Saturday, 11 January 2020

कुण्डलियाँ छंद ...गहरा , आँगन

[11/01 6:05 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध  छंदशाला* 
.           कुण्डलियाँ शतकवीर हे
 .          दिनांक - ११.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-            *गहरा*
मानस   मानुष   प्रीत  से,  करे  सृष्टि  संचार!
सागर  से   गहरा   वही,  ढाई   अक्षर  प्यार!
ढाई   अक्षर   प्यार,  युगों  से  बहे  धरा  पर!
थके लेखनी काव्य, लिखे कवि छंद बनाकर!
शर्मा  बाबू  लाल, मिले  मन  अय  से पारस!
सच ही गहरा प्यार, निभाओ तन मन मानस!
.                  ••••••••••  
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-.            *आँगन*
तुलसी चौरा  देहरी, आँगन  चौक  निवास!
राम 'राम बोला' तभी, वह नवजात सुभाष!
वह नवजात सुभाष, दंत द्वय  मुख में धारे!
जन्म भुक्ति नक्षत्र, मात पितु  सोच विचारे!
शर्मा  बाबू  लाल, अमर  हो  मरती हुलसी!
सूने आँगन  तात, बाल मन  भटके तुलसी!
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[11/01 6:10 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया*
41)गागर

गागर सागर है भरा , रहे हृदय में धीर।
धारण धीरज जो करे , होय वही नर वीर ।।
 होय वही नर वीर , खोय ना जो मन संयम ।
बने स्वयं ही भाग्य ,सतत करता  जा उद्यम‌ ।।
सुनो धरा की बात , बढ़ो तुम सबसे आगर ।
रखो सदा संतोष , बूँद से भरता गागर ।।

सरिता 42)

सरिता कलकल नित बहे , निश दिन संध्या भोर ।
माता जीवन दायिनी , निश्छल ममत्व कोर ।।
निश्छल ममत्व कोर , छलकता रहता अविरल ।
होवे मातु सदृश्य ,स्नेहमय भावुक वत्सल ।।
कहे धरा  कर जोड़ ,  सदा रक्षित हो वनिता ।
माँ सम दोउ पवित्र ,  निरंतर बहती सरिता ।।


*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[11/01 6:15 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 11/01/2020
दिन - शुक्रवार
43 - कुण्डलिया (1)
विषय - गहरा
****************
सागर सा गहरा रहे ,अपने मन की थाह ।
जब मन में ठहराव हो ,तब मिलती है राह ।
तब मिलती है राह , बनो गम्भीर जलधि सा ।
है अधीर व्यवहार  ,दानवी कोई सुरसा ।
रखें पूर्ण ही ज्ञान , छलकता अधजल गागर ।
रखिए हृदय विशाल , वृहद होता ज्यों सागर ।।
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44 - कुण्डलिया (2)
विषय - आँगन
****************
होता जब परिवार में ,प्रेम पूर्ण व्यवहार ।
मिलजुल रहते साथ सब ,उत्तम ही संस्कार ।
उत्तम ही संस्कार ,नहीं फिर टूटे आँगन ।
सुरभित पुष्प समान ,महकता सबका जीवन ।
हो मुश्किल आसान ,मनुज फिर कभी न रोता ।
बँधा एक ही सूत्र , भवन अति सुंदर होता ।।

*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[11/01 6:18 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
११/१/२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डियाँ (४३)

विषय-गहरा
गहरा तम छाई निशा ,श्याम  घटा घनघोर ,
गरज-गरज हुंकारते , हवा मचाए शोर ,
हवा मचाए शोर , तड़ित कड़के अति चमके,
सांय-सांय बह वायु  , गगन घन बरसे जमके ,
कहे कुसुम ये अगम  ,  समय विनाश का ठहरा ,
निसर्ग का प्रतिकार ,  सदा होता है गहरा ।।

कुण्डियाँ (४४)

विषय-आँगन
आँगन खेले लाडला , हँसे देख कर नंद ,
बाहर मालिन बैठ कर , बेच रही है कंद ,
बेच रही है कंद , श्याम को निरखन आई ,
भर-भर देती हाथ , साथ भर मेवे लाई ,
कहे कुसुम ये बात , लाल से महका प्राँगण ,
फूल खिले चँहु ओर,  यशोदा माँ के आँगन ।

कुसुम कोठारी।
[11/01 6:19 PM] सरला सिंह: *11.01.2020 (शनिवार )*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-11/01/20*
*विषय: गहरा , आंगन
*विधा कुण्डलियाँ*


     ‌‌ *43-गहरा*

 मानव मन गहरा सखी,सके न कोई माप।
सागर का भी नाप है,मानव मन बेनाप।
मानव मन बेनाप,कभी लगता है सुलझा।
सुलझे जब तक बात,लगे यह उतना उलझा।
कहती सरला आज,बने मानव क्यों दानव।
उलझी ही है बात,सका सुलझा कब मानव।।

    *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
    *दिल्ली*

   *44-आँगन* 

  तेरे आंगन की कली, मैया मैं हूं आज,
  करना नहीं दूर कभी,दिल में रखना साज।
  दिल में रखना साज,कभी जब बड़ी बनूंगी।
  तेरा ऊंचा  नाम ,  मात  मैं  सदा  करूंगी।
  सरला कहती आज,साथ चलना बस मेरे।
  दुनिया की क्या बात, चांद सूरज भी तेरे।।

