुपम है बड़ी, भिन्न-भिन्न हैं लोग ।
कुछ गोरे कुछ साँवले भाँति- भाँति के रोग।।
भाँति-भाँति  के रोग ,लगे है कभी सुहानी।
 रंग देखो अनेक ,कहे अनसुनी कहानी।।
 पूछे कोई नाम, प्यार से कहते मुनिया।
 मनभावन है धाम ,सुखद लगती ये दुनिया।।

 तपती

तपती धरती है बड़ी ,जब पड़ती है धूप ।
वसुधा है मुरझा रही, रवि ने बदला रूप।।
 रवि ने बदला रूप, किरण तीखी बरसाये।
 मीठी लगती सूप, स्वादु मन फिर हरषाये।।
 कहे निरंतर बात, रंग सफेद है फबती।
 बढ़ जाए जब ताप, धरा उष्मित है तपती।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[16/01 8:59 PM] नीतू ठाकुर 'विदुषी': कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतक वीर हेतु

दिनाँक- 16/91/2020
*दुनिया*

मैली दुनिया को करें, मन के मैले लोग।
ऐसा करें कुकर्म जो, कभी न कटते भोग।।
कभी न कटते भोग, रोग सहती है काया।
लूट लिया  संसार, हाथ खाली ही पाया।।
हँसते पापी रोज, देख निर्धन की थैली।
बुझे ज्ञान के दीप, सोच होती तब मैली।।

*तपती*

धरती तपती देख कर,बरसे बादल नीर।
मौन करे संवाद जब, समझे मन की पीर।।
समझे मन की पीर, सजे मौसम मनभावन।
कभी बसंती धूप, कभी झूमे है सावन।।
बदले रूप अनेक, स्वप्न आँखों में भरती।
पल पल रही निहार, व्यथित नभ को यह धरती।।

रचनाकार का नाम- नीतू ठाकुर 'विदुषी'
[16/01 9:14 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: विनती

Date: 16 Jan 2020

Note:
विनती
दीन दयाल मेरी सुनोे,सुनिये मेरी नाथ।
कर जोड़े हूँ मै खड़ी,  मेरे प्रभु तुम साथ।
मेरे प्रभु तुम साथ,खड़ी मै द्वार तुमारे।
मेरी सुनो पुकार,हरो दुख सदा हमारे।
दुखियाँ मै हूँ आज, हूँ दीन दुखी मै हीन
हे परमेश्वर आय,द्वार खड़ी हूँ  मै दीन

शिवकुमारी। शिवहरे


Title: भारत

Date: 16 Jan 2020

Note:
(No Text Provided...)

भारत माँ खुद रो रही,देख स्वयं का हाल।
आजादी के नाम पे,    दंगे और बवाल।
दंगे और बवाल,  प्रशासन सच ही बहरा
भारत का ये,हाल, लगता निर्दोषी पहरा
देख सखी ये आज,सुनो भारत की हालत
हम तो आज गुलाम,कहाँ आजादी  भारत

शिवकुमारी  शिवहरे


Title: छाया

Date: 16 Jan 2020

Note:
(No Text Provided...)

छाया पेड़ो की कहाँ,यहाँ न पीपल छाँव।
वृक्ष नही वन मे रहे ,कहाँ मिलेगी ठाँव।
कहाँ मिलेगी ठाँव,  काट दिये  गये जंगल।
नही बचे है पेड़ ,धरा को किया अमंगल।
वृक्ष बिना न जीव,न मिलती वन की माया।
पेड़ दिये है काट, न मिलती वृक्ष की छाया।

शिवकुमारी। शिवहरे


Title: निर्मल

Date: 16 Jan 2020

Note:
पावन ,निर्मल ,साफ है, गंगा निर्मल धार।
सब नदियों से बड़ी, करती भव से पार।
करती भव से पार, बहे है निर्मल धारा।
मृत अस्थियाँ डाल, हमेशा मृतकों तारा।
गंगा जल ले जाय, सदा से आता सावन।
शिव शंकर नहलाय, जल है निर्मल पावन।

शिवकुमारी शिवहरे

संशोधित
[16/01 9:14 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर
हेतु
★★★★★★★★★★★★★★★★★                                                                              *विषय..........दुनिया*
  विधा..........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मानव दुनिया में बसा ,लगते सुंदर लोग।
कोई  देता  ज्ञान  तो ,कोई करता भोग।
कोई करता भोग,लगें वह दूजा  मानुष।
सबका मालिक एक,नेक कर पावे आयुष।
जोड़े कर श्रीवास,बनो मत ऐसा दानव।
पावन कर लो धाम,करो सब नेकी मानव।
               ★★★★★★
              *विषय......तपती*   
                ★★★★★★
धरती तपती धूप से,मेघ गरज बरसात।
धरा पान रस का करें,पाये  पानी  पात।
पाये  पानी  पात,दिखें सुंदर  हरियाली।
कोयल कागा भाष,चुनें है दाना प्याली।
कहता है श्रीवास,धरा अति अनुपम लगती।
आया  सावन  मास, नीर  से  शीतल धरती।
                ★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[16/01 9:18 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*.....

