Thursday 23 January 2020

हिंदुत्व में विज्ञान...अनंत पुरोहित 'अनंत'

*हिंदुत्व में विज्ञानः हिंदू धर्मशास्त्रों में महाविस्फोट सिद्धांत  (Big Bang Theory)* अनंत पुरोहित 'अनंत'

(लेख का अंग्रेजी संस्करण 24 जुलाई 2018 को opindia में प्रकाशित)

वर्तमान में, भारत और लगभग संपूर्ण विश्व में वामपंथी विचारधारा का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। वामपंथी, जो कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों पर विश्वास करता है, पूरी तरह से नास्तिक है और ईश्वर के अस्तित्व को सिरे से नकार देता है। दूसरी ओर; वामपंथ के विपरीत, दक्षिणपंथी विचारधारा ईश्वर पर पूर्णतया विश्वास करता है।

भारत के अधिकांश हिंदुओं में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा है। ईश्वर में विश्वास के अलावा, हिंदू प्रवृत्ति काफी उदार और परोपकारी है। यही उदारता हिंदुओं को वामपंथ का आसान शिकार बनाती है। यही कारण है कि वामपंथी हमेशा हिंदुओं के आस्था पर हमला करते हैं, हिंदू देवी-देवताओं पर मजाक और अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। जबकि वे, विशेष कर अब्राहमिक विश्वास वाले विदेशी धर्मों के साथ ऐसा करने का साहस नहीं करते। वामपंथी उदारवादियों के लिए, हिंदू धर्मग्रन्थ आधारहीन, अवैज्ञानिक और पूरी तरह से अतार्किक हैं।

क्या हिंदू धर्म वास्तव में तर्कहीन और अवैज्ञानिक है? यह प्रश्न विचारणीय है। क्या सभी हिंदू धर्मशास्त्र केवल काल्पनिक हैं और किसी ने अपनी कल्पना को शब्दों में पिरो दिया है? यह कुछ ज्वलंत प्रश्न हैं जिन्हें जानना आवश्यक है। इन प्रश्नों का उत्तर वेदों, पुराणों और धर्मग्रन्थों में मिलेगा। परंतु यहीं वास्तविक समस्या सामने आती है। सभी हिंदू धर्मग्रन्थ संस्कृत में लिखे गए हैं और दुर्भाग्य से संस्कृत आजकल आम जनता की भाषा नहीं है। संस्कृत, आज विलुप्ति के कगार पर है, मृतप्राय।

धर्मग्रन्थों की जाँच करने के लिए, कि क्या ये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही हैं या फिर केवल कल्पना से लिखे गए हैं,  इन तीनों की गहरी समझ होनी चाहिए - धार्मिक रीति-रिवाज, संस्कृत और विज्ञान। परंतु विडम्बना यह है कि वैज्ञानिक ज्ञान से युक्त व्यक्ति आधुनिकता के आडंबर में स्वयं को नास्तिक समझता है और उसे धर्मग्रन्थ ढकोसला मात्र प्रतीत होते हैं।

इन ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए, मैंने सबसे पहली किताब उठाई मनुस्मृति। यह चयन बिल्कुल भी अचानक या निरुद्देश्य नहीं था बल्कि एक विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु था। यह भारतीय इतिहास की सबसे विवादित किताब है और गाहे-बगाहे आज भी वामपंथी इस किताब को जलाकर अपना विरोध प्रदर्शन करते हैं। सर्वप्रथम डाॅ भीमराव रामजी अंबेडकर ने 25 दिसंबर 1927 को इस किताब को जलाकर अपना विरोध प्रदर्शन किया था। तब से लेकर आज तक यह किताब वामपंथियों, उदारवादियों, तथाकथित बुद्धिजीवियों और स्वघोषित दलित हितैषियों का आसान शिकार है। इस पुस्तक को न तो मैंने वामपंथी आलोचक की तरह चुना और न ही किसी दक्षिणपंथी भक्त की तरह, बल्कि मैंने इसे चुना एक पूर्णतः निष्पक्ष सत्य साधक के रुप में। एकमात्र उद्देश्य उत्तर जानना और सत्य को उद्घाटित करना था।