 *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
   *दिल्ली*
[11/01 6:21 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला, प्रणाम। 🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए। 
कुंडलियाँ क्र65
विषय गहरा
  होता गहरा स्नेह है, माँ का बेटी संग।
रहता बेटी रूप में,एक मातु का अंग।। 
एक मातु का अंग,साथ संवेदन रहती। 
दोनों आपस भाव,सभी दिल से है सहती। 
 कमल रेशमी बंध,बडा मोहना सुनहरा। 
कोई  सके न तोड़ ,प्यार है इतना गहरा। 

 कुंडलियाँ क्र66
विषय आंगन 
 डोली आंगन से उठी,देती यह संदेश। 
जाती मैं तो बाबुला,अपने पी के देश। 
अपने पी के देश,हदय है मैने छोडा,           
 निभा गई मैं रीति,मातु से मुख है मोडा।                      कमल जगत की रीत,बडी दुख दे हमजोली, 
तज के आंगन जाय,द्वार पी के जब डोली। 
रचना कार, डॉ श्रीमती कमल वर्मा
[11/01 6:21 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-

दिनाँक - 11.01.2020 (शनिवार )

(43)
विषय - गहरा

इतना  गहरा  प्रीत  है, कोई  थाह न पाय।
रात-दिवस बस याद में,सारी उम्र बिताय।।
सारी उम्र बिताय,समझ किसको है आता।
पागल मद में चूर,यूँहि दिन रात बिताता।।
कहे  विनायक  राज, प्रीत है तारें जितना।
लगे प्रीत का रंग, जहां  में  गहरा  इतना।।

(44)
 विषय - आँगन 

क्यारी आँगन हैं सजे,सबका मन ललचाय।
घर में प्यारा  फूल ये, सुन्दर  लगे  सुभाय।।
सुन्दर लगे  सुभाय, महकता आँगन सारा।
फूलों सा  मुस्कान, यहाँ  परिवार  हमारा।।
कहे  विनायक  राज, करो  फूलों  से यारी।
महके  सदा  बहार, घरों में सुन्दर क्यारी।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[11/01 6:25 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

29. गहरा

गहरा जिनका भाव है, निर्मल शान्त स्वभाव।
उर अन्तर में जो सदा, रखते हैं सद्भाव।।
रखते हैं सद्भाव, प्यार दुनिया से करते।
करते जब वे बात, फूल अधरों से झरते।।
कह अंकित कविराय, स्वयं पर रखते पहरा।
रहता उनका हृदय, बन्धु सागर से गहरा।।

30. आँगन

खींचो आँगन में नहीं, आप कभी दीवार।
मिलकर आपस मे सभी, करो परस्पर प्यार।।
करो परस्पर प्यार, भेद मत खुद मे करना।
प्रेम, दया का भाव, हमेशा उर में भरना।।
कह अंकित कविराय,प्यार से इनको सींचो।
आप कभी दीवार, नहीं आँगन में खींचो।।

31. वेणी

वेणी बालों की सजी, रही पीठ पर झूल।
वेणी वाली देखकर, रही खुशी से फूल।।
रही खुशी से फूल, झूमती है लहराती।
पिया मिलन के गीत, मधुर स्वर में है गाती।।
कह अंकित कविराय, बहाती हृदय त्रिवेणी।
मस्ती में उस ओर, पीठ पर झूले वेणी।।

32. कुमकुम

कुमकुम का करके तिलक, भेज रही है मात।
रक्षा करने देश की, जाओ मेरे तात।।
जाओ मेरे तात, बुलातीं हैं सीमाएं।
और तुम्हारी बाट, जोहतीं दसों दिशाएं।।
कह अंकित कविराय, देश की रक्षा हित तुम।
जाओ मेरे लाल,साथ लेकर ये कुमकुम।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[11/01 6:30 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
11/01/2020::शनिवार
गहरा
संगत ज्ञानी की भली, करे ज्ञान की बात।
गहरा सागर ज्यूँ रहे , भरे हुए ज्वाहरात।।
भरे हुए ज्वाहरात, गूढ़ सी करे समीक्षा।
कर देता तैयार, सामने रहे परीक्षा।।
धीरे धीरे चढ़े, सुनहरी सी ये रंगत।
कर देती बर्बाद, मूढ़मति की हो संगत।।

आँगन
तुलसी आँगन रोपिये, करिए नित्य प्रणाम।
दो पाती सु-प्रसाद से, रोग न आवे धाम।।
रोग न आवे धाम, बहुत ही महिमा भारी।
कहते सालिग राम, लगें उनको हैं प्यारी।।
देखी जब छवि श्याम, जा रहीं वृंदा हुलसी।
करते सदा निवास, साथ कातिक में तुलसी।
            रजनी रामदेव
               न्यू दिल्ली
[11/01 6:32 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 11/01/2020

कुण्डलिया (41) 
विषय- गागर
===========

गागर   मिट्टी  से  बनी, कुम्भकार  के  हाथ I
जन्म समय घर आ गई, मरघट में भी साथ Il
मरघट  में  भी   साथ, सदा  उपकार  घनेरा l
किया  तपित  तन तृप्त, बकाया  कर्जा तेरा ll
कह 'माधव कविराय', भरे उर में ज्यों सागर l
वन्दनीय त्रय कर्म, त्रिया, नागर, सम  गागर ll

कुण्डलिया (42) 
विषय- सरिता
===========

कल -2, छल-2 बह रही, सरिता की लघुधार l
परहित  जल  उर  में  भरे, सहे  प्रदूषण  मार ll
सहे  प्रदूषण  मार, मगर फिर भी हित करती l
धरा-हरा, धन-धान्य, सजाकर खुशियाँ भरती ll
कह 'माधव कविराय', सुरक्षा करिये पल-पल l
जीवन हो आबाद, बहे यदि सरिता कल-कल ll