53---- *दुनियाँ*
दुनियाँ तो  रँग मंच है, अलग  अलग किरदार
अलग अलग अभिनय करें , अलग अलग व्यवहार
अलग अलग व्यवहार , दिखे कोई खलनायक
नायक की पहचान , मधुर सा हो वो गायक
कोई करे विलाप , न जिसका कोई सुनिया
अलग अलग किरदार , अभिनय करती  दुनियाँ ।

54--- *तपती*

तपती धरती देख कर , मेघ हुआ बेचैन
हृदय उमड़ बाहर हुआ ,चिल्लाये दिन रैन
चिल्लाये दिन रैन , धूलिकण से लड़ी लड़ाई
बिजली देती साथ ,सही न जाए बड़ाई
चमक चमक मुस्काय , मेघ सँग गर्जन करती
बरसे झमाझम मेघ ,देख कर तपती धरती ।।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
[16/01 9:27 PM] पाखी जैन: संशोधित ,
पुनः प्रेषित

कलम की सुगंध --छंदशाला
शतकवीर हेतु कुंडलिया
16/01/2020

50-- *बिखरी*
बिखरी क्यूँ है जिन्दगी?,रखो स्वयं विश्वास ।
नहीं अकेला कारवाँ,सभी पथिक हैं पास ।
 सभी पथिक हैं पास, चेहरे खिले खुशी से ।
सभी चले हैं साथ,  कदम मिले हैं सभी से ।
बदला पाखी देश, समय की गति है निखरी।
सोच समझ कर खेल , किस्मत संवरे बिखरी ।
पाखी

51-- *गलती*

गलती सबकी देखिये ,रख मन में मृदु भाव ।
सही गलत होते सभी , इनका पड़े प्रभाव ।
इनका पड़े  प्रभाव,बदलते सभी नजारे।
खुशियों का माहौल,बनो सब ही के प्यारे।
है यह आँगन द्वार,बड़ों की है सब चलती।
पाखी बचता कौन,करें सब मीठी गलती।
मनोरमा जैन पाखी
[16/01 9:29 PM] अभिलाषा चौहान: *संशोधित*



*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*कुण्डलियाँ(५३)*
*विषय-दुनिया*

अपनी दुनिया में रमे, दुनिया के सब लोग।
तृष्णा माया लोभ में,रहे दुखों को भोग।
रहे दुखों को भोग,ये दुनिया आनी जानी।
चार दिनों का साथ,बचे न कोई कहानी।
कहती'अभि'निज बात,लगे सुंदर ये जितनी।
कभी चले न संग,लगे है कितनी अपनी।

*कुण्डलियाँ-(५४)*
*विषय-तपती*


तपती धरती कह रही,सबसे बारम्बार।
मानव अब तो मान लें,होगी तेरी हार।
होगी तेरी हार,नदी -नाले सब सूखे।
बंध्या होती धरा,मरोगे सब ही भूखे।
कहती'अभि'निज बात, प्रदूषित होती धरती।
बदला मौसम चक्र,दिनों-दिन धरती तपती।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[16/01 9:39 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 16.01.2020 (गुरूवार) संशोधित

53-   दुनिया
**********
दुनिया का मेला लगा, सब उसमें मशगूल।
क्या होगा कल को यहाँ, बात गए सब भूल।
बात गए सब भूल, सभी पर छायी मस्ती।
सबको इसका ज्ञान, जान है सबसे सस्ती।
"अटल" जानते बात, खुश यहाँ मुन्ना-मुनिया।
कल का किसको ज्ञान, न जाने क्या हो दुनिया ?
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏


54-   तपती
**********
तपती पूजा-अर्चना, करता योगी योग।
संयम से जो भी रहा, उसे न लगते रोग।
उसे न लगते रोग, सदा वह खुश रहता है।
हर मौसम अनुकूल, सहजता से सहता है।
"अटल" आत्मविश्वास, छाप उसकी ही छपती।
शुद्ध आचरण साथ, तपस्या उसकी तपती।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[16/01 9:53 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतकीय कुंडलियां प्रतियोगिता
16/1/2020
दिन-गुरवार

(53)दुनिया

 दुनिया  में  मिलता नही,  कोई सच्चा मीत।
  स्वार्थ मन में रख रहे , करते झूठी  प्रीति।
करते झूठी प्रीति, बोल कर मीठी  बोली।
   बन जाये जब काम , बोलते विष रस घोली।
 कह प्रमिला कविराय,   चकित  है  देखे  मुनिया।
   जैसी दिखती मुझे, नही वैसी है दुनिया।।

(54)तपती

 तपती धरती जेठ की,   किया अग्नि में वास।
   पार्वती  ने फिर किये,   घोर कठिन उपवास।
 घोर कठिन उपवास, किये  पति  पाऊँ  शंकर
 नाम जपें दिन रैन ,लगे न काँटा कंकर।
 कह  प्रमिला कविराय,   नाम शिव का  ही जपती।
 खड़ी रहें इक पांव, जहां धरती हो तपती।।