जब मैंने किताब पढ़ना प्रारंभ किया तो मुझे कुछ आश्चर्यजनक वैज्ञानिक सिद्धांत परिलक्षित हुए। विज्ञान के जटिलतम सिद्धांतों में से एक महाविस्फोट सिद्धांत (Big Bang Theory) इस किताब के पहले ही अध्याय में लिखा गया है। मनुस्मृति का पहला अध्याय 'सृष्टि की रचना' ब्रह्मांड की रचना को समर्पित है। इस संदर्भ में निम्नलिखित श्लोक लिखे गए हैं:

*आसित् इदम् तमोभूतम् अप्रज्ञातम् अलक्षणम्*
*अप्रतर्क्यम् अविज्ञेयम्  प्रसुप्तम् इव सर्वतः (1:05)*

ब्रह्माण्ड, अस्तित्व से पहले अंधकार में था, अविभाज्य, अस्पष्ट, तर्कों से परे, अज्ञेय मानो कि सुप्तावस्था में हो (1:05)

*तत: स्वयंभुव भगवान अव्यक्तोव्यञ्जन्ना इदम्*
*महाभूतादि वृत्ति ओजाः आसित् तमोनुदः (1:06)*

तब स्वयंभू, अविनाशी, सर्वव्यापी ईश्वर ने अपनी ऊर्जा (ओज) से अंधेरे को दूर कर इस ब्रह्माण्ड को प्रकट किया और स्वयं को पाँच मूल तत्त्वों (पंच महाभूत) के रुप में विवेकी बनाया (1:06)

*यो असावतिन्द्रियग्राह्यः सूक्ष्मो अव्यक्तः सनातनः*
*सर्वभूतमयोचिन्त्यः स एव स्वयमुद्भवौ (1:07)*

इस प्रकार सर्वव्यापी ईश्वर; जो सूर्य की तरह आत्म विकीर्ण है, जो हमारे भौतिक शरीर या इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता, जो सूक्ष्म है, जो अनंत है, जिसमें सभी निर्मित वस्तुएँ शामिल हैं, जिन्हें हमारी इच्छा से जाना नहीं जा सकता, ने स्वयं की इच्छा से स्वयं को प्रकट किया। (1:07)

*सो अभिध्याय शरीरात्सिसृक्षुर्विविधाः प्रजाः*
*अप् एव ससर्जादौ तासुबीजम् अवसृजत् (1:08)*

ईश्वर ने, अपने शरीर से कई प्रकार के जीवों को पैदा करने की इच्छा रखते हुए, पहले 'अप' या 'ऑपो' (तरल अवस्था में ऊर्जा का एक रूप जिसका कोई समकक्ष न होने की वजह से सामान्य समझने के लिए पानी का समानार्थी माना जाता है) बनाया और उनमें अपने बीज को रखा।

*तदण्डमभवद्हैमम् सहस्रांशुसमप्रभम्*
*तस्मिञ्जज्ञे स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः (1:09)*

वह अण्डाकार बीज सूर्य के समान स्वतः विकीरित और हजारों सूर्यों के समान चमकदार सुवर्ण का गोला समान बन गया। उसमें संपूर्ण विश्व के पितामह स्वयं ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ।

*आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः*
*या यदस्यायनं पूर्वं तेन नारायणः स्मृतः (1:10)*

ऑपो (जल का समकक्ष ऊर्जा रुप) को नार भी कहते हैं, क्योंकि नर नामक परमात्मा से पैदा हुए हैं। और यह सर्जनहार का पहला निवास स्थान था अतः उन्हें नारायण कहते हैं।

*यत्तत्कारणमव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकं*
*तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्मेति कीर्त्यते (1:11)*

जो सारे जगत् का उपादान कारण है, अप्रकट है, सनातन है, सत्-असत् पदार्थों का प्रकृतिभूत है, उसी से उत्पन्न वह पुरुष संसार में ब्रह्मा के नाम से जाना जाता है।

*तस्मिन्नण्डे स भगवानुषित्वा परिवत्सरम्*
*स्वयमेवात्मनो ध्यानात्तदण्डमकरोद्विधा (1:12)*

उस अण्डे में भगवान ने ब्राह्ममान से उसे सेकर (उषित्वा- अंडों को सेने की क्रिया) दो भागों में विभक्त किया।

*ताभ्यां स शकलाभ्यां च दिवं भूमिं च निर्ममे*
*मध्ये व्योम दिशश्चाष्टावपां स्थानं च शास्वतं (1:13)*