कुण्डलिया -43
विषय - गहरा
==========

गहरा मन वारिधि बहुत, मन्थन हो दिन -रात I
नित अन्वेषण रत्न नव, करता सुखद प्रभात ll
करता  सुखद  प्रभात, सुधा भी इसके अन्दर l
पाता  जन  श्रमवान, न  चञ्चल  जैसे बन्दर ll
कह 'माधव कविराय', लगाओ मन मत पहरा l
जो  चाहो   लो  ढूँढ़, हिया   रत्नाकर   गहरा ll

कुण्डलिया - 44
विषय - आँगन
===========

छोटा  आँगन  हो  गया, अब  हर  घर   परिवार I
भीड़भाड़  भी  कम  हुई, नहीं  चमन   गुलजार ll
नहीं   चमन   गुलजार, घटे   सब    रिश्ते   नाते l
खत्म  नीम  की  छाँव, विहग  कब  नीड़ बनाते ll
कह 'माधव कविराय',अनिल अरु द्युति का टोटा I
छोटे  -  छोटे   कक्ष, हुआ   आँगन   भी   छोटा ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[11/01 6:39 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगन्ध शतकवीर हेतु 

कुंडलियाँ -43
दिनांक -11-120

विषय -गहरा

गहरा मेरा प्रेम है, पता नहीं है थाहl
रोम रोम में प्रभु बसे, उनकी ही है चाह l
उनकी ही है चाह,कृपा  उनकी है बरसे l
 उनका करुँ आभार,नयन दर्शन को तरसे l
कहती सुनो सरोज, रहे उनका ही  पहराl
जहाँ करूँ मैं वास, 
प्रेम मेरा है गहरा l

कुंडलियाँ 44
दिनांक -11-1-20

विषय -आँगन

तेरे आँगन से उठी, बाबुल डोली आज l
दिल से तेरे पास हूँ, करना मुझ पर नाज l
करना मुझ पर नाज, याद रखु बातें तेरी l
होना नहीं उदास,किये आऊँ  बिन  देरी l
कहती सुनो सरोज, रहे जेहन में मेरेl
आपके संस्कार, चली मैं घर से तेरे l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[11/01 6:42 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक .. 11/01/2920
कलम की सुगंध छंद शाला
 कुंडलियां शतक वीर

विषय...  43)  *गहरा*

 गहरा कूआँ   मृदुल - जल,  रतन   सिंधु - गंभीर ।
दे सलाह   सच्ची   सदा ,  जो जन धीर - सुधीर ।।
जो जन धीर -सुधीर , रखें   सुख-दुख में संयम ।
 चिंतन मननुपरांत , आचरण  अनुकरणीयम्। । 
कहे "निगम" कविराज ,  ताल में ज्यों जल ठहरा ।
‌पाये सुख- यश - मान ,  भाव हो जिनका गहरा ।।

विषय....  44)  *आँगन*

आँगन'  घर - परिदृश्य को , देता सुंदर रूप ।
आती अम्बर से जहाँ ,  सुबह सुनहरी धूप ।।
सुबह सुनहरी धूप ,  रात में       चंदा तारे ।
आँगन   का   आनन्द  ,  उठाते परिजन सारे।। 
"निगम" सजा उस ओर ,  घरेलू गमला -कानन ।
गौरैया का     गान ,  महकता सुन्दर आंगन ।।

कलम से ...
कृष्ण मोहन निगम ।
सीतापुर 
जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[11/01 6:44 PM] अनिता सुधीर: 11.01.2020 (शनिवार )
शतकवीर कुंडलियां

गहरा
गहरा मन कितना रहा,सका न कोई माप।
माप जलधि संभव हुई ,नाप कहाँ मन नाप ।
नाप कहाँ मन नाप ,सदा दुख ओढ़े रहती।
रहती है मुस्कान,सभी से हँस कर कहती।
कहती  तेरी बात ,रहा यादों का पहरा ।
पहरा है उन घाव ,छिपाए ये मन गहरा।

आँगन 
घर आँगन की चौकड़ी ,है अब बीती बात ।
खेल खिलौने खेलते ,  सुंदर थी सौगात ।
सुंदर थी सौगात ,सदा सजती थी बस्ती ।
आँगन था आबाद ,करी सखियों सँग मस्ती।
कहती अनु ये बात ,रही यादें प्रांगण पर ।
लौटे दिन वो काश ,भरा हो वो आँगन घर ।

अनिता सुधीर
[11/01 6:44 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिवस:-शनिवार*
*दिनांक- 11/01/20*
*विषय: गहरा + आँगन*
*विधा कुण्डलियाँ*

       *42*गहरा*

गहरा पानी झील का, होता है मद चूर |
स्वर्णिम छाया-सी बनी, झाँक रहा उर सूर |
झाँक रहा उर सूर, बानगी देख निराली |
अंतस में वैराग, रश्मियाँ हैं मतवाली |
कह विदेह नवनीत, लगा अंबर का पहरा |
धवल-धवल हर ओर, झील का पानी गहरा |

     *43:- आँगन*

आंगन खुशियों से भरा, मेरे घर का आज |
नजर विधाता की हुई, ओ मेरे सरताज |
ओ मेरे सरताज , खुशी से बौराया मन |
स्वप्न हो गए पूर्ण,खिला मेरा अंतर्मन |
कहती हूँ मैं साँच , भरूँगी मैं आलिंगन |
साजन आए द्वार,भरा खुशियों से आँगन ||

  *नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[11/01 6:46 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतक वीर हेतु