 प्रमिला पान्डेय
[16/01 9:57 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर
हेतु
★★★★★★★★★★★★★★★★★                                                                              *विषय..........दुनिया*
  विधा..........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मानव दुनिया में बसा ,लगते सुंदर लोग।
कोई  देता  ज्ञान  तो ,कोई करता भोग।
कोई करता भोग,लगे वह दूजा  मानुष।
सबका मालिक एक,नेक कर पावे आयुष।
जोड़े कर श्रीवास,बनो मत ऐसा दानव।
पावन कर लो धाम,करो सब नेकी मानव।
               ★★★★★★
              *विषय......तपती*   
                ★★★★★★
धरती तपती धूप से,मेघ गरज बरसात।
धरा पान रस का करें,पाये  पानी  पात।
पाये  पानी  पात,दिखें सुंदर  हरियाली।
कोयल कागा भाष,चुनें  है दाना डाली।
कहता है श्रीवास,धरा अति अनुपम लगती।
आया  सावन  मास, नीर  से  शीतल धरती।
                ★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा

(संशोधन पश्चात पुनः प्रेषित)
[16/01 10:06 PM] गीतांजलि जी: *कुण्डलिया शतकवीर - संशोधित*

दिनांक १६/०१/२०

(५३) दुनिया

सुनती चुप हो मंथरा, दुनिया देती दोष।
कलुष कुटिल कुलटा कहें, क्रोध करें कटु रोष।
क्रोध करें कटु रोष, बरस चौदह नर नारी।
इक कोने में बैठ, कटें दिन, निश जग सारी।
राम-दरस की आस, रहे नित मन में बुनती।
उठ उठ देखे द्वार, तनिक ध्वनि लघु जो सुनती।

(५४) तपती

तपती विरहन ताप में. अन्य न पाये जान।
सिमरन मन में मीत का, मुख पर मृदु मुस्कान॥
मुख पर मृदु मुस्कान, निशा वासर कर सेवा।
रहें कुशल पति प्राण, मनाती नित विधि देवा॥
लौटें लक्ष्मण लाल, उर्मिला हरि हर जपती।
देते प्रभु आशीष, सती सत-तप शुचि तपती॥

गीतांजलि ‘अनकही’
[16/01 10:08 PM] डॉ मीना कौशल: दुनिया

दुनिया में रहते सदा,विविध भाँति के लोग।
अपनी ढपली राग हैं,अपने-अपने भोग।।
अपने -अपने भोग,योग का बाजे डंका।
बच्चों के हैं खेल ,निराले चंका बंका।
गुड्डा गुड़िया के मेले में छोटी मुनिया।
बालवृन्द की रही ,निराली अपनी दुनिया।।

तपती

तपती है धरती प्रखर,ज्येष्ठ माह मध्याह्न।
पूर्वाह्न से ग्रीष्ममय ,आकुल है अपराह्न।।
आकुल है अपराह्न,शीत विपरीत सदा है।
दीन दुखी के लिए,विपद्  ही सर्वदा है।
शीत समय ठिठुरे ,धरती गर्मी में जलती।
चले भयावह हवा,ग्रीष्म में धरती तपती।।
डा.मीना कौशल
[16/01 10:09 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
15/1/2020
                 
                 *(51) गलती*

गलती करके रे मना,पीछे है पछताय।
समझ बूझ के ही चले,गलती  नाही पाय।
गलती नाही पाय, धीरता मन मे धारण।
सफल होत है काज,नीति होती है कारण।
कहती मधुर विचार,निडरता मन मे पलती।
करो नियम से काम, कभी नाही हो गलती ।

                   (52)बदला


कितना बदला है अभी,वर्तमान परिवेश ।
खान-पान के संग ही, पहनावा अरु वेष।
पहनावा अरु वेष,भारती मात हमारी ।
भारतीय परिधान, सभी को लागे प्यारी ।
कहती मधुर विचार, कभी भी बदलो इतना।
लगे सभी को नीक,जमाना बदले कितना।
                 (53)दुनिया

दुनिया मे सब एक से ,होते नाही यार।
पाँच अंगुली एक सी,करते कब व्यवहार ।
करते कब व्यवहार,सभी ही काम करे हैं ।
मुट्ठी बंधी एक,एकता पाठ देत है।
कहती मधुर विचार, रहे घर मुन्ना मुनिया।
बंधे एकता डोर, एक हो पूरी दुनिया ।
                  (54)तपती

पावस बूँदें जब गिरे,धरा नेह हरषाय।
तपती धरती का जिया,हरा भरा हो जाय ।
हरा भरा हो जाय, धरा की प्यास बुझाए।
नव किसलय कोपले,खिले मन को महकाए।
कहे मधुर कर याद,भरी हरियाली  मावस।
सावन भादों रात,डराती घड़ियाँ पावस।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

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