उस से समस्त दिशाओं और भूमि को बनाया। मध्य के व्योम में आठों दिशाओं को बनाया और वहाँ अप या ऑपो को शाश्वत रुप से स्थिर किया।

उपर्युक्त श्लोकों, विशेषकर श्लोक 12 और 13, का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि यह और कुछ नहीं बल्कि महाविस्फोट सिद्धांत (Big Bang Theory) है।

अब Big Bang Theory या महाविस्फोट सिद्धांत क्या कहता है, उसे समझते हैं। यह सिद्धांत कहता है - हमारा ब्रह्माण्ड एक बहुत ही सूक्ष्मतम ईकाई से शुरू हुआ जो बहुत ही सूक्ष्म था, अनंत रुप से गर्म। यह कहाँ से आया और क्यों गर्म था हम नहीं जानते। इस सूक्ष्मतम ईकाई का बहुत बड़ा विस्फोट हुआ और उसका विस्तार होने लगा, जिससे यह ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया। बहुत लंबे समय पश्चात यह ठंडा हुआ और इसका विस्तार आज भी जारी है। महाविस्फोट के पूर्व समय भी नहीं था, कुछ भी नहीं, केवल शून्य।

विश्लेषण:

मनुस्मृति के श्लोकों को और महाविस्फोट सिद्धांत को एक साथ पढ़ने पर दोनों के भाव में कोई भी अंतर नहीं दिखता। शब्दों में अंतर दिखेगा, क्योंकि विज्ञान ईश्वर को नहीं मानता अतः विज्ञान के लिए ब्रह्मा, नारायण जैसे शब्दों का कोई मोल नहीं। विज्ञान ने स्पष्ट रुप से कह दिया कि सूक्ष्मतम ईकाई कहाँ से आया मुझे नहीं पता; इसी को मनु ने लिखा ब्रह्मा ने बनाया। विज्ञान ने लिखा यह बहुत गर्म था, कहाँ से गर्म हुआ मुझे नहीं पता। मनु ने लिखा यह बहुत गर्म था, स्वतः विकीरित, हजारों सूर्यों की तरह चमकदार और चूँकि यह ईश्वर के ओज (अप या ऑपो) से बना अतः गर्म था। विज्ञान कहता है विस्फोट हुआ और विस्तार हो रहा है। मनु ने लिखा यह विभक्त हुआ और इसके मध्य ही सभी दिशाएँ बनीं, सभी जीवित, मृत पदार्थ बने।

एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मनुस्मृति के अनुसार व्योम में शाश्वत पदार्थ 'अप' या 'ऑपो' स्थित है। महाविस्फोट सिद्धांत में इस संदर्भ में कुछ भी नहीं लिखा है। परंतु न्युटन ने प्रकाश की गति (ध्रुवण और व्यतिकरण) को समझाने के लिए एक सर्वव्यापी तत्त्व ईथर की कल्पना की थी। वैज्ञानिक और विज्ञान इसमें दुविधा में हैं क्योंकि ईथर का अस्तित्व मानने पर व्यतिकरण का तो व्याख्या किया जा सकता है परंतु ध्रुवण की व्याख्या संभव नहीं है। कारण कोई पदार्थ एक ही साथ कण की तरह और तरंग की तरह एक साथ व्यवहार नहीं कर सकता।

जबकि मनुस्मृति के 'अप' या 'ऑपो' में ऐसी कोई दुविधा नहीं है क्योंकि अप या ऑपो स्वयं ईश्वरीय ऊर्जा है, ऊर्जा एक साथ कण औ तरंग की तरह व्यवहार कर सकता है।

संसार में सर्वत्र 'अप' या 'ऑपो' व्याप्त है। इसका एक और प्रमाण यह है कि विज्ञान मानता है अंतरिक्ष में 'शुद्ध निर्वात (absolute vacuum) है और इसके ठीक विरोधाभाषी बात यह कहता है कि 'शुद्ध निर्वात' कभी बनाया नहीं जा सकता। इस कथन का दूसरा भाग ही सही है विशुद्ध निर्वात कभी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि 'अप' या 'ऑपो' (ऊर्जा) को हटाने का कोई साधन (pump) नहीं बनाया जा सकता। ऑपो सर्वत्र व्याप्त है।

मनुस्मृति का विश्लेषण अधिक सटीक है।

लेखक-
अनंत पुरोहित 'अनंत'

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