दिनाँक- गहरा

सागर सा गहरा नहीं, नहीं सदृश विस्तार।
छुपा विपुल जलराशि में,रत्नों का भंडार।
रत्नों का भंडार,खोजते हैं वैज्ञानिक।
करके दृढ़ संकल्प,यंत्र लेकर वैधानिक।
कहती रुचि करजोड़,ज्ञान का भरता गागर।
नित्य लगाते थाह,बड़ा गहरा है सागर।

*आँगन*

बेटी आँगन की कली,बिखरी द्वार सुगंध।
प्यारी लगती है हँसी,बड़ी मधुर संबंध।
बड़ी मधुर संबंध, प्रेम पूरित वह बोली।
मोहक मधुर स्वभाव,लगी मधुरिम रंगोली।
कहती रुचि करजोड़,न समझो स्त्री को चेटी।
ममता की प्रतिमूर्ति,पले आँगन में बेटी।

चेटी= दासी


✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[11/01 6:49 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
शनिवार-11.01.2020

*43)*गहरा*
गहरा है ये मन कुआं, न जिसकी कोई थाह।
अंतर्मन में बह रही,धारा सतत प्रवाह।
धारा सतत प्रवाह,छिपा है ज्ञान खज़ाना ।
*मन का* *मनका* फेर,जगत में मत भरमाना।
सुन वन्दू के भाव,हटाओ दिल से पहरा।
जग में पाए मान,भाव हो जिसका गहरा।।

*44)*आँगन*

ऊँचे ऊँचे घर बने,छूते जो आकाश।
आँगन खुले कहाँ रहे,दूषित हवा प्रकाश।
दूषित हवा प्रकाश,कहाँ वो हँसी ठिठोली।
बैठीं ननदी सास,बहू की भरतीं झोली।
सुन वन्दू की बात,गली के भूले  कूँचे।
भले शहर से गाँव,न भाव किसी के ऊँचे।।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[11/01 6:51 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
 कुंडलिया शतकवीर हेतु
 दिनांक 11/01/2020

गहरा
गहरा सागर देखके, खोना मत तुम धीर।
 रहते जो इसके तले, समझो उनकी पीर।।
 समझो उनकी पीर, अरे जो तैरे मछली।
 लहरों के संग तैर, रही कुछ बाहर उछली।
 कह राधेगोपाल, आसमाँ देता पहरा।
 खोना मत तुम धीर, देखकर सागर गहरा।।

 आँगन 
आँगन अब छोटे हुए, कहाँ गए सब बाग।
 अब तो सुनते हम नहीं, हैं कोयल का राग।।
 हैं कोयल का राग, पेड़ अब सब हैं काटे।
 सड़कें की तैयार, पहाड़ से पत्थर छाटे।
कह राधेगोपाल, हुए रिश्ते भी खोटे।
 कहाँ गए सब बाग, हुए  आँगन अब छोटे।।

राधा तिवारी 
'राधेगोपाल '
खटीमा 
उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
[11/01 6:57 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *गहरा , आंगन*
दिनांक  --- 11.1.2020....

(45)              *गहरा*

गहरा मेरा मन रहे‌ , गहरा सागर और ।
जीवन में मिलता सदा , अपनेपन की ठौर‌ ।
अपनेपन की ठौर , नहीं यूँ ‌तुम छोड़ोगी ।
रह जायेगा प्यार , अधूरा कब जोड़ोगी।
कह कुमकुम करजोरि , प्रेम ही मन में ठहरा ।
मन ही मन यह बोल , प्रीत होता है गहरा ।।


(46)            *आंगन*

आंगन की रौनक सुता , घर की सुंदर फूल ।
मन उपवन में खेलती , गोदी झूला झूल ।
गोदी झूला झूल , सुहावन घर लगता है ।
लक्ष्मी घर की होय , सदा घर खिलता है ।
कह कुमकुम कविराय , नेह मिलता घर प्रांगण ।
कभी न जाओ भूल , धिया रौनक घर आंगन ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  11.1.2020.....


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[11/01 7:09 PM] +91 94241 55585: कुण्डलिनीयां
    शनिवार 11,1,2020
शतकवीर सम्मान प्रतियोगिता

         आंगन

आंगन सजने है लगे, तुलसी पूजा आज
 हरियाली छायी रहे ,सालिक बृंदा साथ
 सालिक बृंदा साथ,रमा है प्यारी तुलसी
 श्यामा तुलसी खास ,सजी है पावन कलसी
 विष्णुप्रिया है आज,संग है उनके साजन
 कहती है गुल साधना ,पुण्य मिलते घर आंगन

                    गहरा

  गहरा नाता है तभी, मिलता सारा प्यार ।
  सारा जगत तभी दिखे ,डूबा प्रेम अधार ।
  डूबा प्रेम अधार,यह जीवन का है धार ।
  अंतरमन में  राम ,कलयुग जपे  राम सार ।
  गहरी होती सोच ,मन वहीं पर हो ठहरा ।
 कहती गुल यह बात ,भक्ति हरपल हो गहरा ।

      धनेश्वरी सोनी गूल बिलासपुर
[11/01 7:15 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर
दिनाँक--11/1/20

43
गहरा
छाया अँधियारा घना,कैसी काली रात।
छोड़ा साथी साथ जो,गहरा दिल पे घात,
गहरा दिल पे घात,चला होंठों को भींचे।
आँसू की बरसात,रही अँखियों को मींचे।
कहती अनु यह देख,समय यह कैसा आया।
सबने छोड़ा साथ,ढूँढती अपनी छाया।

44
आँगन
कृष्णा आँगन में बँधा,करे चिरौरी मात।
माखन चोरी की सभी,करते झूठी बात।
करते झूठी बात,मातु मैं नन्हा बालक।
छोटे-छोटे हाथ,सखा के झूठे पालक।
माखन मुख लपटाय,मिटाते अपनी तृष्णा।
मैया दोषी जान,विटप से बाँधी कृष्णा

अनुराधा चौहान
[11/01 7:26 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.......... कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
★★★★★★★★★★★★★★★★★
विषय...........गहरा 
विधा ...........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★

गहरा साथी तब बना,देख जगत की रीत।
सुंदर नारी देख कर,जागी मन में प्रीत।
जागी मन में प्रीत,खिले सुरभित की लाली।
खिलता भावन भोर, हरे गेहूँ की बाली।
कहे लाल श्रीवास,नीर सावन का ठहरा।
छोड़ो सब अभिमान,बना साथी अब गहरा।
★★★☆★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[11/01 7:26 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.......... कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
★★★★★★★★★★★★★★★★
       *विषय..........आँगन*
         विधा...........कुण्डलियाँ
★★★★★ ★★★★★★★★★★★
माधव खेले आँगना, गोपी राधा संग।
मातु यशोदा साथ में,डाले होली रंग।
डाले होली रंग,सदा सबको हरषाती।
प्रभु नागर का नाम,जपे जगका मनभाती।
कहता है श्रीवास, धीर अपना लो जाधव।
गाये वत्सल राग,ग्वाल सह खेले माधव।
★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[11/01 7:30 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*कुण्डलियाँ(४३)*
*विषय-गहरा*

गहरा सागर ज्ञान का,है अनंत विस्तार।
मारो इसमें डुबकियाँ,मिलता जीवन सार।
मिलता जीवन सार,भाव का ज्वार उमड़ता।
होते दुर्गुण नाश,सत्य का सूर्य दमकता।
कहती'अभि'निज बात,ज्ञान पर लगे न पहरा।
डूबो जितनी बार, राज खुलता है गहरा।


*कुण्डलियाँ(४४)*
*विषय-(आँगन)*

मेरे आँगन में खिले, सुंदर नन्हें फूल।
देखी छवि मन मोहिनी, गई दुखों को भूल।
गई दुखों को भूल,करें कैसी अठखेली।
बालकृष्ण से लगें,हँसी प्यारी अलबेली।
कहती'अभि'निज बात,रहें वे मुझको घेरे।
चंद्र-सूर्य से उदित,हुए वो आँगन मेरे।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[11/01 7:36 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक ~ 8.1.2020
कुंडलिया -( 39) *धरती*

धरती देती अन्न-जल, सुख-दुख का आभास।
जीवन जननी जीव की, आश्रय और उजास।।
आश्रय और उजास, भार है सबका सहती।
क्रीड़ा करते अंक, नहीं कुछ हमसे कहती।।
प्रांजलि है उपकार, भरण पोषण है करती।
होता  क्या  संसार, नहीं यदि होती धरती।।

कुंडलिया (40) *मानव*

मानव  जीवन  श्रेष्ठ है, ईश्वर का वरदान।
मनु की हैं संतान हम, महिमा मनुज महान।।
महिमा मनुज महान, गान सब इसके गाते।
शीर्ष  चूमता  शौर्य, शीश तब देव झुकाते।।
कहता यही अतीत, धरा पर बढ़ते दानव।
करके दृढ़ संकल्प, जीतता उनसे मानव।।

दिनाँक - 9.1.2020
कुंडलिया (41) *गागर*

गागर में सागर भरे, करके कलम प्रयास।
होगा  पूरा  स्वप्न है, प्रांजलि  को  विश्वास।।
प्रांजलि को विश्वास, लगन लग जाती है जब।
शब्दों  का  संसार, सार बन जाता है तब।।
वरदे वीणापाणि, करूँ निज नाम उजागर।
सागर भरा अथाह, पुष्प की प्यासी गागर।।

कुंडलिया (42) *सरिता*

सरिता सरस सुवाहिनी, सिंधु  समागम  चाह।
उपजे उर उल्लास हो, पय का प्रखर प्रवाह।।
पय का प्रखर प्रवाह, धार से राह बनाती।
प्रस्तर वृक्ष विशाल, स्वयं में सकल समाती।।
प्रांजलि सब वागीश, लहर पर करते कविता।
देती जीवन दान, काल भी बनती सरिता।।

______पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[11/01 7:41 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलियाँ शतकवीर 

दिनांक ११/०१/२०

४३) गहरा 

पानी गहरा कुंड का, जिस में विष भरपूर। 
नगरी नागों की बसी, कालिय राजा क्रूर। 
कालिय राजा क्रूर, फिरे मद में मतवाला।
भीषण सुन फुंफकार, डरें ब्रज बालक बाला।
करना वश में नाग, जभी कान्हा ने ठानी।
चढ़कर खल के शीश, किया विहीन-विष पानी। 

(४४) आँगन 

माता आँगन ढूँढती. कहाँ छुपे गोपाल। 
गोपाल द्वार हैं खडे, बाल ग्वाल गौ बाल॥
बाल ग्वाल गौ बाल, कहें खाना है माखन।
माखन मुख में डाल, चलें डगमग वृंदावन॥
वृंदावन की छाँव, बली हलधर बड़ भ्राता। 
भ्राता करें शुभ बात, चरें सुख से गौ माता। 

गीतांजलि
[11/01 7:47 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 11.01.2020 (शनिवार )

43-  गहरा
********
अँधियारा गहरा गया, हुआ सूर्य का अस्त।
चलता राही भी हुआ, दुरुह राह से पस्त।
दुरुह राह से पस्त, न दिखता कोई साथी।
पल-पल जलता जाय, बना दीपक की बाती।
"अटल" हुआ यह हाल, कर रहे सभी किनारा।
क्या अपने क्या और, दे रहे सब अँधियारा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏


44-  आँगन 
***********
आँगन छोटा या बड़ा, होता घर की जान।
बहुमंजिल में जो रहें, इस सुख से अनजान।
इस सुख से अनजान, भींग लें जब हो वर्षा।
शीतकाल की धूप, देख सबका मन हर्षा।
"अटल" समझिए शान, सदा रहता मनभावन।
जिस घर बालक-वृद्ध, चहकता है वह आँगन।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[11/01 7:52 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 11.01.2020

कुण्डलियाँ (41) 
विषय-गागर
गागर-रवि ले शीश पे,चल दी नववधु-भोर।
लचक-लचक कर पग धरे,पनघट-नभ पथ ओर।
पनघट- नभ पथ ओर, घटा-घूंघट  से झाँके।
झिलमिल चूनर ओढ़,वहीं से दूरी आँके।
देखे अनु ये दृश्य,चली अलबेली   आगर।
लुकाछुपी का खेल,गिरी सागर में   गागर ।।  




कुण्डलियाँ (42)
विषय-सरिता

पानी  है संजीवनी, समझो इसका मोल।
सरिता कुंआ कीमती, कीमत कम मत तोल।
कीमत कम मत तोल,न हो जाये जल सपना।
सूखे सारे स्त्रोत,हुआ मन त्रासद अपना।
अनु जल जीवन जान,कहाँ अब चूनर धानी।
निज हित भूला राष्ट्र,धरा पर कम अब पानी।।


   

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल

कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 11.01.2020

कुण्डलियाँ (43) 
विषय-गहरा
गहरा माँ का प्यार है,गहरे कवि के घाव।
गहरा सागर नीर है,गहरे भक्त के भाव।
गहरे भक्त के भाव,बहे भावों की गंगा।
माँ सब देती वार,दुखी कवि जब हो दंगा।
सुन लो अनु की बात,नहीं  भावों पर पहरा।
छलके मन की प्रीत,भक्त,कवि,माँ  मन गहरा।।







कुण्डलियाँ (44)
विषय-आँगन
आँगन उदास आज है,लाडो है ससुराल।
दिन भर रहती डोलती, सबको रख खुशहाल।
सबको रख खुशहाल, कहाँ वो नन्ही  चिड़िया।
फिरती रहती पास,सदा वो मेरी गुड़िया।
अनु लाडो अब दूर,अभी आने को फागन।
ढूंढूं कैसे आज,कहे ये घर का आँगन।।



   

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[11/01 8:00 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
11-1-2020

गहरा 

गहरा मेरा प्यार है, नाम है  घनश्याम ।
रोम रोम में है बसे, हरपल आठो याम ।
हरपल आठो याम, वही मेरा  रखवाला ।
सिर पर धरते हाथ, मोहना वो नँदलाला ।
मीरा कह कर जोड़, श्याम का दिल पे पहरा ।
चरनन में है ठौर, प्यार है मेरा गहरा ।।

बाबुल 

बाबुल आँगन छोड़ कर, चली पिया के साथ।
नैनों में आँसू लिये, थाम पिया का हाथ ।
थाम पिया का हाथ, है रिस्ता जनम जनम का ।
बिंदिया चमके माथ,जन्म हर बस साजन का ।
मइया कहती आज, बिटिया खुस रहना हरपल ।
स्वर्ग बने घर द्वार,याद रख आँगन बाबुल ।।

केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[11/01 8:04 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध कुंडलियां प्रतियोगिता शतकवीर
 11/1/2020

(43)गहरा

सागर से गहरा हृदय,  वाणी 
है अनमोल।
  संत  वचन अमृत भरे,    ज्ञान चक्षु दे खोल।
 ज्ञान चक्षु दे खोल,  मोह  ममता मिट जावे।
 अन्तर्मन धुले कलुष, दिव्य  ज्योती    दिखलावे।
 कह प्रमिला कविराय, संत मन मणि की गागर।
  रखते हृदय विशाल,  प्रेम का गहरा सागर।।


(44)ऑगन

ऑगन लीपें जानकी,  शिव धनु लियो उठाय।
 देखि जनक विस्मित भये, प्रण ठाना चितलाय।
 प्रण ठाना चित लाय,  वरण वो करेगा सीता।
तोड़े शिव को चाप,नही फिर जाये रीता।
   कह प्रमिला कविराय ,  चलीं सिय देव मनावन।।
 रचा स्वंयवर आज, जनक राजा केआँगन।।

 प्रमिला पान्डेय
[11/01 8:16 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंद शाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक - 11-01-020

(43)
विषय -गहरा

अंतर की पीड़ा बढ़ी, भूल गए मनमीत ।
राधा कहती श्याम से, झूठी तेरी प्रीत।।
झूठी तेरी प्रीत, मधुर बातें थीं कोरी।
गहराई की थाह, मिली न मन की तेरी।।
कैसे धर लूँ धीर,वेदना उर के अंदर।
तुम हो शीतल नीर, विरह में तपता अंतर।।

(44)
विषय-आँगन

नभ आँगन में खेलता, दिनकर किरणें मेह।
शीतलता से रिक्त था, उसका रक्तिम देह।।
उसका तपता देह, हुआ पश्चिम नारंगी।
तब आया रजनीश, हजारों तारक संगी।।
चमके सारी रात,सजा रूपहला सावन।
फिर सोये चुपचाप, प्रफुल्लित् था नभ आँगन।।

सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[11/01 8:36 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: गागर

Date: 11 Jan 2020

Note:
गागर --  1

गागरिया ले वो चली, वह भरने को नीर
शीतल घट जल से भरी ,हरे तृषित की पीर।
हरे तृषित की पीर, सभी की प्यास बुझाती।
पीकर ठंडा नीर, हृदय को वह समझाती।
गागर छलकत जाय, भींगती है चूनरिया।
सबकी प्यास बुझाय, सखी छोटी गागरिया।

शिवकुमारी शिवहरे
💐💐💐💐💐💐💐

      .शिवकुमारी शिवहरे

गागर  -  2
      .
गागर पनघट ले चली, वह भरने को नीर। सिर पर छलकी गागरी,भींगा उसका चीर ।
भींगा उसका चीर,भींग गई है चुनरिया।
बहा सारा सिंदूर, सखी छलके गागरिया।
सागर भरा अथाह,न प्यास बुझाता सागर।
तृषिता प्यास बुझाय,हमारी छोटी गागर।

शिवकुमारी शिवहरे
[11/01 8:37 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: भावुक

Date: 11 Jan 2020

Note:
भावुक

मन भावुक होये तभी, करता अच्छे काम।
पीड़ित की सेवा करे, होता उसका नाम।
होता उसका नाम,, तत्पर सेवा मे रहता।
सेवा उसका काम,सदा भावो मे बहता।
हरे जनों की पीर, सदा सेवा मे ये तन।
रहे ये धीर अधीर, कभी भावुक होता मन।

शिवकुमारी। शिवहरे
[11/01 8:38 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: सरिता

Date: 11 Jan 2020

Note:
सरिता

सरिता बहती है रही ,बसे तटों पर गाँव।
,वृक्ष किनारे लगे रहे, मिलती ठंड़ी छाँव।
मिलती ठंड़ी छाँव,किनारे सरिता बहती।
नही करती विश्राम, हमेशा चलती रहती
सबको गले लगाय ,किनारे करती हरिता
तृषिता प्यास बुझाय,सदा बहती है सरिता।

शिवकुमारी शिवहरे
[11/01 8:48 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(43)
विषय-गहरा
गहरा सागर अतल है,अति विशाल गंभीर।
 गहराई ने  ही  दिया ,उसको  इतना  धीर ।
उसको इतना धीर ,अथाह  वारि से बनता।
 उथला होता ताल,जरा में अधिक उफनता ।
कह आशा  ये बात, रखे  भावों पर  पहरा।
 मानव  पाये ज्ञान, अगर उसका मन गहरा।






(44)
विषय-आँगन
आँगन धरती का खुला, फैला अति विस्तार।
 ऊपर छाया गगन  की, मगन मनुज संसार।
 मगन  मनुज  संसार, गोद धरती की  खेले।
 बिखरा  माया  जाल, रचे  मनभावन  मेले।
जंगल जलधि प्रपात,रवि रश्मि लुभाती मन।
लेकर तारक चाँद, निशा चमकाती आँगन।

रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
[11/01 8:55 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता*......

43-- *गहरा*

गहरा सागर बहुत है , नाप सके कब पाय 
नई सृष्टि है बस रही , सागर तल में जाय 
सागर तल में जाय, नए जीवन की बस्ती 
गहरी सोच बनाय, बनाये अपनी हस्ती 
बादल मेघ बनाय , चाँद का रहता पहरा 
मिले गगन में जाय  , बहुत है सागर गहरा ।।

44--- *आँगन*

बिरवा तुलसी आँगना , धूप दीप की गन्ध 
सात्विक से परिवेश में , गहन लीन उर मन्द 
गहन लीन उर मन्द , गा रहा छंद  रागिनी 
भक्ति मन के भाव , खिलाते हृदय  चाँदनी 
धीरे धीरे देख, चली मस्ती से पुरवा 
फैला रहा  है गन्ध, आँगना तुलसी बिरवा ।।

सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर
[11/01 9:06 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

43-गहरा (11.01.2020)
गहरा जिसका पेट हो, उसका हृदय अथाह।
बात पचाता है बहुत, मौनी सा निर्वाह।।
मौनी सा निर्वाह, आदमी जो यह करता।
खोले नहिँ वह भेद, अधिकतर चुप्पी धरता।।
कहे अमित कविराज, लगा रखता मुख  पहरा।
रहता अति गंभीर, पेट हो जिसका गहरा।।


44-आँगन 
खड़ा अहाता आँगना, जिस दिन से परिवार।
हाल बुरा अब हो गया, छिना सुखद आधार।।
छिना सुखद आधार, विकृत आँगन का मुखड़ा।
मातु पिता असहाय, सुनें नहिँ कोई दुखड़ा।।
बँटवारे का दंश, एक ही बात बताता।
चारदिवारी तोड़, करो मत खड़ा अहाता।।

कन्हैया साहू 'अमित'
[11/01 9:12 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
11/1/2020

               *(43)गहरा* 
         
सागर सी गंभीरता,जब मन में आ जाय।
राह सहज आसान हो, अगणित खुशियाँ पाय।
अगणित खुशियाँ पाय,सभी का बने सहारा ।
कर्म सरल  व्यवहार,गगन के तुम ध्रुवतारा ।
कहती मधुर विचार, गुणों से बनते  नागर।
नेक करम दे मान,बूँद से गागर सागर।

            *(44)आँगन* 

छाई चहुँ है रौशनी, जगमग मंगल द्वार ।
रंग अल्पना आँगना,आज दीप त्यौहार ।
आज दीप त्यौहार, अमावस रात निराली।
धनदेवी को पूज,दीप अवली की लाली।
कहे मधुर ये सोच, नेह से मिलजुल भाई।
भाईचारा भाव,खुशी चहुँ दिश है छाई ।  

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[11/01 9:23 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '      11.1.2020.

  🙏🙏

43 ) गहरा 
***********
नाते प्यारे हैं सदा , बहन व भाई साथ । 
गहरा दोस्ती ही रहे , सदा बँटाते  हाथ ।
सदा बँटाते हाथ , कष्ट नहिँ होने देते ।
बहन बुलाये अगर , चले नहिँ रोने देते ।।
माँ इतराये देख , सलोने कितने भाते ।
देती है आशीष , रहें यह रिश्ते नाते ।।



44 ) आँगन 
************
बाँटे कोई आँगना , रहे सजाता द्वार।
बिछुड़े कभी न छोड़ के , इक दूजे का प्यार ।।
इक दूजे का प्यार , हमेशा हो ही फैला ।
साफ़ व सुथरा स्वच्छ , तभी जब आँगन मैला।
जो हो आँगन द्वार , सभी काँटे वह छाँटे ।
सदा रहे सद्भाव , कौन जो आँगन बाँटे ।।
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
9.1.2020 , 11:29 पीएम पर रचित ।
[11/01 9:29 PM] उमाकांत टैगोर: क्षमाप्रार्थी के साथ किसी कार्यवश मैं रचनाधर्मिता में पीछे रह गया था।कुंडलिया 4 - 4 करने पूरा करने का प्रयास करूँगा।🙏🏼

कलम की सुगंध छंदशाला 

 *कुण्डलिया शतकवीर हेतु* 

*दिनांक -31/12/19*

कुण्डलिया (27) 
विषय- विनती

विनती इतनी है प्रभो, मुझको दे दो ज्ञान।
इससे दूर नहीं रहूँ, नहीं रहूँ अंजान।।
नहीं रहूँ अंजान, सत्य को समझूँ जानूँ ।
सब को एक समान, सभी को अपना मानूँ।।
मत हो मन में भेद, नही हो इसकी  गिनती।
सबसे रिश्ता एक, रहे इतनी है विनती।।


(28)भावुक

मन में भर उत्साह को, सुन प्यारे मनमीत
भावुक रहकर क्या तुम्हें, मिल जाएगी जीत।
मिल जाएगी जीत, हौसला रखकर देखो।
कांटो पर भी आप, कभी चलकर के देखो।।
हँस लो जी भर रोज, रंग भर लो जीवन में।
बसता है उल्लास, सदा उत्साहित मन में।।

*दिनाँक 01/01/20*

कुंडलिया(29)
विषय-अविरल 

अविरल कर्म करे सभी, रुके नहीं हम ठौर।
सुस्ताने का दिन गया, नया चला है दौर।।
नया चला है दौर, एक पल भी मत थकना।
त्यागो निद्रा आप, सतत जीवन में बढ़ना।।
बहते जाओ नित्य, बहे जस झरना कल कल।
बाधाओं के बीच, राह में बढ़ना अविरल।।

कुंडलिया(30)
विषय- सागर

(30)सागर

सागर जैसा सब बनो, सीखो उनसे ज्ञान।
गहरा जल होता मगर, तनिक नहीं अभिमान।।
तनिक नहीं अभिमान, सदा सम पर ही रहता।
रहता बिल्कुल शांत, कहो क्या वह है बहता।।
कुछ पाकर के नीर, छलक जाते हैं गागर।
लेकिन नीर अथाह, लिए छलके क्या? सागर।।


रचनाकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर (छ.ग.)
[11/01 9:29 PM] +91 99810 21076: कुण्डलियाँ

दिनांक-11-02-2020

             3-गहरा
गहरा हो घर का कुआँ,पानी उतना होय।।
बारिश मौसम में भरे,भरा भरा मन होय।।
भरा भरा मन होय,देख कर के जल सारा।
पीते जल को खूब,प्यास का हो जो मारा।।
लेते सब आनंद,रहे गूँगा या बहरा।
खोदे जब भी कूप,रहे वह अंदर गहरा।।

              4-आँगन
आँगन सुंदर सा रहे,घर बढ़िया ही होय।
गर्मी में लेकर मजा,मस्त हवा में सोय।।
मस्त हवा में सोय,उमस में राहत लेते।
कूलर ऐसी बंद,छोड़ कमरे में देते।।
खर्राटे भर नींद,मगन हो जैसे टाँगन।
रहे बड़ा द्वार,बड़ा हो अपना आँगन

राजकिशोर धिरही
दिनांक-11/01/2020
[11/01 9:33 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कुण्डलिया शतक वीर आयोजन। दिन-- शनिवार, दिनांक--११/०१/२०२०*
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*४३--गहरा*
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अंधेरे अज्ञान के , हैं गहरे हे नाथ।
जीवन पथ दुर्गम हुआ,आओ पकड़ो हाथ।
आओ पकड़ो हाथ, राह हमको दिखलाओ।
दूर करो अज्ञान, ज्ञान की ज्योति जलाओ।
बालक हैं नादान, ध्यान दो हे प्रभु मेंरे।
हे दीनों के नाथ, मिटा दो सब अंधेरे।।
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*४४--आँगन*
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बनने मत देना कभी ,आँगन में दीवार।
खुशियाँ हो परिवार में, सब के मन में प्यार।
सब के मन में प्यार, साथ सब रोटी खायें।
छोड़ें सारे द्वेष, प्रेम की पौध उगायें।
जो भी करना काम, बड़ों से सम्मति लेना।
मन में बुरे विचार, कभी मत पलने देना।
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*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
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1 comment:

  1. बहुत सुंदर और सार्थक प्रयास जितनी सराहना की जाए उतनी कम है

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